राजपथ - जनपथ
मिलती-जुलती राम कहानी..
कलेक्टर जैसे अति व्यस्त पद पर रहते हुए भी आईएएस अफसर अवनीश शरण सोशल मीडिया के लिए वक्त निकाल लेते हैं। उन्होंने ताज़ा पोस्ट इन दिनों की चर्चित फिल्म ट्वेल्थ फेल की क्लिपिंग के साथ डाली है। इस फिल्म में एक आईपीएस मनोज कुमार शर्मा के संघर्ष का जिक्र होता है। इसमें बताया गया है कि 12वीं फेल होने के बावजूद कैसे उसने प्रबल इच्छाशक्ति से कामयाबी हासिल की। अवनीश शरण लिखते हैं कि यह सिर्फ आपका रिजल्ट नहीं, उन तमाम लोगों के संघर्षों का प्रतीक है, जो विषम परिस्थितियों के बावजूद यूपीएससी परीक्षा में बैठने की हिम्मत जुटा पाते हैं।
अवनीश शरण ने खुद की यात्रा भी इसी तरह से तैयार की। दसवीं में थर्ड डिवीजन थे, ग्रेजुएशन तक 60-65 परसेंट नंबर लाते रहे। स्टेट पीएससी की प्रारंभिक परीक्षा में 10 से ज्यादा बार फेल हुए। अधिक आसान प्रतियोगी परीक्षाओं में बार-बार विफल होते रहे। मगर आखिरकार सफलता मिली।
उनके इस पोस्ट को प्रेरणास्पद बताते हुए तो अधिकतर टिप्पणियां की गई है लेकिन कुछ अलग तरह की प्रतिक्रियाएं भी है।? एक ने लिखा है कि असफलता आप इसलिए गिना पा रहे हैं, क्योंकि सफल हो गए । एक और ने लिखा है कि लोगों को अपना परिश्रम संघर्ष लगता है और दूसरों का तमाशा। एक और प्रतिक्रिया है कि आपने साबित कर दिया सर कि हमारी परीक्षा प्रणाली खराब है।एक ने फिल्म पर सवाल उठाया है, कहा है कि ये कोचिंग संस्थानों के प्रचार के लिए बनाई गई है। मतलब है कि कोई पोस्ट मोटिवेशन के लिए डाली गई हो तो जरूरी नहीं कि लोग मोटिवेट ही हों। हर किसी की राम कहानी अलग-अलग होती है।
इस्तीफे का राज
कांग्रेस शासन में सरकारी पदों पर नियुक्त पार्टी पदाधिकारियों में अचानक नैतिकता जाग रही तो कुछ कोर्ट से स्टे भी ले रहे हैं। स्टे लेने के बाद इस्तीफे भी दे रहे हैं। कारण दिलो जहन में जगी नैतिकता बताने से नहीं थक रहे। कारण की पड़ताल में मालूम चला कि सरकार तो सर्वाधिकारी है, दलगत विरोधी भी बहुतेरे हैं। वहीं बड़े बेआबरू होकर निकाले गए और? लाखों के वेतन की रिकवरी आदेश निकला तो लेने के देने पड़ जाएंगे। वैसे भी ज्यूडिशियल संस्थान में राजनीतिक नेता की नियुक्ति पहले ही गैरकानूनी है। और वे तीन चार वर्ष से सवा,से डेढ़ लाख वेतन और विवाद सुलझाने का दोनो पक्षों से उतना ही मेहनताना झोंकते रहे हैं। उनके विरोधी यह भी बताते हैं कि बिना कोर्ट गए नेताजी,फैसलों की कापी पर हस्ताक्षर करते रहे। नेताजी के खिलाफ चुनाव आयोग में भी शिकायत की जा चुकी थी।
अगला एजी कौन ?
चर्चा है कि रमन सरकार में एडिशनल एडवोकेट जनरल रहे ठाकुर यशवंत सिंह को साय सरकार एडवोकेट जनरल बना सकती है। यशवंत सिंह लोरमी के रहवासी हैं, और यही से डिप्टी सीएम अरुण साव चुनकर आए हैं। अरुण साव के पास विधि विभाग भी है।
यशवंत सिंह के पिता ठाकुर भूपेन्द्र सिंह लोरमी से विधायक रहे हैं। वो भाजपा के किसान मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। पारिवारिक पृष्ठभूमि भी यशवंत सिंह के पक्ष में जा रही है। वैसे सीनियर एडवोकेट राजीव श्रीवास्तव के नाम की भी चर्चा रही है, और कई प्रमुख नेताओं ने उनके नाम की सिफारिश की है। संकेत है कि अगले दो-तीन दिनों में एजी की नियुक्ति के आदेश जारी हो सकते हैं।
अमित और अमित, 11 में 11?
जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के कांग्रेस में विलय की चर्चाओं का अध्याय विधानसभा चुनाव के पहले से ही बंद हो चुका है। परिणामों के बाद पार्टी नेता पूर्व विधायक अमित जोगी का कहना था कि कांग्रेस को हराने के चक्कर में हम वे सीट भी गवां बैठे जहां जीत मिल सकती थी। चुनाव के समय ही भाजपा के प्रति जेसीसी का झुकाव दिख रहा था, विलय की भी चर्चा होने लगी थी। अपने चिर प्रतिद्वंद्वी भूपेश बघेल को मात देने के उद्देश्य से उन्होंने पाटन से चुनाव भी लड़ा।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की फोटो अमित जोगी ने सोशल मीडिया पर शेयर की है, उसके बाद से विलय की चर्चा और जोर पकडऩे लगी है। शाह से मिलना इतना आसान नहीं है। शायद इसलिए मुलाकात के दौरान अमित अति प्रसन्न दिख रहे हैं और शाह सिर्फ 2 इंच मुस्कुरा रहे हैं। सामने लोकसभा चुनाव है। भाजपा ने कहना शुरू कर दिया है कि इस बार बस्तर और कोरबा सीट भी कांग्रेस के लिए नहीं छोड़ेंगे, पूरी 11 की 11 जीतेंगे।
कोरबा संसदीय सीट का एक विधानसभा क्षेत्र मरवाही है, जहां राज्य बनने के बाद से ही जोगी परिवार का असर देखा जाता है।
सन् 2009 में डॉ. चरण दास महंत ने करीब 20 हजार मतों से करुणा शुक्ला को पराजित किया था। मगर अगली बार 2014 में डॉ. बंसीलाल महतो ने करीब 4600 मतों से उनको हरा दिया। सन् 2019 में मोदी लहर के बावजूद ज्योत्सना महंत ने भाजपा के ज्योति नंद दुबे को करीब 26 हजार से अधिक मतों से हरा दिया। उस चुनाव के ठीक पहले विधानसभा चुनाव भी हुआ था, जिसमें कांग्रेस से अलग होकर खुद स्व. जोगी ने मरवाही से चुनाव लड़ा था। तीनों ही लोकसभा चुनावों में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की अच्छी मौजूदगी देखी गई। माना जाता है कि इसने ज्यादातर कांग्रेस के वोट विभाजित किए। हर बार गोंगपा को यहां 30 हजार से अधिक वोट मिल जाते हैं। सन् 2019 में तो यह 37000 से अधिक था।
संयोग है कि 2019 में जेसीसी का कोई उम्मीदवार मैदान में नहीं था इसलिए कटघोरा तानाखार के अलावा मरवाही के वोट भी गोंगपा और कांग्रेस में बंट गए। सन् 2023 के विधानसभा चुनाव में जीसीसी प्रत्याशी को यहां से करीब 40 हजार वोट मिले। कांग्रेस को उसने मामूली मतों के अंतर से तीसरे स्थान पर पहुंचा दिया। अभी जीसीसी ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। मगर ऐसा लगता है कि मिशन 11 में 11 के लिए भाजपा को उनकी जरूरत पड़ेगी। मरवाही में जेसीसी को मिले वोट कांग्रेस और गोंगपा में बंटने से रोकने के लिए।
नैतिकता भी कोई चीज होती है
सरकार बदलने के बाद भी कांग्रेस के कई नेता मंडल-आयोग पर काबिज हैं। सरकार ने उन्हें हटाने का आदेश जारी किया था। मगर पहले महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ. किरणमयी नायक, और अब उर्दु अकादमी के चेयरमैन इदरीश गांधी, रेंट कंट्रोल ट्रिब्यूनल के सदस्य सुशील आनंद शुक्ला को स्टे मिल गया है। कुछ और नेता पद से हटाए जाने के आदेश के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाले हैं।
नैतिकता तो यह थी कि सरकार बदलते ही कांग्रेस नेताओं को पद छोड़ देना चाहिए था। मगर कांग्रेस नेता पद का मोह नहीं छोड़ पा रहे हैं। ये अलग बात है कि कई नेताओं ने तो चुनाव नतीजे आते ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। सरकारी पद पर काबिज नेताओं को पार्टी के नेता ही काफी भला-बुरा कह रहे हैं। इन्हीं में से एक आरडीए के पूर्व डायरेक्टर राजेंद्र पप्पू बंजारे ने सोशल मीडिया पर लिखा कि कांग्रेस सरकार के नहीं आने के बाद मैंने भाजपा का चाय पीना उचित नहीं समझा।
उन्होंने आगे लिखा कि मैंने पद का मोह नहीं किया। जबकि हमारे आदेश में चार साल का कार्यकाल था। दो साल अभी बाकी बचा हुआ था। नैतिकता भी कोई चीज होती है। जिस पार्टी ने पद दिया है, उसकी हार के बाद पद पर बने रहना शोभा नहीं देता है।
फिर भी गनीमत है
नई सरकार ने प्रशासनिक फेरबदल में बड़े बड़ों की ऐसी हालत कर दी है कि उनका मन ही नहीं कर रहा काम को लेकर। दुनिया जहान से जी उठ गया है । तबादले के चार दिन बाद जब बड़े साहब ने सेक्रेटरी ब्लाक को चेक कराया तो मालूम चला कभी दो नंबर रहे साहब आफिस भी नहीं आ रहे। उन्हें पहले फ्लोर पर कमरा दिया गया है। इन साहब ने ही सबसे पहले पांचवी मंजिल का दफ्तर खाली किया था। और नतीजों वाले ही दिन।
दरअसल, ये साहब कुछ जूनियर्स के साथ महानदी भवन में ही नतीजों के लिए चैनल बदल बदलकर टीवी देख रहे थे। बारह बजे तक तो स्थिति अच्छी थी। लग रहा था अपन फिर पॉवरफुल होंगे और शपथ के बाद बड़े साहब को खो कर देंगे। लेकिन दो बजे तक तो जोश काफूर हो गया। साहब लोग उठे कमरा खाली किया। बाद के दस दिन तो ठीक रहा लेकिन 88 लिस्ट में अपनी पोजीशन देखकर मायूस हो गए। गनीमत है सरकार को राजस्व मंडल का ख्याल न आया।
ब्रेड का स्वाद कैसा है?
रेलवे स्टेशन में स्टॉल पर मिलने वाला खाना गुणवत्तापूर्ण है या नहीं, यह जानने के लिए प्लेटफार्मों पर चूहे बड़ी तादाद में मंडराते रहते हैं। यह इटारसी रेलवे स्टेशन की तस्वीर है, किसी यात्री ने ट्रेन पर बैठे-बैठे जूम करके खींची है।
भला हुआ मेरी गगरी फूटी..
तीन राज्यों छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान का चुनाव परिणाम आने के बाद भाजपा से ज्यादा खुशी किसी को नहीं है और सबसे ज्यादा दुखी लोग भी यहीं दिखाई दे रहे हैं। मगर दुख चुनाव परिणाम का नहीं, उसके बाद के घटनाक्रमों का है। इशारों-इशारों में, अस्पष्ट रूप से, मौके से चूके कुछ नेताओं का दुख छत्तीसगढ़ में भी छलक ही रहा है। पर चुनाव जीतने के बाद मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री पद से बेदखल कर दिए गए शिवराज सिंह चौहान का दर्द छिपाए नहीं छुप रहा। अपने विधानसभा क्षेत्र के दौरे पर कार्यकर्ताओं के बीच उन्होंने कहा- अच्छा हुआ कि राजनीति से थोड़ा हटकर काम करने का मौका मिला है। मुझे अभी भी एक मिनट फुर्सत नहीं है। राजनीति में भी बहुत अच्छे लोग हैं, मोदी जी जैसे लोग देश के लिए जीते हैं...। मगर कई लोग ऐसे हैं जो रंग देखते हैं..। मुख्यमंत्री हैं, तो भाई साहब आपके चरण तो कमल के समान हैं... हाथ जोड़ते हैं। और बाद में नहीं रहे तो होर्डिंग से फोटो ऐसे गायब हो जाते हैं जैसे गधे के सिर से सींग। बड़ा मजेदार क्षेत्र है यह..।
राष्ट्रगान से ड्यूटी की शुरुआत
जांजगीर चांपा जिले के नए कलेक्टर आकाश छिकारा ने आदेश दिया है कि दफ्तर में कामकाज की शुरुआत राष्ट्रगान से होगी। पहले दिन सेंट्रल गवर्नमेंट के एक अधिकारी का दौरा होने के कारण यह परंपरा शुरू नहीं हो पाई। लेकिन दूसरे दिन कलेक्टर ठीक 9:50 बजे ऑफिस पहुंच गए। जब किसी भी जिले में नए कलेक्टर चार्ज लेते हैं तो वहां के अधिकारी-कर्मचारी कुछ दिन तक समय के पाबंद हो जाते हैं। जब सरकारी दफ्तरों में कामकाज के लिए 5 दिनों का सप्ताह तय किया गया, ड्यूटी का समय एक घंटे बढ़ाया भी गया था। पर देखा गया कि कई कर्मचारी 11:00 बजे से पहले आते नहीं। कम से कम छिकारा के कलेक्टर रहते यह उम्मीद की जा सकती है कि राष्ट्रगान में उपस्थित होने की मजबूरी के चलते वे समय पर अपनी कुर्सी में मौजूद नजर आएंगे। व्यवस्था और अच्छी करनी हो तो कलेक्टर को शाम 5:30 बजे भी राष्ट्रगान का एक सत्र रख देना चाहिए।
रोम रोम में राम...
पूरे देश में इन दिनों अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की खबरें छाई हुई हैं। भगवान राम के प्रति आस्था रखने वाला हर व्यक्ति इस मौके पर भागीदार बनना चाहता है। इधर अपने छत्तीसगढ़ में एक ऐसा संप्रदाय भी है जिसने राम को अपने तन पर ही बसा लिया है। जांजगीर चांपा जिले में रामनामी संप्रदाय के लोग अपने पूरे शरीर में राम नाम का टैटू लिखवाते हैं। राम के प्रति ऐसी भक्ति किसी और समूह में दिखाई नहीं देती। अयोध्या के समारोह में देश-विदेश से तमाम हजारों हस्तियां आमंत्रित की गई हैं। पता नहीं ज्यादातर गरीब और दलित इन रामनमियों को याद किया गया है या नहीं।
हार की वजहें, और लडऩे का इरादा
भाजपा संगठन ने रविवार को विधानसभा चुनाव में पराजित प्रत्याशियों की बैठक बुलाई थी। सभी 36 प्रत्याशी पहुंचे थे। बैठक को महामंत्री अरुण जामवाल, पवन साय, अध्यक्ष किरण देव और पूर्व नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल ने संबोधित किया। सभी तीन दर्जन नेताओं से एक एक कर हार के कारण पूछे और सुने गए। बिलासपुर से लगे एक प्रत्याशी की बारी आई तो उन्होंने इशारे-इशारे में सामने बैठे एक नेता और उनके गॉड फादर को कारण बता दिया।
हमने कुछ माह पहले इसी कॉलम में ही बताया था कि ये दोनों नेता इलाके में जाकर बैठकें कर गुलामी छोड़ो का मंत्र देते रहे हैं। शेष ने भी कुछ भितरघातियों के नाम गिनाए और निष्कासन की मांग छेड़ दी। सबकी बातें सुनने के साथ भाई साहबों मे लोकसभा चुनाव में सक्रिय होने की बात कही तो विधानसभा हारे इन नेताओं ने लोकसभा लडऩे की इच्छा भी जता भी दी।
सूर्य फाउंडेशन की टीम
खबर है कि सरकार के मंत्रियों के स्टाफ में सूर्या फाउंडेशन के युवाओं की तैनाती की जा रही है। ये युवा एबीवीपी, और संघ पृष्ठभूमि के रहे हैं। कहा जा रहा है कि करीब 50 युवाओं की सेवाएं ली जा रही है। सूर्या फाउंडेशन के ये युवा मंत्रियों के अलावा आगामी दिनों में बनने वाले संसदीय सचिव, और निगम मंडल के पदाधिकारियों के यहां भी रहेंगे। ये युवा मंत्रियों के कामकाज को लेकर संघ परिवार को समय-समय पर अपनी रिपोर्ट देंगे।
हालांकि रमन सरकार के आखिरी कार्यकाल में भी फाउंडेशन के युवाओं की मंत्री स्टाफ में ड्यूटी लगाई गई थी। मगर ज्यादातर मंत्रियों ने सूर्या फाउंडेशन के युवाओं को लौटा दिया था। इनके खिलाफ कई तरह की शिकायतें आई थीं। एकमात्र मंत्री अमर अग्रवाल के यहां फाउंडेशन के युवा रह गए थे, जो उनके साथ अब तक बने हुए हैं। देखना है कि फाउंडेशन के युवा कब तक आते हैं, और कामकाज कैसा रहता है।
मंत्रियों को कहाँ प्रभार, और क्यों
प्रभारी मंत्रियों की घोषणा जल्द की जा सकती है। इसमें लोकसभा चुनाव को भी ध्यान में रखा जा रहा है। जांजगीर-चांपा लोकसभा क्षेत्र की सीटों में बुरी हार के बाद स्कूल शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को जांजगीर-चांपा, और आसपास के जिलों का प्रभार दिया जा सकता है।
मंत्रियों को अपने प्रभार वाले जिलों का दौरा तेज करने के लिए कहा जा सकता है। चर्चा है कि वित्त मंत्री ओपी चौधरी को रायपुर का प्रभारी मंत्री बनाया जा सकता है। मंत्रियों के प्रभार को लेकर कई तरह की चर्चा चल रही है। देखना है आगे क्या होता है।
सरकार होने न होने का फर्क
कोयला खदानों के लिए हसदेव अरण्य में होने वाली बेदखली और जंगल कटाई के विरोध में लंबे धरना प्रदर्शन के बावजूद आवाज जब नहीं सुनी गई तो अक्टूबर 2021 में 30 गांवों के करीब 350 प्रभावित आदिवासी पैदल मार्च करते हुए राजधानी रायपुर पहुंचे। तब अधिकांश कांग्रेस नेताओं ने खामोशी अख्तियार कर ली थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का दावा था कि उन्हें इस पैदल मार्च के बारे में देर से जानकारी मिली। पद यात्रियों की बहुत देर बाद उनसे मुलाकात हो पाई। हरदेव बचाओ आंदोलन से जुड़े लोग बार-बार कहते रहे कि इस इलाके में कोयला खदानों को मंजूरी के लिए ग्राम सभाओं के फर्जी प्रस्ताव तैयार कराए गए हैं। पर कांग्रेस सरकार ने जांच नहीं बिठाई, प्रस्ताव निरस्त नहीं हुए। भाजपा की सरकार आते ही सबसे पहला काम खदान के लिए पेड़ों को काटने का किया गया। कल हरिहरपुर में हसदेव अरण्य को बचाने के लिए हजारों लोगों के एकजुट हुए थे। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज वहां धरने पर भी बैठे और अपने सरकार की गलती भी मानी। कहां कि फर्जी ग्राम सभा की शिकायत की हमें जांच करनी थी लेकिन नहीं कर पाए।
सरकार जब तक थी तब राजधानी में होने वाला प्रदर्शन भी कांग्रेस को दिखाई नहीं देता था। अब जब जनता ने उसे फिर से विपक्ष में बिठा दिया है तब उनका समर्थन हासिल करने के लिए उनके बीच पुलिस से बच बचाकर जंगल तक पहुंचने में देरी नहीं हुई।
जिला पुनर्गठन की समीक्षा?
