राजपथ - जनपथ
छत्तीसगढ़ के आदिवासी नेता खुश
द्रोपदी मुर्मू के राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित होने से प्रदेश भाजपा में खुशी की लहर है। द्रोपदी ओडिशा की रहने वाली हैं, और प्रदेश के प्रमुख विशेषकर आदिवासी नेताओं से मधुर संबंध हैं। पार्टी के एक तबके का मानना है कि चुनाव में भले ही प्रदेश से मुर्मू को बढ़त न मिल पाए, लेकिन विधानसभा चुनाव में इसका फायदा होगा। कुछ उत्साही भाजपा नेताओं का मानना है कि आदिवासी इलाकों में मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से सकारात्मक संदेश जाएगा, और पार्टी को आदिवासी इलाकों में वर्ष-2003, और वर्ष-2008 के विधानसभा चुनावों की तरह सफलता मिल सकती है। फिलहाल तो भाजपा नेता विशेषकर आदिवासी विधायकों से अंतरात्मा की आवाज पर वोट डालने की अपील करेंगे। देखना है कि अपील का थोड़ा बहुत असर होता है, अथवा नहीं।
स्कूलों में दखल जारी है
स्कूल शिक्षा जगत में आरएन सिंह का नाम अनजाना नहीं है। पिछली सरकार में आरएन सिंह की स्कूल शिक्षा में तूती बोलती थी। उनकी बृजमोहन अग्रवाल, केदार कश्यप के स्कूल शिक्षा मंत्री रहते एकतरफा चलती थी। विभाग में खरीदी हो, या ट्रांसफर-पोस्टिंग, आरएन सिंह की दखल रहती थी। भूपेश सरकार के राज में भी आर एन सिंह का दबदबा कम नहीं हुआ था। वो डायरेक्टोरेट से मार्गदर्शन करते थे। आरएन सिंह अब रिटायर हो चुके हैं, और रिटायरमेंट के बाद स्कूल खोल लिया है। पुराने सहयोगी मदद कर ही रहे हैं। उनका अपना अनुभव स्कूल को जमाने में काम आ रहा है।
गोबर खाद के लिए है, गाज के लिए नहीं...
सरगुजा में हाल ही में दो घटनाएं हुई। इनमें गाज से झुलसने के बाद एक युवक को और दूसरी जगह पर दो बच्चियों को गोबर से लपेटकर जमीन पर दबा दिया गया। युवक की मौत हो गई, जबकि बच्चियों को निकालकर बाद में अस्पताल पहुंचाया गया। ऐसी घटनाएं हर साल हो रही हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार बीते साल छत्तीसगढ़ में गाज की चपेट में आने से 78 लोगों की मौत हुई थी, जिनमें से 25 की मौत अस्पताल न ले जाकर गोबर का लेप लगाकर मिट्टी में लिटा देने की वजह से हुई। यह बड़ी संख्या है, जिनकी जान बच सकती थी। इस साल भी प्री- मॉनसून के दौरान ही बस्तर से लेकर सरगुजा संभाग तक गाज गिरने की घटनाओं में कई लोग झुलस चुके, मवेशियों और ग्रामीणों की जान चली गई। प्राय: खेतों के लिए निकले ग्रामीण इसकी चपेट में आ रहे हैं, जो बारिश शुरू होने पर पेड़ों के नीचे पनाह ले लेते हैं। यह घातक होता है। वैज्ञानिक कहते हैं कि बारिश से भले ही भींग जाएं पर पेड़ के नीचे नहीं जाना चाहिए। खुले में खुद को समेटकर बैठ जाना फायदेमंद होता है। लोहे जैसा कोई औजार हो तो उसे दूर फेंककर रख दें। पेड़ ही नहीं नदी-तालाब, बिजली खंभे से भी दूर रहना चाहिए। समूह में न होकर दूर-दूर रहें ताकि गाज गिरने का सामूहिक नुकसान न हो। पर इन उपायों की जानकारी अधिकांश ग्रामीण क्षेत्रों में नहीं है। हर साल होने वाली दर्जनों मौतों को रोकने के लिए अभियान चलाने का काम छत्तीसगढ़ में नहीं किया जा रहा है।
अगवा हुए या भगवा..?
संजय राउत- हमारे 35 विधायक अगवा हो गए हैं..।
फड़णवीस- अगवा नहीं, भगवा हो गए हैं...।
(वाट्सएप यूनिवर्सिटी से)
जाने वाले अफसरों को रोका नहीं...
आईएएस के वर्ष-2008 बैच के अफसर नीरज बंसोड़ भी केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जाना चाहते हैं। उन्होंने इसके लिए आवेदन भी दिया है। बंसोड़ पिछले तीन साल से डायरेक्टर (हेल्थ) के पद पर काम कर रहे हैं। सब कुछ ठीक रहा, तो बंसोड़ भी दिल्ली के लिए प्रस्थान कर सकते हैं।
दर्जनभर से अधिक अफसर प्रतिनियुक्ति पर जा चुके हैं। ऐसा पहला मौका है जब एक साथ इतनी बड़ी संख्या में अफसर केंद्र सरकार में पदस्थ हैं। दो और अफसर दिल्ली जाने के लिए तैयार बैठे हैं, और कहा जा रहा है कि वो बेहतर पोस्टिंग के लिए अपने संपर्कों को टटोल रहे हैं।
छत्तीसगढ़ कैडर के अफसरों को दिल्ली में अच्छी पोस्टिंग भी मिली है। बीवीआर सुब्रमण्यम वाणिज्य सचिव के पद पर हैं, तो अमित अग्रवाल, ऋचा शर्मा, निधि छिब्बर, विकासशील, और आईएफएस अफसर बीवी उमादेवी एडिशनल सेक्रेटरी के पद पर हैं। ये सभी अच्छे डिपार्टमेंट में हैं। इसके अलावा अमित कटारिया, सुबोध सिंह, डॉ. एम गीता, सोनमणि बोरा, डॉ. रोहित यादव, और ऋतु सेन ज्वाइंट सेक्रेटरी के पद हैं। रोहित तो पीएमओ में सेवाएं दे रहे हैं। रजत कुमार डायरेक्टर जनगणना के पद पर हैं। दो अफसर एलेक्स पॉल मेनन और ए बासव राजू अपने गृह राज्य क्रमश: तमिलनाडु, और कर्नाटक में प्रतिनियुक्ति पर हैं।
राज्य सरकार की सोच है कि किसी को बेहतर मौका मिल रहा है, तो उसे रोका नहीं जाना चाहिए। यही वजह है कि अफसरों की कमी के बाद भी किसी को जाने से नहीं रोका गया है।
मुफ्त से सावधान रहें!
वैसे तो कौन बनेगा करोड़पति कार्यक्रम बनाने वाली कंपनी लोगों को धोखाधड़ी के प्रति सावधान करती रहती है, लेकिन लोगों को मुफ्त के ईनाम अपनी ओर खींचते रहते हैं इसलिए जालसाजों का काम चलते रहता है। कल ही इस अखबारनवीस के मोबाइल फोन पर किसी दूसरे देश के एक नंबर से एक वॉट्सऐप वीडियो आया जिसमें केबीसी में 25 लाख रूपए जीतने की खबर दी गई, और बताया गया कि इसे पाने के लिए अपने बैंक खाते की जानकारी दें ताकि रकम भेजी जा सके। लोगों को हर उस चीज से सावधान रहना चाहिए जो मुफ्त में मिलती दिख रही है, फिर चाहे वह अमिताभ बच्चन की तस्वीर के साथ ही क्यों न आती दिखे।
सकारात्मकता की परिभाषा
योग और व्यायाम के लिए लोगों को प्रेरित करने के लिए आईपीएस रतनलाल डांगी सोशल मीडिया बेहद सक्रिय रहते हैं। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के मौके पर उनका वीडियो आज सुबह कुछ घंटों के भीतर ही ट्विटर पर 2500 से ज्यादा लोगों ने देख लिया। दूसरे प्लेटफॉर्म्स पर भी लगातार देखे जा रहे हैं। अब तक फिटनेस पर डाले गए उनके वीडियो 1 करोड़ से अधिक लोग देख चुके हैं। आज उन्होंने लिखा समय बहुत कीमती है, इसे अपना काम करने में लगाएं, न कि निगेटिव लोगों की बातें सुनने में। ज्यादातर ने इस विचार पर सहमति जताई है। पर, एक ने लिखा हमारे इलाके में अवैध कोयला डिपो चल रहा है, जुआखोरी हो रही है। पुलिस की क्रेडिटिबिलिट का सवाल है, कार्रवाई करें। यूजर ने जागरूक नागरिक होने के नाते संदेश का एक हिस्सा तो निभाया कि अपना काम किया। पर इस शिकायत को निगेटिव माना जाएगा, या सकारात्मक कहेंगे, यह कुछ उलझन भरा सवाल होगा।
रोजगार के लिए दो आंदोलन...
युवक कांग्रेस ने बहुत जल्दी प्रदेश भर में, रोजगार दो पदयात्रा निकालने का निर्णय लिया है। केंद्र ने हर साल जो दो करोड़ रोजगार देने का वादा किया था, यह उसे लेकर है। युवक कांग्रेस का कहना है कि वायदा पूरा नहीं किया गया और अब तो सेना में भी 4 साल के लिए कांट्रेक्ट भर्ती की जा रही है। इधर युवा मोर्चा छत्तीसगढ़ सरकार के चुनावी वायदे को याद दिलाने के लिए बेरोजगारी टेंट लगाने जा रहा है। हस्ताक्षर अभियान और वाल पेंटिंग भी इसमें शामिल है। उनका कहना है कि अब तक सरकार ने जो 28 हजार भर्ती की है, उनमें भी 13 हजार तो संविदा पर है। यानि वादा अधूरा है।
युवाओं के साथ संकट यह है कि दोनों ही पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ आंदोलन कर अपनी राजनीतिक मंशा तो पूरी कर लेंगे पर असल समस्या जो रोजगार की बनी हुई है, वह दूर होगी भी या नहीं।
बंगले बेचने के दिन..
दिवंगत पूर्व वित्त मंत्री रामचंद्र सिंहदेव का मौलश्री विहार स्थित बंगला बिक गया है। बंगले के खरीददार कोई और नहीं, कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे हैं। ईमानदारी के पर्याय रहे रामचंद्र सिंहदेव ने बंगला 15 साल पहले खरीदा था। मौलश्री विहार में जनप्रतिनिधियों को हाऊसिंग बोर्ड ने बंगला बनाकर दिया था। चौबे, दिवंगत वित्त मंत्री के न सिर्फ पड़ोसी थे, बल्कि वो सिंहदेव के काफी भी करीब थे।
सिंहदेव ने बाकी जन प्रतिनिधियों की तरह बंगले में कोई नया कंस्ट्रक्शन नहीं कराया था। सक्रिय राजनीति से अलग होने के बाद वहां शिफ्ट हो गए थे। उनके गुजरने के बाद सिंहदेव का बंगला तकरीबन खंडहर हो चुका था, और यह उनकी भतीजी विधायक अंबिका सिंहदेव के आधिपत्य में था। अंबिका ने बिना ज्यादा मोल-भाव के चौबेजी को बंगला बेच दिया। चर्चा है कि चौबेजी ने इसके लिए करीब 45 लाख रुपए लोन लिए हैं, और बंगले की कीमत भी इसके आसपास बताई जा रही है।
दूसरी तरफ, पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने भी मौलश्री विहार स्थित अपना बंगला बेच दिया है। मूणतजी ने पड़ोस की दिवंगत नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा की जमीन भी खरीद ली थी, और नया स्वरूप दिया था। मूणत का बंगला पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के बंगले के सामने ही है। उन्होंने शहर से दूर होने के कारण मौलश्री विहार का बंगला बेचा है। मूणत जी अब वे अपने विधानसभा क्षेत्र रायपुर पश्चिम के बीचों-बीच स्थित चौबे कॉलोनी में मकान लेकर शिफ्ट हो रहे हैं।
हवा से हल्के सांसद
वैसे तो प्रदेश में सरोज पाण्डेय को मिलाकर भाजपा के 11 सांसद हैं। इनमें से रेणुका सिंह केन्द्रीय मंत्री हैं। लेकिन सरोज को छोड़ दें, तो बाकी सांसदों की दिल्ली दरबार में कोई पकड़ नहीं दिखती है। पार्टी के सीनियर विधायकों की स्थिति सांसदों से बेहतर है। न सिर्फ दिल्ली बल्कि पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश के सांसदों का भी यही हाल है।
मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव चल रहे हैं, और वहां सबसे ज्यादा करीब साढ़े 5 लाख वोटों से जीतकर इंदौर के सांसद बने शंकर लालवानी का हाल यह है कि वो इंदौर नगर निगम के 90 वार्डों में से सिर्फ अपने मोहल्ले से ही टिकट दिला पाए। बाकी वार्डों में कैलाश विजयवर्गीय, या उनके करीबी लोगों के समर्थकों को प्रत्याशी बनाया गया है।
लालवानी ने दिल्ली दरबार में गुहार लगाई, तो उन्हें स्थानीय नेताओं से बात करनेे के लिए कह दिया गया। लालवानी से थोड़ी बेहतर स्थिति छत्तीसगढ़ के सांसद सुनील सोनी, और विजय बघेल की मानी जा सकती है, जिनकी संगठन में ज्यादा पकड़ भले ही न हो, लेकिन बीरगांव, और भिलाई-चरौदा निकाय में कुछ समर्थकों को टिकट दिलवाने में कामयाब रहे।
अपनी हैसियत ध्यान में रखें
इन दिनों टेक्नालॉजी इतनी आगे बढ़ गई है कि लोग वॉट्सऐप पर एक-दूसरे से बात करते हुए किसी सामान का जिक्र करें, तो वॉट्सऐप के मालिक की दूसरी कंपनी फेसबुक के पेज पर उसी का इश्तहार देखने मिलने लगता है। कुछ लोगों का तो यह भी मानना है कि वे फोन पर भी किसी से बातचीत में किसी सामान का जिक्र करते हैं, तो उन्हें कम्प्यूटर पर उसी सामान के इश्तहार दिखने लगते हैं।
अब इस अखबारनवीस को चार दिन सर्दी-बुखार हो गया, तो उसे वॉट्सऐप पर यह संदेश आ गया कि उसे घर से काम करने लायक छांटा गया है, और अब वह बीस हजार रूपए प्रतिदिन के काम के लिए नीचे दिए गए नंबर पर संपर्क कर सकता है।
अब घरेलू बुखार की भी खबर अगर इंटरनेट पर धोखा देने वाले और जालसाजों को मिलने लगी है, तो लोग इससे बचकर कहां जाएं? फिलहाल तो जिन लोगों को ऐसे संदेश मिल रहे हैं, वे सावधान रहें, अभी बीस हजार रूपए रोज घर बैठे पाने की हैसियत इस देश के एक फीसदी लोगों की भी नहीं है, लाख में से एक की भी नहीं है, इसलिए जालसाजी का शिकार न बनें, अपनी हैसियत ध्यान में रखें, और दो-चार सौ रूपए रोज के अपने मौजूदा काम को लात न मारें।
नक्सल मुक्त कोंडागांव में हत्या...
