राजपथ - जनपथ
छत्तीसगढ़ राज्य के दवा निगम में भ्रष्टाचार की परतें खुल रही हैं। सरकार ने निगम में भ्रष्टाचार की जांच का जिम्मा ईओडब्ल्यू को सौंप दिया है। चर्चा है कि निगम के पूर्व एमडी का करीबी दुर्ग का एक ट्रांसपोर्टर भी भ्रष्टाचार के लपेटे में आ सकता है। सुनते हैं कि एमडी ने ट्रांसपोर्टर को दवा सप्लायर बना दिया था। और ट्रांसपोर्टर ने करोड़ों की दवा सप्लाई भी की। अब प्रकरण की जांच शुरू हो रही है, तो जांच-पड़ताल को प्रभावित करने की हर स्तर पर कोशिश हो रही है। इसके लिए कांकेर जिले के एक कांग्रेस विधायक की मदद भी ली जा रही है। ट्रांसपोर्टर का कांकेर जिले में बड़ा काम है और कांग्रेस विधायक को अक्सर उनके साथ देखा जा सकता है। अब विधायक महोदय, जांच-पड़ताल की रफ्तार को धीमा करने में कितनी मदद कर पाते हैं, यह देखना है, वैसे एमडी रहे हुए इस आईएफएस को अब बाकी जिंदगी, और कई पीढिय़ों के लिए कोई काम करने की जरूरत रह नहीं गई है, बस इतना सब कुछ बाहर रह जाए, और खुद भीतर चला जाए, ऐसा न हो इसी की कोशिश चल रही है।
राहुल पूछते हैं कल्लूरी के बारे में
सरकार में सबसे ऊपर के लोगों के बीच यह चर्चा होती है कि पूरे छत्तीसगढ़ के पुलिस अफसरों में राहुल गांधी अकेले कल्लूरी के बारे में ही पूछताछ करते हैं क्योंकि देश के अलग-अलग बहुत से तबकों के लोगों ने राहुल गांधी से कई बार बस्तर में कल्लूरी के काम के बारे में बताया है। अब जब तीनों एडीजी हो गए हैं, तो दुर्ग में आईजी की कुर्सी पर एडीजी हिमांशु गुप्ता हैं, और चुनाव के पहले के प्रभारी आईजी, डीआईजी डांगी भी वहीं पर उन्हीं के दफ्तर में हैं जिन्हें राजनांदगांव जिले का प्रभार दिया गया है। एक ही आईजी रेंज में अधिक काम न होने से हो यह रहा है कि डांगी बच्चों की पे्ररणा के लिए लेख लिखकर चारों तरफ भेज रहे हैं। यह एक अलग बात है कि राजधानी रायपुर में पुलिस ने जो एक नया स्कूल शुरू करने की तैयारी की थी, और जिसके लिए डीएवी नाम के शैक्षणिक संस्थान से समझौता हो रहा था, वह स्कूल अधर में लटका हुआ है। डीएवी की अपनी स्कूलों का खराब नतीजा देखते हुए मुख्यमंत्री की बैठक में इसका नाम खारिज कर दिया गया, और अब पुलिस महकमा अपने भीतर से एसपी के दर्जे का प्राचार्य और बाकी नीचे के कर्मचारी ढूंढ रहा है ताकि स्कूल शुरू हो सके। रतनलाल डांगी को बच्चों की जितनी फिक्र है उसे देखते हुए स्कूल का प्रिंसिपल बनाना भी अच्छा काम हो सकता है।
मीडिया की जुबान...
मीडिया की जुबान बड़ी तेजी से जनता की असल जिंदगी में भी इस्तेमाल होने लगती है। अभी रायपुर के एक मॉल में कपड़ों के एक बड़े ब्रांड की सेल लगी हुई है और एक परिवार में लड़की ने पिता से कहा कि उसे वहां से कुछ कपड़े दिलवा दें। पिता खुशी-खुशी तैयार हुए, तो बेटा खड़ा हो गया कि एक ब्रांड के जूतों पर भी डिस्काउंट चल रहा है, और वह भी मॉल चलेगा, जूते लेने के लिए। अब घर में अकेले बच गई महिला कहां पीछे रहती, उसने भी अपनी कई जरूरतों पर उसी मॉल में डिस्काउंट बताया, और कहा कि वह भी साथ जाएगी।
यह सब देखकर हड़बड़ाए हुए आदमी ने कहा-इसी को मॉब-लिंचिंग कहते हैं...
दुर्ग पुलिस में अटपटी बातें
पुलिस विभाग में लोगों की तैनाती में कई दिक्कतें चल रही हैं। अब दुर्ग में लोकसभा चुनाव के पहले डीआईजी रतन लाल डांगी को आईजी का काम दिया गया था। लेकिन चुनाव के दौरान यह नहीं चलता, इसलिए हिमांशु गुप्ता को आईजी बनाकर भेजा गया जिन्हें कि उस वक्त तक प्रमोशन पाकर एडीजी हो जाना था। खैर, प्रमोशन लेट होता गया और डीपीसी हो जाने के बाद भी महीनों तक वह फाईल रूकी रही क्योंकि जिन तीन आईजी को एडीजी होना था, उसमें से एक, एसआरपी कल्लूरी की शोहरत देश भर में ऐसी थी कि सरकार लोकसभा चुनाव के पहले उन्हें प्रमोशन देना नहीं चाहती थी। नतीजा यह हुआ कि हिमांशु गुप्ता और जीपी सिंह भी महीनों तक आईजी ही बने रहे, और फाईल पर उनका प्रमोशन प्रस्तावित होकर पड़े रहा।
आखिरकार मोहन मरकाम की प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हो गई। यह सब कुछ आसान नहीं था। बस्तर से जब प्रदेश अध्यक्ष बनाने की बात आई, तो सीएम भूपेश बघेल ने प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया को विश्वास में लेकर पार्टी हाईकमान को मरकाम का नाम सुझाया। मगर, हाईकमान इस मसले पर स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव को लेकर निश्चिंत होना चाहती थी। सुनते हैं कि सिंहदेव से पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के वेणुगोपाल ने चार बार फोन पर बात की। ऑर्डर निकलने से पहले उन्हें फिर फोन किया और पूछा कि क्या मरकाम के नाम पर आपत्ति तो नहीं है? सिंहदेव ने साफ शब्दों में कहा कि भूपेशजी की पसंद पर उनकी पूरी रजामंदी है। तब कहीं जाकर मरकाम का ऑर्डर निकल पाया। हाईकमान इस बात को लेकर ज्यादा खुश है कि विधानसभा चुनाव से पहले वाली भूपेश-सिंहदेव की जोड़ी अभी भी कायम है। दोनों के बीच अंडरस्टैडिंग बनी हुई है। जबकि मध्यप्रदेश में कांग्रेस के बड़े नेता आपस में टकरा रहे हैं। यह एक अलग बात है कि सिंहदेव कई मौकों पर मीडिया के साथ बातचीत में अपने दिल-दिमाग की बातों को इतने साफ-साफ खुलासे से कह देते हैं कि ऐसा लगता है कि उनके मन में भूपेश के खिलाफ कुछ है। अब जैसे लोकसभा नतीजों के पहले वे बार-बार यह बोलते रहे कि अगर 11 में से सात सीटें कांगे्रस को न मिलीं तो यह कांगे्रस की हार होगी। इसके अलावा उन्होंने सरगुजा में कांगे्रस की हार के बारे में भी यह साफ-साफ कहा कि वहां की जनता इस बात से निराश थी कि उन्हें (सिंहदेव को) मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया था। ऐसी छोटी-छोटी बातें उनके मिजाज का हिस्सा है, और भूपेश बघेल से बुनियादी मुद्दों पर उनका मतभेद नहीं है ऐसा लगता है।
दारू बचाने काम आया धर्म
भूपेश सरकार प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी लागू करने की दिशा में कदम उठा रही है। और इस पर सुझाव देने के लिए पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा की अध्यक्षता में प्रमुख राजनीतिक दलों के विधायकों की समिति का गठन किया गया है। मगर, दिक्कत यह है कि प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा समिति के सदस्य के लिए कोई नाम नहीं दे रही है। पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय नशा मुक्ति दिवस के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में सत्यनारायण शर्मा ने आरोप लगाया कि विपक्ष शराबबंदी के लिए गंभीर नहीं है। उनका मानना है कि सिर्फ सरकारी प्रयासों से शराबबंदी सफल नहीं हो सकती है। गुजरात और बिहार, जहां पूर्ण शराबबंदी है वहां पड़ोसी राज्यों से शराब की तस्करी बड़े पैमाने पर हो रही है।