पिछली सरकार यदि विरोधी दल की रही हो तो सत्ता में पुराने फैसलों की समीक्षा अक्सर की जाती है। मगर, कुछ ऐसे फैसले हैं जिन्हें वापस नहीं लिया जा सकता। कोरिया बैकुंठपुर जिले को विभाजित कर एमसीबी जिला बनाने का जितना स्वागत हुआ, उतना ही विरोध भी हुआ था। कांग्रेस भाजपा दोनों के नेता इसमें शामिल थे। इसे लेकर 6500 आपत्ति दर्ज कराई गई थी। विभाजन को हाई कोर्ट में भी चुनौती दी गई थी। खासकर खडग़वां ब्लॉक को कोरिया की जगह मनेंद्रगढ़ में शामिल करने का भारी विरोध था। यह ब्लॉक अब अपने नए जिला मुख्यालय से काफी दूर हो गया है। वैसे तो आपत्तियां इस बात पर भी थी कि जिला पुनर्गठन आयोग की सिफारिश पर ही विभाजन होना चाहिए, यह पेसा कानून प्रभावशील क्षेत्र होने के कारण भी जिला बंटवारे की अधिसूचना अनुचित है। पर तमाम विरोध दरकिनार कर दिए गए थे। कोरिया के लोगों को अफसोस है कि उसकी ऐतिहासिक पहचान धूमिल हो गई। अब जब सरकार बदल गई है, जानकारी मिल रही है कि नए और पुराने जिलों के बीच ब्लॉक का विभाजन नए सिरे से किया जा सकता है। यही नहीं, विधायक भैया लाल राजवाड़े ने तो एक नए संभागीय मुख्यालय की मांग भी उठाई है।
तीन सीटें चिंतनीय
नवा रायपुर के जैनम भवन में हुई भाजपा की बैठक में दिग्गजों ने लोकसभा चुनाव पर मंथन किया। चर्चा का मुख्य विषय यह था कि प्रदेश की सभी 11 सीटें कैसे हासिल की जाए। अभी पार्टी के पास 9 सीटें हैं। पार्टी के रणनीतिकार जांजगीर-चांपा, और महासमुंद व राजनांदगांव को लेकर ज्यादा चिंतित नजर आए। इन क्षेत्रों के विधानसभा सीटों पर भाजपा का प्रदर्शन खराब रहा है। जांजगीर-चांपा की तो सभी 8 विधानसभा सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों को हार का मुख देखना पड़ा है।
सुनते हैं कि मंत्री पद से वंचित दो सीनियर विधायक लोकसभा का चुनाव लडऩा चाहते हैं। बैठक खत्म होने के बाद एक ने तो प्रदेश प्रभारी ओम माथुर से करीब पौन घंटे अकेले में चर्चा की। विधायक तो अच्छी मार्जिंन से चुनाव जीतकर आए हैं, लेकिन लोकसभा प्रत्याशी बनने के लिए उन्हें उपयुक्त नहीं समझा जा रहा है। फिर भी भाजपा कई तरह का प्रयोग करती है। देखना है कि पार्टी आगे क्या फैसला लेती है।
नाम देने की जरूरत नहीं
सरकार के निगम-मंडलों में नियुक्तियां होनी है। प्रदेश प्रभारी ने इस सिलसिले में कुछ चुनिंदा लोगों से चर्चा भी की है। बताते हैं कि करीब दर्जनभर निगम-मंडलों के पदाधिकारियों की नियुक्ति माहांत तक हो जाएगी।
कहा जा रहा है कि एक-दो मंत्रियों ने अपनी तरफ से कुछ नाम भी सुझा दिए थे। मगर उन्हें टोक दिया गया कि किसी का नाम देने की जरूरत नहीं है। पहली लिस्ट में जो भी नाम होंगे, उनके लिए नाम जागृति मंडल से आएंगे। संकेत साफ है कि साय सरकार में इस बार संघ परिवार को खास महत्व दिया जाएगा।
कुर्सी बचाने में कामयाब
भूपेश सरकार द्वारा नियुक्त किए गए कुछ अफसर अपनी कुर्सी बचाने में कामयाब हो गए हैं। इन्हें पहले हटाने की चर्चा चल रही थी। जिन दो अफसरों को हटाने पर विचार किया गया था, वो खुद भी भूपेश सरकार की नाराजगी झेल चुके हैं। इन अफसरों ने अपने संपर्कों के जरिए शीर्ष स्तर तक यह बात पहुंचाई। इसके बाद उन्हें हटाने का फैसला फिलहाल टाल दिया गया है। एक अफसर तो सीएम के गृह इलाके के रहवासी हैं, और इसका उन्हें फायदा भी मिला। हालांकि कुछ कार्रवाई अभी होनी है। देखना है आगे क्या होता है।
महाधिवक्ता के लिए संघ से नाम
सरकार अब तक महाधिवक्ता की नियुक्ति नहीं कर पाई है। इस वजह से सरकार की तरफ से कुछ मामलों में हाईकोर्ट में पक्ष नहीं रखा जा सका है।
इधर, महाधिवक्ता के लिए कई नाम चर्चा में हैं। विधि विभाग खुद डिप्टी सीएम अरूण साव संभाल रहे हैं, जो कि हाईकोर्ट में उप महाधिवक्ता रह चुके हैं। चर्चा है कि डिप्टी सीएम ने भी अपनी पसंद रखी है। संघ परिवार से भी नाम आए हैं। भूपेश सरकार में कुछ समय अतिरिक्त महाधिवक्ता रहे सीनियर अधिवक्ता का नाम भी चर्चा में है। हल्ला है कि किसी एक नाम पर सहमति नहीं बनने की वजह से देरी हो रही है। फिर भी अगले कुछ दिनों में महाधिवक्ता कार्यालय के गुलजार होने की उम्मीद जताई जा रही है।
संघर्ष के दिन लौट आए
15 साल विपक्ष में रहने के बाद सन् 2018 में कांग्रेस छत्तीसगढ़ में दोबारा सत्ता हासिल कर पाई थी। मगर 5 साल बाद फिर वही संघर्ष शुरू हो गया है, जैसा भाजपा की तीसरी बार की सरकार को हटाने के दौर में किया गया। बीजापुर जिले में क्रॉस फायरिंग से 6 माह की बच्ची की मौत के मामले में कांग्रेस विधायक विक्रम मंडावी के साथ पांच नेताओं की कमेटी बनाकर जांच कराई जा रही है। हसदेव अरण्य में पेड़ों की कटाई के खिलाफ बनाई गई कांग्रेस की एक समिति सरगुजा से दौरा करके लौट चुकी है। एक दूसरी समिति और दौरे पर जा रही है। खुद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज इसका नेतृत्व करेंगे। नालंदा परिसर के निर्माण की मांग को लेकर बिलासपुर में धरना आंदोलन भी किया जा चुका है।
चुनाव परिणाम को आए अधिक दिन नहीं हुए हैं। पार्टी के लोग सदमे से अभी तक उबर नहीं पाए हैं। हार जाने वाले और टिकट से वंचित हो जाने वाले दोनों ही तरह के कार्यकर्ताओं को अपने नेताओं से बड़ी शिकायत है। पर, कुछ कहने-सुनने का समय नहीं रह गया है। सामने लोकसभा चुनाव में उसी बीजेपी से निपटना है, जिसने हाल ही में शिकस्त दी। सन 2019 में राज्य में कांग्रेस की सरकार बन जाने के बाद भी लोकसभा की सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली। इस बार विपक्ष में रहते हुए मैदान में उतरना है। अभी दोगुनी ऊर्जा की जरूरत है। पर, 2018-19 में पार्टी की एकजुटता जिन चेहरों की वजह से देखी गई थी, उनका जादू इस बार भी चलेगा?
क्रुरता की पराकाष्ठा
कांकेर के जंगल में शिकारियों ने जानवरों को मारने के लिए बम रखा। इस लकड़बग्घे ने उसे चबा लिया। पूरा सिर क्षत-विक्षत दिखाई दे रहा है। किसी तरह इस घायल और दर्द से छटपटाते लकड़बग्घे को जाल में कैद किया गया। उसे इलाज के लिए रायपुर जंगल सफारी पहुंचाया गया है। दुआ करें कि इसकी जान बच जाए।
भाजपा के कोप से बच गए
विधानसभा चुनाव के दौरान चुनाव आचार संहिता लागू थी और विपक्ष में रहकर चुनाव लड़ रही भाजपा ने कई जिलों में कलेक्टरों पर पक्षपात का आरोप लगाया। बलौदा बाजार में चुनाव प्रचार के दौरान कलेक्टर चंदन कुमार के निर्देश पर भाजपा के दो कार्यकर्ताओं को महतारी वंदन फॉर्म भरवाने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। तब के भाजपा प्रत्याशी और अब सरकार में मंत्री टंक राम वर्मा के नेतृत्व में भाजपा ने सिटी कोतवाली और तहसील दफ्तर में जमकर प्रदर्शन किया। उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस हार के डर से बौखला गई है। प्रशासन का दुरुपयोग कर रही है। अभी जब 88 अफसर की जम्बो ट्रांसफर सूची आई तो उसमें लोग ढूंढ रहे थे, कलेक्टर का नाम। 19 कलेक्टरों को हटाया गया लेकिन उनकी कुर्सी यथावत है। भाजपा को शायद लग रहा हो कि गिरफ्तारी का उनको फायदा मिला। चुनाव जीत गए तो बीती बात भुला देनी चाहिए।
पत्रकारों के बहाने
सेवा के दौरान काम और उच्च अधिकारियों को दबाव से कुंठित जो अधिकारी रिटायरमेंट का इंतजार करते हैं और रिटायरमेंट आता है तो सरकारी मकान, गाड़ी नौकर के लिए संविदा हासिल करते हैं। और जब यह सेवा भी खत्म होने लगती है तो सेवा में बने रहने फिर कोई जुगाड़ । राजधानी जिले में भी एक ऐसे ही अफसर की चर्चा है। कलेक्टर साहब के बदलने से पहले इन अपर कलेक्टर ने स्वयं को प्रेस क्लब के बरसों से टल रहे चुनाव कराने निर्वाचन अधिकारी नियुक्त करा लिया। अब यह चुनाव हाईकोर्ट के निर्देश पर हो रहे हैं तो इन्हें हटाने का प्रश्न ही नहीं । ये तभी हटेंगे जब नई कार्यकारिणी की सूची कोर्ट में प्रस्तुत होगी। पूर्व गृह मंत्री के रिश्तेदार इन साहब की सेवा मार्च तक है। और साहब को लोकसभा चुनाव के लिए वोटर लिस्ट बनाने की भी जिम्मेदारी दी गई है तो कार्यकाल और बढ़ सकता है । ([email protected])
ड्राइवरों की चिंता कम करने का उपाय
नया मोटर व्हीकल कानून गाड़ी चलाने वालों पर लागू होगा लेकिन भारी वाहनों के चालक ही इसके विरोध में सडक़ पर उतरे। इसकी एक बड़ी वजह यह है कि दुर्घटनाओं के लिए भारी वाहनों को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है। इसके बावजूद कि कई बार कार, बाइक या दूसरी छोटी गाडिय़ां ओवरस्पीड, रॉन्ग साइड या गलत जगह पर ओवरटेक करने के कारण भारी गाडिय़ों से टकराती हैं। भारी गाडिय़ों का ड्राइवर साबित ही नहीं कर पाता कि उसकी गलती नहीं है और सजा मिल जाती है। पहले मामूली जुर्माना और अधिकतम दो साल की सजा थी। बीमा कंपनियों पर हर्जाने की जिम्मेदारी थी, तो चिंता कम भी थी। नया कानून लागू हो गया तो 10 साल की सजा और सात लाख रुपए का जुर्माना ड्राइवर के सिर पर। दूसरी ओर कई पश्चिमी देशों जैसे फ्रांस, जर्मनी, सिंगापुर, डेनमार्क, इटली, नीदरलैंड वगैरह में ड्राइवर को मौका मिलता है कि वे अपने को बेकसूर बता सकें। वहां गाडिय़ों में डैश कैम लगाने की मंजूरी दी गई है, जिसे साक्ष्य माना जाता है। यह कैमरा डैशबोर्ड पर लगता है और सामने सडक़ की वीडियो को रिकॉर्ड करता है। इससे यह पता चलता है कि दुर्घटना के लिए जिम्मेदार कौन है। ड्राइवर खुद भी सतर्क रहता है, क्योंकि उसकी गलती भी कैमरे से पकड़ में आ जाती है। ऐसी गाडिय़ों को बीमा कंपनियां प्रीमियम में छूट भी देती हैं।
केंद्र सरकार ने हाल के वर्षों में सडक़ दुर्घटनाओं को कम के लिए कई कदम उठाए हैं। नए कानून का भी मकसद यही है। ऐसे में हो सकता है देर-सबेर यह उपकरण अपने यहां भी देखें ।
राम मंदिर पर सवाल को ना...
फिल्म स्टार गोविंदा कभी राजनीति में थे। सन् 2004 में कांग्रेस की टिकट पर वे उत्तर मुंबई से जीतकर सांसद भी बने। उन्होंने अटल मंत्रिमंडल के तब के पावरफुल मंत्री राम नाईक को हराया था। पर अब गोविंदा या उनके परिवार का कोई सदस्य राजनीति में नहीं है। शुक्रवार को वे अपनी पत्नी सुनीता आहूजा के साथ एक निजी कार्यक्रम में बिलासपुर आए थे। सुनीता ने रतनपुर में महामाया का दर्शन किया। कुछ न्यूज़ चैनल वाले सामने आ गए। महामाया मंदिर, छत्तीसगढ़ और बिलासपुर के बारे में उन्होंने अच्छी-अच्छी बातें कहीं। पर जैसे ही सवाल किया गया कि अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा होने वाली है, आपका क्या विचार है? सवाल पूरा भी नहीं हुआ था और उन्होंने रिपोर्टर को रोक दिया। भैया, मैं राजनीतिक सवाल का जवाब नहीं दूंगी। इतना कहते हुए अपनी गाड़ी में बैठकर निकल गई।
हैरानी नहीं होनी चाहिए। समय कुछ ऐसा ही चल रहा है। राम भगवान पर आप कुछ भी बोलें, इससे आपकी धार्मिक आस्था नहीं, राजनीतिक दृष्टिकोण का पता चल रहा है।
मुझे भी सिखाओ राइफल चलाना...
गश्त पर राइफल लेकर निकली सशस्त्र महिला पुलिस की जीप के भीतर बंदर पहुंच गया। भीतर बैठी दोनों महिला कर्मियों ने धैर्य से काम लिया। बंदर छेड़ता रहा, वे उसे दुलारते रहे, लेकिन डर भी रहे थे कि वह नाखूनों से खरोंच न दे, या मोबाइल छीन कर न भाग जाए। करीब एक मिनट तक बंदर जीप के भीतर दोनों महिला पुलिस जवानों के साथ खेलता रहा, फिर बाहर से किसी ने डांटा तो वह चुपचाप उतर कर भाग गया। सोशल मीडिया पर यह वीडियो आज वायरल हो रहा है। यह तस्वीर यूपी की बताई जा रही है।
खट्टे-मीठे तजुर्बे
नई सरकार के मंत्री अपने अपने विभाग की समीक्षा बैठक कर अफसर कर्मियों को समझने लगे हैं। पहली बार के मंत्रियों को पिकअप में कुछ समय लग सकता है। लेकिन उनमे से कुछ का पखवाड़े भर का परफॉर्मेंस काफी ठीक है। स्टाफ ही कहने लगा है कि चला लेंगे विभाग। बात पुराने अनुभवियों की करें तो, वे एक-एक अफसर की एक एक नस जानते हैं। मौका मिलते ही ब्लड प्रेशर नापने लगे हैं। परसों देर रात तक चली समीक्षा बैठक में मंत्री ने एक महिला अफसर की ऐसी नस पकड़ी की वो अब तबादले में जुट गई हैं। यह अफसर मंत्री जी के नए विभाग में संयुक्त सचिव है। वो जमीन और पढ़ाई लिखाई से जुड़े विभाग देख रही हैं। पुराने वाले यदुवंशी साहब लेकर आए थे। उनका तो तबादला पिछली सरकार में ही हो गया था, लेकिन नए साहब ने मैडम को विभाग में बनाए रखा। ये साहब भी कल विदा हो गए, लेकिन बिना अधिकृत आदेश के मैडम बनी हुई थी। पीए सूत्र बताते हैं कि भरी बैठक में मंत्री ने मैडम के अधिकृत विभाग में जमीन कारोबार को लेकर तीखा बोल दिया। उसके बाद से मैडम तबादले के लिए सक्रिय हो गई हैं।
नए-नए बॉस
कुछ अफसर पहली बार के मंत्रियों को लेकर आंकलन करने की भूल कर रहे हैं। और उसका खामियाजा भी फौरी भुगत रहे। इसके पीछे मुख्य दोष अफसरों का अंग्रेजी प्रेम। पहले स्वास्थ्य विभाग की बैठक में अफसरों इसका शिकार हो चुके हैं। और अब चिप्स के अफसर। बात दो दिन पहले की है। नई सरकार के मंत्रियों को तकनीक में नवाचार कर दिखाने को लेकर चिप्स के कुछ अफसर गुजरात मॉडल का अध्ययन कर लौटे। इसका यहां प्रेजेंटेशन दे रहे थे कि बड़े साहब फर्राटेदार अंग्रेजी में तकनीक समझा रहे थे कि सीएम डैशबोर्ड, मॉनिटरिंग पोर्टल का सॉफ्टवेयर मंत्रालय से पंचायत स्तर तक कैसे काम करेगा। युवा मंत्री सुनते रहे और अचानक उन्होंने भी अंग्रेजी में सवाल जवाब कर साहब, मातहतों को घेरा। तब सच्चाई सामने आई कि साहब गुजरात नहीं गए थे, जो गए थे उनसे फीडबैक लेकर प्रेजेंटेशन दे रहे थे। बैठक के बाद बाहर निकले लोग कहने लगे कि अब हर बैठक से पहले हर विभाग के अफसर कर्मी, पहली बैठक वालों से पता करके ही जाएं तो अच्छा रहेगा।
11 साल में 11 कलेक्टर
केंद्रीय कार्मिक एवं लोक शिकायत मंत्रालय ने सन् 2014 में एक आदेश निकाला था। इसमें कहा गया था कि केंद्र हो या राज्य सरकार, वह किसी आईएएस या आईपीएस को दो साल से पहले उनके पद से नहीं हटा सकेगी। यह नियम आईएफएफ अफसरों के संबंध में भी लागू होगा। यदि किसी शिकायत या प्रशासनिक व्यवस्था के चलते तबादले का कोई ठोस कारण बने भी तो फैसला राज्य स्तरीय सिविल सेवा बोर्ड करेगा। इस बोर्ड की अध्यक्षता मुख्य सचिव या उसी स्तर के अधिकारी करेंगे। उत्तर प्रदेश में एक आईएएस अफसर दुर्गा शक्ति को निलंबित किए जाने के बाद यह कदम उठाया गया था। मंशा यह थी कि राजनीतिक दबाव में तबादले न हों और जिस जगह पोस्टिंग दी गई है वहां अफसर को काम करने का पर्याप्त मौका मिले।
अभी हाल में एक साथ 19 कलेक्टर बदल दिए गए। कोई कलेक्टर कितने दिन किसी जिले में रह पाया, इसे जांचें तो रोचक जानकारी सामने आती है। जैसे दीपक कुमार अग्रवाल 11 बरस पुराने गरियाबंद जिले के 11वें कलेक्टर हैं। सन् 2012 में गरियाबंद जिला बना था। तब से अब तक जो दस कलेक्टर यहां रहे, उनका क्रम यह रहा- दिलीप वासनीकर, हेमंत कुमार पहारे, अमित कटारिया, निरंजन दास, श्रुति सिंह, श्याम धावड़े, छत्तर सिंह डेहरे, निलेश कुमार महादेव क्षीरसागर, नम्रता गांधी, प्रभात मलिक और आकाश छिकारा। सन् 2012 में ही मुंगेली जिला बना। अभी की तबादला सूची में राहुल देव का नाम नहीं है। मगर उसके पहले यहां नौ कलेक्टर रह चुके- त्रिलोक चंद्र महावर, डॉ. संजय अलंग, किरण कौशल, नीलम नामदेव एक्का, डोमन सिंह, डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भूरे, पदुम सिंह एल्मा, अजीत वसंत और गौरव कुमार सिंह। अन्य नये जिलों से भी इसी तरह की जानकारी निकल सकती है। इनमें कोई भी कलेक्टर एक साल, सवा साल से ज्यादा नहीं रहा।
ऐसी स्थिति में कोई कहे कि कलेक्टर बिना राजनीतिक दबाव के काम करते हैं, तो इसे मजाक में लेना चाहिए।
गृह विभाग में हड़बड़ी नहीं...
एक साथ जारी 89 अफसरों की तबादला सूची के बाद पुलिस या गृह विभाग में बड़े फेरबदल की चर्चा चल निकली है। कहा जा रहा है कि यह सूची आज कल में ही निकल जाएगी। पर सूत्र यह भी बता रहे हैं कि ऐसी कोई जल्दी नहीं है। इसके मुताबिक आईएएस अफसरों की सूची इसलिए जल्दी निकालनी पड़ी क्योंकि लोकसभा चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग की तैयारी 6 जनवरी से शुरू हो रही है। मतदाता सूची में नाम जोडऩे, घटाने के अलावा डिप्टी कलेक्टर्स को जिम्मेदारी सौंपने, प्रशिक्षण देने का काम शनिवार से शुरू हो जाएगा। इसमें जिला निर्वाचन अधिकारी के रूप में कलेक्टर की प्रमुख भूमिका होती है। इस प्रक्रिया के प्रारंभ होने के बाद भी आईएएस, खासकर कलेक्टर्स का तबादला तो हो सकता था, लेकिन निर्वाचन के काम में व्यवधान पड़ता। लोकसभा चुनाव के लिए आईपीएस अफसरों की सीधी भागीदारी अभी शुरू नहीं हुई है। इसलिये तबादले होंगे तो जरूर, लेकिन ऐसी भी जल्दी नहीं है।
इंदौर में आदिवासियों की रैली...
इंदौर के टंट्या भील चौराहे से कलेक्ट्रेट की ओर निकली एक रैली। इसमें शामिल ज्यादातर लोग आदिवासी समुदाय से थे। उन्होंने राष्ट्रपति के नाम पर ज्ञापन सौंपा और हसदेव अरण्य को बचाने की गुहार लगाई। कहा कि अंतिम सांस तक लड़ाई लड़ेंगे। हसदेव कांग्रेस सरकार के दौरान भी एक बड़ा मुद्दा था। देश-विदेश में प्रदर्शन हो रहे थे। अब जब नई सरकार बनने के बाद परसा ईस्ट-केते बासेन की नई खदान के लिए हजारों पेड़ काटे जा चुके हैं, एक बार फिर विरोध की आवाज सरगुजा और छत्तीसगढ़ से बाहर गूंजने लगी है।
लोकसभा की हसरत बाकी है
विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद कई पूर्व मंत्री लोकसभा चुनाव लडऩा चाहते हैं। सुनते हैं कि दो पूर्व मंत्रियों ने तो अपने इरादे भी जाहिर कर दिए हैं। पार्टी के एक-दो प्रमुख नेता भी हारे हुए कुछ नेताओं को लोकसभा चुनाव लडऩे के पक्ष में हैं।
प्रमुख नेता 2014 के लोकसभा चुनाव का उदाहरण भी दे रहे हैं। तब विधानसभा चुनाव में हार के बाद ताम्रध्वज साहू लोकसभा चुनाव जीत गए थे। इस बार पार्टी का क्या रुख रहता है, यह देखना है।
कांग्रेस प्रभारियों की बिदाई की बेला
प्रदेश कांग्रेस प्रभारी बदलने के बाद अब प्रभारी सचिव चंदन यादव, और सप्तगिरि उल्का व संयुक्त सचिव विजय जांगिड़ को भी बदला जा सकता है। चंदन यादव, सबसे पुराने हैं, उन्हें 6 साल से अधिक हो चुके हैं।
बताते हैं कि एआईसीसी में प्रभारी सचिवों को इधर से उधर से किया जा रहा है। ऐसे में चंदन यादव व उल्का का बदलना तय माना जा रहा है। एक चर्चा यह भी है कि डॉ. विनय जायसवाल द्वारा टिकट के लिए 7 लाख रुपए लेने के आरोप के बाद चंदन यादव असहज हैं। यद्यपि डॉ. विनय जायसवाल को पार्टी से निकाल दिया गया है, लेकिन चंदन अब आगे छत्तीसगढ़ में काम करने के इच्छुक नहीं है। देखना है कि आगे क्या कुछ बदलाव होता है।
किसकी पोस्टिंग क्यों?
