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पाकिस्तान में पनाह के लिए बढ़ती अफगान लोगों की तादाद, लोगों को तालिबान से आखिर क्या डर है?
30-Aug-2021 7:50 PM
पाकिस्तान में पनाह के लिए बढ़ती अफगान लोगों की तादाद, लोगों को तालिबान से आखिर क्या डर है?

Shumaila Jaffery

-शुमाइला जाफरी

अफगानिस्तान पर तालिबान के नियंत्रण के बाद हजारों अफगान यातनाओं के डर से मुल्क छोड़ रहे हैं। ऐसे ही सैकड़ों लोग चमन बॉर्डर के रास्ते पाकिस्तान पहुंच रहे हैं।

चमन अफगानिस्तान की सीमा से सटा पाकिस्तान का छोटा-सा शहर है, लेकिन इन दिनों यहां काफी हलचल देखने को मिल रही है। हर दिन यहां बड़ी संख्या में अफगानिस्तान से लोग पहुंच रहे हैं वहीं सीमा पार करने की उम्मीद लिए दूसरी तरफ हजारों लोग एकत्रित हो चुके हैं।

जो लोग पाकिस्तान की सीमा में आ चुके हैं, उनके चेहरों पर राहत के साथ साथ भविष्य की चिंता की लकीरें भी दिख रही हैं कि आगे क्या होगा। कुछ शरणार्थियों ने बीबीसी से अपने अनुभवों को साझा किया है। इन शरणार्थियों की सुरक्षा के लिए हमने इनके नाम बदल दिए हैं।


Shumaila Jaffery

दो मांओं की कहानी
काबुल में अपना घर बार छोडक़र चमन पहुंची जिरकून बीबी (बदला हुआ नाम) एक टेंटनुमा कैंप में बैठी हैं। वह अभी-अभी आई हैं। उन्हें इंतजार है कि समुदाय के लोग उन्हें किसी अनजानी जगह लेकर जाएंगे क्योंकि उनका अपना कोई रिश्तेदार पाकिस्तान में नहीं है।
जिरकून बीबी हजारा समुदाय की हैं और अपनी जि़ंदगी में दूसरी बार शरणार्थी बनी हैं। आप कैसी हैं, ये पूछते ही वह सुबकने लगीं।
उन्होंने कहा, ‘मेरा दिल तड़प रहा है। मेरे बच्चे का क्या हाल होगा? मेरा इकलौता बेटा है।’
इनके इकलौता बेटे एक ब्रिटिश कंपनी में काम करते हैं और वे अब तक अफगानिस्तान से बाहर नहीं निकल पाए हैं। वह बताती हैं, ‘जब मेरी बहू मारी गई थी तो मैं लंबे समय तक रात में सो नहीं पाई थी। सब कुछ भूल गई थी।’
जिरकून बीबी के मुताबिक उनकी बहू की मौत कुछ साल पहले हजारा समुदाय को निशाना बनाने वाले तालिबान के एक बम धमाके में हुई थी।
उन्होंने बताया, ‘तालिबान के लोग बेहद ख़तरनाक हैं। मैं उनसे काफ़ी डरती हूं। उनमें थोड़ी भी दया नहीं होती है, वे निर्दयी होते हैं।’

जिरकून बीबी की दो युवा बेटियां उनके पीछे दुबकी हुई हैं जबकि छोटी-सी पोती उनकी गोद में है। जाहिर है इन सबका अपना घर पीछे रह गया है।

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उन्होंने कहा कि ‘बहू की मौत देख चुकी हूं लिहाज़ा दूसरा दुख झेलने की हिम्मत नहीं रही। मुझे अपने घर या सामान की फिक्र नहीं है। मुझे केवल अपने बेटे और उसकी बेटी की फिक्र है। मैं वहां कहां जाती, क्या करती। मैंने इस बच्ची की मां को अपने हाथों से क़ब्र में दफऩाया है। बच्चों को पालने में काफी कोशिशें लगती हैं, मैं एक और सदस्य को खोना नहीं चाहती।’

गजनी की जारमीने बेगम शिया समुदाय से हैं। वह भी कुछ महिलाओं के समूह के साथ पाकिस्तान की सीमा में पहुंची हैं। अफगानिस्तान में शिया समुदाय के लोगों को भी तालिबान ने अतीत में निशाना बनाया है। जारमीने बेगम की उम्र साठ साल से ज़्यादा की है। उन्होंने बताया, ‘तालिबान के शासन में लौटने के बाद हम लोग इतने डर गए कि सब कुछ छोडक़र वहां से भागने का फैसला कर लिया।’