केंद्र सरकार ने इसी साल अप्रैल महीने में बस्तर संभाग के कोंडागांव जिले को नक्सल मुक्त घोषित किया था। इसके पीछे वजह यह थी कि 2022 के बीते 5 महीनों में एक भी नक्सल हमला नहीं हुआ। सन 2021 में जरूर कुछ छोटी घटनाएं सामने आई थी। जिले के प्रत्येक गांव तक पुलिस और प्रशासन की पहुंच हो चुकी है। मोबाइल टावरों का जाल कुछ इस तरह से फैला दिया गया है कि नक्सली मूवमेंट की जानकारी को पुलिस तक पहुंचाने के लिए किसी को सामने आने की जरूरत नहीं पड़ती।
पर अभी दो दिन पहले ही मर्दापाल इलाके में एक ग्रामीण की नक्सलियों ने हत्या कर दी। उस पर मुखबिरी का संदेह था।
केंद्र सरकार ने सन् 2017 में एक लेफ्ट विंग एक्सटेंशन (एलडब्ल्यूई) योजना शुरू की, जिसके तहत देशभर के ऐसे जिलों को चिंहित कर नक्सल मुक्त घोषित करना है,जहां विकास कार्यों और प्रशासन की पहुंच के चलते नक्सलियों के पैर उखड़ रहे हैं। लेकिन यह अजीब बात कही जा सकती है कि जैसे ही कोई इलाका नक्सलमुक्त घोषित किया जाता है, वहां पर सडक़, स्कूल, पुल-पुलिया के लिए दिया जाने वाला विशेष अनुदान बंद कर दिया जाता है। यह राशि करोड़ों रुपये की होती है। बहुत से लोगों का मानना है कि नक्सली गतिविधियों के कम हो जाने से तुरंत या कुछ महीनों में यह धारणा बनाना सही नहीं है कि नक्सली वहां से पलायन कर गए। मौके का इंतजार कर वे फिर पुलिस या सरकार के विरुद्ध अपनी गतिविधियों को संचालित कर सकते हैं, जैसा मर्दापाल में हुआ। ऐसी स्थितियों में तत्काल ईडब्ल्यूआई योजना के तहत मिलने वाली विशेष सहायता बंद कर दी जाए, यह भी ठीक नहीं। नक्सल गतिविधि कम होती है तो स्कूल, अस्पताल, सडक़ पुल-पुलिया, संचार के बचे कामों को और तेजी से चलाकर आगे की घटनाओं को रोका जा सकता है।
बिना मरहम दर्द दूर करने का तरीका
देश में कुछ दिन पहले तक पेट्रोल-डीजल के दाम बढऩे पर तूफान मचा था। अब वह बात गए दिनों की हो चुकी। चर्चा का विषय इसकी कीमत से शिफ्ट होकर उपलब्धता की ओर चली गई है। लोग घर से निकलते हुए मना रहे हैं कि रास्ते में पेट्रोल-डीजल मिल जाए, पंप ड्राई न मिले।
बीते कुछ महीनों से कोरोना का संक्रमण होने के बावजूद रेलवे ने दुबारा रियायती टिकट का नियम लागू नहीं किया और न ही जनरल डिब्बों में कम खर्च में सफर की सुविधा दी। छोटे स्टेशनों पर स्टापेज बंद कर दिया। इसे लेकर लोग भारी परेशान थे, आंदोलन कर रहे थे। लोग रियायती टिकट और एमएसटी को बंद करने का विरोध दर्ज करा ही रहे थे कि अचानक दर्जनों यात्री ट्रेनों का परिचालन पावर संयंत्रों को कोयले की तेज सप्लाई के नाम पर बंद कर दिया गया। लोग कुछ राहत पाने की उम्मीद में बैठे ही थे कि अब ट्रेनों का विलंब से चलना एक बड़ी समस्या बनकर सामने आ गई। लोग यह मना रहे हैं कि जितनी भी ट्रेनेंचल रही हैं, कम से कम वे तो समय से चलें।
हाल में बेरोजगारी को लेकर आंकड़े आए थे, जिसमें यह पता चला कि कई राज्यों की स्थिति भयावह है। लोग लाखों रिक्त पदों पर भर्ती की मांग कर रहे थे। यूपी बिहार में कुछ ही महीने पहले आंदोलन भी हुए, पर इस बीच केंद्र सरकार बेरोजगारी दूर करने की अग्निपथ स्कीम लेकर आ गई। सेना में चार साल की भर्ती का स्कीम ला दिया। देश के दस से अधिक राज्यों में युवाओं ने इसके खिलाफ जमकर प्रदर्शन किया और विपक्ष ने भारत बंद का आह्वान किया।
तो रेत के दाम बढ़ेंगे ही
बारिश शुरू होते ही रेत के दाम आसमान छू रहे हैं। रायपुर जिले में दाम ज्यादा है। वजह यह है कि यहां की ज्यादातर खदानें बंद हो चुकी है। अड़ोस-पड़ोस के जिलों से रेत की आवक हो रही है। रेत के दाम बढऩे के लिए कुछ ट्रांसपोर्टर एक विधायक को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
सुनते हैं कि विधायक के इलाके के खदानों से रोजाना सैकड़ों गाड़ी निकलती है। विधायक महोदय के करीबियों ने प्रति ट्रक 3 सौ रुपये चार्ज करना शुरू कर दिया है। कुछ लोगों ने विधायक से बात भी की, लेकिन इससे कम पर बात नहीं बनी। जाहिर है कि इससे परिवहन भाड़ा बढ़ गया है। भाड़ा बढ़ेगा तो रेत के दाम बढ़ेंगे ही।
विजय झा को लेकर हलचल
कर्मचारी नेता विजय झा के सक्रिय राजनीति में आने की चर्चा से बड़े राजनीतिक दल भाजपा, और कांग्रेस के रणनीतिकारों के कान खड़े हो गए हैं। विजय झा के रिटायरमेंट के दिन 30 जून को कर्मचारियों ने बड़ी रैली निकालने की तैयारी भी की है।
दूसरी तरफ, पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और रायपुर दक्षिण से कांग्रेस के दावेदारों के नजदीकी लोगों ने विजय झा को टटोलना भी शुरू कर दिया है। खुद बृजमोहन अग्रवाल का पिछले दिनों एक शादी समारोह में विजय झा से आमना-सामना हो गया। बृजमोहन ने हल्के-फुल्के अंदाज में विजय से उनकी सक्रियता को लेकर बात भी की। कुल मिलाकर पहली बार किसी कर्मचारी नेता के रिटायरमेंट को लेकर न सिर्फ कर्मचारी जगत बल्कि राजनीतिक क्षेत्रों में भी हलचल है।
भाजपा विहिप आमने-सामने
पूर्व सीएम रमन सिंह, और बाकी बड़े भाजपा नेता गोधन न्याय योजना की खामियां निकालते नहीं चूकते हैं। मगर आरएसएस, और विश्व हिन्दू परिषद की राय ठीक इसके उलट है। विहिप के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने तो गोधन न्याय योजना की जमकर तारीफ की। यही नहीं, विहिप ने राम वनगमन पथ योजना को भी सराहा। अब जब संघ परिवार दोनों योजना के खुलकर समर्थन में आ गई है, तो भाजपा के लिए योजना विरोध करना मुश्किल हो गया है।
लडक़ी को प्रभावित करने लायक हैं?
सोशल मीडिया बड़े मजेदार होता है। अभी किसी ने एक दिल जलाने वाली एक बात लिख दी कि अगर परिवारों की तय की हुई शादियां न होतीं, तो अधिकतर दक्षिण एशियाई मर्द कुंवारे ही मर जाते। अब यह बात पूरे दक्षिण एशिया के बारे में तो नहीं मालूम, लेकिन हिन्दुस्तान के बारे में जरूर मालूम है कि यहां आधे से अधिक लोग कुंवारे रह गए होते, अगर परिवार उनके लिए रिश्ता नहीं ढूंढ पाया होता तो। इसकी एक वजह यह भी है कि हिन्दुस्तानी युवक आमतौर पर इतने बेतरतीब, गंदे, और महत्वाकांक्षाविहीन रहते हैं उनसे किसी लडक़ी के प्रभावित होने की गुंजाइश कम रहती है। ऐसे लोगों के भाव उनके मां-बाप की दौलत, उनके असर, पारिवारिक इतिहास के गौरवगान की वजह से तो थोड़़े से बढ़ जाते हैं, और खींचतान कर उनकी शादी हो जाती है। लेकिन पारिवारिक महत्व से परे अकेले नौजवानों को देखें, तो वे शादी के लिए प्रभावित करने लायक कम ही रहते हैं। (और अब तो 25 बरस की उम्र में रिटायर्ड अग्निवीर जवान के मुकाबले बूढ़े अधिक समझे जाएंगे, और किसी पेंशनविहीन रिटायर्ड से अपनी कुंवारी लडक़ी की शादी की बात सोचकर ही मां-बाप के हाथ-पांव ठंडे पड़ जाएंगे।) इसलिए हिन्दुस्तानी लडक़ों को यह सोचना चाहिए कि क्या वे अपने दम पर वैसी लडक़ी को प्रभावित करने के लायक हैं, जैसी लडक़ी का वे सपना देखते हैं? हो सकता है कि यह आत्मविश्लेषण कई लोगों को बेहतर बनाने मेें कारगर हो।
अब अपने से सीनियर को अनुशासन का पाठ
रायपुर जिला भाजपा का चिंतन शिविर चंपारण में शुरू हुआ। शिविर में कुल 15 सत्र होंगे, इसमें अलग-अलग विषयों पर आरएसएस, और भाजपा नेताओं का उद्बोधन होगा। वक्ताओं में एक नाम अवधेश जैन का भी है, जिसका नाम सुनते ही कई नेताओं की भौंहे टेढ़ी हो गई। वैसे तो अवधेश जैन दिवंगत भाजपा नेता जगदीश जैन के बेटे हैं, लेकिन जोगी सरकार में भाजयुमो से अलग होकर कांग्रेस में शामिल हो गए थे।
बताते हैं कि तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी का जयस्तंभ चौक के पास पुतला फूंका गया था, तो उस समय के हुडदंगी युकांईयों की टोली में अवधेश जैन भी थे। बाद में सरकार आने के बाद अवधेश जैन भाजपा में शामिल हो गए। इसके बाद उन्हें संगठन में अहम दायित्व मिलता रहा। वो प्रशिक्षण विभाग के सह प्रभारी है। अब जब वो पार्टी के भीतर अपने से सीनियर नेताओं को अनुशासन-सेवा का पाठ पढ़ा रहे हैं, तो कईयों को नागवार गुजर रहा है।
वित्त के लोग जोड़तोड़ करते...
आमजनों से भेंट-मुलाकात के लिए निकले सीएम ने ताबड़तोड़ घोषणाएं की है। अब तक तो 76 आत्मानंद अंग्रेजी स्कूल खोलने की घोषणा कर चुके हैं। अब इन घोषणाओं के क्रियान्वयन को लेकर वित्त विभाग के आला अफसर परेशान हैं। प्रदेश में वित्तीय स्थिति ऐसी नहीं रह गई है कि इन घोषणाओं को तुरंत अमल में लाया जा सके। केंद्र सरकार से अपेक्षाकृत सहयोग नहीं मिल रहा है। हाल यह है कि वित्तीय स्थिति अच्छी न होने के कारण 76 स्कूलों का चालू सत्र में खुल पाना मुश्किल है। फिर भी सीएम ने घोषणा की है, तो इसका पालन होना जरूरी है। संभावना है कि ज्यादातर घोषणाओं के लिए विधानसभा के प्रथम अनुपूरक में प्रावधान किया जाएगा। इन सबके लिए वित्त विभाग के लोग काफी जोड़तोड़ करते दिख रहे हैं।
जमीन से जुड़ा एक मुद्दा...
बीजेपी कैडर वाली पार्टी है। केंद्र से नेता आते हैं, बैठकें लेते हैं, मंत्र फूंकते और पाठ पढ़ाकर निकल जाते हैं। पर विपक्ष में होने की वजह से जिस तरह जनता से जुड़े मुद्दों को सडक़ पर निकलकर धारदार तरीके उठाना चाहिए, उसमें कुछ कमी दिखाई देती है।
केंद्र सरकार ने उचित मूल्य की दुकानों को कोविड काल से 5 किलो चावल मुहैया कराने की योजना चालू रखी है। यह राज्य सरकार की ओर से मिलने वाले 35 किलो राशन के अतिरिक्त है। रायपुर, बिलासपुर, दुर्ग, कोरबा आदि जिलों से लगातार यह खबर आ रही है कि अनेक राशन दुकान संचालक इस चावल का गबन कर रहे हैं। राशन दुकानों में छापा भी मारा जा रहा है और छापे की खबरों को अफसरों की तरफ से दबाया भी जा रहा है। इसका मतलब यही है कि लेनदेन करके खाद्य विभाग के निरीक्षक और दूसरे अधिकारी इन दुकान संचालकों को संरक्षण दे रहे हैं। किसी की दुकान में आप पहुंचे वहां आपको राशन की उपलब्ध मात्रा की नोटिस लगी नहीं मिलेगी। मूल्य सूची नहीं दिखाई देगी, कॉल सेंटर का नंबर भी प्रदर्शित किया गया नहीं पाएंगे और शिकायत निवारण अधिकारी का फोन नंबर भी गायब होगा। खाद्य अधिकारी ऐसी सभी दुकानों पर सख्ती के साथ कार्रवाई कर सकते हैं। दुकानों को निलंबित किया जा सकता है लेकिन सिर्फ नोटिस-नोटिस का खेल चल रहा है। जनता से जुड़ा यह एक बड़ा मुद्दा है। मोदी जी का राशन है, पर पता नहीं बीजेपी नेता इस घोटाले को लेकर क्यों खामोश हैं?
फ्लॉप शो !
मोदी सरकार के 8 साल पूरे होने के मौके पर इंडोर स्टेडियम में भाजपा का जलसा फीका रहा। पहले तो स्टेडियम को लबालब करने की रणनीति बनाई गई थी, लेकिन बामुश्किल 4-5 सौ कार्यकर्ता ही जुट पाए। मुख्य वक्ता के रूप में पहले केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान आने वाले थे, लेकिन दिल्ली में व्यस्तता के कारण उनका आना टल गया। बाद में केंद्रीय राज्यमंत्री रेणुका सिंह के मुख्य आतिथ्य में कार्यक्रम शुरू हुआ। रेणुका अपने भाषण में ज्यादातर समय मनमोहन सिंह सरकार को उलाहना देती रही। उनका भाषण इतना बोझिल था कि एक-एक कर कार्यकर्ता बाहर जाने लगे। कुल मिलाकर कार्यकर्ताओं को चार्ज करने में पार्टी के कर्ता-धर्ता नाकाम रहे।
पेट्रोल-डीजल कमी जारी रहेगी
प्रदेश में पेट्रोल-डीजल की किल्लत हो रही है। पेट्रोलियम कंपनी पर्याप्त पेट्रोल डीजल की आपूर्ति नहीं कर पा रही है। पिछले दिनों सरगुजा के पेट्रोल पंप के संचालक खाद्य मंत्री अमरजीत भगत से इस पर चर्चा की। भगत ने खाद्य अफसरों को सरगुजा के पेट्रोल पंपों को पर्याप्त मात्रा में पेट्रोल-डीजल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए कह दिया। मंत्रीजी के निर्देश के बाद भी न सिर्फ प्रदेश बल्कि सरगुजा में भी पेट्रोल पंपों के आगे लंबी लाइन देखने को मिल रही है।
यही नहीं, एक भाजपा सांसद के भाई, जो कि पेट्रोल पंप डीलर एसोसिएशन के पदाधिकारी भी है। उन्होंने एक प्रतिनिधिमंडल के साथ हिन्दुस्तान पेट्रोलियम के आला अफसरों से चर्चा की। कंपनी के अफसरों ने उन्हें आपूर्ति बढ़ाने का कोई आश्वासन नहीं दिया, बल्कि उल्टे पंप खोलने के समय में कटौती करने का सुझाव दे दिया। उन्होंने कह दिया कि पेट्रोल-डीजल की कमी बरकरार रहेगी।
जितना बड़ा बंगला, उतना बड़ा रैम्प
शहरों के संपन्न इलाकों में बड़े-बड़े मकानों के गेट पर गाडिय़ों को भीतर रखने के लिए लंबे-लंबे रैम्प बनाए जाते हैं जिनसे आधी सडक़ घिर जाती है। लोग अपने घर को ऊंचा कर लेते हैं, और रैम्प की लंबाई के लिए सडक़ का इस्तेमाल करते हैं। सडक़ की उतनी जगह आवाजाही के लिए बंद, पार्किंग के लिए बंद, और इसके बाद भी लोग अपनी गाडिय़ां अपने अहाते के बाहर सडक़ पर ही खड़ी करते हैं। इस बात पर केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने कल ही अफसोस जाहिर किया है कि लोग गाडिय़ां खरीद लेते हैं, और उन्हें खड़ी करने की जगह का उनका कोई इंतजाम नहीं होता। उन्होंने मजाक करते हुए कहा कि नागपुर में उनका रसोईया भी दो सेकेंडहैंड गाडिय़ां रखता है, और इस तरह चार लोगों के परिवार में छह वाहन हो गए हैं। ऐसे में लोग सडक़ों पर ही गाडिय़ां खड़ी करते हैं।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में जितनी बड़ी कॉलोनी, जितना बड़ा बंगला, उतना ही लंबा रैम्प। अब अगर बुलडोजर कहीं चलना चाहिए, तो ऐसी जगहों पर ही चलना चाहिए, और जिन्हें रैम्प बनाना है, वे अपने घर के भीतर बनाएं। ऐसा न होने पर म्युनिसिपल को चाहिए कि उस इलाके के रजिस्ट्री रेट के अनुपात में जुर्माना ऐसे घर मालिकों पर लगाया जाए।
बिल्डिंग की गरिमा बनाए रखें..
यह खूबसूरत भवन कोई राजमहल नहीं है। जशपुर के स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट स्कूल की तस्वीर है। जिस तरह इस भवन को संवारने में मेहनत की गई है, उसी तरह यदि यहां पढ़ाने वाले शिक्षक बच्चों को भी तराश दें तो फिर क्या बात है...।
तेंदूपत्ता से सॉलिड कमाई...
बस्तर से जो खबर निकल कर आई है वह इस धारणा को बदलने के लिए काफी है केवल जंगल को उजाड़ करके, खदान शुरू करके रोजगार पैदा किया जा सकता है। बस्तर के आदिवासियों ने इस बार 86 करोड़ रुपए का तेंदूपत्ता बेचा है, जो पिछले साल से 16 करोड़ रुपये अधिक है। दिलचस्प है कि तेंदूपत्ता की खपत अपने छत्तीसगढ़ में कम होती है। इसका निर्यात पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, म्यांमार और अफगानिस्तान में होता है। यहां बीड़ी पीने वाले जरूर घट गए हैं लेकिन दूसरे देशों में इसकी मांग न सिर्फ बनी हुई है बल्कि बढ़ती जा रही है। सरकार ने इस बार मानक बोरा के पीछे कीमत भी बढ़ाकर 4 हजार रुपये दी है, जिसकी वजह से भी बड़े उत्साह के साथ लोगों ने तेंदूपत्ता संग्रहण में अधिक रुचि दिखाई है। यह साधारण सा जवाब है कि जंगलों में रहने वाले लोग अपने यहां कार्पोरेट को आने से रोकने के लिए जान की बाजी क्यों लगा देते हैं।
असली और बड़े गैरकानूनी !
उत्तरप्रदेश में किसी पर भी उपद्रवी होने का आरोप लगाकर उसका मकान गिराना अब राज्यधर्म हो गया है, अगर यह आरोप किसी मुस्लिम पर लगाया जा रहा है। ऐसे में टाईम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट गुजरात की राजधानी अहमदाबाद से सरकारी आंकड़ों को लेकर आई है जिनमें प्रदेश भर के शहरों में 8320 इमारतों का सर्वे किया गया है, और यह पाया गया है कि 35 फीसदी इमारतें गैरकानूनी हैं। यह सर्वे जनवरी में शुरू हुआ था, और सरकार के स्तर पर ही किया गया है। अब एक तिहाई से अधिक इमारतों को गिराना तो गुजरात सरकार के लिए आसान नहीं होगा, इसलिए सरकार एक अध्यादेश लाने की सोच रही है ताकि गैरकानूनी को कानूनी बनाया जा सके। अब पता नहीं भाजपा के इस गढ़ गुजरात के ऐसे फैसले से बाकी प्रदेशों के साम्प्रदायिक-बुलडोजर थमेंगे या नहीं?
क्या प्लेन भी डबल डेकर...
