राजनांदगांव
खैरागढ़-खुज्जी विस में दिखने लगा असर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 7 नवंबर। खैरागढ़ विधायक देवव्रत सिंह और खुज्जी के पूर्व विधायक रजिंदरपाल सिंह भाटिया के असमय दुनिया छोड़ जाने के बाद राजनांदगांव जिले की सियासी समीकरण बदल गई है। दोनों के अचानक निधन के बाद से उनके क्षेत्रों में राजनीतिक रूप से व्यापक असर दिख रहा है। दोनों की गिनती दमदार नेताओं में होती थी। देवव्रत ने लंबे समय तक कांग्रेस से खैरागढ़ विधानसभा का प्रतिनिधित्व किया। जबकि भाटिया भाजपा में रहते तीन बार विधायक रहे। खैरागढ़ विधानसभा के पिछले चुनाव में देवव्रत ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के बैनर तले जीत हासिल की। हालांकि अघोषित रूप से वह कांग्रेस से जुड़े रहे। जनता कांग्रेस में रहते हुए उन्होंने कांग्रेस सरकार से रिश्ता बना लिया था।
देवव्रत सिंह 52 साल की उम्र में दुनिया को अलविदा कह गए। खैरागढ़ विधानसभा से वह 4 बार विधायक चुने गए। जिले की राजनीति में देवव्रत सिंह एक प्रभावशाली राजनीतिज्ञ रहे। उनकी वाकपटुता और संवाद की शैली से हर कोई प्रभावित रहा। उनके निधन के बाद से खैरागढ़ की सियासी सरगर्मी बढ़ गई है। खैरागढ़ विधानसभा की राजनीतिक गतिविधियों को दशा और दिशा देने के लिए एक काबिल नेता की जरूरत महसूस की जा रही है। माना जा रहा है कि देवव्रत का स्थान लेने के लिए कांग्रेस से लंबी फेहरिस्त है।
राजनीतिक रूप से खैरागढ़ विधानसभा जिले का सबसे चर्चित रहा है। राजघराने की सियासत के चलते समूचे देश में देवव्रत और उनके पूर्वजों की एक अच्छे संबंध रहे हैं। इस बीच खुज्जी विधानसभा के दमदार नेता रहे रजिंदरपाल सिंह भाटिया का भी दुनिया से चले जाना एक बड़े राजनीतिक नुकसान के रूप में देखा जा रहा है। भाजपा के केंद्र बिन्दु रहे भाटिया एक जमीनी नेता थे। उनकी पकड़ आम लोगों के बीच बेहद मजबूत रही। भाटिया ने 2013 के विधानसभा में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर साबित भी किया था। उन्होंने अपने बूते भाजपा को तीसरे स्थान में ढकेल दिया था। न सिर्फ पार्टी के भीतर, बल्कि गैर भाजपाई भी भाटिया को एक मजबूत सख्शियत मानते थे। उनके गुजरने के बाद से खुज्जी विधानसभा में नेतृत्व को लेकर नए समीकरण बन रहे हैं।
भाजपा के कई बड़े नेता खुज्जी विधानसभा में पैर जमाने के लिए जोर लगा रहे हैं। यह भी चर्चा है कि भाटिया के सुपुत्र जगजीत सिंह भी सियासी मंसूबे लिए आम लोगों से मेल-मुलाकात कर रहे हैं। देवव्रत और भाटिया के आकस्मिक निधन से खैरागढ़ और खुज्जी विधानसभा की मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियां तेजी से बदल रही है।