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![सर्पदंश: वक्त पर प्रभावी उपचार के प्रयास सर्पदंश: वक्त पर प्रभावी उपचार के प्रयास](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/1712829463ownload_(1).jpg)
प्रतिका गुप्ता
सर्पदंश या सांप के काटने के कारण दुनिया भर में सालाना 81,000 से 1,38,000 लोगों की जान चली जाती है और करीब तीन-साढ़े तीन लाख लोग अक्षम हो जाते हें। फिर भी अफ्रीका, भारत जैसे देशों के स्वास्थ्य तंत्रों में सर्पदंश एक उपेक्षित स्वास्थ्य समस्या है। ऊपर से, सर्पदंश के लिए उपलब्ध उपचार और स्वास्थ्य प्रणालियों के साथ भी कई समस्याएं और जटिलताएं हैं।
वैज्ञानिक सर्पदंश के उपचार को बेहतर से बेहतर और समय पर उपलब्ध कराने की दिशा में प्रयास कर रहे हैं। दो ताज़ातरीन अध्ययनों की प्रगति से बेहतर उपचार की उम्मीद जागी है।
साइंस ट्रांसलेशनल मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन ने एक युनिवर्सल एंटीवेनम विकसित करने की दिशा में पहली सफलता हासिल की है। इससे एक ही एंटीवेनम से सांप की चार प्रजातियों के ज़हर को बेअसर किया जा सकेगा।
साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में एक ऐसे टेस्ट के बारे में बताया गया है जो वक्त रहते बता सकता है कि आपको किस सांप ने काटा है, और फिर तय किया जा सकता है कि आपको किस जहर के लिए उपचार (एंटीवेनम) देना है।
दरअसल सांप का जहर कोई एक यौगिक नहीं बल्कि दर्जनों-यहां तक कि सैकड़ों – यौगिकों का मिश्रण होता है। और खास बात यह है कि यह जहरीला मिश्रण हर प्रजाति के सांप में बहुत अलग होता है। यदि सांप काटे तो उपचार के लिए एंटीवेनम दिया जाता है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि किस सांप ने काटा है।
सर्पदंश के इलाज में मुश्किलात यहीं से शुरू होती हैं। चूंकि हर प्रजाति के सांप का ज़हर अलग होता है- यहां तक कि विभिन्न इलाकों में पाए जाने वाले एक ही प्रजाति के सांप का ज़हर भी अलग होता है- इसलिए उपचार के लिए यह जानना आवश्यक होता है कि व्यक्ति को किस सांप ने काटा है। लेकिन उसे हमेशा पता नहीं होता कि उसे किस सांप ने डसा है, क्योंकि जब पता चलता है कि सांप ने डसा है तो पहले तो डर के मारे होश उड़ जाते हैं और बदहवासी में सांप पर गौर कर उसे पहचनाने का ध्यान नहीं रहता। फिर, कोई और देखकर पहचान ले इसकी संभावना भी अक्सर कम रहती है क्योंकि सर्पदंश के अधिकतर मामले खेतों या जंगल में काम करते हुए होते हैं, जहां लोग दूरियों पर या अकेले ही काम करते हैं। और किस्मत से कोई आपके साथ हो तो भी, जब तक समझ आता है तब तक सांप डस कर सरपट भाग चुका होता है। ऐसे में किस ज़हर के लिए एंटिवेनम दें?
