राजनांदगांव
बारिश में देरी से मोंगरा 65 फीसदी भरा, दूसरे जलाशय की स्थिति खराब
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजनांदगांव, 15 जुलाई। जिले के बांध-बैराज आषाढ़ महीने के गुजरने के दौर में अब भी खाली पड़े हैं। गुजरे साल बांध-बैराज छलककर नदियों की रफ्तार बढ़ाने में मददगार रहे। इस साल मानसून की धीमी गति से जलाशय और बैराज छलकना तो दूर अपने निर्धारित क्षमता के अनुरूप भर नहीं पाए हैं। ऐसी हालत देखकर किसान और प्रशासन दोनों की चिंता बढ़ गई है। बताया जा रहा है कि आषाढ़ माह में आमतौर पर बैराज और बांध क्षमता तक भर जाते हैं। इस बार स्थिति आषाढ़ महीने में बिल्कुल बदली हुई है।
बताया जा रहा है कि जिले के बड़े बैराजों के साथ-साथ मध्यम और लघु जलाशय भी खाली पड़े हुए हैं। जिले में मोंगरा को सबसे बड़ा बैराज माना जाता है। मोंगरा में अब तक 65 फीसदी पानी का भराव हुआ है। इसी तरह सूखा नाला में 26, घुमरिया में 43 और खातूटोला में 2.2 प्रतिशत पानी का भराव है। बताया जा रहा है कि बीते साल आषाढ़ में ही बांध-बैराज छलककर नदियों की रफ्तार बढ़ाने में सहायक रहे। आषाढ़ का महीना बारिश के लिहाज से काफी कमजोर साबित हुआ है। मानसूनी बारिश को लेकर मौसम विभाग ने सामान्य से अधिक बारिश होने की संभावना जताई थी। इससे परे विपरीत मिजाज होने से मानसून कछुआ चाल में आगे चल रहा है।
बताया जा रहा है कि बैराज और जलाशय पूरी तरह से खाली पड़े दिख रहे हैं। मोंगरा बैराज की क्षमता 32 घन मीटर, सूखा नाला बैराज 11 घन मीटर, खातूटोला 3.75 घन मीटर, रूसे जलाशय 9.18 घन मीटर, ढारा जलाशय 5.08 घन मीटर, मटियामोती जलाशय 36.48 घन मीटर, मडियान जलाशय 11.59 घन मीटर, घुमरिया जलाशय 2.72 घन मीटर की क्षमता है। इधर रूसे जलाशय में 50, ढ़ारा में 38, पिपरिया में 70, मटियामोती में 9 व मडियान में 36 प्रतिशत पानी भरा हुआ है। बताया जा रहा है कि जलाशयों और बैराज में पानी की कमी के चलते अब तक गेट नहीं खोले गए हैं। यही कारण है कि नदियों में भी पानी की कमी नजर आ रही है।
सावन से बंधी आस
सप्ताहभर बाद आषाढ़ की बिदाई होते ही सावन की शुरूआत होगी। सावन को बारिश के लिहाज से अनुकूल मौसम माना जाता है। उम्मीद की जा रही है कि सावन में बारिश जमकर बरसेंगे। हालांकि सावन में मानसूनी बादल बिना बरसे कुछ सालों से आगे निकल रहे हैं। इससे लोगों को बारिश नहीं होने की चिंता बढ़ रही है। बांध-बैराज खाली होने का सीधा असर खेती पर पड़ेगा। पानी की किल्लत पर बांधों से ही सिंचाई के लिए किसानों को पानी उपलब्ध कराया जाता है। मानसून के मौजूदा स्थिति को देखकर यह समझा जा सकता है कि बारिश नहीं होने से हालात गंभीर हो सकते हैं।