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ईवीएम-वीवीपैट वेरिफिकेशन मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं को किया खारिज, क्या कुछ कहा
26-Apr-2024 4:13 PM
ईवीएम-वीवीपैट वेरिफिकेशन मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी याचिकाओं को किया खारिज, क्या कुछ कहा

इलेक्ट्रॉनिंग वोटिंग मशीन यानी ईवीएम और वोटर वेरिफियेबिल पेपर ऑडिट ट्रेल यानी वीवीपैट से जुड़े मामले में सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सभी याचिकाओं को ख़ारिज किया है।

सुप्रीम कोर्ट ने बैलेट पेपर से चुनाव करवाने और वीवीपैट के साथ 100 फीसदी मिलान करने की याचिका को खारिज किया है।

जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, ‘हमने दो निर्देश जारी किए हैं। पहला निर्देश ये कि सिंबल के लोड होने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद उस यूनिट को सील किया जाए। सिंबल स्टोर यूनिट को कम से कम 45 दिन के लिए रखा जाए।’

वीवीपीएटी स्लिप पर पार्टी का चुनाव चिह्न और उम्मीदवार का नाम छापने के लिए सिंबल लोडिंग यूनिट का इस्तेमाल होता है।

बीते साल चुनाव आयोग ने चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता बढ़ाने के लिए एक नई सुविधा का एलान किया था। इसके जरिए पेपर ट्रेल मशीनों पर सिंबल लोड करने की प्रक्रिया में एक विज़ुअल डिस्प्ले जोड़ा गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा- लोकतंत्र सामंजस्य बनाए रखने के लिए होता है और आंख मूंदकर चुनाव की प्रक्रिया पर भरोसा ना करने से बिना कारण सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर वेरिफिकेशन के दौरान ये पाया गया कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ हुई है तो चुनाव आयोग उम्मीदवारों को उनकी फीस लौटाएगा।

चुनाव के नतीजे घोषित होने के 7 दिन के भीतर ईवीएम के माइक्रोकंट्रोल के वेरिफिकेशन के लिए उम्मीदवार चुनाव आयोग से गुज़ारिश कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें एक तय फ़ीस देनी होती है।

चुनाव में दूसरे या तीसरे नंबर पर रहे उम्मीदवारों की शिकायत पर चुनाव आयोग ईवीएम निर्माता को ईवीएम के माइक्रोचिप के वेरिफिकेशन के लिए कह सकता है।

कोर्ट के फैसले के बाद वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा, ‘हम लोगों का ये कहना था कि ये ईवीएम जो है, इनमें एक ऐसी मेमरी होती है, जिससे छेड़छाड़ की जा सकती है। इसलिए ये जरूरी है कि वीवीपैट की जांच करनी चाहिए। जो पर्ची निकलती है, उसे बैलेट बॉक्स में डालकर मिलान करना चाहिए।’

भूषण ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने हमारी याचिकाओं को खारिज किया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि चुनाव आयोग ये जांच करे, सारे बैलेट पेपर पर हम बार कोड डाल दें तो उसकी मशीन के जरिए गिनती हो सकती है या नहीं।’

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम के ज़रिए डाले गए सभी वोटों का वीवीपैट के साथ मिलान के लिए आग्रह करने वाली याचिकाओं पर बुधवार को फैसला सुरक्षित रखा था।।

न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक, कोर्ट ने चुनाव आयोग के सामने उठाए गए सभी सवालों के जवाब का संज्ञान लेने के बाद फ़ैसला सुरक्षित रखा था।

जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा था कि कुछ विषयों पर स्पष्टीकरण की जरूरत है क्योंकि ईवीएम के बारे में बार-बार पूछे जाने वाले सवालों के जो जवाब आयोग की तरफ से दिए गए हैं, उसमें बहुत कुछ साफ नहीं है।

न्यूज एजेंसी के मुताबिक, पीठ ने चुनाव आयोग के अधिकारी से ईवीएम के काम से जड़े पांच सवाल पूछे थे।