सीएम विष्णुदेव साय ने बिना हड़बड़ी के पखवाड़े भर बाद प्रशासनिक सर्जरी की है। साय ने उन अफसरों को अहम जिम्मेदारी दी है, जिनकी साख अच्छी रही है। एसीएस निहारिका बारिक सिंह को महज निमोरा में ग्रामीण विकास संस्थान का डीजी बनाया गया था, लेकिन अब उन्हें पंचायत और ग्रामीण विकास के साथ-साथ आईटी का भी प्रभार सौंपा गया है। इसी तरह पिछले पांच साल लूप लाइन में रहीं आर संगीता को आबकारी के साथ-साथ आवास पर्यावरण विभाग का सेक्रेटरी बनाया गया है।
संगीता दुर्ग, और महासमुंद कलेक्टर रह चुकी हैं। वो विभागीय मंत्री ओपी चौधरी की बैचमेट रही हैं। खास बात यह है कि संगीता पहली महिला अफसर हैं, जिन्हें आबकारी महकमा सौंपा गया है। पिछले पांच सालों में ईडी और अन्य तरह की जांच के चलते आबकारी विभाग चर्चा में रहा है। यही नहीं, अंकित आनंद को वित्त और योजना का प्रभार यथावत रखा गया है।
साय ने डेढ़ दर्जन कलेक्टर भी बदले हैं। कुछ कलेक्टरों के खिलाफ विधानसभा चुनाव के दौरान शिकायत भी हुई थी। गौरव सिंह को रायपुर कलेक्टर बनाया गया है। गौरव सिंह सूरजपुर कलेक्टर रहे हैं। रायपुर जिला पंचायत के सीईओ भी रहे हैं।
इसी तरह रिचा प्रकाश चौधरी को दुर्ग, डी. राहुल वेंकट को एमसीबी का कलेक्टर बनाया गया है। डी. राहुल वेंकट की भी साख बहुत अच्छी है। वो बिलाईगढ़-सारंगढ़ कलेक्टर रहे हैं। स्थानीय चर्चित कांग्रेस विधायक के दबाव की वजह से वेंकट को हटा दिया गया था। इसी तरह नए कलेक्टर रोहित व्यास, मयंक चतुर्वेदी भी बिना किसी के दबाव में आकर काम करने के लिए पहचाने जाते हैं। इसी तरह कुणाल दुदावत, और चंद्रकांत वर्मा को भी पहली बार कलेक्टरी का मौका मिला है।
आईपीएस की जगह आईपीएस
आईपीएस मयंक श्रीवास्तव को जनसंपर्क कमिश्नर बनाया गया है। मयंक, एडीजी दीपांशु काबरा की जगह लेंगे। मयंक श्रीवास्तव डीआईजी स्तर के अफसर हैं, और जल्द ही आईजी के पद पर प्रमोट होने वाले हैं। मध्यप्रदेश, और महाराष्ट्र में आईपीएस अफसरों की पोस्टिंग होते रही है। छत्तीसगढ़ में भूपेश सरकार ने सबसे पहले दीपांशु के रूप में आईपीएस अफसरों के पोस्टिंग शुरू की थी, और अब साय ने भी एक आईपीएस मयंक श्रीवास्तव पर भरोसा किया है। मयंक भी मिलनसार अफसर माने जाते हैं।
सीबीआई को रोका किसने था?
कल कैबिनेट के फैसलों की प्रेस ब्रीफिंग करते हुए पांच वर्ष पूर्व सीबीआई पर रोक को लेकर डिप्टी सीएम अरुण साव ने नया खुलासा किया । उन्होंने कहा कि रोक संबंधी आदेश प्रशासनिक था, कल हुआ फैसला कैबिनेट का है।
इसके बाद मंत्रिमंडल और कार्यपालिका के अधिकार, कर्तव्य के जानकार यह खोज रहे हैं कि आखिर ये प्रशासनिक रोक किस अफसर ने किस इंटरेस्ट से लगाई होगी। खोजकर्ता पांच वर्ष पूर्व के मंत्रालय, पीएचक्यू के आला अफसरों के एक,एक कर नाम ले रहे हैं। यह भी तलाश रहे हैं कि इनमें किस पर बड़े गंभीर आरोप रहे हैं। और यही कह रहे हैं कि कहीं इस वजह से तो रोक नहीं लगाई गई।
बात तत्कालीन कैबिनेट के कर्तव्य की करें तो खोजकर्ता कह रहे हैं कि 15 वर्ष बाद नई सरकार आई थी। अफसरों के द्वारा भेजी प्रेसी को यह ठीक रहेगा, समझ कर तो सरकार ने हस्ताक्षर कर दिया होगा। फिर, उसी दौरान बंगाल की दीदी ने भी रोक लगाई थी। एक मजबूत दृष्टांत भी था
दो युवा आईएएस अफसरों की बात...
ट्रक ड्राइवरों की हड़ताल के दौरान बैठक में शाजापुर मध्यप्रदेश के कलेक्टर किशोर सान्याल ने एक ड्राइवर से तुनक कर पूछा- औकात क्या है तुम्हारी..। उनको ड्राइवर की औकात का पता चल गया। 24 घंटे के भीतर इस ऑफिसर को हटा दिया गया और उनको मंत्रालय में उप सचिव बना दिया गया। ऐसी ही एक घटना छत्तीसगढ़ में हुई थी। मई 2021 में सूरजपुर, छत्तीसगढ़ में लॉकडाउन के दौरान अपनी दादी के लिए दवा लेने छात्र को बीच चौराहे पर कलेक्टर रणबीर शर्मा ने चांटा जड़ा और उसका मोबाइल फोन पटककर तोड़ दिया। कुछ घंटे के भीतर उनकी भी कलेक्टरी छिन गई थी। आज उस घटना के ढाई साल बाद रणबीर शर्मा को फिर कलेक्टर बना दिया गया है। वे बेमेतरा जिले की जिम्मेदारी संभालेंगे। अपने व्यवहार के लिए उन्होंने उसी वक्त माफी मांग ली थी, इसलिये उम्मीद कर सकते हैं कि वे अब आगे जनता के बीच अपने बर्ताव को लेकर सतर्क रहेंगे। आईएएस सान्याल भी युवा हैं। उन्होंने कुछ सफाई दी है, पर माफी नहीं मांगी है। हो सकता है आगे उनको अपनी भूल का एहसास हो। पर कुर्सी तो चली गई। शर्मा को ढाई साल लगे, इनको देखें, कब मिलेगा मौका..।
पारदर्शी परीक्षा के लिए आगे क्या?
छत्तीसगढ़ में अब तक लोक सेवा आयोग की जितनी परीक्षाएं हुईं, सबमें गड़बड़ी मिली। 2003 की स्कैलिंग में हेराफेरी के चलते कई अपात्र लोग शीर्ष पदों पर पहुंच गए। हाईकोर्ट में पीएससी ने भी मान लिया था कि गड़बड़ी हुई। फैसला उसके खिलाफ गया। हाईकोर्ट ने चयन सूची रद्द की और नए सिरे से स्कैलिंग का निर्देश दिया। वर्षों से पावरफुल पदों पर बैठे इन अफसरों की कुर्सी हिल गई। वे पदच्युत होने वाले थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल गई। इस आधार पर नहीं कि हाईकोर्ट का फैसला गलत था, या उनका चयन निष्पक्ष था। कुछ पुराने फैसलों के आधार पर स्थगन दिया गया कि वे वर्षों से नौकरी कर रहे हैं और चयन में उनकी नहीं बल्कि पीएससी की गलती है। अभी भी यह मामला लंबित है, सुनवाई पूरी नहीं हुई है। कह नहीं सकते कि फैसला इन अफसरों के पक्ष में आएगा या नहीं पर आज वर्षों बाद उनमें से कई लोगों को आईएएस अवार्ड हो चुका है और वे सरकार में बड़े पदों पर बैठे हैं।
इस बार मामला उठने के कुछ दिन बाद ही भाजपा नेता ननकीराम कंवर हाईकोर्ट पहुंच गए। इससे हुआ यह कि कई चयनित लोगों की ज्वाइनिंग रुक गई। न तो कोचिंग संस्थानों ने इन टापर्स की तस्वीरों के साथ इश्तेहार छपवाए न ही इन टॉपर्स ने मीडिया को अपनी संघर्षपूर्ण तैयारी के बारे में बताया ।
2003 और 2021 की परीक्षाओ में ही नहीं, बीच की परीक्षाओं में भी आयोग के अध्यक्ष, कार्यकारी अध्यक्ष और सदस्यों के परिवार के सदस्यों और नजदीकियों की नियुक्ति पर सवाल उठते ही रहे। मामले हाईकोर्ट में गये, एसीबी ने कार्रवाई की, पर गड़बड़ी जारी रही।
पहली बार किसी केंद्रीय एजेंसी के हाथ में पीएससी घोटाले की जांच हो रही है। यह खबर आते ही उन लाखों युवाओं को उम्मीद बंधी होगी, जिन्हें लगता है कि हमने तैयारी की लेकिन पदों पर कब्जा अफसर, नेताओं के बच्चों ने कर लिया। सीबीआई जांच का आदेश देकर सरकार एक कदम आगे तो बढ़ी है लेकिन आगे की परीक्षाएं फरवरी से शुरू हो रही हैं। एक और चुनावी वायदा यह था कि पीएससी परीक्षा का पैटर्न बदला जाएगा। प्रावधान कड़े होंगे, संघ लोक सेवा आयोग की तरह..। उस पर कोई निर्णय अभी सरकार ने नहीं लिया है।
मामा लाएंगे क्रांति?
भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व मानकर चल रहा है कि तीन राज्यों छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान में पार्टी की वापसी मोदी की गारंटी के कारण हुई। इस बात को पार्टी के बड़े-बड़े स्थानीय नेताओं ने मान भी लिया है। किसी को केंद्रीय मंत्री रहते चुनाव लड़ाया, कोई चौथी-पांचवीं बार जीतकर आया, मगर सिर्फ विधायक रह गए हैं-फिर भी खुश। नए लोगों को सीएम बना दिया गया, नये विधायकों को भारी-भरकम मंत्रालय दे दिये गए, फिर भी खामोशी से स्वीकार कर लिया। राजस्थान में तो पहली बार के विधायक सीएम बन गए। छत्तीसगढ़ में तो चलिये एक वरिष्ठ नेता को कमान सौंपी गई, पर मध्यप्रदेश में तीसरी बार के विधायक, जो शिवराज मंत्रिमंडल में मंत्री थे- उनके हाथ में सत्ता सौंपी गई है। सब देख रहे हैं कि केंद्रीय नेतृत्व का यह फैसला चौहान को साल रहा है। उन्होंने कल बयान दिया- कभी-कभी राजतिलक होते-होते वनवास मिल जाता है...। उन्होंने अपने सरकारी आवास पर एक नया बोर्ड लटकाया है, जिस पर लिखा है- मामा का घर। मीडिया के पूछने पर उन्होंने बताया कि मैं प्रदेश के बच्चों का मामा हूं, महिलाओं का भाई हूं। मेरा घर उनको ढूंढना न पड़े, इसलिये...। पर देखना यह है कि भांजे-भांजियों और बहनों से उनका यह अटूट लगाव लोकसभा चुनाव तक किस तरफ जाएगा। वे बाकी दो राज्यों के उपेक्षित नेताओं को कोई रास्ता तो नहीं बता रहे?
गजब का बंगला आबंटन
सरकार, और विपक्ष के ताकतवर लोगों को मनपसंद बंगला नहीं मिल पाया। मसलन, पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह को स्पीकर बंगला आबंटित किया गया था जबकि वो सीएम हाउस चाहते थे। इसकी प्रमुख वजह थी कि सीएम विष्णुदेव साय नवा रायपुर स्थित सीएम हाऊस जाना चाहते हैं। ऐसे में सिविल लाइन स्थित सीएम हाउस, स्पीकर होने के नाते पूर्व सीएम को आवंटित किया जा सकता था। मगर ऐसा नहीं हुआ।
अंदर की खबर यह है कि पार्टी हाईकमान ने पूर्व निर्धारित व्यवस्था को बदलाव नहीं करने की नसीहत दी है। इसके चलते दिग्गजों को पसंदीदा बंगला नहीं मिल पाया। पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने अपने लिए राजस्व मंत्री का सरकारी बंगला पसंद किया था। उन्हें गांधी उद्यान के पीछे ई-टाइप बंगला आबंटित किया गया। खास बात यह है कि यह ई-टाइप बंगला भूपेश सरकार ने पहले रमन सिंह को आबंटित किया था। इस बंगले में डीजी (जेल) संत कुमार पासवान रहते थे। मगर रमन सिंह यहां शिफ्ट नहीं हुए, और वो मौलश्री विहार स्थित निजी आवास में चले गए।
और अब जब रमन सिंह को स्पीकर बंगला आबंटित किया गया है, तो नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत को बंगला छोडऩा पड़ेगा। जबकि वो मान कर चल रहे थे कि स्पीकर बंगला उन्हें खाली नहीं करना पड़ेगा। महंत को सिविल लाइन में ई-टाइप बंगला आबंटित किया गया है। जो कि अपेक्षाकृत छोटा है। इधर, कृषि मंत्री के सरकारी बंगले पर लखनलाल देवांगन की पहले ही नेमप्लेट लग गई थी। उन्हें यह बंगला मिल भी गया था।
मोहम्मद अकबर के शंकर नगर स्थित सरकारी बंगले को टंकराम वर्मा को आवंटित किया गया है। टीएस सिंहदेव के सरकारी बंगले को अरुण साव, और विजय शर्मा को ताम्रध्वज साहू का बंगला आवंटित किया गया है। सिंहदेव से पहले बंगले में पीडब्ल्यूडी मंत्री रहते राजेश मूणत को आवंटित किया गया था। खास बात यह है कि सीएम को बंगला आबंटित नहीं किया गया है। माना जा रहा है कि वो सीएम हाउस में ही रहेंगे। इसके अलावा उनके पास नया रायपुर का भी बंगला रहेगा। कुल मिलाकर बंगला आबंटन ने दिग्गजों को चौंका दिया है।
चुनावी साल में रेलवे से आस
छत्तीसगढ़ की लंबित रेल परियोजनाओं पर काम काफी धीमी गति से चल रहे हैं। इनमें एक लाइन खरसिया से शुरू होकर नया रायपुर की प्रस्तावित है। सन 2017 में इसकी मंजूरी मिल चुकी थी। अंबिकापुर से रेणुकूट तक रेल लाइन के लिए भी काम आगे बढऩे की संभावना लोग देख रहे हैं। लंबे समय से इसकी मांग हो रही है। पहली बार यह मांग 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने उठाई गई थी। पिछले साल एक लंबी पदयात्रा भी निकाली जा चुकी है। हाल ही में रेलवे ने इसका डीपीआर तैयार करने का निर्देश दिया है। एक रेल लाइन कटघोरा से मुंगेली होते हुए डोंगरगढ़ तक बिछाना है, उसका डीपीआर बन चुका है। यह करीब 6000 करोड़ की परियोजना है। सन् 2016 में 3 साल के भीतर इस काम को पूरा होने का दावा किया गया था लेकिन अब तक 277 किलोमीटर प्रस्तावित रेल लाइन पर एक ईंट नहीं रखी जा सकी है।
एक और रेल लाइन रायपुर, आरंग, पिथौरा, बसना, सरायपाली, बरगढ़ होते हुए संबलपुर के लिए प्रस्तावित है। रेल मंत्रालय के निर्देश पर पूर्वी तट रेलवे की टीम ने इसके लिए सर्वे का काम हाल ही में शुरू किया है। लंबे समय से लंबित रावघाट रेल परियोजना के अधूरे कामों को पूरा करने के लिए 2023-24 के आम बजट में 500 करोड़ रुपए की मंजूरी दी गई थी। पूरा होने पर जगदलपुर राजधानी रायपुर से सीधे जुड़ जाएगा। हालांकि अब तक यह काम भी शुरू नहीं हुआ है।
लोकसभा चुनाव के पहले नया आम बजट आ जाएगा। खरसिया और रेणुकूट से संबंधित रेल लाइनों का प्रस्ताव मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और मंत्री ओपी चौधरी की रुचि मुद्दा हो सकता है। वहीं कवर्धा मुंगेली रेल लाइन बनने का प्रस्ताव दोनों उप मुख्यमंत्री अरुण साव और विजय शर्मा के क्षेत्र से संबंधित हैं। इन सभी इलाकों के सांसद अब विधायक रह गए हैं। मगर, राज्य में ‘डबल इंजन’ की सरकार है और सामने चुनाव है। उम्मीद की जा सकती है कि जिस तरह पिछले बजट में बस्तर को 800 करोड़ की रेल परियोजनाएं मिली, अब छत्तीसगढ़ के दूसरे हिस्सों से लगातार उठ रही मांगों पर बजट में ध्यान रखा जाएगा।
इन दिनों बस्तर में दियारी पर्व..
जिस तरह बस्तर दशहरा का संबंध देश के दूसरे हिस्सों में मनाए जाने वाले दशहरा से नहीं है, उसी तरह यहां मनाये जाने वाले दियारी त्यौहार का भी दीपावली से मेल नहीं है। देश के बाकी हिस्सों में दीपावली मनाई जा चुकी है। मगर इन दिनों बस्तर में दियारी त्यौहार मनाया जा रहा है। धान की नई फसल आने पर ग्रामीण अपने कुल देव-देवियों की पूजा कर रहे हैं। पालतू पशुओं को पकवान और खिचड़ी खिला रहे हैं। बस्तर दशहरा इस बार 107 दिनों तक मनाया गया। आमतौर पर यह 75 दिनों का त्यौहार तो होता ही है। इसी तरह से दियारी त्योहार वैसे तो 3 दिन का ही होता है लेकिन डेढ़ माह तक चलता रहता है। जिस तरह दीपावली की लक्ष्मी पूजा धन संपत्ति अर्जित करने के लिए होती है इस तरह बस्तर में दियारी पर्व फसल और पशुओं की रक्षा तथा उसमें वृद्धि से जुड़ा उत्सव है।
अयोध्या स्पेशल की तैयारी शुरू
भाजपा ने पूरे देश के लोगों को रामलला का दर्शन कराने की तैयारी कर ली है। दर्शन का यह सिलसिला 22 जनवरी के बाद शुरू होगा, जिसके अप्रैल के पहले सप्ताह तक चलने का अनुमान है। छत्तीसगढ़ के रायपुर, अंबिकापुर और बिलासपुर से स्पेशल ट्रेन चलाने की रेलवे ने भी तैयारी शुरू कर दी है। यदि राज्य सरकारें मुफ्त यात्रा का कोई पैकेज बनाती है, तो रेलवे पूरी ट्रेन का एकमुश्त किराया जमा कराएगा। जो यात्री अपने खर्च पर जाना चाहेंगे, उनको स्पेशल ट्रेन का किराया देना पड़ेगा, जो सामान्य ट्रेनों के मुकाबले 30 प्रतिशत अधिक होगा।
22 जनवरी के बाद की तारीख में अभी अयोध्या और आसपास के हवाई अड्डों के लिए फ्लाइट का किराया सामान्य चल रहा है। लेकिन प्राण-प्रतिष्ठा की तैयारी नजदीक आ रही है, बहुत जल्दी हवाई यात्राओं में प्रीमियम किराया शुरू हो जाने की संभावना है। रेलवे का कहना है कि उसने प्रीमियम किराए के संबंध में कोई निर्णय नहीं लिया है। आवश्यकता अनुसार स्पेशल ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। भाजपा के सूत्र बताते हैं कि 22 जनवरी के बाद प्रतिदिन अयोध्या धाम में 50 हजार लोगों को उनकी पार्टी के सौजन्य से दर्शन कराए जाएंगे। देश के अलग-अलग स्थान से अलग-अलग तारीखों में इस तरह से ट्रेन पहुंचेगी कि वहां एक साथ भीड़ इक_ी न हो।
यह सिलसिला लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लागू होने के पहले तक जारी रहेगा। मतलब यात्रा धार्मिक होगी, लक्ष्य राजनीतिक।
निशाने पर अफसर
प्रदेश के आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अफसरों के थोक में तबादले के संकेत हैं। चर्चा है कि तबादले से पहले चुनाव आयोग से उन अफसरों की सूची मंगाई गई है, जिनके खिलाफ चुनाव के दौरान शिकायतें हुई थी। पार्टी संगठन ने इन अफसरों को हटाने के लिए दबाव बनाया है।
कहा जा रहा है कि तीनों कैडर के कुल मिलाकर 30 अफसर हैं जिनके खिलाफ गंभीर शिकायतें हुई थी। ये अफसर भूपेश सरकार के करीबी माने जाते हैं, और उन पर चुनाव के दौरान पक्षपात बरतने का आरोप है। बताते हैं कि तबादले से पहले इन अफसरों के खिलाफ शिकायतों का परीक्षण किया जाएगा। माना जा रहा है कि कुछ अफसरों को लूप लाइन में भेजा जा सकता है।
हालांकि जिन अफसरों के खिलाफ शिकायत हुई है, उनमें से ज्यादातर अफसर सीएम-सरकार के मंत्रियों से मिल चुके हैं। कुछ ने तो संगठन के प्रमुख पदाधिकारियों से संपर्क कर अपनी तरफ से सफाई भी देने की कोशिश की है। अब इसका कितना असर होता है, यह तो सूची जारी होने के बाद ही पता चलेगा।
खिलाड़ी खुश
सरकार बदलने से खिलाड़ी काफी खुश हैं। इसकी एक वजह यह है कि पिछले पांच साल से उत्कृष्ट खिलाड़ी सम्मान बंद हो गया था। उत्कृष्ट खिलाडिय़ों का चयन ही नहीं हुआ था, तो नौकरी मिलने का सवाल ही पैदा नहीं होता। जबकि इसके लिए अलग से कोटा निर्धारित है। रमन सरकार में बड़ी संख्या में उत्कृष्ट खिलाडिय़ों को सरकारी नौकरी पर रखा गया था।
खेल संघ के प्रतिनिधि खेल मंत्री टंकराम वर्मा से मिलने वाले हैं। और उनसे आग्रह करेंगे कि उत्कृष्ट खिलाड़ी सम्मान फिर से शुरू किया जाए। हालांकि भाजपा के संकल्प पत्र में भी इसका जिक्र है। खिलाडिय़ों को नई सरकार से काफी उम्मीदें हैं। देखना है कि आगे क्या कुछ होता है।
बस्तर में फोर्स की नई खेप...
