विचार / लेख
-रति सक्सेना
क्या अगला युद्ध पानी के लिए होगा, अन्दाजा तो यही लग रहा है, जिस तरह से पानी की खपत बढ़ती जा रही है, और पानी का स्तर कम होता जा रहा है। खासतौर से मुझ जैसे को लगता है, जिसका बचपन राजस्थान के उन इलाकों से गुजरा, जहां पानी के नाम पर रेत थीं, बीकानेर आदि में आस पास को पानी से जूझते हुए देखा है, मां कहा करती थी कि जब वे जयपुर ब्याह के आईं थी तो घरों में नल नहीं थे, भिश्ती नहाने धोने का पानी मशक में भर कर रोजाना के हिसाब से पहुंचाता था, और खाने पकाने के लिए दो बाल्टी पानी महरी लाया करतीं थीं, मां भोपाल की थीं, जहां का ताल मशहूर है,फिर भी वे जल्द ही पानी को बचाना सीख गईं थीं।
घर पखारते वक्त, कपड़े धोते वक्त कितना कम पानी उपयोग में लाया जाता था , आज तो उसकी कल्पना करना ही मुश्किल है। फिर जयपुर में घरों घर नल आये, लेकिन मोटरे नहीं लगीं थी, तो समय पर पानी भरना सहेजना जरूरी था। पानी को ऐसे सहेजा जाता था जैसे कि जिन्दगी को बचाया जा रहा हो।
राजस्थान के शहर- शहर भटकते हुए हमने पानी के भी सभी रंग देखे। लेकिन जब केरल आई तो पानी बहुतायत से था, आसमान में भी और नलों में भी,फिर भी पानी बहाते मन कसकता था। जब मेरी बाहरी दुनिया खुली तो मुझे पर अक्सर ताना दिया गया कि राजस्थान में तो सारे अनपढ़ ही हैं, और मैं कहती कि मेरी मां तक पढ़ी-लिखी हैं, तो वे आंकड़े दिखाते। तब मेरा यही सवाल होता कि यदि तुम्हें रोजाना दस मील दूर से पानी भर कर लाना पड़े तो तुम पढ़ोगे या पानी लाओगे, यही नहीं पानी की कमी के कारण जब बच्चों तक को रात- रात जग कर खेतों में पम्प चलाना पड़े तो तुम स्कूल में सोओगे ही ना?
लेकिन अहंकार बहुत बुरा होता है, मुझे याद है कि एक बार त्रिवेन्द्रम में बड़ी पाइप लाइन टूट गई।
शहर में दो दिन तक पानी नहीं था, लेकिन सरकार टेंकर भेज रही थी, जहां से साझा पानी भरना होता था। उन दो दिनों में ही अखबार में खबर आई कि पानी न होने के कारण पति पत्नी में तकरार हुई, दोनों नौकरी शुदा थे, लड़ाई इतनी बढ़ी कि पत्नी ने फांसी लगा ली।
घटना दुखद थी, लेकिन मैंने पूछा, भई दो दिन भी पानी की कमी को नहीं सह पाये, हमारे यहां तो कुछ गांवों के बच्चों ने बरसात के दर्शन भी नहीं किए।
आज केरल में पानी की स्थति बहुत अजीब है, जहां मैं रहती हूँ , उस इलाके में बहुत कम समय के लिए पानी आता है, वह तो नई प्रणाली के तहत टंकिया लग गईं, मोटर लगा दी गईं। वहीं पूरे तीन सालों से लगातार बाढ़ आ रही है वह भी केरल के लगभग साठ प्रतिशत इलाकों में। यानी कि पानी की संयोजना ही खतरनाक हो रही है। यह अजीब स्थिति है।