विचार / लेख
-अनुपमा सक्सेना
भला हो इलाहाबाद की कुलपति महोदया का। अजान से डिस्टर्ब हो रही हैं तो बंद करने के प्रयास शुरू कर दिए। बहुत कुछ याद आ गया और बहुत उम्मीदें जाग गईं।
लगभग 09-10 वर्ष पहले की घटना याद आ गई। सरकंडा में नए-नए शिफ्ट हुए थे हम लोग। पास की नूतन कॉलोनी में पानी की बड़ी टंकी के ऊपर 10 लाउड स्पीकर लगाकर 24 घंटे की नवधा रामायण शुरू हो गई। घर में दो पढऩे वाले बच्चे, दो हम प्रोफेसर, और 85 वर्ष की वृद्ध माँ थीं। जाकर वहां बैठे 2-4 भक्तों से जो ष्टष्ठ लगाकर बैठे हुए थे, हाथ जोडक़र निवेदन किया कि कृपया वॉल्यूम धीमा कर दें। फिर जैसा होता है, मेरे सामने तो कर दिया जैसे ही मेरी गाड़ी आगे बढ़ी, फुल वॉल्यूम। फिर सक्सेना साहेब गए उनके साथ भी यही हुआ।
दूसरे दिन नूतन कॉलोनी में रहने वाले बड़े-बड़े प्रशासनिक अधिकारियों से जाकर अनुरोध किया। वो बस यह बोलकर चुप हो गए , परेशानी तो बहुत है मैडम पर बोले कौन। आसपास मोहल्ले-पड़ोस से बोला। परेशान सब थे किन्तु कोई ऊपर वाले के डर से कोई नीचे वाले के डर से, बोले कोई कुछ नहीं। दो दिन बाद जब अनुनय विनय से काम नहीं बना तो रात 12 बजे पुलिस थाने फोन किया। बोले मैडम आप निश्चिंत रहें, अभी बंद करवाते हैं , बड़ी खुशी लगी, किन्तु सुबह हो गई वो ‘अभी’, ‘कभी’ नहीं आया। तीसरे दिन, दिन मैं फिर पुलिस को दो-तीन बार फोन किया, हर बार आश्वासन तो मिला, हुआ कुछ नहीं।
चौथे दिन मेरा धैर्य जवाब दे गया और उनका वॉल्यूम और तेज होता गया। यूनिवर्सिटी जाने के लिए निकले तो सीधे पहले गाड़ी मोड़ी और सरकंडा थाना जाकर रोकी। मैंने कहा उनसे कि अभी के अभी एफआईआर लिखिए नहीं तो मैं 15 दिन की छुट्टी लेकर उच्च न्यायालय में याचिका दायर करूंगी और उसमें यह भी लिखूंगी कि पुलिस ने कुछ नहीं किया। बोले मैडम आप जाएँ यूनिवर्सिटी, आने के पहले सब बंद हो जायेगा।
शाम पांच बजे जब लौटे तो मुख्य सडक़ से वही जोर का शोर। गाड़ी फिर सीधी सरकंडा थाने। अबकी थाना प्रभारी को भी गुस्सा आ गया क्यूँकि वे स्वयं, आयोजनकर्ताओं को मना करके गए थे सुबह। फिर उन्होंने जीप ली, पुलिस वालों से गाड़ी भरी और मुझे बोले चलिए आप पीछे-पीछे। आकर सारे लाउडस्पीकर उतरवाए , जब्ती बनाई। तो फाइनली चौथे दिन 10 लॉउडस्पीकर्स के शोर से छुटकारा मिला। ना तो ऊपर वाला नाराज हुआ ना नीचे वाले ?
उसके बाद और भी कई घटनाएं हो चुकीं। एक बार होली पर ष्ठड्डठ्ठद्दद्ब छ्वद्ब जैसे पुलिस अधिकारी थे जिन्होंने एक मैसेज पर लाउड स्पीकर्स बंद करवा दिए थे अन्यथा हमेशा कई दिनों तक ऊपर जैसा ही कार्यक्रम होने के बाद ही शोर बंद होता था। दोनों बच्चे जब घर से बाहर पढऩे चले गए तो मैंने भी तौबा बोल ली। जिनको परेशानी है वे लडें़, सारी दुनिया का ठेका नहीं ले रखा।
परेशानियां तो अभी भी हैं। कुलपति महोदया का प्रयास सफल हो तो हमें भी अपने आसपास के रोज सुबह मंदिरों में घंटों बजने वाले लाउड स्पीकर्स, वर्ष में कई बार होने वाली भागवत, नवधा, शादियों में बजने वाले डीजे , दुर्गापूजा पर देर रात कॉलोनी में होने वाले गरबा, आदि के समय होने वाले अनावश्यक शोर से छुटकारा मिले।
हम भी कुलपति तो नहीं पर प्रोफेसर तो हैं हीं, डिस्टर्ब तो हम भी होते हैं। और हाँ, कुलपति महोदया की ही बात हम भी दोहरा रहे हैं, हमारे इन सब कर्मों और इच्छाओं में किसी धर्म के विरूद्ध जैसा कुछ भी नहीं है। भगवान अल्लाह कोई भी हो, लाउडस्पीकर से तो खुश होते नहीं ना।