सत्यनारायण शर्मा ने बताया कि इन राज्यों में शराब तस्करी के लिए नए-नए तरीके निकाले जा रहे हैं। उन्होंने किस्सा सुनाया कि राजस्थान में उनके कुछ परिचित युवा कार से गुजरात जाने के लिए निकले। रास्ते में उन्होंने एक कैरेट बीयर डिक्की में रखवा लिया। वे जब गुजरात सीमा पर पहुंचे, तो उन्हें एहसास हुआ कि वहां शराबबंदी है। दोनों राज्यों की सीमा पर जबदस्त चेकिंग हो रही थी। युवकों को अपनी बीयर बरामद होने का डर था। तभी उन्होंने एक रास्ता निकाला। उनमें से एक जो पतला-दुबला था उसके कपड़े निकलवा दिए और बिना कपड़ों के कार में बिठा दिया। बाकी लोग चेकिंग कर रहे पुलिस कर्मियों के पास पहुंचे और कहा कि एक धार्मिक व्यक्ति बैठे हैं, जल्दी चेकिंग कर ली जाए ताकि उन्हें दिक्कत न हो। पुलिस कर्मियों ने कार में समीप आए और बिना कपड़ों में बैठे युवक को देखा और नमस्कार कर बिना चेकिंग कर कार जाने दिया। इस तरह पुलिस की नजरों से अपनी बीयर बचा ली।
मुकेश गुप्ता के लोग तैनात
मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के जिले में मौजूद दुर्ग आईजी दफ्तर की एक दिलचस्प बात यह भी है कि यहां मौजूद एक डीएसपी, सरकार के निशाने पर चल रहे आईपीएस मुकेश गुप्ता का एकदम खास है, और मुकेश गुप्ता के खिलाफ चल रही जांच का एक बड़ा हिस्सा दुर्ग जिले में ही है। विभाग के एक पुराने लेकिन छोटे अफसर का कहना है कि मुकेश गुप्ता ने अपनी पूरी नौकरी में रायपुर के सिविल लाइन थाने, और दुर्ग के एक थाने में किसी भी समय अपनी मर्जी के खिलाफ तैनाती नहीं होने दी क्योंकि उनसे जुड़े मामले जब भी खुलते, इन्हीं दोनों थानों में खुलते। आज भी इन दोनों थानों में उन्हीं के भरोसे के लोग तैनात हैं, और आईजी ऑफिस में एक डीएसपी भी। उनके अलावा एसीबी के दफ्तर में भी मुकेश गुप्ता के बहुत भरोसे के कर्मचारी अभी भी हैं, और बातें लीक करते हुए पकड़ाने पर इसमें से एक की अभी वर्दी में ही उस दफ्तर में पिटाई हुई है, और वहां से हटा दिया गया है।
अब पुलिस विभाग में डीजी गिरिधारी नायक के रिटायर होने, और तीन एडीजी बनने के बाद नए सिरे से तैनाती का बड़ा काम खड़ा हुआ है, इसी वक्त शायद दीपांशु काबरा की बारी भी आए जो कि पुलिस मुख्यालय में फिलहाल बिना काम के बिठाए गए आईजी हैं।
([email protected])
बिलासपुर के आबकारी विभाग के एक बाबू पर पिछली सरकार के वक्त एसीबी का छापा पड़ा था। बाबू वैसे तो आबकारी विभाग के मालिकों का चहेता था, और उसका बड़ा दबदबा था, वह खुलेआम चखना की दुकानें चलाने का हक बेचता था, और सबसे बड़ी बात यह कि एसीबी ने अपने छापे में उसके पास करोड़ों की संपत्ति पकड़ी थी। मामले के सुबूत पुख्ता थे, और उसे अदालत तक ले जाने की तैयारी चल रही थी। इस बीच अभी अचानक एसीबी के मुखिया ने उसकी फाईल बुलवाई, और उसके खिलाफ मामले को खारिज कर दिया। खुद विभाग के लोग यह जानकर हक्का-बक्का रह गए कि यह क्या हो गया? मीडिया के लोगों ने एसीबी के एडीजी से इस बारे में पूछा, तो उन्हें इसका सिर-पैर कुछ नहीं मालूम था। और उनकी जानकारी से परे ऊपर-ऊपर यह फाईल सीधे डीजी तक पहुंची, और वहां इस प्रकरण के खात्मे का निर्णय लिया गया, आनन-फानन आदेश जारी कर दिया गया। इसी आदेश में फाईल की बाकी जानकारी भी है कि अचल संपत्ति के 172 पन्ने, बैंक/डाकघर के 118 पन्ने, एफडी के 23 पन्ने, एलआईसी के 4 पन्ने वगैरह-वगैरह। हालत यह है कि जिन लोगों ने भाजपा सरकार के दौरान बरसों तक ऐसे भ्रष्ट और कमाऊ विभाग पर राज किया, वे लोग अपने खिलाफ बने-बनाए भ्रष्टाचार और अनुपातहीन संपत्ति के मामले से इस तरह छुटकारा पा रहे हैं, और आनन-फानन पा रहे हैं।
पिछले कुछ समय से एसीबी को लेकर प्रदेश के कमाऊ विभागों में खुली चर्चा है कि सरगुजा और बिलासपुर संभाग के लोगों को बचाने के लिए प्रदीप सिंह नाम का एक एजेंट नियुक्त किया गया है, और बस्तर के लोगों को बचाने के लिए नागेश नाम का। ऐसी चर्चा है कि जिस तरह वन-डे क्रिकेट के आखिरी पांच ओवर में सिर्फ चौके-छक्के मारे जाते हैं, इस दफ्तर में भी आखिरी के महीनों में उसी रफ्तार से रन बन रहे हैं। भाजपा सरकार के समय फंसे हुए सारे भ्रष्ट सरकारी लोग किसी मॉल की सेल की तरह के इस मौसम का फायदा उठा सकते हैं। वैसे जिस हड़बड़ी में डिस्काऊंट पर बेकसूरी के सर्टिफिकेट बेचे जा रहे हैं, वह हड़बड़ी अदालत में हो सकता है कि खड़ी न हो पाए, और कोई जज ऐसे खात्मे को मानने से इंकार कर दे।
रहस्यमय वीआईपी लिस्टें
राजधानी नया रायपुर में एक गोल्फ सिटी बनाने के लिए पिछली सरकार के मंत्रिमंडल ने एक ऐसा बड़ा जमीन आबंटन किया था जो चौंकाने वाला था, लेकिन उसकी फाईल पुख्ता बनाई गई थी, इसलिए नई सरकार भी उसमें कुछ कर नहीं पा रही है। लेकिन अगर सरकार इस गोल्फ सिटी में बनाए गए करोड़ों के बंगलों को पाने वाले लोगों की लिस्ट देखे, तो उसमें उस वक्त के अधिकतर ताकतवर अफसरों के नाम मिल जाएंगे, या ऐसे कोई दूसरे नाम मिल जाएंगे जिनके पीछे मालिकाना हक उन्हीं ताकतवर अफसरों का है। इनमें से एक बड़े ताकतवर अफसर को तो भूपेश सरकार ने किनारे कर दिया है, लेकिन लिस्ट खासी लंबी है। यह कुछ उसी किस्म की लिस्ट है जिस तरह चर्चित और विवादास्पद, अब गुजर चुके बिल्डर संजय बाजपेयी की कॉलोनी स्वागत विहार में प्लॉट पाने वाले अफसरों और उनके रिश्तेदारों के नाम थे। वही वजह थी कि वह लिस्ट हमेशा दबी रही, और कभी सामने नहीं आ पाई। सूचना का अधिकार भी इस अड़ंगे को पार करके लिस्ट तक नहीं पहुंच पाया। इसी तरह जहां-जहां सिर्फ अफसरों या जजों के लिए कॉलोनियां बनीं, मंत्रियों और विधायकों के लिए कॉलोनियां बनीं, वहां-वहां तमाम फाईलें, और तमाम लिस्टें जनता की पहुंच से बाहर ही रहीं।
तीर-कमान, और चेतावनी
