विचार / लेख
-गीता यथार्थ
हमारे घरों की लड़कियां छोटे कपड़े नहीं पहनती-ये कहकर स्कर्ट जीन्स पहनी लडक़ी के रेप को जस्टिफाय करेंगे।
हमारे घर की लड़कियां रात में बाहर नहीं जाती- ये कहकर रात में हुए बलात्कार/ छेडख़ानी/ गैंग रेप को डिफेंड करेंगे।
हमारे घर/ अच्छे घर की लड़कियां ड्रिंक नहीं करती- ये कहकर ड्रिंक की हुई लडक़ी के रेप को डिफेंड करेंगे।
हमारे/ अच्छे घर की लड़कियां बॉयफ्रेंड नहीं बनाती- ये कहकर रिलेशनशिप वाले रेपिस्टों को बचाएंगे।
हमारे/ अच्छे घरों की लड़कियां/ अच्छे संस्कार वाली पतियों से शिकायत नहीं करती- ये कहकर डोमिस्टिक वायोलेन्स को डिफेंड करेंगे।
ऐसे तो सारे पति बेचारे जेल में ही होंगे- कहकर मैरिटल रेप को डिफेंड करेंगे।
ऐसा कुछ नहीं हुआ, ये तो हमारे धर्म को बदनाम करना चाहती है-- यह कहकर गैर धर्म के रेपिस्ट को डिफेंड करेंगे।
अच्छे संस्कारी घरों की लड़कियां पुलिस स्टेशन नहीं जाती, चुप रहकर बात दबा जाती हैं-ये कहकर पुलिस में शिकायत करने वाली लड़कियों के खिलाफ माहौल बनाते हैं, ये लड़कियां पहले तो लडक़ों को अपने जाल में फंसा लेती है जब वह जाल से निकलते हैं तो उन पर बलात्कार का केस कर देती हैं-ऑल टाइप रेपिस्टों के बचाव की दलील।
कभी-कभार किसी छोटी बच्ची के मामलें में अगर एक्सेप्ट कर लेंगे कि बहुत बुरा हुआ है तो कहेंगे बस ‘एक आध’ ही होते हैं ऐसे लोग तो, घर, समाज, देश, जज, वकील, डॉक्टर, रिश्तेदार, नेता, मंत्री, टीचर, अफसर, सरपंच, पुलिस...तमाम लोगों की लड़कियों के लिए ये राय हैं, लड़कियों के लिए ही नहीं बलात्कार के मुद्दे पर ही ये राय हैं, और ये इंडिया में नहीं, दुनिया के बहुत बड़े हिस्से में ऐसा सोचा जाता हैं।
और चिंता की बात ये है कि घूम-फिरकर रेप के केस इन्ही लोगों के पास सुलझाने के लिए आते हैं। इसलिए ये लोग कुतर्कों को जिंदा रखते हैं और असल कारण, यानि-पुरुष का औरतों के प्रति नफरत, औरतों को हर कीमत पर हासिल करना- हासिल करने से मतलब उसके शरीर को पाना, महिलाओं को सिर्फ वेजाइना समझना, क्राइम करने पर सजा का डर न होना। तमाम कारण नजरअंदाज कर दिए जाते हैं। जिससे एक जेंडर (मेल) का दूसरे जेंडर पर जबरदस्ती का अधिकार (कभी क्राइम के रूप में/कभी वैसे) बना हुआ है।