ईवीए पर उठते रहे हैं सवाल

ईवीएम, भारत में चुनाव प्रक्रिया का सबसे महत्वपूर्ण अंग बन गई है।

भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली में इसकी अहमियत को इस बात से समझा जा सकता है कि करीब दो दशक से हर संसदीय और विधानसभा चुनाव में इन्हें इस्तेमाल किया जा रहा है।

अपने 45 साल के इतिहास में ईवीएम को शंकाओं, आलोचनाओं और आरोपों का भी सामना करना पड़ा है, लेकिन चुनाव आयोग का कहना है कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव करवाने में ईवीएम बहुत अहम भूमिका निभाती है।

ईवीएम में गड़बड़ी या इसके ज़रिये धांधली से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए चुनाव आयोग ने समय-समय पर कई कोशिशें भी की हैं।

इस लेख में हम जानेंगे कि ईवीएम क्या है, यह कैसे काम करती है, इसका इस्तेमाल कब शुरू हुआ, इन्हें बनाने में कितना खर्च होता है और इनके आने के बाद चुनाव प्रक्रिया कैसे बदली।

क्या होती है ईवीएम, मतपत्र से कैसे अलग है?

ईवीएम का मतलब है इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन। साधारण बैटरी पर चलने वाली एक ऐसी मशीन, जो मतदान के दौरान डाले गए वोटों को दर्ज करती है और वोटों की गिनती भी करती है।

ये मशीन तीन हिस्सों से बनी होती है। एक होती है कंट्रोल यूनिट (सीयू), दूसरी बैलेटिंग यूनिट (बीयू)। ये दोनों मशीनें पांच मीटर लंबी एक तार से जुड़ी होती हैं। तीसरा हिस्सा होता है- वीवीपैट।

बैलेटिंग यूनिट वह हिस्सा होता है, जिसे वोटिंग कंपार्टमेंट के अंदर रखा जाता है और बैलेटिंग यूनिट को पोलिंग ऑफिसर के पास रखा जाता है।

ईवीएम से पहले जब बैलट पेपर यानी मतपत्र के जरिये वोटिंग होती थी, तब मतदान अधिकारी मतदाता को कागज का मतपत्र दिया करते थे। फिर मतदाता मतदान कंपार्टमेंट जाकर अपने पसंदीदा उम्मीदवार के आगे मुहर लगा देते थे। फिर इस मतपत्र को मतपेटी में डाल दिया जाता था।

लेकिन ईवीएम की व्यवस्था में कागज और मुहर का इस्तेमाल नहीं होता।

अब मतदान अधिकारी कंट्रोल यूनिट पर ‘बैलट’ बटन दबाते हैं, उसके बाद मतदाता बैलेटिंग यूनिट पर अपने पसंदीदा उम्मीदवार के आगे लगा नीला बटन दबाकर अपना वोट दर्ज करते हैं।

यह वोट कंट्रोल यूनिट में दर्ज हो जाता है। यह यूनिट 2000 वोट दर्ज कर सकती है। मतदान संपन्न होने के बाद मतगणना इसी यूनिट के माध्यम से की जाती है।

एक बैलेटिंग यूनिट में 16 उम्मीदवारों के नाम दर्ज किए जा सकते हैं।

अगर उम्मीदवार अधिक हों तो अतिरिक्त बैलेटिंग यूनिट्स को कंट्रोल यूनिट से जोड़ा जा सकता है।

चुनाव आयोग के अनुसार, ऐसी 24 बैलेटिंग यूनिट एकसाथ जोड़ी जा सकती हैं, जिससे नोटा समेत अधिकतम 384 उम्मीदवारों के लिए मतदान करवाया जा सकता है।

भारत के चुनाव आयोग के मुताबिक़, ईवीएम बहुत ही उपयोगी है और यह पेपर बैलट यानी मतपत्रों की तुलना में सटीक भी होती है, क्योंकि इसमें ग़लत या अस्पष्ट वोट डालने की संभावना खत्म हो जाती है।

इससे मतदाताओं को वोट देने में भी आसानी होती है और चुनाव आयोग को गिनने में भी। पहले सही जगह मुहर ना लगने के कारण मत खारिज हो जाया करते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होता।

चुनाव आयोग कहता है कि इसके इस्तेमाल के लिए मतदाताओं को तकनीक का ज्ञान होना भी ज़रूरी नहीं है। निरक्षर मतदाताओं के लिए तो इसे और भी ज़्यादा सुविधाजनक बताया जाता है।

वोटर वेरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल

(वीवीपैट) क्या है?

