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प्लास्टिक पर प्रतिबंध से पहले कचरा बीनने वालों पर दिया जाए ध्यान
02-Jul-2021 6:43 PM
प्लास्टिक पर प्रतिबंध से पहले कचरा बीनने वालों पर दिया जाए ध्यान

अपने सामान को संभालता एक कचरा बिनने वाला बच्चा, फोटो-विकिपीडिया

-ललित मौर्य

एक कचरा बीनने वाले की 40 से 60 फीसदी कमाई प्लास्टिक से होती है, जो प्लास्टिक वो चुनता है उसे रीसायकल कर दिया जाता है। समस्या उस प्लास्टिक से है जो उसके बाद भी पर्यावरण में बची रह जाती है।

देश-दुनिया में प्लास्टिक की समस्या कितनी गंभीर है, वो बात किसी से छुपा नहीं है। यही वजह है कि भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने 2018 में ऐलान किया था कि देश में 2022 तक सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल पूरी तरह से बंद कर दिया जाएगा।  हालांकि देश में प्लास्टिक को पूरी तरह से बैन करना कितना सही है यह अपने आप में एक बड़ा सवाल है। ऐसे में प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिए देश की क्या रणनीति होनी चाहिए। इस बारे में हाल ही में एक स्वयं सेवी संस्थान चिंतन द्वारा जारी रिपोर्ट 'प्लान द बैन' में उसको लेकर कई सुझाव दिए गए हैं।

देखा जाए तो हमारे घरों, दफ्तरों और दुकानों से निकलने वाला यह प्लास्टिक कचरा कई लोगों की जीविका का साधन है जिससे उनके परिवार का पालन होता है। आंकड़ों के अनुसार भारत दुनिया के 10 फीसदी कचरा बीनने वाले लोगों का घर है। ऐसा नहीं है कि भारत सिर्फ प्लास्टिक कचरे की समस्या से जूझ रहा है साथ ही यह गरीबी के खिलाफ भी जंग लड़ रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक एक कचरा बीनने वाला महीने में औसतन 6500 से 12,000 रुपए कमाता है, जिसमें से उसकी करीब 40 से 60 फीसदी कमाई प्लास्टिक से होती है।

यदि हम इस प्लास्टिक को एकदम से बंद कर देते हैं तो साथ ही उसकी यह कमाई भी बंद हो जाएगी। यही नहीं देखा जाए तो जिस तरह का प्लास्टिक वो चुनता है उसे रीसायकल किया जाता है, ऐसे में वो प्लास्टिक दूसरे सिंगल यूज प्लास्टिक की तुलना में उतनी बड़ी समस्या नहीं है।

ऐसे में पर्यावरण के लिए सबसे बड़ी समस्या उस तरह के प्लास्टिक से है जिसे यह कचरा बीनने वाले लोग नहीं चुनते, जिस वजह से उन्हें रीसायकल भी नहीं किया जाता और वो पर्यावरण को सबसे ज्यादा दूषित करते हैं। यही वजह है कि रिपोर्ट में सबसे पहले पहले चरण में उस तरह के प्लास्टिक को बंद करने की बात कही गई है जिसे रीसायकल नहीं किया जा सकते जैसे चिप्स, गुटका, तम्बाकू के पैकेट, तेल, शैम्पू, साबुन, वाशिंग पाउडर, टूथपेस्ट आदि के खाली पैकेट आदि हैं। इस रिपोर्ट में इस तरह के प्लास्टिक की पहचान की गई है। चिंतन द्वारा जारी यह पूरी रिपोर्ट देश के चार शहरों दिल्ली, पुणे,  इंदौर और नैनीताल में प्लास्टिक कचरे को लेकर किए अध्य्यन पर आधारित है।