विधानसभा चुनाव के पहले बस्तर संभाग के पुलिस अफसरों ने बताया था कि पिछले पांच सालों में केंद्रीय व राज्य सुरक्षा बलों के 65 से अधिक कैंप उन अंदरूनी इलाकों में स्थापित किए गए, जो नक्सलियों के धुर गढ़ रहे हैं। 120 ऐसे गांव थे, जहां पहली बार मतदान केंद्र खुल सके। मगर, चुनाव के पहले 6-7 माह के भीतर कम से कम 4 भाजपा कार्यकर्ताओं की नक्सलियों ने हत्या कर दी। भाजपा ने तब इसे ‘टारगेट किलिंग’ बताया। वैसे इस बार विधानसभा चुनाव में बड़ी हिंसक वारदात कम हुई। लौटते हुए मतदान दलों पर भी हमले की घटनाएं थमी रहीं। मतदान का प्रतिशत ठीक ठाक रहा।
अब ताजा खबर यह है कि केंद्र सरकार बीएसएफ की तीन और बटालियन भेज रही है, जो नारायणपुर जिले के अबूझमाड़ के अंदरूनी गांवों में 6 बेस कैंप बनाकर तैनात रहेगी। इसी इलाके में आईटीबीपी की एक बटालियन भी भेजी जा रही है। यह उन 8 बटालियनों में से एक होगा, जो इस समय राजनांदगांव और दूसरे आसपास के जिलों में तैनात हैं। एक बटालियन में करीब एक हजार जवान होते हैं। इनके लिए भी कैंप बनेंगे। राज्य में नई सरकार बनने के बाद नक्सलियों से मुकाबले को लेकर यह पहला बड़ा फैसला है।
केंद्रीय व राज्य बलों के नये शिविरों का बस्तर के ग्रामीण विरोध करते रहे हैं। कई जगह अब भी इस मुद्दे पर अनिश्चितकालीन आंदोलन चल रहे हैं। इनमें सबसे चर्चित मामला 17 मई 2021 का है। बीजापुर और सुकमा की सीमा पर स्थित सिलगेर के ग्रामीण सीआरपीएफ के नए कैंप के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। उन पर फायरिंग की गई थी, जिसमें तीन की मौत हो गई थी। पुलिस ने इन्हें नक्सली बताया, जबकि बस्तर के आदिवासियों के अधिकारों के लिए लडऩे वाले कार्यकर्ताओं ने अपनी फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में इनको निर्दोष ग्रामीण बताया। सिलगेर में कैंप खोलना फोर्स को इसलिये जरूरी लगा कि इसके एक माह पहले ही सुरक्षा बलों पर बड़ा नक्सली हमला हुआ था, जिसमें 22 जवानों की मौत हो गई थी।
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने लक्ष्य रखा है कि लोकसभा चुनाव से पहले बस्तर से नक्सलवाद का खात्मा कर दिया जाएगा। सुरक्षाबलों की तैनाती बढ़ाकर हिंसा रोकने में मदद तो मिल सकती है, पर लोगों ने देखा है कि इससे जवानों और आम लोगों पर भी हमले बढ़े हैं। कई बार लगता है कि नक्सल हिंसा खत्म होने जा रही है, पर स्थायी समाधान निकलता नहीं। दिसंबर में नक्सलियों ने पीएलजीए सप्ताह मनाया। इस दौरान उन्होंने नये युवक-युवतियों की भर्ती का फरमान जारी किया है। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल नक्सलियों से शांति वार्ता के पक्ष में भी रहे हैं, शर्तों के साथ। नई सरकार का नजरिया इस बारे में अभी सामने नहीं आया है।
दुर्घटनाओं को कम करने का उपाय
मवेशियों का सडक़ों पर विचरण केवल छत्तीसगढ़ की नहीं, दूसरे राज्यों की भी समस्या है। यूपी में तो सबसे ज्यादा बड़ी है, जो वहां पिछली बार विधानसभा चुनाव में एक मुद्दा भी बना। छत्तीसगढ़ में हाईकोर्ट कई बार अफसरों को फटकार लगा चुकी है। मुख्य सचिव की निगरानी में प्रत्येक जिले और नगरीय निकायों में समितियां भी बनाई गई है।
यह तस्वीर उत्तरप्रदेश के बांदा जिले की है। पुलिस सावधानी से गाड़ी चलाने की अपील कर रही है। यह बोर्ड मवेशियों और यात्रियों दोनों को हादसे से बचाने में मदद कर सकता है। अपने यहां इस तरह की कोई चेतावनी वाले बोर्ड दिखते नहीं। कुछ स्मार्ट रोड ऐसे जरूर हैं, जिनमें ‘केटल फ्री रोड’ लिखा है। पर, उनमें भी मवेशी दिखाई दे ही जाते हैं।
सडक़ पर केक काटा एसपी ने
सडक़ पर जन्मदिन मनाने, केक काटने वालों को पुलिस आये दिन पकड़ती है। पर, उनको जो सिर्फ केक नहीं काटते, गाडिय़ां बीच सडक़ में रोककर तेज म्यूजिक के साथ नशे में डांस करते हैं। केक काटने के लिए तलवार का इस्तेमाल करते हैं। नये साल के गश्त पर निकले कोरबा के पुलिस अधीक्षक जितेंद्र शुक्ला ने भी रात 12 बजे सडक़ पर केक काटा, पर सादगी से। गाड़ी की बोनट पर केक रखा, काटा- स्टाफ ने एक दूसरे को बधाई दी और केक खिलाया। लग गए फिर ड्यूटी पर।
कुछ ज्यादा लिख दिया तो गलत क्या?
वह अलग दौर था जब किसी अखबार में किसी सरकारी महकमे या अफसर की कार्यप्रणाली पर कुछ छपने पर ऊपर से नीचे तक हडक़ंप मच जाता था और जांच शुरू हो जाती थी। धीरे-धीरे अखबारों की संख्या बढ़ी और मीडिया के अलग-अलग अवतार सामने आ गए। साथ ही अफसरों ने प्रशासन की खामियों पर छपने वाली खबरों को नजरअंदाज करना शुरू कर दिया। इसके बावजूद कि अखबार में छपी खबरें प्राय: दूसरे मीडिया प्लेटफॉर्म से अधिक विश्वसनीय होते हैं।
इस बात को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा ने अफसरों को बखूबी समझा दिया है। अपने 11 माह के कार्यकाल में उन्होंने अनेक खबरों को संज्ञान में लिया है। कुछ मामलों में सीधे-सीधे नोटिस जारी कर जवाब मांगा, कुछ पर जनहित याचिका दर्ज कर सुनवाई शुरू कर दी है। ऐसा ही एक मामला सिम्स हॉस्पिटल की बदहाली का है। मंत्रालय के अफसर के अलावा बिलासपुर कलेक्टर की इस मामले में कई बार पेशी हो चुकी है। बीते दिनों उनकी ओर से यह तर्क दिया गया कि अखबारों में छपी कई बातें सही नहीं है। चीफ जस्टिस ने कहा कि मीडिया से हम अपेक्षा तो करते हैं कि वह स्वस्थ पत्रकारिता करें और किसी व्यक्ति को जानबूझकर अपमानित न करें लेकिन सभी को ध्यान रखना होगा कि हम जनता की सेवा के लिए हैं। उस राज्य में, जिसका उद्देश्य लोक कल्याण है। अगर खबरों में 10 प्रतिशत भी सत्यता है तो वह गलत कैसे हैं? कई बार होता है कि कोई बात बढ़ा-चढ़ाकर कह दी गई हो, पर पूरी खबर गलत कैसे हो सकती है? व्यवस्था ठीक रखना तो उनका काम नहीं है, वरना उनसे पूछा जाता। जो वे लिखते हैं उनमें कहीं ना कहीं सत्यता तो है ही। अस्पताल के निरीक्षण में आपने यह सब देखा ही है।
जिन अधिकारियों में मीडिया और खासकर अखबार को गंभीरता से लेने की आदत छूट चुकी है, उनको चीफ जस्टिस की टिप्पणी के बाद सतर्क हो जाना चाहिए।
बाकी सबसे तो ईवीएम ठीक है
चर्चा है कि कांग्रेस छत्तीसगढ़ में बुरी हार के बाद पूर्व सीएम भूपेश बघेल को राज्य की राजनीति से अलग कर यूपी का प्रभार देने की तैयारी कर ली थी। मगर पूर्व सीएम ने इंकार कर दिया। उन्होंने हाईकमान से कह दिया कि वो फिलहाल 5 साल तक छत्तीसगढ़ में ही बने रहना चाहते हैं।
हल्ला तो यह भी है कि दिल्ली में हार की समीक्षा बैठक में यह कहा गया कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस जीतते-जीतते हार गई क्योंकि सरकार की छवि एक ‘करप्ट’ सरकार की बन गई थी। इस पर भूपेश बिफर गए थे और कहा बताते हैं कि अगर मेरी छवि भ्रष्ट थी तो पिछले चुनाव में 68 सीट कैसे जीत गए थे? कुल मिलाकर हार पर कांग्रेस के अंदरखाने में रार जारी है। खास बात यह है कि प्रदेश का कोई भी नेता हार की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार नहीं है। ईवीएम पर दोष मढक़र चुप्पी साध लिए हैं।
महंत के इलाके में जीत ही जीत
नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत विधानसभा चुनाव में पार्टी की हार के बाद भी हैसियत में कमी नहीं आई है। डॉ. महंत न सिर्फ खुद जीते बल्कि जांजगीर-चांपा लोकसभा क्षेत्र की सारी सीटें कांग्रेस जीत गई। उत्तर और मध्य भारत में जांजगीर-चांपा के अलावा छिंदवाड़ा ही ऐसी संसदीय सीट है जहां के विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस को शत प्रतिशत सफलता मिली है।
छिंदवाड़ा मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ का गढ़ है। छिंदवाड़ा लोकसभा में 7 विधानसभा सीटें आती हैं। खुद कमलनाथ छिंदवाड़ा शहर की सीट से चुनाव जीते हैं। ये अलग बात है कि विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस बुरी तरह हार गई। इससे परे जांजगीर-चांपा लोकसभा में 8 सीटें आती हैं। और यह महंत के प्रभाव वाला इलाका है।
जांजगीर-चांपा लोकसभा सीट अनारक्षित थी तब वो दो बार यहां से सांसद रहे। इस बार विधानसभा चुनाव में सभी 8 सीटों पर कांग्रेस फतह हासिल हुई है। महंत को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया है, इसके पीछे बड़ी वजह उनके अपने इलाके में कांग्रेस का बेहतर प्रदर्शन होना भी रहा है।
अब कोर ग्रुप का इंतजार
प्रदेश भाजपा के कोर ग्रुप का पुनर्गठन होना है। पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के विधानसभा अध्यक्ष बनने के बाद कोर ग्रुप से उनका हटना तय है। इसके अलावा कई और नेताओं की छुट्टी हो सकती है।
किरण देव प्रदेश अध्यक्ष बन गए हैं। स्वाभाविक रूप से वो कोर ग्रुप का अहम हिस्सा होंगे। इसके अलावा अरुण साव, विजय शर्मा, और ओपी चौधरी भी कोर ग्रुप में रह सकते हैं। यही नहीं, बृजमोहन अग्रवाल, रामविचार नेताम, सरोज पाण्डेय, लता उसेंडी, व धरमलाल कौशिक भी कोर कमेटी में यथावत सदस्य रह सकते हैं। चर्चा है कि भाजपा की सबसे ताकतवर कोर कमेटी में जगह पाने के लिए कई नेताओं ने प्रयास तेज कर दिए हैं। देखना है कि सूची में किनको जगह मिलती है।
रियायती सिलेंडर के लिए कतार
हाल में जीते दूसरे राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ में भी उज्ज्वला और बीपीएल कनेक्शन धारकों को लगभग 500 रुपए में गैस सिलेंडर देने की घोषणा भाजपा सरकार ने की है। अचानक यह अफवाह फैल गई कि इसका लाभ लेने के लिए 31 दिसंबर से पहले केवाईसी अपडेट करना होगा। इसका असर यह हुआ कि प्रदेश भर की गैस एजेंसियों में रोजी मजदूरी करने वाले गरीब उपभोक्ताओं की कतार लगने लगी। अपडेट करने के नाम पर एजेंसी संचालकों ने ग्राहकों को जबरन गैस का पाइप थमाया और पैसे वसूले। फूड विभाग मौन बना रहा। अब जब 31 दिसंबर की तारीख निकल चुकी है तब यह सूचना दी जा रही है कि 31 मार्च 2024 तक केवाईसी अपडेट किया जा सकेगा। अभी भी फूड विभाग की ओर से कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया जा रहा है। दरअसल केवाईसी अपडेट सभी तरह के उपभोक्ताओं के लिए एक नियमित प्रक्रिया है। इंडेन और भारत गैस जैसी कुछ कंपनियों ने ऐप भी लॉन्च कर दिया है, जिसके जरिये उपभोक्ता खुद ही अपनी केवाईसी अपडेट कर सकता है। यह जरूर है कि इसमें फेस रिकॉग्नाइजेशन के लिए एक और ऐप इंस्टॉल करना होगा। यदि यह प्रक्रिया मुश्किल लगे तब भी गैस एजेंसी में जाकर केवाईसी अपडेट करने हड़बड़ी जैसी कोई बात तो है ही नहीं। सरकार की ओर से भी कोई अधिकारिक ऐलान नहीं किया गया है कि रियायती दर पर गैस सिलेंडर का लाभ लेने के लिए नवीनतम केवाईसी जरूरी है।
सोने का सलीका नहीं
ट्रेन आने में देर हो तो लोग प्लेटफार्म पर नहीं तो कहां सोएंगे? मगर प्लेटफॉर्म में जगह तो ठीक चुनना चाहिए? सब इस तरह पसर जाएंगे, तो सेल्फी लेने के इच्छुक लोगों को परेशानी खड़ी हो सकती है। पता नहीं जीआरपी ने इन्हें उठाकर ठीक जगह सोने के लिए क्यों नहीं कहा। नाहक, कांग्रेस ने सेल्फी की जगह यात्रियों की फोटो खींचकर सोशल मीडिया पर डाल दी है। ([email protected])
प्रमोशन का इंतजार
प्रदेश के वर्ष-2006 बैच के आईपीएस अफसरों का प्रमोशन ऑर्डर नहीं निकल पाया है। इस बैच के अफसर मयंक श्रीवास्तव, बी.एस.ध्रुव, और आर.एन.दास, प्रमोट होकर आईजी बनने वाले हैं। मगर विजिलेंस क्लीयरेंस में देरी की वजह से प्रमोशन अटका है।
यही नहीं, वर्ष-2010 बैच के आईपीएस अफसर प्रमोट होकर डीआईजी बनने वाले हैं। इनमें अभिषेक मीणा, गिरजाशंकर जायसवाल, सदानंद कुमार, दुखूराम आंचला, बी.पी.राजभानू, सरजूराम सलाम, और अन्य एक-दो अफसर हैं। मध्यप्रदेश में तो प्रमोशन ऑर्डर निकल गया। मगर यहां इन अफसरों को कुछ दिन इंतजार करना होगा। प्रमोशन के साथ-साथ इनमें से कुछ अफसरों को इधर से उधर किया जा सकता है।
टीना, यानी देयर इज नो अल्टरनेटिव
डीजीपी अशोक जुनेजा लोकसभा चुनाव तक रह सकते हैं। इसका कार्यप्रणाली से कोई संबंध नहीं है। जुनेजा का कार्यकाल जून में खत्म हो रहा है। उन्हें हटाने की भी चर्चा थी, लेकिन सीनियर अफसरों की कमी का फायदा उन्हें मिलता दिख रहा है।
जुनेजा की कार्यप्रणाली को लेकर शिकायतें रही हैं। खुद भाजपा ने चुनाव आयोग से इसकी शिकायत कर हटाने की मांग की थी। खैर, जुनेजा के ठीक नीचे 90 बैच के अफसर राजेश मिश्रा हैं, जो कि स्पेशल डीजी के पद पर हैं। मिश्रा जनवरी में रिटायर हो रहे हैं।
एक चर्चा यह है कि आईबी में स्पेशल डायरेक्टर स्वागत दास को यहां लाया जा सकता है। मगर दिक्कत यह है कि स्वागत दास रिटायर हो चुके हैं, और उन्हें एक्सटेंशन मिला हुआ है। इस सिलसिले में कुछ उदाहरण भी दिए जा रहे हैं। मसलन, यूपी के सीएस डी.एस. मिश्रा को रिटायरमेंट के बाद तीन बार एक्सटेंशन दिया जा चुका है। छत्तीसगढ़ के मसले पर केन्द्र क्या कुछ करती है, यह देखना है।
फिर बदलेगा मेले का नाम
5 साल पहले सरकार बनने के बाद कांग्रेस ने जनवरी महीने में ही राजिम कुंभ का नाम बदलकर माघी पूर्णिमा मेला कर दिया था। विधानसभा में तब के संस्कृति मंत्री ताम्रध्वज साहू ने तर्क दिया था कि यह छत्तीसगढ़ी संस्कृति को परिलक्षित करता है। उन्होंने सन् 1909 के गजेटियर को पढक़र भी सुनाया था, जिसमें इसका जिक्र पुन्नी मेले के रूप में था। यह बताया कि छत्तीसगढ़ के अलावा नागपुर, भंडारा, मंडला, नरसिंहपुर और कटक से भी लोग इसमें शामिल होते थे।
भाजपा शासन काल में 13 वर्षों तक महानदी, पैरी और सोढुर नदी के संगम पर लगने वाले इस मेले को राजिम कुंभ के नाम से जाना गया। इस नामकरण और देशभर के साधु संतों को इसमें आमंत्रित कर भव्य रूप देने में मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की पहल और दिलचस्पी थी। राजिम कुंभ और पुन्नी मेला दोनों ही नाम विधानसभा में पारित विधेयक के चलते कानून का दर्जा रखते हैं। इसलिए अब जब मेले की तारीख करीब आ रही है और फिर से आयोजन की तैयारी शुरू हो रही है, नाम को अध्यादेश के जरिए बदला जाएगा।
राजिम के लोगों को लगता है कि कुंभ का नाम देने से इसमें मेले की पहचान देशभर में हो गई थी। अब संयोग से संस्कृति विभाग फिर से बृजमोहन अग्रवाल के पास है, राजिम का यह गौरव दोबारा स्थापित हो जाएगा।
उल्लेखनीय कि सन 2014 के आयोजन में कुंभ नाम को लेकर दो शंकराचार्यों के बीच मतभेद सामने आए थे। निश्चलानंद सरस्वती ने राजिम मेले को कुंभ मानने से इनकार कर दिया था। आयोजकों को उन्होंने उन्हीं के मंच से फटकार भी लगाई थी। इसके कुछ दिन बाद शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने कहा कि कुंभ एक पर्व का द्योतक है। शास्त्रों में कहीं नहीं लिखा है कि कुंभ केवल चार होंगे, आखिर अर्ध कुंभ भी तो लगते हैं।
बहरहाल, अनेक लोगों का मानना है कि कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सरकारों का नाम बदलने का फैसला धार्मिक या ऐतिहासिक आधार पर नहीं, बल्कि राजनीतिक है।
पेड़ बचाने की फिक्र में
टाइगर और लेपर्ड शाकाहारी नहीं है लेकिन जंगलों में रहते हैं क्योंकि पेड़-पौधे उन छोटे वन्य जीवों को खुराक देते हैं, जो इनका शिकार होते हैं। नई कोयला खदान के लिए हसदेव में पेड़ों की कटाई का एक चरण फोर्स की घेराबंदी के बीच पूरा हो चुका है, तमाम विरोध प्रदर्शनों के बावजूद। सोशल मीडिया पर लगातार इस बात की पीड़ा अलग-अलग तरह से उभर रही है। इस तस्वीर के जरिये यह कहने की कोशिश हो रही है कि इंसानों को पेड़ बचाने की फिक्र हो या ना हो, जानवरों को तो है।
योग्यता में कमी की बात..
सत्तारूढ़ भाजपा के उन वरिष्ठ और अनुभवी विधायकों का भी अपने क्षेत्र में गर्मजोशी से स्वागत सत्कार हो रहा है, जिन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई। फिर भी समर्थक और कार्यकर्ता मायूस हैं। उन्हें सांत्वना देना भी जरूरी है। कुरूद पहुंचने पर विधायक और पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर का गाजे-बाजे के साथ जबरदस्त स्वागत हुआ। अपने भाषण में उन्होंने दो खास बातें कही- एक तो यह कि मेरी योग्यता में भले ही कोई कमी रह गई होगी, मगर विकास के लिए प्रयास में कोई कमी नहीं रखूंगा। दूसरी बात यह भी कि नया नेतृत्व तैयार करना है।
क्या चंद्राकर योग्यता में कमी की बात मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिलने के संदर्भ में कह रहे हैं? और क्या भविष्य में चुनाव नहीं लडऩा चाहते? आप अनुमान लगाइए।
जमीन पर बैठकर, जमीन से जुडक़र
डिप्टी सीएम विजय शर्मा अपने विधानसभा क्षेत्र कवर्धा के जंगल पट्टी के इलाके सालेवारा, रेंगाखार और चिल्फी के दौरे पर निकले। चुनाव जीतने के बाद वो दूर दराज के इलाकों में नहीं जा पाए थे। लोगों से मेल मुलाकात में विजय शर्मा ने अपनी अलग ही पहचान छोड़ी है। डिप्टी सीएम के लिए स्वाभाविक रूप से मंच पर बैठने के लिए सोफा, और अन्य इंतजाम किए गए थे। मगर उन्होंने आम लोगों के साथ जमीन पर बैठकर ही समस्याएं सुनी।
चूंकि डिप्टी सीएम खुद जमीन पर बैठकर समस्याएं सुन रहे थे, तो उनके साथ कार्यकर्ताओं को भी जमीन पर बैठना पड़ा। यह इलाका कांग्रेस का गढ़ माना जाता है, और दिग्गज प्रतिद्वंदी मोहम्मद अकबर को रिकॉर्ड वोटों से हराने के बाद भी जंगल पट्टी के कुछ बूथों से विजय पीछे रह गए थे।
डिप्टी सीएम के मेल मुलाकात के तौर तरीके की कई अन्य भाजपा नेता तारीफ करते नहीं थक रहे हैं। उज्जवल दीपक ने बैठक का वीडियो शेयर करते हुए एक्स पर लिखा कि
-मेरा नाम नहीं छपा है,
मुझे कुर्सी नहीं मिली,
मंच पर मेरी जगह नहीं है,
मेरा नाम नहीं पुकारा गया....
इन सब बोलने वाले युवा से लेकर वृद्ध कार्यकर्ता को डिप्टी सीएम विजय शर्मा ने जमीन पर बैठकर बता दिया कि कुर्सी की लड़ाई, मंच की लड़ाई बंद कीजिए। परिक्रमा नहीं पराक्रम कीजिए।
किस बंगले में कौन, कब तक ?
