विचार / लेख

अभी समय है चेत जाईये.. हमें न समझाइए बल्कि ख़ुद समझिये
24-Jun-2021 8:06 PM
अभी समय है चेत जाईये.. हमें न समझाइए बल्कि ख़ुद समझिये

-सिद्धार्थ ताबिश
पिछली पोस्ट पर कुछ भाई लोग "कथा" बांच रहे हैं.. कह रहे हैं कि "मुसलमान बहुत ज़्यादा अपने धर्म का प्रचार प्रसार करते हैं मगर हम बेचारे कर ही नहीं पाते हैं, दिमाग़ में तो हमारे भी आता है कि मुसलमानों को घर बुलाएं और उनको अपने धर्म की अच्छी अच्छी बातें बताएं मगर मुसलमानों का गोत्र ही नहीं पता होता है हमें, तो कैसे घर बुला कर उनके साथ पानी पिएं हम? बाक़ी हम भी चाहते हैं कि अपने भारत के ग़रीब और निम्न वर्ग के लोगों को गले लगाएं और बताएं कि हम सब एक हैं मगर गले लगाने से पहले हम सर नेम देखकर ठिठक जाते हैं.. समझ नहीं आता है इसको गले लगा लेंगे तो कहीं "अधर्मी" न हो जाएं.. फिर शुद्धिकरण का झंझट.. इसीलिए इन सबको हम देशद्रोही, अल-तक़्क़ईया वाला बोलकर सारी झंझट से छुट्टी पा लेते हैं.. क्यूंकि इन्हें अगर बुला भी लेंगे अपने धर्म मे तो इन्हें रखेंगे कहाँ? फ़ालतू की हमारे बड़े बड़े घरों के आसपास नई "शूद्र' बस्ती बनानी पड़ेगी.. इसीलिए हम लोग इन्हें मुहं ही नहीं लगते.. और फ़ेसबुक पर भी अपनी ही जाति और कुल के लोगों से दोस्ती करके आपस मे देश की बदहाल स्थिति और जाति पाँति के इस बंधन पर अफ़सोस ज़ाहिर कर लेते हैं.. अब दलितों के साथ तो जा कर हम ये सब डिसकस नहीं करेंगे न? उनसे करके क्या फ़ायदा? वो समझ ही नहीं पाएंगे, उनके पास ज्ञान कहाँ होता है?"

ठीक है.. हम समझ गए आपकी परेशानी.. मगर अब आप ये जान लीजिए कि "कथा" का वक़्त ख़त्म हो चुका है.. हमें ये सब न समझाइए.. हमें समझ के क्या करना है ये सब आप बातईये? आपकी दलीलें कि "शुद्र ये होता है, सेवाभाव इसे कहते हैं, फ़लाने ऋषि ये कहते थे, फ़लाने संत ने वर्ण व्यवस्था बहुत दूर दृष्टि के आधार पर की, हम सब एक हैं और एक ही ग्लास में पानी पीते हैं.. बस मीडिया और मुग़लों ने हमें बदनाम कर रखा है.. हमारे घर मे ऐसा नहीं होता है, हमारे गांव में ऐसा नहीं होता है, हमारे पापा शूद्र को कीर्तन में बुलाते थे, हमारी दादी कुवां खोद के शूद्रों को पानी देती थीं.. हमारे दादा सूर्यनमस्कार के बाद मलिन बस्ती में जाकर रोज़ उनके बच्चों को गले लगाते थे".. बस कीजिये.. बस कीजिये.

बस.. अब एक काम कीजिये.. अपनी उंगली फैलाइये.. और गिनिए.. कि कितनी दलित बहुवें आपके घर मे, परिवार में, ख़ानदान में हैं.. गिनिए कि कितने शूद्रों के यहां आपने अपनी बेटी ब्याही है.. गिनिए कि आपके बेटे या बेटी का कौन सा शूद्र दोस्त है जो आपके घर आ कर ठहरता है.. आपके परिवार का हिस्सा बनकर रहता है.. घर मे न मिले कोई, तो ख़ानदान में ढूँढिये, ख़ानदान में न मिले तो गांव और कस्बे में ढूँढिये.

बस.. इस गिनती का जो परिणाम होगा वही असल और व्यवहारिक ज़िन्दगी है आप लोगों की.. वही हक़ीक़त है आपकी और वही आपके समाज की असलियत है और वही सारा निचोड़ होगा भविष्य में आपके पतन या विश्वगुरु बनने का.

बाकी सब कुछ आपकी "कथा" है.. और कथा में हमें कोई रुचि नहीं है.. और अगर अब भी आप यही कथा सुनाकर सच्चाई से मुहं मोड़ते रहेंगे तो आपका भविष्य सिर्फ़ अंधकारमय नहीं बल्कि पूरी तरह से विध्वंसक होगा.

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