लोगों ने हिन्दुस्तानी, और दूसरे देशों की रेलगाडिय़ों में डबल डेकर डिब्बे देखे हैं जिनमें मुम्बई में चलने वाली लाल डबल डेकर बसों की तरह दो तल्ले होते हैं, और दोगुने मुसाफिर बैठ जाते हैं। अब किसी ने हवाई जहाज में मुसाफिरों की गिनती बढ़ाने के लिए इसी किस्म की एक डिजाइन पेश की है जिसे अगर लागू किया गया तो भाड़ा शायद कुछ कम हो सकता है। लेकिन सवाल यह है कि ऊपर की सीट पर बैठे हुए लोगों का पेट गड़बड़ होगा, तो नीचे की सीट पर बैठे लोगों का क्या हाल होगा।
अग्निपथ... अग्निपथ
सेना में युवाओं की 4 साल के लिए अनुबंध भर्ती का फैसला केंद्र की मोदी सरकार ने लिया है। चुनाव आ रहे हैं और बेरोजगारी का संकट विकराल है। अब जो युवा 4 साल बाद फिर से रोजगार ढूंढ लेंगे वे क्या करेंगे, इसके लिए कोई रोड मैप नहीं है। हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सरकारों ने ऐसे युवाओं को फोर्स की भर्ती में प्राथमिकता देने की बात कही है लेकिन गारंटी नहीं है कि सबको मौका मिल जाए। हां वे हथियार चलाना जरूर सीख जाएंगे और जब लौटेंगे तो उनकी दूसरी सरकारी नौकरियों में आवेदन करने के लिए सीमा घट चुकी रहेगी। हथियार चलाने के मिले प्रशिक्षण का युवा बेरोजगार हो जाने के बाद कैसा इस्तेमाल करेंगे इसके बारे में हम-आपको जरूर सोचना चाहिए।
छत्तीसगढ़ को लेकर के ज्यादा दिक्कत नहीं है। जमीनी हकीकत चाहे जो भी हो लेकिन अभी जो सरकारी डेटा आया है उसमें यहां की बेरोजगारी दर को सबसे कम पाया गया है। राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश की तरह सेना में भर्ती के लिए रुचि भी छत्तीसगढ़ के युवाओं में नहीं दिखाई देती है। जिस तरह से विकलांगों को दिव्यांग कह देने से उनकी दशा नहीं सुधरी है उसी तरह से इन युवाओं को अग्निवीर कह देने से हालत बदलने वाली नहीं है।
कर्मचारी संघ के बाद अब चुनावी पारी !
तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के प्रदेश अध्यक्ष विजय कुमार झा 38 साल की सेवा के बाद 30 जून को रिटायर हो रहे हैं। झा किसी परिचय के मोहताज नहीं है। वो रायपुर कलेक्टोरेट का जाना पहचाना चेहरा है। उनकी अविभाजित मध्यप्रदेश से लेकर छत्तीसगढ़ में कर्मचारी आंदोलन में भागीदारी रही है, और अब रिटायरमेंट के बाद सक्रिय राजनीति में उतर रहे हैं।
विजय झा कई सामाजिक संगठनों से भी जुड़े रहे हैं। सुनते हैं कि वे आम आदमी पार्टी से अपनी दूसरी पारी की शुरूआत करने जा रहे हैं। पुरानी बस्ती इलाके के बाशिंदे विजय झा की नजर रायपुर दक्षिण विधानसभा सीट पर है। इससे परे आम आदमी पार्टी की पैठ धीरे-धीरे बढ़ रही है। ऐसे में विजय झा के रूप में पार्टी को मजबूत चेहरा मिल सकता है।
कई लोग मानते हैं कि यदि विजय झा चुनाव मैदान में उतरते हैं, तो रायपुर दक्षिण के विधायक बृजमोहन अग्रवाल के लिए मुश्किलें पैदा हो सकती है। क्योंकि पुरानी बस्ती, और आसपास के इलाके से बृजमोहन को सर्वाधिक बढ़त मिलती रही है। इस इलाके में विजय झा की भी अच्छी खासी पैठ है। यह देखना है कि विजय झा दूसरी पारी की शुरूआत कैसे करते हैं, क्योंकि चुनावी राजनीति आसान नहीं होती है।
भाजपा में भी धूल झड़ाना शुरू
भाजपा संगठन में बदलाव की शुरूआत बलरामपुर जिले से हो गई है। यहां पूर्व राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम के करीबी गोपाल प्रसाद मिश्रा को हटाकर पूर्व जिला पंचायत उपाध्यक्ष ओम प्रकाश जायसवाल को अध्यक्ष बनाया गया है। मिश्रा की हटने की चर्चा के बाद नेताम ने विकल्प के तौर पर कुछ नाम सुझाए भी थे, लेकिन प्रदेश नेतृत्व ने उन नामों को अनदेखा कर दिया।
बताते हैं कि आधा दर्जन जिला अध्यक्ष और बदले जा सकते हैं। इनमें सरगुजा और बस्तर संभाग के चार जिला अध्यक्ष शामिल हैं। कहा जा रहा है कि मैदानी इलाकों में भी एक-दो जगह पर संगठन की गतिविधियां सही ढंग से नहीं चल रही है। प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी पार्टी हाईकमान को इससे अवगत करा चुकी हैं। अब जल्द ही बाकी जिलों में भी अध्यक्ष की नियुक्तियां की जाएंगी। यह फार्मूला तय किया जा रहा है कि विधानसभा टिकट के लिए जिला अध्यक्ष के नाम पर विचार नहीं होगा। यदि ऐसा हुआ तो श्रीचंद सुंदरानी समेत कई जिला अध्यक्ष खुद ही पद छोड़ सकते हैं। देखना है आगे क्या होता है।
बेरोजगार भाई आपको मौका मिलेगा, सब्र कर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनेक सरकारी विभागों और मंत्रालयों में खाली 10 लाख पदों को आने वाले 18 महीने के भीतर भरने का निर्देश दिया है। तब तक ये चुनाव मैदान में उतरने का वक्त होगा। हिसाब लगाएं कि कौन सी परीक्षा ऐसी है जिसमें डेढ़ साल के भीतर भर्ती हो जाती है। शायद कोई नहीं। केंद्र सरकार की अनेक वैकेंसी है जिसमें 3-3 साल से लोगों को इंतजार करना पड़ रहा है। दूसरी बात यह है कि सन 2014 से लेकर अब तक करीब 87 लाख सरकारी पद रिटायर या इस्तीफा देने की वजह से खाली हो चुके हैं। बेरोजगारी का जो आंकड़ा रोजगार पंजीयन दफ्तर में दर्ज है उसके अनुसार दो करोड़ 20 लाख लोग कतार में हैं। तो बस इंतजार करिए हो सकता है, आपके बाल बच्चों का सपना पूरा हो जाए।
राष्ट्रपति चुनाव से पहले
मध्यप्रदेश में 3 विधायक भाजपा में शामिल हो गए। उनमें एक बहुजन समाज पार्टी से हैं, एक समाजवादी पार्टी से और एक निर्दलीय। छत्तीसगढ़ की बात करें तो यहां पर दो बहुजन समाज पार्टी के विधायक हैं और 3 जनता कांग्रेस जोगी के। यह देखना दिलचस्प होगा राष्ट्रपति चुनाव में ये किनको वोट करते हैं।
अफसरों का चुप्पी का हुनर
आला अफसर सच को छुपाने की ऐसी खूबी विकसित कर लेते हैं कि दस मिनट बोलने के बाद भी दस सवालों के जवाब में भी सच को बचा ले जाते हैं। अभी उत्तरप्रदेश के फतेहपुर में वहां की महिला कलेक्टर की गाय बीमार हुई, तो मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी ने सात पशु चिकित्सकों की ड्यूटी लगाई कि वे सुबह-शाम जाकर अलग-अलग दिन उस गाय को देखेंगे। आदेश में यह भी लिखा गया कि किसी डॉक्टर के न होने पर उस दिन की विजिट कौन सा डॉक्टर करेगा। यह चेतावनी भी दी गई कि इस काम में शिथिलता अक्षम्य है।
अब जब यह आदेश फैला और कलेक्टर की जमकर बदनामी होने लगी, तो उसने मीडिया के कैमरों के सामने इन पशु चिकित्सकों के खिलाफ ही लंबी-चौड़ी बातें कहीं, और अनुशासनहीनता का जिक्र करते हुए इस सवाल को आखिर तक टाला कि उन्होंने गाय पाली है या नहीं। जबकि किसी अफसर के सफाई देने का पहला तर्क यही होना चाहिए था कि उन्होंने गाय पाली ही नहीं है। लेकिन इस सीधे सवाल पर आड़े-तिरछे जवाब देते हुए आखिर तक उन्होंने इस बात पर जवाब देने से कन्नी काटी, तो बस काटती ही चली गई। ऐसी ही नौबत के लिए किसी ने एक वक्त लिखा था- तू इधर-उधर की बात न कर, ये बता कि काफिला क्यों लुटा?
अब अगर सरकारी काफिला लुटने की बात इतनी आसानी से मान लेनी होती, तो फिर वे बड़े अफसर ही क्यों बनते? छत्तीसगढ़ के बस्तर में अफसर सरकारी रोजगार योजना से अपने बंगले में स्वीमिंग पूल बनवा लेते हैं, और उन्हें उस पर कोई जवाब भी नहीं देना पड़ता। अफसरशाही लाजवाब रहती है, क्योंकि नेता तो कुछ-कुछ बरस में आते-जाते रहते हैं, अफसर कायम रहते हैं।
सत्ता नहीं, तो चंदा नहीं !
पंद्रह साल सत्ता में रहने के बाद भी भाजपा संगठन के नेता रोजमर्रा के खर्चों के लिए रोना रो रहे हैं। जिलों में अपेक्षाकृत सहयोग राशि नहीं मिलने से धरना-प्रदर्शन समेत अन्य कार्यक्रम व्यवस्थित ढंग से नहीं हो पा रहे हैं। और जब अंबिकापुर में कुछ नेताओं ने नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक को दिक्कतें सुनाई, तो कौशिक ने उन्हें झिडक़ दिया।
हुआ यूं कि कौशिक पिछले दिनों अंबिकापुर दौरे पर गए थे। वहां नगर अध्यक्ष, और महामंत्री ने उन्हें बताया कि आर्थिक सहयोग नहीं मिल पाने के कारण कार्यालय में भी किसी के ठहरने आदि का इंतजाम नहीं कर पा रहे हैं। यह सुनते ही कौशिक का पारा चढ़ गया। उन्होंने पदाधिकारियों से कह दिया कि यदि वो सक्षम नहीं हैं, तो पद छोड़ दें। कई सक्षम लोग पद के लिए लाइन में हैं।
कौशिक यही नहीं रुके, उन्होंने कहा कि सरकार के खिलाफ काफी मुद्दे हैं, लेकिन जिलों के लोग मुंह नहीं खोल रहे हैं, ऐसा नहीं चलेगा। कौशिक ने आगे कहा कि पद संभाल रहे हैं, तो संसाधन भी जुटाना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि वो अगली बार आएंगे, तो पार्टी दफ्तर में रूकेंगे, और कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे।
मुख्यमंत्री भूपेश के तेवर
भूपेश बघेल राज्य के दूसरे सीएम हैं, जिन्हें दिल्ली में हिरासत में लिया गया। इससे पहले राज्य के पहले सीएम अजीत जोगी को धान खरीदी से जुड़ी समस्या के निराकरण की मांग को लेकर अपने मंत्रियों के साथ पीएम आवास के सामने धरने पर बैठ गए थे। तब पुलिस ने उन्हें मंत्रियों के साथ हिरासत में लिया था।
जोगी के बाद 15 साल सीएम रहे रमन सिंह को कभी किसी विषय पर धरना-प्रदर्शन की जरूरत नहीं पड़ी। उनका सारा काम आसानी से हो जाता था। वैसे भी रमन सिंह पद में न होने के बावजूद धरना-प्रदर्शन में कम ही जाते हैं। भूपेश बघेल को हिरासत में लिए जाने का मामला थोड़ा अलग है। कांग्रेस के सर्वे सर्वा गांधी परिवार ईडी की जांच के घेरे में हैं। ऐसे में पूरी कांग्रेस का सडक़ पर उतरना स्वाभाविक है। ऐसे में भूपेश बघेल को पुलिस हिरासत में जाना पड़ा। आज वे देश में कांग्रेस के सबसे तेज-तर्रार नेता की हैसियत से स्थापित हो चुके हैं।
जीने में छत्तीसगढ़ पीछे
अब हम छत्तीसगढ़ के घने जंगलों और पर्यावरण पर कितना फख्र करें, इस पर विचार करना चाहिए। हाल में जारी नमूना पंजीकरण प्रणाली का डेटा बताता है कि छत्तीसगढ़ के लोगों की औसत आयु पूरे देश में सबसे कम 66.9 वर्ष है। सबसे बेहतर स्थिति दिल्ली की है, जहां औसत आयु 75.9 वर्ष है। दिल्ली की गिनती देश के सर्वाधिक प्रदूषित शहर के रूप में होती है। गाडिय़ों से निकलने वाले धुएं की बात हो या पराली जलाने की। यहां का प्रदूषण नेशनल न्यूज होता है। इस डेटा में यह नहीं बताया गया है कि औसत आयु किसी प्रदेश की कम या ज्यादा क्यों है। पर सामान्य धारणा तो है ही कि पर्यावरण बिगडऩे का असर जीवन प्रत्याशा पर होता है।
मीठा मीठा गप..
जब जब पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ते हैं, तेल कंपनियां डीलरों को जबरन माल भेजती हैं, पर जब दाम गिरते हैं तो सप्लाई में बाधा खड़ी की जाती है। पिछले महीने केंद्र सरकार ने एक्साइज ड्यूटी घटाई तो पेट्रोल डीजल दोनों के दाम गिर गए, जबकि कंपनियों ने ज्यादा दास देकर इसे डीलर्स को सप्लाई के लिए खरीदा था। अब डीलर्स से एडवांस रकम जमा करा लेने के बाद भी सप्लाई नहीं की जा रही है। स्थिति यह है कि राज्य के 350 से अधिक पेट्रोल पंपों में सप्लाई नहीं हो रही है। इसी डीजल पेट्रोल से कंपनियां मुनाफा कमाते आई हैं, इसलिए यदि कुछ दिनों का घाटा भी रहा हो तो उसे वहां कर लेना चाहिए। इस समय तो उसकी भूमिका केंद्र के किसी उपक्रम की नहीं, एक व्यापारी की तरह दिख रही है।
शराब को लेकर नसीहत
यह तस्वीर छत्तीसगढ़ की नहीं, देवभूमि उत्तराखंड की है। कितनी समझदारी के साथ आपको शराब से होने वाले नुकसान के बारे में सतर्क किया गया है।
तो उन्होंने हाथ खड़े कर दिए
प्रदेश भाजपा को आजीवन सहयोग निधि के लिए जितना टारगेट मिला था, उसका करीब आधा यानी 8 करोड़ रूपए ही जुटा पाई। पार्टी के लिए चंदा जुटाने में पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल अव्वल रहे हैं। उन्होंने आजीवन सहयोग निधि के लिए बिलासपुर से करीब डेढ़ करोड़ रूपए इकट्ठा कर दिए हैं। वैसे तो रायपुर जिले ने 70 लाख जुटाए हैं, लेकिन बिलासपुर की तुलना में आधे से भी कम है।
पार्टी के लिए चंदा जुटाने के अभियान में सक्रिय योगदान के लिए अजय चंद्राकर की भी खूब प्रशंसा हो रही है। धमतरी जिले से करीब 56 लाख रूपए एकत्र हुए हैं। इनमें से 34 लाख रूपए अजय ने अपने विधानसभा क्षेत्र कुरूद से इक_ा कर दिए हैं। रायपुर पर ज्यादा से ज्यादा राशि जुटाने का दबाव था, लेकिन यहां के नेताओं ने इससे ज्यादा रकम जुटाने में असमर्थता जता दी।
बताते हैं कि खैरागढ़ उपचुनाव, नगरीय निकाय उपचुनाव आदि के लिए भाजपा नेताओं ने रायपुर से ही राशि जुटाई थी। और अब जब आजीवन सहयोग निधि के लिए उद्योगपतियों-व्यापारियों के पास गए, तो उन्होंने हाथ खड़े कर दिए।
कुछ ना कुछ अटपटा लग रहा है !
छत्तीसगढ़ में एक बच्चा बोरवेल के गड्ढे में गिर गया तो उसे बचाने के लिए सरकार अपनी तमाम ताकत का इस्तेमाल कर रही है। राज्य की पुलिस के साथ-साथ केंद्र सरकार के सुरक्षा बल के लोग भी लगाए गए हैं, और गुजरात से भी एक ऐसे रोबो विशेषज्ञ को बुलाया गया है जो बोरवेल से बच्चों को निकालने में महारथ का दावा करता है। लेकिन दो दिनों से इन खबरों की हैडिंग देखें तो लगातार उन्हें पढ़-पढक़र कुछ अटपटा लग रहा है।
सुर्खियां कहती हैं-भूपेश ने कहा कि राहुल को गड्ढे से निकालने के लिए हर मुमकिन कोशिश हो रही है।
मुख्यमंत्री ने तमाम रात जागकर राहुल का हाथ जाना, और राहुल को बचाने के निर्देश दिए।
मुख्यमंत्री ने राहुल के परिवार से बात की और भरोसा दिलाया कि राहुल को बचाया जाएगा।
भूपेश बघेल ने कहा कि राहुल की जान कीमती, और उसके लिए सब लोग कोशिश कर रहे हैं।
अब इन सुर्खियों में अटपटा क्या लग रहा है, वह तो समझ नहीं आ रहा, लेकिन कुछ ना कुछ अटपटा लग रहा है !
सवाल में ही छिपा जवाब
छत्तीसगढ़ में स्कूली शिक्षा के गिरते स्तर को लेकर बार-बार सवाल उठते हैं। नीति आयोग की हाल की स्कूल एजुकेशन क्वालिटी इंडेक्स रिपोर्ट में प्रदेश को 27वें स्थान पर रखा गया था। यानि एक दो राज्यों से ही बेहतर, बाकी से पीछे। सरकार सुधार के लिए चाहे जो कर रही है, व्यावसायिक परीक्षा मंडल ने एक सर्वे जरूर करा लिया। कल हुई बीएड की परीक्षा में पूछे गए सवालों में से एक था- एक विद्यालय के लिए सबसे बड़ी समस्या क्या है? वित्त का अभाव, अच्छे बुनियादी ढांचे का अभाव, अच्छे शिक्षको का अभाव, छात्रों का लगातार अभाव।
प्रश्न वैकल्पिक था। किसी एक जवाब पर ही निशान लगाना था। जो छात्र इन सभी को समस्या मानकर चलते हैं, उनको सही जवाब तय करने में बड़ी दिक्कत हुई।
फिर तैयार रहें झटके के लिए...
