विचार / लेख

विनोद कुमार शुक्ल होने के मायने-1
22-Mar-2021 8:39 PM
विनोद कुमार शुक्ल होने के मायने-1

-रमेश अनुपम
विनोद कुमार शुक्ल के होने और उनके निरंतर रचते चले जाने के बहुतेरे निहितार्थ हैं। वे हमारे समय के सर्वश्रेष्ठ लेखकों में शुमार हो चुके हैं, हिंदी ही नहीं अन्य भारतीय भाषाओं सहित विश्व के अग्रणी पंक्तियों के लेखकों में उन्हें समादृत किया जाता है।  

84 वर्ष की उम्र में भी पढ़ने और लिखने की ललक जिस तरह से उनके भीतर बरकरार है, वह देखते ही बनता है। 

कोरोना काल में उन्होंने प्रचुर साहित्य की रचना की है। कहानी, कविता के अतिरिक्त बच्चों के लिए ढेर सारी कहानियां और कविताएं।
विनोदजी के सम्पूर्ण साहित्य को   केंद्र में रखकर सेतु प्रकाशन दिल्ली द्वारा रचनावली की योजना भी मूर्त रूप लेने जा रही है। हालांकि विनोदजी जिस तरह से निरंतर सृजन कर्म में निमग्न हैं, संभव है बहुत कुछ उसमें आने से रह जायेगा, जो बाद में कभी आएगा। 

विनोद कुमार शुक्लजी की स्मृतियों के कोठार में ऐसा बहुत कुछ एकत्र है जिसे सुनकर आप समय के आर-पार को देख सकते हैं, बहुतेरी ऐसी विरल ध्वनियों को सुन सकते हैं जो समय की ओट में कहीं छिपी हुई सुस्ता रहीं हैं, बहुतेरी छवियों को निहार सकते हैं जो क्षितिज के पार कहीं झिलमिलाती जान पड़ती हैं, बशर्ते आप विनोदजी को जानने की कितनी अभिलाषा रखते हैं। उनकी स्मृतियों के कोठार का दरवाजा तभी आपके लिए खुल सकता है। 

विनोदजी के इस कोठार में एक तरह से सबका प्रवेश निषिद्ध हैं, केवल उन्हें छोड़कर जो इस सुंदर पृथ्वी से प्रेम करना जानते हैं, जो इस सुंदर पृथ्वी को बचाने की चिंता रखते हैं, जो समस्त मनुष्य प्रजाति से और सम्पूर्ण प्रकृति से  गहरा अनुराग रखते हैं। विनोदजी के गद्य या पद्य में प्रवेश भी तभी संभव होता है। 

विनोदजी को सुनना भी एक ऐसी पगडंडी से होकर गुजरने जैसा है जो सपाट नहीं है अपितु थोड़ा ऊबड़-खाबड़ और पथरीला है पर यह रास्ता आपको उस झरने की ओर ले जाने वाला रास्ता बन जाता है जिसकी निर्झरणी में आप देर तक भीग सकते हैं, जिसकी वेगवती धार में आप तन-मन प्राण से डूब सकते हैं, जिसकी जलराशि में आप जीवन के प्रच्छन्न फूलों के खिलने का आभास पा सकते हैं।

विनोदजी से जब भी मेरी मोबाइल से बात होती है मुझे हृदय के नोटबुक के कोरे पन्ने खोलने पड़ते हैं ताकि उनकी सारी बातें मैं दर्ज कर सकूं। कुछ छूट न जाये इस डर से और सब कुछ ज्यों का त्यों दर्ज हो जाए इस अभिलाषा के साथ।

कोरोना के चलते अब उनसे मिलना बहुत कम हो गया है, पर भला हो इस मोबाइल क्रांति का जिससे आप अपने किसी प्रिय से आत्मीय संवाद तो कायम रख सकते हैं, उन्हें सुन सकते हैं और कल्पना की आंखों से देख भी सकते हैं। अगर आप वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा नहीं लेना चाहते हैं तो।

विनोदजी साहित्य में और अपने निजी जीवन में आत्म प्रचार से कोसों दूर-दूर रहते हैं। साहित्यिक तिकड़मों और षड्यंत्रों से बेखबर तमाम तरह की गुटबाजियों से बेपरवाह अपने सृजन की एकांतिक साधना में निरत वे मुझे किसी संत या योगी के समतुल्य अधिक जान पड़ते हैं।

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news