विचार / लेख
डॉ. आर.के. पालीवाल
ऐसा शायद ही कोई लोकसभा चुनाव होगा जिसमें प्रमुख राजनीतिक दलों ने कुछ फिल्मी सितारों को कुछ सीट जीतने और चुनावों में भीड़ इक_ी करने के लिए इस्तेमाल न किया हो। इस मामले में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस जैसे प्रमुख राष्ट्रीय दलों की तरह समाजवादी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस आदि क्षेत्रीय दल सब शामिल रहे हैं। दक्षिण भारत में तो मतदाताओं के बीच फिल्मी सितारों का इतना जबरदस्त आकर्षण रहा है कि डी एम के, अन्ना डी एम के और तेलगु देशम जैसी दशकों सत्ता पर सवार रही पार्टियों की स्थापना ही अपने जमाने के प्रमुख फिल्मी सितारों द्वारा हुई है। उत्तर भारत में किसी हिन्दी फिल्मी सितारे ने यह हिम्मत तो नहीं दिखाई कि किसी पार्टी की नीव रख सके लेकिन विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने दल में अपने समय के सिरमौर रहे कई कलाकारों को लोकसभा चुनाव लड़वाकर या राज्य सभा में भेजकर चुनावों में काफी इस्तेमाल किया है। इस फेहरिस्त में स्वर्गीय सुनील दत्त से लेकर अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, सन्नी देओल, शबाना आजमी और रेखा तक के नाम शामिल हैं।2024 के चुनाव में हिमाचल प्रदेश की मंडी सीट से भारतीय जनता पार्टी ने कंगना रनौत को उतारकर इस परंपरा को आगे बढ़ाया है। इन फिल्मी सितारों को जिताकर जनता बार बार ठगी जाती है। इसीलिए राजनीतिक दल उन्हें चुनाव में उतारते हैं। लोकसभा और विधानसभा चुनाव में उन्हें ही उम्मीदवार के रुप में आगे आना चाहिए जिनके पास उस इलाके की जनता के बीच काफी समय गुजारकर जनता की विविध समस्याओं को देखने, समझने और उनको हल करने कराने का पर्याप्त समय है।
कंगना रनौत की बात करें तो वे अभी मुंबई के हिंदी फि़ल्म जगत में सक्रिय हैं। उन्होने यह घोषणा नहीं की है कि लोकसभा चुनाव जीतने पर वे अपना अधिकांश समय मंडी लोकसभा क्षेत्र में बिताएंगी। मंडी की मीडिया और नागरिक संगठनों का यह नैतिक दायित्व बनता है कि वे चुनाव प्रचार के समय कंगना रनौत से स्टांप पेपर पर यह आश्वासन लें कि जब लोकसभा का सत्र नहीं चलेगा तब वे महीने में कम से कम पच्चीस दिन मंडी में उपलब्ध रहेंगी। नागरिक संगठनों, यथा रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन आदि को अपने इलाके के उन तमाम उम्मीदवारों से इस तरह के लिखित आश्वासन लेने चाहिएं जो बाहर से आकर किसी क्षेत्र विशेष में चुनाव लड़ते हैं। जिन उम्मीदवारों को किसी राजनीतिक दल ने टिकट दिया है उनकी स्थानीय इकाई के पदाधिकारियों से भी उम्मीदवार द्वारा दिए गए आश्वासन पर हस्ताक्षर कराने चाहिएं ताकि अपने जन प्रतिनिधि की अनुपस्थिति में संबंधित राजनीतिक दलों की स्थानीय इकाई के पदाधिकारियों से शिकायत की जा सके।
लोकतंत्र में पहली और अंतिम जिम्मेदारी नागरिकों की ही है। हम भारत के नागरिकों ने एक तरह से अपने अधिकारों को अपने जन प्रतिनिधियों और राजनीतिक दलों के पास गिरवी रख दिया है और इसका लाभ उठाकर हमारे जन प्रतिनिधि खुद को मालिक और हम जनता को अपने गुलाम समझने लगे हैं। तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं ने आपसी सहमति से ऐसी व्यवस्था का निर्माण कर लिया है जिसमें आम नागारिक को भिखारी सा बना दिया। इस व्यवस्था के निर्माण में भाजपा और कांग्रेस सहित तमाम दलों का बराबर हाथ है। जन प्रतिनिधि को प्रतिवर्ष करोड़ों की सासंद और विधायक निधि देकर और जन सेवकों की लगाम मंत्रियों के हाथ में सौंपने में सब दल एकमत रहे हैं और इस व्यवस्था का लाभ उठाते हैं। नागरिकों के जागरूक और संगठित होने से ही यह नागरिक विरोधी व्यवस्था बदल सकती है।