राजपथ - जनपथ
रेत माफिया में कार्रवाई, विधायक पर ही एफआईआर
राज्य में रेत माफियाओं का आतंक बढ़ते ही जा रहा है। नदियों में अवैध खनन किया जा रहा है। नदियों में जितना पानी नहीं, उससे 100 गुना ज्यादा रेत निकाला जा रहा है। इसमें बड़े माफिया सक्रिय है। उनके पीछे राजनेता है। कुछ माह पहले खनिज का अमला राजधानी के एक रेत घाट में कार्रवाई करने गया था। अमला कार्रवाई कर रही थी, तभी रेत माफियाओं के गुर्गे ने हमला कर दिया।
खनिज विभाग के अमले को दौड़ा दौड़ाकर पीटा गया। इसमें एक दर्जन लोग घायल हो गए। राजधानी हडक़ंप मच गया। इसकी पुलिस में शिकायत हुई। माफियाओं के गुर्गों के खिलाफ केस दर्ज किया गया। खनन करने वाली मशीन और गाड़ी जब्त की गई। दो पोकलेन का नंबर भी एफआईआर में लिखा गया। जब पोकलेन की जानकारी आरटीओ से आई तो पुलिस भी चौंक गई।
पोकलेन माननीय विधायक के नाम पर था। इधर विधायक कार्रवाई रुकवाने के लिए जोर आजमाइश करने लगे। सीएम हाउस तक गए। हाउस से जानकारी मांगी तो बताया कि विधायक के लोग अवैध रेत खनन कर रहे है। इसमें सीधा उनका भी कनेक्शन हैं। फिर क्या विधायक उल्टे पाँव लौट गए। आज भी विधायक जी खिलाफ केस दर्ज है, लेकिन कार्रवाई नहीं हुई।
घर से वोट में दिलचस्पी क्यों नहीं ?
बुजुर्ग और दिव्यांग मतदाताओं को वोट देने के लिए बूथ आने में होने वाली दिक्कतों को ध्यान में रखते हुए चुनाव आयोग ने पिछले विधानसभा चुनाव में एक नया कदम उठाया। उन्हें घर बैठे मतदान की सुविधा दी गई। लोकसभा चुनाव में भी यह सुविधा मिली है। सिर्फ यह किया गया कि इस बार बुजुर्गों की उम्र सीमा 80 से बढ़ाकर 85 कर दी गई। पर विकलांगता को 40 प्रतिशत ही रखा गया। तीसरे चरण में जिन 7 लोकसभा सीटों पर चुनाव हैं, उसमें ऐसे दिव्यांगों और बुजुर्गों की कुल संख्या एक लाख 91 हजार 196 है, जो घर से वोट डालने के पात्र थे। मगर, इसके लिए केवल 2927 आवेदन मिले। तीन मई तक इनके घर जाकर वोट डाले जाने थे, तब तक वोटिंग केवल 2687 लोगों ने की। पहले और दूसरे चरण में भी यही स्थिति थी। पहले चरण में शामिल बस्तर में 16 हजार 190 मतदाता घर से वोट डालने के पात्र थे। पर आवेदन कुल 254 ही मिले और उनमें से 223 ने वोट डाले। दूसरे चरण में जिन तीन सीटों पर चुनाव हुए उनमें 67 हजार 950 पात्र मतदाता थे, पर आवेदन 1346 मतदाताओं के आए और केवल 1267 लोगों ने वोट दिए। कुल मिलाकर योजना की सफलता एक प्रतिशत भी नहीं है।
सवाल यह है कि क्या बुजुर्गों और दिव्यागों में चुनाव को लेकर कोई उत्साह नहीं है, या फिर प्रक्रिया में ही कोई खामी है? छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में बिलासपुर की एक बुजुर्ग महिला मतदाता ने कुछ दिन पहले जिला निर्वाचन अधिकारी के खिलाफ केस लगा दिया था। उनका कहना था कि घुटनों में दर्द के कारण वह मतदान केंद्र नहीं पहुंच सकती। इसे देखते हुए उन्होंने घर से मतदान के लिए आवेदन दिया था लेकिन उस पर विचार नहीं किया गया। हाईकोर्ट में पेशी हुई तो निर्वाचन विभाग की ओर से बताया गया कि आवेदन तो मिला है, लेकिन निर्धारित प्रपत्र में नहीं है। हाईकोर्ट ने महिला के पक्ष में निर्णय दिया। यह एक सजग मतदाता का मामला है, पर अधिकांश अशक्त मतदाताओं को यह सुविधा नहीं है। अस्थायी बूथ उनके घर तक तभी लाया जाएगा, जब वह निर्वाचन दफ्तर में आवेदन दे। कई बुजुर्ग और दिव्यांगों के पास ऐसे सहायक नहीं होंगे जो इस कार्य में मदद करें। यदि सहायक हैं तो फिर वे तो बूथ में वोट देने के लिए ही जाना क्यों पसंद नहीं करेंगे?