ईवीएम को लेकर कई राजनीतिक दल आपत्ति जताते रहे हैं।

इन शंकाओं को दूर करने के इरादे से चुनाव आयोग एक नई व्यवस्था लेकर आया, जिसे वोटर वेरिफ़ायबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएट) कहा जाता है। आम बोलचाल में इसे वीवीपैट भी कहा जाता है।

यह ईवीएम से जोड़ा गया एक ऐसा सिस्टम है, जिससे वोटर यह देख सकते हैं कि उनका वोट सही उम्मीदवार को पड़ा है या नहीं।

ईवीएम की बैलेट यूनिट पर नीला बटन दबते ही बग़ल में रखी वीवीपैट मशीन में उम्मीदवार के नाम, क्रम और चुनाव चिह्न वाली एक पर्ची छपती है, सात सेकंड के लिए वह वीवीपैट मशीन में एक छोटे से पारदर्शी हिस्से में नजऱ आती है और फिर सीलबंद बक्से में गिर जाती है।

वीवीपैट वाली ईवीएम का इस्तेमाल पहली बार साल 2013 में नगालैंड के नोकसेन विधानसभा क्षेत्र में हुए उपचुनाव के दौरान किया गया था। अब हर चुनाव में वीवीपैट को इस्तेमाल किया जाता है और यह ईवीएम का अभिन्न अंग है।

शंकाओं का निदान करने के लिए ऐसी व्यवस्था भी बनाई गई है कि हर चुनावक्षेत्र की किसी एक मशीन का रैंडम तरीके से चयन किया जाता है और फिर ईवीएम मशीन के वोटों का मिलान, वीवीपैट पर्चियों के वोटों से किया जाता है।

चुनाव आयोग के अनुसार, अगर कहीं पर मशीन में आ रहे वोटों के आंकड़े वीवीपैट की पर्चियों के आंकड़ों से अलग आते हैं तो वीपीपैट के आंकड़ों को तरजीह दी जाएगी।

भारत में कौन सी कंपनियां बनाती हैं ईवीएम

ईवीएम और वीवीपैट मशीनों को आयात नहीं किया जाता। इन्हें भारत में ही डिज़ाइन किया गया है और यहीं इनका निर्माण होता है।

चुनाव आयोग के अनुसार, इसके लिए दो सरकारी कंपनियां अधिकृत हैं। एक है भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) करती है, जो रक्षा मंत्रालय के तहत आती है और दूसरी कंपनी है इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) जो डिपार्टमेंट ऑफ़ एटॉमिक एनर्जी के तहत आती है।

ये दोनों कंपनियां चुनाव आयोग की ओर से बनाई टेक्निकल एक्सपर्ट्स कमेटी (टीईसी) के मार्गदर्शन में काम करती है।

ईवीएम का अविष्कार और इस्तेमाल

दुनिया के अलग-अलग देशों में कई तरह की वोटिंग मशीनें प्रयोग के तौर पर इस्तेमाल की जाती रही हैं। हालांकि, उनका स्वरूप भारत में इस्तेमाल की जाने वाली ईवीएम से अलग रहा है।

भारत में इस्तेमाल होने वाली मशीन को डायरेक्ट रिकॉर्डिंग ईवीएम (डीआरई) कहा जाता है।

चुनाव आयोग के अनुसार, भारत में वोटिंग के लिए मशीन इस्तेमाल करने का विचार सबसे पहले साल 1977 में सामने आया था।

 तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त एस।एल। शकधर ने इन्हें इस्तेमाल करने की बात की थी।

उस समय इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड हैदराबाद को ईवीएम डिजाइन और विकसित करने की जिम्मेदारी दी गई थी।

1979 में ईवीएम का एक शुरुआती मॉडल विकसित किया गया, जिसे 6 अगस्त 1980 में चुनाव आयोग और राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के सामने प्रदर्शित किया।

