गरियाबंद
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजिम, 7 मार्च। राजिम कुंभ कल्प मेला के 12वें दिन संत समागम स्थल में वैष्णव नागाओं ने अपनी पंथ परंपरा के अनुसार निशान पूजा कर अपनी परम्परा का निर्वहन किया।
जानकारी के अनुसार भारत देश में कुल तेरह अखाड़े है जिसमें तीन अखाड़े वैष्णव संप्रदाय के है ये तीनो अखाड़ो ने राजिम कुंभ में प्रतिनिधित्व किया। जो श्रीपंच निर्मोही अखाड़ा, श्रीपंच दिगंबर अनी अखाड़ा, श्रीपंच निर्वाणी अनी अखाड़़ा के महंत नागा मौजूद थे। कालांतर में जब देश में अधर्मी आक्रांताओ ने सनातन धर्म पर हमला किए तब संतो की एक लड़ाकू फौज का गठन किया गया, जिन्हें अस्त्र-शस्त्र की विद्या से रण कौशल की दीक्षा देकर इन्हें धर्म की रक्षा का दायित्व सौंपा गया। इन दलों के पास एक विशाल छड़ी में ध्वज होता था जिसे निशान कहते है।
यह निशान अखाड़ों की मान्यता के अनुसार हनुमान जी का प्रतिनिधित्व करते है और इस निशान को हनुमान जी का आशीर्वाद मानकर उनके दिशा-निर्देश अनुसार धर्म की रक्षार्थ अक्रांताओ से युद्ध करते थे। जिससे सनातन धर्म की रक्षा किया जा सके। सदियों पुरानी यह परंपरा आज भी बादस्तुर जारी है और इस परंपरा का निर्वहन कुंभ में पूजा अर्चना कर तथा संतो द्वारा शौर्य प्रदर्शन कर किया जाता है। इसी परंपरा का निर्वहन पूरे भव्यता और विधि-विधान के साथ राजिम कल्प कुंभ में मौजूद समस्त अखाड़ों के संतों, अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों के सानिध्य में किया गया। जिसमें महामण्डलेश्वर सर्वेश्वर दास जी, मण्डलेश्वर राधेश्याम के अलावा संस्कृति विभाग के उप संचालक प्रताप पारख, मेला आयोजन समिति के सदस्य गिरीश बिस्सा, केंद्रीय समिति के विशिष्ट सदस्य लीलाराम साहू, सदस्य नागेंद्र वर्मा, अनुज राजपूत, देवेंद्र पाटकर आदि उपस्थित थे।