गरियाबंद

कुंभ में संत समागत का महत्व
07-Mar-2024 2:43 PM
कुंभ में संत समागत का महत्व

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजिम, 7 मार्च।
कोई भी धार्मिक मेला संतों के बिना अधूरा है। इसीलिये देश में होने वाले चारों कुंभ सहित धार्मिक आयोजनों में संत समागम का होना उतना ही जरूरी है जितना भोजन में नमक। इसी प्रकार राजिम में आयोजित होने वाले कुंभ कल्प में संतो को आमंत्रित करते हुए संत समागम का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है। यहां पर देशभर के साधु-संत, महात्मा, शंकराचार्य, मंडलेश्वर, महामण्डलेश्वर, नागा साधु आदि संत समागम का हिस्सा बनते है और धार्मिक चर्चा में अपने उद्बोधन से आने वाले श्रद्धालुओं को कृतार्थ करते है।

वैसे भी कहा जाता है कि जहां संतों का वास या आगमन होता है, वह क्षेत्र तीर्थ बन जाता है। चूंकि राजिम स्वयं तीर्थ के रूप में स्थापित है लिहाजा यहां साधु संतो का आगमन सोने पे सोहागा की मानिद है। यहां पर पहुंचे संतों ने स्वयं स्वीकारा कि जितना मान सम्मान संतों को राजिम कुंभ कल्प मेले में मिलता है। उतना देश के अन्य क्षेत्रो में आयोजित मेलों में नहीं मिलता है। यहां पर मंत्री एवं जनप्रतिनिधि स्वयं संतों की अगवानी करते हुए उनका स्वागत करते है। उनके रहने ठहरने की उत्तम से उत्तम व्यवस्था की जाती है। पूरा प्रशासनिक अमला उनकी सेवाश्रासस में लगा रहता है। 

यहां से आम आदमी की तरह संतो से मिलते है। वैसे किसी भी राज्य का मंत्री अपना प्रोटोकाल तोडक़र नहीं मिलता यही है छत्तीसगढ़ की संत संस्कृति का परिचय। छत्तीसगढ़ की धर्मपरायण जनता हर तिलकधारी को ब्राम्हण समझती है और हर भगवाधारी को संत समझकर उनका आदर करती है, जो यहां की जनता का निष्छल प्रेम का द्योतक है। छत्तीसगढ़ की मिट्टी की सीरत ही ऐसी है कि वह अपने यहां आने वाले हर किसी का बिना भेदभाव के साथ आत्मसात करते हुए। उनका स्वागत सत्कार करती है। यह दृष्य आपको राजिम आकर स्वयं दिखाई देगा कि राजिम की जनता किस आत्मिक भाव से पूरी श्रद्धा के संतों की सेवा करते है।
 

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