विचार / लेख
-कनक तिवारी
हर राजनीतिक पार्टी गांधी के जाप से ही सियासती बिस्मिल्लाह करती है। बैरिस्टर गांधी ने आदर्श राजनीतिक व्यवस्था के लिए ‘हिन्द स्वराज’ नाम की छोटी सी लेकिन अमर किताब 1909 में लिखी। गांधी कहते मैंने आज जो कहा, यदि बीत गए कल उससे उलट कहा हो, तो मेरा ताजा बयान ही मेरा फलसफा होगा। ‘हिन्द स्वराज’ से आसक्ति दिखाते केजरीवाल ने अपना राजनीतिक टेस्टामेंट ‘स्वराज’ के नाम से 2012 में प्रकाशक हार्पर कॉलिंस पब्लिशर्स इंडिया और इंडिया टुडे गु्रप नई दिल्ली के द्वारा संयुक्त रूप से प्रकाशित किया।
किताब का मर्म स्वराज पाने का अहसास ही है। बीच बीच में आकर्षक कार्टूननुमा रेखाचित्र भी हैं। यदि स्कूली पाठ्यक्रम में किताबों को शामिल कर लिया जाए तो केजरीवाल की पहुंच घर घर हो सके। ‘स्वराज’ की भूमिका में खुद को दूसरा गांधी प्रचारित करते, समझते अन्ना हजारे ने बड़बोलापन किया कि देश की जनता में जो जोश अभी है। अगर कायम रहा तो अगले दस बरस में देश का कायापलट हो जाएगा। जनता में जोश क्या हताशा भी कायम रही लेकर हालत तो बद से बदतर हो गई। अन्ना ने यहां तक कह दिया केजरीवाल की किताब में जो लिखा है, वह आगे के भारत का घोषणा पत्र है।
कई सरकारी अधिनियमों, कानूनों, परियोजनाओं, प्रयोगों और सरकारी फैसलों को लेकर केजरीवाल ने अनोखा तर्कशास्त्र खड़ा किया है। केजरीवाल किताबी कीड़े या अकादेमिक नहीं हैं। केन्द्र शासन की सेवा में चयनित और नियुक्त प्रथम श्रेणी के अधिकारी रहे। दिल्ली की संवैधानिक व्यवस्थाओं के कारण ग्रामीण अर्थशास्त्र की गांधी का सपना गूंथने की कोशिश संभव नहीं हुई। पंजाब में पूर्ण विधानसभा है। पंजाब की अर्थव्यवस्था, राजनीति और नागरिक चेतना का मुख्य स्त्रोत किसान और किसान आंदोलन है तथा देश की औसत से ज़्यादा उत्पादित होने वाली फसलें हैं।
विधानसभा को संविधान के अनुच्छेद 7 की राज्य अनुसूची के तहत 66 विषयों के लिए कानून बनाने का दायित्व है। उनमें से कई दायित्व संविधान की 11 वीं और 12 वीं सूची बनाकर पंचायतों और नगरपालिक संस्थाओं को सौंपे गये हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता, सार्वजनिक वितरण प्रणाली, गरीबी उन्मूलन, पेयजल, ग्रामीण विद्युतीकरण वगैरह को स्वायत्तशासी संस्थाओं को सौंपा गया है। केजरीवाल की पार्टी फकत स्कूल, अस्पताल, सडक़, सफाई, बिजली आदि के मुद्दों को राष्ट्रीय सफलता का प्रतिमान बनाना चाहती है। लोकतंत्र में नागरिकों के मूल अधिकारों का संवर्धन और पोषण करना लोकप्रिय सरकारों का काम है। उससे केजरीवाल अक्सर कन्नी काटते रहते हैं। राजनीति का गैरराजनीतिकीकरण करना लोकतंत्र के भविष्य के लिए सवाल खड़े करता है। अजीब है कि भारत के नागरिक और उसमें से भी दिल्ली के निवासी प्राथमिक सुविधाओं में बढ़ोतरी होने से इतने खुश हैं मानो एक पार्टी लोकतंत्र को उसके मुकाम तक पहुंचा चुकी हो, जबकि हकीकत ऐसी नहीं है। केजरीवाल थीसिस के अनुसार इक्कीसवीं सदी में भी सरकारें लोकतांत्रिक मूल्यों के संवर्धन के बदले केवल मैनेजमेंट करेंगी और जनता कृतकृत्य महसूस करने गाफिल रखी जाएगी।
‘जनता का तिलक करो’ नाम का परिच्छेद बहुत दिलचस्प है। केजरीवाल कहते हैं उनका गुस्सा सरकारी कर्मचारियों पर सबसे ज़्यादा है। डॉक्टर, अध्यापक और थानेदार जैसे लोग गांव में अपना काम नहीं करें तो तनख्वाह रोक ली जाए। तनख्वाहें रोक लेने से गांव में थानेदार, अध्यापक और डॉक्टर आदि लोगों की अपेक्षा के अनुसार काम करने लगेंगे। केजरीवाल बीपीएल परिवारों की परिभाषा तय करने का काम भी गांव के लोगों को देना चाहते हैं लेकिन नहीं बताते कि संविधान और कानून के किस प्रावधान के तहत राज्य सरकार ऐसा कर सकती है। थानेदार, डॉक्टर और शिक्षक जैसे लोकसेवकों को दंडित करने का काम ग्राम सभाओं को मिले। इसके लिए सेवा नियमों में परिवर्तन करना होगा। क्या वे पंजाब और दिल्ली की विधानसभाओं में लोकसेवकों की सेवा शर्तों में ऐसे परिवर्तन कर पाएंगे जो वे अपनी किताब ‘स्वराज’ में बार बार रेखांकित करते हैं? उन्हें संविधानसम्मत माना भी जाएगा?
