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अरूणाचल की जमुना बीनी को महासमुंद में सूत्र सम्मान, दूसरे सत्र में काव्यगान
20-Feb-2024 2:08 PM
अरूणाचल की जमुना बीनी को महासमुंद में सूत्र सम्मान, दूसरे सत्र में काव्यगान

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

महासमुंद,20 फरवरी। समकालीन सूत्र जगदलपुर और काव्यांश कला पथक संस्थान महासमुंद के संयुक्त तत्वावधान में सूत्र सम्मान समारोह का  आयोजन वन प्रशिक्षण सभागार महासमुंद में हुआ। रविवार 18 फरवरी 2024 को आयोजित इस समारोह के मुख्य अतिथि साहित्यकार और रायपुर संभागायुक्त डॉ.संजय अलंग थे। अध्यक्षता डॉ भूपेंद्र कुलदीप कुलसचिव दुर्ग ने की। विशिष्ट अतिथि डॉ.त्रिलोक महावर, ईश्वर शर्मा, शरद कोकाश,अरुणाचल प्रदेश से खास तौर पर आमंत्रित युवा कवियत्री डॉ. जमुना बीनी, काव्यांश के संस्थापक अध्यक्ष भागवत जगत भूमिल मंचस्थ थे।

समारोह में स्वागत उदबोधन देते हुए भागवत जगत ने आयोजन की प्रस्तावना रखी। उन्होंने कहा कि काव्यांश नवोदित साहित्य  साधकों का संरक्षक मंच है। सम्मान समारोह की भूमिका प्रस्तुत करते हुए आमोद श्रीवास्तव ने कहा कि जन और जनपद से जुड़े लोक कवियों  को ठाकुर पूरन सिंह स्मृति सूत्र सम्मान हर साल दिया जाता है। बतााया कि इसी कड़ी में ईटानगर अरुणाचल प्रदेश की युवा कवियत्री जमुना  बिन्नी को 27वीं सूत्र सम्मान दिया जा रहा है। यह सम्मान हिंदी कविता में लोक चेतना के लिए दिया जाता है।

साहित्यकार शरद कोकाश ने डा.जमुना बीनी का परिचय पठन किया। साहित्यकार डॉ सुखनंदन ध्रुर्वे, नंदन ने डॉ जमुना बीनी की रचनाओं की समीक्षा करते हुए व्यक्तित्व और कृतित्व से उपस्थितजनों को परिचित कराया। वरिष्ठ साहित्यकार घनश्याम त्रिपाठी ने रजत कृष्ण बागबाहरा द्वारा लिखित आलेख का वाचन करते हुए जमुना बीनी की रचनाओं का मर्म रेखांकित किया।

सूत्र सम्मान-2023 से विभूषित और समारोह की प्रमुख वक्ता डॉ. जमुना बीनी ने अरुणाचल प्रदेश की आदिम संस्कृति और लोक परंपराओं के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि उनके पिता एसडीएम थे। तब उस क्षेत्र में वर द्वारा वधु को दहेज में मिथुन बायसन देने की परंपरा थी। माँ के गर्भ में होते ही गर्भावस्था में ही विवाह के लिए मिथुन देने का आपस में करार हो जाता था। इस कुरीति को दूर करने उनके पिता ने बीड़ा उठाया। परिणामस्वरूप उन्हें 20 युवतियों का पति और 45 बेटी और 33 बेटे अर्थात 78 संतानों का पिता बनना पड़ा।

डॉ. जमुना बिन्नी अपने पिता की 19वीं पत्नी से जन्म लेने वाली बेटी हैं। अरुणाचल प्रदेश में सूर्य को माता, चंद्रमा को पिता मानते हैं। यहां के जनजाति जीवन में प्रकृति का बड़ा महत्व है।

उन्होंने बताया कि वर पक्ष से दहेज में मिथुन लेकर बेटी का विवाह करने की कुरीति को खत्म करने के लिए उनकी सभी 45 बहनों ने प्रेम विवाह किया है। उनके पिता की प्रेरणा से वधु मूल्य दहेज में मिथुन बायसन लेना बंद किया।  इस तरह वर्षों से चली आ रही कुरीति को दूर करने के साथ ही जनजातियों में जागृति के लिए वह निरंतर साहित्य साधना कर रही हैं।

उन्होंने सूत्र सम्मान को अरुणांचल को समर्पित करते हुए कहा कि यह उनका नहीं, अरुणाचल प्रदेश का सम्मान है। इसके लिए उन्होंने छत्तीसगढ़  का आभार जताया।  विशिष्ट अतिथि की आसंदी से बोलते हुए त्रिलोक महावर ने कहा कि शब्द ब्रम्ह है। शब्दों की साधना और शब्दों को साधने की कला  बड़ी बात है। शब्द में नाद है। जब तक शब्द सार्थक नहीं होंगे, साहित्यकार जन.मन को नहीं छू सकता है।

उन्होंने डॉ जमुना बीनी के व्यक्तित्व और कृतित्व को रेखांकित करते हुए कहा कि उनकी काव्य सृजन में पानी जैसी तरलता है। कविता मन की गहराईयों को छू लेने वाली है।

कार्यक्रम की अध्यक्षीय आसंदी से बोलते हुए डॉ. भूपेंद्र कुलदीप ने कहा कि पूरे देश में छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है, जहां राज्य को मां  कहकर पुकारते हैं। उन्होंने किताबों की व्याख्या करते हुए कहा कि किताबें हमारे जीवन में बड़ा प्रभाव डालती हैं। इसलिए अध्ययनशील रहें।

मुख्य अतिथि की आसंदी से संभागायुक्त डॉ. संजय अलंग ने कहा कि कि हर कला का प्रारंभ मिथक के आसपास होता है। जनता के लिए लिखने वाला जनपदीय साहित्यकार का इस मंच से सम्मान अनुकरणीय है। उन्होंने कहा कि महासमुन्द का मंच बहुत समृद्ध है। उन्होंने  महासमुंद नगर के नामकरण को रेखांकित करते हुए कहा कि समुद्र गुप्त ओडिशा जाते समय यहां रुके। यहां के लोगों के दिलों की गहराई और  विशालता को सबने महसूस किया। जन सुविधा के क्रम में एक विशाल तालाब का यहां निर्माण हुआ था और यह महासमुंद के नाम से विख्यात हो गया।

सूत्र सम्मान के सूत्रधार विजय सिंह के संयोजन में सरिता सिंह के आभार ज्ञापन के साथ ही प्रथम सत्र में सम्मान समारोह का समापन हुआ। द्वितीय सोपान में साहित्यिक गोष्ठी हुईए जिसमें प्रदेशभर से आमंत्रित साहित्यकारों ने अपनी रचनाएं पढ़ी। संचालन सुरेंद्र मानिकपुरी,

पुष्पलता भार्गव ने किया। इस अवसर पर महासमुंद के अलावा बसना, बागबाहरा, राजिम, अभनपुर, रायपुर, मांढर, कुम्हारी, राजनांदगांव, भिलाई, आरंग, पिथौरा, मनेन्द्रगढ़, बिलासपुर, जगदलपुर से बड़ी संख्या में साहित्यकार और साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।

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