दुर्ग
![साइंस कॉलेज में रंगकर्म पर राष्ट्रीय ई-कार्यशाला साइंस कॉलेज में रंगकर्म पर राष्ट्रीय ई-कार्यशाला](https://dailychhattisgarh.com/2020/chhattisgarh_article/1613481857_1613305088G_LOGO-001.jpg)
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
दुर्ग, 16 फरवरी। शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर महाविद्यालय की साहित्य समिति और नाट्यकला समिति (अभिरंग) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित पांच दिवसीय ऑनलाइन राष्ट्रीय नाट्य कार्यशाला रंगबोध सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई। इसमें रंगकर्म के उन अनुभवी कलाकारों ने प्रशिक्षण दिया, जो इस क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान स्थापित कर चुके हैं।
प्रशिक्षकों में विख्यात रंगकर्मी तनवीर अख्तर (पटना), डॉ. उषा आठले (रायगढ़), राजेश श्रीवास्तव और मणिमय मुखर्जी (इप्टा, भिलाई) तथा राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से प्रशिक्षित हीरा मानिकपुरी सम्मिलित थे। इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ के नाट्यकला विभाग के प्रमुख डॉ. योगेंद्र चौबे ने भी कार्यशाला में सक्रिय भागीदारी की तथा अपने सुझावों से प्रशिक्षुओं को लाभान्वित किया।
कार्यशाला के अंतर्गत प्रथम दिवस में पटना के वरिष्ठ रंगकर्मी व निर्देशक तनवीर अख्तर द्वारा नाटक और रंग कर्म का सामान्य परिचय विषय पर केंद्रित अपने वक्तव्य में नये और पुराने रंगकर्मियों को जोडऩे का प्रयास किया तथा स्क्रिप्ट पठन व संवाद काल, अभिनय कला पर बेहतरीन सुझाव दिए।
दूसरे दिन इप्टा भिलाई के वरिष्ठ रंगकर्मी व संगीत निर्देशक मणिमय मुखर्जी ने रंग संगीत के विविध पहलुओं पर प्रकाश डाला। तीसरे दिन रायगढ़ इप्टा की वरिष्ठ रंगकर्मी डॉ. ऊषा आठले ने रंगकर्म के महत्वपूर्ण भाग इंप्रोवाइजेशन (आशुवाचिकता)के बारे में बताया। चौथे दिन भिलाई इप्टा के निर्देशक राजेश श्रीवास्तव ने अभिनय विषय पर व्यावहारिक उदाहरणों के साथ बेहतरीन व्याख्यान दिया। रंग बोध के अंतिम दिन प्रशिक्षुओं ने रंग-श्रृंखला नाट्य मंच व इम्पल्स ऐक्टिंग एकेडमी के निर्देशक व राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय दिल्ली से प्रशिक्षित हीरा मानिकपुरी को सुना।
कार्यशाला का उद्घाटन संस्था के प्राचार्य डॉ. आर. एन. सिंह ने किया। संयोजन डॉ. सुचित्रा गुप्ता तथा संचालन डॉ. जयप्रकाश साव ने किया। प्रो. दिलीप साहू के तकनीकी सहयोग से सम्पन्न इस आयोजन में साहित्य एवं नाट्य समिति के सदस्यों प्रो. थानसिंह वर्मा, डॉ. सुचित्रा शर्मा, के. पद्मावती, डॉ. ज्योति धारकर, डॉ. अनुपमा कश्यप, डॉ. तरलोचन कौर, डॉ. मर्सी जॉर्ज, प्रो. जनेन्द्र दीवान ने योगदान दिया।