सरकार जाने के बाद भी कई पूर्व मंत्रियों ने अब तक बंगला नहीं छोड़ा है। हालांकि बंगला खाली करने के लिए तीन महीने का समय रहता है। खास बात यह है कि कई पूर्व मंत्रियों ने अपना सामान तो खाली कर दिया है, लेकिन ऑफिस उनका सरकारी बंगले में ही चल रहा है।
डिप्टी सीएम अरुण साव को पूर्व डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव का बंगला आवंटित किया जा रहा है। उद्योग मंत्री लखनलाल देवांगन का नेमप्लेट रविन्द्र चौबे के सरकारी बंगले के बाहर टंग गया है। यद्यपि चौबे ने अभी बंगला नहीं खाली किया है। पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल को पुराना बंगला ही आबंटित किया गया। ताम्रध्वज साहू के सरकारी बंगले में डिप्टी सीएम विजय शर्मा रहेंगे। बाकी मंत्रियों को भी बंगला देने की प्रक्रिया चल रही है।
भूतपूर्व और वर्तमान अफसर
पखवाड़े भर बाद शुक्रवार को साय कैबिनेट के मंत्रियों को विभागों के बंटवारा कर दिया। तेईस में से बीस वर्षों बाद एक संयोग बना है। जोगी सरकार में रामचंद्र सिंहदेव और तीन साल अमर अग्रवाल के पास वित्त विभाग रहा। इसके बाद से सीएम ही वित्त विभाग के मुखिया रहे।
राज्य में पहली बार वित्त विभाग के मंत्री ओपी चौधरी एवं वित्त सचिव अंकित आनंद आईएएस होंगे। आनंद 2006 बैच के सीजी कैडर के आईएएस हैं तो चौधरी उनसे एक साल सीनियर 2005 बैच के अफसर रहे हैं। कुछ इसी तरह का संयोग राज्य गठन के मौके पर पहले सीएम अजीत जोगी के साथ भी रहा है। वो 1971 बैच के आईएएस रहे हैं। तब सीएस अरुण कुमार कभी जोगी के कलेक्टर रहते कमिश्नर रहे हैं। इस तरह से मंत्री बनने वाले चौधरी पहले पूर्व आईएएस हो गए। चौधरी अगले फरवरी में राज्य का तेइसवां बजट पेश करेंगे। वे वित्त और जीएसटी विभाग के मंत्री बनाए गए, साथ ही एक सबसे महत्वपूर्ण, आवास-पर्यावरण के भी ।
शिक्षकों के बिना बस्तर के स्कूल
शिक्षकों की पदोन्नति और पोस्टिंग में भारी लेनदेन की शिकायत के बाद मामला हाई कोर्ट तक पहुंच गया। जांच के बाद पता चला कि प्रदेश के बाकी चार संभागों में लेनदेन की शिकायत तो है लेकिन बस्तर में कोई गड़बड़ी नहीं मिली। मगर आदेश पूरे प्रदेश के लिए था, जिसके चलते पदोन्नत शिक्षकों की पोस्टिंग पर एक साथ रोक लगा दी गई थी। यह स्थिति यथावत है। बाबुओं और अफसरों ने कोई गड़बड़ी नहीं की। यदि की भी हो तो कोई शिकायत कहीं से है नहीं। इसके बावजूद बस्तर के शिक्षक पिछले 4 महीने से खाली बैठे हैं। पोस्टिंग तो मिल ही नहीं रही है। वेतन भी रोक दिया गया है। पिछली सरकार में चूंकि मामला मंत्रीजी तक पहुंच गया था और बाद में प्रभावित शिक्षकों ने हाई कोर्ट में भी याचिका लगा दी थी, इसलिए अधिकारी इस तरह फूंक फूंक कर कदम उठा रहे हैं। हर बात के लिए संचालनालय के आदेश का इंतजार हो रहा है। शिक्षक अपनी चिंता में है कि उनका वेतन नहीं मिल रहा है। दूसरी तरफ हजारों छात्र-छात्रा शिक्षकों के आने और पढ़ाई शुरू होने की राह देख रहे हैं। चार महीनों से उनकी भी पढ़ाई ठप पड़ गई है। शिक्षा सत्र जल्द समाप्त हो जाएगा। लोकसभा चुनाव के कारण परीक्षाएं भी जल्दी कराई जा रही है। अब शायद नए शिक्षा मंत्री का ध्यान इस तरफ जाए।
शहर सरकारों में बदलाव
सरकार बदलते ही नगरीय निकायों में भी उठा पटक दिखाई देने लगी है। ? ज्यादातर नगर पंचायत और नगर पालिकाओं में सन् 2019 में हुए चुनाव के बाद कांग्रेस का दबदबा था। जहां बहुमत नहीं था वहां दूसरे दलों के जीते हुए पार्षद और निर्दलीय कांग्रेस के साथ आए। सरायपाली नगर पालिका में जब चुनाव परिणाम आया तो भाजपा पार्षदों की संख्या अधिक थी। मगर यहां अध्यक्ष कांग्रेस के अमृत पटेल बने। उन्हें भाजपा का साथ मिल गया। अब जब प्रदेश में भाजपा सरकार बन गई है तो उन्हीं पार्षदों ने मिलकर उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित करा दिया। अब यहां भाजपा समर्थित चंद्र कुमार पटेल कार्यवाहक अध्यक्ष बन गए हैं। लोरमी नगर पंचायत में अध्यक्ष उपाध्यक्ष दोनों कांग्रेस के हैं। इनको जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के पार्षदों का साथ मिला था। अब यहां दोनों के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी हो रही है। उपाध्यक्ष अनुराग दास ने इस माहौल को देखकर अपना इस्तीफा ही दे दिया। बाद में उन्होंने समझा कि दो तिहाई बहुमत से ही उन्हें हटाया जा सकेगा, तो उन्होंने अपना इस्तीफा वापस मांग लिया है। कई और नगरीय निकायों से खबरें आ रही है, जिससे लगता है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस के कई अध्यक्ष-उपाध्यक्ष पद से बाहर हो जाएंगे।
आईना दिखाता पोस्टर
दुनिया जहान की सारी सूचनाओं को गूगल से ढूंढ लेंगे पर आत्म निरीक्षण के लिए तो खुद के भीतर ही झांकना होगा!
लुग्दी बना देते तो अच्छा होता
कल एक पूर्व मंत्री रूद्रगुरू के सरकारी बंगले में आग लगी तो यह हल्ला उड़ा कि उसमें बहुत से दस्तावेज जल गए हैं। बाद में उनकी तरफ से यह सफाई आई कि वे तो सरकारी बंगला खाली करके निजी घर में आ गए हैं, और बिजली के शॉर्टसर्किट से लगी आग में सिर्फ जरा सा सामान जला है, कोई भी कागजात वहां थे ही नहीं।
इस मामले में सच चाहे जो हो, हकीकत यह है कि जहां भूतपूर्व मंत्रियों के बंगले अधिक हैं, वहां हवा में चारों तरफ कागज जलने की गंध एक आम बात है। बंगले खाली करने के वक्त बहुत से कागजात जलाए जा रहे हैं। बिना किसी सुबूत के इनको सरकारी दस्तावेज या फाइलें कह देना ठीक नहीं होगा, और किसी एक जानकार ने तो यह भी कहा है कि मंत्रीजी को पांच बरस में मिलने वाले करोड़ों आवेदन जलाए जा रहे होंगे क्योंकि उन्हें रद्दी में बेचने से भी यह हल्ला होगा कि मंत्री को दी गई अर्जियों का यह हाल था। इसलिए ऐसी रद्दी को लुग्दी कारखानों में भेजने के बजाय जलाना बेहतर समझा जा रहा है। मंत्रियों की कॉलोनी में एक बड़े नेता ने जब हवा में कागज जलने की गंध महसूस की, तो अपने सहायक से कहा कि आसपास देखो कहीं कागज जल रहा है। सहायक ने हॅंसते हुए बताया कि बगल के बंगलों में सभी जगह कागज जलाए जा रहे हैं।
क्रैश विमान में पायलट की दिलचस्पी नहीं
राजस्थान के दिग्गज नेता सचिन पायलट को सैलजा की जगह छत्तीसगढ़ कांग्रेस का प्रभार दे दिया गया है, लेकिन चर्चा है कि पायलट छत्तीसगढ़ का काम देखने के लिए बहुत ज्यादा उत्साहित नहीं है। हालांकि उनकी नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत, और पूर्व सीएम भूपेश बघेल से बात हुई है। मगर वो छत्तीसगढ़ कब आएंगे, यह अभी तय नहीं है।
मध्यप्रदेश में नए प्रभारी जितेन्द्र सिंह तो भोपाल जाकर एक बैठक ले चुके हैं। उन्होंने नए सिरे से कार्यकारिणी के गठन की दिशा में काम भी शुरू कर दिया है। लेकिन छत्तीसगढ़ में अब तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है। चर्चा है कि पायलट राजस्थान में ही समय देना चाहते हैं, और लोकसभा चुनाव लडऩे की इच्छा है।
नागपुर सम्मेलन में गए छत्तीसगढ़ के कुछ नेता उनसे मुलाकात के लिए प्रयासरत थे, और उनसे मिलने होटल भी गए। मगर घंटों इंतजार के बाद किसी से भी उनकी मुलाकात नहीं हुई। कुछ नेताओं का कहना है कि नए साल में पायलट छत्तीसगढ़ आ सकते हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव तक वो रहेंगे या नहीं, यह निश्चित नहीं है। देखना है आगे क्या होता है।
हार और शिकायत पे इंतजार
प्रदेश भाजपा की नई कार्यकारिणी के गठन की प्रक्रिया चल रही है। चर्चा है कि आधा दर्जन जिलाध्यक्षों को बदला जा सकता है। जांजगीर-चांपा, और बालोद में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिल पाई। धमतरी में हार के लिए स्थानीय पदाधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
रायपुर जिले के एक नेता के खिलाफ 4 विधायक शिकायत कर चुके हैं। पार्टी के रणनीतिकार लोकसभा चुनाव को देखते हुए कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं कर रहे हैं। अलबत्ता, पाटी के सह चुनाव प्रभारी डॉ. मनसुख मंडाविया ने संकेत दिए थे कि जिन नेताओं के खिलाफ शिकायत आई है उन्हें संगठन में कोई अहम जिम्मेदारी नहीं दी जाएगी। साथ ही ऐसे लोगों को सरकार में भी कोई पद नहीं दिया जाएगा। देखना है आगे क्या
होता है।
जंगल के बाहर ठिकाने की तलाश...
सवाल ही नहीं उठता है कि वन्यजीवों के लिए जंगल ही सबसे सुरक्षित ठिकाना है। मगर, सरगुजा संभाग में स्थितियां बदलती जा रही हैं। एमसीबी जिले के चिरमिरी रेंज में एक सफेद भालू ने अपने बच्चों को जन्म देने के लिए जंगल को नहीं चुना। उसने जंगल के बाहर एक सुरक्षित ठिकाने की ह्यलाश की, जहां एक सफेद और एक काले शावक को जन्म दिया। शायद जन्म देने के बाद वह भोजन की खोज में चली गई और पैदा होते ही दोनों बच्चे अपनी मां से बिछड़ गए। वन विभाग के कर्मचारियों ने उन्हें जंगल में छोड़ दिया। इसी तरह उदयपुर रेंज के पार्वतीपुर के जंगल से भाग कर एक मादा भालू गांव के एक खंडहर में पहुंच गई और वहां उसने दो बच्चों को जन्म दिया। मां रात में लौट गई। उदयपुर में इस समय कोयला खदान के लिए हजारों पेड़ काटे गए हैं। पेड़ कटाई के बाद हाथियों के भटकने की खबर पहले आ चुकी है। अब दूसरे वन्यजीवों का भी यही हश्र होता दिखाई दे रहा है।
घोषणा रायपुर की, तैयारी रायगढ़ में
राजधानी में एनआईटी के पास अब से 6 साल पहले 18 करोड़ रुपए से 6 एकड़ जमीन में विशाल नालंदा परिसर शुरू किया गया था। यहां 50 हजार से ज्यादा पुस्तकें हैं। 100 से अधिक इंटरनेट युक्त कंप्यूटर हैं। पूरा परिसर फ्री वाई-फाई जोन की सुविधा से युक्त है। मामूली फीस देकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए यह बहुत उपयोगी है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने यहां आयोजित अटल बिहारी वाजपेयी की चित्र प्रदर्शनी के उद्घाटन कार्यक्रम में एक और नालंदा परिसर रायपुर में ही स्थापित करने की घोषणा की। उनकी घोषणा पर अमल करने की तैयारी रायपुर में शुरू भले ही ना हुई हो लेकिन रायगढ़ के लोग कॉन्फिडेंट हैं कि वहां एक नालंदा परिसर जरूर खुलेगा। यह भरोसा इसलिए है क्योंकि मुख्यमंत्री साय के अलावा मंत्री ओपी चौधरी यहीं से आते हैं। ऐलान से पहले ही रायगढ़ जिला प्रशासन ने नालंदा परिसर के लिए जमीन की खोज शुरू कर दी है। इधर बिलासपुर से भी मांग उठ रही है कि दूसरा नालंदा परिसर भी रायपुर में ही क्यों? युवाओं का कहना है कि प्रदेश के अलग-अलग जिलों से हजारों विद्यार्थी यहां प्राइवेट कोचिंग संस्थानों में प्रवेश लेकर तैयारी करते हैं। फिर यहां क्यों नहीं होना चाहिए। बल्कि प्रत्येक संभागीय मुख्यालय में ऐसा एक परिसर खोल देना चाहिए।
और जंगल साफ हो गया...
हसदेव अरण्य के घाटबर्रा इलाके का जंगल कोल माइंस के लिए साफ हो गया। इस बीच कटाई के लिए कांग्रेस भाजपा एक दूसरे पर आरोप लगाते रहे। प्रभावित ग्रामीण हरिहरपुर में प्रदर्शन और अडानी के खिलाफ नारेबाजी करते रहे लेकिन पूरा काम बेरोकटोक निपट गया। दावा यह किया गया है कि 15 हजार पेड़ काटे गए लेकिन इनकी संख्या 40 से 50 हजार बताई जा रही है। बाकी की गिनती इसलिये नहीं हुई क्योंकि इनकी मोटाई दो फीट से कम थी। कटाई कितनी तेजी से हुई इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पूरे काम के लिए 500 आरा मशीनों का इस्तेमाल किया गया। इनके एक साथ भयानक शोर का सबसे पहला असर हाथियों पर ही पड़ा जो उनकी अपनी चिंघाड़ से भी कई गुना भारी थे। वे वहां से भागकर उदयपुर के आसपास के गांवों में पहुंच गए हैं। काम में लगे मजदूर बता रहे थे कि हमें फोटो खींचने की सख्त मनाही थी वरना दिखाते कि किस तरह पेड़ों के गिरने से उसके साथ हजारों घोंसले और उनमें मौजूद पक्षियों के चूजे, अंडे भी गिरकर नष्ट हो गए। देखकर दर्द बहुत हो रहा था, लेकिन हम तो मजदूरी कर रहे थे।
मुलाक़ातियों का जमघट
कुशाभाऊ ठाकरे परिसर में प्रदेश भर के नेताओं का जमावड़ा देखा जा रहा है। ये भाजपा नेता, संगठन की दो प्रमुख धुरी अजय जामवाल, और पवन साय के आगे-पीछे हो रहे हैं। दरअसल, सरकार बनने के बाद निगम-मंडल, और आयोगों में भी नियुक्ति होनी है। लिहाजा, इसके लिए दोनों दिग्गजों का आशीर्वाद जरूरी है।
दूसरी तरफ, कुछ नेता अभी से लोकसभा टिकट की दावेदारी कर रहे हैं। ये नेता विधानसभा टिकट से वंचित रहे हैं, और उन्हें उम्मीद है कि पार्टी उनके नाम पर सोच सकती है। पिछले लोकसभा चुनाव में हाईकमान ने लोकसभा की 11 टिकटें बदल दी थी। कुछ इसी तरह का बदलाव इस बार भी होने की उम्मीद जताई जा रही है। ऐसे में संगठन प्रमुखों के आशीर्वाद के बिना टिकट संभव नहीं है। ऐेसे में टिकट की आस लिए नेता जामवाल और पवन साय से मिलने के लिए घंटों इंतजार करते देखे जा सकते हैं।
एक और वजह से पार्टी दफ्तर में भीड़ बढ़ रही है। यह है कि किरणदेव की नियुक्ति के बाद प्रदेश भाजपा संगठन में बड़ा बदलाव होना है। संगठन में कोई भी बदलाव जामवाल और पवन साय की सहमति के बिना नहीं हो सकता है। ऐसे में संगठन में जगह पाने के लिए प्रयासरत नेता, दोनों दिग्गजों से मिलने के लिए बेकरार दिख रहे हैं। खास बात यह है कि जामवाल, और पवन साय व्यस्तता के बावजूद देर रात तक मुलाकातियों से चर्चा कर रहे हैं। और यथासंभव संतुष्ट करने की कोशिश में भी जुटे रहते हैं।
बृजमोहन की वजह से आए बिड़ला
अग्रवाल समाज के भवन के लिए रायगढ़ पहुंचे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला वापिसी में फ्लाईट विलंब होने के बाद रायपुर में रूके, और पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के मौलश्री विहार स्थित घर भी गए।
बिड़ला ने वहां पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पांडेय, शिवरतन शर्मा, और सांसद सुनील सोनी से भी चर्चा की। उन्होंने लोकसभा में अपने अनुभव भी साझा किए।
बिड़ला ने बताया कि वो पहली बार 2014 में पहली बार लोकसभा के सदस्य बने, तो सुनील सोनी की तरह अंतिम सीट पर बैठते थे, और पूरे कार्यकाल में मात्र दो बार शून्यकाल में बोलने का अवसर मिला। इस पर सुनील सोनी ने बताया कि उन्हें अब तक शून्यकाल 18 बार बोलने का अवसर मिल चुका है।
पूर्व विधानसभा अध्यक्ष पांडेय के साथ उन्होंने संसदीय प्रक्रियाओं को लेकर भी चर्चा की। रायगढ़ के कार्यक्रम में तो ओम बिड़ला यह कह गए कि वो सिर्फ बृजमोहन अग्रवाल की वजह से आए हैं। बृजमोहन उनके पुराने मित्र हैं। लिहाजा, व्यस्तता के बावजूद उनका आग्रह नहीं टाल सका। कुल मिलाकर बिड़ला ने बृजमोहन के साथ-साथ सुनील सोनी को भी काफी महत्व दिया।
ड्राइवर नए कानून से चिंतित..
संसद में कानून पास होने के बाद भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023, सीआरपीसी की जगह ले लेगी। इसमें प्रावधान किया गया है कि सडक़ दुर्घटना के बाद यदि कोई ड्राइवर घायल को अस्पताल पहुंचाता है तो उसे सजा में राहत मिल सकती है। सडक़ दुर्घटना में पुलिस प्राय: 304 ए के तहत अपराध दर्ज करती थी, जिसमें थाने से ही जमानत मिल जाती थी, लेकिन अब कोर्ट से जमानत मिलेगी। यहां तक तो ठीक है पर दूसरा प्रावधान यह भी किया गया है कि यदि ड्राइवर गाड़ी छोडक़र या लेकर भाग जाता है तो उसे 10 साल की सजा दी जाएगी। छत्तीसगढ़ में हर दो चार दिन में ऐसी दुर्घटनाएं हो रही हैं, जिनमें भारी वाहन तेज रफ्तार के चलते दूसरी गाड़ी को अपनी चपेट में ले लेते हैं और ड्राइवर सबसे पहला काम भागने का ही करता है। अब 10 साल की सजा होने के डर से शायद वे ऐसा न करें, पर घायल की मदद करने के नाम पर रुकने का विचार भी कम जोखिम भरा नहीं है। प्राय: दुर्घटनाओं के बाद भीड़ इक_ी होती है, चक्काजाम किया जाता है। ड्राइवर अगर उनके सामने पड़ गया तो उसकी जान को खतरा है। ड्राइवरों का एक अखिल भारतीय संगठन इसके विरोध में भी उतर गया है। उन्होंने गृह मंत्री को ज्ञापन भेजकर प्रावधान बदलने की मांग की है। सोशल मीडिया पर देशभर के ड्राइवरों को एकजुट किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में भी पेशेवर ड्राइवरों के बीच इसकी हलचल हो रही है। हालांकि यह प्रावधान सिर्फ व्यावसायिक चालकों के लिए नहीं है, बल्कि कोई निजी वाहन चला रहा हो तो उस पर भी कानून यही लागू होगा।
छोटा लेकिन खास स्टेशन...
ट्रेन का सफर लंबा और उबाऊ हो, इस बीच कोई खास नाम वाला स्टेशन मिल जाए तो मन थोड़ा बहल जाता है। यह स्टेशन कानपुर से दिल्ली जाने के रास्ते में मिलता है।
पुलिस भर्ती का तीसरा कार्यकाल
सब इंस्पेक्टर भर्ती परीक्षा में मेंस का एग्जाम पास कर इंटरव्यू दिलाने वाले परीक्षार्थियों ने बिलासपुर से रायपुर तिरंगा लेकर पदयात्रा निकाली और चयन सूची जल्द जारी करने की मांग की। दूसरी ओर मेंस क्वालिफाई नहीं कर पाए युवक भी अचानक सक्रिय हो गए हैं। उन्होंने सांसदों को ज्ञापन और रायपुर में पैदल मार्च कर एसपी को मांग पत्र सौंपा। इन्होंने भर्ती रद्द करने की मांग की है। इनका कहना है कि इसमें कई विसंगतियां थी। सरकार ने हाई कोर्ट में इस बात को स्वीकार भी किया। बहुत संभव है कि भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी हुई हो लेकिन सरकार बदलने के बाद ही यह मांग तेज क्यों हुई है, इस पर सवाल उठ सकता है। राजस्थान में कल भाजपा की नई सरकार ने गहलोत सरकार के दौरान 50 हजार पदों पर की गई महात्मा गांधी सेवा प्रेरकों की भर्ती रद्द कर दी। छत्तीसगढ़ में सब इंस्पेक्टर भर्ती की प्रक्रिया सन् 2017 में शुरू हुई थी। इस हिसाब से यह सरकारों का तीसरा कार्यकाल हो गया। शायद अब तक की यह राज्य में सबसे लंबी भर्ती प्रक्रिया है। अब यह प्रक्रिया रद्द की गई तो पता नहीं और कितने साल नई भर्ती में लगेंगे। सरकारों के बदलने के बाद भर्ती और भर्ती प्रक्रियाओं पर उठने वाले सवालों से सहज ही माना जा सकता है कि इन नियुक्तियों में पारदर्शिता का अभाव है।
अटल नगर की वीरानी दूर होगी?