बाद में बेंगलुरु की भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) को भी ईवीएम विकसित करने के लिए चुना गया।

पहली बार चुनावों में इस्तेमाल

भारत में चुनावों में पहली बार ईवीएम का इस्तेमाल साल 1982 में हुआ था। केरल विधानसभा की पारूर सीट पर हुए उपचुनाव के दौरान बैलटिंग यूनिट और कंट्रोल यूनिट वाली ईवीएम इस्तेमाल की गई।

लेकिन इस मशीन के इस्तेमाल को लेकर कोई कानून न होने के कारण सुप्रीम कोर्ट ने उस चुनाव को खारिज कर दिया था।

इसके बाद, साल 1989 में संसद ने लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन किया और चुनावों में ईवीएम के इस्तेमाल का प्रावधान किया।

इसके बाद भी इसके इस्तेमाल को लेकर आम सहमति साल 1998 में बनी और मध्य प्रदेश, राजस्थान और दिल्ली की 25 विधानसभा सीटों में हुए चुनाव में इसका इस्तेमाल हुआ।

बाद में साल 1999 में 45 सीटों पर हुए चुनाव में भी ईवीएम इस्तेमाल की गई।

फऱवरी 2000 में हरियाणा विधानसभा चुनाव के दौरान 45 सीटों पर ईवीएम इस्तेमाल की गई।

मई 2001 में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल और पुद्दुचेरी में हुए विधानसभा चुनावों में सभी सीटों में मतदान दर्ज करने के लिए ईवीएम इस्तेमाल हुईं।

उसके बाद से हुए हर विधानसभा चुनाव में ईवीएम इस्तेमाल होती आ रही हैं। 2004 के आम चुनावों में सभी 543 संसदीय क्षेत्रों में मतदान के लिए 10 लाख से ज़्यादा ईवीएम इस्तेमाल की गई थीं।

अदालतों में याचिकाएं

ईवीएम के जरिये मतदान में धांधली के आरोप शुरू से ही लगते रहे हैं। इस तरह के मामले अदातों में भी पहुंचे हैं। चुनाव आयोग का कहना है कि विभिन्न हाई कोर्ट ने ईवीएम को भरोसेमंद माना है।

साथ ही, ईवीएम के पक्ष में हाई कोर्टों द्वारा दिए गए कुछ फैसलों को जब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, तब सुप्रीम कोर्ट ने उन अपीलों को खारिज कर दिया।

क्या है ईवीएम की लागत और क्या इनका इस्तेमाल महंगा है

जैसा कि अब तक हम जान गए हैं, वोटिंग मशीन के तीन मुख्य हिस्से होते हैं- कंट्रोल यूनिट (सीयू), बैलेटिंग यूनिट (बीयू) और वीवीपैट। भारत सरकार की प्राइस नैगोसिएशन कमेटी ने इन हिस्सों के दाम तय करती है।

चुनाव आयोग के मुताबिक, बीयू की कीमत है 7991 रुपये, सीयू की 9812 रुपये और सबसे महंगा हिस्सा है- वीवीपैट, जिसका दाम है 16,132 रुपये।

एक ईवीएम कम से कम 15 साल तक चलती है। इससे चुनाव प्रक्रिया सस्ती होने का भी दावा किया जाता है।

हालांकि, आलोचकों का कहना है कि चुनावों के बाद ईवीएम को स्टोर करके इनकी लगातार हाईटेक निगरानी करने में भारी भरकम खर्च आता है।

मगर चुनाव आयोग का कहना है कि भले ही शुरुआती निवेश कुछ ज़्यादा लगता है, लेकिन हर चुनाव के लिए लाखों की संख्या में मतपत्र छापने, उन्हें ढोने, स्टोर करने में होने वाले खर्च से बचत होती है।

इसके अलावा चुनाव आयोग के मुताबिक, मतगणना के लिए ज़्यादा स्टाफ की जरूरत नहीं पड़ती और उन्हें दिए जाने वाले पारिश्रमिक में कमी आने से निवेश की तुलना में कहीं ज़्यादा भरपाई हो जाती है। (bbc.com/hindi)

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