यह तय करने के लिए चिकित्सकों को पीडि़त में लक्षणों के उभरने का इंतज़ार करना पड़ता है- ताकि सही एंटीवेनम दिया जा सके- हालांकि वे जानते हैं कि उपचार जितना जल्दी मिलेगा, उतना कारगर होगा। उपचार में देरी विकलांगता और जान गंवाने के जोखिम को बढ़ाती जाती है। हालांकि थोड़ा-बहुत अनुमान चिकित्सक इस जानकारी के आधार पर लगाने की कोशिश करते हैं कि किस क्षेत्र में सांप ने डंसा था, और उस इलाके में कौन-से सांप पाए जाते हैं। फिर भी एक इलाके में एक से अधिक तरह के सांप होने की संभावना होती है, और यदि अन्य ज़हर के लिए एंटीवेनम दे दिया गया तो या तो वह बेअसर रह सकता है, या मामला और बिगाड़ सकता है और रोगी की जान का जोखिम बढ़ जाता है।
फिर मानव शरीर द्वारा इन एंटीवेनम को अस्वीकार कर देने की भी संभावना रहती है। दरअसल घोड़ों या भेड़ों को वर्षों तक मामूली मात्रा में सांप का ज़हर देकर उनमें निर्मित एंटीबॉडी से एंटीवेनम तैयार किया जाता है। चूंकि ये एंटीवेनम पशु प्रोटीन से बने होते हैं, इसलिए प्रतिरक्षा प्रणाली इनके विरुद्ध प्रतिकूल प्रतिक्रिया भी कर सकती है जो जानलेवा भी हो सकती है।
फिर, एंटीवेनम का रख-रखाव भी बहुत मुश्किल होता है। अक्सर ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों पर इन्हें संभालकर रखने के लिए मूलभूत सुविधा नहीं रहती, दूर-दराज के ग्रामीण क्षेत्रों में तो यह और भी मुश्किल है, जबकि सर्पदंश के मामले वहीं अधिक होते हैं।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइन्स के इवॉल्यूशनरी वेनोमिक्स विशेषज्ञ कार्तिक सुनगर सर्पदंश के उपचार में आने वाली इन्हीं अड़चनों को दूर करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने कई तरह के सांपों के जहर के एक प्रमुख घटक थ्री-फिंगर अल्फा-न्यूरोटॉक्सिन (xFT&-L) का सिंथेटिक संस्करण तैयार किया। (गौरतलब है कि xFT&-रु एक विषाक्त पदार्थ है जो तंत्रिका कोशिकाओं के एक प्रमुख न्यूरोट्रांसमीटर की प्रतिक्रिया करने की क्षमता को कुंद कर देता है, और लकवे का कारण बनता है।) फिर उन्होंने एक बहुत बड़ी एंटीबॉडी लाइब्रेरी में सहेजी गईं लगभग 100 अरब कृत्रिम मानव एंटीबॉडी को इस ज़हर के प्रति जांचा और देखा कि कौन-सी एंटीबॉडी इस ज़हर को सबसे अच्छे से बेअसर करती है। उनकी यह खोज 95Matz5 नामक एंटीबॉडी पर आकर खत्म हुई, जो इस ज़हर पर बहुत ही कारगर पाई गई। इसकी बेहतरीन कारगरता का कारण है कि यह अल्फा-बंगारोटॉक्सिन पर ठीक उसी स्थान पर जाकर चिपकता है जहां से यह विष मानव तंत्रिकाओं और मांसपेशियों की कोशिकाओं के साथ बंधता है। अल्फा-बंगारोटॉक्सिन मल्टी-बैंडेड करैत (Bungarusmulticinctus) के ज़हर का मुख्य xFT&-रु है।
फिलहाल तो यह 95zMatz5 एंटीबॉडी चूहों में कारगर पाई गई है। यहां तक कि 95zMatz5 ने चूहों को करैत सांप के ज़हर से भी बचा लिया। इस सांप के बारे में माना जाता है कि इसमें कम से कम चार दर्जन विभिन्न जहर होते हैं। इसकी कारगरता सर्पदंश के 20 मिनट विलंब से उपचार दिए जाने पर भी दिखी। और तो और, यह मोनोसेलेट कोबरा (Naja kaouthia) और ब्लैक मंबा (Dendroaspispolylepis) के ज़हर पर भी काम कर गया। लेकिन कुछ ज़हर, जैसे किंग कोबरा (Ophiophagus hannah) के ज़हर को बेअसर नहीं कर पाया, हालांकि इसने चूहों की मृत्यु को थोड़ा टाल ज़रूर दिया था। इस तरह इस एंटीबॉडी से निर्मित एक एंटीवेनम चार प्रजातियों के ज़हर को बेअसर करने के लिए किया जा सकता है।