बस्तर में हुई अवैध कटाई के पीछे एनएमडीसी है, या कोई और, इसकी जांच का जिम्मा वन विभाग को दिया गया है। जब जांच अफसर ऐसे नक्सल इलाके में पहुंचे, तो उनके पहले दो दिन से वहां वन विभाग के स्थानीय छोटे कर्मचारी जा रहे थे। बस्तर में तैनात एक अफसर ने बताया कि जब बड़े अफसर कटाई देखने पहुंचे, तो कुछ ही देर में तीर-कमान लिए हुए आदिवासियों की टोलियां वहां पहुंचने लगीं, और जांच दल के साथ-साथ कुछ दूरी से चलने लगीं। इसके बाद उन्होंने स्थानीय कर्मचारियों को बुलाकर कहा कि यहां आने से, और अफसरों को लाने से मना किया गया था, उसके बावजूद लेकर आना ठीक नहीं है। उनके तेवर देखते हुए स्थानीय कर्मचारियों ने आगे बढऩा खतरनाक बताया और कहा कि साहब लोग तो लौट जाएंगे, उन्हें तो इसी इलाके में जीना है। कटाई की जांच पूरी नहीं हो पाई, और पूरी टीम को लौटना पड़ा।
दंतेवाड़ा और बस्तर विधानसभा उपचुनाव संभवत: अक्टूबर में होंगे। विधायक भीमा मंडावी की हत्या के चलते दंतेवाड़ा सीट खाली हुई है, जबकि बस्तर सीट विधायक दीपक बैज के सांसद बनने की वजह से रिक्त हुई है। बस्तर से प्रत्याशी कौन होगा, यह दोनों प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस में अभी तय नहीं है, लेकिन दंतेवाड़ा से दोनों ही दल महिला प्रत्याशी उतार सकती हैं।
दंतेवाड़ा से भाजपा दिवंगत विधायक भीमा मंडावी की पत्नी ओजस्वी मंडावी को टिकट दे सकती है। पार्टी के बड़े नेताओं ने मंडावी के घर जाकर इस आशय के संकेत दे भी दिए हैं। जबकि कांग्रेस दिवंगत पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा की पत्नी पूर्व विधायक देवती कर्मा को फिर चुनाव मैदान में उतार सकती है। देवती कर्मा पिछली बार विधानसभा चुनाव में करीब साढ़े 7 सौ वोटों से चुनाव हार गई थी। इस हार के पीछे भी जिला प्रशासन की भूमिका अहम रही थी।
कर्मा परिवार हार के लिए तत्कालीन कलेक्टर सौरभ कुमार को अभी भी कोसता है। चर्चा है कि सौरभ कुमार ने कर्मा परिवार में फूट डलवाने की कोशिश की थी। देवती के बड़े बेटे छविन्द्र कर्मा बगावत कर चुनाव मैदान में उतर गए थे। बाद में उन्हें मैदान में हटने के लिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को हस्तक्षेप करना पड़ा। तब तक काफी माहौल खराब हो चुका था। खैर, इस बार कर्मा परिवार एकजुट दिख रहा है और सीट पर कब्जा करने के लिए अभी से मेहनत करना शुरू कर दिया है।
यह बदला तो नहीं...
अकसर रमन सिंह, भूपेश बघेल सरकार पर बदलापुर की राजनीति का आरोप लगाते हैं, पर ऐसा नहीं है। यदि ऐसा होता तो रमन सिंह की सेवा में तैनात कर्मचारी हरि बहादुर को सरकार वापस बुला लेती। बहादुर पूर्व सीएम-परिवार के बेहद करीबी माने जाते हैं, और आवासीय आयुक्त कार्यालय के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं। वे पिछले 15 साल से रमन सिंह का ख्याल रख रहे हैं। रमन सिंह, सीएम पद से हट गए, लेकिन बहादुर उनके यहां अभी भी सेवाएं दे रहा है। सरकार ने भी उदारतापूर्वक उनकी सेवाएं जीएडी को सौंपने के आदेश दिए हैं, ताकि प्रतिनियुक्ति पर रमन सिंह के साथ रहने में कोई दिक्कत नहीं आए।
([email protected])
नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की खोज चल रही है। चूंकि स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव ने बस्तर से अध्यक्ष बनाने की वकालत की थी। यह तकरीबन तय माना जा रहा है कि बस्तर के नेता को ही प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी जाएगी। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी इस सिलसिले में पूर्व मंत्री मनोज मंडावी और कोंडागांव के दूसरी बार के विधायक मोहन मरकाम का इंटरव्यू ले चुके हैं। दोनों में से अध्यक्ष कौन बनेगा, इसको लेकर पार्टी हल्कों में कई तरह की चर्चा है। सुनते हैं कि स्वास्थ्य मंत्री श्री सिंहदेव, पूर्व मंत्री मनोज मंडावी को अध्यक्ष बनाने के पक्ष में बताए जाते हैं। जबकि सीएम भूपेश बघेल, मोहन मरकाम का नाम आगे किया है। देखना है कि हाईकमान, दोनों में से किसकी राय को महत्व देता है। लेकिन इनमें से किसी के भी प्रदेश अध्यक्ष बनने से यह होगा कि कांगे्रस और भाजपा दोनों के प्रदेश अध्यक्ष बस्तर के रहेंगे, और राज्य सरकार और केंद्र सरकार, दोनों में सरगुजा से मंत्री रहेंगे। प्रदेश के दो आदिवासी इलाके बिल्कुल अलग-अलग किस्म के हैं, और इनकी राजनीति भी इनको अलग-अलग मानकर ही तय की जाती है। इसके पहले बस्तर से प्रदेश भाजपा के कोई अध्यक्ष नहीं बने थे, और वहां से मंत्री ही मंत्री रहते थे। दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ भाजपा के अध्यक्ष अमूमन सरगुजा से आते थे।
ताकतवरों की जांच...
प्रदेश के एक डीजी, गिरधारी नायक ने मुकेश गुप्ता के खिलाफ एक लंबी जांच रिपोर्ट तो बना ली है, लेकिन ऐसी चर्चा है कि उसके आधार पर अगर मुकेश गुप्ता पर कोई कार्रवाई करनी हो, तो उस पर सरकार को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। जांच रिपोर्ट में बहुत सी बातें ऐसी भी जुड़ जाती हैं जिनको अदालत में साबित करना मुमकिन नहीं रहता है। इसीलिए जांच रिपोर्ट का वजन मुकदमे के मुकाबले बहुत कम रहता है। अब सरकार के सामने एक दिक्कत यह है कि मुकेश गुप्ता, अजीत-अमित जोगी, पुनीत गुप्ता के खिलाफ इतने सारे मामले खड़े हो गए हैं कि उन्हें पहले तो जांच में, और फिर अदालत में किसी तर्कसंगत-न्यायसंगत नतीजे तक कैसे पहुंचाया जाए? एक चर्चा यह भी सुनाई पड़ती है कि जांच में लगे हुए कई अफसर किसी और जगह जाने की फिराक में भी हैं। जिन लोगों के खिलाफ मामले हैं, उन्हें इतने बड़े-बड़े वकीलों की मदद हासिल है, या जोगी पिता-पुत्र हैं जो कि मुकदमेबाजी के बड़े लंबे तजुर्बेकार हैं, इसलिए वे बरसों तक किसी फैसले से दूर चल सकते हैं। जांच में लगे अफसरों को भी उम्मीद है कि इस बीच वे खिसक पाएंगे, और उनका खिसकना लोगों के बचने के लिए भी मददगार हो सकता है। कुल मिलाकर ये सारी जांच बहुत आसान नहीं रह गई हैं।
([email protected])
विजेन्द्र कटरे की संविदा नियुक्ति पर स्वास्थ्य विभाग में मंत्री टीएस सिंहदेव और संचालक शिखा राजपूत तिवारी के बीच विवाद की स्थिति पैदा हो गई है। सिंहदेव के आदेश पर शिखा राजपूत तिवारी को नोटिस थमा दिया गया। यह कहा गया कि कटरे की नियुक्ति के प्रकरण में मंत्री आदेश की अवहेलना की गई।
