राजपथ - जनपथ
चुनावी टिकिट, जितने मुँह उतनी बातें
कांग्रेस में लोकसभा प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया चल रही है। इन सबके बीच रायपुर लोकसभा सीट से बृजमोहन अग्रवाल को भाजपा प्रत्याशी बनाए जाने के बाद सोशल मीडिया में कई सुझाव आए हैं। यह भी सुझाव दिया गया है कि रायपुर की सीट इंडिया गठबंधन को दे देनी चाहिए और बदले में कांग्रेस के नेता, आम आदमी पार्टी से पंजाब या फिर हरियाणा से अथवा वामपंथी गठबंधन से केरल में एक सीट छोडऩे के लिए कहा जाना चाहिए।
इसी तरह कुछ कांग्रेस नेताओं ने फेसबुक पर राजनांदगांव सीट से गिरीश देवांगन को टिकट देने की वकालत की है। यह भी नारा दिया है-राजनांदगांव की जनता कहे पुकार जीडी (गिरीश देवांगन) भईया अब की बार...। एक कांग्रेस नेता ने सहमति जताते हुए फेसबुक पर लिखा कि उन्होंने इतनी मेहनत की है, वो निकाल सकते हैं। कांग्रेस नेता हरदीप सिंह बेनीपाल ने जीडी की उम्मीदवारी का समर्थन करते हुए लिखा कि उनका इतना प्रभाव है कि राजनांदगांव लोकसभा से लगी हुई मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, और आंध्र की सीटें भी जीत लेंगे।
महंगे होटल में नई शिक्षा नीति
केंद्र सरकार ने तार वर्ष पहले ही एक पूरी मुकम्मल उच्च शिक्षा नीति बनाकर राज्यों को दे दी है। यह नीति छत्तीसगढ़ के भी आठ आटोनामस कालेजों में लागू हो गयी है। इसकी अच्छाई और खामियां भी दूर की जा रही हैं। इतना ही नहीं दो शिक्षा सत्रों सी परीक्षा छात्र पार कर चुके है। इसे अब सभी कॉलेजों में लागू कर वृहद रूप दिया जाना शेष है। इसके बाद भी उच्च शिक्षा विभाग और संचालनालय अभी टास्क फोर्स गठित करने, नीति के अध्ययन, सुझाव और निष्कर्षों का प्रतिवेदन देने जैसी महंगी औपचारिकताएं कर रहा है।
महंगी इसलिए कह रहे हैं कि उच्च शिक्षा संचालनालय कल बुधवार को राजधानी के फाइव स्टार होटल में ऐसे ही एक टास्क फोर्स की बैठक बैठक कर रहा है । इसमें चार दर्जन प्रोफेसर,और अन्य अधिकारी बुलाए गए है। सुबह 8 बजे से दिनभर चलने वाले इस वर्कशाप पर ब्रेक फास्ट, लंच,शाम की हाई टी ,और किराए पर करीब डेढ़ दो लाख रूपए खर्च किए जा रहे हैं। इसका निष्कर्ष तो भविष्य पर निर्भर है लेकिन इतने बड़े खर्च को लेकर उंगली उठाई जा रही है।
केवल हॉल या सभागृह के नाम पर इतना बड़ा खर्च। जबकि राजधानी के हर बड़े कॉलेज में एक एसी सभागृह उपलब्ध है। सरकारी से अधिक निजी विवि,या एनआईटी, आईआईएम, एचएनएलयू, ट्रिपल आईटी में तो और भी सुविधाजनक हॉल है। ये दूर हैं तो शहर के बीच न्यू सर्किट हाउस है। वैसे पूर्ववर्ती रमन सरकार के कार्यकाल में जीएडी का आदेश भी है कि शासकीय बैठकें महंगे होटलों के बजाए न्यू सर्किट हाउस के सभा गृह में की जाए।
400 पार के लिए दौड़
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के पहले प्रियंका गांधी ने महिला मैराथन का आयोजन- लडक़ी हूं लड़ सकती हूं, स्लोगन के साथ किया था। पर कांग्रेस के पक्ष में परिणाम नहीं आए। उसके बाद के चुनावों में इस तरह का कोई प्रयोग कांग्रेस ने नहीं किया। पर भाजपा ने अलग तरह का कार्यक्रम बनाया है। मोदी की प्रमुख गारंटी में से एक नारी वंदन योजना से जोड़ते हुए हर जिले में महिला कार्यकर्ताओं की दौड़ कराई जा रही है। यह जशपुर की तस्वीर है, जहां दौड़ के बहाने महिला मोर्चा अपने कार्यकर्ताओं को लोकसभा चुनाव में प्रचार-प्रसार के लिए रिचार्ज कर रही हैं। देशभर में ऐसे कार्यक्रम रखे जा रहे हैं।
केंद्र से राशि अब मिलती रहेगी?
हाल ही में केंद्र सरकार ने केंद्रीय करों के राज्यांश का करीब 4900 करोड़ रुपया जारी कर दिया। कांग्रेस को पूरे पांच साल के कार्यकाल में केंद्र से शिकायत रही कि उनके हक की राशि रोक ली जाती है। पर राज्यांश राशि बिना किसी शोरगुल के राज्य के पास आ गया। कांग्रेस सरकार तब कोल रायल्टी पेनाल्टी की रुकी हुई करीब 4400 करोड़ रुपये और केंद्रीय बलों की तैनाती पर आये खर्च के करीब 12 हजार करोड़ रुपये की मांग भी करती रही, उसके रहते नहीं मिली। अब जब दोनों जगह सरकार एक ही पार्टी की है, हो सकता है कि ये बड़ी राशि भी जल्दी मिल जाएं।
भवन भी बचा, कुर्सी भी
छत्तीसगढ़ में भाजपा संगठन केंद्रीय नेतृत्व से मिले इस टास्क को भली-भांति पूरी कर रही है जिसमें कहा गया है कि दूसरे दलों के नेताओं के दरवाजे उदारता से खोल दिए जाएं। कल भी प्रदेश कार्यालय में यह सिलसिला चला जिसमें कांग्रेस व जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के कई नेताओं का भाजपा में स्वागत किया गया।
बिलासपुर के जिला पंचायत अध्यक्ष अरुण सिंह चौहान की निष्ठा तब भी नहीं डगमगाई थी, जब डॉ. रेणु जोगी ने जेसीसी की टिकट पर 2018 का चुनाव लड़ा। जोगी के करीबी होने के बावजूद वे साथ नहीं गए। पिछले दो चुनावों में वे टिकट की मांग करते रहे। पर, जिला पंचायत का अध्यक्ष बनाकर उन्हें संतुष्ट किया गया। इस बार विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने कांग्रेस को साथ दिया। निकट भविष्य में न कोई चुनाव होने वाला है और न ही उनके वर्तमान पद को तत्काल खतरा है, फिर उन्होंने भाजपा में जाने का फैसला क्यों लिया? दरअसल वे नहीं जाते तो दो अन्य जिला पंचायत सदस्य तो तैयार बैठे ही थे, जो साथ में शामिल हुए हैं। आने वाले दिनों में कुछ और लोग कांग्रेस छोड़ देते तो उनके बहुमत पर खतरा मंडराता और अविश्वास प्रस्ताव आ जाता। अब कम से कम उनकी कुर्सी इस सरकार में भी बची रहेगी। लेकिन उन्हें जानने वालों के बीच एक दूसरे कारण की अधिक चर्चा रही। इन दिनों कई जिलों में अवैध निर्माण पर तोडफ़ोड़ की कार्रवाई चल रही है। चर्चा के मुताबिक कुछ साल पहले चौहान ने बिलासपुर में एक व्यावसायिक भवन बनवाया। नगर-निगम में कांग्रेस की सरकार के रहते ही उसके कुछ हिस्से को लेकर आपत्ति आ गई थी, जिससे वे नाराज चल रहे थे। अब वह परेशानी भी खत्म हो जाएगी।
सुनील सोनी विधायक बनेंगे
मध्यप्रदेश के दिग्गज भाजपा नेता नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय और प्रहलाद पटेल रविवार को रायपुर आए, तो सीधे बृजमोहन अग्रवाल के मौलश्री विहार स्थित निवास पहुंचे। ये तीनों नेता बृजमोहन की माता के गुजरने पर शोक प्रकट करने आए थे। इस दौरान बृजमोहन के निवास पर सांसद सुनील सोनी भी थे।
चर्चा के बीच कैलाश विजयवर्गीय की नजर सुनील सोनी पर पड़ गई। उन्होंने पूछ लिया कि तुम्हारी टिकट का क्या हो गया? सुनील सोनी ने अपनी टिकट कटने को सहज रूप में लिया, और कहा कि जब उनकी जगह बृजमोहन जी के नाम की घोषणा हुई, तो मैं यहीं (बृजमोहन निवास) था। यानी सुनील सोनी यह बताने की कोशिश कर रहे थे कि बृजमोहन जी के प्रत्याशी बनने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा है।
बाद में मीडिया से चर्चा में सुनील सोनी का दर्द छलक ही पड़ा। और कह गए कि कई अधूरा काम पूरा नहीं हो पाया, इसका उन्हें अफसोस है। हालांकि उनसे जुड़े लोग उम्मीद से हैं कि बृजमोहन के चुनाव जीतने के बाद रायपुर दक्षिण सीट से सुनील सोनी प्रत्याशी बनाए जा सकते हैं। क्या वाकई ऐसा होगा, यह तो आने वाले समय में पता चलेगा।
साहब का लोकेशन ढूंढते मंत्री
उद्योग विभाग के इन साहब से न केवल मातहत बल्कि नई सरकार के मंत्री भी हलाकान हैं। उनका आधा दिन तो साहब की पतासाजी में निकल जाता है। मंत्री जी का एक स्टाफ तो इसी काम के लिए तैनात है। उसका एक ही काम है साहब की लोकेशन से अपडेट रहना। क्योंकि साहब तीन पदों के जिम्मेदारी संभाल रहे हैं। एक दफ्तर में पता लगाते हैं तो साहब दूसरे तीसरे दफ्तर में होना बताए जाते हैं। तीनों जगह न मिलने पर घर या दिल्ली टूर पर होते हैं। किसी एक दफ्तर में दो घंटे बैठ जाएं तो रिकार्ड बन जाता है उस दिन। अगस्त से संचालक हैं लेकिन ज्वाइनिंग के दिन के बाद से वहां गए ही नहीं। प्रतिनियुक्ति पर आए साहब ने एक निगम में पांच वर्ष ऐसे ही गुजार लिए। कांग्रेस सरकार में बिठाए गए ये साहब, काम भी पूर्व मंत्री के पारिवारिक ठेकों के पेंडिंग बिल निपटा रहे हैं।
सिस्टम चालू आहे
सरकार बदलने के बाद कुछ दिनों तक ऐसा लग रहा था कि शराब, जुआ-सट्टा और कबाड़ का जो सिस्टम कांग्रेस सरकार में चल रहा था, वह बंद हो जाएगा। हालांकि ऐसा हुआ नहीं। कुछ दिनों तक तो थानेदार चुपचाप बैठे रहे और अपने क्षेत्र के अवैध शराब बेचने वाले, बार चलाने वालों, कबाडिय़ों को धंधा बंद रखने कहा था। कुछ दिनों बाद ही यह पूरा सिस्टम एक्टिवेट कर दिया गया है। खबर है कि शराब दुकानों में ओवररेट जारी है। कबाडिय़ों ने फिर अपना धंधा शुरू कर लिया है। मजेदार बात यह है कि ज्यादातर जिलों के नए कप्तान साहब नहीं जान पा रहे कि टीआई क्या-क्या खेल कर रहे हैं।
सात दावेदार में तीन सफल
लोकसभा चुनाव में दावेदारों की जिस तरह से चर्चा चली उससे यह लग रहा था कि भाजपा आधी सीटों पर महिलाएं उतार देगी। सरोज पांडेय से लेकर लक्ष्मी वर्मा, कमला पाटले, कमलेश जांगड़े, रंजना साहू, रूपकुमारी चौधरी, चंपा देवी पावले, लता उसेंडी जैसे दावेदार उभर रहे थे। रायपुर से लक्ष्मी वर्मा, सरोज पांडेय कोरबा से, चंपा देवी पावले कोरबा और सरगुजा से, कमला पाटले और कमलेश जांगड़े जांजगीर से तो महासमुंद से रंजना साहू और रूपकुमारी चौधरी का नाम लिया जा रहा था। इसी तरह कांकेर से लता उसेंडी का नाम चर्चा में था। बिलासपुर से जिला पंचायत सदस्य शीलू साहू को प्रमुख दावेदारों में गिना जा रहा था। लेकिन बी फार्म सरोज, कमलेश और रूपकुमारी के हाथ आया।
जल मिशन डूबा, नलों में सूखा
छत्तीसगढ़ के ग्रामीण और शहरी दोनों ही इलाकों में जल जीवन मिशन बुरी तरह विफल दिख रहा है। गर्मी करीब आते ही लोग सवाल कर रहे हैं कि आखिर लक्ष्य और कितना दूर है। जहां काम हुए हैं, वहां से भ्रष्टाचार की खबरें एक के बाद एक आ रही हैं। सरगुजा जिले में करोड़ों रुपये खर्च के बावजूद लोगों को इस गर्मी में पानी के लिए तरसना पड़ेगा। भैयाथान से खबर है कि यहां टंकी का निर्माण पूरा नहीं हुआ। जब टंकी ही नहीं बनी तो बिछाई गई पाइप लाइन से पानी की सप्लाई का भी सवाल नहीं है। हालत यह है कि मिशन के इन्हीं अधूरे कामों का नाम लेकर बिगड़े हेंडपंपों को सुधारा नहीं जा रहा है। ग्रामीणों को 2-3 किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ रहा है। इधर डभरा में मिरौनी बैराज से कई गांवों में पानी देना था। मगर काम स्तरहीन हुआ। कुछ समय पहले ही बिछाई गई पाइपें टूट गई हैं, जिसके कारण पानी की सप्लाई नहीं हो पा रही है। मगर ये छोटे-छोटे उदाहरण हैं। केंद्र की मदद से चल रही इस योजना के तहत घर-घर नल के जरिये साफ पानी पहुंचाने का लक्ष्य था। इसे पहले 2023 में पूरा किया जाना था, बाद में 2024 की डेडलाइन दी गई, मगर काम इतनी धीमी गति से चल रहा है कि अब मियाद दिसंबर 2025 तक बढ़ा दी गई है। कांग्रेस शासनकाल के दौरान नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल, डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी सहित अन्य भाजपा विधायकों ने कई बार सरकार को घेरा। सदन में ही मंत्री गुरु रुद्र कुमार को कंपनियों को ब्लैक लिस्टेड करने की घोषणा करनी पड़ी। 1000 से अधिक ठेकेदारों को नोटिस दी गई, सौ से ज्यादा अनुबंध निरस्त किए गए, जिनकी लागत 2000 करोड़ के आसपास थी। कई जगह पाइपलाइन उखाडक़र नए बनाने का निर्देश दिया गया। सौ से अधिक पानी टंकियों को गिराने का आदेश दिया गया। कई जगह टंकियों तक तैयार हैं पर बराज, बांध और नदियों से पानी लाने का काम अधूरा है।
जनवरी में केंद्रीय जलशक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने जल जीवन मिशन के कार्यों की समीक्षा दी थी, उन्होंने भी भ्रष्टाचार के मामलों पर कड़ी कार्रवाई की बात कही थी। मगर उनके विभाग ने कांग्रेस शासन के दौरान राज्य सरकार को पत्र लिखकर 50 प्रतिशत कार्य पूरा होने पर सराहना भी की थी। इधर भाजपा विधायक गोमती साय के सवाल पर पिछले विधानसभा सत्र में विभाग के मंत्री अरुण साव ने बताया था कि जिले के 754 गांवों में सिर्फ 17 गांवों में 100 फीसदी काम हुआ है, बाकी जगह ‘कार्य प्रगति पर’ है।
थोड़े दिन में ही सारी सरकारी मशीनरी लोकसभा चुनाव में व्यस्त हो जाने वाली है। यह व्यस्तता मई महीने तक रहेगी। तब पेयजल संकट से प्रभावित गांवों में इस भ्रष्टाचार का असर महसूस किया जाएगा।
आईपीएस के गांव में फोर्स अकादमी
आईपीएस डॉ. लाल उमेद सिंह की पोस्टिंग जीपीएम जिले से करीब 300 किलोमीटर दूर बलरामपुर में है। मगर यहां के मझगवां में उनका घर है,जहां पले-बढ़े। यहां उन्होंने ग्रामीण बच्चों की शारीरिक और बौद्धिक गतिविधियों के लिए फोर्स अकादमी नाम से एक संस्था शुरू की है। एकेडमी के भवन का उद्घाटन पिछले सप्ताह हुआ। भवन के लिए गांव के लोगों ने जमीन उपलब्ध कराई। जिले की यह पहली फोर्स अकादमी है, जहां न केवल जीपीएम बल्कि दूसरे जिलों के बच्चे भी प्रशिक्षण ले रहे हैं। इस समय इनकी संख्या 250 है। खेल सामग्री और कोचिंग के लिए पाठ्य सामग्री भी यहां उपलब्ध है। प्रशिक्षकों की भी व्यवस्था की गई है। मेहनत और संघर्ष से कामयाबी हासिल करने वाले कई अफसर न केवल अपनी मिट्टी से जुड़े रहने और नई पीढ़ी का भविष्य संवारने की कोशिश करते हैं।
तेंदुए कम हुए शिकार के चलते
छत्तीसगढ़ में बाघों की संख्या घटने के बाद अब यह पता चला है कि तेंदुओं की संख्या भी कम हो रही है। सन् 2018 में प्रदेश में 852 तेंदुआ होने का पता चला था। पर 2022 की हाल में जारी की गई गणना रिपोर्ट के मुताबिक इनकी संख्या 722 रह गई है। बाघ और तेंदुआ दोनों की ही गणना नेशनल टाइगर रिजर्व अथॉरिटी कराता है। इसकी रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि तेंदुए की वंश वृद्धि दर के अनुसार 2022 में प्राकृतिक मौतों को कम कर देने के बावजूद संख्या बढक़र 1000 हो जानी थी। ये जो 278 तेंदुए कम दिखाई दे रहे हैं उनमें से कुछ की असामयिक मौत किसी दुर्घटना की वजह से जरूर हो गई होगी लेकिन एनटीसीए का ही आकलन है कि संख्या घटने की बड़ी वजह शिकार किया जाना है। वनों को सुरक्षित रखने में बाघों की तरह तेंदुए का भी बड़ा योगदान होता है। पर इनकी संख्या घटने पर लोगों का ध्यान अधिक नहीं जाता, जितना बाघ पर जाता है। अभयारण्यों से साल में दो चार तेंदुए के शिकार के मामले पकड़े जाते हैं, पर आंकड़ों के मुताबिक हर साल 90 से अधिक तेंदुआ शिकारियों के हाथों जान गवां रहे हैं। ([email protected])
कांग्रेस में ब्लाइंड चाल
लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा में दावेदारों की भीड़ लंबी-चौड़ी है। इसके विपरीत कांग्रेस में चुनाव लडऩे वाले दबे-छिपे बैठे हैं। कांग्रेस के एक पूर्व लोकसभा प्रत्याशी का कहना था कि जब 68 सीटें जीते थे, तब तो बड़ी मुश्किल से दो सीटें जीत सके। इस बाद स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का माहौल है। महतारी वंदन और राम मंदिर के कारण सभी वर्गों में भाजपा का प्रभाव है। ऐसे में चुनाव लडऩे का मतलब ब्लाइंड चाल जैसा है। आप पैसे खर्च करेंगे लेकिन इस बात की गारंटी नहीं है कि पत्ता किसका खुलेगा।
गृह विभाग के ग्रह किस ओर
आईएएस या राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों धड़ाधड़ तबादला आदेश आ रहे हैं। ऐसे समय में नई पोस्टिंग के इंतजार में बैठे राज्य पुलिस सेवा के अफसर ग्रह नक्षत्रों की चाल पता लगवा रहे हैं। आईपीएस की बड़ी सूची के बाद एडिशनल एसपी और डीएसपी की सूची आनी थी। कुछ जिलों के एडिशनल एसपी का तबादला कर दिया गया है, लेकिन नई पोस्टिंग अभी तक नहीं की गई है। जो पहले से पदस्थ थे, वे बने हुए हैं। राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों की लिस्ट देखकर पुलिसवाले उम्मीद करते हैं, लेकिन शाम तक निराश हो जाते हैं।
ये भी खुश हैं..
