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जालियाँवाला बाग : हजारों ने कैसे प्राण गँवाए?
31-Aug-2021 2:25 PM
जालियाँवाला बाग : हजारों ने कैसे प्राण गँवाए?

कांड के महीनों बाद 1919 में बाग का दृश्य फोटो विकिपीडिया से

-आर.के. जैन

मैंने जालियाँवाला बाग देखा है और देखा है कैसे एक क्रूर व्यक्ति ने हजारों निहत्थे नागरिकों पर पाशविकता की सारी हदें पार कर गोलियां बरसाई थी। गोलियों के निशान, लोगों की जान बचाने की जद्दोजहद और फिर शहादत देना, वहां का शहीद स्मारक देखकर देखकर आज भी बदन में कंपन पैदा करता है। आप न चाहते हुऐ भी अपनी ऑंखें नम कर लेते हैं और शहीदों के प्रति श्रद्धा से मस्तक झुका लेते है। जालियाँवाला बाग के अंदर जाने व बाहर निकलने का आज भी एक ही रास्ता है।

13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन अंग्रेज जनरल डायर ने रौलेट एक्ट का विरोध करने पर हजारों निहत्थे और शांतिपूर्वक विरोध करने वालों पर लगभग 25000 गोलियां चलवाई थी। बाहर निकलने का कोई दूसरा रास्ता नहीं और जो एक रास्ता था उसपर दरिंदे डायर कब्जा कर गोलियां चलवा रहा था। आँकड़ों में यद्यपि 1000-1500 लोगों की शहादत लिखी है पर वहां के निशान और नजारा देखकर लगता है कि शहादत देने वालों की संख्या कई गुना ज़्यादा होगी।

दुनिया के तमाम शिक्षित देश व समाज हमेशा अपने ऐतिहासिक विरासत से जुड़ी हुई जगहों व संरचनाओं को संजोकर रखते है ताकि देश की भावी पीढ़ी को अपने इतिहास व सही तथ्यों की जानकारी हो सके और वह उनसे प्रेरणा लेकर सबक ले सके। यूरोप व दुनिया में ऐसे कई स्मारक है जहॉ भयंकर नरसंहार हुआ था और उन स्मारकों का वातावरण, माहौल वैसा ही मलिन रखा हुआ है ताकि वहां जाने वाला वह दर्द महसूस कर सके कि वास्तव में वहॉ हुआ क्या था और लोगों ने कैसे प्राण गँवाए होंगे।

जालियाँवाला बाग शहीद स्थल का सरकार ने सौंदर्यीकरण व नवीनीकरण किया है और शायद वहां पर ‘लाइट एंड साउंड शो’ की भी व्यवस्था की गई है।यह भी जानकारी में आया है कि वहाँ की भव्यता व सौंदर्य अब एक अलग ही दुनिया में ले जाती है जिसमें वहां जाने वाला व्यक्ति शहीदों के प्रति अपनी भावनाओं को भूलकर वहाँ की चकाचौंध व भव्यता में खो जाएगा ।

मेरा मानना है कि जालियाँवाला बाग जैसे शहीदी स्मारक, जहां हजारों आजादी के दीवानों ने एक सनकी व राक्षसी प्रवृत्ति के व्यक्ति के हाथों प्राण गँवाए हो उसकी मूल संरचना व वातावरण को नहीं बदला जाना चाहिए वरना वहां जाने का उद्देश्य ही खत्म हो जायेगा। जरूरत है कि वहां का माहौल व संरचना वैसे ही रखे  जाये जैसा कि वर्ष 1919 में था ताकि वहां जाने वाला हर व्यक्ति महसूस कर सके और सबक लेकर जान सके कि वहां पर क्या और कैसे घटित हुआ था और हजारों लोगों ने कैसे प्राण गँवाए थे।

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