विचार / लेख

जरा रुको, बापू से पूछकर आता हूँ ?
30-Jan-2021 6:04 PM
जरा रुको, बापू से पूछकर आता हूँ ?

-सुशोभित

गांधीजी के निजी सचिव प्यारेलाल ने लिखा है- 30 जनवरी को जब गांधीजी की हत्या हुई तो खबर सुनते ही नेहरू और पटेल दौड़े चले आए। नेहरूजी गांधीजी की चादर में मुंह छुपाकर बच्चों की तरह रोने लगे। सरदार पटेल, जो अभी चंद मिनटों पहले तक गांधीजी से बतिया रहे थे, पत्थर की मूरत की तरह अडोल बैठे रहे।

लॉर्ड माउंटबेटन पहुंचे। उन्होंने प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से कहा, ‘गांधीजी ने अपनी अंतिम बातचीत में मुझसे कहा था, जवाहर और सरदार को समझाइयेगा कि उन दोनों की दोस्ती आज देश के लिए सबसे ज़रूरी है। वो तो अब मेरी सुनते नहीं, शायद आपका कहा मान लें।’ यह सुनते ही नेहरू और पटेल एक-दूसरे के गले से लिपटकर रो पड़े। कुछ समय बाद किसी ने कहा-‘प्रधानमंत्री जी, हमें अंतिम यात्रा की तैयारियां करना है। कार्यक्रम कैसे होगा, आप निर्देश दें।’

नेहरूजी ने जैसे कुछ सुना ही नहीं। फिर किंचित प्रकृतिस्थ हुए तो चंद पल सोचकर बोले-‘जरा रुको, बापू से पूछकर आता हूं!’ और फिर, भूल से यह क्या कह गए, सोचते ही अवाक हो गए।

प्यारेलाल ने अपनी पुस्तक ‘पूर्णाहुति’ के दूसरे खण्ड में इसका वृत्तांत देते हुए लिखा है-‘बीते तीस-पैंतीस सालों में हम सब अपनी तमाम दुविधाओं और समस्याओं और प्रश्नों को बापू के पास ले जाने के इतने आदी हो चुके थे कि हम भूल ही गए कि अब ऐसा कभी हो नहीं सकेगा।’

उस रात राष्ट्र के नाम अपने संदेश में नेहरूजी ने रूंधे गले से ठीक ही कहा था- ‘हमारे जीवन से रौशनी चली गई!’

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news