राजनांदगांव

बिना नियम के जीवन नहीं होता-सम्यक रतन सागर
24-Jan-2022 5:00 PM
बिना नियम के जीवन नहीं होता-सम्यक रतन सागर

पांच दिनी दीक्षा महोत्सव शुरू

राजनांदगांव, 24 जनवरी। स्थानीय जैन बगीचे में रविवार से पांच दिवसीय दीक्षा महोत्सव का कार्यक्रम शुरू हो गया। रविवार को डोरा बंधन एवं केसर छांटने का कार्यक्रम हुआ। कार्यकम के दौरान मुनि श्री सम्यक रतन सागर ने कहा कि बिना नियम के जीवन नहीं होता। हर किसी को नियम के साथ ही जीना पड़ता है।

मुनिश्री ने कहा कि खेल क्रिकेट का हो या टेबल टेनिस का या फिर फुटबॉल का नियम से ही खेलना होता है। बिना नियम के कुछ नहीं होता। बिना नियम के कोई संस्था भी नहीं होती। हर किसी को नियम के साथ ही जीना पड़ता है। नियम एक सुरक्षा है, नियम हमें हमारे मंजिल तक पहुंचाती है। आत्मा को नियम से नियंत्रित करें। नियम की शक्ति और ताकत को पहचानें। मन हमेशा नियम का विरोधी रहा है और विरोधी है। उन्होंने कहा कि जो आत्मा मन के नियंत्रण में रहती है, वह आत्म विकास नहीं कर सकती।

मुनिश्री ने कहा कि संयम जीवन बंधन से मुक्ति और मुक्ति से अनुबंध के लिए है। पतंग कितनी भी सुंदर क्यों न हो, लेकिन जब तक डोर का बंधन नहीं होगा, तब तक वह ऊंची उड़ान नहीं उड़ सकती । उन्होंने कहा कि आसमान में उड़ती पतंग की डोर की कमान यदि गुरु के हाथ से मुक्त हो जाए तो उसका  अधोपतन हो जाता है, वह नीचे गिर जाती है और फट जाती है। उन्होंने कहा कि पतंग की डोर योग्य व्यक्ति के हाथ में होनी चाहिए और जीवन की डोर योग्य गुरु के हाथ में, तभी वह सही दिशा में उड़ान भर सकता है।

मुनिश्री सम्यक रतन सागर जी के प्रवचन के पूर्व साध्वी जिन वर्षा ने कहा कि घर में यदि दीवार न हो और जीवन की लगाम यदि हाथ में न हो, तो यह जीवन कैसे चलेगा। उन्होंने कहा कि जब तक जीवन रूपी गाड़ी में ब्रेक न हो तो पता नहीं कब हम पतन की गर्त में गिर जाएंगे। जीवन मिला है और परमात्मा हम से कह रहे हैं कि इसे संभाल कर रखें, यदि यह चला जाएगा तो फिर नहीं मिलेगा। उन्होंने कहा कि पुण्य का अथाह अर्जन हुआ, तब हमें यह मनुष्य जीवन मिला है।

साध्वी स्नेह यशा श्री जी ने कहा कि राजनांदगांव में कई आत्माएं वैराग्य की ओर बढ़ी। आज छह जीव वैराग्य की ओर बढ़ रहे हैं। इनमे एक और दीक्षा जुड़ गई है। उन्होंने कहा कि इन जीवों ने काफी पुण्य किया होगा, जो इस जन्म में एक साथ यहां इक_े हुए हैं। उन्होंने कहा कि हम घर का, वस्त्रों का, लाइफ स्टाइल सहित सब चीजों में एक दूसरे से प्रतिस्पर्धा करते हैं कि इनके समान हमारा भी घर, वस्त्र एवं लाइफ स्टाइल होनी चाहिए, किंतु हम यह तुलना क्यों नहीं करते कि डाकलिया परिवार जैसा हमारा भी परिवार होना चाहिए।

उन्होंने कहा कि आसक्ति डुबाती है। साध्वी ने कहा कि स्वभाव हमारा वंडरफुल होना चाहिए और समाधि ब्यूटीफुल होनी चाहिए। मन गुरु को अर्पण कर दो, जहां संयम है वहां इच्छा कभी नहीं होती।

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