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हालांकि ज़ारमीने बेगम के मुताबिक यहां सीमा पर भी स्थिति अच्छी नहीं है, महिलाओं के लिए किसी तरह की प्राइवेसी नहीं है। लेकिन इन लोगों के सामने देश छोडऩे के अलावा दूसरा विकल्प नहीं था।

उन्होंने बताया, ‘तालिबान लौट आए हैं, हमारी आशंका है कि आतंक का दौर फिर शुरू होगा। वे हमारे घरों की तलाशी ले रहे हैं। वे सरकारी अधिकारियों की तलाशी कर रहे हैं। हमें लगता है कि किसी दिन भी हिंसा का दौर शुरू हो सकता है।’

जिरकून की तरह ही जारमीने भी दूसरी बार विस्थापन झेल रही हैं। उन्होंने बताया, ‘1980 के दौर में युवाओं वाली उम्र थी तो हालात से तालमेल बिठाना आसान था। अब तो थोड़ी दूर चलने पर दम फूलने लगता है।’

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लोगों में कोई उम्मीद नहीं
चमन स्पिन बोल्डक सीमा, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच की सबसे व्यस्त क्रॉसिंग में एक है। इस क्रॉसिंग से हर दिन हजारों कारोबारी एक देश से दूसरे देश जाते रहे हैं। लेकिन इन दिनों पाकिस्तान आने वाले लोगों की संख्या कहीं ज्यादा है।

तेज धूप में धूल से सने सैकड़ों लोग अपने कंधों पर सामान उठाए चले आ रहे हैं, बुर्का पहने महिलाएं भी अपने अपने मर्दों के पीछे, बच्चों को संभाले नजर आती हैं। इस भीषण गर्मी में कइयों के पैरों में जूते चप्पल नहीं दिखते। मरीज़ सामान ढोने वाले व्हीलर में पाकिस्तान की सीमा में लाए जा रहे हैं। इनमें युवा और महिलाएं भी शामिल हैं।

18 साल के जमाल ख़ान काबुल में 11वीं के छात्र थे। उन्हें तालिबान के बिना किसी प्रतिरोध के अफगानिस्तान पर नियंत्रण स्थापित करने से बेहद निराशा है। उन्होंने बताया, ‘हर कोई अपने घर में रहना चाहता है, लेकिन हम अफगानिस्तान छोडऩे पर मजबूर हुए हैं। हमें पाकिस्तान या किसी दूसरे देश जाकर अच्छा नहीं लग रहा है, सब लोग चिंतित है, लेकिन उनके पास अपने देश में कोई उम्मीद नहीं है।’

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तालिबान के लौटने से अफग़़ानिस्तान में महिलाओं की स्थिति में क्या बदलाव आया है, इसके बारे में जमाल ने बताया, ‘तालिबान के नियंत्रण हासिल करने के दूसरे दिन जब मैं काबुल की गलियों और बाजारों में निकला तो मुझे कोई महिला नहीं दिखाई दी। लेकिन जब मैंने कुछ को देखा तो उन लोगों ने अपने पूरे शरीर को चादर से ढक रखा था।’

जमाल ने यह भी बताया इस बार तालिबान महिलाओं के साथ उस तरह का बुरा बर्ताव नहीं कर रहे हैं जैसा कि पिछले शासन में किया था, लेकिन महिलाएं बुरी तरह डरी हुई हैं।

मोहम्मद अहमर पंजशीर घाटी के हैं, लेकिन हाल तक वे काबुल में अंग्रेज़ी टीचर थे। उन्होंने अपनी पढ़ाई भी काबुल से पूरी की है। उन्होंने बताया, ‘यह एकदम अविश्वसनीय था। ईमानदारी से कहूं तो हम नहीं जानते थे कि एक ही रात में वे काबुल पर कब्जा कर लेंगे। मुझे अब भी अपने स्कूल और वहां की पढ़ाई को लेकर डर बना हुआ है।’

अहमर के मुताबिक तालिबान का व्यवहार इस बार कुछ अलग है, लेकिन जो लोग उनकी यातनाएं झेल चुके हैं, वे उन पर आसानी से विश्वास करने को तैयार नहीं हैं। अहमर कहते हैं कि उनके पास भविष्य की कोई योजना नहीं है, लेकिन जो भी हो वह अफग़़ानिस्तान के मौजूदा शासन के अधीन तो नहीं होगा।