बृजमोहन अग्रवाल के लोकसभा प्रत्याशी घोषित होने से जितने खुश भाजपा-कांग्रेस के नेता हैं उससे कहीं अधिक पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर खुश हैं। कल एक बड़े सीई. स्तर के साहब ने सार्वजनिक तो नहीं परिवार का मुंह मीठा कराया। यह इसलिए नहीं कि बृजमोहन अग्रवाल से उनकी कोई अदावत है, बल्कि इसलिए कि एक बड़ा काम हाथ से निकलने से बच गया। यही काम और बिलो, एबव परसेंटेज ही पीडब्ल्यूडी के इंजीनियर्स की कुर्सी तय करने का सबब रहता है। जी हां, शिक्षा मंत्री रहे अग्रवाल ने अपने विभागों की अनुदान मांगों पर चर्चा में घोषणा की थी कि स्कूल-कॉलेज भवनों का निर्माण तेजी ले हो, इसके लिए शिक्षा विभाग में ही कंस्ट्रक्शन इंजीनियरिंग विंग स्थापित किया जाएगा ।यानी अब पीडब्लूडी नहीं बनाएगा।
अफसर से लेकर मंत्री तक, इस घोषणा से सकते में आ गए।सही भी है, पीडब्ल्यूडी के लिए शिक्षा विभाग ही बड़ी शेयर होल्डर माना जाता है। स्कूल-कॉलेज कंस्ट्रक्शन कॉस्ट करीब पांच हजार करोड़ से अधिक का है। और परसेंटेंज का गुणा भाग कर लें तो, सर कढ़ाई में। बस फिर क्या सब मनौती मनाने लगे । ये लोग ऐसी चाल चलेंगे पता नहीं था।
किस्मत किसकी खुलेगी
भाजपा के केन्द्रीय चुनाव समिति की बैठक में छत्तीसगढ़ की सीटों पर गुरूवार को करीब 20 मिनट की चर्चा हो पाई। यद्यपि पीएम नरेन्द्र मोदी, और अमित शाह व राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा समिति के सदस्यों के साथ देश के अलग-अलग राज्यों की लोकसभा सीटों पर चर्चा के लिए रात्रि 3 बजे तक मौजूद रहे।
छत्तीसगढ़ की बाकी सीटों के लिए तो ज्यादा कुछ बात नहीं हुई लेकिन रायपुर की सीट से सरकार के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का नाम एकाएक सामने आ गया। बृजमोहन प्रदेश के सबसे वरिष्ठ विधायक हैं, और पार्टी का एक खेमा उन्हें केन्द्र की राजनीति में भेजने के लिए तत्पर दिख रहा है। मगर बृजमोहन को ही तय करना है कि वो लोकसभा सदस्य बनना चाहते हैं, अथवा सरकार में मंत्री बने रहना चाहते हैं।
पार्टी के कुछ लोगों का मानना है कि बृजमोहन लोकसभा लड़ते हैं तो जीत उनकी सुनिश्चित है। ऐसे में उनकी जगह मंत्री पद के लिए राजेश मूणत की स्वाभाविक दावेदारी बन जाती है जो कि इन दिनों काफी मुखर हैं। मूणत संगठन के पसंदीदा भी हैं। लेकिन बृजमोहन के समर्थक नहीं चाहते कि वो केन्द्र में सक्रिय हो, और मौजूदा सांसद सुनील सोनी भी उन्हीं के करीबी हैं। यह तकरीबन तय माना जा रहा है कि बृजमोहन लोकसभा चुनाव लडऩे से मना कर देंगे, और ऐसे में संभव है कि सुनील सोनी की हमेशा की तरह आखिरी वक्त में लॉटरी खुल जाए।
भाजपा की टिकट और एनएसए
400 पार के लिए भाजपा एक एक प्रत्याशी चयन में मानो समुद्र मंथन जैसी कवायद कर रही है। नमो एप, राज्य और केंद्र की गुप्तचर एजेंसी, सर्वे एजेंसियां इस दिशा में काम कर रही है। इसमें एक नया एजेंसी भी अंतिम मुहर लगाने लगाने में अहम भूमिका निभा रही है । वो है विवेकानन्द फाउंडेशन।
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एनएसए अजीत डोभाल और प्रधानमंत्री के पूर्व प्रमुख सचिव नृपेन्द्र मिश्रा भी इसी फाउंडेशन से जुड़े रहे हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय से मुक्त होने के बाद नृपेन्द्र मिश्रा अभी भी फाउंडेशन के लिए काम कर रहे हैं। चर्चा है कि राज्यों की राजनीति स्थिति की रिपोर्ट फाउंडेशन तक पहुंचती है और यहां की टीम दावेदारों की कुंडली तैयार कर मोटा भाई तक भेज रहे हैं। फाउंडेशन की मुहर लगने पर ही नाम तय होने की चर्चा है। क्या वाकई ऐसा हो रहा है, यह तो प्रत्याशियों की लिस्ट जारी होने के बाद ही पता चलेगा।
शनिवार को ऑफिस जाना पड़ सकता है
चर्चा है कि राज्य में शनिवार का सरकारी अवकाश बंद हो सकता है। भूपेश सरकार ने केन्द्र की तर्ज पर राज्य सरकार के दफ्तरों में अवकाश का फैसला लिया था।
केन्द्र सरकार में वैसे तो बाकी अवकाश काफी कम होता है। ऐसे में शनिवार का अवकाश जरूरी हो जाता है। मगर राज्य के तीज-त्यौहारों के मौके पर ऐच्छिक अवकाश की भरमार हो गई है। ऐसे में अब फिर से शनिवार का अवकाश बंद करने पर मंथन चल रहा है। जल्द ही सरकार इस पर कोई फैसला ले सकती है।
मेयर न सही, सभापति ही हटाओ
प्रदेश में सरकार बनने के बाद भाजपा को अनेक नगर पंचायतों और नगरपालिकाओं में तख्ता पलटने में कामयाबी मिल चुकी है लेकिन नगर-निगम अब भी बचे हुए हैं। जगदलपुर नगर-निगम की महापौर सफीरा साहू के खिलाफ कांग्रेस सरकार के दौरान 6 माह पहले अविश्वास प्रस्ताव जरूर लाया गया था लेकिन तब फ्लोर टेस्ट की नौबत नहीं आई। कांग्रेस के अधिकांश पार्षद एक दिन पहले राजधानी पहुंच गए थे और कोरम पूरा नहीं हो पाया। नियम ऐसा है कि अब अगला प्रस्ताव एक साल की अवधि पूरी होने के बाद ही आ पाएगा। इस तरह से कम से कम अगले 6 महीने तक उनकी कुर्सी सुरक्षित रहेगी। मगर, अब भाजपा पार्षदों ने सभापति कविता साहू के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है। नगर-निगम के रोजमर्रा के कामकाज में सभापति की ज्यादा दखल नहीं होती मगर, आम सभा के दौरान सभापति की भूमिका खास बन जाती है। कांग्रेस के बहुमत वाले इस नगर-निगम में यदि सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पारित हो गया तो यह भाजपा के लिए छोटी सफलता नहीं होगी। यह तभी संभव होगा जब कांग्रेस पार्षद पाला बदलेंगे। लोकसभा चुनाव के पहले लाए गए इस प्रस्ताव का असर आगे के चुनाव में भी दिखेगा। कांग्रेस के सामने भी अपने पार्षदों को एकजुट रखने की चुनौती है। परिणाम 11 मार्च को पता चलेगा, जिस दिन आमसभा बुलाई गई है।
मानसून से पहले की तैयारी
बस्तर के एक गांव की है यह तस्वीर। आदिवासी परिवार मानसून से पहले जंगल की सूखी लकड़ी और खेत की मिट्टी से अपना आशियाना दुरुस्त कर रहा है। प्रकृति और मौसम के अनुसार खुद को डालकर जीवन जीने की कला उनकी विशेषता है। शायद पिछली सरकार में प्रधानमंत्री आवास योजना की सहायता इस परिवार तक नहीं पहुंची। अब अगली बारिश के बाद पहुंच सकती है।
ईडी की ताजा छापेमारी
कोरबा में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम ने ठेकेदार जेपी अग्रवाल के यहां छापामारी की है। वे पूर्व मंत्री जयसिंह अग्रवाल के रिश्तेदार बताये जाते हैं। पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में मंत्री रहने के दौरान जयसिंह अग्रवाल ने डीएमएफ फंड में भ्रष्टाचार का मुद्दा जोर शोर से उठाया था। उनकी तब के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को लिखी गई एक लंबी चि_ी भी सार्वजनिक हो गई थी। ईडी ने अधिकारिक रूप से छापेमारी की वजह व बरामदगी के बारे में अभी कुछ नहीं बताया है, पर चर्चा है कि छापेमारी डीएमएफ में कराए गए कार्यों को लेकर ही की गई है। यह दिलचस्प है कि करीबियों को काम मिलने के बावजूद पूर्व मंत्री ने परवाह नहीं की और डीएमएफ में गड़बड़ी का मुद्दा उठाया।
बस्तर सीट का गणित
कांग्रेस के दिग्गज नेता लोकसभा चुनाव लडऩे से मना कर रहे हैं, लेकिन कहा जा रहा है कि भाजपा प्रत्याशियों की सूची देखकर एक-दो बड़े नेता चुनाव मैदान में उतर भी सकते हैं।
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज ने भी अभी पत्ते नहीं खोले हैं। वो बस्तर के सांसद भी हैं ऐसे में उन पर चुनाव मैदान में उतरने के लिए दबाव भी है। चर्चा है कि यदि बस्तर से भाजपा पूर्व सांसद दिनेश कश्यप को टिकट देती है, तो संभव है कि दीपक बैज चुनाव न लड़े। ऐसे में वो पूर्व मंत्री कवासी लखमा के बेटे हरीश को प्रत्याशी बनाने का समर्थन कर सकते हैं। लेकिन दिनेश की जगह भाजपा कोई नया चेहरा आगे लाती है, तो दीपक पूरे दमखम के साथ चुनाव मैदान में उतर सकते हैं।
कुछ इसी तरह की स्थिति पूर्व सीएम भूपेश बघेल की भी है। उनके करीबियों ने राजनांदगांव, और महासमुंद से बूथ वार आंकड़े निकलवा लिए हैं। चर्चा है कि हाईकमान से दबाव पड़ा, तो दोनों में से किसी एक सीट से चुनाव मैदान में उतर सकते हैं।
सरोज के विरोध का वजन नहीं
कोरबा से सरोज पांडेय की टिकट पक्की होने की खबर से भाजपा में हलचल है। मगर कई स्थानीय नेता सरोज की खिलाफत भी कर रहे हैं।
बताते हैं कि कोरबा के एक पूर्व मेयर, और पूर्व विधानसभा प्रत्याशी एक राय होकर कुशाभाऊ ठाकरे परिसर पहुंचे, और सरोज पांडेय की दावेदारी का विरोध किया।
दोनों नेता किसी स्थानीय को ही टिकट देने पर जोर देते रहे। मगर संगठन नेताओं ने उनकी बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। सरोज की धमक ऐसी है कि पार्टी संगठन उनकी बातों को नजरअंदाज नहीं करता है।
दोनों पार्टी टेंशन में
अंबिकापुर में ईडी ने बड़े ठेकेदार अशोक अग्रवाल के यहां दबिश दी, तो राजनीतिक हलकों में खलबली मच गई। अशोक अग्रवाल पूर्व मंत्री अमरजीत भगत के करीबी माने जाते हैं, और भगत से जुड़े लिंक की वजह से ही ईडी उनके ठिकानों पर पहुंची है।
अशोक ने कांग्रेस सरकार के बदलते ही भाजपा नेताओं के करीबी बन गए, और दो माह के भीतर ही कई विधायकों के क्षेत्र में काम भी कर रहे हैं। अब जब ईडी अशोक अग्रवाल के घर पहुंची है तो भाजपा के नेता भी टेंशन में आ गए हैं। अब आगे क्या कुछ निकलता है, यह तो आने वाले दिनों में पता चलेगा।
सभी के इम्तिहान !
आज से विद्यार्थियों की बोर्ड परीक्षाएं शुरू हो गई हैं। इसमें सफलता असफलता उनके भविष्य का लक्ष्य तय करेगी। इस बार संयोग है कि बच्चों के साथ साथ नेताओं की भी परीक्षा होनी है। भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति ने कल रात बैठक कर परीक्षार्थी तय कर दिए हैं। इस पहले पर्चे में कौन सफल हुआ कौन असफल, यह लिस्ट आने पर ही पता चलेगा। लेकिन बच्चों और नेताओं के इस संयोग पर एक सांसद के निज सहायक ने अपने वाट्सएप स्टेटस में शब्दों को बेहतर तरीके से संजोया है। ये शब्द सांसद जी के लिए है या बच्चों के लिए,यह तो वे ही बता सकते हैं लेकिन शब्द दोनों के लिए प्रेरणादायी हैं । वैसे हम आपको बता दे कि सांसद पहली परीक्षा में ही संघर्ष कर रहे हैं। नमो एप से लेकर सर्वे तक में कुछ पिछड़ रहे हैं। इतना अवश्य है कि बी फार्म मिला तो जीतेंगे ये ही । बहरहाल निज सहायक के शुभकामना शब्द पढ़े।
हसदेव पर युवा जिज्ञासा
विद्यार्थियों में नेतृत्व क्षमता के विकास और उन्हें लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति जागरूक करने के लिए विभिन्न संभागीय मुख्यालयों में युवा संसद आयोजित किए गए। करीब एक घंटे के इस कार्यक्रम में प्रश्न कल भी होता है। अंबिकापुर में संभाग स्तर की युवा संसद आयोजित की गई, जिसमें सरगुजा, सूरजपुर, बलरामपुर, कोरिया, जशपुर और मनेंद्रगढ़ के विद्यार्थी शामिल हुए। इसमें विद्यार्थियों ने हसदेव अरण्य क्षेत्र में हो रही पेड़ों की कटाई और कोयला खनन की अनुमति पर बहस की। इसके पहले बिलासपुर संभाग में भी रखी गई युवा संसद में यह मुद्दा विद्यार्थियों ने जोरों से उठाया था।
यह दर्शाता है कि नव युवाओं के मन में जल जंगल जमीन और पर्यावरण पर कितनी चिंता है। आखिरकार भविष्य में होने वाले नुकसान का खामियाजा उनको ही तो भुगतना होगा।
पानी बचाने की नुस्खे
कपड़े धोने के लिए यदि वाशिंग मशीन का इस्तेमाल किया जाए तो हाथ से धोने के मुकाबले बहुत अधिक पानी खर्च होता है। और यह पानी हम बर्बाद कर देते हैं। यह तस्वीर बता रही है कि कुछ लोग पानी के महत्व को समझते हैं। वाशिंग मशीन से निकलने वाले पानी को सहेजा जा रहा है ताकि उससे आंगन और बाथरूम को साफ किया जा सके।
छात्र का आत्मघाती कदम
सरगुजा के नजदीक दरिमा स्थित प्री मैट्रिक अनुसूचित जनजाति छात्रावास के आठवीं के एक छात्र मुकेश तिर्की ने हॉस्टल के कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। खबर यह बताई गई है कि वह छात्र पथरी की बीमारी से और दर्द सहन नहीं कर पाने के कारण उसने जान दे दी।
वजह हैरान करने वाली है और बहुत कुछ सोचने की जरूरत है। पथरी का रोग लाइलाज नहीं है। संभागीय मुख्यालय अंबिकापुर और मेडिकल कॉलेज दरिमा से काफी नजदीक है। सरकार की तमाम योजनाएं है जिसके तहत इस आदिवासी वर्ग के छात्र का इलाज मुफ्त में भी हो सकता था। क्या जिस हॉस्टल में रहता था, उसके अधीक्षक और स्कूल के प्रिंसिपल का बच्चों के साथ इतना संवाद नहीं है कि वे उनसे हालचाल पूछें, बीमारी की जानकारी लें। क्या छात्र के अभिभावक को यह जानकारी नहीं थी कि उसे सरकारी योजना का लाभ मिल सकता है और बच्चे का इलाज उस पर बिना किसी आर्थिक बोझ के हो सकता है? इन दिनों प्रशासन की गाडिय़ां गांव-गांव घूम रही है जो बता रही है कि सरकारी योजनाओं का लाभ कैसे लें। मगर, इस परिवार के घर और स्कूल तक शायद वह नहीं पहुंची।
सरोज पांडेय की सांसद निधि
पूर्व राज्यसभा सदस्य सरोज पांडेय ने लोकसभा चुनाव लडऩे पर खुले तौर पर कुछ नहीं कहा है। उन्होंने सब कुछ पार्टी हाईकमान पर छोड़ दिया है। फिर भी कई लोग अंदाज लगा रहे हैं कि सरोज कोरबा सीट से चुनाव लड़ सकती हैं। इसकी वजह भी है। सरोज ने सालभर में सांसद निधि का काफी हिस्सा कोरबा संसदीय क्षेत्र में खर्च किया है।
सरोज दुर्ग से सांसद रही हैं। वैशाली नगर सीट से विधायक रही हैं, और दो बार दुर्ग की मेयर भी रहीं। दुर्ग में उनके समर्थकों की अच्छी खासी संख्या है। मगर विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें कोरबा संसदीय क्षेत्र का प्रभारी बनाया था। कोरबा में भाजपा को अच्छी सफलता भी मिली। ऐसे में सरोज का नाम कोरबा सीट से तय हो जाए, तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
नेताजी के भाईजी
अंबिकापुर के भाजपा विधायक राजेश अग्रवाल विवादों के घेरे में आ गए हैं। विवाद की वजह यह है कि राजेश के भाई विजय अग्रवाल ने दो दिन पहले लखनपुर थाने में हंगामा किया था, और वहां के डीएसपी शुभम तिवारी को धमकी दी। विजय, कोयला चोरों पर पुलिसिया कार्रवाई से खफा थे। हंगामे के कुछ घंटे बाद डीएसपी को हटा दिया गया।
मीडिया कर्मियों ने इस पर पुलिस के आला अफसरों से सवाल किया, तो यह कहा गया कि डीएसपी शुभम तिवारी के प्रशिक्षण की अवधि खत्म हो गई है। इसलिए उन्हें बदला गया है। शुभम की साख अच्छी है, और यही वजह है कि अंबिकापुर के कई स्थानीय नेताओं ने विधायक राजेश अग्रवाल और उनके भाई की शिकायत प्रदेश संगठन में भी की है। शिकायत में यह कहा गया कि विधायक और उनके परिवार के सदस्यों के पुलिस-प्रशासन में गैर जरूरी हस्तक्षेप से सरकार की छवि खराब हो रही है। अब पार्टी संगठन क्या कुछ करती है, यह देखना है।
लौटे अफसर क्या करेंगे ?
दिल्ली डेपुटेशन से अफसर लौटने लगे हैं। डीओपीटी ने चार अफसरों को वापसी के लिए रिलीव कर दिया है। दो ने कल जॉइनिंग दे दी है । वापसी से ये लोग तो खुश हैं लेकिन दिल्ली छोड़ आने के सबब से यहां रहे लोग अधिक चिंतित हैं। और कहने भी लगे हैं, आखिर ये लोग लौट क्यों रहे हैं? बड़े साहब ने पोस्टिंग की नोट शीट तो सरकार के भेज दी है। बताया जा रहा है कि इन्हें, कुछ अतिरिक्त प्रभार वाले अफसरों को हल्का कर एडजस्ट किया जा सकता है। लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत है कि साहब, अतिरिक्त प्रभार छोडऩा नहीं चाहते। ऐसे में वापसी कर रहे लोगों को मंत्रियों से ही उम्मीद है कि दो महीने में सूट न करने वाले वर्तमानों को बदलना लें।
टूट रहे हैं तो टूटने दो..
कोरबा जिले के छुरी नगर पंचायत की कुर्सी भी कांग्रेस के हाथ से चली गई। यहां कांग्रेस के 9 पार्षद हैं। अपनी कुर्सी बचाकर रखने के लिए अध्यक्ष नीलम देवांगन को केवल 6 वोट की जरूरत थी। मगर, उनको केवल 5 वोट मिले।
सरकार बदलने के बाद प्रदेश की नगरीय निकायों में एक दर्जन से ज्यादा ऐसे अविश्वास प्रस्ताव पारित हो चुके हैं, जिनमें बहुमत होने के बावजूद कांग्रेस अपनी कुर्सी खो चुकी है। अविश्वास प्रस्ताव अचानक नहीं आता। इसके लिए कलेक्टर के पास आवेदन देना होता है और सभा के लिए कम से कम एक सप्ताह का समय दिया जाता है।
प्रदेश में कांग्रेस अध्यक्ष सहित पदाधिकारियों की भारी-भरकम टीम है। नगर पंचायत और नगरपालिकाओं के पार्षद जमीनी कार्यकर्ता होते हैं, जो हर चुनाव में काम आते हैं। वे उनको संभाल नहीं पा रहे हैं। क्यों? सीधा जवाब हो सकता है कि जब बड़े नेता सांसद, विधायकों को टूटने से नहीं बचा पा रहे हैं तो आप हमसे उम्मीद क्यों करते हैं?
नए मंत्रियों की तारीफ
निर्धारित समय से पहले समाप्त हो जाने के बावजूद छत्तीसगढ़ विधानसभा का बजट सत्र लंबा चला। बहुत सवाल-जवाब हुए। वरिष्ठों के अलावा नए आए मंत्रियों अरुण साव, विजय शर्मा, टंकराम वर्मा, लक्ष्मी राजवाड़े आदि ने सवालों का सामना किया। वहीं पहली बार विधायक बनी चातुरी नंद ने पुलिस जवानों की समस्या को जितनी गंभीरता से उठाया, उसने पूरे सदन का ध्यान खींचा। आखिरी दिन तो कमाल ही हो गया। इस दिन की सबसे चर्चित चर्चा वन्यजीवों की असामयिक मौत पर थी। विधायक शेषराज हरवंश ने यह सवाल उठाया। उनका मुद्दा स्पीकर डॉ. रमन सिंह को भी प्रासंगिक लगा और उन्होंने विभाग के मंत्री केदार कश्यप को कार्रवाई का निर्देश दिया।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने जवाब देने वाले नए मंत्रियों की तारीफ करते हुए कहा कि ऐसा लगा ही नहीं कि वे पहली बार विधानसभा आए हैं। उन्होंने बहुत अच्छी तरह तैयारी की और जवाब दिए। मगर लोकतंत्र में विपक्ष की ओर से की गई तारीफ का ज्यादा महत्व है। नेता प्रतिपक्ष डॉ. चरण दास महंत की प्रतिक्रिया भी साय से मिलती-जुलती रही। उन्होंने कहा कि नए मंत्री होने के बावजूद सभी ने सवालों का अच्छे ढंग से जवाब दिया। पूरे सत्र में कटुता का कोई अवसर नहीं आया।
ऐसे वक्त में जब विधायकों के पाला बदलने से सरकारें बदल रही हैं, लोकसभा-राज्यसभा से थोक में सांसद निष्कासित कर विधेयक पारित कर दिए जाते हों, छत्तीसगढ़ ने विधायिका के महत्व का अच्छा उदाहरण पेश किया।
रात दस बजे के बाद..
