राजनांदगांव

आजादी के 75 साल बाद भी जिले के एक गांव को बुनियादी सुविधाओं का इंतजार
02-Sep-2021 2:58 PM
आजादी के 75 साल बाद भी जिले के एक गांव को बुनियादी सुविधाओं का इंतजार

 

अविनाश कोमरे

अंबागढ़ चौकी, 2 सितंबर (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। देश को आजाद हुए 75 साल पूरे हो गए, लेकिन छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले का मेटातोडक़े गांव अब भी बुनियादी सुविधाओं का इंतजार कर रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य बने दो दशक से अधिक वक्त बीत गया, लेकिन जंगल से घिरे पहाड़ पर बसे इस गांव की न तो तस्वीर बदली और न ही यहां बसे लोगों की तकदीर।

मध्यप्रदेश से अलग होकर 2000 में छत्तीसगढ़ राज्य बना तो गांव में बसे आदिवासी समुदाय के लोगों ने सोचा था कि अब इलाके का तेजी से विकास होगा, लेकिन उनका ये सपना सपना ही रह गया, हकीकत में तब्दील नहीं हो सका।

स्वास्थ्य सुविधा भी नहीं
मानपुर ब्लॉक के पेंदोड़ी पंचायत के तहत आने वाले मेडा तोडक़े गांव के लोगों को सडक़, बिजली, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं के अभाव में जीना पड़ रहा है। अगर गांव में कोई गंभीर रूप से बीमार पड़ जाता है तो उसे अपनी जान गंवानी पड़ जाती है।

मुख्य धारा से दूर
विडंबना यह है कि आदिवासियों के तेजी से विकास और उन्हें मुख्यधारा से जोडऩे के नाम पर ही अलग छत्तीसगढ़ राज्य के विचार ने जन्म लिया था, लेकिन दुर्भाग्य से इन आदिवासियों की दिक्कतों का ही कोई अंत नजर नहीं आता।

मांगों पर कोई सुनवाई नहीं
इस गांव में करीब 9 घर हैं। 70 से ज्यादा लोगों की आबादी वाला ये छोटा सा गांव बस्तर जिले की सीमा पर बसा हुआ है। औंधी से 18 किमी की दूरी पर ये गांव पहाड़ी पर बसा है। आदिवासी समुदाय वाले इस गांव के लोगों को पीने के लिए पानी जैसे-तैसे उपलब्ध हो गई पर गांव के लोग लंबे समय से सडक़, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन शासन-प्रशासन की ओर से सुनवाई नहीं की जा रही है।

ग्रामीणों को सडक़ का इंतजार
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता को मेटातोडक़े गांव के लोगों की दिक्कतें समझने के लिए जंगल के बीच पगडंडियों से होते हुए कुछ दूर पैदल चलना पड़ा। यह गांव जिला मुख्यालय से 160 किमी दूर स्थित है। गांव के लोग कहते हैं कि बाहर का कोई शख्स इस गांव तक पहुंचने 100 बार सोचते हैं। यहां के लोगों को अनाज के लिए भी 10 किमी दूर चलना पड़ता है।

शिक्षा से वंचित बच्चे
राज्य सरकार गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा का दावा भले करे, लेकिन इस गांव में आज भी सरकारी स्कूल नहीं है, न ही आंगनबाड़ी केंद्र है। इस गांव में विद्यालय नहीं होने से यहां के नौनिहाल शिक्षा से वंचित हैं या बच्चों को अन्यत्र जाना पड़ता है। मेटातोडक़े गांव में आंगनबाड़ी केंद्र नहीं होने से यहां के नन्हे-मुन्ने पूरक पोषण आहार व प्रारंभिक शिक्षा से वंचित हो रहे हैं। किसी भी तरह के आंगनबाड़ी केंद्र से मिलने वाली सुविधाएं नहीं मिल रही है।

बदहाली से आंख मोड़ लेते हैं नेता
सत्ता बदल गई, सरकार बदल गई, अब देखना है कि गांव के लोगों से किए वादे कब तक पूरे होते हैं। इस गांव के लोगों से आदिवासी कल्याण के नाम पर राजनेता हर चुनाव में वादे तो लंबे चौड़े करते हैं, लेकिन चुनाव जीतते ही गांव की बदहाली से आंखे मोड़ लेते हैं।

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