महंगाई से फिलहाल कोई राहत नहीं मिलने वाली है। छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों की अगले महीने से आमदनी और कम होने वाली है। पांच साल पहले जब जीएसटी प्रणाली लागू की गई थी तो केंद्र ने राज्यों को आश्वस्त किया था कि यदि उनका टैक्स कलेक्शन नहीं बढ़ा तो केंद्र पांच साल तक क्षतिपूर्ति करेगी। यह अवधि इस माह समाप्त हो रही है। इसका मतलब यह है कि केंद्र से हर माह मिलने वाली 6500 करोड़ रुपये की क्षतिपूर्ति से हाथ धोना पड़ेगा। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और जीएसटी मंत्री टीएस सिंहदेव ने केंद्र सरकार से क्षतिपूर्ति को 10 साल तक जारी रखने की मांग की थी। कुछ अन्य राज्यों से भी यही कहा, पर केंद्र ने ऐसा करने का कोई संकेत नहीं दिया। राज्य की वित्तीय हालत बहुत अच्छी नहीं है। चुनावी वायदे पूरे करने के लिए बार-बार कर्ज की जरूरत पड़ रही है। अनेक सरकारी, संविदा और दैनिक वेतनभोगी कर्मचारियों के चुनाव में किये गए वायदे पूरे नहीं किए जा सके हैं। शराबबंदी का एक बड़ा चुनावी संकल्प लिया गया था, पर राजस्व घटने की चिंता में उसे भी बंद करने के बारे में सरकार नहीं सोच पा रही। केंद्र ने जब हाल ही में पेट्रोल डीजल के दाम कुछ कम किए तो छत्तीसगढ़ सरकार ने कदम मिलाने से मना कर दिया, वैट नहीं घटाया। अब जनता और ज्यादा टैक्स वहन करने की स्थिति में नहीं है। चुनाव भी आने वाला है, कोई अलोकप्रिय फैसला लेना सरकार के लिए मुश्किल होगा। सरकार के वित्तीय सलाहकारों को आमदनी बढ़ाने का कोई तो उपाय सोचना होगा।
नई सडक़ पर मस्ती
यह सुकमा जिले के सुदूर एक गांव की तस्वीर है। आजादी के बाद पहली बार यहां चौड़ी सडक़ मशीन से बन रही है। बच्चे नाच-नाचकर अपनी खुशी जता रहे हैं।
कोयला तस्करी का आरोप गलत नहीं है...
खदान से कोयला तस्करी का वीडियो वायरल कर पूर्व आईएएस ओपी चौधरी फंस गए हैं। प्रारंभिक जांच के बाद वीडियो के फर्जी पाए जाने पर कोरबा पुलिस ने चौधरी के खिलाफ जुर्म दर्ज कर लिया है। चौधरी की पहली प्रतिक्रिया आई, कि वीडियो पहले से वायरल था, जिसे उन्होंने अपने ट्विटर एकाउंट पर पोस्ट किया। यानी एक बात तो साफ हो गई कि चौधरी ने वीडियो की सत्यता को परखे बिना कोरबा के खदान से तस्करी होना बताया, और फिर इससे माहौल गरम हो गया।
बताते हैं कि वीडियो दो साल पुराना है, और यह धनबाद की कोयला खदान का है। जिसमें छेड़छाड़ कर कोरबा के खदान जैसा रूप देने की कोशिश की गई। लेकिन कोरबा की खदानों से 20 फीट नीचे से कोयला निकाला जाता है, और वीडियो इससे एकदम अलग है। खैर, पुलिस की जांच जैसे-जैसे आगे बढ़ेगी, वास्तविकता सामने आएगी।
दूसरी तरफ, पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह, और पार्टी के बड़े नेताओं का साथ मिलने के बाद ओपी चौधरी के हौसले बुलंद हैं। रमन सिंह, धरमलाल कौशिक सहित कुछ अन्य नेताओं ने चौधरी के समर्थन में ट्वीट कर भूपेश सरकार की खिंचाई की है। पार्टी के उन नेताओं ने भी ओपी चौधरी के समर्थन में ट्वीट किया है कि जो कि चौधरी को नापसंद करते हैं।
कोयला खदानों से तस्करी आम है। इसको लेकर कई सालों से सदन से बाहर और भीतर मामला उठते भी रहा है। ऐसे में चौधरी कोयला तस्करी का आरोप लगा रहे हैं, तो वो गलत नहीं है। मगर यह सवाल जरूर उठ रहा है कि कोयला तस्करी साबित करने के लिए फर्जी वीडियो की जरूरत क्यों पड़ी। चाहे कुछ भी हो, चौधरी सुर्खियों में तो आ गए हैं।
राहुल ने प्रिंस की याद दिला दी
खुले बोरवेल में गिरने की पहली घटना जो देश भर में चर्चित रही, वह हरियाणा की थी। 23 जुलाई 2006 को 5 साल का प्रिंस दोस्तों के साथ खेलने के दौरान खुले बोरवेल के नीचे जा गिरा था। बोरवेल का मुंह बोरी के टुकड़े से बंधा था लेकिन वह खेल-खेल में उसके भीतर जा घुसी चुहिया को पकडऩे के दौरान फिसल कर नीचे जा गिरा। उस समय न्यूज़ चैनल का नया-नया क्रेज था। सारे चैनल बचाव कार्य की लाइव कवरेज कर रहे थे। दूरदर्शन भी पीछे नहीं था। लोग सांस बांधे घंटों टीवी पर बैठे हुए थे। कई लोगों ने खाना-पीना भी त्याग दिया। देश में जगह-जगह उसकी सलामती की प्रार्थनाएं होने लगी थी। सेना ने 50 घंटे की मशक्कत के बाद प्रिंस को बाहर निकाल लिया। एक मजदूर के बेटे प्रिंस की हिम्मत को दाद देते हुए सेलिब्रिटी और नेताओं ने उन्हें नगद राशि उपहार में भी दिए। सरकारी नौकरी का भी वादा किया गया। अब प्रिंस 21 साल का हो चुका है और हरियाणा के अपने गांव कुरुक्षेत्र जिले के गांव हल्देहाड़ी में रहता है। जो पैसे मिले थे, उससे उसका घर कच्चे की जगह पक्का हो गया, पर नौकरी नहीं मिली, बेरोजगार है। सेना में जाना चाहता है।
मालखरौदा के पिहरीद गांव में 11 साल के राहुल को लेकर भी पूरे छत्तीसगढ़ में इसी तरह लोगों की चिंता बनी हुई है। राज्य बनने के बाद किसी एक जान को बचाने के लिए अब तक का अब तक का सबसे बड़ा अभियान यहां चल रहा है।
बारिश के पहले की तैयारी
मॉनसून करीब आने पर सब अपनी-अपनी तैयारी कर रहे हैं। किसान खेतों को सुधारने, खाद की व्यवस्था में जुटा है, वह अपनी खपरैल छत सुधार रहा है। मेंटिनेंस के नाम पर बिजली कटौती हो रही है। शहरों में नालियां साफ हो रही हैं। बच्चों को 16 जून से स्कूल भेजना है, अभिभावक कॉपी, किताब और यूनिफॉर्म की व्यवस्था को लेकर चिंता में हैं। और खनिज विभाग का काम इस वक्त आंख मूंदकर बैठे रहना है। अवैध रेत खनन के चलते नदियों और पर्यावरण को हो रही गंभीर क्षति को लेकर कहीं कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। जनवरी माह की एक समीक्षा बैठक में सीएम ने कहा था कि अवैध रेत खनन पर सख्ती बरतें। शिकायत मिली तो सीधे कलेक्टर, एसपी जिम्मेदार माने जायेंगे। इसके बाद प्रदेश भर में कुछ दिनों तक ताबड़तोड़ वाहनों की जब्ती की गई, जुर्माना ठोका गया। इसके रोजाना आंकड़े भी जारी किये जाते रहे। फिर सब अपने-अपने काम में पहले की तरह ही लौट आए।
सरकार ने 16 जून से रेत निकालने पर प्रतिबंध लगाने का आदेश निकाला है। बारिश के चार महीने तक ये पाबंदी लागू रहेगी। पर, इस दौरान कंस्ट्रक्शन का काम तो रुकेगा नहीं। इसे देखते रेत माफिया आपूर्ति बनाए रखने के लिए दिन-रात खुदाई कर रहे हैं। नियम कायदों की कोई परवाह नहीं, कार्रवाई का खौफ भी नहीं। 2013 के गौण खनिज अधिनियम के अनुसार किसी पुल, राजमार्ग के 100 मीटर के दायरे में खनन नहीं हो सकता, किसी प्राकृतिक जल स्त्रोत, बांध या जलभराव के 50 मीटर के भीतर खुदाई नहीं हो सकती। नदी के तीन मीटर से अधिक बेड रॉक की गहराई के बाद खुदाई नहीं की जा सकती। तटों के तीन मीटर के दायरे में भी नहीं हो सकती। पर प्राय: इनमें से सभी नियमों का उल्लंघन हो रहा है। सभी बड़ी छोटी नदियों से ऐसी शिकायतें आ रही हैं। आवंटित रेत घाट से ही खुदाई करनी है, पर इसका भी पालन नहीं हो रहा है। जहां मर्जी वहां से रेत निकाली जा रही है। कलेक्टर, एसपी को जनवरी माह में दिए गए निर्देश का पालन होता नहीं दिख रहा। हो भी कैसे, रेत के कारोबार से जुड़े लोग या तो अपने इलाके के प्रभावशाली नेताओं के करीबी हैं या फिर उनका विभाग के अधिकारियों से सीधे संपर्क है। कोई भी सरकार हो, ये फलता-फूलता धंधा रहा है। बारिश से पहले निकालिए और मनमाने दाम पर बेचें।
कांग्रेस नेत्री का एक लुक..
छत्तीसगढ़ से हाल ही में राज्यसभा के लिए निर्वाचित सांसद रंजीता रंजन का एक अंदाज यह भी है। (सोशल मीडिया से)
जैसों की वजह से लुटिया डूबी है
हरियाणा में भले ही कांग्रेस प्रत्याशी अजय माकन को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन यहां पर्यवेक्षक सीएम भूपेश बघेल ने अपनी तरफ से कोई कसर बाकी नहीं रखी। रायपुर आए 28 विधायकों को पूरे समय निगरानी में रखा, और विपक्ष की तगड़ी घेराबंदी के बावजूद बिखरने नहीं दिया। जो तीन विधायक हरियाणा में रह गए थे उनकी वजह से माकन की नैया डूब गई।
एआईसीसी ने भूपेश के साथ-साथ छत्तीसगढ़ से नवनिर्वाचित राज्यसभा सदस्य राजीव शुक्ला को भी हरियाणा के लिए पर्यवेक्षक बनाया था। राजीव शुक्ला एक दिन रायपुर आकर रिसॉर्ट में विधायकों से मिले। इसके बाद वो निकल गए। बाद में चुनाव के एक दिन पहले राजीव शुक्ला राजकोट के स्टेडियम में अमित शाह के बेटे जय शाह के साथ भारत-दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट मैच का लुफ्त उठाते देखे गए। पार्टी के कई लोग कह रहे हैं कि राजीव शुक्ला जैसों की वजह से लुटिया डूबी है, तो वो पूरी तरह गलत नहीं है।
एक-दूसरे को शुक्रिया
वैसे तो राजस्थान में राज्यसभा की तीनों सीटों पर जीत का सारा क्रेडिट सीएम अशोक गहलोत को दिया जा रहा है। दो प्रत्याशी रणदीप सिंह सुरजेवाला, और मुकुल वासनिक की जीत पक्की थी, लेकिन तीसरे प्रत्याशी प्रमोद तिवारी की जीत के लायक वोट नहीं थे। ऐसे में निर्दलीय, और अन्य के सहयोग से ही प्रमोद की जीत संभव थी। और जब नतीजे आए तो प्रमोद तिवारी ने तो कह भी दिया कि गहलोत का जादू चल गया।
मगर प्रमोद की जीत में पर्यवेक्षक टीएस सिंहदेव ने भी भरपूर योगदान दिया। सिंहदेव, मतदान के पहले तक विधायकों से अलग-अलग चर्चा करते रहे, और उनकी बातें गहलोत तक पहुंचाई। विधायकों से जुड़ी चीजों का निदान होते रहा, और जब नतीजे आए तो गहलोत ने सिंहदेव को हाथ जोडक़र थैंक्स कहा। लेकिन सिंहदेव ने सारा क्रेडिट उन्हें (गहलोत) ही दिया।
मतगणना स्थल के बाहर प्रमोद तिवारी, और उनकी दोनों बेटियां सिंहदेव के साथ ही थे। वो काफी टेंशन में थे, और जीत की घोषणा के बाद प्रमोद तिवारी, और उनके परिवार ने सिंहदेव का आभार माना। कांग्रेस ने सिंहदेव के साथ-साथ पूर्व केन्द्रीय मंत्री पवन बंसल को भी पर्यवेक्षक बनाया था। लेकिन वो जयपुर नहीं आए, और सिंहदेव के ही लगातार संपर्क में रहकर स्थिति की जानकारी ली।
100 रुपए से भला क्या होगा?
छत्तीसगढ़ में आगामी खरीफ फसलों की तैयारी शुरू हो गई है। कुछ दिन पहले केंद्र ने इन फसलों के लिए समर्थन मूल्य की घोषणा की। पिछले साल के मुकाबले इस साल धान की कीमत में 100 रुपए की वृद्धि की गई है। सन् 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुना करने का केंद्र की मोदी सरकार का वादा था। पर, हकीकत क्या अब जरा इस पर भी नजर डाल लेते हैं। बीते साल के मुकाबले खेती पर लागत इस बार करीब डेढ़ गुना बढ़ जाएगी। खाद की कीमतों में भारी वृद्धि हो चुकी है। पोटाश का दाम तो पिछले साल से 700 रुपए अधिक है। यूरिया का दाम नहीं बढ़ा है, पर बाकी खाद 150 रुपए कम से कम बढ़े गए हैं। आपूर्ति का संकट गहरा है, जिसके चलते ब्लैक में भी जरूरतमंद किसानों को खरीदना पड़ेगा। डीजल का दाम बढऩे का असर ये हुआ है कि ट्रैक्टर के किराए में 30 से 40त्न तक की वृद्धि हो गई है। मजदूरी दर भी कम से कम 50 रुपये तो बढ़ ही गया है।
किसान संगठन लगातार मांग करते आ रहे हैं कि सी-2 फार्मूले के तहत उनकी उपज का समर्थन मूल्य किया जाए। यानि होने वाले पूरे खर्च के अलावा जिस जमीन पर वे बोते हैं उसका भी किराया और किसानों का व्यक्तिगत श्रम जोड़ा जाए। यही स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश भी रही है। पर मौजूदा मोदी सरकार ही नहीं, इससे पहले की भी किसी सरकार ने अब तक कभी इस फार्मूले पर भुगतान नहीं किया है। प्रति क्विंटल 100 रुपये की वृद्धि खेती की बढ़ी हुई लागत के मुकाबले बहुत मामूली है। बस किसानों को इससे महंगाई के झटकों का सामना में थोड़ी मदद मिल पाएगी, पर आमदनी बीते सालों से कम ही रहेगी।
कर्मठ मां की चिंता भरी दुलार
सोशल मीडिया पर एक छोटी सी वीडियो क्लिप आईपीएस अंकिता शर्मा ने पोस्ट की है। बच्चे को सीट चुभेगी भी नहीं और वह हिलने डुलने के बावजूद लुढक़ेगा नहीं। मां ने सीट पर छोटी सी कुर्सी बांधकर बच्चे को बिठाया और काम पर निकल पड़ी।
सुप्रीम कोर्ट का निर्देश भूल चुके अफसर
जांजगीर जिले के मालखरौदा में बोरवेल के लिए खोदे गए गड्ढे में 10 साल के बालक राहुल के गिर जाने के बाद अब पूरे प्रदेश में खुले बोरवेल गड्ढों की जांच और सतर्कता बरतने का निर्देश दिया गया है। पता नहीं इस निर्देश को कब तक अधिकारी गंभीरता से लेंगे। लगातार ऐसे हादसे सामने आने पर सुप्रीम कोर्ट ने अब से करीब 11 साल पहले सभी राज्य सरकारों के लिए गाइडलाइन तय कर दी थी। इसमें कहा गया था कि नलकूप खुदाई से पहले सक्षम अधिकारी को सूचना देनी है। खुदाई वही करेगा जिसका पंजीयन होगा। खुदाई की जगह पर साइन बोर्ड लगा होगा और फेंसिंग कराई जाएगी। केसिंग डालने के बाद ईंट की एक छोटी दीवार चारों तरफ खड़ी की जाएगी और पाइप का मुंह बंद रखा जाएगा। यदि किसी कारण से बोरवेल फेल हो जाता है तो उसकी कंक्रीट रेट या पत्थर के टुकड़ों से फीलिंग की जानी है। छत्तीसगढ़ में शायद ही कहीं पर इसका पालन हो रहा होगा। राहुल का हादसा उसके अपने घर में ही हुआ है।
कुंडली मारकर बैठे...
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के म्युनिसिपल की खबर है कि नए कमिश्नर मयंक चतुर्वेदी ने महिला पार्षदों के पतियों से बात करने से इंकार कर दिया है। उनके साथ मुलाकात के दौरान एक पार्टी के पार्षद दल में महिला पार्षदों के पति भी थे, और वे आदतन बातचीत में दखल भी दे रहे थे। उनका परिचय पाने के बाद कमिश्नर ने उनसे बात करने से इंकार कर दिया।
पूरे हिन्दुस्तान में अधिकतर जगहों पर पार्षद पति, पंच-सरपंच पति, विधायक या जिला पंचायत अध्यक्ष पति, या सांसद पति तक का राज चलता है। जिन पुरूषों में महिला आरक्षण की वजह से वार्ड या पंचायत छूट जाने का डर रहता है, वे भी अपनी पत्नियों के नाम हलफनामे से बदलकर उनके नाम के साथ अपना नाम जुड़वा लेते हैं, और मानो उनकी छत्रछाया में पत्नियां काम करती हैं, अंगूठा लगाती हैं। मजाक-मजाक में लोग पंच-पति को पाप और सरपंच-पति को सांप भी कहते हैं, क्योंकि वे छूट गई कुर्सी पर बीवी को बिठाकर उस पर सांप की तरह कुंडली मारकर बैठ जाते हैं।
रायपुर म्युनिसिपल कमिश्नर एक नौजवान अफसर हैं, और उन्होंने यह ठीक फैसला लिया है। आज तो हाल यह है कि महिला पार्षदों की तरफ से उनके पति ही म्युनिसिपल के अफसरों को हुक्म देते रहते हैं, देखें अब तस्वीर कितनी बदलती है।
रोहिंग्या मुसलमानों की धमकी?