धमतरी का रत्नाबांधा चौक। रात 10 बजे। एक के बाद एक महानदी से निकाली गई रेत लेकर निकलती गाडिय़ां। दो चार दस गाडिय़ों पर कार्रवाई के बाद कलेक्टर्स और खनिज अफसरों की अपनी ही पीठ थपथपाती जारी हो रही खबरों के बीच। रेत का अवैध खनन रुका नहीं है, बस सावधानी ज्यादा बरती जा रही है।
यह कैसा छापा
जब पता है जांच एजेंसी आने वाली है तो उसे छापा कैसे कहें? आबकारी में बड़ी गड़बड़ी मामले में राज्य की एक जांच एजेंसी ने ताबड़तोड़ छापेमारी की। फिर खाली हाथ लौट गई।
जब्ती के नाम पर कुछ जगह से पांच तो कुछ जगह से 15 कागज जब्त किए हैं। इसके अलावा कुछ भी जब्त नहीं कर पाए। क्योंकि जिनके यहां पडऩा था, उन्हें 3 दिन से पता था कि जांच टीम आने वाली है। अपने विभाग के ग्रुप में भी चर्चा कर रहे थे।
छापे के एक दिन पहले फिर गायब हो गए। चर्चा है कि छापे की सूचना लीक कर दी गई थी। क्योंकि जिनको जांच का जिम्मा है, वे लोग पिछली सरकार के बैठाए हुए भरोसेमंद लोग हैं। जो पांच साल से वहा जमे रहे है। ये लोग, इसीलिए महादेव सट्टा पर कार्रवाई नहीं कर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में सब ठीक-ठाक?
बीते दो दिनों के भीतर विरोधी दलों को कई राज्यों में झटके लगे। झारखंड की एकमात्र कांग्रेस सांसद गीता कोड़ा भाजपा में शामिल हो गईं। यूपी में समाजवादी पार्टी को झटका लगा। उसके विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर दी जिसके चलते राज्यसभा के उसके तीन में से दो ही उम्मीदवार चुनाव जीत पाए। हिमाचल प्रदेश में तो 9 कांग्रेस विधायकों ने पाला बदल लिया। अब वहां कांग्रेस को अपनी सरकार बचा लेने के लिए मशक्कत करनी पड़ रही है। इसके कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के भाजपा में जाने की चर्चा जोर पकड़ चुकी थी, पर बाद में उन्होंने इसका खंडन कर दिया।
छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने इस बार सभी 11 सीटों पर जीत हासिल करने का लक्ष्य रखा है। पिछले दिनों यहां कांग्रेस के सदस्य, दो पूर्व विधायक विधान मिश्रा और प्रमोद शर्मा भाजपा में शामिल हो गए। शर्मा तो विधानसभा चुनाव के पहले ही कांग्रेस में लौटे थे। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हाल ही में आरोप लगाया कि भाजपा उनके विधायकों को तोडऩे की कोशिश में है। उनसे वादा कर रही है कि केंद्र में सरकार बनी तो उन्हें मंत्री बनाया जाएगा।
हर बार लोकसभा- विधानसभा चुनाव के पहले एक पार्टी से दूसरी पार्टी में सेंध लगाने का काम देखा जाता है, मगर इस बार यह धारा एक ही दिशा में बहती दिखाई दे रही है। बघेल के आरोप का भाजपा ने खंडन करते हुए कहा था कि यहां हमें ऐसा करने की जरूरत नहीं है। पर कौन दावा कर सकता है कि चुनाव के और करीब आते-आते उथल-पुथल नहीं होगी। क्या अकेले छत्तीसगढ़ बचा रहेगा?
बिना बात के आयोग का क्या होगा?
भूपेश सरकार ने नवाचार आयोग का गठन किया था लेकिन सरकार बदलने के बाद आयोग काम करेगा अथवा नहीं, इसको लेकर संशय है।
आयोग के चेयरमैन विवेक ढांड, भूपेश सरकार के जाने के बाद भी बहुत समय तक डटे रहे, लेकिन बर्खास्तगी की खबर शुरू होने की बाद पद से इस्तीफा दे चुके हैं। वर्तमान में आयोग ने एकमात्र सदस्य रिटायर्ड पीसीसीएफ डॉ.आर.के.सिंह हैं जो कि पद पर बने हुए हैं। आयोग में सचिव ऋतु वर्मा का भी तबादला हो गया है, उनकी पोस्टिंग मंत्रालय में की गई है।
ऋतु की जगह सचिव पद पर नई पोस्टिंग नहीं हुई है। सरकार के ज्यादातर लोगों का कहना है कि आयोग की जरूरत नहीं है। पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने तो आयोग के गठन से लेकर कामकाज को लेकर विधानसभा में सवाल लगाए थे। मगर इस पर चर्चा नहीं हो पाई। अब आयोग में एकाउंट ऑफिसर और दो-तीन कर्मचारी ही रह गए हैं, जो कि प्लेसमेंट एजेंसी के हैं। ऐसे में नवाचार आयोग का क्या कुछ होगा, यह आने वाले दिनों में पता चलेगा।
कांग्रेस में कोई एक्शन?
विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद कांग्रेस संगठन में बदलाव की तैयारी चल रही है। कई बड़े नेताओं के खिलाफ भीतरघात की शिकायत हुई थी लेकिन उन पर कार्रवाई नहीं हुई। अलबत्ता, कुछ जिलाध्यक्षों को बदलने पर विचार चल रहा है।
खबर है कि चुनाव के दौरान कुछ जिलाध्यक्षों की कार्यशैली को लेकर शिकायत भी हुई थी। ऐसे में संभावना है कि लोकसभा टिकट तय होने से पहले कुछ जिलाध्यक्षों को बदला जा सकता है। देखना है आगे क्या कुछ होता है।
कांगेर में बर्ड सर्वे
कांगेर घाटी राष्ट्रीय उद्यान में पहाड़ी मैना को संरक्षित किया गया है। यह दंतेवाड़ा, बीजापुर, नारायणपुर, कोंडागांव, जगदलपुर, आदि के वन क्षेत्र में भी पाया जाता है। कांगेर वैली में इन दिनों बर्ड सर्वे चल रहा है, जिसमें नौ राज्यों से 100 से अधिक प्रतिभागी पहुंचे हैं।
इनमें कोलकाता, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ के गिधवा परसदा वेटलैंड से भी हैं। अभ्यारण्य के अधिकरियों का दावा है कि पिछले साल के मुकाबले इस बार पक्षियों की अधिक प्रजातियां दिखाई देंगी, क्योंकि इस बीच उनके संरक्षण के लिए काफी काम किए गए हैं।
कलेक्टरी के रिकॉर्ड
विधानसभा सत्र के बीच सरकार ने एक छोटा सा फेरबदल किया है। इसमें बिलाईगढ़-सारंगढ़, बलौदाबाजार-भाटापारा, और गौरेला-पेंड्रा-मरवाही के कलेक्टर बदले गए। चर्चा है कि बलौदाबाजार-भाटापारा कलेक्टर चंदन कुमार को स्थानीय विधायक, और सरकार के मंत्री टंकराम वर्मा की सिफारिश पर बदला गया है।
विधानसभा चुनाव के वक्त ही चंदन कुमार और स्थानीय भाजपा नेताओं के बीच विवाद चल रहा था। इसको लेकर शिकवा शिकायतें भी हुई थी। चंदन कुमार को स्वास्थ्य विभाग का विशेष सचिव बनाया गया है। उनकी जगह बिलाईगढ़-सारंगढ़ कलेक्टर कुमार लाल चौहान की पदस्थापना की गई है। चौहान करीब डेढ़ महीने पहले ही बिलाईगढ़-सारंगढ़ कलेक्टर बने थे।
बिलाईगढ़-सारंगढ़ में सबसे कम समय कलेक्टरी का रिकॉर्ड राहुल वेंकट के नाम पर दर्ज है। वो एक महीना ही कलेक्टर रहे थे। मगर तत्कालीन कांग्रेस विधायक से अनबन के बाद उन्हें हटा दिया गया। इससे परे आदिवासी बाहुल्य जिला गौरेला-पेंड्रा-मरवाही में लीना कमलेश मंडावी को कलेक्टर बनाया गया है।
ओम माथुर के जिम्मे बहुत कुछ
प्रदेश भाजपा के प्रभारी ओम माथुर लोकसभा चुनाव में छत्तीसगढ़ में शायद ही समय दे पाएंगे। उनकी जगह सह प्रभारी नितिन नबीन ही सारा काम देखेंगे, और संगठन से जुड़े फैसले लेंगे। चर्चा है कि माथुर अपने गृह राज्य राजस्थान के अलावा अन्य राज्य भी देख रहे हैं। ऐसी चर्चा है कि माथुर को उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है। इस पर जल्द फैसला हो सकता है।
कहा जा रहा है कि चुनाव की वजह से पार्टी के शीर्ष स्तर पर होने वाले संभावित फेरबदल के चलते माथुर बस्तर में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में हुई क्लस्टर की बैठक में शामिल नहीं हुए। हालांकि छत्तीसगढ़ की लोकसभा प्रत्याशी चयन में ओम माथुर की दखल रह सकती है। उन्होंने अपने सुझाव हाईकमान को दे भी दिए हैं। हाईकमान संभवत: 29 तारीख को टिकटों पर फैसला ले सकती है।
मगर दाखिला क्यों घट रहा?
बोर्ड एग्जाम में विद्यार्थियों का मानसिक दबाव कम करने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया। अब 10वीं, 12वीं बोर्ड परीक्षा साल में दो बार होगी। फेल विषयों पर दोबारा बैठने का मौका तो मिलेगा ही, छात्र श्रेणी सुधार भी कर सकेंगे। अच्छी बात यह भी है कि दोनों बार की परीक्षाओं में जो रिजल्ट सबसे अच्छा होगा, उसे ही सर्टिफिकेट के रूप में मान्यता भी दे दी जाएगी।
मगर, इस बीच एक दिलचस्प आंकड़ा भी सामने आता है, जो यह बताता है कि सीजी बोर्ड की ओर विद्यार्थियों का आकर्षण घटा है। कोविड महामारी के चलते साल 2022 में जब किसी भी विद्यार्थी को फेल नहीं किया गया था, तब रिकॉर्ड 4 लाख 61 हजार छात्र-छात्रा सीजी बोर्ड एग्जाम में शामिल हुए थे। मगर अगले साल सिर्फ 3 लाख 30 हजार सम्मिलित हुए। यह संख्या 5 साल पहले लिए गए इम्तिहान में शामिल विद्यार्थियों से भी कम है, क्योंकि तब 3 लाख 86 हजार लोगों ने परीक्षा दी थी। साल 2016 के 4 लाख 21 हजार शामिल विद्यार्थियों से तुलना करें तो यह और भी कम है। प्रदेश के कुछ प्राइवेट, पब्लिक स्कूल सीजी पैटर्न से पढ़ाई कराते हैं, मगर आम तौर पर इनमें सीबीएसई लागू है। सीजी बोर्ड सरकारी स्कूलों में ही चलता है। यह आंकड़ा भी आया है कि इस साल 2024 की परीक्षा में 10वीं और 12वीं बोर्ड मिलाकर परीक्षा में 50 हजार विद्यार्थी पिछले साल के मुकाबले कम बैठेंगे।
इन आंकड़ों से दो बातों का अनुमान लगाया जा सकता है। या तो बोर्ड तक पहुंचने वाले बच्चों की संख्या ही घट रही है, या फिर वे केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की तरफ आकर्षित हो रहे हैं।
परीक्षा पर चर्चा जैसी कोई सभा छत्तीसगढ़ में भी हो तो वजह साफ हो।
कोयला खदान में हुई मौतें
बीते दिनों जब झारखंड में न्याय यात्रा के दौरान राहुल गांधी की चोरी से कोयला निकालने वालों के साथ तस्वीर आई थी। तब देश में चर्चा हुई कोयला खदानों के आसपास के गांवों में व्याप्त गरीबी और मजबूरी की। अनेक लोगों ने आलोचना भी की कि कांग्रेस सरकार के दौरान ही तो सबसे बड़ा कोयला घोटाला हुआ, अब राहुल सहानुभूति प्रकट कर रहे हैं। मगर, कोयला चोरी एक स्याह सच है। प्रदेश में कांग्रेस सरकार के दौरान एक वीडियो क्लिप वायरल हुआ था, जो कुसमुंडा का बताया जा रहा था, पर बाद में जांच के बाद दावा किया गया कि वह यहां का नहीं है, झारखंड का ही है। मगर छत्तीसगढ़ की खदानों में चोरी और मौतों पर प्राय: अफसोस नहीं जताया जाता। पिछले दिनों दीपका में कोयला निकालते पांच मजदूर मिट्टी धंसने से दब गए। उनमें से तीन की मृत्यु हो गई। उन पर चोरी का दाग था, शायद इसलिए किसी ने सहानुभूति नहीं दिखाई। इसी तरह जयनगर कॉलरी में एक युवक दब गया, जिसके शव का अब तक पता नहीं चला है। ये खदान मजदूर होते तो मुआवजा मिलता। जो लोग कोयला अपनी जान जोखिम में डालकर निकाल रहे हैं, उनके हिस्से में थोड़ी सी मजदूरी ही आती है, असली कमाई अवैध कारोबारियों के हाथ में होती है। कोयला कंपनी करोड़ों रुपए खदानों की सुरक्षा पर खर्च कर रही है। केंद्रीय सुरक्षा बल भी लगे हैं, पर न तो चोरियां रुकी, और न ही दुर्घटनाएं। यह घटनाएं यह भी बताती है कि जिन कोयला खदानों से रिकॉर्ड कमाई कंपनियों की हो रही है, उसके आसपास के गांव में रहने वालों की माली हालत कैसी है।
पुरुष को भी चाहिए मदद
पूरे छत्तीसगढ़ में इन दिनों महतारी वंदन योजना की चर्चा है। यह योजना सिर्फ निर्धारित कैटेगरी की महिलाओं के लिए है लेकिन गौरेला-पेंड्रा-मरवाही जिले में एक अजीब मामला आया। एक पुरुष कमल सिंह ने इस योजना का लाभ लेने के लिए आवेदन लगाया। कर्मचारियों ने उसका आवेदन स्वीकार भी कर लिया। वह तो कंप्यूटर था, जिसने पकड़ लिया। डाटा फीड होते ही फॉर्म रिजेक्ट हो गया। अब इस पुरुष की दलील है कि उसके घर में तो कोई महिला ही नहीं है। इसलिए उसने खुद आवेदन कर दिया।
फिलहाल तो लगता नहीं कि सरकार उसकी दलील पर कुछ करने जा रही है। पुरुषों के लिए कोई योजना शुरू होगी, तब उसे मौका जरूर मिल पाएगा।
चुनाव के पहले पुलिस में तबादले
बस्तर में कुछ सरकारी विभागों के अधिकारी-कर्मचारी नक्सलियों के सीधे निशाने में नहीं होते। बहुत से काम कागजों में ही हो जाते हैं। ऐसे अफसर वहीं ठिकाना बना लेते हैं, लौटना नहीं चाहते। पर पुलिस महकमे के साथ यह बात नहीं है। यहां पदस्थ जवान और अफसर अपनी मियाद पूरी कर मैदानी इलाकों में वापस आना चाहते हैं। पर बरसों गुजारिश के बाद भी उन्हें मौका नहीं मिलता। सरकार ने एक नीति भी बनाई कि 55 साल से अधिक उम्र होने पर उन्हें बस्तर रेंज के जिलों में नहीं रखा जाएगा। कई केस हाईकोर्ट भी पहुंचते रहते हैं जिनमें बस्तर से हटाने की फरियाद होती है। चुनाव एक मौसम होता है, जिसमें बाहर आने के इच्छुक पुलिसकर्मियों को मौका मिल जाता है। बीते 21 दिसंबर को चुनाव आयोग ने एक परिपत्र जारी कर प्रदेश में 3 साल से अधिक एक ही स्थान पर अथवा गृह जिले में पदस्थ पुलिस कर्मचारी, अधिकारियों के स्थानांतरण का आदेश दिया। आदेश का पालन तो हुआ लेकिन 100 से अधिक थानेदार, उप-निरीक्षक और दूसरे अधिकारी कर्मचारी ऐसे थे, जिन्हें बस्तर रेंज के ही एक स्थान से हटाकर दूसरे जिलों में भेज दिया गया। इनमें अधिकांश ने 3 साल की मियाद पूरी कर ली है। इनका कहना था कि हमें बस्तर से बाहर भेजो। मैदानी इलाके के अधिकारी-कर्मचारियों को भी यहां सेवा करने का मौका दो। अब निर्वाचन आयोग ने पीएचक्यू को फिर लिखा है कि तबादले का मतलब एक थाने से दूसरे थाने में कर देना नहीं है, बल्कि उन्हें रेंज से ही निकालिए। इसका एक मतलब यह भी है कि कोरबा, रायपुर, बिलासपुर जैसी सहूलियत वाली जगहों पर पदस्थ अधिकारियों को बस्तर भेजना होगा। स्थिति यह है कि सिफारिशों और पहुंच के चलते इन स्थानों के कई अधिकारी एक बार भी नक्सल इलाकों में नहीं गए। लोकसभा, विधानसभा चुनाव के दौरान भी वे मैदानी जिलों में घूमते रहे हैं। अब देखना यह है कि आयोग के निर्देश के बाद बस्तर पुलिस में कितना बदलाव आता है।
तालमेल से बना बजट
विष्णुदेव साय सरकार के पहले आम बजट को खूब सराहा जा रहा है। विपक्ष ने भी विरोध में ज्यादा कुछ नहीं कहा। बजट के लिए वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने वित्त सचिव अंकित आनंद के साथ आधी रात तक बैठकें करते थे। दोनों के बीच इतना बढिय़ा तालमेल रहा कि बजट बहुत अच्छे से तैयार हो पाया।
कानपुर आईआईटी से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में स्नातक अंकित अपने मातहतों पर निर्भर नहीं रहते थे, और वो मंत्री से चर्चा कर बजट प्रस्तावों का ज्यादातर हिस्सा खुद ही अपने लैपटॉप में टाइप कर लेते थे। बजट को विशेष रूप से लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखकर तैयार किया गया, और कड़े फैसले लेने से परहेज किया गया।
दूसरी तरफ, भूपेश सरकार के समय से राज्य पर कर्ज का बोझ काफी बढ़ा है। ऐसे में सरकार को वित्तीय अनुशासन बनाए रखने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ रही है। वित्त मंत्री ओपी चौधरी को विजनरी माना जाता है, और कलेक्टर रहते उनके द्वारा किए गए काम इसका उदाहरण भी है। अब अंकित के साथ रहने से कुछ अलग हटकर काम की उम्मीदें भी हैं। देखना है आगे क्या कुछ करते हैं।
चुनाव से पहले खर्च का मीटर
भाजपा सभी 11 सीटों को अपने कब्जे में करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है। पार्टी ने अभी टिकट घोषित नहीं किए हैं, लेकिन सभी लोकसभा क्षेत्रों में चुनाव कार्यालय खुल गए हैं। सभी जगह प्रभारी नियुक्त कर दिए गए हैं, और कार्यालयों में कार्यकर्ताओं की भीड़ देखी जा सकती है।
सबसे बेहतर कार्यालय महासमुंद का है, जो कि पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के देखरेख में तैयार हुआ है। हालांकि कई जगहों पर खर्चे को लेकर किचकिच हो रही है। कुछ जगहों पर स्थानीय सांसद को खर्चा उठाने के लिए कहा गया है। ये अलग बात है कि उनकी टिकट अभी पक्की नहीं हुई है।
एक लोकसभा क्षेत्र में तो दो-तीन संपन्न पदाधिकारियों को कार्यालय का जिम्मा दिया गया। सांसद महोदय भी संपन्न पदाधिकारियों को देखकर खर्च को लेकर आश्वस्त भी थे। पिछले दिनों सांसद महोदय, कार्यालय पहुंचे तो पदाधिकारियों ने उनका खूब आवभगत किया। भोज भी कराया। ऐसा इंतजाम देखकर सांसद महोदय खुश भी हुए। पदाधिकारियों के काम की उन्होंने सराहना भी की। बाद में उनकी खुशी उस वक्त काफूर हो गई, जब तमाम खर्चों का बिल पहुंचा। टिकट से पहले ही खर्चों का मीटर घूमना शुरू हो गया।
दुर्ग से कौन से साहू को टिकट?
चर्चा है कि पूर्व सांसद ताम्रध्वज साहू दुर्ग सीट से चुनाव लडऩा चाहते हैं। मगर पूर्व सीएम भूपेश बघेल की राय अलग है। वो दुर्ग से केंद्रीय जिला सहकारी बैंक के पूर्व अध्यक्ष राजेन्द्र साहू को टिकट देने के पक्ष में हैं।
कहा जा रहा है कि ताम्रध्वज दुर्ग सीट से टिकट नहीं मिलने पर राजनांदगांव सीट का विकल्प रखा है। इसके लिए वहां के दो विधायक भोलाराम साहू, और दलेश्वर साहू के संपर्क में भी है। हालांकि पार्टी के स्थानीय नेता किसी बाहरी को टिकट देने के खिलाफ हैं। विधानसभा चुनाव में राजनांदगांव शहर की सीट पर गिरीश देवांगन को उतारने का खामियाजा पार्टी भुगत चुकी है। भूपेश बघेल के पूरी ताकत झोंकने के बावजूद गिरीश रिकॉर्ड वोटों से चुनाव हारे। देखना है कि ताम्रध्वज के मामले में पार्टी क्या कुछ फैसला लेती है।
उलझता जा रहा रेत का मामला
नई सरकार बनने के बाद गौण खनिज पर नई नीति बनाने की घोषणा की गई है। इसके चलते रेत घाटों की नीलामी नहीं हुई है। रेत खनन और परिवहन की क्या प्रक्रिया होगी, यह नीति आने के बाद मालूम होगा। पंचायतों को फिर से अधिकार देने की बात हो रही है। दूसरी ओर विधानसभा में सवाल उठने के बाद रेत गाडिय़ों की चेकिंग बढ़ गई है। जब खदानों की नीलामी ही नहीं हुई है तो रेत कहां से निकाले जा रहे हैं, यह कोई रहस्य की बात नहीं है। खनन अवैध रूप से हो रहा है। इस समय भवन निर्माण का काम तेजी से चल रहा है। बारिश के बाद यह काम रुक जाएगा और घाट भी बंद हो जाएंगे। इसके अलावा मार्च के पहले सप्ताह में लोकसभा चुनाव की आचार संहिता भी लग सकती है। मौजूदा स्थिति में रेत के कारोबार से जुड़े और भवन बना रहे लोग, दोनों ही चिंता में हैं।
खतरनाक मगर शर्मीला कबरबिज्जू...