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उन्होंने बताया, ‘मैं जीवन में अपने फ़ैसले ख़ुद लेना चाहता हूं। आज़ाद रहना चाहता हूं। इसलिए मैं तो वापस नहीं लौट रहा हूं।’

अली चंगेजी गजनी में प्रशासनिक अधिकारी थे। उन्होंने बताया कि जिस दिन अशरफ गनी की सरकार गई, उसी दिन से वे अफगानिस्तान से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे। उन्होंने ये भी बताया कि उन्हें सीमा पर तीन बार लौटा दिया गया क्योंकि उनके पास यात्रा करने के लिए ज़रूरी दस्तावेज नहीं थे, लेकिन बाद में पाकिस्तानी अधिकारियों ने मानवीय आधार पर उन्हें सीमा में आने दिया।

अली चंगेज़ी ने बताया, ‘अभी तो जि़ंदा रहना सबसे बड़ी प्राथमिकता थी, इसलिए हमने देश छोडऩे का फैसला किया। हम पाकिस्तान इसलिए आए हैं क्योंकि हमें लगता है कि हम यहां सुरक्षित हैं।’

अफगानिस्तान के एक पूर्व सैनिक ने अपने युवा बेटे को बात करने के लिए आगे किया। वह अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ पाकिस्तान की सीमा में आए हैं। उनके बच्चे ने बताया कि तालिबान के आश्वासन के बाद भी उनका परिवार काफी डरा हुआ था, इसलिए वे लोग इधर आए हैं।

हमें सीमा पर तालिबान का एक युवा लड़ाका भी मिला। सफेद सलवार कमीज और काले रंग की वेस्टकोट पहने इस लड़ाके के बाल बेहद लंबे थे और उसने अपने मूंछें कटा रखी थीं। उसने कहा कि ‘आप मेरी बातों को रिकॉर्ड नहीं करें क्योंकि इससे उनके बड़े लोग नाराज़ होंगे।’

24 साल के इस लड़ाके ने यह भी दावा कि वह 17 साल से तालिबान के लिए संघर्ष कर रहा है। उसने दावा किया है कि अफगानिस्तान में पूरी तरह शांति है और विदेशी सैनिकों के जाने के बाद अफगानी नागरिकों की चिंता भी दूर होगी।

उसने यह भी कहा, ‘यह केवल विश्वास और भरोसे की समस्या है। लोगों को यह जल्दी ही मालूम हो जाएगा, हमलोग जो वादा कर रहे हैं, उसे पूरा भी करेंगे।’

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हताशा और निराशा
पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर तालिबान का झंडा फहरा रहा है। इस सीमा को पार करने वाले शरणार्थियों का कहना है कि उन्हें कोई भविष्य नहीं दिख रहा है।
पाकिस्तान पहले से ही लाखों अफगान नागरिकों की मेज़बानी कर रहा है, उसका कहना है कि वह और ज़्यादा लोगों के आने की स्थिति का सामना नहीं कर पाएगा।

इस्लामाबाद प्रशासन जल्दी ही शरणार्थियों के प्रवेश पर पूरी तरह से रोक लगा देगा, यह स्थिति बहुत दूर नहीं दिख रही है। यह भी कहा जा रहा है कि इस बार सीमावर्ती क्षेत्र में ही शरणार्थियों के कैंप लगाए जाएंगे और अफगानों को मुख्य शहरों में प्रवेश नहीं दिया जाएगा।

हालांकि अभी तक चमन स्पिन बोल्डक सीमा पर पाकिस्तानी अधिकारियों की नीति नरम दिख रही है। लेकिन शरणार्थियों को अंदाजा है कि बहुत समय नहीं बचा है। लिहाजा वे अफगानिस्तान से बाहर निकलने के लिए कोई भी जोखिम उठाने को तैयार दिखते हैं।

कोई अपनी जान बचाने के लिए पाकिस्तान पहुंच रहा है तो कोई अपनी गरीबी दूर करने के लिए। कंधार के एक पश्तून मजदूर ओबैदुल्लाह ने बताया कि व्यवसाय नष्ट हो गए हैं और अर्थव्यवस्था पूरी तरह से चरमरा गई है। उन्होंने बताया, ‘कंधार में सामान्य स्थिति है, लेकिन कोई काम नहीं है, मैं यहां आया हूं ताकि कुछ काम मिल जाए। शायद मैं यहां रिक्शा चलाऊं।’

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ओबैदुल्लाह ने कहा कि उन्होंने अफ़ग़ान सीमा पर लंबी कतारें देखी हैं.