नोटिस में कहा गया कि विभागीय मंत्री ने नई नियुक्ति तक कटरे को पद पर बनाए रखने के लिए कहा था, लेकिन उन्हें संविदा पर फिर नियुक्त कर दिया गया। खास बात यह है कि आईएएस अफसर को विभाग के अवर सचिव ने नोटिस जारी किया। पहली नजर में यह नोटिस ही त्रुटिपूर्ण दिख रहा है।
वजह यह है कि आईएएस अफसर को नोटिस देने के लिए सीएम-सीएस का अनुमोदन होना चाहिए, मगर विभागीय सचिव ने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया। चूंकि कटरे को एक लाख से अधिक वेतन मिलता था, स्वास्थ्य संचालक ने मानदेय घटाकर 50 हजार कर दिया, जो कि उनके अधिकार क्षेत्र में था। इसमें में भी कोई गलती नहीं दिख रही है। और चर्चा है कि मंत्री-सचिव और संचालक के बीच तालमेल न होने के कारण ऐसी स्थिति निर्मित हुई है।
जहां तक विजेन्द्र कटरे का सवाल है। पिछली सरकार उन्हें गुजरात से लाई थी और उन्हें बीमा योजना का एडिशनल सीईओ बनाने के लिए तमाम नियम-कानून को दर किनार किया गया था। कटरे पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं, जो प्रमाणित भी हैं। ऐसे में उन्हें तुरंत पदमुक्त कर किसी अन्य अफसर को प्रभार न देना भी चर्चा का विषय है। कुछ इसी तरह का विवाद यूनिवर्सल हेल्थ स्कीम को लेकर खड़ा हुआ था। कैबिनेट में इसको लेकर मंत्रियों ने भी सवाल खड़े किए थे। कैबिनेट की मंजूरी के बिना इस स्कीम को करने आपत्ति जताई थी। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अजय चंद्राकर ने भी सरकार को आड़े हाथों लिया था।
स्वास्थ्य विभाग पिछले 15-20 बरस में भ्रष्टाचार की कब्रिस्तान बनकर रह गया है, और आज टी.एस. सिंहदेव उसे सुधारने की हड़बड़ी में दिख रहे हैं। लेकिन सरकार में अच्छी नीयत से भी अगर बुरी तरह हड़बड़ी की जाती है, तो वह अदालत में खूब फटकार पाती है। सत्ता के हुक्म से कई अफसर गलत हुक्म जारी कर बैठते हैं, और शिखा राजपूत तिवारी के खिलाफ यह ऐसा ही आदेश जारी हुआ दिख रहा है जिससे एक शर्मिंदगी खड़ी होने के पूरे आसार हैं।
इस बीच प्रदेश के एक सबसे बड़े सरकारी अस्पताल को चलाने वाले के खिलाफ सार्वजनिक रूप से ऐसे मामले सामने आए हैं जिन्हें देखकर सत्ता से जुड़े हुए कुछ लोग बहुत बुरी तरह विचलित हैं, और उन्हें आशंका है कि इस डॉक्टर को शोषित महिलाओं के घर वाले किसी दिन अस्पताल से पीटते-पीटते बाहर लाएंगे, और उस दिन अस्पताल की इतनी महिला कर्मचारी पीटने में जुट जाएंगी कि उसे बचाना पुलिस के लिए भी मुमकिन नहीं होगा। यह बात स्वास्थ्य मंत्री तक अब तक पहुंची है या नहीं, और इसका कोई असर हुआ है या नहीं यह तो आने वाले दिन बताएंगे जब मंत्री अपनी खुद की मुनादी के मुताबिक अस्पतालों को चलाने का जिम्मा डॉक्टरों से हटाएंगे।
टकसालों पर कब्जा जारी
विजेन्द्र कटरे जैसे विवादास्पद और भ्रष्टाचार की तोहमतों से घिरे हुए अफसर को जारी रखने की सरकारी इच्छा हैरान करती है, लेकिन ऐसी मिसालें जगह-जगह बिखरी हुई हैं। बहुत से परले दर्जे के भ्रष्ट लोग, जिनके खिलाफ लंबी-चौड़ी नगद रिकवरी के हुक्म हो चुके थे, वे लगातार आगे बढ़ते-बढ़ते आसमान तक पहुंच गए हैं, और अब उनके पांव भी जमीन पर नहीं पड़ते। पिछले आरटीओ मंत्री राजेश मूणत के सबसे चहेते होने के नाते जो अफसर रायपुर का आरटीओ बनाया गया था, वह इस सरकार में भी न सिर्फ जारी है, बल्कि उसे स्टेट गैरेज का अतिरिक्त प्रभार भी दे दिया गया है जो कि अपने-आपमें एक टकसाल माना जाता है। यह कुछ वैसा ही हुआ कि नासिक टकसाल के मैनेजर को देवास टकसाल का भी मैनेजर बना दिया गया है। ऐसा ही कई और मोटी कमाई वाली कुर्सियों के साथ हुआ है, और इसीलिए वर्तमान सरकार के बहुत से शुभचिंतक, और पिछली सरकार के बहुत से आलोचक सोशल मीडिया पर लगातार इस सरकार को सचेत करने में लगे हुए हैं। जिन बदनाम लोगों की शोहरत दीवारों पर लिक्खी हुई थी, उनके नामों की तख्तियां अब तक टकसालों पर लगी हुई हैं! ([email protected])
नए-नवेलेे भाजपा सांसद भूपेश बघेल सरकार से नाखुश चल रहे हैं। सांसदों की शिकायत है कि सरकार प्रोटोकॉल का ध्यान नहीं रख रही है। मसलन, पिछले दिनों योग दिवस पर सभी जिलों में कार्यक्रम आयोजित किया गया। इन कार्यक्रमों में सांसदों को भी अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया था। कई जगहों पर सत्तारूढ़ विधायक मुख्य अतिथि थे जबकि अध्यक्षता सांसदों से करवाई गई। रायपुर में तो शंकर नगर ओवरब्रिज के उद्घाटन कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में सांसद सुनील सोनी का नाम आमंत्रण पत्र में छपा था, लेकिन उन्हें विधिवत इसकी कोई सूचना तक नहीं दी गई। और तो और आमंत्रण पत्र भी विभाग के चपरासी के हाथों भेजा गया। अभी तो सांसद चुप हैं, लेकिन आने वाले दिनों में इसी तरह का प्रोटोकॉल का फिर उल्लंघन होता है, तो वे सामूहिक रूप से विरोध दर्ज करा सकते हैं।
पुलिस का हाल खासा बेहाल...
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू के अपने जिले दुर्ग का पुलिसिया हाल खासा गड़बड़ है। अभी भिलाई में दिनदहाड़े खुली सड़क पर एक स्कूली छात्रा का एक लड़के ने शायद एकतरफा प्रेम के चलते कत्ल कर दिया। अब पुलिस की जांच का हाल यह है कि कत्ल करने वाले लड़के को, और कत्ल के गवाह लोगों को पुलिस एक ही गाड़ी में बिठाकर इधर से उधर ले गई है। वर्दी को तो ऐसे में कोई खतरा नहीं रहता, लेकिन ऐसा खुला कत्ल करने वाले कातिल के ठीक सामने बैठे गवाहों का हौसला इससे पस्त न होता हो, ऐसा तो हो नहीं सकता। कुछ दूसरी जगहों पर छत्तीसगढ़ की पुलिस बलात्कार की शिकार लड़की या महिला को बलात्कार के अभियुक्त के साथ एक ही गाड़ी में मेडिकल जांच के लिए ले जा चुकी है। पुलिस की बहुत सी बैठकों में अफसरों के मुंह से महिलाओं के खिलाफ जिस तरह पूर्वाग्रह से ग्रस्त बातें सुनाई पड़ती हैं, उनसे यह साफ हो जाता है कि इस पुलिस में महिला को इंसाफ मिलने की गुंजाइश बड़ी कम है क्योंकि अधिकतर अफसर बलात्कार के मामलों में महिला को जिम्मेदार ठहराने पर उतारू दिखते हैं। और तो और महिला पुलिस अफसर भी अक्सर इसी रूख की दिखती हैं कि बलात्कार की अधिकतर शिकायतें फर्जी होती हैं। भूपेश-सरकार के सामने लंबा कार्यकाल बाकी है, और उसे सरकारी मशीनरी को संवेदनशील बनाने पर भी मेहनत करनी चाहिए जो कि एक मुश्किल और धीमा काम है, और जो चुनाव पास रहने पर किसी प्राथमिकता में नहीं आ सकता।
खेल संघों का निशाना...
