राजपथ - जनपथ
हार-जीत काफी कम मतों से
मतदान के बाद जीत-हार को लेकर कांग्रेस, और भाजपा नेताओं के अपने-अपने दावे हैं। आखिरी की 7 सीटों में से कोरबा और जांजगीर-चांपा पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है।
कांग्रेस के रणनीतिकार पाली तानाखार, रामपुर, मरवाही और भरतपुर-सोनहत में भारी पोलिंग से गदगद हैं। पिछले चुनाव में विशेषकर पाली तानाखार और रामपुर ने कांग्रेस की नैया पार लगा दी थी। हालांकि भाजपा के लोग भी यहां बढ़त का दावा कर रहे हैं।
दूसरी तरफ, जांजगीर-चांपा सीट पर आखिरी के दिनों में भाजपा ने काफी ताकत झोंकी थी, और चर्चा है कि कुछ हद तक माहौल को अपने पक्ष में करने में कामयाब रही है।
कांग्रेस के लोग इस सीट पर भी जीत के दावे कर रहे हैं। कुल मिलाकर कोरबा, जांजगीर-चांपा के अलावा राजनांदगांव, और कांकेर सीट ऐसी है जहां हार-जीत काफी कम मतों से होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
नेता की रेत
भूपेश सरकार में अवैध रेत खनन के प्रकरण सुर्खियों में रहे हैं। उस समय कांग्रेस विधायकों पर संलिप्तता के आरोप लगे थे। सरकार बदलने के बाद भी अवैध रेत खनन को लेकर शिकवा-शिकायतें कम होने का नाम नहीं ले रही है। यद्यपि साय सरकार ने विधानसभा में कुछ शिकायतों पर सख्त कार्रवाई की घोषणा की थी।
ऐसी ही एक शिकायत पर राजनांदगांव जिले के सत्तारूढ़ दल के नेता की रेत से भरी गाडिय़ों को पुलिस ने रोक लिया, और दबाव में आने बिना कार्रवाई कर दी। यह कार्रवाई कांकेर जिले के एक थाने में हुई है। चर्चा है कि शिकायतकर्ता भी अपने ही थे। ऐसे में पुलिस ने कार्रवाई में देर नहीं लगाई। देर सवेर मामला राजनीतिक रंग ले सकता है।
कलेक्टर-एसपी का रिपोर्ट कार्ड
राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद भाजपा ने कुछ आईएएस-आईपीएस को ठिकाने लगाया। कुछ को फील्ड पर नियुक्ति भी दी। अब चुनाव के दौरान सबका रिपोर्ट कार्ड चेक किया जाएगा। जो भी परिणाम होंगे, उसके आधार पर आकलन किया जाएगा कि उनका काम कैसा था। जाहिर है कि जो फील्ड पर हैं, वे लूप लाइन में लौटना नहीं चाहेंगे। इसलिए चुनाव आयोग के प्रोटोकॉल से किसी तरह बच-बचाकर लगे हुए हैं। बाकी चुनाव परिणाम से पता चल जाएगा कि आने वाले समय में कौन-कौन टाटा बाय-बाय होने वाले हैं।
नोटा भी मैदान में उतर गया..
ईवीएम में नोटा का विकल्प देने के बाद शायद पहला मौका होगा जब नोटा को वोट देने के लिए प्रचार अभियान चलाया जा रहा है। इंदौर में कांग्रेस की स्थिति उस समय अजीब हो गई थी जब उसके अधिकृत प्रत्याशी अक्षय बम ने नाम वापस ले लिया। कांग्रेस का कोई डमी उम्मीदवार भी नहीं था। सुनने में आया कि भाजपा ने दूसरे कई उम्मीदवारों की भी नाम वापसी कराने की कोशिश की थी। अब भाजपा के मुकाबले के लिए मुख्य प्रतिद्वन्द्वी कांग्रेस का उम्मीदवार मैदान में जरूर नहीं लेकिन सूरत की तरह यहां निर्विरोध निर्वाचन नहीं हो रहा है। दो बातें पता चलेगी, पिछली बार 5 लाख से ज्यादा लीड लेकर जीतने वाले भाजपा उम्मीदवार शंकर लालवानी ने चुनाव जीता था। इस बार उन्हें बम्पर मार्जिन से जीत मिल सकती है। दूसरी यह बात कि पिछली बार 0.02 प्रतिशत मतदाता ही थे, जिन्होंने नोटा में वोट दिया था। इस बार क्या नोटा में भी बंपर वोटिंग पड़ेगी?
उत्सव तो इनका भी था...
मतदान उत्सव के दिन प्रशासन को बड़ी संख्या में गाडिय़ों की जरूरत पड़ी। किल्लत कितनी हो गई थी इसका एक नमूना भई छत्तीसगढ़ में देखने को मिला। बिलासपुर में ड्यूटी कर रहे अर्ध सैनिक बलों के लिए खाना भिजवाने के लिए कचरा उठाने वाली गाड़ी ही लगा दी गई। निर्वाचन के काम में सारी सरकारी गाडिय़ां लगी रहीं, ट्रैवल्स एजेंसियों से भी गाडिय़ां बुक करा ली गईं, केंद्र सरकार के उपक्रमों से भी वाहन मंगाए गए। उसके बाद भी गाडिय़ां कम पड़ गई। बहुत सी पेट्रोलिंग टीमों के लिए गाड़ी मिलना मुश्किल हो गया तो थानों को व्यवस्था करने की जिम्मेदारी दी गई। पुलिस जवान सडक़ों पर तैनात होते थे। ऐसी हर चारपहिया, वाहन खासकर जीप और छोटे मालवाहक रोक लिए गए जो खाली थे। गाड़ी के कागजात रख लिए गए और 12-14 घंटे का काम सौंप दिया गया। कहा गया, काम खत्म होने के बाद थाने में आकर गाड़ी के कागज ले जाना। कुछ गाड़ी मालिक दुखी नजर आए। उनका कहना था कि ठीक है, चुनाव जैसे जरूरी काम में उनकी गाड़ी कुछ घंटे के लिए पुलिस ने रख ली। मगर, हमसे उन्होंने दो चार हजार रुपये भी वसूल लिए। यह कहते हुए कि शुक्र करो सिर्फ ड्यूटी करने के लिए कह रहे हैं, गाड़ी की जब्ती नहीं बना रहे हैं। ([email protected])