पीईटी से होती है कचरा बीनने वालों की 29.2 फीसदी कमाई

रिपोर्ट के अनुसार यदि कचरा चुनने वालों के हिसाब से देखें तो पॉलीइथिलीन टेरेफ्थेलेट (पीईटी) उनके लिए सबसे ख़ास है जिससे उन्हें कमाई का करीब 29.2 फीसदी हिस्सा प्राप्त होता है। एक औसत कचरा बीनने वाला औसतन हर दिन करीब 20 से 25 किलो प्लास्टिक कचरा एकत्र करता है जिसका करीब 50 से 60 फीसदी हिस्सा यही पीईटी प्लास्टिक होता है। इसके बाद कम घनत्व पॉलीथीन (एलपीडीई) की बारी आती है जो कि उसकी कमाई का करीब 20.4 फीसदी हिस्सा होता है। यह मुख्य रूप से परिधान और कपड़ा पैकेजिंग सामग्री जैसी प्लास्टिक होती है।

इसके बाद तीसरे स्थान पर मिश्रित और कठोर प्लास्टिक और पारदर्शी पॉलीप्रोपाइलीन (पीपी) आती है जो इनकी कमाई का 10.4 फीसदी हिस्सा होती हैं। इसका मुख्य उदाहरण सिंथेटिक बुने हुए बैग, घरेलू रसोई में स्टोर करने के लिए उपयोग किए जाने वाले प्लास्टिक कंटेनर और ऑनलाइन भोजन से जुड़ी पैकेजिंग प्लास्टिक शामिल है। इसके बाद आखिर में बाटा प्लास्टिक (बीटीपी) की बारी आती है, जो उनकी आय का 8.4 फीसदी हिस्सा पैदा करती है।

रिपोर्ट के अनुसार ऐसे में सबसे बड़ी समस्या उस प्लास्टिक से है जिन्हें बिना और रीसायकल नहीं जाता और वही प्लास्टिक पर्यावरण को सबसे ज्यादा दूषित करती हैं। इस  रिपोर्ट में इसके बारे में व्यापक जानकारी दी गई है।

क्या है समाधान

चिंतन ने कचरा चुनने वाले लोगों पर जो सर्वेक्षण किया है उसमें से ज्यादातर ने माना है कि प्लास्टिक कितना जहरीला है और स्वास्थ्य को कितना नुकसान पहुंचा सकता है वो उसके खतरे से अवगत हैं, जबकि कई का कहना है कि वो उनकी जीविका के लिए बहुत मायने रखता है। उन्होंने कहा है कि ऐसे काम जो उनके स्वास्थ्य को कम नुकसान पहुंचाते हैं और समान आय अर्जित कर सकते हैं वो उनके लिए भी फायदेमंद है।

प्लास्टिक बैन का मुद्दा सिर्फ पर्यावरण प्रदूषण और उसके उपभोक्ताओं का ही मुद्दा नहीं है यह बात उन 15 लाख लोगों की भी है, जिनकी जीविका इसी कचरे पर निर्भर करती है। कौन अपने और अपने परिवार के लिए बेहतर जिंदगी नहीं चाहता। यह काम उनके लिए भी मजबूर है, जिसमें उनका पूरा परिवार लगा रहता है। ऐसे में इस रिपोर्ट का मानना है कि सबसे पहले उस प्लास्टिक को बैन किया जाना चाहिए, जो कचरा बिनंने के बाद भी पर्यावरण में रह जाती है और उसे दूषित करती है। उसके बाद इन लोगों की जीविका का इंतजाम करते हुए बाकी की प्लास्टिक को भी देश में प्रतिबंधित करना चाहिए।

देश को प्लास्टिक और गरीबी दोनों समस्याओं को साथ-साथ देखना होगा। यहां हम अमेरिका या यूरोप की बात नहीं कर रहे जहां इस तरह का फैसला लेना आसान है। हमें इसे बंद करने के साथ-साथ उन लोगों के रोजगार के नए अवसरों को भी तलाशना होगा। इस रिपोर्ट में कुछ सिंगल यूज़ प्लास्टिक पर तुरंत बैन करने, कुछ को ईपीआर के दायरे में लाने की बात कही गई है। बेहतर कचरा प्रबंधन के साथ-साथ सर्कुलर इकोनॉमी दोनों में इन लाखों कचरा बीनने वाले लोगों के लिए भी जीविका के अवसर तलाशने की बात कही है। यह वो नुस्खा है जिसकी आज पूरी दुनिया को जरुरत है।  (downtoearth.org.in)

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