सरगुजा के मैनपाट में 1962 से बसे तिब्बती शरणार्थियों को प्रदेश के हर हिस्से में जाना जाता है। मैनपाट की खूबसूरत प्राकृतिक छटा के अलावा पर्यटकों को यहां के शरणार्थी तिब्बतियों की विशिष्ट जीवन शैली आकर्षित करती है। छत्तीसगढ़ में वे रच बस गए हैं। हर बड़े शहर में ऊनी कपड़ों का बाजार ठंड के दिनों में लगाते हैं। उन्होंने खेती के नए-नए प्रयोग मैनपाट में किए, जिसका लाभ स्थानीय किसानों को भी मिलता है। पिछले दिनों उनके बीच दहशत फैलाने की कोशिश की गई। उनके कैंप के गेट पर किसी ने चेतावनी भरा परचा चिपका दिया, जिसमें कहा गया कि संभल कर रहें अन्यथा अंजाम भुगतने के लिए तैयार रहें। धमकी देने वाले ने खुद को रोहिंग्या मुसलमान बताया है। इस परचे के जरिये यह बताने की कोशिश हुई है कि सरगुजा में रोहिंग्या मुसलमानों की मौजूदगी है। कुछ समय पहले अंबिकापुर में रोहिंग्या लोगों की मौजूदगी का आरोप लगाया गया था, जिसकी प्रशासन ने जांच कराई थी। कोई नहीं मिला था। क्या तब प्रशासन ढूंढ नहीं पाया और वे अब मैनपाट तक पहुंच गये? या फिर उनके नाम पर कोई और शरारत कर रहा है? पुलिस और प्रशासन इस परचे की वास्तविकता को सामने लाकर लोगों के मन में उपजे सवालों को सुलझा सकता है। वरना इस तरह का मामला आने वाले चुनाव में किसी को फायदा पहुंचा सकता है, तो किसी को नुकसान उठाना पड़ सकता है।
पेड़ों को बचाने का मंत्र..
हसदेव अरण्य के पेड़ों को बचाने के लिए छत्तीसगढ़ में अलग-अलग स्तर पर सामूहिक जमावड़े के साथ आंदोलन तो हो ही रहे हैं, व्यक्तिगत स्तर पर भी लोग इस मुहिम में योगदान कर रहे हैं। ऐसे ही एक प्रयास की झलक मिल रही है शादी के इस निमंत्रण पत्र में। यह छत्तीसगढ़ी में दिया गया न्यौता तो है ही, साथ ही मंत्र की जगह पर घने वृक्ष की तस्वीर के नीचे लिखा है- एक पेड़ जिनगी भर... हैशटैग हसदेव। वर डॉ. वैभव को मालूम है कि जीवन का मंगल इसी मंत्र से होना है।
सरकारी खरीद से बिदके उत्पादक
किसानों ने सहकारी समितियों के बजाय व्यापारियों को अपना मक्का बेचना शुरू कर दिया है। व्यापारियों की खरीद कीमत में ज्यादा फर्क नहीं है, पर सरकारी खरीद में कई पेंच हैं। अपनी खेती के रकबे का पंजीयन पटवारी से सत्यापन लेकर कराओ, ऋण पुस्तिका दिखाओ। नमी 14 प्रतिशत से ज्यादा हो तो सोसाइटी में खरीदी होगी नहीं, खरीदी के बाद पैसे के लिए फिर बैंक का चक्कर लगाओ। सरकारी खरीद केवल 10 क्विंटल की लिमिट में ही तय दिनों के लिए होगी, जबकि व्यापारी नगद देते हैं और साल भर खरीदते हैं। अब स्थिति यह है कि कांकेर, दंतेवाड़ा आदि जिलों के जिन 23 से ज्यादा पंजीकृत किसानों का मोह टूटा है, उनसे समिति प्रबंधक अपील कर रहे हैं कि सोसाइटी में मक्का लाएं, यहां पूरी व्यवस्था की गई है।
अभी बीते महीने तेंदूपत्ता संग्राहकों ने भी कहा कि वनोपज संघ की दर 4 हजार रुपये मानक बोरा है, जबकि दूसरे राज्यों के व्यापारी 11 हजार रुपये में खरीदने के लिए तैयार हैं। संग्राहक कहते हैं कि हमारी मेहनत पर वनोपज संघ सिर्फ मध्यस्थता करता है, तब इतना फर्क क्यों? वनोपज संघ कह रहा है कि हम तेंदूपत्ता संग्राहकों को पूरा पैसा देते हैं, व्यापारियों से बेचकर वे धोखा खा सकते हैं। फिर बीमा और लाभांश भी संग्राहकों को मिलता है। संग्राहक कह रहे हैं कि अच्छी कीमत हमें मिलेगी तो बीमा भी हम करा लेंगे, लाभांश की जरूरत भी नहीं पड़ेगी। तेंदूपत्ता संग्राहकों को कानूनी कार्रवाई की चेतावनी भी दी जा रही है। सरकार ने जिन वन उत्पादों को समर्थन मूल्य पर खरीदने का निर्णय लिया है, वे उत्पाद व्यापारी वनों से सीधे नहीं उठा सकते। उन्हें परमिट ही नहीं मिलेगी। कुल मिलाकर छत्तीसगढ़ में धान ही है, जिसे लोग सरकार को बेचने के लिए ज्यादा उगा रहे हैं। जो दूसरी उपज ले रहे हैं उनकी चिंताओं की तरफ भी ध्यान दिया जाए तो जो बोझ धान खरीदी के कारण सरकार पर पड़ता है वह कम हो सकता है।
जिसे चाहोगे वही मिलेगी
जिन लोगों को हिन्दुस्तान की प्राचीन विद्याओं पर बड़ा भरोसा है, उन्हें वशीकरण कही जाने वाली इस विद्या के बारे में भी सोचना चाहिए। वशीकरण बतलाता है कि किस तरह जिस युवती को बस में करना हो, उसका पुतला बनाकर क्या-क्या किया जाए, तो वह प्यार भी देगी, और शादी भी करेगी। यह पूरा मंत्र और इससे जुड़ी विधि इतनी आसान है कि खूबसूरत लड़कियों को इसके चलते हजार-हजार लोगों से शादी करनी पड़ेगी। पढ़ें और मजा लें।
किसके खिलाफ रिपोर्ट लिखते..
जांजगीर जिला प्रशासन ने उन तीन पटवारियों को सस्पेंड किया है जो एक महिला के घर संदिग्ध हालत में पाए गये थे। ग्रामीणों ने तीनों पटवारियों के परिवार वालों ने भी खूब खबर तो ली ही, पटवारी संघ ने भी उनको अपने संगठन से निकाल दिया है। पर पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। कोतवाली थाने में जब एक की पत्नी शिकायत लेकर पहुंची तो पुलिस ने कहा किसके खिलाफ शिकायत लिखें? उस महिला के खिलाफ नहीं लिख सकते। सुप्रीम कोर्ट का आदेश नहीं जानते हैं क्या? हमारी दखलंदाजी का मामला नहीं है। पति की हरकत से आप विचलित हैं तो आप उनके खिलाफ जरूर कोर्ट जा सकते हैं।
इस दावे का भी जवाब नहीं...
सरगुजा जिला मुख्यालय में रेलवे स्टेशन जाने के रास्ते पर राजस्थान राज्य विद्युत निगम लिमिटेड का एक बड़ा सा साइन बोर्ड आजकल दिखाई दे रहा है। पर पहले कभी बताया नहीं। आज जब परसा की नई खदान के खिलाफ आंदोलन चल रहा है तब राज खोला जा रहा है। छत्तीसगढ़ में कितने पौधे लगे, कितना जंगल उजड़ गया यह छत्तीसगढ़ के लोगों को राजस्थान की कंपनी आकर बता रही है।
एक पेड़ का महत्व तुम क्या जानो...
इंटरनेट पर पेड़ों की अहमियत को बताने के लिए कुछ तस्वीरें चारों तरफ घूमती हैं, जिनमें से एक पेड़ के नीचे सैकड़ों लोग इक_ा हैं। एक दूसरी तस्वीर है जिसमें चारों तरफ पेड़ कट गए हैं, और अकेले बचे पेड़ के सामने कुत्ते लंबी कतार में लगे हुए हैं ताकि बारी-बारी से उस पर पेशाब कर सकें। इस तरह की कुछ तस्वीरें बरसों से पेड़ों का महत्व बताने के लिए प्रचलन में हैं। लेकिन अभी छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र के ग्राम बासेन की एक तस्वीर आई है जिसमें वहां पहुंचने वाले पंचायत मंत्री टी.एस. सिंहदेव से मिलने के लिए लोग हेलीपैड के पास एक पेड़ के नीचे इक_ा हैं क्योंकि वहां छाया के लिए वही एक पेड़ नसीब है। इस जंगल के पेड़ कोयला खदान के लिए लाखों की संख्या में कटने जा रहे हैं, और एक-एक पेड़ का महत्व इस तस्वीर से साफ होता है। आंदोलन से आए हुए एक वीडियो से निकाली गई यह तस्वीर।
मन की बात भारी पड़ गई
आप वीडियो कॉन्फ्रेंस में बैठे हैं, तो सबसे पहली सावधानी यह बरतें कि आपके मोबाइल-डेस्कटॉप या लैपटॉप पर माईक बंद हो, वरना आपके मन की बात आम लोगों तक पहुंच जाएगी, और हो सकता है कि इससे आपको नुकसान भी उठाना पड़े।
कुछ इसी तरह की बातें एक उच्च स्तरीय बैठक में हुई, और मन की बात सुनते ही आला अफसर का पारा गरम हो गया। हुआ यंू कि सरकार के एक सीनियर अफसर गोधन न्याय योजना की वीडियो कॉन्फ्रेंस से समीक्षा कर रहे थे। यह योजना भूपेश सरकार की प्रिय, और महत्वाकांक्षी है। कॉन्फ्रेंस में सारे जिला पंचायत सीईओ जुड़े हुए थे।
बड़े अफसर योजना में खामियों पर रह-रह कर सीईओ पर बरस रहे थे। आला अफसर के सामने सीईओ की जुबान नहीं खुल रही थी। माईक चालू था, और एक सीईओ साथ बैठे सहयोगी से आपसी चर्चा में यह कहते सुने गए कि साला, बात तो सुनता ही नहीं, और बेवजह डांटते रहता है। फिर क्या था मन की बात अफसर तक पहुंच गई। इसके बाद अफसर ने घंटे भर तक सारे सीईओ को जमकर सुनाया। कुल मिलाकर समीक्षा पर मन की बात भारी पड़ गई।
मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है
हरियाणा के राज्यसभा चुनाव में खरीद-फरोख्त की आशंका के चलते कांग्रेस ने एहतियात बरतते हुए अपने विधायकों को नवा रायपुर के एक महंगे रिसॉर्ट में ठहराया है। कांग्रेस अपने राज्यसभा प्रत्याशी अजय माकन की जीत किसी तरह सुनिश्चित चाहती है। हाल यह है कि विधायकों को अपने परिजनों से भी बात करने की अनुमति नहीं दी गई है। ये विधायक कड़ी निगरानी में है। मगर चर्चा है कि माकन के प्रतिद्वंदी प्रत्याशी कार्तिकेय शर्मा किसी तरह विधायकों तक संपर्क की कोशिश में हैं। कार्तिकेय कई कंपनियों के मालिक हैं, और वो एक टीवी चैनल के कर्ता-धर्ता भी हैं।
सुनते हैं कि कार्तिकेय ने छत्तीसगढ़ में अपने टीवी चैनल में काम कर चुके लोगों के जरिए भी विधायकों तक पहुंच बनाने की कोशिश की। इन लोगों ने कार्तिकेय को साफ तौर पर बता दिया कि पूरे रिसॉर्ट पर कड़ा पहरा है। सरकार के दो मंत्रियों समेत कुल चार लोगों को ही उनसे बात करने की अनुमति है। मीडिया तो 2 किमी आसपास भी नहीं जा पा रहा है। ऐसे में किसी से संपर्क होना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। कार्तिकेय को उन चार लोगों के नाम बता दिए गए, जो कि विधायकों के संपर्क में हैं। अब ये लोग कार्तिकेय से बात भी करेंगे, यह सोचना भी व्यर्थ है।
गोदना का क्रेज...
गोदना का छत्तीसगढ़ के ग्रामीण इलाकों में पुराने दौर से चलन है। शिवरीनारायण अंचल में रामनामी संप्रदाय है, जिनमें पूरे शरीर में राम का नाम गुदवाने की परंपरा है। अनेक समुदाय हैं जो बचपन में ही अपने बच्चों को गोदना गुदवाते हैं। वे कहते हैं कि यदि गोदना गुदवाने की सुई का दर्द बच्चे ने सह लिया तो आगे चलकर हिम्मती बनेगा, हर तकलीफ को झेल पाने वाला। नई पीढ़ी के शहरों, महानगरों के युवाओं में भी गोदना प्रचलन में है, पर उसे टैटू के नाम से जाना जाता है। दोनों में एक बड़ा फर्क यह है कि गोदना कभी मिटाए नहीं मिटता। शरीर ने साथ छोड़ा तो कपड़े, गहने अलग हो जाएंगे, पर गोदना उसके साथ ही जाएगा। दूसरी तरफ टैटू में दूसरे केमिकल कुछ ऐसे मिलाए जाते हैं कि उन्हें पसंद नहीं आने पर बाद में मिटाया जा सकता है। यह तस्वीर बस्तर की बादल अकादमी की है, जहां युवा न केवल गोदना गुदवा रहे हैं, बल्कि इनमें से कई युवा इस कला को सीख भी रहे हैं।
दानीदाता से लोग लुटे...
ऑनलाइन एप से होने वाली ठगी का कोई ओर-छोर नहीं है। लोगों के हाथ में डेटा के साथ मोबाइल फोन क्या आया, धोखाधड़ी के शिकार होते जा रहे हैं। पर ऐसी सामूहिक ठगी शायद पहले नहीं हुई हो, जैसी सरगुजा जिले के भटगांव में हुई है। करीब 6-7 सौ लोगों ने दानीदाता एप डाउनलोड किया। कम से कम 500 रुपये का निवेश। फुटबाल में बेटिंग खेलने का मौका मिलता था। एक दिन में अधिकतम तीन बार। इसके बाद 0.75 प्रतिशत रकम जमा की गई राशि के लाभ के रूप में खाते में जमा हो रही थी। जितना ज्यादा निवेश, उतना ज्यादा फायदा। कई लोगों ने 2 लाख और उससे ज्यादा भी लगाए। 6 माह तक ऐप ठीक-ठाक चला। अब यह बंद हो चुका है, गूगल प्ले स्टोर से भी गायब है। अकेले भटगांव में कहा जा रहा है कि लोगों के एक करोड़ रुपये से ज्यादा डूब गए। बाकी जगहों से जानकारी जुटाई जाए तो यह रकम कहां पहुंचेगी, अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। गूगल सिर्फ वेरिफाइड एप अपने प्ले स्टोर पर डालने का दावा करता है। फिर ऐसी धोखाधड़ी करने वाले एप की उसने पुष्टि क्यों नहीं की, लोग जानना चाहते हैं। साइबर क्राइम से निपटने में अपनी जांच एजेंसियां भी बहुत एक्सपर्ट नहीं। सरकार ने ऐसे एप पर निगरानी के लिए कोई तंत्र भी नहीं बनाया है। चिटफंड कंपनियों के जरिये ठगी का तरीका पुराना हो गया, यह नई तकनीक से की जाने वाली ठगी है।
यह तो हद हो गई...
