विचार / लेख

हर भ्रम टूटकर रिश्तों से विमुख...
13-Apr-2024 4:58 PM
हर भ्रम टूटकर रिश्तों से विमुख...

अमिता नीरव

टूटते भ्रम हमें परिपक्व बनाते हैं, कुछ हद तक प्रैक्टिकल भी। ये हमें सपनों की दुनिया से खींच कर हकीकत की कंकरीली सतह पर चलने को मजबूर कर देते हैं।

मगर क्या कीजे कि भ्रम जिंदगी को खूबसूरत बनाते हैं। किसी किसी के हिस्से इन भ्रमों का लंबा साथ होता है। मगर कुछ लोगों को जिंदगी ये नियामत भी नहीं देती।

हर खतम होते रिश्ते को बचाने की आखिरी कोशिश हमेशा मेरी रहती है। इस पर हम दोनों में खूब मतभेद है, लंबी-लंबी बहसें भी होती है।

मुझ पर तोहमत ये होती है कि, ‘तुममें आत्मविश्वास की कमी है, तुम एकतरफा रिश्ता बचाना चाहती हो।’ जबकि इसके उलट मैं खुद से ही डरती हूं।

पता नहीं भविष्य के किस वक्त में मैं खुद को इस बात का दोष देने लगूं कि अपने अहम पर नियंत्रण रखती तो शायद ये रिश्ता बच जाता। जानती हूं ये भी भ्रम है।

अमूमन मैं ये करने के लिए एक सीमा तक अपने आत्मसम्मान को भी एक तरफ रख देती हूं। क्योंकि इस बात से डरती हूं कि आज जिसे मैं आत्मसम्मान समझ रही हूं, भविष्य में मैं ही उसे अहम कह डालूं।

इसलिए अपने स्वभाव के विपरीत एक सीढ़ी उतरकर भी मैं ठीक करने की कोशिश करती हूं। मगर ज्यादातर मामलों में रिश्ते बच नहीं पाते, क्योंकि कोई भी रिश्ता एकतरफा नहीं चल पाता है।

शिकायत करना मेरा स्वभाव नहीं है। मैं लोगों को जैसे वो हैं वैसे ही स्वीकारने की हामी हूं, लेकिन कभी अपनों ही को अहंकार, अहम, कुंठा, कृतघ्नता, ईर्ष्या से ग्रस्त देखती हूं तो पीछे लौटने लगती हूं।

धीरे-धीरे इस समझ तक पहुंची हूं कि जीवन के सफर में कई रिश्ते एक्सपायर होते हैं। दोस्त, परिचित, रिश्तेदार यहां तक कि खून के रिश्ते भी...।

उम्र बढऩे के साथ साथ भ्रम टूटने का सिलसिला भी बढ़ता जाता है। अब समझ आने लगा है कि जिनको साथ रहना है वो हर कीमत पर साथ आते हैं, जिन्हें छूटना है वो लोग जीवन में छूट जाने के लिए ही आए थे।

हर भ्रम टूटकर हमें रिश्तों से विमुख करता जाता है।

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