विचार / लेख
- रमेश अनुपम
यह मेरे लिए अद्भुत संयोग है कि कल 25 मार्च को बस्तर महाराजा स्वर्गीय प्रवीर चंद्र भंजदेव की 56 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर मैं जगदलपुर में मौजूद था। कल जगदलपुर में राजमहल के निकट एक सर्वदलीय सभा में सभी राजनैतिक दलों और विभिन्न आदिवासी समुदायों के नेताओं ने बस्तर महाराजा स्वर्गीय प्रवीर चंद्र भंजदेव का स्मरण किया। उनकी और बस्तर गोली कांड में मारे गए सैकड़ों आदिवासियों की पुलिस द्वारा की गई नृशंस हत्या की सभी वक्ताओं द्वारा निंदा की गई।
इस अवसर पर 31 मार्च 1961 को हुए लोहंडीगुड़ा गोली कांड की चर्चा भी विस्तार से की गई। सभी ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण घटना बताया जिसे टाला जा सकता था।
वर्तमान में बस्तर में चल रहे विभिन्न आदिवासी आंदोलनों की चर्चा और आदिवासियों में व्याप्त असंतोष की भी व्यापक रूप से चर्चा की गई।
बस्तर महाराजा स्वर्गीय प्रवीर चंद्र भंजदेव की हत्या को सभी वक्ताओं ने एक स्वर में एक गहरी साजिश का हिस्सा निरूपित किया।
बस्तर के दूर-दूर के इलाकों से बड़ी संख्या में आदिवासी पुरुष और महिलाएं इस सभा में सम्मिलित होने आए हुए थे। अपने प्रिय महराजा को अपनी ओर से श्रद्धा सुमन अर्पित करने। उनकी 56 वीं पुण्यतिथि पर उन्हें नमन करने।
बस्तर महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की पुण्यतिथि पर पहली बार कल इतना बड़ा आयोजन जगदलपुर में संपन्न हुआ। एक तरह से यह बस्तर के इतिहास में एक यादगार आयोजन सिद्ध हुआ।
मैं 'छत्तीसगढ़ एक खोज' के अंतर्गत प्रवीर चंद्र भंजदेव : एक अभिशप्त नायक या आदिवासियों के देवपुरुष की अब तक उन्नीस कड़ियां लिख चुका हूं। बकौल रमेश नैयर जो इस सीरीज के उत्सुक पाठक ही नहीं प्रशंसक भी हैं उनका मानना है कि स्वर्गीय महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की आत्मा जैसे मेरे आस-पास ही कहीं मंडरा रही है।
इसलिए इस बीसवीं कड़ी के लिखे जाने के ठीक एक दिन पहले 25 मार्च को महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की 56 वीं पुण्यतिथि पर आयोजित इस समारोह में सम्मिलित होना मेरे लिए एक अपूर्व अनुभव था।
श्रद्धांजलि सभा के पश्चात वक्ताओं सहित नगर के गणमान्य नागरिकों के लिए राजमहल में दोपहर भोज का प्रबंध था। पहली बार मुझे राजमहल के भीतर प्रवेश करने का अवसर मिल रहा था। इससे पहले इसे दूर से ही निहार कर मुझे संतुष्ट हो जाना पड़ता था।
मुख्य द्वार पर स्थित महाराजा की आराध्य देवी दंतेश्वरी का मंदिर है उसके बाद ही राजमहल है।
राजमहल की आठ सीढियां चढ़ने के बाद ही राजमहल में प्रवेश संभव होता है। 25 मार्च 1966 में हुए गोली कांड के साक्षात गवाह इस राजमहल के भीतर प्रवेश करना मुझे रोमांचित और उद्वेलित करने के लिए पर्याप्त था।
राजमहल के भीतर प्रवेश करते ही सामने बस्तर महाराजा स्वर्गीय प्रवीर चंद्र भंजदेव की एक विशाल तस्वीर दिखाई देती है और उसके ठीक सामने वह सिंहासन रखी हुई है जिस पर महाराजा आसीन होते थे।
अगल-बगल की दीवारों में स्वर्गीय महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की दुर्लभ पारिवारिक तस्वीरें और वनभैंसा और बारहसिंगा के सिर कलात्मक अभिरुचि के साथ लगाए गए हैं। संभवत: ये तस्वीरें महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव के जमाने से हों।
25 मार्च 1966 को जब बंदूक लेकर पुलिस बल राजमहल के भीतर घुसा होगा तो वनभैंसा और बारहसिंगा ने क्या कोई प्रतिवाद नहीं किया होगा ?
क्या राजमहल की खामोश दीवारों ने चीख-चीख कर इस बर्बरता का कोई प्रतिकार नहीं किया होगा ?
राजमहल के इन दीवारों पर से भले ही गोलियों और खून के दाग़ मिटा दिए गए हों, उसके जिस्म से भले ही उन घावों को नोच कर, खुरच कर मिटाने की कोशिशें की गई हों पर क्या उसकी आत्मा में लगे हुए घावों को भी कभी मिटाया जा सकता है?
राजमहल में प्रवीर चंद्र भंजदेव के वंशज कमल चंद्र भंजदेव तथा राजमाता अतिथियों के आत्मीय स्वागत सत्कार में व्यस्त थीं।
मैं राजमहल के दरवाजों, खिड़कियों और दीवारों से बात करने में लग जाता हूं।
मैं उनसे पूछता हूं कि अब भी उस वीभत्स गोली कांड की टीस को क्यों नहीं भूला पा रहे हो ? क्यों उन सभी हत्यारों को अब भी भूला पाना उनके लिए कठिन है ?
एक वक्ता ने तो अपने उद्बोधन में यहां तक कहा था कि बस्तर महाराजा प्रवीर चंद्र भंजदेव की नृशंस हत्या के लिए जो लोग भी दोषी थे उनका अंत उतना ही दुखद था।
मैं बहुत ध्यान से उनकी आवाज को सुनने की कोशिश करता हूं। क्या खिड़कियां और दरवाजे भी कभी बोलते हैं ?
जी हां वे भी बोलते हैं अगर आपमें उन्हें सुनने और समझने का धैर्य हो। उनसे एक आत्मीय राग जोड़ना आता हो। वे आपसे सब कुछ शेयर कर सकते हैं बशर्ते आप उनसे संवाद करने के लिए उत्सुक हों।
शेष अगले सप्ताह...