विचार / लेख

सब बता दिए या और कोई बची है?
11-Apr-2024 3:20 PM
सब बता दिए या और कोई बची है?

द्वारिका प्रसाद अग्रवाल

जब मैं कालेज में पढ़ रहा था तो मेरी बहुत सी गर्लफ्रेंड्स थी।

बिलासपुर के हृदयस्थल गोलबाज़ार में ‘पेण्ड्रावाला’ के नाम से बेहद मशहूर मिठाई की दूकान है जिसे उन दिनों शहर भर के लोग जानते थे। मैं 10 वर्ष की उम्र से वहां काम सीखना शुरू किया और बाद में गद्दीनशीन हो गया।

उस समय भी हमारे परिवार की बहुत प्रतिष्ठा थी, यकीनन उसका लाभ मुझे भी मिलता था। मैं शक्ल से भोला-भाला दिखता था इसलिए कन्याएं मुझ पर सहज रीझ जाती थी क्योंकि भोंदू टाइप के लडक़ों से उनको अधिक खतरा नहीं रहता। उनके माता-पिता भी मेरी सज्जनता से प्रभावित हो जाते थे इसलिए घर में आने-जाने की सहज अनुमति मिल जाती थी। जब उनका मुझ पर भरोसा और बढ़ जाता तो उनकी बेटी को स्कूटर में बिठाकर घुमाने या सिनेमा ले जाने की भी इज़ाज़त मिल जाया करती थी।

उस समय लडक़ों के विवाह की औसत उम्र 20 वर्ष थी, मेरी उम्र बढ़ती जा रही थी लेकिन मेरा विवाह नहीं हो रहा था। विपरीतलिंगी आकर्षण मन में अपना जबरदस्त असर बनाए हुआ था। उनसे बातचीत और नजदीकी बनाए रखने का सुख कम न था। इस प्रकार उस बीच अनेक कन्याओं से मेरे मधुर संबंध बने और परिचितों के बीच मेरी इन उपलब्धियों पर ईष्र्यायुक्त चर्चाएं भी होती थी।

खैर, वह सब हुआ, खूब हुआ लेकिन समस्या तब आयी जब सन 1975 में 28 वर्ष की उम्र में मेरा विवाह हुआ। मेरे जलकुकड़े और दुष्ट मित्रों को मेरे वैवाहिक जीवन में ज़हर घोलने का सुअवसर नजर आने लगा। मैं आसन्न संकट को भलीभांति समझ रहा था और बचने के उपाय खोज रहा था।

मुझे अपनी पत्नी के स्वभाव के बारे में कुछ भी मालूम न था पर मैं यह अच्छी तरह जानता था कि वे खबरें जब बाहर से उन्हें मिलेगी तो मुझे अप्रिय स्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। मैंने निर्णय लिया कि पत्नी जी को सब कुछ खुद बता देना बेहतर होगा।

तो, सुहागरात के अगले दिन से मैंने बातों-बातों में उन कन्याओं के बारे में सिलसिलेवार उन्हें बताना शुरू किया। माधुरी जी ने उन किस्सों को सहज भाव से सुना, कभी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। 10 दिनों में अनेक कन्याओं के किस्से सुना दिए तब माधुरी जी पूछा, ‘सब बता दिए या और कोई बची है?’

‘जितना मुझे याद आया, सब तुमको बता दिया। हो सकता है, किसी का जिक्र छूट गया हो लेकिन बाद में यदि कुछ और मालूम पड़े तो यह न समझना कि मैंने तुमसे कुछ छुपाया, समझना कि मैं बताना भूल गया हूँ।’ मैंने समझाया।

उसके बाद माधुरी जी मेरी अगली दोस्त बन गई।

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