दुर्ग

भारतीय ज्ञान परंपरा पर राष्ट्रीय संगोष्ठी
03-Mar-2024 3:23 PM
भारतीय ज्ञान परंपरा पर राष्ट्रीय संगोष्ठी

दर्जनों शोधार्थियों ने पढ़ा शोधपत्र

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दुर्ग, 3 मार्च।
  घनश्याम सिंह आर्य कन्या महाविद्यालय दुर्ग में भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसके मुख्य अतिथि हेमचंद विश्वविद्यालय दुर्ग की कुलपति डॉ.अरुणा पल्टा ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा विषय पर पूरे दुर्ग विश्वविद्यालय में यह प्रथम संगोष्ठी है,और निश्चित यह मिल का पत्थर साबित होगी। 

विशेष अतिथि दुर्ग विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण अधिष्ठाता डॉ. प्रशांत श्रीवास्तव ने कहा कि भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे समृद्ध संस्कृति है। कार्यक्रम की अध्यक्षता दयानंद शिक्षण समिति के कार्यकारी अध्यक्ष दिग्विजय सिंह गुप्ता ने किया। संगोष्ठी के प्रथम सत्र का शुभारंभ महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ मृदुला वर्मा के स्वागत भाषण के साथ हुआ प्रमुख वक्ता भाषाविद एवं शिक्षाविद डॉ. चितरंजन कर रायपुर ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा ज्ञान का अथाह सागर है जिसकी गहराई मापी नहीं जा सकती।उन्होंने कहा कि गीता में तीनों युगों का सार समाहित है,व्यक्ति साधना से बड़ा बनता है साधन से नहीं। उड़ीसा से पधारे डॉ महेंद्र मिश्र ने भारतीय ज्ञान परंपरा में बच्चों की भाषा और विद्यालय की भाषा विषय पर प्रकाश डाला। बीआईटी कॉलेज दुर्ग के प्रोफेसर डॉ संजीव कर्मकार ने अपने वक्तव्य में भारतीय ज्ञान परंपरा में तकनीकी एवं प्रौद्योगिकी विषय पर वैज्ञानिक धारणाएं ,अनुसंधान ,गणित, ज्योतिष और आयुर्वेद के बारे में बताया।  शिक्षाविद् एवं साहित्यकार  बलदाऊ राम साहू ने छत्तीसगढ़ के पर्व और परंपराओं में जल तत्व की महिमा को बताया। संगोष्ठी के प्रथम दिवस में भारतीय ज्ञान परंपरा के अंतर्गत विविध विषयों पर लगभग 20 शोधार्थियों ने अपना शोध पत्र पढ़ा। अंत में समस्त शोध पत्र की समीक्षा डॉ.चितरंजन कर के द्वारा की गई ।समस्त कार्यक्रम का संचालन हिंदी विभाग से निशा साहू ने किया। राष्ट्रीय संगोष्ठी के द्वितीय दिवस के प्रथम सत्र का शुभारंभ महाविद्यालय की उपप्राचार्य  नीतू सिंह द्वारा स्वागत भाषण देकर किया गया 

प्रमुख वक्ता के रूप में डॉ. लक्ष्मी नारायण पयोधि जनजाति विभाग के विशेषज्ञ एवं सलाहकार, भोपाल ने भारतीय जनजाति ज्ञान परंपरा एवं जीवन दर्शन विषय पर प्रकाश डाला उन्होंने बताया कि अखंड भारत की बुनियाद रखने में जनजातियों का विशेष योगदान रहा है। बलदाऊ राम साहू ने वर्तमान शैक्षिक संदर्भ में गीता विषय को लेकर बताया कि आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षाओं के साथ-साथ गीता भारतीय साहित्य और शिक्षा दर्शन में अद्वितीय स्थान रखता है।उन्होंने बताया कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य स्वस्थ समाज का निर्माण करना है। 

वहीं डॉ.आर.पी. अग्रवाल प्राचार्य, कल्याण स्नातकोत्तर महाविद्यालय भिलाई ने अपने वक्तव्य में भारतीय ज्ञान परंपरा में प्रबंधन विषय पर बताते हुए कहा कि प्रबंधन के लिए धैर्य एवं कुशल नेतृत्व का होना आवश्यक है उन्होंने प्रबंधन और कम्युनिकेशन का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण रामचरितमानस का दिया।  डॉ. पवन विजय समाज शास्त्री एवं प्रोफेसर, गुरु गोविंद सिंह विश्वविद्यालय इंद्रप्रस्थ दिल्ली ने अपने व्याख्यान में बताया कि प्राचीन भारत में विज्ञान का विकास बहुत बहुत महत्वपूर्ण था। वेदों में गणित, ज्योतिष एवं अन्य विज्ञानों के उल्लेख मिलते हैं। उन्होंने प्रमुख बताया कि विज्ञान की तीन शाखाएं टेक्नोलॉजी डीएनए और वायरलेस यह सब भारत की ही देन है इसका साक्षात उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि अयोध्या के राम मंदिर में भारतीय शिल्पकारों के द्वारा ऐसा  निर्माण किया गया कि गर्भ गृह में स्थापित रामलला की मूर्ति के मस्तिष्क पर हर रामनवमी की सुबह सूर्य की किरणों के द्वारा तिलक किया जाएगा।संगोष्ठी के द्वितीय दिवस भी विभिन्न शोधार्थी एवं अध्यापकों द्वारा शोध पत्र पढ़ा गया और समस्त शोध पत्र की समीक्षा डॉ.लक्ष्मी नारायण पयोधि के द्वारा की गई। समापन सत्र के मुख्य अतिथि दयानंद शिक्षण समिति के अध्यक्ष डॉ राघवेंद्र सिंह गुप्ता  ने पूरे महाविद्यालय परिवार को बधाई देते कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा पर हमें गर्व है और नई पीढ़ी को इसे जानना बहुत आवश्यक है। आभा रानी गुप्ता ने कहा कि आज के आधुनिकता के दौर में भारतीय ज्ञान परंपरा पर आधारित संगोष्ठी नई पीढ़ी को नई दिशा देगी।  कार्यक्रम का संचालन कर रही निशा साहू ने कबीर की साखी च्च्मेरा मुझमें कुछ नहीं जो कुछ है सो तोर, तेरा तुझको सौपता क्या लागत है मोर इस भाव के साथ सभी वक्ताओं का आभार व्यक्त किया संगोष्ठी का संयोजन डा.हितेश्वरी रावते एवं  निशा साहू ने किया। इस अवसर पर पूर्व प्राचार्य  शिव बालक दास साहू, डा. विनय शर्मा, अतुल नागले , उदय भान सिंह चौहान , देवी प्रसाद तिवारी ,संजय मिश्रा एवं  विभा शर्मा जैसे मूर्धन्य विद्वान उपस्थित रहे।

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