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ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया
01-Apr-2022 4:52 PM
ज्यों की त्यों धरि दीन्हीं चदरिया

  बिसाहू दास महंत (1 अप्रैल 1924- 23 जुलाई 1978)  

-गणेश कछवाहा
स्व. बिसाहू दास महंत का जन्म 01 अप्रैल 1924 को छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले के ग्राम सारागांव में हुआ था। उनका जन्म छोटे किसान परिवार में हुआ था। जीवन संगिनी धर्मपत्नी जानकी देवी, दो पुत्र चरण दास महंत और राजेश महंत तथा चार बेटियों सहित संस्कारिक सुखी व समृद्ध परिवारिक विरासत थी। संत शिरोमणी कबीर साहेबजी के अनन्य अनुयायी रहे। जिसका गहरा प्रभाव उनके जीवन पर पड़ा। शिक्षा और संस्कार पर विशेष ध्यान और जोर देते थे। पढऩे और लिखने का काफी शौक था। 1942 और 1947 के बीच अपने कॉलेज जीवन में उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और इस वजह से सरकार ने उनके खिलाफ कार्रवाई की और उनकी छात्रवृत्ति को भी खारिज कर दिया था।

सामाजिक सरोकार  उनके स्वभाव व जीवन का एक अभिन्न हिस्सा था-लोगों से मिलना-जुलना उनके दु:ख-सुख में शामिल होना अपने आसपास के लोगों की यथायोग्य मदद करना, अन्याय का सामूहिक ग्रामीण जन शक्ति के साथ विरोध करना, सामाजिक सरोकार को जीना उनके स्वभाव व जीवन का एक अभिन्न हिस्सा  था। देश के स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी उनके आदर्श रहे। राष्ट्रीय स्वतंत्रता और समाजिक सरोकार से जुड़े  विषयों पर लेखन, चिंतन, विमर्श और चर्चा दैनिक जीवनचर्या थी। गांव और आसपास के लोग उनके व्यवहार, सदाचरण, सोच, बुद्धिमत्ता और  सेवाभाव से बहुत प्रभावित थे। यही आचरण और व्यवहार ने बिसाहू दास महंत  को उनका (ग्रामीण जनों का) एक स्वाभाविक जन नेता बना दिया था।

‘ज्यों कीं त्यों धर दीन्हीं चदरिया’
बिसाहूदास महंत की राजनीति में कोई विशेष रुचि नहीं थी। लेकिन उनके व्यक्तित्व ने कांग्रेस के तत्कालीन नेतृत्व को बहुत प्रभावित किया और देश की आजादी के बाद सन् 1952 में पहलीबार नया बाराद्वार क्षेत्र से विधायक चुने गए। तब से आजीवन 1978 तक विधायक और सम्माननीय मंत्री रहे। सन् 1967 से 1978 तक उनका चुनाव क्षेत्र चांपा रहा। 23 जुलाई 1978 को लगभग 54 वर्ष की उम्र में गृहनिवास सारागांव जिला जांजगीर चांपा में दीर्घ अस्वस्थता एवं हृदयाघात से निधन हो गया।  सांसारिक जीवन को अलविदा कह गए। संत कबीर की वाणी को आत्म सात करते हुए बहुत ही शांत मुद्रा में अपनी करनी-रहनी को यहीं संसार में निर्लेप भाव से छोडक़र बिना किसी वाद-विवाद, दाग या बुराई के ‘ज्यों कीं त्यों धर दीन्हीं चदरिया।’

लेकिन आज भी उनका व्यक्तित्व और कृतित्व राजनीति व सामाजिक जगत के लिए पथ-प्रदर्शक है। गौरवशाली धरोहर और विरासत है।

विरासत-स्मृति शेष बिसाहूदास महंतजी की विरासत को उनके सुपुत्र डॉ. चरणदास महंतजी पूरी निष्ठा से आगे बढ़ा रहे हैं और उसे समृद्ध कर रहे हैं। शांत, सरल,  और शालीन स्वभाव के चरणदास महंतजी पर अपने पूज्य पिताश्री के राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाने की जवाबदारी और जिम्मेदारी अचानक आ पड़ी। पिता के संस्कार, आदर्श, अनुशासन, आध्यात्मिक ज्ञान, गुरू संत शिरोमणी श्री कबीर साहेब जी के प्रति संपूर्ण समर्पण, सामाजिक सरोकार,लेखन, पठन, और छोटे-बड़े सभी के प्रति समान आदर भाव, ‘न काहू से दोस्ती न काहू से बैर’ (कोई विरोधी नहीं, कोई शत्रु नहीं) सभी के प्रति मित्रवत व्यवहार उन्हें अतिशीघ्र एक आदर्श और सफल राजनेता के रूप स्थापित कर दिया।  इसी सदाचरण और व्यवहार से लोग उनमें उनके पूज्य पिताश्री  स्व. बिसाहूदास महंत की छवि देख सुखद स्मृतियों का अहसास करते हैं। संप्रति डॉ. चरण दास महंत छत्तीसगढ़ विधान सभा के अध्यक्ष पद पर आसीन हैं। कुलवधु श्रीमती ज्योत्सना महंत सांसद हैं।

स्व. बिसाहू दास महंत स्मृति पुरस्कार
छत्तीसगढ भूपेश सरकार ने  हर साल राज्य के श्रेष्ठ बुनकरों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. बिसाहू दास महंत स्मृति पुरस्कार से सम्मानित करने का सराहनीय निर्णय लिया है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्व. महंत की पुण्यतिथि पर आयोजित कार्यक्रम में यह घोषणा की थी।

अशेष स्मृतियां सदैव पथ प्रदर्शन करते रहेंगी
मैं उस दृश्य को विस्मृत नहीं कर पाता हूं। शायद सन 1997 में जब अविभाजित मध्यप्रदेश में डॉ. चरणदास महंत गृहमंत्री थे और उन्होंने रविंद्र भवन भोपाल में संत कबीर पर ‘ढाई आखर’ के नाम पर एक कार्यक्रम आयोजित किया था। जिसका मंच संचालन मैने (गणेश कछवाहा) किया था। जगदीश मेहर, मनहरण सिंह ठाकुर और हमारी परिकल्पना से

रविन्द्र भवन भोपाल को कबीर कुटीर में तब्दील कर दिया गया था। जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री माननीय दिग्विजय सिंह सहित पूरा मंत्रिमंडल और प्रबुद्ध गणमान्य विद्वत जनों से पूरा हाल खचाखच भरा हुआ था। कई महत्वपूर्ण लोगों को  बैठने की जगह भी नहीं मिली पाई थी। यह प्रभाव था संत कबीर के साथ उनके अनुयायी  बिसाहूदास महंत के व्यक्तित्व  का। यह आयोजन संत कबीर के ताने बाने को समझने और बुनने की एक कोशिश थी।

वर्तमान जटिल और विषम राजनैतिक परिदृश्य में स्मृति शेष बिसाहू दास महंत की अशेष स्मृतियां, शुचिता एवं सदभाव पूर्ण और जन हितैषी राजनैतिक विचारधारा  सदैव पथ-प्रदर्शन करते रहेंगी
आज 1 अप्रैल 2022 को उनकी 96वीं पुण्य जयंती पर श्रद्धावनत सादर नमन् ।
(रायगढ़, छत्तीसगढ़)

 

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