कबरबिज्जू एक ऐसा जीव है जो प्राय: कब्रगाह में पाया जाता है। जमीन के भीतर रहता है, यह मुर्दों को खाता है। आवाज ऐसी होती है कि अक्सर लोग जब कब्रिस्तान के पास से गुजर रहे होते हैं तब प्रतीत होता है कि कोई इंसान शोर कर रहा है। इसके नाखून और दांत बेहद मजबूत होते हैं, जिसके चलते कठोर मिट्टी और शवों की भी चीरफाड़ कर लेता है। मगर, यह शर्मीला भी होता है। भिलाई के पास उतई में जब एक मादा और दो बच्चे दिखे तो लोगों ने वन विभाग को सूचना दी। टीम पहुंची तो मां वहां से बच निकली। वन अमले को यकीन था कि वह अपने बच्चों से मिलने फिर पहुंचेगी। और ऐसा ही हुआ। दोनों बच्चों को मां के साथ पकड़ लिया। इनको लेकर अंधविश्वास और टोने-टोटके की कथाएं चलती हैं। खुले घूमने के दौरान इन पर आफत आ सकती थी। फिलहाल मैत्री बाग में ये सुरक्षित हैं।
विश्वविद्यालय की हिन्दी
आम इस्तेमाल में हिन्दी और अंग्रेजी सबका हाल बदहाल रहता है। कुछ ऐसे अंतरराष्ट्रीय सोशल मीडिया पेज हैं, जिन पर दुनिया भर में अलग-अलग नोटिस बोर्ड या इश्तहारों की सूचना की मजेदार गड़बडिय़ां दिखती हैं। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय का यह नोटिस बोर्ड कहता है- विश्वविद्यालय परिसर में हेलमेट लगाकर दोपहिया वाहन चलाना अनिवार्य है।
अब होना तो यह चाहिए था कि दोपहिया वाहन चलाते हुए हेलमेट लगाना अनिवार्य बताता जाता, लेकिन इस नोटिस बोर्ड के मुताबिक अगर किसी ने हेलमेट लगा लिया है, तो उससे दोपहिया चलाना अनिवार्य है, मानो हेलमेट लगाकर कोई पैदल चले, तो उस पर जुर्माना कर दिया जाएगा।
बाजारों के कारोबारी बोर्ड पर तो भाषा की गलतियां समझ आती हैं, लेकिन लाखों रूपए खर्च करके जब सरकारें बड़े-बड़े बोर्ड लगाती हैं, तो उन पर भी इसी तरह की कई गलतियां दिखती हैं। महान लोगों के नाम गलत दिखते हैं, देश के सबसे बड़े कवियों या शायरों की लिखी हुई सबसे मशहूर लाईनें गलत दिखती हैं, और उन्हें देखते हुए हिन्दी-अंग्रेजी के जाने कितने ही शिक्षक-प्राध्यापक रोज निकल जाते हैं। अब अगर सार्वजनिक जगहों पर भाषा नहीं सुधरेगी, तो उसका एक नुकसान उन बच्चों को भी होगा जो आते-जाते ऐसे ही गलत हिज्जों, या गलत नामों को पढ़ते हैं।
मंत्री ने हाथ जोड़ लिए
रायपुर के वीआईपी रोड में कुछ दिन पहले एक बार-रेस्टोरेंट में शूटआउट की घटना के बाद सरकार ने सख्त कदम उठाए हैं। बाहरी इलाकों के होटल-ढाबे, और बार को रात्रि 12 बजे तक बंद करने की हिदायत दी गई है। इससे होटल-बार संचालकों में खलबली मची हुई है। क्योंकि शहर के बाहरी इलाके के होटल-ढाबे आधी रात के बाद ही गुलजार होते हैं। प्रशासन के फरमान के बाद होटल-बार संचालक, दो दिन पहले गृहमंत्री विजय शर्मा से मिलने पहुंच गए।
होटल-बार संचालकों के पदाधिकारियों ने गृहमंत्री को अपनी दिक्कतें बताई। गृहमंत्री ने शहर के भीतर के एक होटल संचालक की तरफ देखकर बताया कि कॉलेज के दिनों में कैसे उनके होटल में डोसा खाने के लिए साइकिल से जाते थे। बारी-बारी से उन्होंने बाकी होटलों के खानपान की खूब तारीफ की। और जब संचालकों ने प्रशासन के ताजा तरीन फरमान के बारे में बताया, तो गृहमंत्री ने यह कहकर हाथ जोड़ लिए कि आप लोगों के यहां ही गोली चली है। ऐसे में आप लोगों को प्रशासन को सहयोग करना चाहिए।
गृहमंत्री ने सुझाव दिया कि आप लोग चाहे, तो सुबह एक घंटा पहले होटल खोल सकते हैं। होटल-बार संचालकों की मांग तो पूरी नहीं हुई, लेकिन गृह मंत्री ने अपने व्यवहार से उनका दिल जीत लिया।
बकरे की माँ कब तक खैर...
विधानसभा में सत्ता पक्ष के सदस्य काफी मुखर हैं, और रोजाना अलग-अलग विभागों के भ्रष्टाचार के मामले उठ रहे हैं। सरकार के मंत्री बिना किसी लाग-लपेट के जांच की घोषणा कर दे रहे हैं। इससे विपक्षी दल कांग्रेस के नेता जरूर असहज हैं क्योंकि तकरीबन सभी मामले उन्हीं की सरकार के समय के हैं।
इन सबके बीच खादी ग्रामोद्योग के एक सवाल को लेकर काफी चर्चा रही। गड़बड़ी के इस सवाल पर सरकार की तरफ से स्वाभाविक तौर पर जांच की घोषणा हो सकती थी। मगर प्रकरण से जुड़े धमतरी के कांग्रेस के नेता-सप्लायर ने अपने भाजपा के साथियों के साथ काफी भागदौड़ की। और जब सवाल सदन में नहीं आए, तो राहत की सांस ली। लेकिन अभी सत्र में एक हफ्ता और बाकी है। ऐसे में कहा जा रहा है कि प्रकरण पर मामले पर किसी न किसी रूप में चर्चा हो गई, तो जांच की घोषणा हो सकती है। फिलहाल कांग्रेस नेता को राहत तो मिली है, लेकिन खतरा पूरी तरह टला नहीं है। देखना है आगे क्या होता है।
जहर कम मगर आकर्षक सांप
दंतेवाड़ा जिले के बैलाडीला में दुर्लभ प्रजाति का एक सांप लौडांकिया वाइन स्नेक मिला । इससे पहले यह असम और ओडिशा में मिला है। छत्तीसगढ़ में पहली बार देखा गया। एक काम अच्छा हुआ कि वन विभाग और यहां के एक सक्रिय संगठन प्राणी संरक्षण कल्याण समिति ने सांप को जंगल में सुरक्षित छोड़ दिया। वरना इसे किसी जू में प्रदर्शन के लिए भी रखा जा सकता था।
इस सांप की लंबाई साढ़े चार फीट तक हो सकती है, रंग हल्का भूरा होता है। पहचान इसके सिर से होती है, जो थोड़ा नुकीला होता है। खूबसूरत दिखाई देती है, जहर कम होता है। किसी को काटे तो असर कम होता है, समय पर इलाज मिले तो बच जाता है। छोटे कीड़े, छिपकली, बर्ड्स एग इसके आहार हैं। बैलाडीला में एनएमडीसी के स्क्रीनिंग प्लांट के पास यह सांप मिला, जो पहाड़ी क्षेत्र है। यह वाइन स्नेक प्रजाति का है, जिसकी भारत में करीब 8 प्रजातियां हैं। जब इसका आकार और रंगरूप दूसरे वाइन स्नेक से मैच नहीं हुआ, तो इसकी जांच के लिए तस्वीर विशेषज्ञ के पास भेजी गईं। जांच में सांप की पहचान लौडांकिया वाइन स्नेक के रूप में हुई।
तो यह समझ लीजिए कि छत्तीसगढ़ तमाम तरह की संपदाओं से भरी धरती है। पर, एक्सप्लोर करने के लिए बहुत काम बाकी है।
राहुल और प्रदीप चौबे
राहुल गांधी अपने बयानों को लेकर कई तरह के विवादों में पड़ रहे हैं। अभी उन्होंने ऐश्वर्या राय का जिक्र करते हुए कई ऐसे बयान दिए हैं जिन पर उनके खिलाफ जुर्म दर्ज हो सकता है। किसी महिला का अपमानजनक तरीके से जिक्र करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने कई बार लिखा है।
अभी कुछ समय पहले राहुल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जन्म की जाति को लेकर तथ्यों के खिलाफ एक बयान दिया था, जिसका खंडन तो हुआ है लेकिन अभी तक कोई मामला-मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है। उस बयान के समय छत्तीसगढ़ के एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता प्रदीप चौबे ने फेसबुक पर लिखा था- राहुलजी के छत्तीसगढ़ दौरे का भाषण कौन तैयार करता है? छत्तीसगढ़ में प्रधानमंत्री की जाति का जिक्र करते हुए उन्हें मालूम होना चाहिए कि धर्म और जाति के मामले बड़े नाजुक होते हैं, सार्वजनिक भाषण में ऊंचे पद पर बैठे किसी व्यक्ति की जाति पर की गई टिप्पणी का बड़ा व्यापक असर होता है।
प्रदीप चौबेजी ने आगे लिखा था- कि देश की राजनीति में महंगाई, बेरोजगारी, देश की सुरक्षा, आर्थिक स्थिति, गरीबी, शिक्षा, चिकित्सा जैसी मूलभूत समस्याओं को छोड़ प्रधानमंत्री की जाति पर टिप्पणी करना बिल्कुल भी सही नहीं है। इसका राजनीतिक रूप से छत्तीसगढ़ में कितना नफा-नुकसान होगा इसका अंदाज लगाना भी समझ से परे है।
प्रदीप चौबे प्रदेश के एक वरिष्ठ मंत्री रहे रविन्द्र चौबे के बड़े भाई भी हैं, और अपनी समाजवादी पृष्ठभूमि की वजह से वे वैचारिक रूप से परिपक्व नेता हैं। लेकिन आज कांग्रेस में चापलूसों की भीड़ में समझदारी की बात कौन आगे बढ़ाए?
साहेब ऐसा कह गए !!
भाजपा के छोटे-बड़े नेता, नवप्रवेशी नेताओं को लेकर सशंकित हैं। न सिर्फ छत्तीसगढ़ बल्कि पूरे देश में दूसरे दलों से नेताओं की भाजपा में शामिल होने की होड़ मची है। भाजपा के पुराने नेताओं को लगता है कि दूसरे दलों से आए नेताओं की वजह से उनका महत्व कम हो जाएगा। मगर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बातों ही बातों में उनकी चिंता का निवारण कर दिया।
शाह कोंडागांव में बस्तर क्लस्टर की बैठक में आए तो काफी खुश थे। इसकी वजह भी थी कि विधानसभा चुनाव में पार्टी का प्रदर्शन राज्य बनने के बाद से अब तक सबसे बेहतर रहा है। बैठक में शाह ने नवप्रवेशी नेताओं का जिक्र किए बिना हास-परिहास में कह गए कि आप लोगों को 30-35 साल में क्या मिल गया, जो नए आए लोगों को मिल जाएगा। शाह की इस टिप्पणी की पार्टी के भीतर काफी चर्चा रही।
वक्त अच्छा-बुरा हर कि़स्म का
साहब की विदाई क्या हुई मातहत उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का बखान करने लग जाते हैं। कहा भी गया है न कि उगते सूर्य की ही पूजा होती है। सो नए साहब का चालीसा पढऩे में ही भव सागर पार लगेगा। ऐसे ही मातहत, साहब के बारे में कहने लगे हैं कि कितने अच्छे थे साहब रम-व्हिस्की में काम कर देते थे। और डिमांड पूरी करने पर साहब कह देते थे कि मैं तो मजाक कर रहा था। ये तो हुई बात व्यक्तित्व की। कृतित्व की करें तो मातहतों के लिए कर्टसी चाय कॉफी बंद करा दिया था। भवन के वाउचर पर बंगले में आधा दर्जन चपरासी नौकर में तैनात थे। पोर्च में तीन से चार सरकारी गाडिय़ाँ थी। अब भविष्य ईओडब्लू और सीबीआई के हाथों में हैं।
अंडा चिकन का शाकाहारी ठेला
इस बुद्धिमान ठेले वाले को पता है कि शुद्ध शाकाहारी नाम जोड़ देने से दुकान चल निकलती है, फिर वह अंडा, चिकन, मटन भी बेच सकता है। वैसे ही जैसे हाइवे में कई फैमिली ढाबे दिखते हैं, पर फैमिलियर नहीं होते। तस्वीर पटना की है।
पीएससी के गलत जवाब
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग ने सरकार बदलने के बाद पहली प्रारंभिक परीक्षा ली। उसके मॉडल आंसर जारी करने के बाद यह साफ हो गया कि अभी गड़बड़झाला खत्म नहीं हुआ है। इसके कम से कम तीन सवालों के जवाब पीएससी ने गलत बता दिए। जैसे छत्तीसगढ़ से कितने राज्यों की सीमा जुड़ती है। सही उत्तर 7 है, पर जवाब तय किया गया छह। लिंगानुपात में कोंडागांव सबसे बेहतर स्थिति में है, जबकि जवाब दिया गया कांकेर जिला। सर्वोच्च न्यायालय में सरकार का मुख्य विधिक सलाहकार कौन होता है, यह बताया गया सॉलिसिटर जनरल को, लेकिन सही जवाब है अटॉर्नी जनरल।
इसके अलावा कुछ सवालों का एक जवाब नहीं हो सकता। जैसे लोक-संस्कृति में विवाह के मंडप के लिए कौन सी लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। जवाब में महुआ को सही बताया गया है लेकिन इसका जवाब सरई भी हो सकता है। यह जरूर है कि मॉडल आंसर पर आपत्ति दर्ज कराने के लिए 27 फरवरी तक का समय दिया गया है लेकिन यह प्रश्न खड़ा होता है कि प्रश्न पत्र तैयार करने वाले विशेषज्ञों की वह कौन सी टीम है जो इन साधारण से सवालों का गलत जवाब बता रही है।
धर्मांतरण के खिलाफ कानून
छत्तीसगढ़ विधानसभा में एक महत्वपूर्ण विधेयक धर्मांतरण को लेकर आ सकता है। जैसी चर्चा है इसमें प्रावधान किया गया है कि कोई व्यक्ति धर्म बदलना चाहता है तो उसे कम से कम 60 दिन पहले कलेक्ट्रेट में खुद हाजिर होकर आवेदन देना होगा। नाबालिग, महिला, अनुसूचित जाति,जनजाति के सदस्यों का अवैध रूप से धर्म परिवर्तित कराने पर 10 साल तक की जेल हो सकती है। केस गैर जमानती चलेगा और सेशन कोर्ट में सुना जाएगा। जबरन धर्म परिवर्तन से पीडि़त को 5 लाख रुपये तक मुआवजा मिल सकता है। जबरन धर्मांतरण की शिकायत व्यक्ति खुद या उसका रक्त संबंधी या गोद लिया हुआ व्यक्ति भी कर सकता है।
धर्मांतरण पर कानून
बनाने का अधिकार राज्य का है। सबसे पहले ओडिशा में सन् 1967 में बना। उसके बाद 2017 में झारखंड में। अभी अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, मध्यप्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड और उत्तराखंड में ये कानून लगा है। प्रावधान लगभग छत्तीसगढ़ के मसौदे की तरह हैं।
छत्तीसगढ़ में यह मामला हिंदू-मुस्लिम से अलग है। हिंदू धर्म से ईसाई धर्म में शामिल हो जाने का है। जनगणना के आंकड़ों से भी ईसाई धर्म मानने वालों की संख्या बढऩे की पुष्टि हो चुकी है। उत्तर छत्तीसगढ़ और बस्तर के कई इलाकों में दशकों से धर्मांतरण हो रहा है। मैदानी छत्तीसगढ़ में भी अनुसूचित जाति-जनजाति और अति पिछड़ा वर्ग के लोग इससे प्रभावित हैं। कानून बन जाने से संभव है कि प्रलोभन या दबाव की वजह से धर्म परिवर्तन की घटनाएं कम हो जाएं मगर असल समस्या इन तबकों में स्वास्थ्य और शिक्षा का नहीं पहुंच पाना है। धर्मांतरण विरोधी कानून में इसका कोई समाधान है या नहीं, यह विधेयक आने पर ही मालूम होगा। ([email protected])
अमित अग्रवाल, और बाकी अफसर
छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस अफसर अमित अग्रवाल केन्द्र सरकार में सचिव पद के लिए सूचीबद्ध हो गए हैं। अमित वर्तमान में यूआईएडीआई के सीईओ हैं। प्रशासनिक हल्कों में यह चर्चा रही कि अमित, सीएस अमिताभ जैन के रिटायर होने के बाद उत्तराधिकारी हो सकते हैं। जैन अगले साल रिटायर होंगे।
अमित अग्रवाल की वापसी के कयास लगाए जा रहे थे, लेकिन अब कहा जा रहा है कि सचिव बनने के बाद शायद ही वो यहां आएँ । बताते हैं कि केन्द्र सरकार में अमित के विभागीय मंत्री अश्वनी वैष्णव भी उन्हें छोडऩे के लिए तैयार नहीं हैं। अश्वनी खुद 94 बैच के आईएएस अफसर रहे हैं। आईएएस में अमित, अश्वनी से एक साल सीनियर हैं। सचिव पद पर सूचीबद्ध होने के बाद अमित को केन्द्र में कोई और अहम जिम्मेदारी मिल सकती है।
दूसरी तरफ, केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति से लौटे एसीएस रिचा शर्मा, प्रमुख सचिव सोनमणि वोरा, और सचिव मुकेश बंसल की भी जल्द पोस्टिंग हो सकती है। इन अफसरों की पोस्टिंग से प्रशासन में सुधार की गुंजाइश दिख रही है। देखना है आगे क्या होता है।
राजधानी की टिकट का पेंच
प्रदेश की लोकसभा सीटों के लिए भाजपा प्रत्याशियों की एक सूची हफ्तेभर में आ सकती है। चर्चा है कि मौजूदा सांसदों में विजय बघेल, और सुनील सोनी को फिर टिकट मिल सकती है। हालांकि कई नेता सुनील की जगह लेने के लिए प्रयासरत हैं।
पार्टी टिकट को लेकर कई प्रयोग कर चुकी है। ऐसे में सुनील सोनी के विरोधी नेता उम्मीद से हैं। कुछ लोगों का अंदाजा है कि रायपुर में महाराष्ट्र के राज्यपाल रमेश बैस की पसंद को भी ध्यान में रखा जा सकता है। खुद बैस के भतीजे ओंकार बैस, और नाती अनिमेश कश्यप (बॉबी) भी टिकट के दौड़़ में हैं। वरिष्ठ नेता अशोक बजाज भी रायपुर से टिकट चाहते हैं, लेकिन उन्हें रायपुर लोकसभा का संयोजक बनाकर पार्टी ने एक तरह से उनकी दावेदारी खत्म कर दी है। बाकी दावेदारों का क्या होता है, यह तो सूची जारी होने के बाद ही साफ होगा।
कौन निकालेगा अब रेत से तेल?
विधानसभा में कई सदस्यों ने प्रदेशभर में रेत के धंधे में ताकतवर लोगों का कब्जा होने और इन्हें खनिज विभाग का संरक्षण होने का आरोप लगाया। रेत से जुड़े कारोबार को सत्ता से जुड़े लोगों का संरक्षण कोई नई बात नहीं है। दूसरे राज्यों में भी। अपने यहां भी पिछली कांग्रेस सरकार में भी और उसके पहले की सरकारों में भी। पिछली सरकार में कम से कम दो विधायकों शकुंतला साहू और छन्नी साहू का अपने समर्थकों के लिए अधिकारियों से भिड़ जाने का मामला तो चर्चा में आया ही था। मगर, अब जब सत्ता बदल गई है तो फिर कांग्रेस से जुड़े लोग कारोबार में क्यों हावी रहें? वैसे पक्ष-विपक्ष दोनों ने ही रेत को लेकर सरकार पर सवाल किए थे। वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने सदन में घोषणा की कि 15-20 दिन अवैध परिवहन के खिलाफ ताबड़तोड़ अभियान चलाया जाएगा। अलग से आदेश की जरूरत नहीं थी। सदन में घोषणा होते ही खनिज विभाग सक्रिय हो गया। कई जिलों से खबरें हैं कि अवैध रेत खनन पर कार्रवाईयां शुरू हो गई हैं। इसकी वजह से रेत के दाम आसमान पहुंच गए हैं। परिवहन करने वाले छापेमारी और चेकिंग का हवाला दे रहे हैं। लगे हाथ मुरुम और गिट्टी के सप्लायरों ने भी कीमत बढ़ा दी है। ग्राहकों को सप्लायर भरोसा दिलासा दे रहे हैं कि दो चार हफ्ते में सब ठीक हो जाएगा। अब देखना है कि अवैध खनन पर रोक लगेगी या फिर ऐसा करने की ताकत एक हाथ से दूसरे हाथ में शिफ्ट हो जाएगी।
सीमेंट सरिया ने सुकून दिया
मकान दुकान बनाने वालों का बजट रेत पर छापामारी ने जरूर बिगाड़ दिया है लेकिन सीमेंट और सरिया के दाम गिरने से थोड़ी राहत मिली है। सीमेंट सिंडिकेट ने सीजन देखकर बैग के दाम बढ़ाने की कोशिश की लेकिन उठाव के संकेत नहीं मिले। इसलिए दाम गिरते गए, गिरते गए। अभी ठीक-ठाक कंपनी की सीमेंट 270-275 रुपये तक आ गई है। यही दाम लगभग लगभग दो साल पहले था। सरिया भी 50 से 55 हजार रुपये टन तक उतर आया है। बीच में इसके दाम 80 हजार रुपये तक चले गए थे। सीमेंट और सरिया उत्पादकों को हो सकता है इस समय कम मार्जिन मिल रहा हो, पर अभी पूरा सीजन बाकी है। आगे भरपाई का रास्ता निकल सकता है।
सुंदर लिखावट, समस्या गंभीर
छत्तीसगढ़ के स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता को लेकर अक्सर सवाल उठते हैं। ऐसे में यह पत्र नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर के एक छात्र की अर्जी है। आकर्षक लिखावट और व्याकरण की त्रुटियां भी नहीं के बराबर। मगर, इसमें इस छात्र ने जो समस्या बताई है वह बेहद गंभीर है। छात्र ने कलेक्टर को लिखा है कि छिन्दावाड़ा के आदर्श आवासीय विद्यालय में बच्चों को खान-पान की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। ऐसा कई महीनों से चल रहा है।
नक्सल इलाकों में करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं। पर, क्या वहां पढऩे वाले बच्चों को ठीक खाना मिल जाए, इसकी तरफ अफसरों और जनप्रतिनिधियों का ध्यान नहीं है?