साथ ही जो एंटीवेनम xFT& -रु के खिलाफ बहुत प्रभावी नहीं रहते हैं उनके स्थान पर 95zMatz5 आधारित एंटीवेनम दिया जा सकता है। इसके अलावा यह पशु एंटीबॉडी पर आधारित न होकर मनुष्यों की कृत्रिम एंटीबॉडी है, तो इसमें उपचार के अवांछित दुष्प्रभाव और जोखिम की संभावना भी कम है।
दूसरी ओर, विभिन्न शोध टीमें एक ऐसा परीक्षण तैयार करने की दिशा में काम कर रही हैं जिसके ज़रिए पता किया जा सके कि पीडि़त को किस सांप ने काटा है। और इस तरह लक्षण उभरने तक इंतजार करने के समय को कम करके एंटीवेनम को अधिक कारगर बनाया जा सके और विकलांगता और जान गंवाने के प्रतिक्षण बढ़ते जोखिम को कम किया जा सके।
लेकिन ऐसे परीक्षणों में मुख्य बात यह होनी चाहिए कि परीक्षण बहुत आसान हो, दूर-दराज़ के सुविधा रहित इलाकों में पहुंच सके और उपयोग किया जा सके, और परीक्षण के नतीजे फौरन प्राप्त हो जाएं। जैसे कि प्रेग्नेंसी टेस्ट देने वाली स्ट्रिप से मिलते हैं - पेशाब पडऩे के मिनट भर बाद वह रंग बदलकर (या न बदलकर) बता देती है कि गर्भ ठहरा है या नहीं।
दरअसल गर्भ ठहरने का निर्धारण करने वाली स्ट्रिप में ऐसे एंटीबॉडी होते हैं जो गर्भ ठहरने के कारण स्रावित होने वाले हारमोन ह्यूमन कोरियॉनिक गोनेडोट्रॉपिन से जुड़ते हैं। यदि गर्भ ठहरता है तो पेशाब में यह हारमोन बढ़ जाता है और स्ट्रिप में उपस्थित एंटीबॉडीज़ जब इस हारमोन से जुड़ती हैं तो रंग परिवर्तन की हुई दो धारियां मिलती हैं।
लेकिन सर्पदंश के मामले में इस तरह से सार्वभौमिक परीक्षण विकसित करने में समस्या यह है कि प्रेग्नेंसी में स्रावित हारमोन के विपरीत हर सांप का ज़हर एक समान नहीं होता और कई यौगिकों का मिश्रण होता है। फिर भी क्षेत्र विशेष के लिए क्षेत्रीय परीक्षण विकसित किए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, भारत में सर्पदंश के अधिकांश मामले सिर्फ चार प्रजातियों के कारण होते हैं। तो शोधकर्ता क्षेत्रीय परीक्षण स्ट्रिप के लिए एक ऐसी एंटीबॉडी तैयार कर रहे हैं जो इन चारों विष को पहचान सके और बता सके कि कौन-सा ज़हर है। इस दिशा में उन्हें कुछ सफलता मिली है। कुछ परीक्षणों और अनुमोदन के बाद यह परीक्षण इस साल के अंत या अगले साल की शुरुआत तक उपलब्ध हो सकेगा।
लेकिन उपरोक्त एंटीवेनम और परीक्षणों का उत्पादन करने के लिए काफी धन लगेगा। जाहिर है दवा कंपनियां यदि इन्हें बनाएंगी तो ये महंगे होंगे, और उन लोगों की पहुंच से बाहर होंगे जो सर्पदंश के शिकार होते हैं-सर्पदंश की समस्या से मुख्यत: निम्न और मध्यम आय वाले देशों के गरीब और खेतों-जंगलों में काम करने वाले लोग प्रभावित होते हैं। इन देशों में यह पहले ही एक उपेक्षित स्वास्थ्य समस्या है। इसलिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ इससे संबंधी अर्थव्यवस्था, रणनीतिक निर्णयों और स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के स्तर पर भी काम करने की जरूरत है, तभी वास्तव में वक्त पर बेहतर उपचार मुहैया हो सकेगा। (स्रोतफीचर्स)