बलौदा बाजार

1933 में बलौदाबाजार आए थे बापू
07-Apr-2024 9:07 PM
1933 में बलौदाबाजार आए थे बापू

मंत्री टंक राम वर्मा ने की स्मारक स्थल को सहेजने की घोषणा

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता

बलौदाबाजार, 7 अप्रैल। शहर से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की कई यादें जुड़ी है। बापू गुलामी के दौरान में 91 साल पहले वर्ष 1933 में यहां आए थे।

उन्होंने यहां आजादी के आंदोलन की अलख जगाई। साथ ही छुआछूत के खिलाफ आंदोलन का आगाज किया। उस जमाने में बलौदाबाजार शहर के सभी छोटे बड़े कार्यक्रम पुरानी कृषि उपज मंडी प्रांगण में ही हुआ करते थे। इस दौरान गांधी जी की सभा भी वही आयोजित हुई थी।

मंडी प्रांगण में आज भी एक कुआं है, जिसमें से उन्होंने एक दलित से पानी निकलवा कर उसके ही हाथों से पानी पिया था। इस ऐतिहासिक मंडी परिसर में वर्तमान स्थिति को देखें तो निराशा के अलावा कुछ और नहीं मिलेगा।

समय-समय पर अलग-अलग जिलाधीशों ने भी निरीक्षण कर ऐतिहासिक स्थल का जीर्णोद्धार करने दावे करके तो गए मगर पलट कर इस तरफ फिर कभी नहीं देखा। शुक्रवार को एक कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे शहर के विधायक व राजस्व मंत्री टंक राम वर्मा ने संज्ञान में यह बात आने के बाद एक ऐतिहासिक स्थल के कायाकल्प होने उम्मीद एक बार फिर से जागी है।

ऐतिहासिक धरोहर को सहेजना हम सबका दायित्व

मंत्री टंक राम वर्मा ने कहा कि गांधी जी के पैर जिस पावन भूमि पर पड़े वह हमारे लिए ऐतिहासिक धरोहर है इसे सहेजना हम सब का कर्तव्य है। सभी के सहयोग से इस ऐतिहासिक स्थल को सहेजना संवारा जाएगा।

जिस कुएं का पानी पिया था, वह डस्टबिन बना

इतिहास के पन्नों में बलौदाबाजार शहर व पुरानी मंडी परिसर का नाम तो दर्ज हो गया लेकिन हम गांधी से जुड़ी शहर की स्मृतियों को सहेज कर नहीं रख पाए। जिस मंडी परिसर में सभा हुई थी, वहां की वर्तमान स्थिति देखकर कोई भी सामान्य आदमी इसके परिसर के अंदर जाने की हिम्मत नहीं कर पाएगा। जिस कुएं से गांधी जी ने दलित से पानी निकलवा कर उसके हाथों से पिया था, वह डस्टबिन बन चुका है।

 इस पुराने मंडी परिसर में कुछ नशेड़ी का सामाजिक तत्व यहां लगातार हर समय मौजूद रहते हैं। मंडी परिसर का मुख्य द्वार हो या भवन में बने कमरों का प्रवेश द्वार, कहीं पर भी अब दरवाजे नहीं बचे हैं। ऐतिहासिक कुआं आसपास के लोगों का ही डस्टबिन बना हुआ है। मंडी परिसर में कचरा फेंका जा रहा।

शहर के जगन्नाथ मंदिर में कराया था दलितों का प्रवेश

इसके बाद वहां से पुरानी बस्ती के मावली मंदिर भी गए, जहां से लौटने के बाद बलौदाबाजार के जगन्नाथ मंदिर गए, जिससे शहर वासी अब गोपाल मंदिर के नाम से भी जानते हैं। वहां कुछ दलितों के साथ मंदिर प्रवेश भी किया था। इसके बाद से शहर के सभी मंदिरों में हर जाति के लोग पूजन के लिए जाने लगे।

स्वतंत्रता की लड़ाई के इतिहास में बलौदाबाजार का नाम दर्ज

स्वतंत्रता की लड़ाई के इतिहास बलौदाबाजार का नाम भी स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। आजादी की लड़ाई में हिंसा लेने वाले कई दिग्गजों में से एकमात्र गांधी जी ही थे। जो 91 साल पहले बलौदाबाजार आए थे। उसके आगमन की स्मृतियां अभी भी मौजूद है।

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