केजरीवाल कहते हैं गांव का समाज तय करेगा कि अमुक व्यक्ति के पास रहने को घर नहीं है तो उसको हम घर देंगे। इस पृष्ठभूमि में केन्द्रीय बजट, नीति आयोग, आर्थिक संरचना, बैंकों की कारगुजारियां और जनअधिकार संबंधी व्यवस्थाएं सब कैसे हल या हासिल की जाएंगी? वे कहते हैं अगर कोई रोजगार या खेती करना चाहता है तो उसे ग्राम सभा से कर्ज या हो सके, तो मुफ्त फंड भी मिलेगा। कितने गरीब रोजगार करना चाहते हैं? उसके लिए धन कहां से आएगा? इन बातों की सांख्यिकीय या ब्यौरा केजरीवाल नहीं देते। मोदी के मित्र गौतम अडानी ने लाखों टन अनाज उदरस्थ करने के लिए आधुनिक गोडाउन पहले ही बना लिए। केजरीवाल ने खुलकर केन्द्र सरकार का विरोध नहीं किया।
संविधान का केजरीवाल ने अपनी किताब में सार्थक उल्लेख तक नहीं किया। हर नागरिक को मूल अधिकार अनुच्छेद 19 और 21 में अभिव्यक्ति की आज़ादी और जीवन के अधिकार के बाबत मिले हैं। दिल्ली में नागरिकता विवाद संबंधी आंदोलन हो रहा था। जामिया मिलिया तथा जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय सहित भारत के कई विश्वविद्यालयों के भी छात्र आंदोलन करते पिट रहे थे। केजरीवाल की पार्टी ने उससे किनाराकशी कर ली। मोदी सरकार ने कश्मीर का अवमूल्यन कर दिया। आम आदमी पार्टी को उससे कोई सरोकार नहीं रहा। दुनिया के इतिहास का सबसे बड़ा एक साल चलने वाला किसान आंदोलन भारत में हुआ। केजरीवाल और आम आदमी पार्टी उससे लुका-छिपी करते रहे। लखीमपुर-खीरी में किसानों को मोटरगाडिय़ों से रौंद दिया गया। उसे लेकर भी केवल जमा ही जमा खर्च किया गया।
गांधी ने लोकजीवन में असाधारण नया प्रयोग सदियों से पीडि़त, शोषित और पस्तहिम्मत जनता को सत्याग्रह के नए मूल्यों से संपृक्त करते किया। दीनदयाल उपाध्याय ने भी बहुत महत्वपूर्ण बात कही कि लोकतंत्र में जनता की राजनीतिक समझ में परिष्कार करना चाहिए। बड़े नेता नियामक मूल्यों को गढ़ते समय रोज ब रोज के पचड़े में नहीं पड़ते क्योंकि वे काम नौकरशाही के काम हैं। उसे भी केजरीवाल ने राज्य सरकार के लिए बुनियादी काम समझ लिया है। वे राजनीति की मूल्य नियामकता की बातें नहीं करते याने जनता के जो संवैधानिक मूल्य और अधिकार हैं।
गांधी ने स्वैच्छिक गरीबी, स्वैच्छिक सादगी और स्वैच्छिक धीमी गति के सिद्धांत दिए थे। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान का शपथ ग्रहण समारोह जनता के करोड़ों रुपए खर्च कर होता है। तो गांधी की तस्वीर को मुख्यमंत्री के सिर के पीछे से तो क्या दिमाग से भी हटा देना चाहिए। करोड़ों रुपए खर्च करके भाजपा के उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक भोगी समारोह में शपथ ग्रहण करते हैं। तो ठीक ही नरेन्द्र मोदी ने गांधी को स्वच्छता के नाम पर शौचालय का ब्रांड अम्बेसडर बना दिया है। इस मामले में भाजपा और आम आदमी पार्टी ने गांधी के साथ समान सलूक करने में सहमति बना ली है।