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हांग कांग को चीन में पूरी तरह मिलाने का पड़ाव है एपल डेली की बंदी
26-Jun-2021 8:31 PM
हांग कांग को चीन में पूरी तरह मिलाने का पड़ाव है एपल डेली की बंदी

लोकतंत्र के आदी रहे हांग कांग में मुसीबतें कम होने का नाम नहीं ले रही. राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत चीन को ऐसा औजार मिल गया है कि हांग कांग की लोकतांत्रिक व्यवस्था और मूल्यों पर चीनी निरंकुशता का साया गहराता जा रहा है.

     डॉयचे वैले पर राहुल मिश्र का लिखा-

इस हफ्ते लोकतांत्रिक आंदोलन का पुरजोर समर्थन करने वाले एपल डेली को आर्थिक प्रतिबंधों के चलते बंद कर दिया गया. उसके पास अखबार को चलाते रहने का और कोई रास्ता नहीं बच गया था. फिर भी लोकतंत्र समर्थकों ने उम्मीद का दामन छोड़ा नहीं है. हांग कांग में लोकतंत्र के समर्थक साइबर ऐक्टिविस्टों ने अभी से यह ऐलान कर दिया है कि एपल डेली का प्रिंट प्रकाशन तो बंद हो रहा है लेकिन ब्लॉकचेन प्लेटफार्म पर इसका प्रकाशन जारी रहेगा. अगर ऐसा होता है तो यह एक साहसिक कदम होगा और इससे हांग कांग प्रशासन की सरदर्दियां भी बढ़ेंगी.

इंटरनेट पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर अभी भी दुनिया भर की सरकारें मनचाहा नियंत्रण नहीं लगा सकी हैं. चीन में इंटरनेट पर जैसी पाबंदी है शायद कैरी लैम प्रशासन ऐसा ही कुछ हांग कांग में भी आजमाने जा रहा है. हांग कांग सरकार के इस कदम पर निराशा जताते हुए एपल डेली की पैत्रिक कंपनी नेक्स्ट डिजिटल लिमिटेड के डेविड वेब ने कहा है कि तेजी से पिछड़ रही हांग कांग की अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने के बजाय हांग कांग प्रशासन पुलिसिया राज्य की तरह व्यवहार कर रहा है. एपल डेली के संस्थापक और लोकतांत्रिक आंदोलन के बहुचर्चित अगुआ जिमी लाई को उनके लोकतंत्र समर्थक मुखर रवैये की वजह से ही 10 अगस्त 2020 को गिरफ्तार कर लिया गया था. लाई अभी भी जेल में ही हैं.

सरकार और लोकतंत्र समर्थकों में खींचतान
ब्रिटेन से चीन को मिले हांग कांग में लोकतांत्रिक, अहिंसावादी और जनकेंद्रित आंदोलनों से निपटने में हांग कांग सरकार ने अभी तक दमनकारी नीतियों का ही सहारा लिया है. इस श्रृंखला में सबसे बड़ा कदम था पिछले साल 30 जून को लाया गया राष्ट्रीय सुरक्षा कानून. राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के आने के बाद से ही प्रदर्शनकारियों का दमन जारी है. जिस तरह से चीन समर्थक प्रशासन ने सिविल सोसायटी और लोकतंत्र के संस्थागत समर्थकों पर लगाम कसनने का रवैया अपना रखा है ऐसा लगता है कि इन दमनकारी नीतियों का दुश्चक्र न सिर्फ जारी रहेगा बल्कि इसके और गम्भीर होने की आशंकाएं भी हैं.

यह इस बात से भी स्पष्ट होता है कि 23 जून को ही एक बड़े कैबिनेट फेरबदल के तहत पूर्व पुलिसकर्मी और सुरक्षा सचिव जॉन ली को पदोन्नति देकर प्रशासनिक सचिव के पद पर बैठा दिया गया है. यह ली के कुर्सी संभालने का भी नतीजा था कि अगले ही दिन 24 जून को ली के निर्देशन में एपल डेली को सुरक्षा कानून का हवाला दे कर जबरन बंद कर दिया गया. ऐसा नहीं है कि कैरी लैम प्रशासन की यह हरकतें दुनिया की नजरों से छुपी हैं. अमेरिका और पश्चिम के तमाम देशों ने इसकी कड़ी निंदा की है.

असहाय अंतरराष्ट्रीय समुदाय
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसे मीडिया स्वतंत्रता के लिए एक दुःखद दिन की संज्ञा दी है. अपने बचाव में उतरते हुए चीनी सरकार ने बाइडेन की टिप्पणी को दुराग्रह से ग्रसित करार देते हुए कहा है कि हांग कांग प्रशासन सिर्फ हांग कांग और चीनी विरोधी और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन चुके लोगों पर कार्रवाई कर रहा है. मानवाधिकार उल्लंघनों के आरोपी जॉन ली पर अमेरिका ने पहले ही प्रतिबंध लगा रखा है. दुःखद यह है कि हांग कांग में लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को उस कदर तोड़ा जा रहा है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय इस बारे में कुछ खास करने में असमर्थ है.

निष्पक्ष और आम जनता की आवाज बनने वाला मीडिया ही किसी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था को मजबूत बनाता है. एपल डेली का बंद होना हांग कांग में चीन की बढ़ती दखलंदाजी  का परिचायक भर नहीं है, यह हांग कांग की बरसों से संजोयी परंपरा और चीन की मुख्य भूमि से अलग शासन-समाज व्यवस्था के चरमराने का भी डरावना संकेत है. बरसों से चली आ रही वन चाइना नीति को तिलांजलि देने की चीन की कवायद हांग कांग पर खतम नहीं होगी. ताइवान और मकाऊ भी इसकी गिरफ्त में आयेंगे यह तय है. फिलहाल सवाल यही है कि हांग कांग को तेजी से चीन में मिलाने की नीति का अगला शिकार कौन होगा?

(राहुल मिश्र मलाया विश्वविद्यालय के एशिया-यूरोप संस्थान में अंतरराष्ट्रीय राजनीति के वरिष्ठ प्राध्यापक हैं.)  (dw.com)

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