विचार / लेख
-प्राण चढ्डा
संकुचित हो रहा हरियाली का छत, सूखती नदियां और वनोषधियों के लिए जंगल का निर्मम दोहन का नतीजा है यह जैवविविधता पर संकट के दौर में है। प्रकृति के खुले खजाने की लूट मची है। वन्य जीव अब नेशनल पार्क और सेंचुरी में बचे हैं, आबादी जंगल तक पँहुच रही है और जंगल वन्य जीव पानी के लिए भटके आबादी के करीब पहुंच गए तो समझो उनकी मौत खींच लाई है।
आजादी के बाद देश में चीता खत्म हुआ।1950 के आसपास छत्तीसगढ़ की कोरिया रियासत में नाइट ड्राइव में भारत के अंतिम तीन चीते मारे गए। फिर देश में चीता नहीं दिखा। भेडि़ए तेजी से खत्म हो रहे हैं, गांव के करीब दिखने वाले लकड़बघ्घा, जंगली बिल्ली, खरगोश, लोमड़ी का दिखना तो अब सौभाग्य की बात है।
टाइगर के वह तेवर नहीं रहे कि जब उनकी सँख्या अधिक थी तब जो होते। अब नेशनल पार्क में टाइगर जिप्सी के आगे, पीछे सडक़ की रैम्प पर ‘कैटवाक’ करता महसूस होता है। कभी टाइगर का खौफ जंगल की रक्षा करता, और जंगल उसको आश्रय देता। सदियों से चल रहा, यह नाता जंगल की कटाई, और वैध अवैध कटाई के कारण विनष्ट हो गया है। हर साल जंगल की इन दिनों में लगने वाली आग जंगल और वन्यजीवों के लिए समान घातक बनी रहती है।
छत्तीसगढ़ का राजकीय पशु लुप्त होने के कगार पर है। डब्ल्यूटीआई और वन विभाग की इसके संवर्धन के लिए प्रयास किया जा रहा है, जिसके तहत एक जोड़ा युवा वन भैसा असम से लाकर बारनवापारा सेंचुरी में रखा गया है।
छत्तीसगढ़ के बहतरीन जंगल इंद्रावती नेशनल पार्क में, नक्सलियों की चलती है। यहां वन भैसे या टाइगर शेष है या नहीं और हैं तो कितने यह कोई प्रमाण देते हुए नहीं कहा सकता। वन विभाग नक्सलियों के भय से यहां वन्यजीवों की गिनती भी नहीं करा सकता। जैव विविधता की एक कड़ी टूटी तो माला बिखरते देर नहीं लगती। मधुमक्खी, तिलती या पतंगे कम हुए तो इसका असर जंगल की हरियाली पर दिखता है। जब पराग वाहक ही नहीं तो जंगल में बीज कैसे बनेगा। नए पौधों की कमी से जंगल हरियाली कम होती जाएगी।
जिसका बुरा असर सींग और खुर वॉले वन्यजीवों पर पड़ेगा, ये जीव पंजे और केनाईन वाले जीवों का शिकार हैं। उनको भी पेट भरने के लाले पड़ेंगे। यह है जैव श्रृंखला में कीट-पतंगों की कमी का दुष्प्रभाव। कोई कड़ी टूटी माला बिखरी।
जंगल में पुराने बड़े पेड़ों की कमी होने और मानव की दखलंदाजी के वजह कोटर आशियाना बनने वॉले बड़ा काला धनेश, बड़े उल्लू अब कम हो गए है। गिद्ध जिस गति से शहरी इलाके में खत्म हुई वह चिन्तनीय है। अब ये पहुंच विहीन इलाकों में है, जैसे बाँधवगढ़ के राज बेहरा, अचानकमार के औरापानी, कान्हा नेशनल पार्क में।
कान्हा नेशनल पार्क की बड़ी उपलब्धि कड़ी जमीन पर रहने वाले सख्त खुरों वाला बारहसिंघा जिसे लुप्त होने से बचा लिया गया और अब खतरे की रेखा को यह पार कर गए हैं। बाइसन याने इंडियन गौर भी छत्तीसगढ़ में काफी है। पर छत्तीसगढ़ में टाइगर को सौभाग्यशाली ही देख पता है। उडऩे वाली गिलहरी अब यदाकदा दिखतीं हैं। मासूम चिडिय़ा और सरीसृप खमोशी से कम होते जा रहे हैं और किसी को पता भी नहीं लगता।
साल का सदाबहार शीतल जंगल बचना होगा, क्योंकि इसका रोपण सफल नहीं होता। यह कुदरती तरीके से उगते और फिर बढ़ते हैं। चंदन, कत्थे याने खैर के पेड़ नित्य कम हो रहे, इसकी भरपाई कठिन है। कोई पेड़ सालों में बढ़ता है और कुछ घँटे की अवधि में टुकड़े होकर बिखर जाता है।
आर्युवेदिक दवा के लिए जंगल को फिक्स डिपाजिट माने, जिस कंपनी को दवा बनना हो वह अपना जंगल खुद तैयार करे। जंगल में उनकी वसूली से जनकल्याण हो रहा है लेकिन जंगल के विनाश की कीमत पर यह बहुत मंहगा है। जंगल के हाट बाजार में कोई इसकी खरीद फरोख्त नहीं करे इसके लिए सख्त कदम उठाने का वक्त आ गया है। इसकी भरपाई के लिए, कुल्लू, अर्जुन, दहीमन तेंदू बिल्व और चार जैसे कई पेड़ कम हो रहे हंै उनका प्लान्टेशन कैसे और बढ़े इस तरफ कदम अब जरूरी है। वेटलैंड की निरन्तर हो कमी से बछ, ब्रह्मी बूटी जैसी दिव्य वनोषधि की कमी जैवविवधता संकट में जा रहीं हैं। वेटलैंड की कमी से जीव और वनस्पतियों को क्षति हो रही है।