स्काईवॉक और अंडरग्राउंड नाली
राज्य के दो बड़े शहरों की दो बड़ी परियोजनाएं अरबों रुपये फूंकने के बाद भी अधूरी है। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के दो तत्कालीन मंत्रियों के ये ड्रीम प्रोजेक्ट थे। दोनों ने ही वादा किया था कि भाजपा की सरकार दोबारा बनी तो अधूरा काम पूरा कराया जाएगा, मगर अभी हालात बदले हुए से हैं।
बात रायपुर के स्काई वॉक और बिलासपुर के अंडरग्राउंड सीवरेज परियोजना की है। स्काईवॉक पर करीब 45 करोड़ रुपये तो सीवरेज पर करीब 400 करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं। सन् 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने इन दोनों योजनाओं में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया था। मगर, कांग्रेस की सरकार पूरे पांच साल रही, किसी भी जिम्मेदार व्यक्ति पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। बिलासपुर की सीवरेज परियोजना पर तो हाईकोर्ट ने कुछ आईएएस अधिकारियों सहित 13 अफसरों के खिलाफ जांच कर कार्रवाई का आदेश दिया था। मगर सरकार बदलने के बाद भी किसी का बाल बांका नहीं हुआ। पूरे पांच साल कांग्रेस विचार करती रही कि रायपुर का स्काई वाक पूरा किया जाए, या ढहा दिया जाए। मुद्दा सुलगा हुआ था तो सरकार का कार्यकाल खत्म होने के आखिरी साल में एसीबी को भ्रष्टाचार के जांच की जिम्मेदारी दी गई। अभी कुछ दिन पहले विधानसभा में यह जवाब आ गया है कि किसी पर कोई कार्रवाई नहीं होगी, कोई भ्रष्टाचार नहीं पाया गया है, जांच की फाइल कुछ दिन पहले बंद कर दी गई है।
रायपुर में लोक निर्माण विभाग के पूर्व मंत्री राजेश मूणत ने और बिलासपुर में नगरीय प्रशासन विभाग के पूर्व मंत्री अमर अग्रवाल ने अपनी चुनावी सभाओं में बार-बार कहा कि वे अपनी इन दोनों परियोजनाओं को सरकार बनने के बाद तत्काल पूरा कराएंगे। स्काई वाक के संबंध में विधानसभा में मूणत के ही सवाल पर उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने बताया था कि एक समिति ने स्काई वाक को पूरा करने की सिफारिश की है। इधर अग्रवाल ने भी कहा था कि 6 माह के भीतर शहर की जनता सीवरेज प्रोजेक्ट को चालू देखेगी।
दोनों नेताओं ने इन योजनाओं को शुरू करने का का श्रेय खुद लिया था। अब सरकार बन गई तो योजना पूरी कराना भी उनकी प्रतिष्ठा का सवाल है। मगर, कौन जानता था कि सरकार बनेगी तो दोनों को मंत्रिमंडल में मौका नहीं मिलेगा। ऐसा होता तो वैसा हो जाता।
श्रमिक बस्तियों से ठेके की दूरी
स्कूल, अस्पताल व धार्मिक स्थलों से शराब दुकानों की दूरी पहले 50 मीटर थी अब विधानसभा में की गई घोषणा के मुताबिक यह दूरी कम से कम 100 मीटर कर दी जाएगी। ऐसा हाईकोर्ट के आदेश के आधार पर किया जा रहा है। मगर, एक बड़ा फैसला और लिया गया है कि श्रमिक बस्ती और अनुसूचित जाति के 100 से ज्यादा घर हों तो वहां पर भी दुकान नहीं खोली जाएगी। अक्सर देखा गया है कि संभ्रांत कॉलोनियों, पूजा स्थलों और स्कूलों के पास दुकान खोलने के बाद आंदोलन शुरू हो जाता है। इन का प्रशासन पर दबाव होता है तो दुकान खिसकाकर निचली बस्तियों में ही ले जाई जाती है। रोज कमाने-खाने वाले मजदूर परिवारों में इतनी ताकत या हैसियत नहीं होती कि इसके खिलाफ आंदोलन करने के लिए सडक़ पर आ जाएं। यदि प्रदेश में गिनती की जाए तो आधी दुकानें ऐसी बस्तियों के आसपास नजर आएंगीं। इन बस्तियों से लगी शराब दुकानें पारिवारिक कलह कई गुना बढ़ा देती हैं। बच्चों और महिलाओं की स्थिति दयनीय हो जाती है। कई घरेलू अपराध इसी वातावरण के कारण बढ़ जाते हैं। क्या इन शराब दुकानों को हटाने के सरकार के फैसले को प्रशासन कितने प्रभावी तरीके से अमल में ला सकेगा? ऐसी बस्तियों में देशी शराब के कोचिये फलते फूलते हैं, जिनके बारे में पुलिस और आबकारी दोनों को पता होता है। शराब की दुकान दूर होने से कोचियों की ज्यादा कमाई के रास्ते भी खुलने की आशंका है।
5 किलो मुफ्त चावल के लिए
विधानसभा में खाद्य मंत्री दयालदास बघेल ने जानकारी दी कि बीते कुछ महीनों के भीतर प्रदेश के 33 जिलों में 8 लाख 90 हजार 660 लोगों के नाम राशन कार्ड से हटाए गए हैं। इनमें से कई राशन कार्ड स्थायी रूप से निवास नहीं करने, त्रुटि पूर्ण आधार नंबर होने अथवा मृत्यु के कारण रद्द किए गए लेकिन ज्यादातर लोगों ने खुद ही नाम कटवाए। इस बात पर चकित हुआ जा सकता है कि लोगों ने अपने नाम क्यों कटवाए? विधानसभा में कारण पर चर्चा तो नहीं हुई लेकिन जो निकलकर जानकारी आ रही है उसके मुताबिक इसकी वजह प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत मिलने वाला 5 किलो मुफ्त चावल है। विधानसभा चुनाव के पहले केंद्र सरकार ने घोषणा की थी कि योजना आने वाले पांच साल तक चलेगी। इधर छत्तीसगढ़ सरकार ने राशन कार्डों के नवीनीकरण का अभियान शुरू किया है। जिन लोगों ने नाम अलग करवाए हैं उन्हें उम्मीद है कि परिवार से अलग हो जाने के चलते उनके नाम से नया राशन कार्ड बन जाएगा। बड़ी संख्या में नाम कटवाने से यह पता चलता है कि बीपीएल परिवारों के लिए 5 किलो मुफ्त राशन कितना महत्व रखता है।
इतनी बड़ी जल की रानी
कबीरधाम जिले के सरोधा जलाशय में जाल बिछाए मछुआरे अचानक घबरा गए जब उन्हें लगा कि कोई ऐसी भारी चीज फंस गई है, जिसे वे पूरी जोर-आजमाइश के बाद भी बाहर खींच नहीं पा रहे हैं। अनिष्ट की आशंका भी हुई। पर जब कई लोगों ने मिलकर जाल बाहर निकाला तो उसमें यह भारी भरकम मछली फंसी मिली। दावा है कि किसी जलाशय से इतनी भारी मछली प्रदेश में अब तक नहीं पकड़ी गई। 5 फीट लंबी बीटकार प्रजाति की इस मछली का वजन 80 किलो निकला, 24 हजार में इसकी बिक्री हुई।
अयोध्या जाएं न जाएं ..
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खडग़े सहित अन्य कांग्रेस नेता शामिल नहीं हुए थे। निमंत्रण ‘ससम्मान’ ठुकरा दिया गया था। उन्होंने इसे भाजपा का स्टंट बताया। कांग्रेस के कई नेताओं ने इस फैसले को गलत बताया। एक नेता आचार्य प्रमोद कृष्णम को तो पार्टी ने बाहर भी कर दिया। अभी इधर छत्तीसगढ़ में कैबिनेट ने अयोध्या धाम जाने का फैसला लिया है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष किरण देव ने कांग्रेसियों को भी चलने का निमंत्रण दिया है। अभी तक कांग्रेस की ओर से निमंत्रण न तो ठुकराया गया है न ही स्वीकार किया गया है। शायद आकलन किया जा रहा है कि निमंत्रण राजनीतिक है या सरकारी।
चिटफंड की चीटिंग रुकी नहीं...
कलेक्टर-एसपी सरकार की प्राथमिकता को समझते हुए उनके निर्देशों को ही अमली जामा पहनाने के लिए काम करते हैं। सन् 2018 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद चिटफंड कंपनियों पर प्रतिबंध लगाया गया था, डायरेक्टरों की गिरफ्तारी और डूबी रकम वसूल करने का सिलसिला चलाया गया था। मगर इसी दौरान ठगी की नई दुकान-बाजार खुल गए जिसे लेकर प्रशासन चौकन्ना नहीं रहा। सरगुजा जिले में एक फर्जी कंपनी 600 से ज्यादा लोगों को अपना शिकार बन चुकी है। ज्यादातर शिकार लोग बेरोजगार युवक युवतियां हैं। कंपनी ने दर्जनों लोगों को नौकरी पर रखा। उनको लोगों से 70-70 हजार रुपए डिपॉजिट करने के काम में लगाया गया। लोगों ने जमीन बेचकर, लोन लेकर पैसे दिए। डेढ़ 2 साल से यह गोरखधंधा फल-फूल रहा था। कई गुना बढ़ाकर रकम लौटाने और विदेशों की सैर कराने का झांसा दिया गया था।
राज्य में चिटफंड कंपनियों में डूबी रकम हजारों करोड़ और लूटे लोगों की संख्या लाखों लोगों में है। सितंबर 2023 तक इनमें से सिर्फ 38 करोड रुपए लौटाए जा सके। उसके बाद प्रशासन और सरकार चुनाव की तैयारी में लग गई। अब सरकार बदलने के बाद रुपए लौटाने की कोशिशों पर भी विराम लग गया है। मगर इतनी उम्मीद तो की जा सकती है कि नए धंधे शुरू न हों, जैसा सरगुजा से सामने आया है।
कांग्रेस में हलचल ही नहीं...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छत्तीसगढ़ की सभी 90 सीटों की जनता को 24 फरवरी को वर्चुअल संबोधित करेंगे। इसके पहले 22 फरवरी को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जांजगीर में आमसभा लेंगे। प्रदेश में ऐतिहासिक बहुमत के बाद भी जांजगीर की किसी भी विधानसभा सीट से भाजपा को इस बार जीत नहीं मिल पाई। इसलिए शाह का कार्यक्रम यहां रखना महत्वपूर्ण हो गया है। भाजपा की ओर से खबर आ चुकी है कि फरवरी के अंतिम सप्ताह तक कम से कम पांच सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा कर दी जाएगी।
दूसरी तरफ राहुल गांधी की न्याय यात्रा के बाद भी कांग्रेस में गर्मजोशी दिखाई नहीं दे रही है। विधानसभा चुनाव में जहां एक-एक सीट पर 50-50 लोग अर्जी लेकर खड़े थे तो लोकसभा के लिए दावेदार सामने भी नहीं आ रहे हैं। विधानसभा चुनाव के पहले प्रभारी महासचिव के ताबड़तोड़ दौरे हो रहे थे। अब के चुनाव में सचिन पायलट औपचारिक एक दौरा करके दोबारा नहीं लौटे हैं। भाजपा ने इस बार 11 में से एक भी सीट नहीं छोडऩे का लक्ष्य रखा है। क्या इस दावे को कांग्रेस ने बहुत गंभीरता से ले लिया है?
बांस-पत्तों का बर्तन
बस्तर में जनजातीय समुदाय की हर जरूरत प्रकृति से पूरी हो जाती है। बर्तन भी बांस और पत्तों से बना लेते हैं। कारीगरी ऐसी कि रस युक्त दाल या सब्जी को भी इसमें रखा जा सकता है। केंद्र सरकार की एक योजना है, एक जिला, एक उत्पाद। इस योजना में किसी जिले के विशिष्ट पहचान को दर्शाने वाले प्रोडक्ट को प्रमोट किया जाता है। रेलवे स्टेशनों में इसके स्टाल नजर आते हैं। बांस के ये बर्तन इस योजना में शामिल नहीं है।
जिला छुआ भी नहीं गया
कवर्धा एक ऐसा जिला है जहां सरकार बदलने के बाद शीर्ष अफसर बदले नहीं गए हैं। खास बात यह है कि कलेक्टर जनमेजय महोबे, एसपी अभिषेक पल्लव, डीएफओ चूड़ामणि सिंह, और जिला पंचायत सीईओ संदीप अग्रवाल की पोस्टिंग भूपेश सरकार ने की थी। तब से अब तक ये सभी बने हुए हैं।
भाजपा की सरकार आई, तो ज्यादातर जिलों के कलेक्टर, एसपी, और अन्य प्रमुख पदों पर बैठे अफसर बदल चुके हैं, लेकिन चारों को बदला नहीं गया है। कलेक्टर मोहबे और डीएफओ चूड़ामणि सिंह को तो दो साल से अधिक हो गए हैं। डीएफओ के खिलाफ भाजपा ने चुनाव से पहले शिकायत भी की थी, लेकिन पार्टी की सरकार बनने के बाद उन्हें भी बदला नहीं गया है।
बताते हैं कि ये अफसर चुनाव के दौरान पूरी तरह निष्पक्ष रहे, और बिना किसी के दबाव में आए काम करते रहे। यही वजह है कि सत्ता परिवर्तन होने पर भी इन सभी को कोई फर्क नहीं पड़ा।
एक बैच के पड़ोसी
दुर्ग संभाग के तीन जिले दुर्ग, राजनांदगांव, और कवर्धा में एसपी के पद पर एक ही बैच के अफसर काबिज हैं। दिलचस्प बात यह है कि आईपीएस के 2013 बैच के ये तीनों अफसर एक-दूसरे के जिले में काम कर चुके हैं। मसलन, दुर्ग एसपी जितेन्द्र शुक्ला, राजनांदगांव एसपी रह चुके हैं।
शुक्ला की साख अच्छी है, और राजनांदगांव में बहुत कम समय में अपनी अलग ही छाप छोड़ी थी। वो बिना किसी दबाव में आए काम करने के लिए जाने जाते हैं। उनके बैचमेट राजनांदगांव एसपी मोहित गर्ग पहले कवर्धा एसपी रह चुके हैं। मोहित बलरामपुर एसपी रह चुके हैं। उस समय उनकी स्थानीय विधायक बृहस्पति सिंह से ठन गई थी। इसके बाद उनका तबादला हुआ था। इसी बैच के कवर्धा एसपी अभिषेक पल्लव पहले दुर्ग एसपी रह चुके हैं। वो कई तरह की चर्चाओं में रहे, लेकिन वो गृहमंत्री विजय शर्मा के गृह जिले कवर्धा की कमान संभाले हुए हैं।
इतना बड़ा अफसर
तेईस जनवरी को आदेश के एक माह बाद भी आईएएस अफसर पुष्पा साहू माशिमं के सचिव का काम शुरू नहीं कर पाई हैं। आदेश जारी होने, नए अफसर की ज्वाइनिंग के बाद भी माशिमं के प्रोफेसर सचिव ने कार्यभार नहीं दिया है और परीक्षा जैसा गोपनीय कार्य कर रहे हैं। इस पर आईएएस अध्यक्ष भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं । यानी एसीएस स्तर के अध्यक्ष से बड़े हो गए हैं, प्रोफेसर सचिव । दस दिन बाद परीक्षाएं शुरू होनी हैं। ऐसे में परंपरा अनुसार प्रश्न पत्र लीक,नंबर बढ़ाने की कवायद, फेल को पूरक और पूरक को पास करने जैसे तरह तरह के उपक्रम शुरू होने की चर्चाएं मंडल के मातहत करने लगे हैं । यह भी कहा जा रहा है कि पिछली सरकार को जब प्रोफेसर साहब ने सेट कर लिया था । और तो और, इन पर उंगली उठाने वाली सभी समितियों को इन्होंने भंग भी कर दिया है। इसलिए कहा जा रहा है कि आईएएस से बड़े होते हैं प्रोफेसर।
गौ माताओं को चारे का इंतजार
छत्तीसगढ़ की सियासत में पिछली सरकार की गौठान योजना हावी रही। कांग्रेस के पूरे शासनकाल के दौरान भाजपा ने विधानसभा और उसके बाहर गौठान और गोबर खरीदी में घोटाले को लेकर सरकार को आड़े हाथों लिया था। तब बृजमोहन अग्रवाल ने आरोप लगाया कि जितना बजट खर्च किया गया, उसके अनुसार एक गाय पर खर्च 39.80 लाख तक खर्च हुआ। मंत्री ताम्रध्वज साहू ने बताया कि समितियों से 246 करोड़ का गोबर खरीदा गया लेकिन सरकार ने बेचा सिर्फ 17 करोड़ का। तत्कालीन विधायक सौरभ सिंह ने सवाल किया कि बाकी 229 करोड़ का गोबर कहां गया?
भाजपा की पूर्ववर्ती सरकार के दौरान गौशालाओं में गायों की मौत की कई घटनाएं सामने आई थीं। इनके संचालक भाजपा कार्यकर्ता थे, यह भी बात सामने आई थी। एक चर्चित मामला अगस्त 2017 का था, जिसमें भाजपा नेता हरीश वर्मा की गौशालाओं में 300 गायों की मौत हुई थी। अनुदान के नाम पर अलग-अलग चरणों में तीन गौशालाओं को 165 करोड़ रुपये का फंड मिला था। खुद गौसेवा आयोग ने तब एफआईआर कराई थी।
प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद जगह-जगह से खबरें आ रही हैं कि वहां काम कर रही स्व-सहायता समूहों का काम ठप हो गया है। गौठानों में चारा भी नहीं है, गायों की स्थिति बदहाल है। एक खबर रायगढ़ से है कि यहां नगर-निगम द्वारा संचालित आदर्श गौठान में मौजूद करीब 150 गाय चारे के अभाव में कमजोर हो चुके हैं, मरणासन्न स्थिति में हैं। कई की मौत हो चुकी है। नगर-निगम के अधिकारी साफ कर रहे हैं कि चारे के लिए बजट नहीं है।
कुछ दिन पहले राजधानी के पास कुम्हारी में गौ तस्करी का मामला पकड़ा गया। कंटेनर में 80 गाय ले जाए जा रहे थे, इनमें से 13 गायों की मौत हो चुकी थी। कांग्रेस ने विधानसभा में इस मामले को उठाया और आरोप लगाया कि कांग्रेस की गौठान योजना की आलोचना करने वाली भाजपा सरकार गायों के प्रति संवेदनहीन है।
पिछले महीने जनवरी में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरिराज सिंह ने कोरबा प्रवास के दौरान कहा था कि गौठान बंद नहीं होंगे। इनमें गायों को चारा-पानी देने के अलावा कोई काम नहीं हो रहा है। गौठान से सार्वजनिक उपक्रमों को जोड़ा जाएगा और ये ग्रामीणों के उत्थान का मार्ग बनेंगे। मगर यह कौन सा मॉडल होगा, कैसे संचालन होगा, यह गौठान चलाने वाली किसी समिति के सामने अब तक साफ नहीं है। फिलहाल सोसायटी से जुड़े लोग हाथ बांधकर बैठे हैं और गायों को चारा-पानी भी नसीब नहीं हो रहा है।
रिश्वत की सबसे छोटी रकम...