जंगल अफसर वन्यजीवों की हिफाजत को लेकर कितने सजग हैं यह कोरिया जिले के हाल ही में बने गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व में हुई टाइगर की मौत से पता चलता है। मौत के अगले दिन बड़े अधिकारी घटनास्थल पर पहुंचे और घोषणा कर दी कि टाइग्रेस (बाघिन) की मौत हुई है। उन्हें पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों ने बताया कि यह मादा नहीं, नर बाघ है। यह ठीक है कि शहरी इलाकों से लोग जंगल में मौज-मस्ती के लिए जाते हैं और शराबखोरी भी कई लोग करते हैं। पर टाइगर रिजर्व और बायोस्फेयर के नाम पर नागरिकों को आने-जाने पर जो पाबंदी लगा दी जाती है उनका फायदा वन अधिकारी उठाते हैं। जंगल में बसे गांवों के लोग ज्यादातर उनसे भयभीत रहते हैं क्योंकि बीच-बीच में उनको इनसे ही रोजगार मिलता है। जंगल के भीतर क्या हो रहा है यह बाहरी दुनिया को पता ही नहीं चलता। कैम्पा और दूसरे मदों से जंगल में करोड़ों रुपये पहुंच रहे हैं। जीपीएम जिले के मरवाही वन मंडल में सात करोड़ रुपये के काम हुए नहीं और अधिकारियों ने रकम दबा दी। इसमें तत्कालीन जिला पंचायत सीईओ निपट गए, डीएफओ पर एक्शन हुआ। विधानसभा में भी यह मामला उठा था। सुनने में आ रहा है कि गुरु घासीदास टाइगर रिजर्व में भी ऐसा ही खेल चल रहा है। राजधानी में बैठे अफसरों की मेहरबानी से यहां कैंपा मद में खूब पैसे आ रहे हैं। टाइगर रिजर्व के डायरेक्टर राजधानी में बैठे एक सीनियर ऑफिसर के करीबी हैं, इसलिये ऐसा मुमकिन हो रहा है। घने जंगलों के भीतर चौड़ी सडक़ें और पुल-पुलियों का निर्माण कराया जा रहा है, जो जानवरों की स्वछन्द आवाजाही पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है। इन निर्माण कार्यों की गुणवत्ता भी देखने वाला कोई नहीं है। जीपीएम जिले का मामला कोरिया जिले के ही संसदीय सचिव गुलाब कमरो ने विधानसभा में उठाया था, पर पता नहीं अपने खुद के जिले में हो रही गड़बड़ी की तरफ उनका ध्यान क्यों नहीं है? जिस रेंजर के इलाके में घटना हुई है वे तीन बार अपना तबादला रुकवाकर यहीं डटे हैं। विभाग में कई डिप्टी रेंजर अधिकारियों और नेताओं की उदारता के चलते रेंजर के प्रभार में हैं। ये भी उनमें से एक हैं। पहले इन अफसरों को नर-मादा पहचानने की ट्रेनिंग देनी चाहिए, उसके बाद उन्हें जंगल भेजना चाहिए।
झरने की ताकत
एक ओर बिजली के लिए देशभर में कोयले का संकट बना हुआ है और इसके लिए उद्योगपति घने जंगलों को भी उजाडऩे पर आमादा हैं, वहीं दूसरी ओर रायगढ़ के धरमजयगढ़ इलाके में अलग हटकर काम हुआ है। बेलसिंगा और माली कछार उरांव जनजाति बाहुल्य गांव हैं। पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण यहां तार खींचकर बिजली नहीं पहुंचाई जा सकी, पर विकल्प के रूप में सौर ऊर्जा की सुविधा भी अब तक नहीं मिल पाई। अब यहां सामाजिक विज्ञानी प्रो. डीएस मालिया ने प्राकृतिक झरने से टर्बाइन चलाकर बिजली पैदा कर दी है। जैसा उनका दावा है, दोनों गांवों के 26 घरों में पांच-पांच बल्ब इस बिजली से जलेंगे। आंगनबाड़ी और स्कूल भी बिजली से रोशन होंगे। यही नहीं रायगढ़ जिले के दो और गांवों में बहुत जल्दी यह प्रयोग शुरू किया जाएगा। जंगल को बचाये रखकर प्रकृति में उपलब्ध साधनों से ही गांव के विकास का यह सटीक उदाहरण है। हैरानी की बात है कि पिछले 20 साल से प्रो. वालिया इस आइडिया को मूर्त रूप देना चाहते थे, पर बजट के अभाव में काम रुका था। शासन ने शायद इस नये प्रयोग को अहमियत नहीं दी, वरना ग्रामीण विकास के मद में कई तरह के फंड होते हैं, जिससे यह काम पहले पूरा हो सकता था।
तो इसलिये बंधे हैं हाथ...
जो हसदेव अरण्य को बचाने के लिए चल रहे आंदोलन को देखने के लिए नहीं पहुंच सके हैं, यह तस्वीर देख सकते हैं। एक तरफ वन कर्मचारी मजदूरों को गाडिय़ों में भरकर पेड़ों को काटने के लिए पहुंचे हैं, दूसरी ओर पेड़ों को काटने से रोकने के लिए प्रभावित आदिवासी ढाल बनकर खड़े हैं।
इस साग का नाम तो जानते ही होंगे आप...
छत्तीसगढ़ में अनूठे फलों की भरमार है। इनमें से एक है बड़हल या बड़हर। इसका अंग्रेजी नाम है-आर्टोकार्पस लैकूचा। इसे मंकी फ्रूट भी कहते हैं। इन दिनों बाजार में यह फल बहुत आ रहा है। फल से कटहल की तरह सब्जी बनती है, इसके फूलों से भी कोफ्ता आदि स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाया जा सकता है। इसकी लकडिय़ां भी कीमती हैं। पारंपरिक वाद्य यंत्र बनाने में इसकी डालियों और तने का इस्तेमाल किया जाता है।
बस्तर की जागरूकता!
जिन लोगों को यह लगता है कि छत्तीसगढ़ के बस्तर में लोग कम पढ़े-लिखे हैं, उन्हें यह देखकर हैरानी हो सकती है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के गांव-गांव के दौरों में लोगों की जागरूकता किस तरह सामने आती है। अभी उन्होंने खाद की कमी सामने आने पर एक गांव की सभा में लोगों को बताया कि यह खाद केन्द्र सरकार देती है, और उसके पास भी यह दूसरे देशों से आती है। ऐसे में आज जब जंग चल रही है, तो खाद की कमी हो गई है। इसके साथ ही उन्होंने सभा में मौजूद लोगों की भारी भीड़ से सवाल किया कि क्या उन्हें मालूम है कि रूस ने किस देश पर हमला किया है, तो इसके जवाब में एक साथ दर्जनों लोगों ने यूक्रेन का नाम लिया! बस्तर के जंगलों के बीच बसे हुए लोगों की यह जानकारी बताती है कि वे न केवल देश-प्रदेश, बल्कि दुनिया की भी खबर रखते हैं, और मुख्यमंत्री के सवाल के जवाब में तुरंत तैयार भी रहते हैं।
मनरेगा सहायकों की हड़ताल
बीते 2 महीने से ज्यादा हड़ताल पर चल रहे मनरेगा कर्मचारियों का विवाद कसैला सा हो गया है। सीएम ने इनका वेतन लगभग दोगुना करने की घोषणा कर दी है। 5 या 6 हजार रुपये की जगह अब उनको 9000 से अधिक मिलेंगे। चुनावी घोषणा इन्हें नियमित करने की थी, अभी संविदा पर हैं। शायद वित्तीय असंतुलन की वजह से मांग पूरी नहीं की जा रही है। अब आवेश में आकर जिन 12000 कर्मचारियों को उनके नेताओं ने इस्तीफा दिलवाया है क्या वे नया रोजगार पा सकेंगे जिसमें उन्हें 9, 10 हजार रुपये मिले। सरकार ने नई भर्ती की चेतावनी भी दे दी है। पूरी परिस्थिति संवाद हीनता की वजह से बिगड़ी ऐसा लगता है। रोजगार सहायकों की नौकरी का छिन जाना उनके और उनके परिवार के लिए फायदेमंद बिल्कुल नहीं है। शायद सरकार भी एक साथ इतने लोगों को बाहर करने के बारे में न सोचे। कायदे से सुलह का कोई रास्ता निकाला जाए जिससे उनकी नौकरी बची रहे।
प्लास्टिक बैन सफल होगा?
प्रदेश में 1 जून से सिंगल यूज़ प्लास्टिक बैग पर रोक लगाने की घोषणा की गई थी। अब इसकी तारीख 1 जुलाई कर दी गई है। इस नियम के मुताबिक प्लास्टिक स्टिक, थर्माकोल, डिस्पोजल, चम्मच, थैली आदि यदि 100 माइक्रोन से कम मोटाई है तो बाजार में नहीं दिखेंगे। बैन पहले भी लगे पर, इस बार केंद्र सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार लागू किया जा रहा है। दूसरे कुछ राज्यों में जैसे राजस्थान, झारखंड, दिल्ली में पर्यावरण फ्रेंडली बैग बाजार में आ चुके हैं पर छत्तीसगढ़ में यह अभी दिखाई नहीं दे रहा है। जब तक प्लास्टिक बैग का विकल्प नहीं मिलेगा यह नियम कैसे लागू होगा, कितना हो सकेगा, सवाल बना हुआ है।
गैस का विध्वंस करने वाली तेलीबांधा रायपुर की एक दुकान। बोलचाल में कहें तो यहां हवाबाण हरडे मिलता है।
कार्तिकेय के डर से, दिलीप के होटल में!
राज्यसभा चुनाव में विधायक और सांसद वोटों की खरीद-फरोख्त कोई नई बात नहीं है, और आज तो हिन्दुस्तान में संसदीय मंडी चकलाघर की तरह चलती है। चकलाघर कहना भी कुछ ज्यादती होगी क्योंकि वहां पर तो महिला सिर्फ अपना खुद का बदन बेचती है, जब सांसद और विधायक अपने को बेचते हैं, तो वे उन्हें चुनने वाली जनता का विश्वास बेचते हैं, अपनी पार्टी के प्रति वफादारी बेचते हैं, और अपना ईमान बेचते हैं, जो कि देह बेचने के मुकाबले बहुत ही घटिया काम है।
अब आज पार्टियों की हालत यह हो गई है कि अपने लोगों को ऐसा घटिया काम करने से रोकने के लिए उन्हें दूसरे प्रदेशों में ले जाकर अपनी सरकार और अपनी पार्टी की निगरानी में ठहराना पड़ता है, और उन्हें सात सितारा ऐशोआराम देना पड़ता है। हरियाणा से कांग्रेस के 28 विधायकों को लाकर इसी वजह से छत्तीसगढ़ के रायपुर में सबसे महंगे होटल में ठहराया गया है, और कांग्रेस की सरकार होने से उसे सरकारी निगरानी से घेर दिया गया है। दिलचस्प बात यह है कि यह होटल दिलीप रे नाम के एक भूतपूर्व केन्द्रीय मंत्री का है। ओडिशा के दिलीप रे ने 2002 में वोटों को खरीदकर राज्यसभा की सदस्यता खरीदी थी। आज संयोग ऐसा है कि वैसे भूतपूर्व सांसद की वर्तमान होटल में भावी वोटरों को ठहराकर उनकी खातिरदारी की जा रही है। एक समय उत्तर भारत के एक राज्य के बारे में सुना जाता था कि वहां बंदूक की नोंक पर शादी के लायक लडक़े को उठाकर बंदूकों के घेरे में अपनी लडक़ी से उसकी शादी करवा दी जाती थी। आज उसी तरह नोटों के घेरे में विधायकों को उठाकर अपना सांसद बनवाया जाता है।
लेकिन इसके अलावा भी एक दिलचस्प संयोग हरियाणा के इस चुनाव से रायपुर का जुड़ा हुआ है। जिस निर्दलीय उम्मीदवार कार्तिकेय शर्मा को लेकर कांग्रेस को यह आशंका है कि वह कांग्रेस विधायकों को खरीद सकता है, वह भी रायपुर में कारोबार कर चुके विनोद शर्मा का बेटा है, और उनका भी रायपुर में पिकैडली होटल है। मतलब यह कि पिकैडली के लिए वोट करने का खतरा रखने वाले विधायकों को मेफेयर लेक रिसॉर्ट में ठहराया गया है। कार्तिकेय शर्मा का परिचय लिखता है कि वे पिकैडली ग्रुप के एमडी हैं। वे और भी कई कंपनियों के मालिक हैं, और उनके पिता का मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ जैसे कई राज्यों में शराब का बड़ा कारोबार रहा है। अब जाहिर है कि इतने ताकतवर के हाथ बिकने से बचने के लिए हरियाणा के कांग्रेस विधायकों को छत्तीसगढ़ की हिफाजत में रखा गया है, यह एक और बात है कि इसी तरह सांसद और केन्द्रीय मंत्री बने दिलीप रे की होटल में रखा गया है।
संबंध अच्छे रखने का नतीजा
छत्तीसगढ़ में आयकर अपीलीय अधिकरण का नया दफ्तर खुला, तो व्यापारी वर्ग को काफी राहत मिली। अधिकरण का स्थाई दफ्तर खुलवाने के लिए सांसद सुनील सोनी ने काफी मेहनत की थी। खुद केन्द्रीय मंत्री किरण रिजिजू ने मंच से कहा कि सोनीजी लगातार इसके लिए प्रयासरत थे, और उनके विशेष आग्रह पर ही वो उद्घाटन के लिए यहां आए हैं अन्यथा दिल्ली से ही वर्चुअल उद्घाटन की सोच रहे थे।
अधिकरण की स्थापना चेम्बर की पुरानी मांग रही है। पूर्व अध्यक्ष जितेंद्र बरलोटा इस सिलसिले में सुनील सोनी के साथ पहले भी कई बार दिल्ली जाकर केन्द्र सरकार के प्रमुख नेताओं से मिल चुके हैं। अधिकरण के उद्घाटन के मौके पर केंद्रीय राज्य मंत्री एसपीएस बघेल भी मौजूद थे। बघेल की सुनील सोनी से अच्छी मित्रता है।
बघेल, यूपी चुनाव में अखिलेश यादव के खिलाफ चुनाव लड़ रहे थे, तो सुनील सोनी उनके प्रचार के लिए हफ्तेभर वहां डटे रहे। बघेल यहां उद्घाटन के लिए आए, तो सुनील सोनी के लिए आगरा का पेठा लेकर आए थे। केन्द्र हो या राज्य, जिस नेता के मंत्रियों से अच्छे रिश्ते होते हैं, वो सरकारी काम जल्द करवा पाने में सफल होते हैं।
भरोसा हो तो ऐसा हो...
कांग्रेस में राज्यसभा टिकट के लिए भारी खींचतान थी। आनंद शर्मा, गुलाम नबी आजाद जैसे कई दिग्गज प्रत्याशी बनने से वंचित रह गए, लेकिन एक व्यक्ति को राज्यसभा में जाने का पूरा भरोसा था, वो थे राजीव शुक्ला। शुक्लाजी ने तो शपथ पत्र के साथ संपत्ति विवरण, और अन्य जरूरी कागजात 26 मई को ही दिल्ली में तैयार करवा लिए थे। जबकि एआईसीसी ने प्रत्याशी की घोषणा 30 तारीख को की थी।
दूसरी तरफ, एक अन्य श्रीमती रंजीत रंजन को अपने नाम की घोषणा के बाद नामांकन दाखिले के लिए जरूरी शपथ पत्र और अन्य कागजात तैयार करवाने के लिए पीसीसी की मदद लेनी पड़ी, और अधिवक्ता फैसल रिजवी ने नामांकन दाखिले के कुछ घंटे पहले कागजात तैयार करवाए। तब कहीं जाकर रंजीत रंजन ने राजीव शुक्ला के साथ नामांकन दाखिल किया।
नींद से जगा देने वाली सेवा...
देर रात आपको दुर्ग में उतरना है। मगर नींद ऐसी आई कि आप गोंदिया पहुंच गए। आप चाहें तो अब ऐसा नहीं होगा। रेलवे ने एक नई सुविधा शुरू कर दी है। आपको आपके स्टेशन से 10 मिनट पहले जगा दिया जाएगा। आपके मोबाइल फोन पर घंटी तो बजेगी ही, पर बोगी में जो अटेंडेंट काम कर रहे हैं वह आपको हिला-हिला कर जगा भी देंगे। एक नया विकल्प दिया गया है। रात में अगर आप चल रहे हैं और आपको अपने स्टेशन पर उतरना हो तो सिर्फ 3 रुपये खर्च करके आप सही जगह पर उतर सकते हैं। रेलवे ने अपनी हिम्मत नहीं छोड़ी है। लोग बहुत से पैसेंजर ट्रेनों को बंद करने से नाराज चल रहे हैं मगर वह नए-नए प्रयोग करके अपनी प्रासंगिकता को बता रहा है।
इतना भी सीधा-सरल होना ठीक नहीं...
मुख्यमंत्री बनने की इच्छा रखने वाले बाबा साहब जब कुर्सी मिलेगी तो अफसरों पर लगाम लगा पाएंगे या नहीं यह एक बड़ा सवाल है। उनके अपने ही विभागों में धूल उड़ा रहे अफसरों पर कार्रवाई करने से वे चूक रहे हैं। कल के बिलासपुर की मीटिंग को लीजिए। नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक सारे सबूतों के साथ विकास कार्यों की समीक्षा बैठक में पहुंचे। उन्होंने मांग रखी अफसरों को सस्पेंड करो। बाबा जी बोले जांच कराएंगे। कौशिक मूठा टेबल पर ठोकते हुए बाहर निकल गए। कहा कि इस तरह की फालतू समीक्षा बैठक मैं मुझे नहीं रहना।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को पहले से पता होगा कि पटवारी से लेकर के डिप्टी कलेक्टर तक खूब खा रहे हैं। पर जहां भी दौरे पर जा रहे हैं शिकायत मिलने पर तुरंत अफसरों को और कर्मचारियों को सस्पेंड कर रहे हैं। यह फर्क समझ में आता है।
आपको याद होगा कि बीते मार्च में सत्र के दौरान स्पीकर डॉ चरणदास महंत ने विधानसभा में सिंहदेव को उकसाया था, तब जाकर उन्होंने वन और पंचायत विभाग के 15 कर्मचारियों को सस्पेंड करने की घोषणा की थी। डॉ महंत नहीं बोलते तो सब आज तक खेल खा रहे होते। तो बाबा जी भ्रष्ट लोगों के खिलाफ इतनी भी दरियादिली ठीक नहीं है।
अंबिकापुर रेल लाइन, अपना दल का साथ
सरगुजा के कुछ भाजपा नेताओं की इलाके में रेल सुविधाएं बढ़ाने की मुहिम अब धीरे-धीरे रंग ला रही है। ये नेता अंबिकापुर से रेणुकूट (यूपी) तक 106 किमी रेल लाइन बिछाने के लिए अभियान चला रहे हैं। स्थानीय सांसद, और केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह भी अब इस मुहिम से जुड़ चुकी हैं। यही नहीं, अंबिकापुर से रेल लाइन आगे बढ़ाने के प्रस्ताव को पड़ोसी राज्य यूपी के अपना दल (एस) का भी समर्थन मिल गया है।
अपना दल (एस) एनडीए का सहयोगी दल है। रेणुकूट , जो कि यूपी के सोनभद्र जिला का हिस्सा है, वहां के अपना दल(एस) के सांसद पकौड़ी लाल कोल ने अंबिकापुर से रेणुकूट को जोडऩे के लिए केन्द्रीय रेल मंत्री से मिलने साथ जाने के लिए तैयार बैठे हैं। बताते हैं कि अंबिकापुर से रेणुकूट तक रेल लाइन बिछाने के लिए तीन बार सर्वे भी हो चुका है। इस बीच में 11 छोटे-बड़े स्टेशन भी बनेंगे।
भाजपा नेता यह भी चाहते हैं कि अंबिकापुर से कोरबा तक 145 किमी रेल लाइन को जोड़ा जाए। यह भी सर्वे हो चुका है। केन्द्रीय रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव तक सारे प्रस्तावों को भेजा भी जा चुका है। रेल मंत्रालय इन प्रस्तावों को सहमति दे देता है, तो अंबिकापुर से दिल्ली 15 घंटे में और रायपुर तक का सफर 6 घंटे में पूरा हो जाएगा। भाजपा की मुहिम को एक और सहयोगी दल का साथ मिलने के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि रेल मंत्रालय आदिवासी इलाके में रेल सुविधाएं बढ़ाने के लिए सहमत हो जाएगा। फिलहाल तो नेता रेल मंत्रालय के रूख का इंतजार कर रहे हैं।
भाजपा में अब यह शोर भी
भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष विष्णुदेव साय को बदले जाने का शोर अभी थमा नहीं है कि नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक को बदले जाने की चर्चा शुरू हो गई है। यह तर्क दिया जा रहा है कि साय को हटाने से आदिवासी समाज में गलत संदेश जाएगा। अलबत्ता, कौशिक की जगह अजय चंद्राकर, या फिर नारायण चंदेल को लाने से कोई नुकसान नहीं होगा। मगर वाकई ऐसा होगा, यह तो तय नहीं है, लेकिन जो भी प्रदेश के नेता दिल्ली से लौटते हैं वो बदलाव की तरफ इशारा जरूर करते हैं। कुछ का दावा है कि अगले एक पखवाड़े के भीतर प्रदेश भाजपा में बड़ा बदलाव जरूर होगा। देखना है कि आगे क्या होता है।
कृपा कहां पहुंच रही है?
