विचार / लेख
-प्रकाश दुबे
बहुत पुराने जमाने की बात नहीं है। उन दिनों एक जुलाई को बच्चे पाठशाला जाना शुरू करते थे। अब तो एक जुलाई को सिर्फ जन्मदिन मनाया जा सकता है। देवभूमि गमन कर चुके पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री बसंतराव नाईक एक जुलाई को जन्मे। वर्तमान लोकसभा में अपना दल के पकौड़ी लाल और भाजपा की रीति पाठक लगभग पड़ोसी हैं। महाराष्ट्र के ओमप्रकाश राजे निंबालकर और अशोक नेते समेत सात से अधिक सांसद पहली जुलाई को जन्मदिन मनाते हैं। मध्यप्रदेश को एक जुलाई अधिक पसंद है।
पूर्व केन्द्रीय मंत्री शरद यादव, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व महासचिव से हटाकर मार्गदर्शक के रूप में पदोन्नत सुरेश भैयाजी जोशी, पूर्व राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी, पूर्व मंत्री गोविंद सिंह और वर्तमान मंत्री गोपाल भार्गव वगैरह एक जुलाइया हैं। सतना के सांसद गणेश सिंह दो जुलाई को जन्मे। आजमगढ़ से जीते अखिलेश यादव को भाजपा ने जन्मदिन का उपहार दो दिन पहले थमाया। उनके दर्जन भर पंचायत सदस्य जिला पंचायत सभापति का नामांकन ही नहीं भर सके। इन तिथियों वाली जन्मकुंडली गलत भी हो सकती है। स्कूल में दाखिले के समय कुछ बच्चों की जन्मतिथि एक जुलाई दर्ज करा दी जाती है। हंसकर सबको बधाई।
कुढ़ते हुए लोग और बिराते हुए लोग
मुकुल राय को अचानक घर की याद आई। घर लौटे। पराये घर पहुंचने पर विधायक बनाकर अभिषेक किया गया था। पराए घर जाने के कारण सुवेन्दु अधिकारी को मंत्री दर्जा मिला। वे विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष हैं। ममता बनर्जी घर वापसी का मुकुल को ऐसा ईनाम देना चाहती हैं, जिसे देखकर सुवेन्दु (हिंदी में शुभेंदु) का दिल जले। अब तक पराए घर वालों यानी विरोधी दल को ही लोक लेखा समिति का अध्यक्ष बनाया जाता है। नया घर नापसंद कर मुकुल पुराने घर लौटे। खफा भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा अध्यक्ष को पाती भेजकर मुकुल राय की विधायकी खत्म करने की मांग की। ममता बनर्जी का दांव समझो। विधानसभा अध्यक्ष मुकुल की विधायकी समाप्त करने की मांग मानेंगे नहीं। ज्यादा जोर देने पर तृणमूल के सारे दलबदलुओं की सदस्यता पर बखेड़ा करेंगे। कुछ लोग हँसते-हँसते रुआंसे होंगे, कुछ रोते रोते ठहाका लगाएंगे।
खुजलाते हुए लोग और सहलाते हुए लोग
बागपत के चौधरी चरण सिंह ने प्रधानमंत्री की कुर्सी खोना पसंद किया परंतु संजय गांधी और विद्याचरण शुक्ल के खिलाफ मुकदमे वापस लेने की कांग्रेस की शर्त नहीं मानी। उनके पुत्र अजित सिंह विभिन्न पार्टियों की सरकार में मंत्री बनते रहे। महाभारतकालीन बागपत में राजनीतिक द्रौपदी का चीरहरण जारी है। उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने जिला पंचायत अध्यक्ष बनाने का लालच देकर दो महिलाओं का दल-बदल कराया। पहली सपा से दूसरी अजित सिंह के वारिस जयंत की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय लोकदल पार्टी से। दोनों को धमकाया-मानोगी तो कुर्सी मिलेगी, वरना जेल। दोनों ने कुर्सी की तरफदारी की। अध्यक्ष तो एक ही बनेगी। आखिरी दम पर सपा की दलबदलू को गाजे-बाजे के साथ नामांकन भराने ले गए। रालोद दलबदलू के पति के शरीर में चरण सिंह की आत्मा जागी। उसने कहा-भले हमें मार डालें लेकिन हम रालोद में रहेंगे। लखनऊ की तुलना में दिल्ली से बागपत नजदीक है। दल-बदल के गोरखधंधे में साधु-संन्यासी से क्या पूछना?
हँसो, तुम पर निगाह रखी जा रही है
लाशों का हिसाब और मौतों की जवाबदारी लेने वाले, अच्छा हुआ, आजादी के बाद पैदा नहीं होते। वरना लाल बहादुरों की भरमार होती। इन दिनों मरकर गंगा तट पहुंचने पर प्रतिबंध है। राजस्थान के अनेक व्यक्ति दिवंगत परिजन के अस्थि कलश गंगा में विसर्जित करते हैं। राजस्थान सरकार ने नि:शुल्क मोक्ष कलश बसों की सुविधा दी। पांच हजार से अधिक लोगों ने पंजीयन कराया। राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार और उत्तरप्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार के बीच ऐसी ठनी कि अस्थि कलश गढ़मुक्तेश्वर और सौरोंजी नहीं पहुंच सके। उत्तराखंड के हरिद्वार उत्तर प्रदेश होकर जाना पड़ता है। इसलिए वहां भी नहीं जा सकते। धौलपुर के सांसद डॉ. मनोज राजोरिया योजना में दिलचस्पी ले रहे थे। उनकी पार्टी के मुख्यमंत्री ने राजस्थान परिवहन की बसों के प्रवेश पर रोक लगाई। श्मशान घाटों के लाकर में या पेड़ों पर पोटलियों में बंद अस्थि कलश सांसद मनोज राजोरिया को रघुवीर सहाय की कविता याद दिलाकर खिलखिलाते होंगे-हँसो, हँसो। हँसो अपने पर न हँसना।
(सभी शीर्षक रघुवीर सहाय की कविता हँसो हँसो से साभार)
(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)