महतारी वंदन योजना के फॉर्म को प्रमाणित करने के लिए रिश्वत लेने का वीडियो वायरल होने के बाद रिसाली नगर निगम के वार्ड 15 की कांग्रेस पार्षद ईश्वरी साहू को एमआईसी से हटा दिया गया है। वे महिला बाल विकास विभाग की प्रभारी थीं। भाजपा पार्षद इस मामले में और आगे ले जा चुके हैं। उन्होंने नगर निगम आयुक्त से पार्षद की बर्खास्तगी की मांग की है। पार्षद यह कहते हुए पाई गईं कि सुबह से शाम तक वह परिश्रम करती हैं तो 20-20 रुपये लेकर क्या गलत कर रही हैं। यही बात चौंकाने की है कि पद तो जनसेवा का है लेकिन वह मेहनत के बदले मेहनताना की अपेक्षा रखती हैं। फॉर्म पर दस्तखत लेने वाले ज्यादातर लोग गरीब तबके के होंगे, फिर भी 20 रुपये इतनी छोटी राशि से उन्हें कोई ऐतराज नहीं होगा। उनकी आर्थिक स्थिति को समझते हुए ही शायद पार्षद ने दस्तखत की दर इतनी कम रखी। ऐसे कई वार्ड हैं जिनमें चुनाव जीतने के लिए लाखों रुपये खर्च होना आम बात है। इस राशि से तो शायद रोज के चाय-पानी का जेब खर्च भी पूरा न हो। मगर, बात सामने आ गई और सवाल नैतिकता का खड़ा हो गया। कहावत है, पकड़ा गया तो..., नहीं तो साहूकार। ([email protected])
कलेक्टर की फर्जी प्रोफाइल
सोशल मीडिया पर फर्जीवाड़ा करने वालों ने इस बार मुंगेली कलेक्टर राहुल देव को निशाना बनाया। उनकी फेसबुक प्रोफाइल से एक फोटो और डिटेल निकालकर ठगों ने एक फर्जी पेज बना लिया। इस फर्जी पेज में उनके पारिवारिक फोटो, सार्वजनिक कार्यक्रमों की तस्वीर, सब अपलोड किए गए। कलेक्टर के फेसबुक मित्रों को मेसैंजर से मेसैज भेजकर रुपयों की मांग की जाने लगी। किसी परिचित ने कलेक्टर से पूछा कि क्या आप फेसबुक पर मेसैज भेजकर पैसे मांग रहे हैं? कलेक्टर हैरान रह गए। उन्होंने फिलहाल अपने असली फेसबुक पेज को लॉक कर दिया है। पुलिस में शिकायत भी दर्ज करा दी गई है। मगर, प्राय: ऐसी करतूत करने वाले जल्दी पकड़ में आते नहीं हैं। पिछली कुछ घटनाओं से तो यही लगता है। आप भी सतर्क रहिये। यदि कोई आईएएस, आईपीएस या और कोई अफसर किसी सोशल मीडिया एकाउंट के जरिये रकम मांग रहा हो तो मानकर चलें कि यह काम फर्जी आईडी बनाकर कोई ठग ही कर रहा है।
चावल घोटाला घटकर एक तिहाई
प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत राशन के वितरण में गड़बड़ी का खुलासा पिछले साल कैग की रिपोर्ट में किया गया था। इसमें 600 करोड़ रुपये के घोटाले का आकलन किया गया था। तब पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने प्रेस कांफ्रेंस लेकर मामले को सबसे पहले उठाया और दोषियों पर कार्रवाई की मांग की। इसके बाद धरमलाल कौशिक सहित कई भाजपा विधायकों ने विधानसभा में सवाल भी किए। तत्कालीन खाद्य मंत्री अमरजीत भगत ने भी माना कि गड़बड़ी हुई है। जांच कराई जा रही है। फरवरी 2023 में मामला उठा था, मार्च 2023 तक राशन दुकानों का सत्यापन पूरा करने की बात थी। पर हुआ नहीं। अलबत्ता कई दुकानों को निलंबित करने और एफआईआर की कार्रवाई हुई। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद इस बार विधानसभा में यह मामला फिर उठा। तब सदस्यों ने इस बात पर नाराजगी जताई कि आसंदी के निर्देश के बाद भी जांच नहीं हुई। मगर, खाद्य मंत्री दयालदास बघेल ने सवालों के जवाब में बताया कि गड़बड़ी 216 करोड़ की हुई है। मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने कहा कि विधायकों की समिति मामले की जांच करेगी।
यहां पर सवाल यह उठ रहा है कि जब कैग की रिपोर्ट में गड़बड़ी 600 करोड़ की बताई गई तो यह गड़बड़ी घटकर 216 करोड़ की कैसे हो गई। क्या राशन दुकानों में स्टॉक फिर से वापस लाकर रख दिया गया? यह सवाल हमारा नहीं है- छत्तीसगढ़ खाद्य अधिकारी कर्मचारी संघ का है। संघ का कहना है कि कागजों में लीपापोती कर घोटाले को दबाने की कोशिश की जा रही है। उनकी मांग यह भी है कि यदि सचमुच बिना भेदभाव जांच होनी है तो केवल राशन दुकानदारों की गर्दन नहीं पकड़ी जाए बल्कि उस दौरान पदस्थ सभी संचालकों से भी पूछताछ की जानी चाहिए।
एक साथ दिखे कई वनभैंसा
छत्तीसगढ़ के राजकीय पशु वन भैंसा की संख्या लगातार घट रही है। कृत्रिम गर्भाधान के जरिये इनकी संख्या बढ़ाने की कोशिश भी सफल नहीं हुई। ऐसे में नक्सल प्रभावित बीजापुर जिले के इंद्रावती टाइगर रिजर्व में करीब 15 वनभैंसों के होने की पुष्टि हुई है। वन विभाग द्वारा लगाए गए ट्रैप कैमरों में कुछ कैद भी हुए हैं। इतनी संख्या में भैंसों की मौजूदगी पाकर वन विभाग ने इनकी जिओ मैपिंग कराने का निर्णय लिया है ताकि इनके ठिकानों की सटीक जानकारी रखी जा सके। इंद्रावती रिजर्व के अलावा उदंती सीतानदी टाइगर रिजर्व ही दूसरा वन क्षेत्र है, जहां वनभैंसों के होने की पुष्टि अब तक हुई है।
राजधानी से कौन?
भाजपा में लोकसभा प्रत्याशी चयन के लिए पैनल तैयार हो रहे हैं। रायपुर में तो सुनील सोनी को निर्विवाद माना जाता रहा है, लेकिन चुनाव के नजदीक आते ही उनके कई करीबी ही सोनी की जगह लेने के लिए जोर आजमाइश कर रहे हैं।
सुनील सोनी के एक करीबी पूर्व विधायक ने तो अपनी दावेदारी ठोक दी है। उन्होंने वरिष्ठ नेताओं से मिलकर खुद को रायपुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी बनाए जाने की मांग कर दी है। कई और नेताओं ने भी पार्टी संगठन को अपना बायोडाटा सौंपा है।
दूसरी तरफ, सुनील सोनी रायपुर लोकसभा सीट से सबसे ज्यादा वोटों से जीतने वाले प्रत्याशी हैं। विधानसभा चुनाव में भी उनके अपने लोकसभा क्षेत्र में पार्टी का प्रदर्शन बहुत बढिय़ा रहा है। बावजूद इसके उनके अपने करीबी टिकट को लेकर सक्रिय हैं। इसकी खूब चर्चा हो रही है। वैसे भी भाजपा टिकट को लेकर चौंकाती रही है, इसलिए दावेदार उम्मीद से भी हैं।
भाजपा के दिल्ली के सूत्र बताते हैं कि इस बार पार्टी परंपरागत नेताओं से परे किसी बिलकुल नए चेहरे को राजधानी से उतारने की सोच रही है।
भारत बंद में उदासीन कांग्रेसी
किसानों के भारत बंद को छत्तीसगढ़ में उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली। किसान संगठनों और ट्रेड यूनियन के आह्वान पर औद्योगिक और ग्रामीण क्षेत्रों में इसका असर जरूर दिखा। इस आंदोलन का कांग्रेस ने खुला समर्थन किया। पर ज्यादातर स्थानों पर कार्यकर्ताओं की भीड़ ही नहीं जुटी। कई शहरों में बंद के समर्थन में आयोजित धरना प्रदर्शन में कुर्सियां खाली देखी गईं। आम तौर पर किसी ‘बंद’ को बाजार कुछ घंटों के लिए बंद होने पर कामयाब मान लिया जाता है। कोंडागांव में मोहन मरकाम ने एक ट्रैक्टर रैली निकाली, इक्के दुक्के और जगहों पर ऐसे प्रदर्शन हुए, पर ज्यादातर जिलों में कांग्रेसी शहर बंद कराने निकले ही नहीं, जहां निकले वहां औपचारिकता ही दिखी।
छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन के बाद आंदोलन के लिए कांग्रेस का सडक़ पर उतरने का यह प्रदेशव्यापी पहला कार्यक्रम था। इसके पहले वे हसदेव में पेड़ कटाई के खिलाफ वहां हो रहे आंदोलन को समर्थन देने गए थे। अभी-अभी छत्तीसगढ़ से राहुल गांधी की न्याय यात्रा गुजरी है। वहां सामने आने के लिए कार्यकर्ताओं, नेताओं में भारी होड़ थी। इतनी कि एक पूर्व विधायक प्रकाश नायक ने धरना भी दे दिया और उनकी गतिविधि को अनुशासनहीनता मानते हुए नोटिस भी थमा दी गई।
प्रदेश कांग्रेस कमेटी की ओर से एक पत्र संगठन के पदाधिकारियों, विधायकों-पूर्व विधायकों, सांसदों और अन्य नेताओं को एकजुटता के लिए जारी किया गया था। इसके बावजूद अधिकांश लोग धरना प्रदर्शन से गायब दिखे। कम से कम उन लोगों को तो नजर आना ही था, जो लोकसभा चुनाव की टिकट पाने की इच्छा रखते हैं। अब 19 फरवरी को कांग्रेस ने आयकर दफ्तरों के सामने प्रदर्शन करने का कार्यक्रम बनाया है, शायद तब गर्मजोशी दिखे।
लाइलाज गांजे की तस्करी
कबीरधाम पुलिस ने भूसे का परिवहन कर रहे एक ट्रक के भीतर तलाशकर भारी मात्रा में गांजा जब्त किया, जिसका बाजार मूल्य 15 करोड़ रुपये बताया जा रहा है। इसके दो दिन पहले ही बेमेतरा-रायपुर एनएच में दो गाडिय़ों से दो करोड़ रुपये का गांजा इंदौर पुलिस की नारकोटिक्स टीम ने पहुंचकर पकड़ा। कुछ माह पहले महासमुंद में चावल की बोरियां ले जा रहे ट्रक में छिपाया गया करीब 1.5 करोड़ रुपये का गांजा पकड़ाया। इसी तरह की खबरें जगदलपुर और दूसरे ऐसे शहरों से मिल रही हैं, जो ओडिशा से जुड़े हैं। पिछले कई वर्षों से न तो ओडिशा से निकलने वाली गांजे की खेप कम हो रही है और न ही पुलिस की जब्ती कार्रवाई में कोई कमी आई है। अक्सर जो गांजा जब्त किया जाता है वह यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश या उसी रास्ते से दिल्ली तक ले जाने के लिए निकलने वाली गाडिय़ां होती हैं। ओडिशा का जयपुर और मलकानगिरी क्षेत्र तस्करी का हब बना हुआ है। वहां गांजे की खेती नहीं होती। खेती तो दुर्गम जंगलों के बीच होती है, पर यहां से पूरे देश के लिए माल की सप्लाई होती है। सवाल यह उठता है कि ओडिशा से आने वाला गांजा रुक क्यों नहीं रहा है? वहां की पुलिस क्या कर रही है? पुलिस के ही सूत्र बताते हैं कि गांजा की पैदावार ऐसे दुर्गम स्थानों पर की जा रही है, जहां पुलिस भारी फोर्स को ले जाए बिना अटैक नहीं कर सकती। और ये खेती दो चार गांवों में नहीं, दर्जनों गांवों में हो रही है- जो दूर-दूर तक फैले हुए हैं। इन्हें राजनीतिक संरक्षण तो है ही, नक्सलियों का भी साथ भी मिला हुआ है। छत्तीसगढ़ में जिन थानों से गांजा गाडिय़ां गुजरती हैं, उनमें पुलिस जितनी कार्रवाई करते हुए दिखती है, असल व्यापार उससे कई गुना अधिक है। पुलिस जो माल जब्त करती है, उसे तस्कर अपने धंधे के मार्जिन-लॉस में लेकर चलते हैं। जो माल नहीं पकड़ाता उसमें मुनाफा लेकर हानि की भरपाई कर ली जाती है। फिलहाल, तो गांजा की पैदावार, तस्करी और खपत रोकने में दोनों राज्यों की पुलिस के हाथ बंधे हुए दिख रहे हैं।
बेजुबान बाघ की अपील...
बेंगलुरु के एक आईएफएस प्रवीण कासवान ने सोशल मीडिया पर एक वीडियो शेयर किया है। एक बाघ तालाब में तैर रहे पानी के प्लास्टिक बॉटल को अपने मुंह में दबा लेता और निकालकर बाहर फेंकता है। हम-आप छुट्टी में जंगल जाते हैं, पार्टी करते हैं लेकिन पैक्ड बचा खाना, प्लास्टिक बोतल, रैपर आदि कितनी ही चीजें जिम्मेदारी का एहसास किए बिना छोड़ आते हैं। जंगल की सफाई में अपने हिस्से की मदद करते इस टाइगर का वीडियो आईएफएस कासवान के ट्विटर पेज पर देखा जा सकता है। उनका एक और वीडियो भी अपलोड है, जिसमें उनकी टीम जंगल को साफ करने के लिए श्रमदान कर रही है।
भूपेश गैरहाजिर
पूर्व सीएम भूपेश बघेल इन दिनों संगठन के कार्यों के लिए दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, बिहार आदि के दौरे कर रहे हैं। इसलिए बजट सत्र में उनकी उपस्थिति कम नजर आ रहे हैं। इस पर अजय चंद्राकर लगातार नौ दिनों से नजर बनाए हुए हैं। आज उनसे रहा नहीं गया। सदन में बघेल को देख चंद्राकर ने स्पीकर से कहा कि अध्यक्ष जी विधानसभा में दर्शन देने के लिए पूर्व सीएम का अभिनंदन हैं, दर्शन देकर बड़ी कृपा की।
पूर्व सीएम बघेल ने जवाब में कहा कि अजय जी, आप मेरी अनुपस्थिति पर रोज टिप्पणी करते हैं। जबकि पूरा ट्रेजरी बेंच (मंत्रियों की कुर्सियां) खाली है। इस पर चंद्राकर ने कहा कि मैंने टिप्पणी कहा कि,धन्यवाद दिया है दर्शन देने के लिए। उन्होंने कहा कि अध्यक्षजी विधानसभा में मेडिकल कैंप चल रहा है। विपक्ष को इलाज की जरूरत है। नहीं आ रहे। पूर्व सीएम आज आ रहे हैं। शुरू के दो दिन में एक एक मिनट में बहिर्गमन कर चले जाते रहे हैं। बघेल ने कहा कि इलाज की जरूरत हमें नहीं आपको है।
घर का जानकार दर्द
कांग्रेस विधायक चातुरी नंद ने गुरुवार को अपने तारांकित प्रश्न पर चर्चा, छांट,छांट कर तार्किक पूरक प्रश्नों पर आसंदी से बधाई ली। नि: संदेह उन्होंने काफी चातुर्यता का परिचय दिया। सरायपाली के मिडिल स्कूल की शिक्षिका रहीं चातुरी नंद पहली बार विधायक चुनी गईं। कल की अपनी पूरी चर्चा छत्तीसगढ़ी भाषा में की। गृह मंत्री ने जवाब भी छत्तीसगढ़ी में ही दिया।
चर्चा में सब कुछ था- तथ्य थे, आरोप थे, गलत जवाब पर उंगली उठाई, छत्तीसगढ़ी लोकोक्ति के साथ पीडि़तों का दर्द बयां किया और स्पीकर समेत वरिष्ठ विधायकों के पूर्व के प्रश्नों का संदर्भ भी। पुलिस कर्मियों के भत्तों को लेकर काफी बारीक जानकारी दी। किट भत्ता, सायकल भत्ता, भोजन भत्ता, पौष्टिक आहार भत्ता, वर्दी धुलाई अलाउंस से लेक एचआरए तक। इन दशक पुराने न्यूनतम भत्ता से महंगाई इन दिनों में गुजारे को मुश्किल बताया। चर्चा सुनकर लगा विधायक ने किसी पुलिसकर्मी के साथ बैठकर पहले होम वर्क किया होगा। नि: संदेह किया है, होमवर्क ही। उन्हें दशकों का अनुभव भी है। भुक्तभोगी भी हैं। इस संबंध में पता किया तो मालूम हुआ विधायक-पति, पुलिसकर्मी ही हैं। पति के साथ 60 हजार जवानों की पीड़ा को भला ऐसे और कौन पेश कर सकते हैं। इस सदन में पूर्व में भी सिपाही, सब इंस्पेक्टर से लेकर डीएसपी तक विधायक रहे लेकिन किसी ने या तो प्रश्न ही नहीं किया ,या फिर प्रश्नों में इतने तर्क नहीं रहे।
जोगी सतर्क थे, पवार निश्चिन्त
चुनाव आयोग ने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का कब्जा इसके संस्थापक शरद पवार के हाथ से छीन कर उनके भतीजे अजित पवार को सौंप दिया है। दुखी शरद पवार ने कहा कि चुनाव आयोग ने पार्टी को उनसे छीना जिन लोगों ने इसकी स्थापना की। हमारा चुनाव चिन्ह भी ले गए।
इस घटना ने प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री स्वर्गीय अजीत जोगी की याद दिला दी है। कांग्रेस से अलग होने पर जब उन्होंने नई पार्टी बनाई, तब नाम की घोषणा की- जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी)। इसे अभी भी संक्षेप में जेसीसी (जे) कहा जाता है। लोगों ने पूछा कि अभी तो जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ नाम से कोई दूसरा दल नहीं है, फिर ब्रैकेट में जोगी लिखने की क्या जरूरत है? सयाने जोगी ने जवाब दिया कि आज नहीं है, यह बात ठीक है। ? मगर, कल को कोई बगावत करने वाला पार्टी के नाम पर दावा करेगा तो उसे जोगी नाम चिपकाकर चलना पड़ेगा। और मुझसे अलग होकर कोई जोगी नाम जोडक़र कैसे रखेगा? मेरी पार्टी का नाम मेरे पास ही रहेगा। और जब नाम मेरे पास रहेगा तो चुनाव चिन्ह पर भी कोई दावा नहीं कर पाएगा।
शायद शरद पवार स्व. जोगी की तरह सतर्क होते तो उनको पार्टी का नाम छिन जाने का सदमा आज नहीं झेलना पड़ता। चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ अदालत का दरवाजा खटखटाने की नौबत नहीं आती। यह जरूर है कि जोगी की तरह सिर्फ सरनेम से काम नहीं चलता। उन्हें अपनी पार्टी के नाम के साथ अपना पूरा नाम ‘शरद पवार’ जोडऩा पड़ता। आखिर, उनके भतीजे अजीत का भी सरनेम पवार ही है।
सौ फीसदी खरे सांसद..?
कांकेर के भाजपा सांसद मोहन मंडावी के नाम पर एक खास उपलब्धि जुड़ गई है। लोकसभा के सत्रों में उनकी सौ प्रतिशत उपलब्धि रही। ऐसा रिकॉर्ड अजमेर के सांसद भगरीथ चौधरी ने भी बनाया। दोनों पहली बार के भाजपा सांसद हैं और संयोग से पूरे कार्यकाल में एक ही सीट पर अगल-बगल बैठे। कुछ दिनों पहले सदन में श्रीराम पर स्वरचित छत्तीसगढ़ी गीत गाकर भी मंडावी चर्चा में आए थे। हाल ही में मंडावी ने बताया कि पिछले दो दशकों के भीतर वे अपने क्षेत्र में रामचरितमानस की 48 हजार प्रतियां बांट चुके हैं, जिन पर करीब एक करोड़ रुपए की लागत आई है।
कोविड महामारी के दौरान दो साल पहले मंडावी ने सदन में एक महत्वपूर्ण मामला उठाया था। उन्होंने कहा था कि राज्य के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में काम करने वाले कर्मचारियों के लिए आवास की सुविधाएं नहीं हैं। वे अपनी जान जोखिम में डालकर महामारी से बचाव के लिए सेवाएं दे रहे हैं। खासकर महिला स्टाफ के लिए एनआरएचएम फंड से आवास की स्वीकृति दी जानी चाहिए।
मगर, 100 प्रतिशत उपस्थिति वाले मंडावी सहित अन्य भाजपा सांसदों से प्रदेश के लोगों की एक आम शिकायत पूरे पांच साल रही कि उन्होंने रेलवे से जुड़ी छत्तीसगढ़ की मांगों को सदन में ठीक तरह से नहीं उठाया। ट्रेनों की लेटलतीफी को या तो उन्होंने उचित ठहराया या फिर कांग्रेस को जिम्मेदार बता दिया।
टेक्नॉलॉजी से दो-दो हाथ...
सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के लिए ई-केवाईसी जरूरी है। खेतों में काम करने वाले किसान-मजदूरों को इस तकनीक का अभी इस्तेमाल करना भले ही नहीं आता हो, पर उन्हें मालूम है कि अब यह उनके जीवन का जरूरी हिस्सा बनता जा रहा है। आने वाले कुछ वर्षों में शायद हमें यह भी देखने को मिले जब किसान-मजदूर खुद अपने हाथ से सॉफ्टवेयर और ऐप ऑपरेट करें। तकनीक का अनुसरण कर फसल का निरीक्षण बेहतर तरीके से करें, ज्यादा उपज लें और अच्छा बाजार ढूंढ लें। यह रायगढ़ जिले के एक गांव की तस्वीर है, जहां एक कर्मचारी जन-धन योजना का लाभ पहुंचाने के लिए एक ग्रामीण का ब्यौरा डिजिटली एकत्र कर रहा है।
एक मैडम, 3 साल से अटकी डीपीसी
आईएएस अफसरों की सेवा,पोस्टिंग,पदोन्नति और सेवानिवृत्त तक का रिकॉर्ड रखता है केंद्रीय कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग डीओपीटी. इसकी वेबसाइट के हर रोज के अपडेट्स को हम फॉलो करते रहे हैं। इस दौरान यह देखने में आया कि देश भर के राज्यों के राप्रसे के अफसरों की आईएएस में पदोन्नति मिल गई हैं। किसी राज्य में 2, तो किसी में 6-8-10 भी आईएएस पदोन्नत किए गए । इस सूची में नाम नहीं है तो छत्तीसगढ़ का। यहां तीन वर्षों से आईएएस अवार्ड के लिए डीपीसी अटकी पड़ी है। इस दौरान इस कैडर के कम से कम आठ अफसर रिटायर हो चुके हैं। और इस वर्ष सात और प्रमोटी अफसर रिटायर होने वाले हैं। पद पर्याप्त हैं और अफसर भी उपलब्ध। लेकिन एक के कारण पूरी डीपीसी अटकी पड़ी है।
जेल में बंद इस अफसर की वजह से मामले को लेकर पिछली सरकार ने डीपीसी की अनुमति नहीं दी थी। जबकि भूपेश सरकार ने लिस्ट में जूनियर इन मैडम को पदोन्नत करने ऐड़ी चोटी लगा दी थी। अब जब सरकार बदल गई है तो उन मैडम के बाद के अफसर अपनी पदोन्नति के लिए प्रयास कर सकते हैं। लेकिन वे अभी सरकार के रूख का इंतजार कर रहे हैं। डीपीसी न हुई तो इस वर्ष के अंत तक दर्जन भर पद रिक्त होंगे। और अफसर भी कम।
सराहनीय पर समस्या भी
भाजपा ने एक बार फिर प्रदेश कार्यालय में सहयोग केंद्र खोलने का निर्णय लिया है। इसमें मंत्री के साथ संगठन के सीनियर पदाधिकारी की ड्यूटी भी लगाई गई है। अच्छी पहल है, इसका स्वागत भी होना चाहिए पर भाजपा के कुछ नेता रमन सरकार के समय हुई इस पहल को भी याद करते हैं। उस समय जब कार्यकर्ताओं की भीड़ ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए उमड़ी तो सहायता केंद्र में बैठे संयोजक असहाय हो गए। बाद में बंद करना पड़ा। इसके बाद के कार्यकाल में यह व्यवस्था बंद कर दी गई। कांग्रेस ने भी मंत्रियों के लिए ऐसी व्यवस्था लागू की थी पर सबको पता है कि कार्यकर्ता कितने खुश हुए। वैसे एक पदाधिकारी की सलाह यह भी है कि सहायता केंद्र के साथ-साथ गाइडलाइन भी जारी कर देनी चाहिए कि किस तरह की समस्याओं, शिकायतों के लिए लोग वहां पहुंच सकते हैं, जिसमें हल होने की पूरी गारंटी होगी।
कांग्रेस को मिला चुनावी मुद्दा
राहुल गांधी छत्तीसगढ़ में न्याय यात्रा के अंतिम पड़ाव पर सरगुजा में थे, इसी दौरान दिल्ली में किसानों के आंदोलन में तेजी आ गई। यहां पर उन्होंने और जयराम रमेश ने तुरंत घोषणा की, कि केंद्र में उनकी सरकार बनने पर न्यूनतम समर्थन मूल्य, एमएसपी पर कानून लाया जाएगा। जातिगत जनगणना को केंद्र में रखकर यह न्याय यात्रा चल रही थी। अब इसके पूरे आसार है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस एमएसपी को अपने घोषणा पत्र में प्रमुखता से शामिल करे।
दो साल पहले यूपी विधानसभा चुनाव के पहले नरेंद्र मोदी सरकार ने किसानों के आंदोलन को समाप्त कराने के लिए न केवल तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी बल्कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक एमएसपी पर कानून बनाने का वादा भी किया था। इस पर बनी उच्च स्तरीय समिति की देशभर में 30 से अधिक बैठकें हुईं, मगर एमएसपी पर वह कोई राय नहीं दे सकी।
दरअसल, अनेक विशेषज्ञों की ओर से बताया गया है कि कानून बन जाने के बाद बहुत सारी जटिलताएं भी खड़ी हो जाएंगी। इसका हल कांग्रेस के पास हो या न हो, मगर किसानों को आश्वासन देकर वह लोकसभा चुनाव में अपना प्रदर्शन सुधार जरूर सकती है।
रेलवे में पाई-पाई का हिसाब
रेलवे पार्किंग की दर बाइक के लिए अलग-अलग घंटों के अनुसार कुछ इस तरह से है- 8.26 रुपए, 11.80 रुपए, 16.52 रुपए, 21.24 और 21.24 रुपए। इस जमाने में रेलवे ही बता सकती है कि 26, 52 और 24 पैसे की वसूली ठेकेदार किस तरह करेगा और स्टेशन में गाड़ी खड़ी करने वाले ग्राहक कैसे भुगतान करेंगे। हाल ही में हाईकोर्ट ने गेट के सामने गाड़ी खड़ी करने वालों से जबरन वसूली करने वाले नियम पर रेलवे को फटकार लगाई थी। इस पर्ची में साफ दिखाई दे रहा है कि ग्राहक से 30 रुपए लिए गए हैं। रेलवे ने यात्री टिकटों पर तो राउंड फिगर दर निर्धारित कर दिया है लेकिन जीएसटी के नाम पर पार्किंग ठेकेदारों को अवैध वसूली की छूट दे दी है।
बेरोजगारी भत्ता पर ग्रहण
पूर्व में कांग्रेस की सरकार ने कार्यकाल पूरा होने के 4 महीने पहले युवाओं के लिए बेरोजगारी भत्ता शुरू किया था। मगर जैसे ही सरकार बदली बेरोजगारों के खाते में राशि जमा होना बंद हो गया। कई जिलों से पात्र बेरोजगारों की शिकायत आ रही है कि उन्हें मिलने वाले ढाई हजार रुपए दिसंबर और जनवरी माह में खाते में नहीं आए। अब फरवरी भी बीत रहा है। वैसे नई सरकार ने आधिकारिक रूप से इसे बंद करने का कोई निर्णय नहीं लिया है। हो सकता है अफसरों ने खुद ही अपने स्तर पर तय कर लिया हो कि सरकार का रुख जानने के बाद रकम डालेंगे।
अंग्रेजों का शो प्लांट अब समस्या बना
बुधवार को विधानसभा में एक बार फिर लेंटाना खरपतवार चर्चा का विषय बना। पंचम विधानसभा में भी इस पर खूब चर्चा होती रही। यह एक तरह का शो प्लांट है जो अब पूरे देश के जंगलों में खरपतवार का रूप लेकर जंगल अमले के लिए समस्या बन गया है। इसके उन्मूलन में हर साल सैंकड़ों करोड़ खर्च किए जा रहे है। इस पर बुधवार को हुई चर्चा में मंत्री ने कहा लेंटाना को लेकर प्रधानमंत्री भी चिंतित हैं। इस प्लांट को अंग्रेज अपने साथ लेकर आए थे। जो एक तरह का शो प्लांट था। और वही आज देश की समस्या बन गया है। इसके उन्मूलन के लिए कैम्पा मद में प्रावधान करना पड़ा है। विधानसभाओं के हर सत्र में उन्मूलन में खर्च के आंकड़े पेश कर विधायक इसे आपदा में अवसर भी बताते रहे हैं। आज भी प्रबोध मिंज ने कहा कि अंग्रेज चले गए और बंदरबांट के लिए लेंटाना छोड़ गए।
कुत्ता या शेर
विधानसभा चुनाव में बुरी हार से कांग्रेसजन अभी उबर नहीं पाए हैं। कांग्रेस नेताओं में काफी निराशा है। इन सबके बीच राहुल गांधी की यात्रा से ठीक पहले प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता विकास बजाज के सवाल से पार्टी के अंदरखाने में खलबली मची है। उन्होंने एक्स पर राहुल से पूछ लिया था कि कार्यकर्ताओं को कुत्ते की तरह भौंकना है अथवा बब्बर शेर की तरह दहाडऩा है, कृपया मार्गदर्शन करे।
विकास के सवाल से असहज कांग्रेस संगठन उन्हें नोटिस थमाने की तैयारी कर रहा था कि अंबिकापुर की सभा में राहुल का जवाब भी आ गया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के कार्यकर्ता बब्बर शेर है, और वो घूम रहे हैं। अब खुद राहुल ने जवाब दे दिया है, तो विकास पर कार्रवाई शायद ही हो।
डाटा से किसी को डर तो नहीं?
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों सर्वेक्षण करने के लिए क्वांटिफाइबल डाटा आयोग का गठन किया। सितंबर 2019 में गठित करते समय इसकी समय सीमा छह माह निर्धारित की गई थी लेकिन इसने करीब 38 माह का वक्त लिया। 21 नवंबर 2022 को सेवानिवृत्त जिला न्यायाधीश छबिलाल पटेल ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी। पिछड़े वर्ग का हितेषी समझे जाने वाली तथा जातिगत जनगणना की मांग जोर-शोर से उठाने के बावजूद इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करना तत्कालीन सरकार ने जरूरी नहीं समझा। उस समय की राज्यपाल अनुसूईया उईके के पास आरक्षण संशोधन विधेयक पर हस्ताक्षर करने का दबाव जब बनाया गया तो उन्होंने कई सवाल किए थे और सरकार से क्वांटिफिएबल डाटा रिपोर्ट की मांग की। मगर सरकार ने रिपोर्ट राज्यपाल को भी नहीं सौंपी।
अब इस मुद्दे को विधानसभा में भाजपा विधायक अजय चंद्राकर ने उठाया है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने सदन में कहा कि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक करने पर विचार किया जाएगा।
आयोग की रिपोर्ट पिछली सरकार में सार्वजनिक क्यों नहीं की गई, इसे लेकर कई अटकलें हैं। इनमें से एक यह भी है कि पिछड़ा वर्ग के जिन समुदायों की जनसंख्या अधिक होने की धारणा बनी हुई है, वह आयोग का निष्कर्ष सामने आने से बदल जाएगी। उन वर्गों की राजनीति और प्रशासन में दखल कम होने की बात भी सामने आ सकती है दरअसल जो संख्या में अधिक हैं। यदि ऐसा हुआ तो कई स्थापित नेताओं की राजनीति पर संकट भी खड़ा हो जाएगा और नए वर्ग से नए नेता सामने आएंगे। लेकिन ये सिर्फ अटकले हैं। रिपोर्ट जब तक सार्वजनिक नहीं होगी, लोग ऐसी बातें करेंगे।
महोत्सव में तनाव के मामले...
जांजगीर में जाज्वल्य देव लोक महोत्सव और एग्रीटेक कृषि मेला इस बार खास रहा। तमाम वाणिज्यिक और शासकीय स्टॉल के साथ एक पंडाल लोगों की समस्याओं को सुनने के लिए भी लगाया गया था। यह स्टॉल एक अधिवक्ता ने अपनी संस्था की ओर से नि:शुल्क सेवा देने के लिए लगाई थी। वैसे तो मकसद कानूनी और सामाजिक मुद्दों पर सलाह देना था, मगर शिकायतें आईं तो पता चला कि अपनों के साथ तनाव की एक बड़ी वजह मोबाइल फोन है। फोन पर होने वाली शूटिंग, चैटिंग और कॉलिंग के चलते न केवल पति-पत्नी बल्कि परिवार के अन्य सदस्यों और दोस्तों के बीच भी संबंध बिगड़ रहे हैं। संचालक अधिवक्ता का दावा है कि तीन दिन में ऐसी 1200 से अधिक शिकायतें आईं। एक उदाहरण देखिए- युवती की शादी साल भर पहले हुई। उसे पति के स्मार्ट नहीं होने की शिकायत है। वह सोशल मीडिया के लिए रील्स बनाती है, जिसे लेकर दोनों के बीच तनाव बढ़ चुका है। नौबत तलाक तक पहुंच गई है। ऐसे ही दर्जनों लोगों ने शिकायत की है, जो मोबाइल के चलते ही बिगड़ते संबंधों की हैं। पंडाल के संचालकों ने अपनी तरफ से इन्हें जरूरी सलाह दी। मगर, महानगर ही नहीं, गांव-कस्बों में भी यह स्थिति चिंताजनक है।
इनकी कोई थाह नहीं!
भाजपा ने जिस तरह छत्तीसगढ़ से राज्यसभा के लिए अकेले उम्मीदवार का नाम तय करते हुए ऐसा तकरीबन अनजाना सा नाम छांटा है जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। नतीजा यह है कि लोकसभा के लिए भाजपा उम्मीदवारों के नामों पर जो अटकलें लग रही थीं, वे अब थम गई हैं, लोगों का अब यह मानना है कि दिल्ली के दिमाग की थाह लगा पाना मुश्किल है, और समंदर में सीप ढूंढने की जहमत क्यों उठाई जाए? लोगों को याद है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सारे 11 उम्मीदवार ऐसे नए छांटे थे जो न कि पहले किसी भी चुनाव से परे के थे, बल्कि बड़े नेताओं की रिश्तेदारी के भी बाहर के थे। भाजपा ने राजस्थान में पहली बार के एमएलए को मुख्यमंत्री बनाकर एक अलग किस्म की साख बनाई है कि लोगों की वरिष्ठता, उनकी जात, उनकी उम्र, उनका दबदबा कुछ भी मायने नहीं रखते, और पार्टी ही सबसे ऊपर होती है। हमेशा ही हाईकमान संस्कृति के लिए बदनाम रहती आई कांग्रेस आज की भाजपा को देखकर हीनभावना में खुदकुशी कर सकती है।
स्कूल, अस्पताल, ट्रैफिक और मेला
महानदी, पैरी और सोंढूर नदी के संगम पर लगने वाला राजिम मेला इस बार फिर कल्प कुंभ के नाम से आयोजित होगा, जैसा सन् 2005 से 2018 तक होता रहा। वैसे तो कई दशकों से यह माघी पुन्नी मेले के रूप में विख्यात रहा पर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद सन् 2001 में यहां मेले के अवसर पर राजीव लोचन महोत्सव होता था। कल्प कुंभ के साथ इस मेले की लोकप्रियता बढ़ती गई है। देशभर से साधु संत आने लगे हैं और भीड़ पहले के मुकाबले बहुत हो जाती है। इसके चलते नाच-गाने, झूले, खान-पान और दूसरे व्यापार के स्टॉल भी बढ़ते जा रहे हैं। मगर, इसी के चलते कुछ समस्याएं भी सामने आने लगी हैं।
इस बार मेले की तैयारी शुरू होने के बाद पास के हाईस्कूल के प्राचार्य ने एसडीएम को लिखा कि एक मार्च से 10वीं-12वीं की बोर्ड परीक्षाएं शुरू हो रही है। मेले में बहुत तेज लाउडस्पीकर बजते हैं। मौत का कुएं में चलने वाली कार, बाइक की कर्कश आवाज आती है, भीड़ का शोरगुल अलग। राजिम के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी चिकित्सक ने लिखा कि मेला जहां लगता है, उसके पास अस्पताल है। अस्पताल के 100 मीटर की दूरी को साइलेंस जोन घोषित किया गया है, पर यहां भारी शोरगुल होता है। मरीज परेशान होते हैं। थानेदार ने भी लिखा मेले तक पहुंचने का रास्ता चौड़ा नहीं है। मेले में लगने वाले स्टाल के सामान ट्रकों में आते हैं। पार्किंग की जगह नहीं मिलती। कई बार घंटों जाम लग जाता है। वीआईपी आते हैं, तब तो स्थिति संभालने में भारी दिक्कत होती है।
कोलाहल और यातायात की यह चिंता एक साथ अलग-अलग पत्रों में की गई। महत्वपूर्ण यह है कि पत्र लिखने वाले सभी सरकार के किसी न किसी विभाग के लोग थे। ऐसे में मेले की तैयारी कर रहे स्थानीय प्रशासन को बात गंभीरता से सुननी पड़ी। मगर, नई जगह तय करने की कई दिक्कतें थीं। मेले की नई जगह पर जमीन को समतल करना, बिजली लाइन खींचना, पेयजल की व्यवस्था करना आदि। पर सब किया जा रहा है। मगर, आखिरकार नई जगह तलाश कर ली गई है, तैयारी वहीं चल रही है।
स्टेशन में जवान का दम तोडऩा..
भारतीय रेल देशभर के 508 स्टेशनों को अमृत भारत योजना में शामिल कर उनके पुनर्विकास पर अरबों रुपये खर्च कर रही है। एसईसीआर के रायपुर सहित 9 स्टेशन भी इनमें शामिल हैं। पिछले साल अगस्त महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसकी आधारशिला रखी थी। कुछ स्टेशनों की ड्राइंग डिजाइन और मास्टर प्लान का काम शुरू हो चुका है।
शनिवार को रेलवे प्रोटेक्शन फोर्स का एक जवान अपनी ही सर्विस गन से गोली चल जाने के कारण घायल हो गया। उसकी मौत हो गई। एक दूसरे यात्री को भी गोली लगी, जिसकी हालत गंभीर है। इन्हें जब घटना के बाद तत्काल अस्पताल ले जाने की जरूरत थी तो स्टेशन में एंबुलेंस ही उपलब्ध नहीं थी। जैसे-तैसे ऑटो रिक्शा में उन्हें हॉस्पिटल ले जाया गया। रायपुर, बिलासपुर जैसे बड़े स्टेशनों से रोजाना 50 से 60 हजार यात्री गुजरते हैं। मगर, इन्हें इमरजेंसी स्वास्थ्य सुविधा नहीं मिलती है। दिसंबर महीने में ग्वालियर स्टेशन पर एक घटना हुई थी, जिसकी देशभर में चर्चा हुई। दिल्ली से आ रहे एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर को हार्ट अटैक के कारण रास्ते में उपचार नहीं मिला। ग्वालियर स्टेशन पर उनके गंभीर हालत में पहुंचने की पहले से सूचना रेलवे को दे दी गई थी, इसके बावजूद स्टेशन पर एंबुलेंस नहीं पहुंचा। उसे तत्काल हॉस्पिटल ले जाने के लिए एक हाईकोर्ट जज की कार को युवाओं ने बलपूर्वक अपने कब्जे में लिया और उन्हें अस्पताल पहुंचाया। हालांकि उस प्रोफेसर की जान नहीं बचाई जा सकी पर आरपीएफ ने इन युवाओं के खिलाफ डकैती का जुर्म दर्ज कर लिया। इस बार हादसे का शिकार उसी आरपीएफ का एक जवान हुआ है। केवल आम यात्री नहीं, रेलवे के सैकड़ों की संख्या में तैनात स्टाफ को भी इमरजेंसी सेवाओं की जरूरत कभी भी पड़ सकती है। स्टेशनों में वर्ल्ड क्लास सुविधाएं जब मिलेगी, तब मिले, पर आज तो आवश्यक सेवा भी रेलवे मुहैया नहीं करा पाती है।
जाति जनगणना पर शंकराचार्य
रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दौरान शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद के बयानों को लेकर बड़ा विवाद छिड़ा था। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और टीवी चैनलों पर लगातार बयान दिए। वे मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा निर्माण पूरा हुए बिना किये जाने को गलत मान रहे थे। वे यह भी ठीक नहीं समझते थे कि धर्माचार्यों की जगह राजनेता से मुख्य पूजा कराई जाए। अन्य शंकराचार्यों की तरह प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में वे भी शामिल नहीं हुए। भाजपा और उसके सहयोगी संगठन शंकराचार्य के बयानों से असहज थे, लेकिन धर्मगुरू के खिलाफ सीधे बयान देने से बच रहे थे। अब ऐसे समय में जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी छत्तीसगढ़ की यात्रा पर हैं और वे जातिगत जनगणना की मांग को खास तौर से उठा रहे हैं, रायपुर में शंकराचार्य ने इस मांग को औचित्यहीन बताया है। शंकराचार्य के मुताबिक जो जिस जाति को मानता है मानने दिया जाए। भाजपा ने इस पर प्रतिक्रिया तुरंत दी है। उसने कहा कि कांग्रेस अपने अस्तित्व को बचाने के लिए यह मांग उठा रही है, जबकि 2011 में उसने जनगणना कराने के बावजूद जाति के आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए।
वैसे शंकराचार्य के बयान में सिर्फ जाति जनगणना का विरोध नहीं था, उन्होंने यह भी कहा था कि किसी को धर्म की राजनीति भी नहीं करनी चाहिए। मतलब, कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए वे कुछ-कुछ कह रहे हैं।
राज्यसभा का नाम, लोकसभा की झलक?