प्रदेश के खेल संघ सीएम भूपेश बघेल को अपना मुखिया बनाने के लिए बेताब हैं। खेल संघों के कई पदाधिकारी तो इतने प्रभावशाली हैं कि विभाग भी उनके आगे नतमस्तक रहता है। सीएम ही ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बनते रहे हैं। पहले अजीत जोगी, फिर रमन सिंह और अब भूपेश बघेल भी अध्यक्ष बनने की राह में हैं। सीएम अध्यक्ष बनने से प्रभावशाली पदाधिकारियों की निकल पड़ती है। सीएम से नजदीकी बनाकर अनुदान पर निगाहें रहती है। सुनते हैं कि भिलाई के एक प्रभावशाली खेल पदाधिकारी अनुदान का बड़ा हिस्सा अपने संघ को आबंटित कराने की कोशिश में जुटा है। उन्हें कुछ खेल अफसरों का साथ मिल रहा है। अगर इसमें सीएम की नजरें इनायत हो जाती हैं, तो बड़ा 'खेल' हो सकता है। खैर, फिलहाल तो सीएम की ताजपोशी का इंतजार किया जा रहा है। ([email protected])
प्रदेश के खेल संगठनों ने एकमतेन सीएम भूपेश बघेल को छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ का अध्यक्ष बनने का आग्रह किया है। भूपेश बघेल ने अभी प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया है। वर्तमान में डॉ. रमन सिंह ओलंपिक संघ के अध्यक्ष हैं और उन्होंने अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया है। ऐसे में उन्हें हटाकर ही भूपेश बघेल को अध्यक्ष बनाया जा सकता है। सीएम अध्यक्ष बनने के लिए सहमत हो जाते हैं, तो खेल संगठन रमन सिंह को हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव ला सकते हैं। यानी ओलंपिक संघ में एक बार फिर घमासान मचना तय है।
संघ में विवाद नया नहीं है। राज्य बनने के बाद से ही ओलंपिक संघ में विवाद चलता रहा है। इसकी शुरूआत उस वक्त हुई, जब जोगी सरकार में मंत्री रहे विधान मिश्रा ने अपने साथी खेल मंत्री शंकर सोढ़ी के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ का गठन किया और खुद पदाधिकारी बन गए। भिलाई के खेल संगठनों में पकड़ रखने वाले बशीर अहमद खान ने दोनों मंत्रियों को चुनौती दी और फिर विवाद खत्म करने की नीयत से तत्कालीन सीएम अजीत जोगी को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया। जोगी खुशी-खुशी तैयार हो गए, लेकिन यह सब आसान नहीं रहा। जोगी को उस वक्त के अपने सबसे बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंदी विद्याचरण शुक्ल के विरोध का सामना करना पड़ा। विद्याचरण अखिल भारतीय ओलंपिक संघ के आजीवन अध्यक्ष रहे। ऐसे में जोगी को मान्यता मिलना ही कठिन था।
शुक्ल ने जोगी के समांतर अपने करीबी पूर्व महापौर बलवीर जुनेजा को ओलंपिक संघ का अध्यक्ष और सलाम रिजवी को सचिव बनवा दिया। चूंकि सारे खेल संघ जोगी के प्रभाव-दबाव के चलते उनके साथ थे। ऐसे में शुक्ल समर्थकों ने रातों-रात नए खेल संघों का गठन भी किया था। दिल्ली से पर्यवेक्षक भी आए और भिलाई के एक होटल में बैठक हुई, जिसमें जुनेजा को अध्यक्ष व सलाम को सचिव के रूप में मान्यता दे दी गई। ओलंपिक संघ में जोगी को हार बर्दाश्त नहीं थी और तब शुक्ल समर्थक कई पदाधिकारियों को धमकी भी मिली थी।
सुनते हैं कि उस वक्त जोगी के खेल सलाहकार रहे पूर्व आईपीएस रामलाल वर्मा, दिल्ली से आए पर्यवेक्षक से मिलने पहुंचे, तो उन्होंने शुक्ल से मिलने की सलाह दे दी। रामलाल वर्मा जब शुक्ल से मिलने उनके निवास राधेश्याम भवन पहुंचे, तो उन्हें तीन घंटे इंतजार करना पड़ा। शुक्ल बाहर आए, तो रामलाल वर्मा ने उनसे पूरी प्रक्रिया निरस्त करने के लिए हस्तक्षेप आग्रह किया। है। इस पर शुक्ल ने कहा कि चुनाव इसी तरह होते हैं। इसके बाद रामलाल वर्मा अपना मुंह लेकर लौट आए। बाद में विवाद दिल्ली हाईकोर्ट में भी गया। जोगी के पक्ष में फैसला भी आया, लेकिन फिर इसको सुप्रीम कोर्ट ने चुनौती दी गई। यानी सीएम रहते जोगी निर्विवाद अध्यक्ष नहीं रह पाए।
जोगी के सीएम पद से हटने के बाद परिस्थितियां पूरी तरह बदल गईं और शुक्ल के प्रभाव में उनके करीबी राजनांदगांव के पूर्व महापौर विजय पाण्डेय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बन गए। बाद में शुक्ल के दामाद डॉ. अनिल वर्मा ने सीएम डॉ. रमन सिंह को अध्यक्ष बनवा दिया। रमन की ताजपोशी भी आसान नहीं रही। क्योंकि उस समय विद्याचरण शुक्ल को विश्वास में लिए बिना रमन सिंह अध्यक्ष बन गए थे। इससे उनके कुछ समर्थक नाराज थे। बाद में वे मान भी गए और सीएम पद से हटने के बाद रमन सिंह अध्यक्ष बने हुए हैं। चूंकि ओलंपिक संघ का गणित सत्ता के साथ जुड़ा रहता है। ऐसे में रमन सिंह का अध्यक्ष बने रहना आसान नहीं है। चूंकि अखिल भारतीय ओलंपिक संघ में दखल रखने वाले विद्याचरण शुक्ल अब इस दुनिया में नहीं है और अब इस संघ में भाजपा का दबदबा है। ऐसे में रमन सिंह को उनकी मर्जी के खिलाफ हटाने से मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
गृहमंत्री के जिले का मोलभाव...
छत्तीसगढ़ सरकार के कई विभागों में भ्रष्टाचार पिछली सरकार का रिकॉर्ड भी तोड़ते दिख रहा है। अभी एक ऑडियो रिकॉर्डिंग सामने आई है जिसमें एक जिले के सीएसपी की टीम के दो सिपाही एक दारू स्मगलर से लाखों की वसूली कर रहे हैं। इस पूरी बातचीत की रिकॉर्डिंग में जिले का नाम, होटल का नाम, सिपाहियों का नाम सब कुछ है, लेकिन चूंकि अभी इस सुबूत को परखना बाकी है, इसलिए इन नामों को लिखना ठीक नहीं है। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू के अपने जिले का यह हाल है, और इससे परे भी वहां चारों तरफ संगठित रूप से सट्टा चल रहा है, जिस पर कार्रवाई करने से नीचे के पुलिस अफसरों को रोक दिया गया है।
अभी इस रिकॉर्डिंग में एक महंगी गाड़ी टाटा सफारी में 40 पेटी दारू भरकर स्मगलर भिलाई के एक होटल में रूके हुए थे, और दो सिपाहियों ने वहां पहुंचकर गाड़ी पकड़ी, और काफी मोलभाव के बाद रेट पांच लाख से घटकर दो लाख तक आया, और स्मगलरों ने डेढ़ लाख रूपए दिए, और बाकी बाद में देने का वायदा करके गाड़ी छुड़ाई। इन चार घंटों तक सिपाही वहीं बैठकर पैसों का इंतजाम देखते रहे।
मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के अपने जिले में पुलिस के जितने किस्म के कारनामे सामने आ रहे हैं, वैसे तो कभी पिछली सरकार के वक्त भी देखने नहीं मिले। यह एक अलग बात है कि पिछली सरकार में एक भारी मलाईदार कुर्सी पर बरसों तक काबिज रहने वाले तबके मुख्यमंत्री के करीबी आज गृहमंत्री के ओएसडी बने हुए हैं, और उन्हें तमाम तरकीबें अच्छी तरह मालूम भी हैं। जब नेताओं की औलादें वसूली में ओवरटाईम करने लगती हैं, तो उनके अगले चुनाव का भविष्य भी तय हो जाता है।
भाजपा में अब जुबान खुल रही...