लोगों को अपने टेलीफोन नंबरों पर तरह-तरह के सरकारी फायदे मिलने की खबर मिलते रहती है। इस अखबार के एक नंबर पर मध्यप्रदेश के रियायती सरकारी राशन जारी होने का एसएमएस आते ही रहता है। अब इसी नंबर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरफ से भेजा यह एसएमएस मिला है कि पीएम किसान योजना की दो हजार रूपए की किस्त इस नंबर के बैंक खाते में भेज दी गई है।
अब सवाल यह उठता है कि इस नंबर के मालिक का इन रियायती योजनाओं से जब कोई भी लेना-देना नहीं है, तो यह किसे जा रही रियायत की सूचना है? या तो इसकी वजह से रियायत पाने वाले नामों में एक नाम जबर्दस्ती जुड़ रहा है, या फिर किसी और रियायत पाने वाले की जगह यह संदेश किसी और को जा रहा है? अब जब आधार कार्ड से सारी रियायती योजनाएं जुड़ गई हैं, बैंक खाते जुड़ गए हैं, तब भी ऐसी गड़बड़ी क्यों हो रही है? क्या इस अखबार के टेलीफोन नंबर से कहीं कोई बैंक खाता भी खोल लिया गया है?
निर्मल बाबा कहे जाने वाले एक विवादास्पद गुरू की जुबान में कहें, तो यह कृपा पहुंच कहां रही है?
बूस्टर डोज को लेकर उदासीनता
दिल्ली में बीते कुछ दिनों से लगातार कोविड पॉजिटिव मरीज बढ़ रहे हैं। कल 500 से ज्यादा केस आए। जांच के अनुपात में पॉजिटिव दर 6 प्रतिशत पाई गई। मुंबई में 711 नए केस मिले। दोनों जगहों पर मिले केस अप्रैल के मुकाबले दुगने हैं। छत्तीसगढ़ की स्थिति इस लिहाज से संतोषजनक है कि यहां पॉजिटिव केस की दर अभी एक प्रतिशत से भी कम है। कल रात की तस्वीर के अनुसार पूरे प्रदेश में केवल 15 मामले आए। 22 जिलों से कोई केस नहीं हैं। यही वे आंकड़े हैं जिसे लेकर लोग ही नहीं, सरकार भी निश्चिंत दिख रही है। ऐसा नहीं होता तो बूस्टर डोज की लगने की रफ्तार पर वह चिंतित जरूर होती। 18 प्लस के एक करोड़ 71 लाख लोगों को बूस्टर लगाने का वक्त आ चुका है जबकि केवल 9000 लोगों को अब तक लगा है। 60 वर्ष से अधिक 32 लाख 42 हजार लोगों को बूस्टर लगना है पर अब तक 5 लाख से कुछ ज्यादा लोगों को ही लग सका है।
डॉक्टरों का कहना है कि 9 महीने के बाद वैक्सीन की एंटीबॉडी खत्म हो जाती है। इसलिए बूस्टर डोज लगाना जरूरी है। निजी अस्पतालों को फिक्स 382 रुपए लेकर डोज लगाना है लेकिन ज्यादातर अस्पताल संचालक रुचि नहीं ले रहे हैं और सरकार इन पर दबाव भी नहीं बना पा रही है।
पहले दो दौर के कोविड-19 प्रकोप में यह देखा गया है दिल्ली और महाराष्ट्र के बाद इसका प्रसार छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में हुआ है। बूस्टर डोज लगाने के लिए अभी ठीक वक्त है पर इस पर कोई जोर दे नहीं रहा है।
खुश करने वाले ये आंकड़े
सेंटर फॉर मॉनिटरिंग आफ इंडियन इकॉनामी ने बेरोजगारी पर जो ताजा रिपोर्ट जारी की है वह छत्तीसगढ़ सरकार को खुश करने वाली हो सकती है पर प्रदेश के युवाओं को भी ऐसा ही महसूस हो रहा होगा, इसमें संदेह है। छत्तीसगढ़ में बेरोजगारी की दर?? 0.7 प्रतिशत बताई गई है, जो देशभर में सबसे कम है। अप्रैल में भी यह दर 0.6 प्रतिशत बताई गई थी।
इन आंकड़ों में यह नहीं बताया जाता कि रोजगार पाने वाले आखिर कौन सा धंधा कर रहे हैं और कितनी कमाई होती है। सीएमआईई की गणना के तरीके पर कई अर्थशास्त्री अपनी असहमति जता चुके हैं। जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अभिजीत राय चौधरी का कहना है शहरी और ग्रामीण इलाकों से 44 हजार परिवारों के बीच देश में सर्वेक्षण करवाया जाता है। यदि कोई कहता है कि वह फेरी लगाता है या कूड़ा बीनता है तो उसे भी रोजगार में लगा मान लिया जाता है। जबकि अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के मुताबिक सिर्फ सम्मानजनक काम करने वालों को ही रोजगार वाला माना जाना चाहिए। सम्मानजनक की परिभाषा है कि कोई उत्पादक कार्य किया जाए, समुचित आय मिले, कार्यस्थल पर सुरक्षा हो, परिवार के लिए सामाजिक संरक्षण और व्यक्तिगत विकास की संभावना हो।
अर्थशास्त्रियों के विश्लेषण से ऐसा लगता है कि घरेलू महिलाओं को भी रोजगारशुदा मान लिया गया होगा। वह घर में कितने सारे काम करती ही हैं। अपने राज्य में नई सरकार बनने के बाद गांव में गोबर बीनने का काम बड़े पैमाने पर हो रहा है। प्रधानमंत्री जब कहते हैं कि पकौड़ा तलकर बेचना भी एक रोजगार है तो गोबर बीनने को क्यों रोजगार में नहीं गिना चाहिए। जमीनी हकीकत चाहे जो भी हो आंकड़े तो खुश करने वाले हैं, इसलिए खुशी मना लेनी चाहिए।
बाजार के लिए एक नया शब्द
दिलचस्प हालात नए-नए दिलचस्प शब्द भी पैदा करते हैं। बढ़ती हुई महंगाई को लेकर अंग्रेजी में इन्फ्लेशन शब्द का इस्तेमाल होता है, अब उससे मिलता जुलता एक नया शब्द श्रिंकफ्लेशन आया है इसका मतलब है कि चीजों के दाम तो उतने ही रखे गए हैं लेकिन उनका आकार छोटा हो गया है ! लोगों को आम तौर पर घटते हुए आकार या वजन का अंदाज नहीं लगता है और लोग पिछली बार खरीदे गए उस सामान से इस बार खरीदे जा रहे सामान का दाम बराबर देखकर तसल्ली पा लेते हैं कि दाम नहीं बढ़ा है, जबकि दाम उतना ही रख कर सामान की मात्रा कम कर दी गई है। ऐसी घटती हुई मात्रा के लिए यह नया शब्द श्रिंकफ्लेशन बना है।
मुकदमों की लाइव स्ट्रीमिंग
हाल के दिनों में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रविवार के दिन और कुछ छुट्टियों में कई अर्जेंट मामलों की सुनवाई की। शाम हो जाने के बाद भी हुई। यह इसलिये आसान हो सका क्योंकि कोविड काल के बाद डिजिटल तकनीक पर हाईकोर्ट में काफी काम हुआ। इन अर्जेंट हियरिंग में मामले वीडियो कांफ्रेंस से सुने गए। पक्षकार, वकील किसी भी को भी जज के सामने फिजिकली मौजूद रहने की जरूरत नहीं थी।
हाईकोर्ट में डिजिटल तकनीक पर पहले से काम चल रहे हैं। आज से सात-आठ साल पहले सीजीएमसी को जवाब दाखिल करने के लिए सबसे पहली ई नोटिस जारी की गई थी। अब यहां के लिए गेट पास भी ऑनलाइन ही बन जाता है। पहले कतार में लगना पड़ता था।
जब कोरोना के कारण अदालतों को भी बंद करना पड़ा था, तब हाईकोर्ट की आईटी टीम ने जून 2020 में एक सॉफ्टवेयर तैयार किया जिसके बाद ई फाइलिंग की सुविधा शुरू हो गई। इसमें किसी भी पक्षकार या उसके वकील को केस दायर करने के लिए कोर्ट आने की जरूरत नहीं पड़ती है। कोविड के दौर में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड 13 हजार से अधिक मुकदमों का निपटारा किया। अभियान चलाकर बहुत से पुराने मामलों का भी निराकरण किया गया।
इधर अब कई राज्यों में हाईकोर्ट ने तकनीक का इस्तेमाल और आगे जाकर करना शुरू किया है। गुजरात, ओडिशा, कर्नाटक, झारखंड, बिहार और मध्यप्रदेश में हाईकोर्ट के चुनिंदा कार्रवाई की यूट्यूब पर लाइव स्ट्रीमिंग की जा रही है। गुजरात लाइव हाईकोर्ट के तो 90 हजार सब्सक्राइबर हैं और रोजाना औसतन 1500 लोग इसे देख रहे हैं। अन्य राज्यों के भी हाईकोर्ट की कार्रवाई देखने वालों की संख्या हजारों में है। इसे देखकर उत्साहित सुप्रीम कोर्ट की ई कमेटी लाइव स्ट्रीम के लिए काम शुरू कर चुकी है। जल्दी सुप्रीम कोर्ट की कार्रवाई भी लाइव हो सकती है।
छत्तीसगढ़ के पड़ोस के तीन राज्य, मध्यप्रदेश, बिहार और झारखंड के यू-ट्यूब चैनल आ चुके हैं। इस सूची में फिलहाल हमारा राज्य नहीं है। देखा जाए तो बस्तर से लेकर सरगुजा तक फैले इस राज्य के सब लोगों के लिए हाईकोर्ट तक पहुंचना आसान नहीं है। वे अपने मुकदमों की सुनवाई को प्रत्यक्ष देखना चाहते हैं। वकालत की पढ़ाई कर रहे छात्र, न्यायिक सेवा की प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे युवा और प्रैक्टिस में नए उतरने वाले अधिवक्ताओं के लिए यह काफी फायदेमंद हो सकता है। हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट की तैयारी को देखकर छत्तीसगढ़ में भी इस पर आने वाले दिनों में काम शुरू हो। वैसे हाईकोर्ट और स्टेट लीगल सर्विस के कई समारोहों की यूट्यूब पर पहले लाइव स्ट्रीमिंग की जा चुकी है।
हसदेव पर सरगुजा कांग्रेस
यह बात मालूम होते हुए भी कि हसदेव अरण्य में परसा कोल ब्लॉक के लिए प्रदेश की सरकार ने ही वन अनुमति प्रदान की है, सरगुजा के कांग्रेस नेता जो अलग-अलग पदों पर बैठे हुए हैं, विरोध पर उतर आए हैं। जिला पंचायत उपाध्यक्ष आदित्येश्वर शरण सिंहदेव ने फिर कलेक्टर को पत्र लिखकर मांग की है कि दुबारा ग्राम सभा बुलाएं ताकि साफ हो जाए कि लोग कोयला खदान चाहते हैं या नहीं। जिला पंचायत अध्यक्ष की ओर से पहले ही यही मांग की जा चुकी है। अब जिला कांग्रेस कमेटी ने बकायदा बैठक लेकर कहा है कि स्थानीय लोगों की सहमति के बिना एक पेड़ नहीं कटने देंगे। औषधीय पादप बोर्ड के अध्यक्ष बालकृष्ण पाठक ने तो इस बैठक में राहुल गांधी की पदयात्रा के दौरान किए गए वादे को भी याद दिलाया। महापौर डॉ. अजय तिर्की ने भी विरोध को आवाज दे दी है। सरकार में मंत्री टीएस सिंहदेव भी फिर से ग्रामसभा बुलाने की मांग कर रहे हैं। अपनी ही सरकार के फैसले को रद्द कराने में कांग्रेस नेता सफल हों या न हों पर स्थानीय लोगों का साथ देना उनके लिए फायदेमंद रहेगा। भाजपा की बात अलग है। उसने कोई कमिटमेंट हसदेव के लोगों से नहीं किया था। इसीलिये उन्होंने इस बारे अब तक खामोश रहना ही तय कर रखा है। यदि वह राज्य सरकार की मंजूरी पर सवाल उठाएगी तब भी ऊंगली उनकी अपनी केंद्र की सरकार पर उठेगी, क्योंकि पहले फैसला तो वहीं हुआ।
दरभा की एक नई पहचान...
दरभा घाटी का नाम सुनते ही 25 मई 2013 के नक्सली हमले की तस्वीर मष्तिष्क में खिंच जाती है। पर इस इलाके की एक दूसरी पहचान बड़ी तेजी से बन रही है। यहां उगाई जा रही कॉफी न केवल बस्तर में लोकप्रिय हो रही है बल्कि इसकी मांग अपने विशिष्ट स्वाद के कारण राजधानी रायपुर व राज्य के दूसरे हिस्सों में है। जगदलपुर के दलपत सागर स्थित चाय कॉफी की दुकानों में सबसे ज्यादा डिमांड दरभा के कॉफी की ही है।
नजर कोयले पर या कोरबा पर?
आईएएस की नौकरी छोडक़र राजनीति में आए ओपी चौधरी सोशल मीडिया में काफी सक्रिय हैं। उन्होंने पिछले दिनों ट्वीटर पर कथित अवैध कोयला खनन का वीडियो क्या शेयर किया, पुलिस महकमा टूट पड़ा। और वीडियो शेयर होने के एक घंटे के भीतर जांच बिठा दी। जिस वीडियो को कोरबा के कोयला खदान का बताकर सोशल मीडिया में फैलाया गया था। वह धनबाद के किसी खदान का होना बताया जा रहा है। क्योंकि कोरबा में तो ओपन कास्ट माइनिंग होती ही नहीं है।
सर्वविदित है कि एसईसीएल की खदानों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सीआईएसएफ की होती है, लेकिन उनके अधिकार क्षेत्र में राज्य पुलिस द्वारा जांच कमेटी बनाना भी चौंकाने वाला कदम है। पुलिस इतनी हड़बड़ी में थी कि वीडियो की सत्यता की भी पड़ताल नहीं करवाई। ऐसे में कोयला-खनन आदि में पुलिस को लेकर पुलिस की अतिरिक्त सतर्कता पर काफी बातें हो रही है। चाहे कुछ भी हो, ओपी चौधरी ने एक वीडियो के जरिए पूरा माहौल बना दिया। बताते हैं कि खरसिया में बुरी हार के बाद चौधरी कोरबा इलाके में ज्यादा सक्रिय हैं, और उनकी नजर कोरबा लोकसभा सीट पर भी है। ऐसे में एक वीडियो शेयर कर ओपी चौधरी लोगों की जुबान में आ ही गए।
एक कॉलेज से दूसरी पीढ़ी
रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज (अब एनआईटी) एक बार फिर सुर्खियों में हैं। यहां के 5 पूर्व विद्यार्थियों ने यूपीएससी में अपना परचम लहराया है। एनआईटी से मेकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक अक्षय पिल्ले ने यूपीएससी परीक्षा में 51वीं रैंक हासिल की। खास बात यह है कि उनके पिता डीजी (जेल) संजय पिल्ले ने भी रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग से डिग्री हासिल की थी, और आईपीएस बने। अक्षय का रैंक अच्छा होने के कारण आईएएस में आने का मौका मिल सकता है।
अक्षय की तरह ही यूपीएससी में 102 रैंक वाले धमतरी के प्रखर चंद्राकर ने भी इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री रायपुर एनआईटी से हासिल की। उनके अलावा यूपीएससी परीक्षा में सफलता हासिल करने वाले मंयक दुबे, अभिषेक अग्रवाल, और पूजा साहू ने भी एनआईटी रायपुर से ही डिग्री हासिल की है। वैसे भी रायपुर इंजीनियरिंग कॉलेज का स्थापना के बाद से यहां के विद्यार्थियों ने देश-विदेश में नाम कमाया और देश-प्रदेश में ऊंचे-ऊंचे पदों पर हैं।
प्रदर्शन टाल देने की समझदारी
कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को आमंत्रित नहीं करने का एनएसयूआई ने भारी विरोध किया। समारोह संपन्न होते तक विवाद जारी था। मंच पर उच्च शिक्षा मंत्री उमेश पटेल की कुर्सी लगी थी, पर वह खाली थी। बाद में उन्होंने कार्यक्रम में नहीं पहुंचने की वजह तो जरूरी व्यस्तता बताई पर लोग समझ रहे थे कि सीएम को नहीं बुलाने के विरोध में उन्होंने नहीं जाने का निर्णय लिया। विश्वविद्यालय प्रशासन की सफाई है कि सीएम को हम बुलाना चाहते थे, समय नहीं मिला। हो सकता है कि बात इतनी सी ही हो, पर एनएसयूआई ने तय किया था कि दीक्षांत समारोह के दौरान प्रदर्शन किया जाएगा। राज्यपाल की मौजूदगी में हंगामा होने की आशंका को देखते हुए कार्यक्रम स्थल पर पुलिस बल भी ज्यादा तैनात कर दी गई थी। पर ऐन वक्त पर छात्र नेताओं ने यह फैसला रद्द कर दिया और समारोह शांतिपूर्वक निपट गया।
एनएसयूआई ने कदम पीछे क्यों हटाए? दरअसल, उन्हें लगा प्रदर्शन करने से कुलाधिपति और कुलपति को उनके विरोध का तो पता चल जाएगा, पर इस बहाने कार्यक्रम को स्थगित किया गया तो क्या होगा? प्रतिभावान छात्र जो लंबे समय से मंच पर खड़े होकर विशिष्ट हाथों से मेडल और डिग्री पाने की प्रतीक्षा करते हैं, उनको मायूसी होगी। छात्रों का संगठन है और इन छात्रों को उनके ही आंदोलन से नुकसान हो जाएगा। फिर तो निर्विघ्न मेडल, डिग्री भी बंट गई और राज्यपाल के कार्यक्रम की गरिमा का ख्याल भी रख लिया गया।
पेड़ों की मां कब तक खैर मनाएगी!