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने सिविल लाइन के सीएम हाउस की बजाय नया रायपुर में नवनिर्मित मुख्यमंत्री निवास में रहने का फैसला लेकर कई अफसर नेताओं यहां तक की मंत्री और विधायकों की भी चिंता बढ़ा दी है। मुख्यमंत्री को लगा होगा कि जिस नई राजधानी के लिए हजारों करोड़ रुपए खर्च किए जा चुके हैं, आखिर उसे कब तक वीरान रखा जा सकता है? सीएम हाउस 65 करोड रुपए की लागत से तैयार हो चुका है। 5 साल पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कैबिनेट ने फैसला लिया था कि जो काम गैर जरूरी है उन्हें तुरंत रोका जाए और नए शहर में बसावट के लिए जरूरी काम जल्दी से जल्दी पूरा कर लिया जाए। मगर देखते देखते 5 साल बीत गए। मुख्यमंत्री और अधिकांश मंत्रियों के आवास लगभग तैयार हैं, लेकिन कांग्रेस के काम नहीं आ सका क्योंकि सरकार चली गई। अब जब सीएम ने खुद यहां पर रहने का फैसला कर लिया है तो जाहिर है धीरे-धीरे मंत्री और विधायक और साथ-साथ अफसर भी यहां रहने का ठिकाना बना ही लेंगे। मुख्यमंत्री के इस फैसले ने नया रायपुर को खंडहर बनाने से बचा लिया है। दिक्कत आम लोगों को जरूर होगी, जिनके लिए अब भी नया रायपुर तक पहुंच पाने की सुविधा किफायती नहीं है।
नए साल में नए चेहरे
भाजपा में हफ्ते भर में संगठन में बड़ा बदलाव होने जा रहा है। तीनों महामंत्री विजय शर्मा, केदार कश्यप, और ओपी चौधरी की जगह नए महामंत्री नियुक्त किए जाएंगे। तीनों ही सरकार में मंत्री बन चुके हैं।
चर्चा है कि रायपुर संभाग से संजय श्रीवास्तव, बस्तर से डॉ.सुभाऊ कश्यप, महेश गागड़ा, और बिलासपुर से सौरभ सिंह व सरगुजा से अनुराग सिंहदेव में से महामंत्री का दायित्व सौंपा जा सकता है। संगठन में भी सामाजिक समीकरण को देखकर पद दिए जाने की चर्चा है।
भाजयुमो और अन्य मोर्चा प्रकोष्ठ में भी नई नियुक्ति की जाएगी। कहा जा रहा है कि कुछ पहली बार के विधायक को संगठन में अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। सूची को लेकर चर्चा चल रही है। कहा जा रहा है कि सब कुछ ठीक रहा तो हफ्ते भर के भीतर प्रदेश अध्यक्ष किरणदेव की नई कार्यकारिणी घोषित हो सकती है।
मंत्रियों के स्टाफर
जीएडी ने भूपेश कैबिनेट के स्टाफ को नए मंत्रियों के यहां भेज दिया है। जीएडी का मंत्रियों के यहां पोस्टिंग आदेश निकलते ही विवाद छिड़ गया है। इसकी शिकायत भाजपा के शीर्ष नेताओं से की गई है। शिकवा-शिकायत के बाद पोस्टिंग आदेश निरस्त करने पर विचार चल रहा है।
बताते हैं कि बृजमोहन अग्रवाल को छोडक़र बाकी मंत्रियों को मालूम ही नहीं था कि उनके यहां किसे भेजा जा रहा है। बृजमोहन के स्टाफ ऑफिसर टीआर साहू उनके पुराने सहयोगी हैं। साहू की पदस्थापना के लिए पहले ही जीएडी को कह दिया गया था।
बाकी मंत्रियों के यहां जो स्टाफ आए हैं, वो भूपेश सरकार के मंत्रियों के यहां रहे हैं। और अब जब पोस्टिंग हुई है, तो भाजपा की विचारधारा के अफसर-कर्मचारी खफा हैं। गौर करने लायक बात यह है कि भूपेश सरकार ने आते ही एक अलिखित आदेश दिया था कि भाजपा के मंत्री-विधायकों के यहां काम कर चुके किसी भी स्टाफ को नहीं रखा जाए।
इसके बाद सभी को मूल विभाग में भेज दिया गया था। अब भाजपा के लोग अब भूपेश सरकार का फार्मूला लागू करने पर जोर दे रहे हैं। चर्चा है कि पार्टी और सरकार की रणनीतिकार इससे सहमत हैं, और माना जा रहा है कि मंत्रियों की पसंद पर जल्द नए सिरे से उनके यहां स्टाफ की पदस्थापना हो सकती है।
जगदलपुर के समीकरण
जगदलपुर के विधायक, और पार्टी के पुराने नेता किरण देव को प्रदेश भाजपा की कमान सौंपी गई है। किरण की नियुक्ति के बाद पार्टी के कई समीकरण बदल सकते हैं। मसलन, पूर्व संसदीय सचिव संतोष बाफना हाशिए पर जा सकते हैं।
बाफना ने किरण देव को टिकट देने का खुला विरोध किया था, और जगदलपुर में काम करने से मना कर दिया था। उन्होंने पार्टी नेताओं की समझाइश भी नहीं मानी थी। संतोष ने जगदलपुर भी छोड़ दिया था।
संतोष के करीबी समर्थक किरण देव के प्रचार से अलग रहे। ये अलग बात है कि किरण की जीत पर कोई असर नहीं पड़ा। और अब जब किरण प्रदेश के मुखिया बन गए हैं, तो संतोष की पार्टी की मुख्यधारा में वापसी मुश्किल दिख रही है। देखना है आगे क्या होता है।
और बदलाव के संकेत
किरण देव के प्रदेश भाजपा की कमान संभालने के बाद संगठन में भी बदलाव होने जा रहा है। चर्चा है कि पिछले दिनों पार्टी के एक प्रमुख पदाधिकारी ने क्षेत्रीय महामंत्री (संगठन) अजय जामवाल को बदलाव को लेकर सुझाव दिए हैं।
उन्होंने चुनाव के दौरान दिक्कतों का जिक्र करते हुए कार्यालय के दो प्रमुख पदाधिकारियों को बदलने की मांग भी कर दी। पदाधिकारी ने यह भी कहा कि यदि ये दोनों नहीं बदले गए, तो लोकसभा चुनाव में काम करने में दिक्कत आएगी। जामवाल ने हंसते-मुस्कुराते ‘तथास्तु ’ कह दिया। अब देखना है कि पदाधिकारियों के कामकाज में क्या कुछ बदलाव होता है।
यहां एक का दर्द, वहां हजारों
धमतरी के सदर रोड में करीब 150 साल पुराने पीपल की बड़ी-बड़ी शाखाओं को लोगों ने काट डाले। यह पीपल ठूंठ दिखाई दे रहा है। शाखाएं कटकर नीचे गिरी तो सैकड़ों पक्षियों की उसने जान भी ले ली। इस विशाल पेड़ में कार्मोरेंट प्रजाति के पक्षियों के दर्जनों घोंसले बने हुए थे। चिडिय़ों के चूजे और अंडे भी इन घोसलों में थे। पक्षियों की मौत से आसपास के लोगों में इससे नाराजगी फैल गई। कुछ पर्यावरण प्रेमी भी सामने आए। उन्होंने वन विभाग के अधिकारियों से पूछा कि क्या यह आपकी अनुमति से काटा गया है। पता चला कि कोई अनुमति नहीं ली गई। नगर निगम या राजस्व विभाग से भी कोई मंजूरी नहीं। वन विभाग इस मामले की जांच करा रहा है। उसने कहा है कि दोषियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी। एक पेड़ की सिर्फ शाखाएं कटी हैं और उसने सैकड़ों पक्षियों की जान ले ली। उधर हसदेव अरण्य में कोयला खानों के लिए 45000 पेड़ काटे जा रहे हैं। क्या हम अनुमान लगा सकते हैं कि वहां कितने हजार, लाख घोंसले इससे नष्ट हुए होंगे और कितने पक्षियों की जान गई होगी?
राम के नाम पर उगाही
अयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के लिए प्रचार प्रसार में कोई कमी नहीं है। इसका फायदा उठाते हुए देशभर में ऐसे संगठन और समूह सामने आ रहे हैं जिनका कभी नाम नहीं सुना गया। ज्यादातर के नाम असली ट्रस्ट से मिलते-जुलते हैं। हाल ही में राजस्थान में हजारों की संख्या में ऐसे रसीद बुक बरामद किए गए जिनके जरिए राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के लिए राशि की उगाही हो रही थी। और अब भिलाई से शिकायत आई है कि लोगों के व्हाट्सएप पर क्यूआर कोड भेज कर राम मंदिर के नाम पर चंदा मांगा जा रहा है। राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट की ओर से 2 साल पहले ही बयान आ चुका है कि वह बारकोड या यूपीआई कोड के माध्यम से चंदा लेना बंद कर रहा है क्योंकि इसमें धोखाधड़ी हो रही है। धार्मिक आस्था एक ऐसा विषय है जिस पर कोई दान या चंदा मांग रहा हो तो वह बिना सवाल जवाब किए राजी, या कहें क्रेजी हो जाता है।
यह सिलसिला तब से चल रहा है, जब से राम मंदिर का निर्माण शुरू हुआ था। जिन लोगों ने ऐसे अज्ञात संगठनों को दान दे दिया, उनको अब अफसोस करने के बजाय यह मान लेना चाहिए कि राम के नाम पर किसी का भला हो गया।
फिर गिरा मंच भरभरा कर
तीन दिन पहले टीपी नगर कोरबा में मंत्री लखन लाल देवांगन के स्वागत समारोह के दौरान मंच अत्यधिक भीड़ के कारण धराशायी हो गया। अब कल अपने विधानसभा क्षेत्र लोरमी पहुंचे उपमुख्यमंत्री अरुण साव को भी इसी मुसीबत का सामना करना पड़ा। उन्हें शाही माला पहनाने के लिए इतने लोग मंच पर चढ़ गए कि मंच फिर जमींदोज हो गया। दोनों ही घटनाओं में मंत्रीगण सुरक्षित रहे। कार्यकर्ताओं को भी हल्की-फुल्की ही चोटें आई। इन घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने का एक इलाज यह है कि जल्दी से मंत्रियों को विभागों का बंटवारा कर दिया जाये और वे स्वागत सत्कार का सिलसिला रोककर मंत्रालय में बैठना शुरू करें।
हेल्थ की नई हेल्पलाइन
बलरामपुर-रामानुजगंज जिले में, सन् 2021 में जुलाई से सितंबर के तीन महीने के भीतर सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक 29 लोगों की, जिनमें बच्चे और महिलाएं भी शामिल थे, मौत हो गई थी। एक दो मौतों पर तो किसी का ध्यान नहीं जाता था। लगातार मौतें होने के बाद स्वास्थ्य विभाग को पता चला। फिर कैंप वहां लगा। मरीजों की घर-घर तलाश की गई। करीब 270 लोग अस्पतालों में लाकर दाखिल कराए गए। प्राय: सभी खून की कमी और कुपोषण से पीडि़त थे। कांग्रेस शासनकाल में स्वास्थ्य विभाग के मंत्री सरगुजा के ही प्रतिनिधि टीएस सिंहदेव थे। मगर स्थिति बदली नहीं। अभी विधानसभा चुनाव के बाद भी एक घटना सामने आई, जिसमें एक गर्भवती को डेढ़ किलोमीटर तक खाट पर उठाकर उनके परिजन एंबुलेंस तक पहुंचा पाए।
संयोग है कि इस बार ऐसे विषम इलाके से प्रतिनिधि, मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने लचर स्वास्थ्य सेवा को ठीक करने की मंशा जाहिर करते हुए निर्देश दिया है कि जरूरतमंदों पर आधे घंटे के भीतर एंबुलेंस पहुंचनी चाहिए। एक और दिलचस्प बात यह हुई है कि उनके बगिया निवास पर रोजाना फोन पर फोन आ रहे हैं। उन लोगों के, जिन्हें एंबुलेंस और इलाज की जरूरत है। वहां एक स्टाफ इसी काम को देख रहा है। ये फोन उनके जशपुर जिले से ही नहीं बल्कि प्रदेश के दूसरे स्थानों से भी आ रहे हैं। यानि एक तरह से सीएम का गांव वाला निवास मरीजों के लिए नया कॉल सेंटर बन गया है। मगर लोगों को इंतजार स्वास्थ्य विभाग की लचर व्यवस्था में सुधार होने का है।
जानकारी खत्म, कानूनी, और...
पुरानी सरकार के बाद नई सरकार आने के बीच सरकारी दफ्तरों में कई तरह की अनहोनियां हो जाती हैं, या की और कराई भी जाती हैं । इसके पीछे कई कारण होते हैं। एक तो सरकार अधिकृत होता है कि पुरानी नस्तियों का दस्तावेजीकरण और कालातीत हो चुकी नस्तियों का विनष्टीकरण, 2013 में गृहमंत्री रहे नेताजी ने बीटीआई मैदान में ऐसा ही विनष्टीकरण कराया था।
और यदि कोई दस्तावेज डेस्कटॉप और लैपटॉप में सेव हो तो डिलिशन। और अनाधिकृत या गैर सरकारी तरीका है, ऐसे सबूत ही गायब कर दें। मेकाहारा के सामने स्वास्थ्य विभाग के एक चर्चित प्रशिक्षण केंद्र में हुआ भी ऐसा । यहां के अफसर के दो लैपटॉप चोरी चले गए। डॉ. साहब ने एहतियातन चोरी की रिपोर्ट भी दर्ज कराई । पुलिस ने बताया दो से तीन दिन बाद दोनों लैपटॉप मिल भी गए। कैसे चोरी हुए, किसने किया, और किसने ला छोड़ा या कहां, किसके पास मिले, इन सवालों का जवाब पुलिस के पास भी नहीं है। दफ्तर में चर्चा है कि दोनों मशीनों में सेव मटेरियल तो गायब हो गए हैं। ये क्या थे। यह साहब लोग ही
जानते हैं..!
सांताक्लाज पापा के कंधे पर
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में भी बड़ा दिन, बड़े उत्साह से मनाया जा रहा है। सब अपनी-अपनी सुविधा और हैसियत के अनुसार खुश रहने, परिवार को खुशी देने की कोशिश कर रहे हैं। इस तस्वीर में पापा रोजमर्रा के काम में तो लगा ही है। कंधे पर बैठे बेटे ने सांताक्लाज के लिबास में है। (फोटो प्राण चड्ढा)
कांग्रेस की बैठक का हाल
विधानसभा चुनाव में हार की समीक्षा बैठक में शनिवार को कई कांग्रेस पदाधिकारी तो आपे से बाहर हो गए थे। कुछ ने तो इस बात पर ऐतराज किया कि बैठक में अकेले प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ही मौजूद हैं।
एक-दो पदाधिकारियों ने तो भूपेश बघेल का नाम लिए बिना दीपक बैज से पूछ लिया कि वो कहां है, जो हार के लिए असली जिम्मेदार हैं। इन पदाधिकारियों ने बैज से कहा कि आपसे कोई शिकायत नहीं है क्योंकि आपको अध्यक्ष बने ही चार महीने हुए हैं। मगर जो सरकार के साथ-साथ संगठन भी चला रहे थे उन्हें बैठक में मौजूद रहना चाहिए था।
पूर्व मंत्री डॉ.प्रेमसाय सिंह बैठक में यह सोचकर आए थे कि उनके प्रति पदाधिकारियों की सहानुभूति होगी। क्योंकि चुनाव से तीन महीने पहले मंत्रीपद से हटा दिया गया था, और फिर टिकट भी नहीं दिया गया। लेकिन पदाधिकारियों ने उन्हें भी नहीं बख्शा, और उनके स्कूल शिक्षामंत्री रहते विभाग में भर्राशाही को लेकर खूब खरी-खोटी सुना दिया।
हराने को पैसे भेजे थे !
हार की समीक्षा बैठक में एक पदाधिकारी के यह कहने पर हलचल मच गई, कि कई प्रत्याशियों को हराने के लिए पार्टी के ताकतवर लोगों ने पैसे भिजवाए थे। उन्होंने आगे यह भी कहा कि उनके पास इसके प्रमाण भी हैं। कई और पदाधिकारियों ने सुर में सुर मिलाया। इस पर प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज ने तुरंत हस्तक्षेप करते हुए कहा कि वो जल्द ही पदाधिकारियों के साथ एक-एक कर अलग से चर्चा करेंगे, और भरोसा दिलाया कि जिन्होंने भी पार्टी के खिलाफ काम किया है, उन्हें पद नहीं दिया जाएगा।
अपनी ही पार्टी की सरकार से परेशान
बस्तर के कांग्रेस के एक बुजुर्ग पदाधिकारी ने समीक्षा बैठक में अपनी व्यथा सुनाई। उन्होंने बताया कि उनकी पुत्रवधु लेक्चरर है, और वो चाहते थे कि उनकी गृह जिले के किसी कॉलेज में पोस्टिंग हो जाए। इसके लिए हर स्तर पर प्रयास किए लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली। और तो और विधायक के मार्फत दिए गए उनके आवेदन को भी ध्यान नहीं दिया गया। वो यह कहने से नहीं चूके कि अपनी ही सरकार के कामकाज से परेशान रहे हैं।
जंगल काटने का ग्लोबल विरोध...
सरकार बदलते ही हसदेव अरण्य में परसा ईस्ट व केते बासेन में कोयला खनन के लिए पेड़ों की कटाई शुरू हो गई। जब इसी काम के लिए पुलिस बल का इस्तेमाल पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के समय हुआ तो भाजपा ने इसका विरोध किया था। इस बार कटाई शुरू करने के लिए सबसे पहले आंदोलन से जुड़े लोगों को हिरासत में ले लिया गया। इन्हें चेतावनी देकर छोड़ा गया है कि जहां कटाई हो रही है, उसके आसपास न दिखें। पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव ने आंदोलनकारियों से मिलकर पिछली बार की तरह इस बार भी समर्थन दिया है। वहां बड़ी तादाद में फोर्स तैनात है। स्थल पर जाकर विरोध प्रदर्शन करना कठिन है। रास्ते में ही लोगों को पकड़ लिया जा रहा है। ऐसे में सोशल मीडिया में देश के अलग-अलग हिस्सों से अपने-अपने तरीके से विरोध की अभिव्यक्ति की जा रही है। एक पोस्ट में हाथियों को जंगल से शहर की ओर भागते हुए दिखाया गया है। यह कहते हुए कि तुमने हमारा जंगल उजाड़ा है, अब हम तुम्हारे घरों को उजाड़ेंगे। यह तस्वीर राजस्थान के एक एक्टिविस्ट ने डाली है। ऑक्सीजन मास्क के साथ लिए तख्ती में आगाह किया गया है कि हसदेव जैसे अरण्य को उजाडऩे का परिणाम क्या हो सकता है।
कांग्रेस सरकार गिरने का फायदा...
आपराधिक गतिविधियों में शामिल कांग्रेस से जुड़े लोगों को अपनी सरकार में कष्ट हुआ, पर सरकार बदलते ही राहत मिल रही है। ऐसे दो मामले सामने हैं। बस्तर के पूर्व कांग्रेस नेता अजय सिंह ने पिछली कांग्रेस सरकार के दौरान विधायक विक्रम मंडावी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अभियान चलाया था। वे राज्य युवा आयोग के सदस्य थे, बीजापुर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी रह चुके थे। चुनाव के कुछ पहले उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया। साथ ही उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों को आधार बनाते हुए जिला प्रशासन ने जिला बदर कर दिया। उन्होंने आरोप लगाया था कि जिला बदर मंडावी ने कराया। इधर, अब प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद जिला बदर की कार्रवाई स्थगित कर दी गई है। अजय सिंह वापस अपने घर परिवार सहित बीजापुर लौट गए हैं।
बिलासपुर में सिंहदेव समर्थकों के करीब दिखने वाले रीतेश निखारे उर्फ मैडी के खिलाफ दो दर्जन से अधिक गंभीर मामले दर्ज हैं। पुलिस की निगाह में वह हिस्ट्रीशीटर है। उस पर तत्कालीन जिलाधीश संजीव झा ने राष्ट्रीय सुरक्षा कानून की कार्रवाई की थी। उसे बाहर नहीं आना था, पर कल उसे जमानत मिल गई। मालूम हुआ कि रासुका की नोटिस उसे तामील ही नहीं हुई। जेल से बाहर निकले मैडी का उनके समर्थकों ने कुछ इस तरह स्वागत जुलूस निकाला, मानो उसने कोई इलेक्शन जीत लिया हो।
स्वागत का कल्चर...
कांग्रेस में पद मिलने के बाद होने वाली रैलियों और अभिनंदन समारोहों का अलग अंदाज अरसे से देखा जा रहा है। धक्का-मुक्की होनी ही है, नेता की गाड़ी में किसी तरह से घुस ही जाना है। बगल में खड़े होने की होड़ मच जाती है। कई बार पिटाई-सिटाई भी हो जाती है। मंच भी टूट जाते हैं। पर, अब भाजपा में भी होने लगा है। मंत्री लखन लाल देवांगन पहली बार कोरबा पहुंचे तो उनका जोरदार स्वागत हुआ। जैसे ही देवांगन ने माइक थामी, एक के बाद एक इतने लोग ऊपर चढ़ गए कि मंच एक झटके में जमींदोज हो गया। मंत्री सहित सारे नेता नीचे धड़ाम से गिरे। गनीमत रही कि किसी को खास चोट नहीं आई। ये सब कांग्रेसियों के भाजपा की तरफ चले जाने की वजह से भी तो हो सकता है। मगर, सवाल मंत्री की सुरक्षा का भी है। वहां मौजूद पुलिस बल शायद जरूरत से ज्यादा लोगों को मंच पर चढ़ते देख, रोक नहीं पाया। ([email protected])
कैबिनेट की खींच-तान
कैबिनेट में जगह पाने के लिए विशेषकर सीनियर विधायकों में होड़ मची थी। चर्चा है कि दो सीनियर विधायक तो एक-दूसरे के खिलाफ शिकायत भी कर चुके थे। यह तकरीबन तय माना जा रहा था कि समाज विशेष को साधने के लिए दोनों में से कम से कम एक को कैबिनेट में जगह मिल जाएगी। मगर ऐसा नहीं हुआ। हाईकमान ने इस बार भी चौंका दिया, और दोनों की जगह उसी समाज के नए चेहरे को कैबिनेट में जगह मिल गई। कैबिनेट में जगह सीमित है। उससे अधिक पुराने विधायक जीतकर आ गए हैं। ऐसे में खींचतान तो होना ही था।
बदले-बदले से मेरे सरकार
सीएम विष्णुदेव साय किसी भी फैसले में हड़बड़ी नहीं दिखा रहे हैं। साय, सोच विचार के बाद ही कोई फैसला ले रहे हैं। उन्होंने अपने सचिवालय में अफसरों की पदस्थापना में भी जल्दबाजी नहीं दिखाई, और भूपेश बघेल की टीम से ही काम कराते रहे। इससे नौकरशाही में सकारात्मक संदेश गया है, और वो मानकर चल रहे हैं कि साय सरकार किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर काम नहीं करेगी।
दूसरी तरफ, वर्ष-2018 में तो भूपेश सरकार सत्ता में आई, तो ऐसी हड़बड़ी देखने को मिली थी जो कि अफसरों को चौंका रही थी। रमन सिंह के करीबी अफसरों के बंगले खाली कराने के लिए धरना प्रदर्शन तक हो रहा था। जबकि सरकारी बंगला आबंटन, और खाली करने के लिए नियम प्रक्रिया सब कुछ निर्धारित है। तेज रफ्तार-दबाव, और आक्रामक कार्यशैली की वजह से भूपेश सरकार में नौकरशाही निराश थे। दर्जनभर आईएएस तो दिल्ली प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे, अब माहौल बदला सा दिख रहा है, तो कई वापसी की सोच रहे हैं।
राशन दुकान तो भाजपा के दिनों के...
