विचार / लेख

लोकसभा चुनाव 2024 के केंद्रीय मुद्दे
30-Apr-2024 2:11 PM
लोकसभा चुनाव 2024 के केंद्रीय मुद्दे

-डॉ. आर.के. पालीवाल

लोकतंत्र में सत्ताधारी दल हमेशा असली मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश करता है ताकि अपने खिलाफ एंटी इनकंबेंसी फैक्टर का प्रभाव कम कर सके। दूसरी तरफ सत्ता पाने के लिए विपक्षी दलों की कोशिश रहती है कि जनता को हर दिन होने वाली परेशानियों को जनता के बीच रखकर मतदाताओं को सत्ताधारी दल से दूर कर अपनी तरफ आकर्षित करे। एक शिक्षित,समृद्ध और जागरूक लोकतंत्र में यह आदर्श संभव है लेकिन हमारे देश में अधिकांश मतदाता अपने मताधिकार की सही अहमियत नहीं समझते।

ज्यादातर मतदाता धर्म और जातिगत भावनाओं के आवेग में बहक जाते हैं या फिर अपने थोड़े से आर्थिक लाभ के लिए किसी भी दल या प्रत्याशी को अपना मत दे देते हैं। आम भारतीय मतदाता के लिए लोकतांत्रिक मूल्य, विचारों की अभिव्यक्ति की आज़ादी, नागरिक की गरिमा, धर्मनिरपेक्षता, जांच एजेंसियों की निष्पक्षता और संवैधानिक संस्थाओं की स्वायत्तता आदि मुद्दे मायने ही नहीं रखते। यही कारण है कि राजनीतिक दल भी इन असली मुद्दों के प्रति घोर उदासीनता बरतते हैं और आम मतदाताओं को चमकीले हवाई मुद्दों में उलझाने में ज्यादा ऊर्जा और समय देते हैं।

    आम मतदाताओं के लिए लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों द्वारा शासित दो प्रदेशों दिल्ली और झारखंड के मुख्यमंत्रियों अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी और दूसरी तरफ जिन लोगों पर भ्रष्टाचार के बड़े आरोप लगे थे उनके सत्ताधारी भाजपा से गठबंधन के बाद उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर विभूषित करने का भी कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ा। किसी परिपक्व लोकतन्त्र में सत्ता का ऐसा दोहरा मापदंड मतदाताओं के लिए पचाना आसान नहीं होता लेकिन हमारे देश में आज़ादी के पचहत्तर साल बाद भी मतदाताओं की जागरूकता और नैतिकता का स्तर इतना ऊंचा नहीं उठ सका। यही कारण है कि राजनीतिक दल धन, गुंडई और धर्म और जाति के समीकरण से चुनाव जीतने की क्षमता रखने वाले माफियाओं और भ्रष्टाचारियों को टिकट देने में कोई संकोच नहीं करते।

ऐसा लगता है कि 2024 के वर्तमान लोकसभा चुनाव में हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय की सख्ती के बाद स्टेट बैंक आफ इंडिया द्वारा जारी की गई इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी भी कोई बड़ा मुद्दा नहीं बनी, जिसमें विभिन्न जांच एजेंसियों के छापों के बाद आपराधिक मामलों मे फंसी दागदार कंपनियों और केंद्र और राज्य सरकारों से बड़े टेंडर पाई कंपनियों से आया मोटा चंदा इस बात का संकेत है कि अपराधों के प्रति नरमी की उम्मीद और बड़े टेंडर की पृष्ठभूमि में दिया गया मोटा चंदा भ्रष्टाचार के दायरे में आता है। हालांकि आम मतदाताओं तक या तो इस तरह के आर्थिक हथकंडों की पूरी जानकारी नही पहुंच पाती या यह उनकी समझ के दायरे में नहीं आता ताकि चुनाव में बड़ा मुद्दा बन सके। जो प्रबुद्ध नागरिक मनी लांड्रिंग को ठीक से समझते हैं उनकी संख्या कुल मतदाताओं की संख्या मे  नगण्य है। प्रबुद्ध वर्ग की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह बाकी समाज को इन गंभीर मुद्दों पर उद्वेलित करे लेकिन वह अपने अपने ड्राइंग रूम तक सिमट कर रह गया।

चुनावी भाषणों में जिस तरह से विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा राम मंदिर निर्माण मुद्दा, जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटाने , हिंदू मुस्लिम तुष्टिकरण, फ्री राशन, बिजली और भत्ते आदि की रेवडिय़ां बांटने और अपनी सरकार और अपने घोषणापत्र को सर्वोत्तम और दूसरे दलों की सरकारों और घोषणा पत्रों को झूठ का पुलिंदा बताने पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है उस तरह से किसान आंदोलन,मणिपुर की हिंसा , जांच एजेंसियों की निष्पक्षता, सरकारी कर्मचारियों की कार्य कुशलता और नागरिकों से व्यवहार, जलवायु परिवर्तन के खतरों के परिपेक्ष्य में प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण, बेरोजगारों के लिए रोड मैप आदि ठोस मुद्दे चुनावी भाषणों में नहीं के बराबर हैं। इस दृष्टि से 2024 का लोकसभा चुनाव भी पुराने चुनावों से बहुत अलग नहीं दिखता।

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