बालोद
चिरचारी और सोरर से लौटकर
शिव जायसवाल
बालोद, 11 जनवरी (‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता)। मां बहादुर कलारिन का नाम पूरे एक देवी की तरह लिया जाता है वे पूरे छत्तीसगढ़ के साथ कलार समाज के पौराणिक इतिहास का हिस्सा तो है ही साथ ही छत्तीसगढ़ के इतिहास में भी उनका नाम बड़े-बड़े अक्षरों में अंकित है।
बहादुर कलारिन के प्रचलित किस्से लोक कथाओं में सुनने मिलते हैं और छत्तीसगढ़ राज्य के बालोद जिले से 26 किमी दूर चिरचारी और सोरर गाँव के सरहद में उनकी स्मारक वा मन्दिर स्थित है, जो की छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है, परंतु आज यह कहीं न कहीं उनकी माची (चबूतरा) संरक्षण के बाद भी उपेक्षित है।
लगता था मेला
मां बहादुर कलारिन के नाम से राज्य अलंकरण की घोषणा भी प्रदेश सरकार द्वारा की गई है, परंतु जिस जगह यहां माची है, उसका संरक्षण कहीं ना कहीं उपेक्षित है, यहां पर जो मेला लगता है वह भी कुछ वर्षों से बंद है।
आसपास के लोगों ने बताया कि माची के देखरेख के लिए एक कर्मचारी की नियुक्ति की गई है, जो कभी-कभी यहां आता है और देखरेख करता है। कुछ असामाजिक तत्वों ने इसके पत्थरों को गिरा दिया था, लेकिन जब हम इसके पास जाते हैं तो यह प्रतीत होता है कि यह अपने भीतर सैकड़ों राज समेटे हुए हैं।
कहते हैं नीचे दबा है सोना
आसपास के लोगों का यह कहना है कि जिस जगह माची बनी हुई है, उसके नीचे करोड़ों रुपए का सोना दबा हुआ है, परंतु इसकी जब खुदाई होगी तभी मूल बात का पता लग पाएगा।
आसपास के लोगों का कहना है कि इसको लेकर सरकार को और शोध करना चाहिए पुरातत्वविदों को शोध करना चाहिए, तब मां बहादुर कलारिन की वास्तविकता और कई सारे राज सामने आएंगे। मां बहादुर कलारिन को कलार समाज ही नहीं अपितु पूरे प्रदेश में मां का दर्जा दिया गया है।
नारी उत्थान के लिए करती थी काम
मां बहादुर कलारिन को लेकर कई सारी बातें प्रचलित है, पर ‘छत्तीसगढ़’ ने जब ग्राम सोरर के दो लोगों से मुलाकात की तो चूरामन लाल कुंभज ने बताया कि मां के बारे में बहुत सी बातें आती है, पर हम ये सोचते हैं कि इसमें आज शोध करने की जरूरत है।
किवदंती है कि मां बहादुर कलारिन नारी उत्थान के विषय में काम करने वाली एक महिला थी, जिन्होंने नारियों के सम्मान में अपने पुत्र को भी नहीं छोड़ा और उसे मौत के घाट उतार दिया, हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि उनका बेटा भी मातृ प्रेम का एक मिसाल था जिसने अपने मां के सम्मान के लिए यह कदम उठाया।
