बिलासपुर

मां चंडिका देवी मंदिर की ऐतिहासिक मान्यताएं
01-Oct-2022 8:35 PM
मां चंडिका देवी मंदिर की ऐतिहासिक मान्यताएं

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

करगी रोड (कोटा), 1 अक्टूबर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिला मुख्यालय से 32किलोमीटर दूरी पर कोटा नगर पंचायत के वार्ड नं 11 में स्वयंभू चंडिका देवी शीला पूजन आदि काल से बंजारा समाज के लोगों द्वारा घनाघोर जंगल में किया जाता था,  यहां चैत्र, क्वांर नवरात्र में देवी जी जवारा और मनोकामना ज्योति कलश प्रज्वलित किया जाता है ,श्री चंडिका मंदिर का इतिहास कोटेश्वर महादेव के नाम से ही कोटा कही गई है जो एक प्राचीन रमणीक नगर है, नगर के मध्य में चंडी का मंदिर बन जाने से मां चंडी अपने भक्तजनों की रक्षा के लिए आज सबके हृदय में विराजमान हैं।

मां चंडिका  माई को लेकर प्राचीन इतिहास की जानकारी- आज से 231 वर्ष पूर्व वन ग्राम में बंजारे लोग आए उस समय इस नगर का अस्तित्व नहीं था पूरा नगर वनों से परिपूर्ण था, पहाड़ एवं घरों जंगलों से परिपूर्ण  होने के आवागमन के साधनों का अभाव था , बताया जाता है कि यह मंदिर इतिहासकारों के समय में, शिलालेख  के ऊपर आकर सिंह शेर दहाड़ा करते थे ।,

जहां पर मां चंडी विराजमान है, उस समय के बहुत पहले से मां चंडी देवी स्वयं अपने आप इस शिला में विराजित हुई, जहां आज चंडी मंदिर बना है ,बंजारे लोग इस देवी शीला के आसपास अपना डेरा डालकर यहां के जंगली औषधि जड़ी बूटी वनस्पतियों से अपना पालन पोषण करने लगे कुछ समय बीते कुछ वर्षों बाद इस देवी शीला में जहां पर शेर दहाड़ किया करते थे रात्रि में चंडी देवी का तेज देवी रूप में परिणित होकर कुछ जिला में प्रवेश कर गई चंडी देवी का अद्भुत चमत्कार देखकर बंजारे लोग आश्चर्यचकित रह गए रात्रि में सपने में मां ने प्रकट होकर उन सभी लोगों को आशीर्वाद दिया तभी से उस देवी शीला की आराधना उपासना फल द्वारा श्रद्धा भक्ति पूर्वक पूर्ण  के साथ करने लगे और वे नाना प्रकार के सुख सुविधा तथा मनोवांछित फल मां के आशीर्वाद से प्राप्त करने लगे कई ,वर्षों बाद बंजारे लोग वहां से आगे बढ़ते घनघोर जंगल की ओर चले गए प्राचीन युग में बंजारे लोग आकर मां का दर्शन प्राप्त किए फिर धीरे-धीरे सन 18 20 के आसपास अनेक जातियां अनेक समुदाय के आने से इस वन ग्राम को कोटा वन ग्राम से जाना जाने लगा 1 ग्राम में आने वाले सर्वश्री ब्राह्मणों के प्रमुख थे स्वर्गीय छितानी मितानी दुबे शिव बालक मिश्रा रामाधीन मिश्रा बलभद्र प्रसाद त्रिवेदी 18 50 के आसपास नगर का अस्तित्व आ जाने से अनेकों भक्त स्वर जनिक करो उसे इस देवी की शीला में विराजित मां चंडी की पूजा करने लगे मां की महिमा की चमत्कार देवी चंडी देवी की शीला को चारों ओर छोटी सी दीवाल का चौरा बनाकर देवी की शिला पर जल चढ़ाकर पत्र पुष्प से इनकी पूजा कर अपना मनोरथ पूर्ण करते थे । एसी मान्यता है की? स्वयंभू मां चंडीका देवी के शीला में जितना भी जल चढ़ाया जाता है ,वह मां के कुंड में  ही विलीन हो जाता है ,यह देवी की चमत्कार है, या प्राकृतिक का आज तक कोई भी समझ नहीं पाया हर साल क्वांर

चैत्र की नवरात्रि में जवारा कलश ज्योति  के साथ दुर्गा पाठ कुमारी ,भोजन हवन ,आदि पूजा- होने लगीं उस समय के पुजारी स्वर्गीय वनमाली महाराज कालीचरण महाराज थे नगर के पुरोहित स्वर्गीय नर्मदा प्रसाद तिवारी के द्वारा मां की पूजा अर्चना की जाती थी, अभी उक्त मंदिर में वर्तमान में उनके पुत्र सुदामा प्रसाद तिवारी एवं उनके पौत्र सीतेश  मनोज तिवारी के द्वारा पूजा पाठ की जाती है,

अभी वर्तमान में यह मंदिर कोटा के मध्य नगर में हृदय स्थल चंडी पारा वार्ड क्रमांक 11 में  विराजित है ,सन 1973 में सार्वजनिक रूप से निर्माण कराया गया जिसमें मंदिर में मां दुर्गा की  संगमरमर की विशाल मूर्ति जो लगभग 5 फुट ऊंची स्थापित की गई ,ऐसी दिव्य मूर्ति मुख की मुस्कान से सारे संसार का कल्याण एवं मंगल करने वाली मां भगवती जो छत्तीसगढ़ में ऐसी मूर्ति कहीं ,आपको देखने को नहीं मिलेगी इस के ठीक नीचे छोटी पुरानी चट्टान है जहां स्वयंभू चंडीका मां अपने से ही विराजमान है जिसे एक छोटे से कुंडम के रूप में परिवर्तित कर दिया गया है ,इसके दाएं में मां शारदा बाये में मां काली की मूर्ति प्रतिष्ठित की गई है, बाहर परिसर में मंदिर के बाये में बजरंगबली दाएं में काल भैरव बाबा पहरेदार बने विराजमान हैं, एवं मां चंडी द्वार के ठीक ऊपर विनायक जी विराजमान हैं जिनकी सर्वप्रथम विनती कर के मंदिर के अंदर प्रवेश किया जाता है ,इस मंदिर के चारों और सभी देवताओं की परिक्रमा के लिए सुंदर मार्ग बने हैं जिसमें सभी नर-नारी रोजाना फेरी देकर मां की परिक्रमा सेवा भाव से करते हैं।

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