बीते 5 वर्षों के दौरान प्रदेश में राशन दुकानदारों ने बड़े पैमाने पर चावल घोटाला किया। अंदाजा लगाया गया था कि गड़बड़ी करीब 310 करोड़ रुपए की हुई। तत्कालीन खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने विधानसभा में इसकी जांच का आश्वासन दिया था। दरअसल राशन कार्ड धारकों की संख्या के मुताबिक दुकानदारों को चावल का आवंटन किया जाता है। पिछला स्टॉक अगर शेष होता है तो उतनी मात्रा कम करके अगले माह आपूर्ति की जाती है। पर खाद्य विभाग के अफसरों की मिलीभगत थी, हिसाब नहीं लिया गया।
दुकानदारों ने न तो स्टॉक बताया, न ही खाद्य विभाग ने आपूर्ति घटाई। शक्कर की आपूर्ति में भी इसी तरह की गड़बड़ी हुई। इसकी शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय से हो गई। वहां से पहले भी पत्र आए थे, पर अब निर्देश आ गया है कि सन् 2019 से 2023 के बीच वितरित चावल और बचे हुए स्टॉक का डिटेल पुणे के सेंट्रलाइज्ड सर्वर में दर्ज किया जाए। यही नहीं, जिन दुकानदारों ने स्टॉक को छिपा कर अतिरिक्त चावल लिया, उनके खिलाफ आवश्यक वस्तु अधिनियम के अंतर्गत एफआईआर दर्ज कराई जाए। दोनों बातें आसान नहीं है। चावल का गबन हो चुका है, स्टॉक में दिख नहीं रहा है, सर्वर में अपडेट कैसे हो? अधिकांश राशन दुकान संचालकों की नियुक्ति पूर्व की भाजपा सरकार के दौरान ही हुई थी। कांग्रेस सरकार बनने पर पार्टी कार्यकर्ता इन दुकानों पर अपना कब्जा चाहते थे, लेकिन तब खाद्य मंत्री कोशिश करके भी उनका भला नहीं कर पाए। अधिकांश दुकानें यथावत भाजपा से जुड़े लोगों के पास रही। अब देखना है कि नए सिरे से हो रही जांच आगे बढ़ेगी या नहीं। पार्टी की प्रचंड जीत में थोड़ा योगदान तो इनका भी रहा होगा।
अकेले लखन लखपति, बाकी करोड़पति
छत्तीसगढ़ में सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला जिला दंतेवाड़ा है। इसके बाद कोरबा का नंबर है, जहां से विधायक लखन लाल देवांगन मंत्रिमंडल में लिए गए हैं। यह संयोग है कि देवांगन पूरे मंत्रिमंडल में सबसे कम धनी विधायक हैं। मंत्रियों के बीच वे ही अकेले हैं, जो करोड़पति नहीं। नामांकन दाखिले में दिए गए हलफनामे के मुताबिक उनकी संपत्ति 58 लाख 66 हजार है। इसके बाद लक्ष्मी राजवाड़े का स्थान है, जिन्होंने अपनी संपत्ति 1.40 करोड़ बताई है। डिप्टी सीएम अरुण साव की संपत्ति 1.70 करोड़ है, दूसरे डिप्टी सीएम विजय शर्मा की 2 करोड़। मंत्री टंकराम वर्मा 2.50 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं। केदार कश्यप के पास संपत्ति 3.60 करोड़ है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और मंत्री दयाल दास बघेल की संपत्ति एक बराबर है- लगभग 3.80 करोड़। मंत्री रामविचार नेताम के पास 6.92 करोड़ रुपये है। तीन मंत्री काफी अमीर हैं। श्याम बिहारी जायसवाल 12.09 करोड़ तथा ओपी चौधरी 12.90 करोड़ के मालिक हैं। सभी मंत्रियों में सबसे अमीर बृजमोहन अग्रवाल। उनके पास 17.49 करोड़ की संपत्ति है।
जैसे कोई स्वागत द्वार हो...
पठारी इलाकों में किसानों के घर पहुंचने पर मक्के से आंगन कुछ इस तरह सजा होता है जैसे कोई फूलों की लडिय़ों से किसी का स्वागत, अभिनन्दन कर रहा है। यह तस्वीर मैनपाट इलाके के एक किसान के घर की है। (तस्वीर / अंकुर तिवारी)
लो दब गई अफसरों की गड़बड़ी...
तत्कालीन सरकार में स्कूल शिक्षा विभाग में प्रमोशन और पोस्टिंग की वसूली का मामला खूब उछला। संयुक्त संचालक स्तर के अधिकारियों सहित 11 लोग सस्पेंड कर दिए गए। इन सभी को हाईकोर्ट से राहत मिल गई है। कोर्ट ने उन्हें क्लीन चिट नहीं दी बल्कि संचालनालय के अफसरों ने ही उनकी बहाली का रास्ता बनाया। दरअसल निलंबन के 90 दिन के भीतर उन्हें आगे की कार्रवाई करनी थी, जो नहीं की गई। हाईकोर्ट से आदेश मिलते ही सभी संयुक्त संचालकों और बाबुओं ने तो ज्वाइनिंग कर ली लेकिन इस गड़बड़ी से प्रभावित शिक्षक अब भी भटक रहे हैं। उनके पक्ष में भी हाईकोर्ट का आदेश हुआ है लेकिन उनके लिए फरमान यह है कि हाईकोर्ट के आदेश का पालन करने का आदेश शासन से आएगा तब ज्वाइनिंग दी जाएगी। अफसरों और शिक्षकों के मामले में मापदंड अलग-अलग हो गए। कोर्ट के आदेश पर अफसरों ने सीधे पदभार ग्रहण कर लिया लेकिन शिक्षकों के लिए अलग आदेश का इंतजार किया जा रहा है। कहां, पिछली सरकार ने इन अफसरों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्णय लिया था, पर अब वे वापस अपनी कुर्सी पर वापस आ गए हैं। पोस्टिंग घोटाले में नई सरकार ने अब तक कोई दिलचस्पी दिखाई नहीं दी है, इसलिए उम्मीद यही है कि जांच की फाइल अब बंद हो जाएगी।
पाने के लिए कुछ खोना पड़ेगा
धान के समर्थन मूल्य के अतिरिक्त बोनस को राजीव गांधी किसान न्याय योजना के तहत पूर्व सरकार चार किश्तों में देती थी। इसकी तीन किश्त दी जा चुकी है पर चौथी का भुगतान होना बाकी है। इस साल प्रत्येक किश्त में किसानों के पास लगभग 1800 करोड़ रुपये पहुंचे थे। यदि कांग्रेस की सरकार बनी रहती तो एक किश्त के 1800 करोड़ और उनके खाते में आते। पर सरकार बदलने के बाद इसकी गुंजाइश नहीं रह गई है। भाजपा सरकार इसे जारी रखने के मूड में नहीं है, बल्कि नई खरीदी पर अतिरिक्त राशि देने के लिए पं. दीनदयाल उपाध्याय के नाम से योजना लाने जा रही है। नई सरकार 25 दिसंबर को करीब 3800 करोड़ रुपये किसानों के खाते में डालने जा रही है। यह 2014-15 और 2015-16 का बकाया धान बोनस है, जो मोदी की गारंटी में शामिल था।
सन् 2018 के चुनाव में भाजपा की हार का एक बड़ा कारण यह बताया गया था कि रमन सरकार इसे देने से मुकर गई थी। अब उस गलती को ठीक किया जा रहा है। किसानों को पुराना पैसा तो मिल रहा है पर पिछले साल की धान बिक्री के 1800 करोड़ रुपये से वंचित भी हो गए हैं।
बिजली विभाग की तत्परता
वे दिन गए जब बिजली विभाग अखबारों में सूचना देकर बताता था कि अगले दिन मेंटेनेंस या और किसी कारण से फलां-फलां इलाके में आपूर्ति बंद रखी जाएगी। यदि बिजली संबंधी कोई जरूरी काम है तो निपटा लें। पर, अब मोबाइल फोन का दौर है। वह उपभोक्ताओं को सीधे मेसैज कर देता है। पर कई बार संदेश कटौती के बाद मिलता है। इस उपभोक्ता के पास कम से कम ठीक उस वक्त सूचना आ गई कि तत्काल बिजली कटौती शुरू की जा रही है। ([email protected])
एजी कौन?
सरकार के सर्वोच्च विधि अधिकारी यानी एडवोकेट जनरल की नियुक्ति पर मंथन हो रहा है। भूपेश सरकार के हटने के बाद एजी सतीश चंद्र वर्मा ने इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद से एजी दफ्तर में नई नियुक्तियों पर चर्चा चल रही है।
आम तौर पर एजी की नियुक्ति में सरकार राजनीतिक प्रतिबद्धता-विचारधारा को भी ध्यान में रखती है। भूपेश सरकार ने सबसे पहले नामी वकील कनक तिवारी को एजी बनाया था, लेकिन उनकी सरकार से पटरी नहीं बैठ पाई, और फिर सरकार का कहना रहा कि कनक तिवारी ने इस्तीफा दे दिया, कनक तिवारी आज भी कहते हैं कि उन्होंने कोई इस्तीफ़ा नहीं दिया था। इसके बाद सतीश चंद्र वर्मा को एजी बनाया गया। भूपेश सरकार पूरे पांच साल मुकदमों में उलझी रही, और बड़े प्रकरणों की पैरवी के लिए सुप्रीम कोर्ट से वकील बुलाए जाते रहे।
इन सबके बीच एडिशनल एजी, डिप्टी एजी तो सालभर के भीतर कई बार बदले गए। इससे पहले रमन सरकार में ऐसी स्थिति नहीं बनी थी। अब एजी दफ्तर को व्यवस्थित करने के लिए अनुभवी और काबिल वकीलों को नियुक्त करने के लिए रायशुमारी चल रही है। एजी के लिए रमन सरकार के समय के पूर्व एजी जेके गिल्डा का नाम चर्चा में है। हालांकि गिल्डा को एजी बनाए जाने के समय भी काफी विवाद हुआ था।
रमन सरकार में एडिशनल अथवा डिप्टी एजी रहे कई सीनियर वकील भी एजी की दौड़ में बताए जा रहे हैं। पूर्व एडिशनल एजी किशोर भादुड़ी, यशवंत सिंह ठाकुर के अलावा प्रफुल्ल भारत चर्चा में है। इससे परे सीनियर एडवोकेट मनोज परांजपे, अपूर्व कुरुप, आशीष श्रीवास्तव, प्रतीक शर्मा, व विवेक शर्मा के नाम की चर्चा है। संकेत है कि हफ्ते भर के भीतर एजी, और एडिशनल एजी व डिप्टी एजी बनाए जा सकते हैं।
बेचैन भावी मंत्री
कैबिनेट का जल्द विस्तार होने वाला है। सीनियर विधायकों के समर्थक काफी सक्रिय हैं। ऐसे ही एक संभावित मंत्री ने अपने करीबी समर्थकों को अभी से हिदायत दे रखी है कि मंत्री बनने के बाद भी पहले जैसी स्थिति नहीं रहेगी। रमन राज में ज्यादा कोई देखने वाला नहीं था। अब दिल्ली के लोग माइक्रोस्कोप लगाकर बैठे हैं। सीनियर विधायक तो मंत्री पद को लेकर सशंकित हैं।
इन दिनों एक पूर्व मंत्री तो काफी बेचैन दिख रहे हैं। वजह यह है कि पूर्व मंत्री का चुनाव में बजट से अधिक खर्च हो गया। अब क्षेत्रीय और सामाजिक समीकरण में उनका नाम फिट बैठता नहीं दिख रहा है। पार्टी के भीतर रोज नए-नए फार्मूले की चर्चा है। हाल ये है कि ओपी चौधरी को छोडक़र कोई भी सूची में अपना नाम होने का दावा नहीं कर पा रहा है। पिछले दिनों कैबिनेट के विस्तार के हल्ला मात्र से कई सीनियर विधायकों ने राजभवन का फोन घड़घड़ा दिया था। देखना है कि किसका नंबर लग पाता है।
साय असहाय..
भारतीय जनता पार्टी से बेहद नाराज होकर, अपने चार दशक पुराने रिश्ते को तोडक़र नंद कुमार साय ने इस साल महीने में कांग्रेस का दामन थाम लिया। सरगुजा जशपुर में वैसे तो कांग्रेस के पास 2018 में पूरी की पूरी सीट आ गई थी लेकिन 2023 के चुनाव में उनका इस्तेमाल आंदोलनरत आदिवासियों को संतुष्ट करने और धर्मांतरण के मुद्दे पर भाजपा के प्रचार को शिथिल करने के लिए किया जा सकता था। मगर इसकी जरूरत महसूस नहीं की गई। कांग्रेस प्रवेश करते ही उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा देकर छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम का अध्यक्ष बना दिया गया। यह एक सांत्वना थी। चुनाव के कुछ महीने पहले ऐसी नियुक्ति का अधिक महत्व नहीं था। भाजपा में रहते हुए मुख्यमंत्री पद का दावा करने वाले साय को बड़ा झटका तब लगा जब उन्होंने अपने प्रभाव की तीन सीटों में से किसी भी एक से टिकट देने का विकल्प पार्टी के सामने रखा, लेकिन उनके लिए जगह नहीं बनाई गई। संभवत: कांग्रेस से अलग होने का विचार वे इतनी जल्दी नहीं करते यदि उन्हें टिकट मिल जाती या फिर नहीं मिलने की स्थिति में प्रदेश में कांग्रेस दोबारा सत्ता पर काबिज हो जाती।
कांग्रेस छोडऩे की घटना पर मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने उनको अपना मार्गदर्शक और वरिष्ठ नेता बताया है। भाजपा में उनके वापस लौटने की संभावना पर भी उन्होंने सकारात्मक प्रतिक्रिया ही दी है। इधर पूर्व मंत्री अमरजीत भगत का बयान भी दिलचस्प है। उनका कहना है कि भाजपा ने साय को कांग्रेस में जासूसी के लिए भेजा था। भगत अपने बयान का शायद कुछ सबूत न दे सकें, मगर इससे यह साबित होता है कि साय को कांग्रेस में लेने से पहले भगत जैसे सरगुजा के प्रमुख नेताओं से भी कोई सलाह मशविरा नहीं किया गया था।
आखिर साय, भाजपा छोड़ कांग्रेस में और फिर बाहर निकल आने में जल्दबाजी में क्यों थे? वैसे प्रवेश के समय ही भाजपा के लोग कह रहे थे कि जाने से ज्यादा वो कितने दिन रहते हैं यह देखने वाली बात होगी।
अब सब उनके भाजपा प्रवेश को लेकर जेल बंगले से ठाकरे परिसर तक चर्चा है। साय के एक करीबी ने संगठन के नेताओं सीएम शपथ के बाद कॉल किया था। उसी रणनीति के तहत वे सीएम से रात अंधेरे मिल आए थे। लेकिन संगठन के कर्ता-धर्ता साय बिल्कुल पक्ष में नहीं है। साय के पार्टी छोडऩे पर 30 अप्रैल की शाम विष्णु देव और पवन साय, उनके सरकारी से तीन घंटे इंतजार के बाद लौट आए थे। वो भूले नहीं हैं। लेकिन आदिवासी बड़े सह्रदय होते हैं।
पति के भरोसे में सरपंची
सहसपुर लोहारा के बड़ौदा कला ग्राम की सरपंच जगवंती बाई को बर्खास्त किया गया। एक वीडियो सोशल मीडिया पर चला था जिसमें दिखाई दे रहा था कि जाति निवास प्रमाण पत्र पर सरपंच की जगह उसका पति हस्ताक्षर कर रहा था। 10 माह तक जांच चली फिर बर्खास्तगी हुई। जांच के दौरान पता चला कि सरपंच निरक्षर हैं। निश्चित रूप से उनका पति प्रभावशाली व्यक्ति होगा और उसी के नाम पर उनकी पत्नी को गांव के मतदाताओं ने वोट दिया हो। यह मामला तो कम से कम एक ऐसी सरपंच का है जिसने पढ़ाई लिखाई नहीं की है लेकिन कई पढ़ी-लिखी महिला पदाधिकारियों की भी उनके घर के पुरुष सदस्य नहीं चलने देते। सरकारी दफ्तरों की बात ही अलग है, घर के बाहर बरामदे में लगने वाली बैठक भी पुरुष संभालते हैं। छत्तीसगढ़ में ऐसे मामले आ चुके हैं, जब पति या रिश्तेदारों की दखलंदाजी के चलते पंचायत और जनपद की महिला पदाधिकारियों को न केवल बर्खास्त होने की बल्कि कोर्ट कचहरी जाने की नौबत भी आ चुकी है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ग्राम प्रधान के पति की याचिका को खारिज करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया कि पंचायत में नामांकन के समय महिला प्रत्याशियों से शपथ-पत्र लिया जाए कि वह सारा काम खुद ही करेंगी, उनका कोई पुरुष रिश्तेदार नहीं। इस बात की पूरी गुंजाइश है कि शपथ पत्र के बावजूद महिला जनप्रतिनिधियों के अधिकार पर पुरुष सदस्य कब्जा कर सकते हैं लेकिन कानून का थोड़ा सा डर तो बना रहेगा। बशर्ते यूपी का निर्देश छत्तीसगढ़ और दूसरे राज्यों में भी लागू करने के लिए कोई पहल करे।
कौन सा व्यंजन चखना चाहेंगे?
मोती सेठ को किसी के प्रकोप का डर ही नहीं है। उसने अपने लोकशाही ढाबे में बड़ी-बड़ी जांच एजेंसियों और कार्रवाई के तरीकों के नाम पर डिश रखे हैं। जैसे ईडी डिश, सीबीआई डिश, देश भक्ति डिश, निलंबन, गोलमाल डिश। विशेष वस्त्र में आने पर 25 पर्सेंट डिस्काउंट की भी बात लिखी है। यह ढाबा किस जगह है, पक्का मालूम नहीं क्योंकि सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाले ने यह बताया ही नहीं है। वैसे यह महाराष्ट्र के किसी जगह की हो सकती है।
चार पदों के लिए बड़ी मारामारी
सीएम बनने के बाद भूपेश बघेल ने चार नियुक्तियां की थीं। चार सलाहकार बनाए थे। अब ये पद एक बार बन गए तो भाजपा के लोग भी उम्मीद से हैं कि उन्हें कोई एक सलाहकार का पद मिल जाए। वेतन और कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी मिल जाएगा। चुनाव मी सक्रिय रहे कुछ लोग दौड़ में बताए जा रहे हैं। दूसरे पदों के लिए कुछ पुराने आईएएस-आईपीएस भी लगे हैं।
यही बिग बॉस है
हाल में एक सरकारी बैठक हुई। इसमें उभय पक्ष मौजूद रहे। यानी अफसर नेता। अफसर तय करके आए थे कि जो कहे, जी सर-जी सर ही बोलना है। कुछ आंकड़े बताने हैं जो मोदीजी की योजनाओं के ही हो। बैठक में होता भी यही रहा। एक अफसर जो अंग्रेजी को अच्छे जानकार थे। वो नेताओं के हर प्रश्न का जवाब इंग्लिश में दे रहे। एक नेता हिंदी में पूछ रहे थे, तो साहब अंग्रेजी में। यह देख सुन, बड़े नेता जी कुछ असहज हो रहेथे। साथ बैठे नेताजी से रहा नहीं गया।
उन्होंने एक के बाद एक साथ प्रश्न दागे। वह भी अंग्रेजी में। साहब सहसा चौंक गए। जवाब तो दिया लेकिन समझ गए कि नेताओं को कमजोर न समझा जाए। नेताजी बोल भी गए भविष्य में वार्तालाप और जवाब हिंदी में हो। बैठक खत्म हुई ,बाहर निकले अफसर कहने लगे यह बिग बॉस है ।
आखिर बन गया सीएम सचिवालय
सीएम विष्णुदेव साय ने पदभार संभालने के हफ्तेभर बाद प्रशासनिक फेरबदल किया है। फेरबदल की शुरुआत उन्होंने अपने सचिवालय से की, और अपने मन माफिक सचिव और ओएसडी के पदों पर पदस्थापना किया।
आईएएस के वर्ष-2006 बैच के अफसर पी दयानंद को उन्होंने अपना सचिव बनाया है। बाकी ओएसडी उमेश अग्रवाल, डॉ. रविकांत मिश्रा, दीपक अंधारे, साय के साथ पहले से ही काम कर रहे थे। एक अन्य ओएसडी सुभाष सिंह बिलासपुर में एसडीएम थे।
सीएम सचिवालय की पोस्टिंग काफी प्रतिष्ठापूर्ण मानी जाती है। छत्तीसगढ़ में एक-दो अफसर ऐसे भी रहे हैं जो अलग-अलग विचारधाराओं की सरकार में अपनी कार्यक्षमता के बूते पर सीएम ऑफिस में रहे हैं। उन पर किसी का लेबल नहीं लगा। इन्हीं में से एक रमन सिंह के सचिव रहे एमके त्यागी अविभाजित मप्र के सीएम सुंदरलाल पटवा के ओएसडी रहे। इसके बाद वो दिग्विजय सिंह के डिप्टी सेक्रेटरी रहे।
राज्य बनने के बाद त्यागी छत्तीसगढ़ आ गए, और फिर वो सीएस ऑफिस में रहने के बाद सीएम रमन सिंह के सेक्रेटरी रहे। इसी तरह अर्जुन सिंह, दिग्विजय सिंह के साथ काम कर चुके सुनिल कुमार पहले अजीत जोगी के सेक्रेटरी रहे। इसके बाद वो रमन सिंह के सीएम रहते चीफ सेक्रेटरी बने, और फिर बाद में उनके सलाहकार भी रहे।
आचार संहिता की उल्टी गिनती
साल 2019 के लोकसभा चुनाव की घोषणा 11 मार्च को हुई थी। इसके साथ ही आचार संहिता लागू हो गई थी। यदि इस तारीख को ही आधार मान कर चलें तो छत्तीसगढ़ सरकार के पास परफॉर्मेंस के लिए अभी करीब 80 दिन बाकी हैं। इस बीच उसे बजट भी पेश करना है। उसे महतारी वंदन, धान का 3100 रुपए प्रति क्विंटल भुगतान, बकाया बोनस का भुगतान (यह 25 दिसंबर को मिलना है।), 500 रुपए में गैस सिलेंडर, पीएससी घोटाले की जांच जैसे बड़े वादों को जमीन पर उतारना जरूरी होगा, ताकि लोकसभा में भी विधानसभा चुनाव की तरह बढ़त बनी रहे। जरूरत तेज रफ्तार से काम करने और फैसले लेने की है मगर फिलहाल तो गतिविधि धीमी दिखाई दे रही है। चुनाव परिणाम के 9 दिन बाद मुख्यमंत्री और दो उपमुख्यमंत्रियों ने शपथ ली। अब एक सप्ताह और बीत चुका, कैबिनेट का ऐलान नहीं हुआ है। समय कम है, पर सरकार डबल इंजन वाली है। इसलिए उम्मीद कर सकते हैं कि फैसले जल्दी-जल्दी ले लिए जाएंगे।
मरीज तक कैसे पहुंचे एम्बुलेंस?