छत्तीसगढ़ में कलचुरी शासन खत्म हो रही थी, कई गाँव के लोग अपने रहने खाने के व्यवस्था के साथ अपनी जगह बदलने में मजबूर थे, उन्हीं में से एक थे गौटिया सूबेलाल कलार जिनकी मदिरा की दुकान थी, हालांकि राजाओं के शेष काल अब भी बचे हुए थे। सूबेलाल गौटिया की बनाई शराब दूर-दूर से लोग लेने व पीने आते थे। सूबेलाल की छोटे भाई के बेटी कलावती ही उनके पास मात्र परिवार के नाम पर थी और कलावती के पास चाचा सूबेलाल को छोड़ कोई नहीं था। सूबेलाल के साथ मदिरा दुकान में कलावती सहयोग करते हुए बड़ी हुई। यौवन ने कदम रखा तो कलावती पर कई मनचलों की नजरे रहती। इसलिए सूबेलाल ने कलावती को खेल-खिलौनों से दूर रखकर, लाठी, कटार और तलवार चलाना सिखाया। कलावती को सूबेलाल सौन्दर्य के आलावा वह शौर्य कला में भी पारंगत करना चाहता था। कलावती की आँखे मृगनयनी के सामान थे, क्रोध में चेहरा चंडी के सामान हो जाता था। एक झलक पाने के लिए कई राजा और राजकुमार भेष बदलकर शराब खरीदने सूबेलाल की दुकान में आते थे, लेकिन कलावती के स्वाभिमान व्यवहार से वापस लौट जाते थे।
राजाओं के आते थे प्रेम प्रस्ताव
सूबेलाल की मृत्यु के बाद मदिरा की दुकान चलाती कलावती को बहुत सारे राजाओं के प्रेम प्रस्ताव आए व कुछ समय बाद वे एक राजा के अथाह प्रेम में पड़ गई, जिनसे उन्हें एक पुत्र भी हुआ, राजा ने कलावती से छल किये व कलावती को अकेला छोड़ गया। जीवन के इस स्थिति में अब कलावती अपने पुत्र के साथ जीवन निर्वाह करने लगी, पर कलावती के बेटे को छल की बात खटकने लगी, वह इसी खटास के साथ बड़ा होने लगा खटास कब परिवर्तित हुई किसी को खबर तक नहीं हुई ,कलावती के बेटे ने राजाओं के बेटियों से शादी करके उन्हें छोड़ देता उसने कई राजाओं की बेटियों के साथ शादी करके बदले के भाव में उन्हें छोड़ देता।
अपने बेटे को मारने बनाई योजना
कलावती को जब इस बात का पता चला उन्होंने अपने बेटे को मारने की योजना बनाई, क्योंकि उनके बेटे की इस आदत से कई और महिलाओं के सम्मान को ठेस पहुँचती थी। सभी तरफ अपने ही बेटे को पानी ना देने का आदेश दिया पानी ना मिलने पर अधमरे हालत में जब वह कुआं के पास पंहुचा तो कलावती जी ने उसे धकेलकर खुद भी कुएं में कूद गई।
आज कलावती को बहादुर कलारिन के नाम से जानते है, कलावती वो स्त्री थी जिन्होंने पूरी जिंदगी संघर्ष में निकले सौंदर्य ,पारंगत होने के बाद भी उनके जीवन में प्रेम ने छल के साथ प्रवेश लिए, जिसका सबसे ज्यादा असर उनके बेटे पर हुआ। अंत में उन्होंने अपनी जिंदगी अपने बेटे के साथ खत्म कर ली। चिरचारी गाँव में उनकी स्मारक वा मन्दिर में आज भी उनकी पूजा की जाती है, सिर्फ कलार समाज में नहीं बल्कि पूरी अलग जातियों में भी कलारिन बाई का सम्मान किया जाता है।
ग्रामीणों ने उठाया बीड़ा
ग्रामीण चुरामन लाल कुंभज ने बताया कि स्थानीय लोगों ने इसकी सुरक्षा संरक्षण का जिम्मा उठाया है। देवी स्थलों में विशेष पूजा अर्चना की जाती है, और अब तो मंदिर का भी निर्माण किया गया है। उन्होंने कहा कि लगातार हम इस क्षेत्र को संरक्षित करने की कोशिश कर रहे हैं क्षेत्र महापाषाण ई स्मारकों से घिरा हुआ है कई जगहों पर तो पत्थर भी चोरी हो रहे हैं।