भाजपा में संगठन मंत्रियों से अपेक्षा रहती है कि वे निष्पक्ष रहेंगे। मगर, पिछले 15 सालों में सरकार के सानिध्य में रहकर संगठन मंत्रियों का रूख भी बदलता दिखा। वे भी सत्ता के प्रभाव में सरकारी तंत्र की तरफ ज्यादा झुकते नजर आए। विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद अब कार्यकर्ता सौदान सिंह और रामप्रताप सिंह को खुले तौर पर भला-बुरा कहने में नहीं चूकते हैं। हाल यह है कि नवनिर्वाचित सांसदों में कुछ तो इन दोनों को नापसंद करते हैं।
पार्टी हाईकमान को भी दोनों के खिलाफ नाराजगी का पूरा अंदाज है। तभी तो रामप्रताप सिंह को जगत प्रकाश नड्डा से मुलाकात के लिए 5 घंटे इंतजार करना पड़ा। जबकि उस दौरान प्रदेश के कई नेता नड्डा को बधाई देेकर निकल चुके थे। इसी तरह संसद भवन में अंदर जाने के लिए पास बनवाने के लिए भी रामप्रताप सिंह को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। ज्यादातर सांसदों ने कह दिया कि एक से अधिक की पात्रता नहीं है। और पहले से ही वे अपने लोगों के लिए पास बनवा चुके हैं। बिलासपुर संभाग के एक सांसद की नाराजगी इस बात को लेकर थी कि रामप्रताप सिंह ने उन्हें संगठन में 10 साल तक पदाधिकारी नहीं बनने दिया। खैर, किसी तरह एक को उन पर तरस आ गया और फिर वे संसद भवन में दाखिल हो पाए। ([email protected])
प्रदेश में मानसून दस्तक दे चुका है, किसान अब खेतों में फसल की तैयारी में जुट गए हैं। खेती शुरू होते ही कीड़े-मकोड़े, पशु-पक्षी सब अपना निवाला-हिस्सा वसूलना शुरू कर देते हैं। फसल मंडी तक पहुंचा तो महाजन के हिस्से किसान का हक चला जाता है। यहां से जो बचा तब अन्नदाता के हाथों। केंद्र सरकार ने किसानों के लिए फसल बीमा शुरू की है। कुछ दिनों में खाद-बीज वितरण के साथ ही फिर फसल बीमा भी शुरू हो जाएगी। इसमें भी जिस तरह से किसान लुट रहा है उसे देखने वाला कोई नहीं है।
प्रदेश के कई इलाकों में अब तक पिछले साल का फसल बीमा क्लेम नहीं मिल पाया है। हालत यह कि किसानों का पैसा बैंक में जमा है, पर उनके खातों तक नहीं पहुंचा है। जबकि भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइन के अनुसार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बीमा कंपनियों द्वारा क्षतिपूर्ति राशि बैंकों को दिए जाने के पश्चात 1 सप्ताह में अनिवार्य रूप से बैंकों द्वारा किसानों के खाते में डालने का आदेश है।
कोरिया जिले में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत बीमा कंपनी एचडीएफसी एग्रो जनरल इंश्योरेंस कंपनी द्वारा 14 करोड़ 54 लाख 98 हजार 383 रुपए की फसल बीमा की क्षतिपूर्ति राशि जिला सहकारी बैंक को 7 मई को उपलब्ध कराई गई है। जो डेढ़ माह से अटकी पड़ी है। बैंक का कहना है कि हेड आफिस से सूची तैयार नहीं होने के कारण राशि डालने में देरी हो रही है।
अब उक्त राशि पर प्रति माह ब्याज 14 लाख 54 हजार 983 होता है। यानि कुछ दिनों में ब्याज की राशि 30 लाख के करीब हो जाएगी। एक दिन भी किश्त में देरी होने पर जुर्माना वसूलने वाले बैंक को मुफ्त में इतनी रकम मिल जाएगी। यानि किसानों के हक के पैसे पर बैंक ही डंडी मार रहा है। पूरे प्रदेश में इस तरह के हालातों की पड़ताल की जाए तो शायद ये आंकड़ा अरबों पार कर जाए।
किसानों के प्रतिनिधि के रूप में राज्य शासन फसल बीमा योजना स्वीकार करता है इसलिए इस योजना की निगरानी एवं क्षति पूर्ति दिलाने के लिए जवाबदेह भी वही है। किसानों का कर्जा माफ करने वाली, नरूआ, गरुआ, घुरुवा, बारी अभियान चलाने वाली भूपेश सरकार क्या विलंब की अवधि का ब्याज सहित भुगतान सुनिश्चित करा पाएगी। कर्ज न पटा पाने से फांसी लगा लेने वाले अन्नदाताओं को, कम से कम बैंक के हाथों इस तरह खुल्लमखुल्ला लुटने से बचा ले।
राहुल का संतुलन
राहुल गांधी सीएम भूपेश बघेल को तो पसंद करते हैं, लेकिन उनकी नजरों में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव की अहमियत कम नहीं है। कई मौकों पर तो वे टीएस को ज्यादा महत्व देते भी दिखे। हुआ यूं कि पिछले दिनों सीएम, प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया के साथ राहुल गांधी से मिलने पहुंचे। विषय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति का था।
सुनते हैं कि दोनों ने एक राय होकर सीतापुर के विधायक अमरजीत भगत का नाम दिया। राहुल ने पूछ लिया कि क्या अमरजीत भगत के लिए सिंहदेव की भी सहमति है? यह कहे जाने पर कि सिंहदेव को ऐतराज नहीं है। राहुल संतुष्ट नहीं हुए और सिंहदेव को बुलावा भेजा। अगले दिन राहुल ने सिंहदेव के साथ प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के साथ-साथ अन्य विषयों पर भी चर्चा की।
अमरजीत को लेकर सिंहदेव का क्या रूख है, यह तो पता नहीं चल पाया है, लेकिन एक बात तो साफ है कि नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति में सिंहदेव की राय को महत्व दिया जा सकता है। शालीन और मृदुभाषी सिंहदेव की खासियत यह भी है कि वे किसी बात पर अड़ते नहीं है। लेकिन यह तय माना जा रहा है कि अमरजीत की मंत्री पद पर नियुक्ति हो या प्रदेश अध्यक्ष पद पर ताजपोशी, सिंहदेव की रजामंदी के बिना संभव नहीं हो पाएगा।
([email protected])
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पिता नंदकुमार बघेल तब से सामाजिक राजनीति में सक्रिय हैं जब भूपेश कॉलेज में पढ़ते थे। वे पिछड़े वर्ग की राजनीति करते हैं, और खुलकर ब्राम्हण-बनिया समुदायों के खिलाफ बोलते हैं। भूपेश बघेल को कांग्रेस की राजनीति में आने के बाद से हर साल-दो साल में यह साफ करना पड़ता है कि उनके पिता, उनके पिता तो हैं, लेकिन घर में ही। उनकी राजनीति और उनकी सोच अलग है जिससे उनका कोई भी लेना-देना नहीं है। कम लोगों को यह बात याद होगी कि जब अजीत जोगी मुख्यमंत्री थे, और भूपेश बघेल मंत्री थे, तब नंदकुमार बघेल अपनी एक किताब को लेकर धार्मिक भावनाएं आहत करने के एक पुलिस केस में गिरफ्तार हुए थे, और कई दिन जेल भी रहे थे। वे बौद्ध धर्म अपना चुके हैं, और भूपेश बघेल को पारिवारिक संस्कारों से अलग भी कर चुके हैं क्योंकि भूपेश हिन्दू हैं।
अभी लगातार वे कई वीडियो में दिख रहे हैं जो कि चारों तरफ फैल रहे हैं, उसमें वे कांग्रेस के, और भूपेश सरकार के कई नेताओं और मंत्रियों के खिलाफ बोलते रहते हैं। उनकी राजनीति ब्राम्हण, बनिया, गैरछत्तिसगढिय़ा, इन सबको हटाने और हराने की है। पिछले बरस भूपेश बघेल के कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए पार्टी ने एक बयान जारी किया था जिसमें स्पष्ट किया गया था कि नंदकुमार बघेल का कांग्रेस पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है, और न ही भूपेश बघेल का अपने पिता की राजनीति से कोई लेना-देना है। बार-बार इस बात को साफ कर देने की वजह से कांग्रेस हाईकमान के सामने, और पार्टी के भीतर तो पिता-पुत्र के संबंध एकदम साफ हैं, लेकिन मीडिया को इसमें मजेदार वीडियो मिल जाते हैं। नंदकुमार बघेल खासे पढ़े हुए हैं, और हिन्दू धर्म, पुराण, की मिसालें देते हुए वे आक्रामक अंदाज में बयान देते हैं। लेकिन साथ-साथ यह भी खुलासा कर देते हैं कि भूपेश बघेल उनके बेटे तो हैं, लेकिन उन्होंने खुद ने ही भूपेश को सिखाया है कि न वे उनके आज्ञाकारी बेटे रहें, और न ही वे उनके आज्ञाकारी पिता रहेंगे। अलग-अलग राजनीतिक सोच वाली यह बड़ी अजीब सी राजनीतिक-पारिवारिक जोड़ी है, और जब भूपेश बघेल को पहले से यह खबर रहती है कि किसी कार्यक्रम में मंच पर उनके पिता को भी बुलाया गया है, तो वे उसमें जाना मंजूर भी नहीं करते। जिन मंत्रियों और कांग्रेस नेताओं के खिलाफ इन दिनों नंदकुमार बघेल का अभियान चल रहा है, उन्हें भी यह बात साफ है कि भूपेश अपने पिता के कंधे पर रखकर बंदूक नहीं चला रहे, क्योंकि बागी तेवरों वाले पिता किसी को अपने कंधे पर हाथ भी नहीं धरने देते।
पहले से कमाई अधिक...
