विचार / लेख
-श्याम मीरा सिंह
सोशल मीडिया के अधिकतर विमर्श दूसरों को नीचा दिखाने, किसी की मामूली सी गलती को पकडक़र उसे अपमानित करने, अपने ‘बोध’ का इस्तेमाल खुद को ‘जागरूक’ दिखाने के लिए होते हैं। हमें समझना चाहिए कि बहुत लोग एक लंबी उमर के बाद सीखते हैं, कुछ को उमर बीतने के बाद भी ये मौक़ा नहीं मिल पाता, आप प्रगतिशील हैं इसमें आपकी एजुकेशन, एक्सपोजऱ का योगदान है, बहुत से लोग कहीं कुछ गड़बड़ रह जाते हैं तो इसका अर्थ है उन्हें अच्छी शिक्षा का मिलना अभी विलंबित है, उन्हें और अच्छे दोस्तों और यूनिवर्सिटियों की ज़रूरत है। पर ऐसे लोग अपराधी नहीं हैं।
किसी को अपमानित करते हुए मुंह में विमर्श ठूँसना बहुत सही उपाय नहीं है। मेरे कई अध्यापकों, दोस्तों ने मुझे बिना मेरी कठोर आलोचना किए, बिना मेरे कान पकड़े, बिना अपमानित किए बहुत अच्छी बातें सिखाईं हैं। जिन्होंने अपमानित करके और नीचा दिखाकर कुछ सिखाना चाहा है, मैं उस मिनट ही समझ गया कि ये मुझे सिखाने के लिए नहीं हैं बल्कि अपने बोध का इस्तेमाल मुझे अपमानित करने के लिए ही कर रहे हैं। जबकि बोध लोगों को सामूहिक रूप से आगे बढ़ाने के लिए होते हैं, उनमें सुधार के लिए होते हैं, उन्हें गिराने या बहिष्कृत करने के लिए नहीं। समझाने, सिखाने की भाषा अलग होती है, सोशल मीडिया के विमर्श खुद को श्रेष्ठ, प्रगतिशील, जागरूक दिखाने और किसी एक को कॉमन दुश्मन बनाकर उसे नीचा दिखाने के लिए ही होते हैं, इसलिए ऐसे विमर्शों को मैं गंभीरता से नहीं लेता। ऐसे विमर्श दूसरों को अपमानित करने से शुरू होते हैं और फिर किसी और नए आदमी को नीचा दिखाने के लिए शुरू हुए किसी नए विमर्श के आते ही ख़त्म हो जाते हैं।