प्रसव पीड़ा से कराहती महिला के लिए फोन करने पर एम्बुलेंस तो पहुंच गई, पर सडक़ नहीं होने के कारण डेढ़ किलोमीटर दूर खड़ी हो गई। तब परिजनों ने उसे खाट पर लिटाया और खेत, नाला और कच्चे रास्ते को पार करके एंबुलेंस तक पहुंचाया। घटना सरगुजा संभागीय मुख्यालय के नजदीक स्थित ग्राम रनपुर कला की है, जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने अधिकारियों के साथ अपनी पहली ही बैठक में निर्देश दिया था कि जरूरतमंद मरीज के पास आधे घंटे में एंबुलेंस पहुंचनी चाहिए। इस मामले में एंबुलेंस तो पहुंच गई। मगर वहीं तक, जहां तक सडक़ थी। मरीज तक आधे घंटे में पहुंचने के लिए रनपुर कला जैसे इलाकों में सडक़ भी तो दुरुस्त करनी पड़ेगी।
बस्तर की विश्वस्तरीय छटा
माओवादी हिंसा से प्रभावित बस्तर के नारायणपुर में एक शानदार एस्ट्रो टर्फ फुटबॉल ग्राउंड बनाया गया है। यह फीफा के मापदंडों के अनुरूप है, यानि यहां वर्ल्ड कप टूर्नामेंट भी हो सकता है। यह फुटबॉल ग्राउंड रामकृष्ण आश्रम विवेकानंद विद्यापीठ की ओर से अपने आवासीय छात्रों के लिए 4.50 करोड़ रुपए की लागत से तैयार किया गया है।
फेरबदल के बीच भी कमाई जारी
सरकार बदलते ही प्रशासनिक फेरबदल होते हैं। मगर राज्य में अब तक पुलिस और प्रशासन में फेरबदल नहीं हुआ है। चर्चा है कि फेरबदल में देरी कर जिलों में अफसरों ने खूब फायदा उठाया, और डीएमएफ और दूसरे कई कार्यों का तेजी से भुगतान किया। इस सिलसिले में कई जगह शिकायतें भी हुई है। बीजापुर में तो पूर्व मंत्री महेश गागड़ा खुले तौर पर कलेक्टर पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा रहे है, और इसकी सीएस से शिकायत भी कर चुके हैं।
न सिर्फ प्रशासन बल्कि पुलिस के आला अफसर भी तबादलों को लेकर पीछे नहीं है। कुछ जिलों के कप्तान ने टीआई, और अन्य कर्मचारियों के तबादले किए हैं। तबादलों के इस खेल में भारी लेन-देन की खबर है। कुछ शिकायतें भाजपा के प्रमुख नेताओं तक पहुंची है। आगे क्या होता है, यह देखना है।
अयोध्या, कौन जाएँगे, कौन नहीं
अयोध्या में जनवरी में राम मंदिर के उद्घाटन की तैयारी चल रही है। इस मौके पर देशभर के करीब 6 हजार विशिष्ट अतिथियों, और मठ के प्रमुख साधु-संतों को आमंत्रित किया जा रहा है। छत्तीसगढ़ के भी प्रमुख महंतों को आमंत्रित किया गया है। 20 से 22 जनवरी तक होने वाले मंदिर में रामलला प्राण प्रतिष्ठा समारोह में पीएम नरेंद्र मोदी, और राज्यों के राज्यपाल-सीएम भी रहेंगे। सीएम विष्णुदेव साय भी दो दिन अयोध्या में रहेंगे।
विशिष्ट अतिथियों को आमंत्रित करने राम मंदिर ट्रस्ट के सचिव चंपक राय भी रायपुर आए थे। उन्होंने दूधाधारी मठ के प्रमुख महंत रामसुंदर दास सहित अन्य प्रमुख संतों को न्योता दिया है। बताते हैं कि मंदिर के उद्घाटन मौके पर राम मंदिर आंदोलन से जुड़े पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवानी, और मुरली मनोहर जोशी नहीं रहेंगे। यह कहा गया है कि दोनों की उम्र 90 वर्ष से अधिक हो गई है, और उन्हें चलने-फिरने में दिक्कत है। इससे परे प्रदेश भाजपा संगठन भी जनवरी माह में कई कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है। कुल मिलाकर प्रदेशभर में धार्मिक माहौल रहेगा।
फिर नये जिलों की मांग..
कांग्रेस सरकार जिन मांगों को पूरा नहीं कर पाई, उन पर विपक्ष में रहते भाजपा आश्वासन देते चली गई। अब पूरा करने की जिम्मेदारी उस पर है। बीते पांच साल में भूपेश बघेल सरकार ने कई नए जिलों का गठन किया था। कुल 6 नए जिले बने। सन् 2020 में गौरेला पेंड्रा मरवाही, उसके बाद मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर, मोहला-मानपुर-अंबागढ़ चौकी, सारंगढ़-बिलाईगढ़, खैरागढ़-छुईखदान-गंडई और सक्ती। इस दौरान अनुविभाग और तहसीलों की संख्या भी बढ़ाई गई। अब प्रदेश में 33 जिले हैं, पर नए जिलों की मांग पूरी नहीं हुई है। बस्तर में अंतागढ़ और भानुप्रतापपुर को अलग जिला बनाने की मांग उठती रही। रायपुर संभाग में भाटापारा को बलौदा बाजार से अलग कर नया जिला बनाने तथा बिलासपुर संभाग में कटघोरा और पत्थलगांव को जिला बनाने के आंदोलन चलते रहे हैं। विपक्ष में रहते हुए प्राय: सभी जगहों पर आंदोलनों को भाजपा ने समर्थन दिया था। अब जब भाजपा की सरकार बन गई है, यह मांग फिर उठने लगी है। विधायक गोमती साय को भी अपने स्वागत, अभिनंदन के कार्यक्रमों में कार्यकर्ताओं को आश्वस्त करना पड़ रहा है कि उनकी सरकार पत्थलगांव को जिला बनाएगी। मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय भी पास के कुनकुरी से ही प्रतिनिधित्व करते हैं। हो सकता है पत्थलगांव नया जिला सबसे पहले बने, पर इसकी संभावना लोकसभा चुनाव से पहले कम दिखाई दे रही है। नया जिला बनने से वह क्षेत्र तो संतुष्ट हो जाता है, पर कतार में लगे दूसरे नाराज हो जाते हैं।
विलुप्त होती जनजातियों का पलायन
सरगुजा, रायगढ़, जशपुर और कोरबा जिले के दुर्गम क्षेत्रों में रहने वाले बैगा, बिरहोर, पहाड़ी कोरवा जनजातियों की आबादी लगातार घट रही है। इसकी वजह कम प्रजजन दर, स्वास्थ्य सुविधाओं के न होने की वजह सामने आती रही है। इनके संरक्षण के लिए छत्तीसगढ़ में करीब आधा दर्जन प्राधिकरण काम कर रहे हैं, जिन्हें करोड़ों का बजट मिलता है। मगर, उन तक बजट का लाभ नहीं पहुंच रहा है। अब इनकी आबादी एक और कारण से घट रही है। वह है पलायन। सरकार की योजनाएं उन तक नहीं पहुंच रही, मगर दूसरे राज्यों के दलाल जंगल के भीतर बसे उनके गांवों तक पहुंच रहे हैं। ऐसे ही 15 मजदूरों को यूपी के बागपत जिले से सरगुजा प्रशासन ने अभी छुड़ाया है। इनमें से 6 की दिल्ली से वापसी हो रही है। छत्तीसगढ़ की विशेष संरक्षित जनजातियां अपने गांव-टोले में ही जीवन-यापन करना पसंद करते हैं। उनकी आवश्यकताएं भी बहुत अधिक नहीं रहती। परिस्थिति गंभीर ही रही होगी कि उन्होंने दूसरे राज्यों में काम के लिए जाने का रास्ता चुना। अब तो राष्ट्रपति आदिवासी हैं और प्रदेश के मुख्यमंत्री भी...। उम्मीद की जा सकती है कि इन संरक्षित जातियों के जीवन में इतना सुधार तो आए कि रोजगार की तलाश में भटकना मत पड़े।
प्रवासी नन्हा पक्षी...
शीत काल में छत्तीसगढ़ के प्रवास पर आने वाली सबसे नन्हे परिंदों में से एक- वेस्टर्न यलो वागटेल । सिर्फ 17 सेंमी इसका आकार होता है। इस प्रजाति के कुछ और पक्षी भी इन दिनों छत्तीसगढ़ में विहार कर रहे हैं। यह तस्वीर बेमेतरा के पास गिधवा पक्षी विहार से प्राण चड्ढा ने ली है।
विजय बघेल के लिए ?
दुर्ग के सांसद विजय बघेल भले ही पाटन में सीएम भूपेश बघेल के खिलाफ चुनाव हार गए, लेकिन पार्टी के भीतर उनकी हैसियत कम नहीं हुई है।
सुनते हैं कि विजय बघेल से पिछले दिनों केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संसद भवन में काफी देर तक चर्चा की है। बघेल ने सीएम को कड़ी टक्कर दी थी। संकेत साफ है कि विजय को प्रदेश भाजपा अथवा पार्टी का राष्ट्रीय पदाधिकारी बनाया जा सकता है।
वैसे भी पूर्व सीएम डॉ.रमन सिंह के पद छोडऩे के बाद उपाध्यक्ष का एक पद खाली हो गया है। विजय बघेल, अरूण साव और सुनील सोनी के बीच अच्छी ट्यूनिंग है। तीनों एक-दूसरे को सहयोग करते हैं। अरूण डिप्टी सीएम हो चुके हैं, और अब विजय को क्या मिलता है यह देखना है।
सीएम सचिवालय के लिए अटकलें
सीएम के प्रमुख सचिव के लिए जो दो नाम चर्चा में है उनमें 1997 बैच के अफसर सुबोध सिंह, और निहारिका बारिक सिंह हैं। सुबोध सिंह राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी के महानिदेशक हैं। वो केन्द्रीय खाद्य विभाग में संयुक्त सचिव रह चुके हैं।
सुबोध सिंह रायपुर, बिलासपुर, और रायगढ़ के कलेक्टर भी रहे हैं। रायगढ़ कलेक्टर रहते उनकी तत्कालीन सांसद और वर्तमान सीएम विष्णुदेव साय से अच्छी ट्यूनिंग रही है। सुबोध सरकार के अलग-अलग विभागों में काम कर चुके हैं। हालांकि अभी उनकी प्रतिनियुक्ति की अवधि खत्म होने में चार महीने बाकी हैं। चर्चा है कि सीएम उन्हें देर-सबेर सचिवालय में ला सकते हैं।
दूसरी तरफ, निहारिक बारिक सिंह भी केन्द्र सरकार में पांच साल काम कर चुकी हैं। वो राज्य में सेक्रेटरी हेल्थ भी रही हैं। अभी प्रशासन अकादमी की डीजी हैं। अब उनके नाम की चर्चा भी चल रही है। सचिव के लिए पी.दयानंद और आईपीएस राहुल भगत का नाम चर्चा में है। हालांकि सीएम ने अभी पूर्व सीएम के सीनियर अफसरों को नहीं बदला है, और उन्हें यथावत काम करने के लिए कहा है।
सरल रहने का पहाड़ जैसा भार...
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय पर की जा रही हर रिपोर्ट में उनके सहज, सरल व्यक्तित्व का खास जिक्र किया जा रहा है। इतना अधिक कि शायद मोदी, शाह को भी चिंता हो रही होगी कि डांट-फटकार के बिना यह सरकार कैसे चलेगी?
2018 में जब संघर्ष, त्याग, तपस्या के बाद कांग्रेस ने प्रदेश संभाला, तब भूपेश बघेल को लेकर भी कुछ-कुछ इसी तरह का विचार लोगों का था। वे आम लोगों के लिए सुलभ थे। महीने भर तक तो वे किसी का भी फोन खुद ही उठा लेते थे। पर बाद में उन्हें सख्त होना पड़ा।
राजधानी के एक अखबार ने डॉ. रमन सिंह के सीएम रहने के दौरान बघेल को खूब तरजीह दी। इस वजह से सीएम की नाराजगी भी झेली, पुलिस और कोर्ट, कचहरी हुई। उसके संपादक जो अब छत्तीसगढ़ में नहीं हैं, वे बताते हैं कि पूरे पांच साल बघेल ने उनका फोन तो उठाया ही नहीं, एसएमएस का जवाब देना भी जरूरी नहीं समझा। कई करीबी बताते हैं, ऐसी सख्ती हो गई थी कि उनसे मिलने का समय लेना नामुमकिन था। कुछ माह बाद जेम्स एंड ज्वेलरी पार्क के लिए जमीन का आवंटन नहीं होने पर बघेल का तेवर दिखा, जब एक महिला आईएएस से भरी बैठक में नाराज हुए, और फिर उनका विभाग ही बदल दिया। भेंट मुलाकात में भी देखा गया कि न केवल पटवारी, तहसीलदार बल्कि सवाल करने वाले आम लोगों से भी नाराज हुए। हालांकि बाद में खेद भी जताया। पता नहीं सहज, सरल वाली छाप का बोझ साय कब तक उठाए रखेंगे।
यात्री ट्रेनों की दो तस्वीरें...
एक तस्वीर इंडियन रेलवे की है, दूसरी भारतीय रेल की। इंडियन रेलवे की ट्रेन जब शुरू होती है तो उसका खूब प्रचार होता है, भले ही उसकी सीटें भरने की हैसियत आम लोगों की नहीं होती, उसे खाली दौड़ा दी जाती है। भारतीय रेल जब चलती है तो आम लोग भेड़ बकरियों की तरह सवार हो जाते हैं, पर इसका प्रचार रेलवे नहीं करती। यात्री टिकटों का 57 प्रतिशत भार खुद वहन करने का रोना रोने वाले रेलवे अफसरों को बताना चाहिए कि इन दोनों में से किस ट्रेन के परिचालन पर ज्यादा खर्च आया और किस ट्रेन से उसे अधिक आमदनी हुई।
बंध गए हाथ रमन के..
सन् 2018 से 2023 के बीच पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने बीते कार्यकाल के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर रोजाना तीर पर तीर छोड़े। अब जब उन्हें सर्वसम्मति विधानसभा का स्पीकर चुन लिया गया है, उनकी सीमा तय हो गई है। उनके पास बीजेपी की तरफदारी करने का अधिकार नहीं रह गया है। उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा भी दे दिया है। अब वे पक्ष विपक्ष सबके मुखिया हैं। नए नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरणदास महंत बीते 5 साल तक स्पीकर थे। उन्होंने सदन के भीतर और बाहर इस मर्यादा का बखूबी ध्यान रखा। मगर अब, डॉ. महंत ने साफ कह दिया है कि नेता प्रतिपक्ष के रूप में भाजपा मुझे दूसरी सख्त भूमिका में देखेगी। उन्होंने एक किसान की आत्महत्या और नक्सली हमले में जवान की मौत को लेकर सरकार की खिंचाई करके इसकी शुरूआत भी कर दी। भाजपा को डॉ. महंत के हमलों का जवाब देने के लिए डॉ. रमन सिंह की तरह ही तेवर वाले किसी नेता को मंत्रिमंडल में रखना होगा।
अफसर थोड़े रिलैक्स
2018 में कांग्रेस की सरकार बदलते ही पहला सबसे बड़ा बदलाव हुआ था सीएम सचिवालय में। तत्कालीन प्रमुख सचिव अमन सिंह वैसे भी संविदा थे, इसलिए उन्हें तो जाना ही था। सीएम सचिवालय में गौरव द्विवेदी आए थे। यही पहला आदेश था। इसके बाद डीजीपी बदले थे। इस बार ऐसा नहीं हुआ। सभी अधिकारी पहले की तरह काम कर रहे हैं। किसी के साथ दुर्भावना से बात नहीं हो रही। बल्कि महोदय जैसा संबोधन भी मिल रहा है। अब ऐसा रहेगा तो अफसर रिलैक्स तो होंगे ही। ([email protected])
प्रोटेम का टोटका
प्रदेश में अब तक जितने भी प्रोटेम स्पीकर हुए हैं, वो बाद में मंत्री नहीं बन पाए। हालांकि प्रोटेम स्पीकर की भूमिका स्पीकर, और नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाने तक ही सीमित रहती है। मंत्री पद से जुड़ी कोई बाध्यता भी नहीं है। बावजूद इसके प्रोटेम स्पीकर को मंत्री बनने का मौका नहीं मिला। अब जब रामविचार नेताम प्रोटेम स्पीकर बनाए गए हैं, तो अंदाजा लगाया जा रहा है कि पूर्व में चली आ रही धारणा बदल सकती है।
नेताम पांच बार के विधायक हैं। उन्हें कैबिनेट में जगह मिल सकती है। हालांकि उनसे पहले के प्रोटेम स्पीकर को मंत्री बनने का मौका नहीं मिल पाया था। राज्य बनने के बाद महेन्द्र बहादुर सिंह प्रोटेम स्पीकर बनाए गए थे। उन्हें मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिल पाई। इसके बाद राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल प्रोटेम स्पीकर रहे, उस समय कांग्रेस की सरकार ही बदल गई थी। ऐसे में शुक्ल के मंत्री बनने का सवाल ही नहीं था।
इसके बाद की विधानसभा में बोधराम कंवर ने प्रोटेम स्पीकर के रूप में नवनिर्वाचित विधायकों को शपथ दिलाई। उस समय भी कांग्रेस सत्ता से बाहर रही इसलिए सीनियर कांग्रेस विधायक कंवर को मौका नहीं मिला। वर्ष-2013 में सीनियर विधायक सत्यनारायण शर्मा को प्रोटेम स्पीकर बनाया गया। तब भी कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई थी, और सत्यनारायण शर्मा मंत्री बनने से रह गए। वर्ष-2018 में 15 साल की भाजपा की सरकार हट गई, और कांग्रेस की सत्ता में वापिसी हुई। इसके बाद कांग्रेस विधायक रामपुकार सिंह प्रोटेम स्पीकर बनाए गए, लेकिन रामपुकार के लिए मंत्रिमंडल में जगह नहीं बनी।
लोक निर्माण या लोक व्यवधान
राजधानी का सबसे व्यस्ततम रिंग रोड में रिंग रोड एक को गिना जाता है। टाटीबंद से सरोना, रायपुरा , भाठागांव, पचपेड़ी नाका से तेलीबांधा तक इस रिंग रोड का बहुत बुरा हाल है। सर्विस रोड में बड़े शो रूम की गाडिय़ां और ट्रक खड़े रहते हैं।
लेकिन सरकार के किसी विभाग को इससे कोई वास्ता नहीं है, परिवहन विभाग को फुर्सत नहीं है। सर्विस रोड में रोज स्कूली बच्चे बड़ी संख्य़ा में आटो और स्कूटी से गुजरते हैं। लोक निर्माण विभाग को इसके सर्विस लेन में मुरम डालना था, मुरम तो नहीं मिट्टी उँडेल दी गई है। दीपावली के पहले सडक़ पर मिट्टी के 20 ढेर लगाए गए थे वे अब तक बराबर नहीं किये गए हैं। सर्विस लेन का आधा हिस्से में ढेर लगा है। वाहन दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं। लगता है कि अफसरों भी मंत्रिमंडल के इंतज़ार में हैं।
बगावत की आहट एमपी से...?
राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री पद पर भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने नये चेहरों को मौका दिया। राजस्थान के मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा तो पहली बार ही विधानसभा पहुंचे हैं। इन राज्यों में क्रमश: वसुंधरा राजे सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान और डॉ. रमन सिंह मुख्यमंत्री रह चुके हैं। चुनाव अभियान के दौरान ही भाजपा नेतृत्व ने बड़े बदलाव का संकेत दे दिया था। वसुंधरा राजे के अनेक समर्थक विधायकों की टिकट पहले चरण में काट दी गई। हालांकि दूसरी बार की सूची में कई करीबियों का नाम भी आया। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी ऐसा हुआ। मोदी ने इन तीनों राज्यों के प्रचार में किसी भी क्षेत्रीय नेता का उल्लेख अपने चुनावी दौरों में नहीं किया, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह का भी। वे सिर्फ मोदी की गारंटी की बात कर रहे थे।
मुख्यमंत्री चयन के बाद चौहान ने भी बाकी नेताओं की तरह खुद को पार्टी का अनुशासित कार्यकर्ता बताते हुए नेतृत्व के निर्णय को स्वीकार करने की बात कही, लेकिन पद से हटने के तुरंत बाद वे प्रदेश में दौरे कर रहे हैं। अपने सोशल मीडिया पेज पर वे लगातार ऐसी फोटो और वीडियो डाल रहे हैं, जिनमें महिलाएं भावुक होकर उनसे गले लग रही हैं, रो रही हैं। चौहान बयान भी दे रहे हैं कि मुझे मामा और लाडली बहनों के भाई का फर्ज निभाने से कोई नहीं रोक सकता। जब यह चर्चा निकली कि उनको पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया जा सकता है, चौहान ने कह दिया कि वे मध्यप्रदेश छोडक़र कहीं नहीं जाएंगे। चौहान ने लाडली बहना योजना पर चुनाव को फोकस किया था। भाजपा को इसका चुनाव में बहुत लाभ मिला। इसे महतारी वंदन योजना के नाम से छत्तीसगढ़ के संकल्प पत्र में भी शामिल किया गया, यहां भी फायदा हुआ।
ऐसा कहा जा सकता है कि इन तीनों राज्यों में सिर्फ मध्यप्रदेश ही ऐसा है जहां से मुख्यमंत्री को हटाया गया। बाकी दोनों में तो पूर्व मुख्यमंत्रियों का दावा था। शायद चौहान इसीलिए व्याकुल दिख रहे हैं। चौहान ने अपने सोशल मीडिया पेज पर दल का कोई चिन्ह नहीं रखा, सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री लिख रखा है। वे अपनी नाराजगी छिपा नहीं पा रहे हैं। शायद छला हुआ महसूस कर रहे हैं। सवाल यह आ रहा है कि क्या वे उसी राह पर चलने जा रहे हैं, जिस पर कभी उमा भारती और कल्याण सिंह गए थे। राजस्थान में वसुंधरा राजे ने अपने समर्थक विधायकों के साथ भोज का आयोजन कर नेतृत्व पर दबाव बनाया था, पर बाद में भजनलाल को आशीर्वाद दिया। छत्तीसगढ़ में स्पीकर बनाये जाने के निर्णय पर डॉ. रमन सिंह ने कहा था कि मुझसे पूछ कर नहीं दिया गया है पद, पर दिया गया है तो जिम्मेदारी निभाएंगे। यानि तीनों प्रदेशों के नेतृत्व परिवर्तन में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के बीच ‘बेहद खुशी’ जैसी बात कहीं नहीं है। मंत्रिमंडल के गठन के बाद यह और स्पष्ट होगा।
तस्करी के लिए सडक़ बना दी...
छत्तीसगढ़ के जशपुर, रायगढ़, महासमुंद, गरियाबंद, धमतरी, कोंडागांव, बस्तर (जगदलपुर) और सुकमा जिले ओडिशा राज्य से जुड़ते हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद हर साल सीजन में हजारों क्विंटल धान ओडिशा के जिलों से तस्करी कर छत्तीसगढ़ की सोसाइटियों में खपाया जाता है। यह शिकायत इस साल भी है। चेक पोस्ट बनाये गए हैं लेकिन कच्चे रास्तों से सीमा पार कर ली जाती है। जो धान भारी वाहनों में भरकर लाया जाता है, उसके लिए बिचौलिये चेक पोस्ट पर तैनात कर्मचारियों से साठगांठ भी कर लेते हैं। इस बार तो चुनाव के चलते करीब एक माह तक धान तस्करी पर निगरानी भी ठीक तरह से नहीं हुई। वैसे कार्रवाई भी हो रही है। हाल के कुछ दिनों में ही एक हजार क्विंटल से अधिक तस्करी का धान जब्त किया गया है। पर यह तस्करी का छोटा सा टोकन जैसा हिस्सा है। अभी एकड़ पीछे 15 क्विंटल धान खरीदने की ही छूट है। जब सरकार 21 क्विंटल खरीदने लगेगी तो किसानों के पंजीयन का बिचौलिये और अधिक इस्तेमाल कर सकेंगे। धान तस्करी का यह कारोबार कितना बड़ा है, उसका अंदाजा इस सडक़ से लगाया जा सकता है। ओडिशा के बरगढ़ जिले की सोहेला तहसील के झांजी पहाड़ पर यह कच्ची सडक़ जेसीबी मशीन से तैयार की गई है। दावा है कि यह सडक़ जंगल काटकर अवैध रूप से तैयार की गई है, ताकि तस्करी का धान आसानी से छत्तीसगढ़ पहुंचाया जा सके।