छत्तीसगढ़ में शराब के कारोबार को देखने वाले आबकारी विभाग मेें काम कर रहे एक अफसर का कहना है कि जब दुकानें दारू ठेकेदार चलाते थे, तब अमले की कमाई सीमित रहती थी। अब पूरा धंधा ही विभाग के हाथ में हैं, तो नीचे से ऊपर तक एकाधिकार ने सबको मालामाल कर दिया है। इस धंधे की जिस-जिस बात से कमाई होती थी, वे सबकी सब जारी हैं, और अब कमाई से ठेकेदार या दुकानदार अलग हो गए हैं, इसलिए सिर्फ विभाग बाकी है। चूंकि दारू के ग्राहक समाज में हिकारत से देखे जाते हैं, इसलिए अगर उन्हें लूटा भी जा रहा है, तो उनके साथ किसी की हमदर्दी नहीं है। ([email protected])
बस्तर के पखांजूर वाले इलाके में बैंकों और एटीएम में नोट की कमी की शिकायत को अब महीनों हो रहे हैं। कुछ बरस पहले जब नोटबंदी हुई थी, और मोदी सरकार ने देश में कैशलेस अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के दावे किए थे, वे बाकी देश में तो सही साबित नहीं हो सके, लेकिन बस्तर के इस इलाके में जरूर अर्थव्यवस्था कैशलेस चल रही है। यह इलाका सदियों तक बिना किसी नोट-सिक्कों के सामानों की अदला-बदली पर जीते रहा, और अब मानो हालत फिर वैसी ही हो रही है। इस इलाके में नक्सलियों की बड़ी मौजूदगी के चलते बैंकों की नगदी सुरक्षा बलों के हेलीकाप्टरों से ही होती थी, लेकिन चुनावों के चलते ये खाली नहीं रहे, और नोट पहुंच नहीं पाए।
अब हालत यह है कि दारू दुकानों में जो नगदी पहुंच रही है, वह जब बैंकों में जमा होती है, तो किसानों और दूसरे लोगों को बैंकों से भुगतान मिल पाता है। बस्तर के विधायक और मंत्री रहे भाजपा के महेश गागड़ा ने आज सुबह फेसबुक पर कांग्रेस पर तंज कसते हुए लिखा है- गंगाजल की कसम विशेषांक, बीजापुर में शराब दुकान में तय रेट से अधिक पर मिल रही है शराब। शराब का पैसा बैंकों में जमा होने के बाद वहां हो पा रहा है लेन-देन। बैंकों में नगद नहीं है, और किसान से लेकर तेंदूपत्ता संग्राहक तक परेशान हाल में रोज आ-जा रहे हैं।
अब अधिक लोगों को तो यह याद भी नहीं होगा कि यह गंगाजल का जिक्र कहां से और क्यों आ गया?
लेकिन कांग्रेस की राजनीति को याद रखने वालों को याद हो सकता है कि विधानसभा चुनावों के पहले जब छत्तीसगढ़ कांग्रेस घोषणापत्र जारी कर रही थी तब दिल्ली से आए कांग्रेस के एक बड़े नेता ने हाथ में गंगाजल लेकर कई किस्म की कसमें खाई थीं, और जिसे लेकर बाद में पार्टी के भीतर भी कुछ खलबली मची थी कि अचानक यह गंगाजल किसे सूझा और कैसे मीडिया के सामने ही उसे पेश कर दिया गया। पार्टी के लोगों को याद होगा कि प्रदेश के कांग्रेस मीडिया प्रभारी शैलेष नितिन त्रिवेदी को भी हाथ में गंगाजल पहुंच जाने के पहले तक इसकी खबर नहीं थी। लेकिन जब पार्टी की जीत हो गई तो बाकी सब बातें हाशिए पर चली जाती हैं। महेश गागड़ा ने शायद यही बात याद रखी है।
([email protected])
आखिरकार सरकार ने काफी उठा-पटक के बाद दवा निगम में घोटाले की जांच ईओडब्ल्यू से कराने का फैसला ले लिया। यह सबकुछ आसान नहीं था। करीब 3 सौ करोड़ से अधिक की दवा खरीदी में भारी गड़बड़ी हुई और इसमें ताकतवर लोग शामिल थे। पहली नजर में निगम के पूर्व एमडी वी रामाराव को दोषी ठहराया जा रहा है, क्योंकि उनके ही कार्यकाल में यह सबकुछ हुआ है।
सुनते हैं कि धमतरी के एक बड़े सप्लायर को घोटाले का मुख्य सूत्रधार माना जा रहा है। यह खेल रमन सरकार के पहले कार्यकाल में शुरू हुआ था। तब तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी और सचिव बीएल अग्रवाल का इस घोटालेबाज सप्लायर को संरक्षण मिला। तब एक-दो प्रकरणों को सीबीआई ने जांच में भी लिया था, तो कई प्रकरण अभी भी ईओडब्ल्यू में जांच के लिए पेंडिंग है। इन सबके बाद भी इस सप्लायर का रूतबा कम नहीं हुआ। रमन सरकार के तीसरे और आखिरी कार्यकाल में इस सप्लायर को काम देने के लिए दो मंत्री और कई प्रभावशाली लोग लगे रहे। दामाद बाबू का भी साथ मिला। दिग्गजों की सरपरस्ती में धमतरी के इस सप्लायर से जुड़ी कई ऐसी कंपनियों को करोड़ों की दवा सप्लाई का ऑर्डर मिल गया, जो कि दूसरे राज्यों में ब्लैक लिस्टेड थीं।
बाद में सरकार बदलने के बाद रामाराव की जगह आए निगम के एमडी भुवनेश यादव ने इन सबको ब्लैक लिस्ट भी किया। करोड़ों की दवा सप्लाई में गड़बड़ी की जांच कराने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। चर्चा है कि धमतरी के इस सप्लायर के एक नजदीकी रिश्तेदार कांग्रेस में हैं और बड़े ठेकेदार हैं। उन्होंने एक बड़े बंगले को साधकर जांच रूकवाने की कोशिश की, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल पाई। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव भ्रष्टाचार के मामले में सख्त कार्रवाई के पक्षधर रहे। ऐसे में ईओडब्ल्यूू से जांच कराने की उनकी अनुशंसा को फौरन मान लिया गया। जांच आगे बढ़ती है, तो दवा निगम के अफसरों के साथ-साथ सप्लायर का भी घिरना तय है।
भ्रष्टाचार का हाल यह था...
लेकिन इस निगम के कामकाज में संगठित भ्रष्टाचार का हाल यह था कि रायपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज का एक विभाग पोस्ट गे्रजुएट कोर्स चालू करने के लिए मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की शर्तों के मुताबिक एक माईक्रोस्कोप चाहता था जो 5-6 लाख रुपये का ही था। पिछले दस बरस से विभाग से इसकी जरूरत लिखकर भेजी जाती रही, और इस दवा निगम से उसकी जगह पौन करोड़ रुपये का एक दूसरा माईक्रोस्कोप ले लेने के लिए दबाव डाला जाता रहा। यह पूरी खतो-किताबत फाईलों को मोटा करती गई, लेकिन निगम ने किफायती माईक्रोस्कोप लेने ही नहीं दिया, और अड़े रहा कि उससे दस गुना से अधिक का माईक्रोस्कोप लेने पर सहमति विभाग लिखकर दे। इसके बिना दस बरस में वहां पोस्ट गे्रजुएट सीट मंजूर नहीं हुईं, और परले दर्जे के भ्रष्ट इस निगम ने जरूरत का मांगा गया माईक्रोस्कोप लेकर नहीं दिया। ([email protected])
दुनिया भर में सेल्फी को लेकर फिक्र चल रही है कि अपनी तस्वीर किसी भी मौके पर खींचने के लिए लोगों पर दीवानगी छा जाती है। कोई डूब रहे हों, या किसी सड़क हादसे में घायल हों, उस मौके पर अपनी तस्वीर खींचने में लोग टूट पड़ते हैं, और मौके की जरूरत धरी रह जाती है, लोग अस्पताल नहीं पहुंचाए जाते, आग नहीं बुझाई जाती, बल्कि उनके साथ तस्वीरें खिंचवाई जाती हैं।
अब अभी राज्यसभा सदस्य छाया वर्मा के पिता गुजरे, तो उनके दशगात्र पर इक_ा लोगों में से तीन लोगों की एक ऐसी सेल्फी सामने आई जिसे खींचने वाली तस्वीर में जाहिर है कि कौन है, लेकिन साथ में दूसरी दो महिलाएं भी इस मौके पर सेल्फी में शामिल हो गईं, यह देखकर लोग हक्का-बक्का हैं। छाया वर्मा खुद, और रायपुर की भूतपूर्व मेयर किरणमयी नायक की यह तस्वीर सोशल मीडिया पर फैल रही है, और लोग हैरान हैं। हैरान इस बात पर भी हैं कि जिसने फोटो खींची है, उसी के फोन से तो यह तस्वीर बाहर भी निकली होगी।
फर्क कदकाठी का...