उन्होंने बताया, ‘स्पिन बोल्डक चमन क्रासिंग पर लोगों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, खासकर महिलाओं को। अफगानिस्तान की सीमा की तरफ बहुत भीड़ है, उन्हें धकेला जा रहा है। कतारें लंबी हैं, जहां तक आप देख सकते हैं वहां तक इस तरफ आने के लिए लोग बेताब हैं।’

संगीन खान अफगान हैं, लेकिन वह पाकिस्तान में सेटल हो चुके हैं। वे अभी नंगरहार से लौटे हैं जहां वह अपनी बीमार बहन को देखने गए थे। उन्होंने बताया कि तालिबान से ज्यादा गरीबी अफगानिस्तान में लोगों की जान ले रही है।

उन्होंने बताया, ‘लोगों के पास खाने के लिए कुछ नहीं है, अर्थव्यवस्था खऱाब है, इसलिए वे पाकिस्तान और तुर्की जैसे अन्य देशों की ओर पलायन कर रहे हैं।’
फारसी बोलने वाले कोयला खदान के एक मज़दूर बागलान से आए हैं। उन्होंने अपने कंधे पर एक छोटे से बोरे में अपना सामान रखा हुआ है। उनकी पत्नी सावधानी से काले बुर्के में उनके पीछे पीछे चल रही है।

उन्होंने बताया, ‘बागलान में सारी खदानें बंद हैं, इसलिए काम नहीं मिल रहा है। मैं चमन क्रासिंग से सौ किलोमीटर दूर कुचलक जा रहा हूं, वहां कोयला खदानों में कुछ काम मिल जाएगा।’

ये शरणार्थी तालिबान से भी शरण ले रहे हैं। लेकिन चमन क्रासिंग के पास ही। जब कोई च्ेटा-कंधार सडक़ से गुजरता है तो उसे तालिबान के झंडे कई जगहों पर दिखाई देते हैं।

कुचलक से जंगल पीर अली जई के बीच का क्षेत्र विशेष रूप से अफग़़ान तालिबान का घर माना जाता है।

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च्ेटा-कंधार सडक़ के किनारे, कम से कम चार कब्रिस्तान हैं जिन्हें स्थानीय लोग ‘शहीदों का कब्रिस्तान’ कहते हैं। यहां कई अफगान तालिबान लड़ाकों की क़ब्रें हैं। कई कब्रें पुरानी हैं तो कुछ नई भी हैं। एक स्थानीय ड्राइवर ने हमें बताया कि हाल की लड़ाई में मारे गए कुछ लोगों को यहां दफनाया गया है।

पाकिस्तान अब खुले तौर पर अफगान तालिबान के साथ अपने संबंधों और अपनी धरती पर उनके परिवारों की मौजूदगी को स्वीकार करता है, लेकिन यह मानता है कि ये सिर्फ तालिबान नहीं हैं। पाकिस्तान इस समय 30 लाख से अधिक अफगान शरणार्थियों की मेजबानी कर रहा है। इनमें से लगभग आधे लोग अपंजीकृत शरणार्थी हैं।

पाकिस्तान ने दोहराया है कि अफगानिस्तान में वह किसी की हिमायत नहीं कर रहा है और वह अफगान संकट के उन सभी समावेशी सियासी समाधान का समर्थन करेगा जिसे बाहर से नहीं थोपा गया हो।

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पाकिस्तान में कई विश्लेषकों का मानना है कि अफगान तालिबान ने अब ख़ुद को बदला है, विकास किया है और खुद को एक राजनीतिक इकाई के रूप में स्थापित किया है। हालांकि उन्हें अभी अपने अतीत से पीछा छुड़ाने में वक्त लगेगा।

जबकि कुछ दूसरे विश्लेषकों का कहना है कि जब तक विश्वास बहाल नहीं हो जाता, तब तक अफगान नागरिक अपने जीवन और भविष्य के लिए भागते रहेंगे। इनके मुताबिक तालिबान शासन के तहत उनका कोई भविष्य नहीं हो सकता। (bbc.com/hindi)
 

 

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