कई बरस पहले जब हिन्दुस्तान में कम्प्यूटरों का चलन बढ़ा, तो ऐसा लगा कि कागजों का इस्तेमाल घटेगा। सरकारी कामकाज के कम्प्यूटरीकरण के साथ उसकी लागत को सही ठहराने के लिए यह बात गिनाई भी गई कि इससे कागज बचेगा, और पेड़ों का कटना भी बचेगा। लेकिन कागज के दाम आज आसमान पर पहुंचे हुए हैं, पेड़ों का कटना थमा नहीं है, तो फिर कम्प्यूटरों का क्या असर हुआ? दरअसल पहले टाईपराइटर रहते थे जिन पर कागज और कार्बन पेपर लगाकर दो या तीन कॉपियां एक साथ टाईप हो पाती थीं। टाइपिंग का यह काम मुश्किल भी रहता था, और एक बार टाईप हो चुके कागज पर सफेदा लगाकर कोई मामूली सुधार तो हो सकता था, अधिक सुधार की गुंजाइश नहीं रहती थी।
अब कम्प्यूटरों के आने से उस पर टाईप करना आसान हो गया, साथ के प्रिंटर से प्रिंट निकालना आसान हो गया, और टाईप किए हुए में फेरबदल करके दुबारा प्रिंट करना भी आसान हो गया है। नतीजा यह है कि पहले टाईपराइटर से जहां सोच-समझकर एक-दो पन्ने ही निकलते थे, अब कम्प्यूटर-प्रिंटर से मिनट भर में दर्जनों पेज प्रिंट होकर निकल जाते हैं। अधिकतर हिन्दुस्तान लोग अपने मातहत लोगों से कम्प्यूटरों पर काम करवाते हैं, और फिर गलतियां जांचने के लिए उसका प्रिंट निकलवाकर उस पर सुधार करते हैं, और फिर दुबारा प्रिंट निकलता है। नतीजा यह है कि कागज की खपत घटने का कोई आसार नहीं है, और पेड़ों की मां कब तक खैर मनाएगी!
सहारा के निवेशकों की थोड़ी उम्मीद
एक समय का जब सहारा इंडिया और सहारा क्रेडिट कोआपरेटिव सोसाइटी लिमिटेड में निवेश करना काफी सुरक्षित माना जाता था। इसे फरार हो चुकी दूसरी चिटफंड कंपनियों के साथ नहीं गिना गया। पर बीते कुछ सालों से इसमें करोड़ों रुपये निवेशकों के फंसे हैं। हजारों लोग कंपनियों के ब्रांच का चक्कर लगा रहे हैं। कई जिलों में प्रदर्शन हो चुका है। चिटफंड कंपनियों की तरह इनके अधिकांश दफ्तरों में ताला नहीं लगा है। ब्रांच में मैनेजर आदि बैठ रहे हैं। कई जिलों में इनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी गई है। राजनांदगांव में प्रदर्शन के बाद निवेशकों ने 6 माह पहले अमानत में खयानत की धारा 409 के तहत अपराध दर्ज कराया। पर इससे रकम तो नहीं मिलने वाली थी। प्रशासन ने दबाव बनाया तो सहारा कंपनी ने कलेक्टोरेट के खाते में 15 करोड़ रुपये जमा करा दिए। पर निवेशकों की डूबी रकम ब्याज सहित इससे कहीं ज्यादा है। यह तब है जब सहारा कंपनी बार-बार बड़े- बड़े विज्ञापन देकर आश्वस्त करती है कि वह निवेशकों की पाई-पाई लौटाएगी। अब जिला प्रशासन ने रास्ता निकाला है कि पहले सबको मूल धन दे दिया जाए। उसके बाद भी राशि बच जाएगी तो उसे भी बराबर अनुपात से बांट दिया जाएगा। हालांकि अब भी कई निवेशक अड़े हैं कि वे लेंगे तो परिपक्वता राशि के साथ पूरी रकम, वरना नहीं लेंगे। सच है ये दिन तो देखने के लिए तो उन्होंने वर्षों से पैसे नहीं लगाए गए थे। पर प्रशासन के पास इससे बेहतर कोई रास्ता नहीं है। दूसरे जिलों में भी ऐसा हो सकता है कि निवेशकों को रकम लौटाने के लिए प्रशासन मध्यस्थता करे। रायगढ़ में एफआईआर दर्ज होने के बाद अभी पिछले हफ्ते अपर कलेक्टर ने सहारा इंडिया के प्रतिनिधियों को निवेशकों की रकम लौटाने के लिए पत्र लिखा है। उम्मीद है राजनांदगांव की तरह वहां भी पैसे जमा कराने में प्रशासन को सफलता मिले। अन्य चिटफंड कंपनियों की संपत्ति बेचकर जुटाई जा रही और बहुत कम लोगों को मिल रही थोड़ी-थोड़ी रकम के मुकाबले सहारा से वसूली का प्रतिशत अच्छा होगा।
अबूझमाड़ से गिनीज बुक के लिए दौड़..
धुर नक्सल प्रभावित नारायणपुर जिले के 12 साल के राकेश की सफलता मामूली नहीं है। उसने छत्तीसगढ़ स्पेशल टॉस्क के जवानों से प्रशिक्षण लेकर महाराष्ट्र में राष्ट्रीय जूनियर मलखंड प्रतियोगिता में केवल खिताब जीता बल्कि पिछले रिकॉर्ड भी तोड़े। मलखंड पर राकेश ने इस खिताबी प्रदर्शन में 1 मिनट 30 सेकेंड तक हैंड स्टैंड रखा, जो विश्व स्तर पर अब तक सर्वश्रेष्ठ है। इसके पहले का रिकॉर्ड केवल 30 सेकेंड का रहा है। राकेश को अपने परिवार के साथ नक्सलियों की धमकी के कारण गांव छोडक़र नारायणपुर के पास एक दूसरे गांव में आना पड़ा था। शायद वह गांव नहीं छोड़ता तो इस शानदार कामयाबी से महरूम रह जाता। अब उसके प्रशिक्षकों ने गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में संपर्क किया है। वहां से मान लिया गया है कि यह रिकॉर्ड गिनीज बुक में आना चाहिए। पर इसके लिए 80 हजार रुपये का खर्च भी बता दिया गया है। राकेश की पहुंच से यह रकम बाहर है। सीएम तक बात पहुंची है, नारायणपुर कलेक्टर को उन्होंने निर्देश दिया है कि राकेश का नाम दर्ज कराने के लिए जरूरी व्यवस्था करें। ([email protected])
चलो सबसे एक सा बर्ताव हुआ..
छत्तीसगढ़ से राज्यसभा की दावेदारी कर रहे स्थानीय कांग्रेस नेताओं को निराशा हाथ लगी। दो सीटों में से कम से कम एक में तो राज्य से किसी को मौका मिलने की उन्हें उम्मीद थी। पर, अच्छा हुआ। न? रहेगी बांस, ना बजेगी बांसुरी। कोई एक नाम तय कर दिया जाता तो बाकी दर्जन भर दावेदार नाराज हो जाते।
अब कांग्रेस से फूलोदेवी नेताम और भाजपा से सरोज पांडे का ही राज्यसभा में छत्तीसगढ़ से प्रतिनिधित्व है। कांग्रेस से केटीएस तुलसी पहले से हैं। अब राजीव शुक्ला और रंजीत रंजन भी पहुंच जायेंगे। तुलसी ने राज्यसभा सदस्य बनाने के बाद छत्तीसगढ़ के मामलों में कितनी रुचि ली, कितनी बार यहां आए, इससे अंदाजा लगा सकते हैं कि दोनों नए सदस्य कितना वक्त निकालेंगे।
इस बार राज्यसभा चुनाव में भाजपा के लिए छत्तीसगढ़ से कोई मौका था ही नहीं। पर कांग्रेस को अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इस बारे में सोचने का मौका था। एक सीनियर कांग्रेस लीडर का कहना है कि क्या करें, छत्तीसगढ़ और राजस्थान ही तो अपने पास रह गए हैं। दिल्ली में पकड़ रखने वालों का दबाव बहुत था। उनके लिए और किस प्रदेश से सीट लाते।
ऐसे मौके पर आम आदमी पार्टी के नेता अपनी पीठ थपथपा रहे हैं। उन्हें अब कहने का मौका मिल गया है कि एक कांग्रेस है जो छत्तीसगढ़ में दिल्ली, यूपी और बिहार के नेताओं को शिफ्ट करती है और एक हम हैं जो दूसरे राज्य के कोटे से छत्तीसगढ़ के लोगों को भेजते हैं। छत्तीसगढ़ के रहने वाले संदीप पाठक को पंजाब द्मशह्लद्ग ह्यद्ग राज्यसभा सदस्य बनाया गया है।
आप पार्टी के पास अगले चुनाव में भुनाने के लिए एक यह भी मुद्दा आ गया है।
स्कूलों पर केंद्र की रिपोर्ट..
शिक्षा विभाग के नेशनल अचीवमेंट सर्वे 2021 की रिपोर्ट में छत्तीसगढ़ में स्कूली शिक्षा के स्तर में भारी गिरावट दर्शाई गई है। तीसरी से लेकर 10वीं तक के बच्चों की पढ़ाई का स्तर पूरे देश में 30वें नंबर पर है। कोरोना के चलते पढ़ाई तो सभी राज्यों में पिछड़ी लेकिन छत्तीसगढ़ ही निचले पायदान पर क्यों है? खासकर इस दौरान स्कूल बंद होने के विकल्प में बहुत से नए प्रयोग किए गए थे। मोहल्ला स्कूल, पढ़ाई तुहर द्वार, ब्लूटूथ के जरिए पढ़ाई और जहां नेटवर्क था वहां ऑनलाइन पढ़ाई हो रही थी। तो क्या जिन शिक्षकों पर वैकल्पिक कार्यक्रम चलाने की जिम्मेदारी थी, उन्होंने ठीक से काम नहीं किया? शिक्षक संगठनों का कुछ दूसरा ही कहना है। वे सरकार और शिक्षा विभाग पर ही इसका ठीकरा फोड़ रहे हैं। उनका कहना है कि साल के 365 दिन में उनसे 366 तरह की जानकारी मांगी जाती है।
अधिकारियों ने स्कूलों को प्रयोगशाला बना दिया है। शिक्षकों का समय कागज, कंप्यूटर और व्हाट्सएप पर जानकारी भेजने में ही खप जाता है और वे पढ़ाने पर कम समय दे पाते हैं। ऊपर से मध्यान्ह भोजन की जिम्मेदारी, कभी साइकिल वितरण तो कभी जाति निवास प्रमाण पत्र जैसे ढेरों काम उनके सिर पर हैं।
इस स्थिति के लिए अधिकारी जिम्मेदार हैं या शिक्षक इस पर बहस जरूर होनी चाहिए। पर इस सर्वे रिपोर्ट पर कोई चिंतित दिख रहा हो और शिक्षा के माहौल में आमूलचूल बदलाव के लिए बेचैनी हो, यह दिखाई नहीं देता। आतमंड स्कूलों में प्रवेश के लिए मारामारी बिना वजह नहीं है।
नवतपा में नंगे पांव...
बच्चे को गोद में लटकाकर नंगे पांव चल रही इस आदिवासी मां को देखकर हम-आप चकित हो सकते हैं, पर वे अभ्यस्त होते हैं। महिला ने अपने दाहिने हाथ में क्या पकड़ रखा है?, बेल फल हैं। जंगल के इसी रास्ते में चलते-चलते कहीं गिरा हुआ मिला होगा, या फिर उसने खुद ही तोड़ लिया हो। क्या इसे और उस गोद में सुरक्षित शिशु को लू लग सकती है? ([email protected])
पेसा कानून की ताकत को लेकर जिज्ञासा
पंचायत एक्सटेंशन ऑफ शेल्ड्यूल्ड एरिया (पेसा) एक्ट राज्य बनने के बाद से ही छत्तीसगढ़ में लागू है। पर इसे कानून का रूप देने के लिये नियमों का बनाया जाना जरूरी था। 22वें साल में अब यह तैयार है और केबिनेट की अगली बैठक में इस पर प्रस्ताव लाये जाने की घोषणा मुख्यमंत्री ने कर दी है। इसे बनाने के लिए आदिवासी संगठनों, समितियों, जनप्रतिनिधियों से बातचीत की एक लंबी प्रक्रिया चली थी।
कांग्रेस का सीधा आरोप है कि अपने 15 सालों के कार्यकाल में भाजपा ने इसके नियम नहीं बनाये, क्योंकि वह आदिवासियों को अधिकार नहीं देना चाहती थी। अब कांग्रेस अपना चुनावी वादा पूरा करने जा रही है। दावा है कि नये कानून से आदिवासी इलाकों के रहने वालों को अधिक मजबूत और अधिकार संपन्न बनाया जा सकेगा।
अभी स्थिति यह है कि अलग-अलग सवालों को लेकर आदिवासियों का सरकार के साथ संघर्ष चल रहा है, आंदोलन हो रहे हैं। बस्तर में निर्दोषों की फायरिंग से मौत और फोर्स की कैंप के खिलाफ लंबा आंदोलन हो रहा है, तो सरगुजा के हसदेव अरण्य में कोल ब्लॉक आवंटन का विरोध प्रदर्शन लंबा खिंचता जा रहा है। जशपुर में नए आ रहे उद्योगों के विरोध में प्रदर्शन हो चुका है।
इन सवालों से बचने का एक रास्ता सरकार के पास हमेशा रहता है कि आंदोलन करने वालों को पूरे समुदाय का समर्थन नहीं है। अधिकारी कहते हैं कि बहुत से लोग खदान खुलते हुए भी देखना चाहते हैं, कुछ लोगों को फोर्स के कैंप से कोई दिक्कत नहीं और जशपुर जैसे इलाकों में भी लोग उद्योगों की स्थापना चाहते हैं, ताकि पढ़े-लिखे प्रशिक्षित नौजवानों को रोजगार मिले।
पेसा कानून का स्वरूप कैसा है यह अभी सामने नहीं आया है। पर यह संभावना है कि इस कानून के अंतर्गत बनने वाली समितियों के अधिकार मौजूदा ग्राम पंचायतों, सभाओं से कहीं अधिक होंगे। उनके प्रस्ताव अधिकारिक भी होंगे। सरकार को निर्णय लेने में आसानी होगी कि वास्तव में स्थानीय निवासी क्या चाहते हैं।
इधर आदिवासी समाज और उनके अधिकारों की लड़ाई लडऩे वाले संगठनों को पेसा कानून के नियमों के उजागर होने की बड़ी प्रतीक्षा है। उनका कहना है कि ग्राम सभाओं के पास पहले से ही काफी अधिकार हैं, पर वही होता है जो सरकार या उनके लाइवलीहुड में हस्तक्षेप करने वाले उद्योगपति चाहते हैं। क्या पेसा कानून की नियमावली बनाते समय इस बात पर गौर किया गया है? या फिर कोई सुराख छोड़ दी गई है?
बिन मांगे कर्ज!
लगातार बढ़ती जा रही साइबर ठगी के इस दौर में कर्ज की अर्जी बिना भी कर्ज मंजूर हो जाने के ऐसे संदेश आते रहते हैं जिनमें किसी वेबसाइट का एक लिंक भी दिया रहता है। अब ऐसे लिंक पर जाने का क्या नतीजा होगा, यह तो पता नहीं, क्योंकि समझदारी इसी में है कि ऐसे लिंक क्लिक न किए जाएं। लेकिन आज जब लोग बहुत बुरे हाल से गुजर रहे हैं, तो तीन लाख रूपए मिलने की एक संभावना उन्हें जाल में फंसाने की ताकत तो रखती है।
गांवों का दर्जा वापस करेगी सरकार?
सामान्य क्षेत्रों में ही यदि किसी ग्राम पंचायत को नगर पंचायत का दर्जा दे दिया जाता है तो कई सुविधाओं से उन्हें वंचित होना पड़ जाता है। विकास और रोजगार के लिए केंद्र राज्य से मिलने वाले फंड में बड़ा अंतर आ आता है। नागरिकों की सुविधाएं बढ़े न बढ़े, टैक्स जरूर बढ़ जाता है। पांचवी अनुसूची वाले क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों को नगर पंचायत का दर्जा देने का विषय विवादों में रहा है। इसे लेकर लोग कोर्ट भी गए हैं। राज्यपाल अनुसुईया उइके भी इसके विरोध में हैं। उनके पास प्रभावित लोगों ने शिकायतें भी की हैं। एक बार फिर उन्होंने सरकार से कहा है कि प्रेमनगर (सरगुजा), नरहरपुर (कांकेर), दोरनापाल (सुकमा) और बस्तर को दुबारा ग्राम पंचायत बनाने के बारे में वहां के लोगों की मांग के अनुरूप विचार करें। सरकार के पास अपना तर्क है कि एक निश्चित जनसंख्या होने के बाद ग्राम पंचायतों को नगर पंचायत का दर्जा दिया जाता है। पर अनुसूचित क्षेत्र के लोगों का कहना है कि यह नियम उन पर लागू नहीं होता। देखना है कि राज्यपाल द्वारा दुबारा ध्यान दिलाये जाने के बाद सरकार पीछे लौटती है या नहीं?
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