विचार / लेख
-प्रकाश दुबे
मध्यप्रदेश नर्मदा और ताप्ती का जल देकर गुजरात का भला करता रहा है। इस बार भोपाल-अहमदाबाद उड़ान शुरू करवाते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मप्र में निवेश बढऩे की उम्मीद जताई। जम्मू-कश्मीर केन्द्रशासित इकाई के उप राज्यपाल ने कल्पनाशीलता में शिवराज को पीछे छोड़ा। लोकसभा चुनाव हारने के कारण प्रधानमंत्री के चहेते मनोज सिन्हा केन्द्रीय मंत्री न बन सके। योगी के हठयोग के कारण गंगा मैया उन्हें उ प्र का मुख्यमंत्री न बना पाईं। काम पूरी लगन के साथ करते हैं। उप राज्यपाल ने गुजरात के जानकारों की टोली को निमंत्रित कर श्रीनगर और जम्मू शहरों को चुस्त दुरुस्त करने के तरीके जाने। साबरमती नदी के किनारों की खूबसूरती से अहमदाबाद स्मार्ट हो गया। जम्मू से बहने वाली तवी को उप राज्यपाल साबरमती की तरह विकसित करना चाहते हैं। साबरमती नदी तट विकास निगम के अध्यक्ष ने नुस्खे बताए। जम्मू तवी को दूसरा साबरमती बनाने में दो कमियां तो रहेंगी। एक तो गांधी का आश्रम। उसकी शायद जरूरत न भी हो। दूसरे नर्मदा-नहर की कृपा से साबरमती सदा सजल रहती है।
खामोश, अदालत जारी है
दिल्ली उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति प्रतिभा सिंह पौन घंटे में मात्र एक मुकद्दमा सुन पाईं। न तो शक्ल दिखी और न आवाज़ साफ आ रही थी। अदालत की प्रस्तुति की अदा आम लोगों से अलग होती है। न्यायाधीश प्रतिभा ने फटकार लगाते हुए कहा-वकील बार बार पूछते हैं, मेरी आवाज़ सुनाई पड़ रही है? प्रधानमंत्री ने कुछ दिन पहले ही सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र में विकास और डिजिटल व्यवहार बढऩे पर बधाई दी थी। कवरेज कमी, बातचीत टूटना, सुनाई न देना रोग के लक्षण हैं। बखेड़े की जड़ रंगावली यानी स्पेक्ट्रम है। विधि और संचार दोनों मंत्रालयों के कर्णधार मंत्री रविशंकर प्रसाद और स्पेक्ट्रम खरीदी के खिलाड़ी रोग को बखूबी पहचानते हैं। न तो उनका मुक़द्दमे से ताल्लुक है और न उनसे पंगा लेने का मतलब है। उच्च न्यायालय सीमित आदेश जारी कर रहा है- सीढिय़ां चढ़ते हुए, बगीचे में टहलते हुए जिरह मत करो। ऐसी जगह से वीडियो कांफ्रेंसिग सुनवाई में हिस्सा लो जहां से आवाज़ साफ सुनाई दे। चेहरा भले ही न दिखे।
जल थल दल दल
संसद में आरोप-प्रत्यारोप की बारिश जारी थी। कुछ किलोमीटर की दूरी पर सिंघु बार्डर में किसानों की सभा कुछ देर के लिए रुक गई। नहीं नहीं। बेचारे पुलिस वाले कीलों और अवरोध के पार से सिर्फ तमाशा देख रहे थे। बारिश की मार से तिरपाल फट गया। सभा रोक दी। किसान पानी बाहर निकालने में जुट गए। वातावरण में शांति थी। कीचड़-पानी बाहर निकाला जाता रहा, तब तक आंदोलन समर्थक गायक गीत गाकर हौसला बढ़ाते रहे।26 जनवरी की अव्यवस्था के बाद वापस गए किसान गांवों से लौट आए हैं। पानी और कीचड़ से सने नेताओं ने संबोधन फिर शुरु कर दिया। भाषणों में एक ही बात नई थी-हमारे कुछ साथी जाड़े, बारिश, बीमारी के कारण हमें छोडक़र दूसरी दुनिया में चले गए। हम या तो उनका संकल्प पूरा करेंगे या उनसे जा मिलेंगे। किसी को पूछने की फुर्सत नहीं है कि सडक़ से कीलें उखड़वाने और लाखों की संख्या में पुलिस और अर्ध सैनिक बल तैनात करने का खर्च बजट के किस मद में डाला जाएगा? मोठा भाई जाने और जानें वित्त मंत्री।
हल्दी के घाव
किसान आंदोलन की आंच तेलंगणा तक जा पहुंची। डी अरविंद ने मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव की लाडली बेटी कविता को हराकर निजामाबाद से लोकसभा चुनाव जीता। अरविंद के पिता डी श्रीनिवास प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं। कविता के मिज़ाज ने अरविंद की जीत को आसान बनाया। दिल्ली की सरहद पर किसानों को कील ठोंक कर रोकने में सरकार सफल रही। सत्ता दल के चमत्कारी नुमाइंदे अरविंद चुनाव क्षेत्र में बुरे फंसे। निजामाबाद जिला हल्दी उत्पादन के लिए प्रसिद्ध है। किसानों ने सांसद को घेरकर हल्दी के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य लागू कराने की मांग की। कृषि कानूनों के समर्थक अरविंद ने गोलमाल जवाब देकर बचना चाहा। सवालों की बौछार नोंकझोक में बदली। नारेबाजी शुरु हो गई। चार घंटे तक किसानों से घिरे अरविंद किसी तरह जुगत भिड़ाकर खिसक पाए। सांसद अधिवेशन में भाग लेने सीधे दिल्ली उड़े। किसानों ने चेतावनी दी-दस दिन में न्यूनतम समर्थन दाम का ऐलान करो वरना इस्तीफा दो। संसद सत्र का अस्सल लाभार्थी कौन है? अंदाज़ विज्ञान का सहारा लेने की जरूरत नहीं है। डी अरविंद हैं।
(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)