राज्यसभा की एक सीट पर ऐसे प्रत्याशी का चुनाव कर, जिनका नाम चर्चा में नहीं था, भाजपा ने चौंकाने का सिलसिला जारी रखा। यह पिछली लोकसभा चुनाव के टिकट वितरण में देखा गया, काफी कुछ इस विधानसभा चुनाव के टिकट बांटने में और मंत्रिमंडल के गठन में भी। विधानसभा में मिली शानदार सफलता के बाद लोकसभा टिकट के लिए दावेदारी बढ़ गई है। एक-एक सीट से दर्जनभर या उससे अधिक गंभीर दावेदार हैं, नाम तो 50 पार चल रहे हैं। नए दावे इसी उम्मीद से आ रहे हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि हाल के चुनावों में किए जा रहे प्रयोग का सिलसिला लोकसभा टिकट के वितरण में जारी रहेगा, जीती हुई सीटों पर भी। इससे फर्क नहीं पड़ता कि जीत का अंतर कितना था। चिंता उन 9 सांसदों की है, जिन्हें यह पता नहीं है कि उनको रिपीट किया जाएगा या 2019 का दोहराव किया जाएगा।
रिश्वतखोरों को श्राप
वैसे तो करंसी पर लिखा जाना अपराध है, पर लोग यह जुर्म करते ही रहते हैं। वाट्सअप ग्रुप के उकसाने वाले मेसैजेस की तरह इसका भी मूल स्रोत कहां है, यह पता नहीं चलता। बाजार में एक बंदे को यह 200 रुपये का नोट मिला, जिसमें लिखा है- रिश्वत के नोटों से महल तो बना सकते हो, मगर अपने बच्चों का भविष्य नहीं- दोगला बाबा।
देवेन्द्र की उम्मीदवारी के मायने
राज्यसभा के लिए सरोज पांडेय की जगह भाजपा ने राजा देवेन्द्र प्रताप सिंह का नाम घोषित किया, तो हर कोई चौंक गए। खुद देवेन्द्र को भी इसका अंदाजा नहीं था। वो ओडिशा में थे।
भाजपा के प्रमुख नेता तो पूर्व संगठन मंत्री रामप्रताप सिंह का नाम फाइनल मानकर चल रहे थे। कुछ लोगों का अंदाजा था कि लक्ष्मी वर्मा अथवा रंजना साहू में से किसी को तय किया जा सकता है। मगर देवेन्द्र के नाम के ऐलान के बाद उनके बारे में जानकारी जुटाने की कोशिशें शुरू हुई।
पार्टी के अंदरखाने से यह खबर उड़ी कि देवेन्द्र उत्तरप्रदेश के पूर्व विधायक हैं। लेकिन कुछ देर बाद स्थिति साफ हुई कि देवेन्द्र प्रताप रायबरेली वाले नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ के ही हैं। रायगढ़ राजघराने के मुखिया देवेन्द्र प्रताप सिंह संघ परिवार और अनुसूचित जनजाति मोर्चा में ही सक्रिय रहे हैं। वो लैलूंगा से टिकट चाह रहे थे, लेकिन पार्टी ने उनकी जगह सुनीति राठिया को प्रत्याशी बना दिया।
वैसे देवेन्द्र प्रताप सिंह का परिवार कांग्रेस से जुड़ा रहा है। उनके पिता राजा सुरेन्द्र कुमार सिंह राज्यसभा के सदस्य रहे हैं, और दिवंगत पूर्व केन्द्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल के नजदीकी माने जाते थे। देवेन्द्र की बहन उर्वशी सिंह भी कांग्रेस संगठन में कई पदों पर रही हैं। देवेन्द्र खुद कांग्रेस में थे, बाद में वो भाजपा में चले गए। वो संघ परिवार और अनुसूचित जाति मोर्चा में काम करने लगे।
बताते हैं कि देवेन्द्र को प्रत्याशी बनाकर भाजपा ने एक बड़ा दांव खेला है। देवेन्द्र गोंड़ आदिवासी समाज से आते हैं, और समाज के भीतर उनका काफी सम्मान है। प्रदेश में आदिवासी समाज में सबसे ज्यादा गोड़ बिरादरी के हैं। पार्टी के रणनीतिकारों ने देवेन्द्र को प्रत्याशी बनाकर गोड़ आदिवासी समाज को साधने की कोशिश की है। इसका फायदा न सिर्फ रायगढ़ बल्कि कोरबा और सरगुजा लोकसभा में भी मिल सकता है।
कोरबा में पिछले लोकसभा चुनाव में पाली-तानाखार विधानसभा सीट में 60 हजार वोटों से पिछड़ गई थी, इस वजह से भाजपा प्रत्याशी चुनाव हार गए। विधानसभा चुनाव में गोंड़ बिरादरी पर पकड़ रखने वाली पार्टी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के वोटों का प्रतिशत बढ़ा है। पाली-तानाखार सीट पर गोंगपा का कब्जा हो गया है। ऐसे में कहा जा रहा है कि देवेन्द्र को राज्यसभा में भेजने से गोड़ समाज के वोटों का रूख भाजपा की तरफ आ सकता है। क्या वाकई ऐसा होगा, यह तो लोकसभा चुनाव में पता चलेगा।
न्याय यात्रा की चर्चा सदन में भी
राहुल गांधी की न्याय यात्रा के छत्तीसगढ़ पड़ाव की चर्चा विधानसभा में भी हुई। इस पर भाजपा के विधायकों ने तंज कसे तो कांग्रेस के विधायक बचाव के मुद्रा में रहे। दरअसल, सोमवार को कांग्रेस के ज्यादातर सदस्य सदन से अनुपस्थित रहे। ऐसे में भाजपा विधायकों ने कांग्रेस पर जमकर तंज कसे। विधायक अजय चंद्राकर ने कहा पूरा विपक्ष न्याय यात्रा में जुटा है। सदन की चिंता करनी छोड़ पूरी पार्टी यात्रा पर निकली है। राजेश मूणत ने कहा, पूरी पार्टी युवराज के स्वागत में लगी है। भूपेश बघेल का नाम हटाकर अपना नाम लिखने की होड़ मची है। इस पर जब अजय चंद्राकर ने कहा कि यात्रा पर भी आप स्थगन ले आइए तो कांग्रेस के सदस्य लखेश्वर बघेल ने जवाब दिया कि सदन की कार्रवाई के लिए हम मौजूद हैं।
राजिम कुंभ में रहेगी रौनक
रामलला प्राण-प्रतिष्ठा समारोह से चारों शंकराचार्य दूर रहे, और कुछ विषयों को लेकर सार्वजनिक तौर पर मोदी सरकार की आलोचना भी करते रहे। मगर राजिम कुंभ में शंकराचार्यों के शामिल होने की उम्मीद है।
बताते हैं कि पर्यटन मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने व्यक्तिगत तौर पर उनसे मिलकर राजिम कुंभ में शामिल होने का न्यौता दिया है। वे पहले भी राजिम कुंभ में शामिल होते रहे हैं। न सिर्फ शंकराचार्य बल्कि बागेश्वर धाम के पं. धीरेन्द्र शास्त्री, कथा वाचक पं. प्रदीप मिश्रा, साध्वी रितम्भरा सहित अन्य प्रतिष्ठित अखाड़ों के प्रमुख भी रहेंगे। बृजमोहन अग्रवाल ने पिछले दिनों ने अमरकंटक जाकर वहां संतों से मुलाकात कर राजिम कुंभ में शामिल होने का न्यौता दिया था जिसे उन्होंने मान लिया है। कुल मिलाकर पांच साल बाद होने वाले राजिम कुंभ में इस बार रौनक ज्यादा रहेगी।
राज्यसभा कागज तैयार
राज्य वनौषधि बोर्ड के पूर्व चेयरमैन रामप्रताप सिंह को राज्यसभा में भेजे जाने का भाजपा में हल्ला है। इसकी पर्याप्त वजह भी है। रामप्रताप जशपुर इलाके के रहने वाले हैं, और सीएम विष्णुदेव साय के करीबी भी माने जाते हैं। लेकिन उन्होंने पिछले दिनों राज्यसभा के नामांकन के लिए जरूरी कागजात तैयार कराए, तो पार्टी के भीतर कानाफूसी शुरू हो गई।
कुछ इसी तरह की तैयारी वर्ष 2018 में धरमलाल कौशिक ने भी कर रखी थी। उन्होंने तो अधिकृत घोषणा से पहले नामांकन फार्म मंगवा लिए थे। मीडिया में इसकी खबर लीक हो गई, और पार्टी ने आखिरी क्षणों में कौशिक की जगह सरोज पाण्डेय को प्रत्याशी बना दिया। रामप्रताप ने नामांकन तो नहीं खरीदे हैं, लेकिन आईटी रिटर्न आदि पेपर तैयार करने के बाद से पार्टी के भीतर राज्यसभा में जाने का हल्ला उड़ा है।
रामप्रताप सिंह की दावेदारी इसलिए भी मजबूत मानी जा रही है कि वो संगठन महामंत्री के रूप में काफी मेहनत करते रहे हैं। रामप्रताप सिंह पिछड़ा वर्ग से आते हैं। खास बात यह है कि राज्य बनने के बाद अब तक भाजपा से पिछड़ा वर्ग से एक भी नेता राज्यसभा में नहीं गए हैं। वैसे चिंतामणि महाराज, और पिछड़ा वर्ग से महिला नेत्रियों के नाम की भी चर्चा है। चिंतामणि को तो विधानसभा चुनाव से पहले आश्वासन भी दिया जा चुका है। देखना है आगे क्या होता है।
अपनों ने ही समझाईश दी विधानसभा में
विधानसभा में कुछ नए विधायक बेहतर परफार्मेंस दिखा रहे हैं। कुछ को नियम प्रक्रिया की जानकारी कम है। ऐसे ही विपक्ष के एक विधायक अटल श्रीवास्तव को नाराजगी का भी सामना करना पड़ा। अटल पर नाराजगी आसंदी ने नहीं बल्कि पूर्व सीएम भूपेश बघेल ने जताई थी।
हुआ यूं कि प्रश्नकाल में सदन की कार्रवाई चल रही थी, और इसी बीच अध्यक्षीय दीर्घा में अटल श्रीवास्तव के कोई परिचित बैठे हुए थे। अटल सदन की कार्रवाई के बीच उनके पास पहुंच गए, और उनसे बतियाने लगे। यह देखकर भूपेश बघेल गुस्से में आ गए, उन्होंने अटल पर नाराज हुए तब कहीं जाकर वो अपनी सीट पर जाकर बैठे।
दूसरी तरफ, बेलतरा के विधायक सुशांत शुक्ला पहली बार अपना नंबर आने के बाद खड़े हुए, और सवालों की बौछार लगा दी। तब स्पीकर डॉ. रमन सिंह उन्हें रोकते हुए कहा कि आप एक-एक कर तीन सवाल पूछ सकते हैं, और जरूरी होने पर मैं और भी अनुमति दूंगा। इससे परे कुछ नए विधायक रिकेश सेन, भावना वोहरा और अनुज शर्मा का परफार्मेंस भी बेहतर दिखा है।
वॉल पेंटिंग की लड़ाई
राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा छत्तीसगढ़ में प्रवेश करते ही जिस तरह से विवादों में घिर गई उसने कांग्रेस के लिए अच्छा संकेत नहीं दिया। रायगढ़ के रेंगालपाली सभा स्थल के आसपास की दीवारों में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और विधायक देवेंद्र यादव के नाम पर जिंदाबाद के नारे लिखे गए थे, जिन्हें रातों-रात मिटा दिया गया और उसकी जगह विधायक उमेश पटेल के नारे लिख दिए गए। अब जब इस समय रायगढ़ से आगे खरसिया की ओर राहुल गांधी आगे बढ़े होंगे तो उन्हें दीवारों पर पोती गई कालिख जरूर नजर आई होगी। इसके लिए क्या उमेश पटेल के समर्थक जिम्मेदार हैं, यह तो उनका बयान सामने आने पर ही मालूम होगा। इधर, बीते 8 फरवरी को जब छत्तीसगढ़ में यात्रा में प्रवेश किया तो जनसभा के वीआईपी गेट से एंट्री नहीं मिलने पर पूर्व विधायक प्रकाश नायक भी नाराज होकर धरना देने लग गए थे। उम्मीद के मुताबिक इसमें भीड़ भी नहीं पहुंची। विधानसभा चुनाव में भले ही परिणाम बहुत अच्छा नहीं रहा लेकिन कांग्रेस के असर वाले खरसिया, लैलूंगा, धर्मजयगढ़ से भी नहीं लाई जा सकी। अब जब कोरबा, सक्ती, कटघोरा होते हुए अंबिकापुर की ओर यात्रा बढ़ रही है तब प्रदेश के नेताओं ने कल आनन-फानन में सात पूर्व विधायकों सहित 11 पदाधिकारियों को स्थानीय नेताओं की मॉनिटरिंग पर लगा दिया है। प्रदेश कांग्रेस के नए प्रभारी महासचिव सचिन पायलट के लिए यह कोई नया अनुभव नहीं होगा। आखिर राजस्थान में भी पिछले 5 साल उनके और गहलोत के बीच इसी तरह की खींचतान मची हुई थी।
लग्जरी ट्रेन की बिरयानी
पिछले दिनों रानी कमलापति स्टेशन से जबलपुर जा रहे रेल यात्री को बुक की गई अपनी बिरयानी की थाली में मरा हुआ कॉकरोच मिला। उन्होंने अटेंडेंट से शिकायत की। कैटरिंग स्टाफ के लोग आकर माफी मांगने लगे। मगर यात्री ने इसे मामूली चूक नहीं माना और आईआरसीटीसी के सोशल मीडिया पेज पर तस्वीरों के साथ शिकायत कर दी। अब पता चला है कि आईआरसीटीसी ने सेवा देने वाले कैटरिंग कंपनी पर 20 हजार रुपए का जुर्माना लगाया गया है। रेलवे बोर्ड ने भी अलग से 25 हजार रुपए ठोक दिया है। यह वाकया महंगी टिकट वाले वंदे भारत एक्सप्रेस का है। इसलिए साफ कोच, शीशे, सीट खिड़कियां देखकर यह मान लेना ठीक नहीं है कि वीआईपी ट्रेनों में सारी सुविधाएं भी फर्स्ट क्लास होगी। कम से कम खाने पीने का सामान तो एक बार जरूर चेक कर लेना चाहिए, चाहे किसी भी क्लास में सफर कर रहे हों।
घरेलू गैस की परवाह नहीं
भाजपा ने विधानसभा चुनाव के समय महिलाओं से जुड़ी दो बड़ी घोषणाएं की थी। इनमें से एक महतारी वंदन योजना पर तेजी से काम हो रहा है और अब तक लाखों लोग फॉर्म भर चुके हैं। सिलसिला पूरे प्रदेश में चल रहा है। दूसरा वादा 500 रुपए में गैस सिलेंडर देने का था। विपक्ष की प्रतिक्रियाओं में इस दूसरी घोषणा को लेकर सरकार को कटघरे में लिया जा रहा है, लेकिन 1000 रुपए प्रतिमाह मिलने वाले लाभ ने रियायती घरेलू गैस के वादे की ओर लोगों का ध्यान ही हटा दिया है। इस वित्तीय वर्ष में इस पर अमल की गुंजाइश भी कम दिखाई दे रही है। सरकार की ओर से बार-बार यह कहा जा रहा है कि हम मोदी की गारंटी को 5 साल में पूरी करेंगे। सारी गारंटियां एक साथ पूरी हो जाने की उम्मीद करना शायद ज्यादती हो। वैसे घोषणाओं में एक यह भी था कि प्रतिवर्ष एक लाख युवाओं को नौकरी दी जाएगी। बजट में इसका भी कोई जिक्र नहीं है।
दिल्ली से घर वापिसी
रमन सरकार के तीसरे और भूपेश सरकार के पिछले कार्यकालों में एक ऐसा दौर था कि राज्य के अफसर खासकर आईएएस सेंट्रल डेपुटेशन पर जाने लगे थे। कुछ को सरकार में अफसरों की कमी बताकर रोकती रहीं। फिर भी बीते वर्षों में सेंट्रल डेपुटेशन में छत्तीसगढ़ का कोटा पैक हो गया। और अब वापस हो रहे,या कराए जा रहे। क्या प्रदेश में ब्यूरोक्रेसी के अच्छे दिन लौट रहे हैं। इन्हीं चर्चाओं के बीच केंद्र सरकार ने आईएएस सोनमणि बोरा प्रतिनियुक्ति से वापसी के आदेश जारी कर दिए हैं। 1999 बैच के अफसर बोरा प्रमुख सचिव स्तर के अफसर है। केंद्र से रिलीव होने के बाद नियमानुसार वें लंबी छुट्टी का लाभ लेते हैं या ज्वाइन करेंगे यह देखना होगा। इससे पहले इस माह के शुरू में केंद्र ने एसीएस स्तर की अफसर रिचा शर्मा को भी छत्तीसगढ़ के लिए रिलीव कर दिया है। उन्होंने भी अभी ज्वाइन नहीं किया है। समझा जा रहा है कि दोनों ही बजट सत्र के बाद महानदी भवन में ज्वाइन करेंगे। दोनों ही अफसर कांग्रेस शासन काल में केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे। उससे पहले बघेल सरकार बोरा को कम महत्व के विभाग का प्रभार देती रही है। और प्रतिनियुक्ति के लिए भी उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ी थी। अब राज्य में बदली परिस्थिति में बोरा को अच्छे अवसर मिलने के संकेत हैं। समझा जा रहा है कि उन्हें राजस्व विभाग में भू प्रबंधन से संबंधित जिम्मेदारी दी जा सकती है।
उमेश पटेल का इंतजाम कमजोर ?
कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ओडिशा से होते हुए छत्तीसगढ़ पहुंची, तो रायगढ़ जिले के रेंगालपाली में पहला पड़ाव था। मगर यात्रा का स्वागत फीका रहा। जबकि रायगढ़ इलाके में राहुल के जोरदार स्वागत की रणनीति बनाई गई थी, और पूर्व मंत्री उमेश पटेल को जिम्मेदारी दी गई थी। सुनते हैं कि प्रदेश प्रभारी सचिन पायलट ने उमेश पटेल पर जमकर नाराजगी जताई है।
बाद में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष दीपक बैज, और उमेश पटेल ने अपना गुस्सा जिले और ब्लॉक के पदाधिकारियों पर निकाला। पहले रेंगालपाली में हजारों लोगों के जुटने की उम्मीद जताई जा रही थी। लेकिन राहुल पहुंचे, तो हजार लोग भी नहीं थे। दो दिन के ब्रेक के बाद यात्रा 11 तारीख से फिर आगे बढ़ेगी। इसमें पर्याप्त संख्या में लोग मौजूद रहे, इस दिशा में कोशिश चल रही है। देखना है आगे क्या होता है।
ओपी के तेवरों की चर्चा
पहली बार विधायक, और मंत्री बने अरुण साव, विजय शर्मा व वित्त मंत्री ओपी चौधरी का विधानसभा में अब तक का प्रदर्शन बेहतर रहा है। साव और विजय शर्मा तो सवालों से घिरे रहे, लेकिन उन्होंने अपने जवाब से सदस्यों को निरुत्तर कर दिया। स्वास्थ्य मंत्री श्यामलाल जायसवाल भी ठीक ठाक नजर आए।
दूसरी तरफ, वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने बजट भाषण में पिछली सरकार पर हमला करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। बजट भाषण में उनके तेवर देखकर सत्तापक्ष के सदस्य भी खामोश रह गए। उन्होंने यहां तक कह दिया कि छत्तीसगढ़ के विकास को ग्रहण लग गया था। भ्रष्ट और स्वार्थपरक ताकतों ने छत्तीसगढ़ को दबोचकर रख दिया था। लेकिन लोकतंत्र की ताकत ने इन नकारात्मक शक्तियों को पराजित कर दिया। कुल मिलाकर चौधरी के तेवर की खूब चर्चा रही।
हेलमेट जब आदत बन जाए
कुछ दिन पहले दुर्ग जिला प्रशासन और पुलिस ने दोपहिया वाहन चालकों के लिए हेलमेट पहनना अनिवार्य कर दिया। अनिवार्य तो पहले से है, पर नहीं पहनने वालों पर कार्रवाई नहीं हो रही थी। अब जगह-जगह चेकिंग की जा रही है, विशेषकर रायपुर हाईवे पर। नियम नहीं मानने पर जुर्माना लग रहा है। इस अभियान का असर दिखाई दे रहा है। इस चेकिंग प्वाइंट पर कार्रवाई के लिए पुलिस तैनात हैं लेकिन अधिकांश बाइक सवार हेलमेट पहने हुए मिले। जिला पुलिस का तो दावा है कि 80 प्रतिशत दोपहिया चालक अब हेलमेट पहन रहे हैं। हो सकता है कि ऐसा कार्रवाई के डर से हो। जब पुलिस की अपील के बिना खुद की हिफाजत के खयाल से लोग हेलमेट को अपनी आदत बना लें, तो मुहिम सफल होगी।
डीएमएफ रकम किसने बहाई..
कोविड काल के दौरान शिक्षा विभाग में हुई बिना टेंडर खरीदी और आत्मानंद स्कूलों के उन्नयन के नाम पर भारी भरकम रकम खर्च कर देने का मामला विधानसभा में उठा। स्कूल शिक्षा मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने चार जिला शिक्षा अधिकारियों को निलंबित करने की घोषणा की। आशाराम नेताम जैसे कुछ विधायकों ने सवाल उठाया कि क्या डीईओ को पॉवर था कि इतनी रकम खर्च कर डालते। फिर बताया गया कि जिलों के कलेक्टर के निर्देश पर हुई। नेताम का सवाल था कि फिर कलेक्टरों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है? एक मामला कांकेर जिले का था जहां समग्र शिक्षा और डीएमएफ से 5 करोड़ 36 लाख रुपये खर्च कर दिए गए। मंत्री ने स्पीकर के सुझाव पर अगले सत्र में श्वेत पत्र प्रस्तुत करने की बात कही है।
सारी बातें तो जांच से साफ हो जाएगी, लेकिन शिक्षा विभाग के कुछ अधिकारी बता रहे हैं कि बिना टेंडर खरीदी के अलावा जैम के जरिये की गई खरीदी में भी इसी तरह की गड़बड़ी की गई। जिला प्रमुख के रूप में कलेक्टर ने आदेश दिया तो स्वाभाविक रूप से उनके ऊपर कार्रवाई की मांग हो रही है, मगर खेल इससे बड़ा था। गहराई से जांच यदि हुई तो यह भी सामने आएगा कि किसी जिले में किस मंत्री का प्रभार था, उनके किस करीबी को सप्लाई का काम मिला। जानकारी के मुताबिक विभाग के मंत्री के बंगले से भी दबाव आता था। कलेक्टरों के पास फोन आते रहे, आर्डर निकलते रहे।
सन् 2018 में जब कांग्रेस की सरकार आई तो डीएमएफ की जिला समितियों के अध्यक्ष जिलों के प्रभारी मंत्री बना दिये गए थे। तब केंद्र ने आपत्ति की। यह कहा कि इससे राशि के वितरण में राजनीति और भ्रष्टाचार की गुंजाइश बढ़ जाएगी। कलेक्टर को समिति का अध्यक्ष बनाने का निर्देश आया। मगर, इसके बाद भी दुरुपयोग नहीं रुका। कांग्रेस शासनकाल के दौरान कोरबा में हुई खरीदी की पोल खुद तत्कालीन मंत्री जयसिंह अग्रवाल ने खोली थी। अब सरकार बदलने के बाद तो अन्य जिलों से भी ऐसी खबरें बाहर आ रही हैं।
केलो का उद्घाटन तो हो चुका..
सरकारी रकम का लापरवाही से खर्च का मामला किसी एक सरकार के दौरान नहीं होता है। केलो परियोजना को ही लीजिए। 17 साल पुरानी इस योजना में अब तक 900 करोड़ रुपये से अधिक फूंके जा चुके हैं। सन् 2007 में छत्तीसगढ़ के दिग्गज नेता स्व. दिलीप सिंह जूदेव के नाम पर इसका भूमिपूजन किया गया था। खर्च होते रहे लेकिन आउटपुट खर्च के मुकाबले आज तक जीरो है। रायगढ़ की धरती से आने वाले वित्त मंत्री ओपी चौधरी को इसका दर्द रहा होगा, इसलिये बजट में करीब 10 साल बाद इसके लिए प्राथमिकता से राशि मंजूर की गई। बस एक जानकारी और दे दें, कि सन् 2014 में चुनाव के ठीक पहले तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने योजना को पूरी बताकर डैम का उद्घाटन कर दिया था। किसी आधी-अधूरी योजना का चुनाव के पहले फीता काटना कोई नई बात नहीं है। इसलिए, पीछे न जाकर उम्मीद रखें कि इस बार यह परियोजना पूरी होगी और रायगढ़ जिले के 167 और सक्ती जिले के 8 गांवों को दशकों से लंबित सिंचाई सुविधा इसी सरकार के कार्यकाल में मिल जाएगी।