विचार / लेख

खुद की अक्ल दाढ़ तुड़वाने की इच्छा
17-Apr-2024 3:00 PM
खुद की अक्ल दाढ़ तुड़वाने की इच्छा

 अपूर्व गर्ग

शिवसेना का टूटना, एनसीपी का दो फाड़ होना ये बातें मुझे कोई बड़ी खबर नहीं लगतीं।

कांग्रेस के लोगों के बीजेपी में जाने को मैं ‘कांग्रेस को लगा झटका’ नहीं मानता।

आप, तृणमूल कभी भी अपना स्टैंड बदलें तो मुझे हैरत नहीं होगी।

सपा, आरजेडी में भी कभी ख़ुशी कभी गम, कभी प्यार कभी नाराजगी होती रहेगी।

इन सबके लिए रिवर्स गियर है।

इससे हमारा कोई विश्वास न टूटता है न कोई फर्क पड़ता है।

पर एक दिन एक किसान नेता जब सर्कुलर निकालते हैं कि किसान चुनाव प्रचार से दूर रहें ये बात चुभती है।

जिन लेखकों की पुस्तकें आप खरीदते हैं प्रगतिशील विचारों के चलते उनके यू-ट्यूब पर अपना पैसा फूँकते हैं जब वो घुमा फिराकर फूहड़ गायक और सांसद प्रत्याशी के पक्ष में ट्वीट करता है ‘..ने वहाँ काफी काम भी किया है’।

तो समझ आता है अंदरूनी संक्रमण कितना फैला हुआ है!!

रोज सुबह उठकर जांच लेना चाहिए जिन पौधों को पानी दे रहे वो अमरबेल तो नहीं।

अमरबेल तो अमर हो जाएगी पर समर में आप पिछड़ जायेंगे।

ये दुनिया आज विज्ञान पर कम गणित के आंकड़ों पर ज़्यादा चल रही है।

अंदरखाने बहुत से आंकड़े बनते-बिगड़ते रहते हैं और एक दिन हमें झटका लगता है कि जिन पर हमारी सारी उम्मीद रहती है वो किसी और के लिए गाने लगते हैं।

इस पार्टी के प्रवक्ता उस पार्टी के प्रवक्ता बन कर दांत निपोरते हैं तो तकलीफ नहीं होती पर संगठनों-जनसंगठनों के के नेताओं के बेईमानी दांत जब निकल आते हैं तो खुद की अक्ल दाढ़ तुड़वाने की इच्छा होती है।

बेईमानी के सफेद झक्क उजले कुर्ते पहने लोगों से नहीं कमीज के भीतर बेईमानी की बनियान पहने लोगों से डर लगता है अब...।

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