घोड़े को नचाकर चुनाव प्रचार...
भीषण गर्मी में मतदाताओं का क्या, कार्यकर्ताओं को भी घर से निकल पाना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में प्रचार की नई-नई तरकीब ईजाद की जा रही है। ये हैं बड़वानी मध्यप्रदेश से आने वाले भाजपा सरकार के पूर्व मंत्री 71 वर्षीय बालकृष्ण पाटीदार। वे खरगोन लोकसभा सीट के पार्टी प्रत्याशी गजेंद्र पटेल के प्रचार में घोड़े पर निकल रहे हैं। छोटी-छोटी नुक्कड़ सभाएं लेते हैं, सभाओं के लिए भीड़ जुटने में देर नहीं लगती। वे किसी भी गांव के चौराहे पर घोड़ा लेकर पहुंच जाते हैं और उसे नचाने लगते हैं। भीड़ जुट जाती है और वे वोट मांग लेते हैं।
नगरीय निकायों को सबक
प्रदेश के अधिकांश नगरीय निकायों में बनाए गए सामुदायिक भवनों की स्थिति कभी देखने जाएं तो पता चलता है वहां गंदगी पसरी है। बल्ब, ट्यूबलाइट, पंखे आधे काम कर रहे हैं आधे बंद हैं। शौचालय में पानी नहीं, सफाई नहीं। इनके निर्माण का उद्देश्य होता है वार्ड और शहर के लोगों को कम खर्च पर मांगलिक कार्य करने के लिए जगह मिल जाए। लोग इनकी दुर्दशा के कारण या तो किराये के होटल, गार्डन में जाने के लिए मजबूर होते हैं, या फिर अपने घर के सामने या छत पर टेंट लगा लेते हैं। यदि कोई किराये पर ले भी लेता है तो नगर निगम, पालिकाओं के अधिकारियों की रवैया ऐसा होता है, मानो ये सुविधा मुफ्त दी जा रही हो। मगर, नगर निगम अंबिकापुर के एक जागरूक नागरिक ने रास्ता दिखाया है। उन्होंने शादी के कार्यक्रम के लिए सरगुजा सदन को किराये पर लिया। कई राज्यों से मेहमान आए थे। जगह-जगह गंदगी, टूटी फूटी लाइट, आधे से ज्यादा पंखे बंद..। केयर टेकर और सफाई के लिए मात्र एक महिला कर्मचारी। नगर निगम के प्रभारी ने सूचना देने के बाद भी सुविधा बहाल नहीं की। बाहर से आए मेहमान बेहद परेशान हुए, मेजबानों की फजीहत हुई। नागरिक ने नगर-निगम के खिलाफ स्थायी लोक अदालत में केस कर दिया। नगर निगम आयुक्त, राजस्व अधिकारी और लिपिक के खिलाफ अदालत ने दो लाख रुपये की क्षतिपूर्ति देने, वाद का खर्च देने तथा किराये की रकम लौटाने का आदेश दिया है।
पूरे प्रदेश में जिन लोगों को भी आये दिन ऐसी असुविधा होती है, वे नगर निगम के अधिकारियों को इस खबर के बारे में बता सकते हैं और स्थिति नहीं सुधरती तो हर जिले में मौजूद स्थायी लोक अदालत में परिवाद ला सकते हैं।