अभी स्वास्थ्य विभाग के एक कार्यक्रम में स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव तो मेजबान थे ही, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। इस मौके पर जिन लोगों का सम्मान किया गया उनमें छत्तीसगढ़ के विख्यात शिशु रोग विशेषज्ञ, डॉ. अरूण दाबके भी थे जो कि पद्मश्री से सम्मानित भी हैं। सिंहदेव के आसमान छूते कद के सामने छोटे कद के डॉ. दाबके को देखकर लोगों को छत्तीसगढ़ के दो-तीन पुराने नजारे याद आए। राज्य के पहले मुख्य सचिव अरूण कुमार सवा छह फीट के थे, और उनके मातहत अधिकारी एस.के. मिश्रा खासे कम कद के थे। दोनों साथ खड़े रहें, तो नजारा कुछ वैसा ही रहता था, जैसा आज मेडिकल-प्रोग्राम में था। इसके बाद एक मुख्य सचिव जॉय ओमेन रहे, जो कि प्रदेश के आज तक के सबसे कम कद के आईएएस थे, और उनके वक्त मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह प्रदेश के तब तक के सबसे अधिक कद के मुख्यमंत्री थे। लेकिन इसी दौरान जॉय ओमेन के मातहत एक आईएफएस एस.एस. बजाज थे जो कि प्रदेश के किसी भी विभाग के सबसे ऊंचे अफसर थे। आपस में कई जगहों पर साथ खड़े बात करते हुए दोनों की गर्दन दुखती थीं, एक की झुकने से, और दूसरे की ऊपर उठने से। अब डॉ. दाबके सरकारी सेवा में नहीं हैं, वरना सिंहदेव और उनके बीच ऐसी ही दिक्कत होती। आज सिंहदेव प्रदेश मंत्रिमंडल में सबसे ऊंची कदकाठी के मंत्री हैं, और लगे हाथों यह बताना भी ज्यादती नहीं होगी कि वे प्रदेश के सबसे संपन्न अरबपति मंत्री भी हैं।
([email protected])
पूर्व केन्द्रीय मंत्री जगतप्रकाश नड्डा के भाजपा कार्यकारी अध्यक्ष बनने से पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के खेमे में खुशी का माहौल है। नड्डा प्रदेश भाजपा के प्रभारी रहे हैं और उनकी रमन सिंह से नजदीकियां रही हैं। वैसे तो, नड्डा के पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल से यारी-दोस्ती के संबंध रहे हैं। दोनों युवा मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में साथ रहे हैं। दोनों के गहरे रिश्तों का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष-2013 के विधानसभा चुनाव में बृजमोहन के कहने पर नड्डा ने आधा दर्जन तय प्रत्याशियों को बदलवा दिया था। मगर, बाद में दोनों के रिश्तों में खटास आ गई।
जलकी प्रकरण के चलते बृजमोहन अग्रवाल मुश्किल में घिरे तो नड्डा, रमन सिंह के साथ खड़े नजर आए। और तो और नड्डा ने पिछले लोकसभा चुनाव में तत्कालीन सांसद मधुसूदन यादव की जगह अभिषेक सिंह को प्रत्याशी बनवाने में अहम भूमिका निभाई थी। नड्डा के न सिर्फ रमन सिंह बल्कि उनके करीबी नौकरशाहों अमन सिंह और अन्य लोगों से भी गहरे रिश्ते रहे हैं। ऐसे में जब नड्डा को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने की खबर आई, तो रमन सिंह के करीबी लोग एक-दूसरे को बधाई देते नजर आए।
विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद रमन सिंह की हैसियत पार्टी के भीतर कमजोर दिख रही है। वे अपने पुत्र अभिषेक सिंह को भी टिकट नहीं दिलवा पाए। जबकि बृजमोहन अग्रवाल का खेमा मजबूत नजर आ रहा। ऐसे समय में नड्डा के कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद भाजपा की गुटीय राजनीति में बदलाव आने के संकेत दिख रहे हैं। रमन सिंह खेमे के फिर से ताकतवर बनने की उम्मीद जताई जा रही है। रमन सिंह के करीबियों को उम्मीद है कि न सिर्फ अभिषेक को संगठन में अहम दायित्व मिलेगा, बल्कि पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी जैसों को भी महत्व मिल सकता है। यह भी अंदाजा लगाया जा रहा है कि पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के खेमे की हालत पहले जैसे ही रहेगी। बहरहाल, नड्डा के रूख पर पार्टी के नेताओं की निगाहें टिकी हुई हंै।
नांदगांव की सियासी तासीर
राजनांदगांव की सियासी तासीर ऐसी है कि एक बार पैर जमाने के बाद राजनेताओं को अगल-बगल झांकना नागवार लगता है। मोतीलाल वोरा यहां से एक बार सांसद रहे। इसके बाद चुनाव हारने के बाद भी वोरा का राजनांदगांव से संबंध बरकरार रहा। सालों तक राजनांदगांव में उनके पास सरकारी बंगला था, जो उन्हें पूर्व सीएम की हैसियत से आबंटित किया गया था। वे अभी भी दुर्ग से ज्यादा राजनांदगांव की राजनीति में दिलचस्पी लेते हैं। इसी तरह डेढ़ दशक तक सीएम रहे डॉ. रमन सिंह और उनके पूर्व सांसद पुत्र अभिषेक सिंह अपने गृह जिले कवर्धा से ज्यादा राजनांदगांव में ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं। सुनते हैं कि शहर में रचने-बसने के लिए नए अशियाने की तलाश में भी हैंं। चर्चा है कि उनके करीबी नेताओं ने रमन और अभिषेक को राजनांदगांव में नया घरौंदा तैयार करने की सलाह दी है। पिता-पुत्र को नेताओं की राय जंच गई। इसके बाद उनके करीबियों ने मकान के लिए जमीन की खोजबीन शुरू कर दी। वैसे तो फिलहाल पिता-पुत्र के लिए पार्टी में अनुकूल स्थिति नहीं है। संतोष पाण्डेय के सांसद बनने के बाद राजनांदगांव जिले में भाजपा का एक और खेमे के उदय होने के संकेत दिख रहे हैं। संतोष का कद पार्टी में काफी बढ़ा है। ऐसे में रमन समर्थकों को उम्मीद है कि अपने बेटे और खुद का राजनीतिक कैरियर संवारने के लिए राजनांदगांव शुभ साबित होगा।
तेज और धीमे सांसद
जांजगीर-चांपा के सांसद गुहाराम अजगले को छोड़ दें तो भाजपा के बाकी 8 पहली बार सांसद बने हैं। गुहाराम बेहद सरल स्वभाव के हैं। वे ज्यादा सुख-सुविधाओं के लिए लालायित नहीं रहते। लेकिन महासमुंद के सांसद चुन्नीलाल साहू ने सुविधाएं जुटाने के मामले में अपने साथी भाजपा सांसदों को पीछे छोड़ दिया है। बाकी भाजपा सांसद, संसद सदस्य के रूप में मिलने वाली सुविधाओं के लिए नियमावली का अध्ययन कर रहे थे कि चुन्नीलाल ने अपने लिए दिल्ली के कनाट प्लेस के वेस्टर्न कोर्ट में अपने लिए कमरा अलॉट करवा लिया। जब तक उन्हें फ्लैट नहीं मिलता वे यहां रहेंगे। यहां सांसदों के लिए सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं। चुन्नीलाल की देखादेखी बाकी सांसद भी फ्लैट या फिर गेस्ट हाउस में रहने की व्यवस्था के जुगाड़ में लग गए हैं।
([email protected])
सीएम भूपेश बघेल की पीएम से मुलाकात पर पूर्व मंत्री राजेश मूणत के ट्वीट से पार्टी संगठन खफा हैं। वैसे तो मूणत संगठन के पसंदीदा माने जाते हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर उनकी टिप्पणी को हाईकमान ने गंभीरता से लिया है। मूणत ने पीएम नरेन्द्र मोदी के साथ भूपेश बघेल की फोटो शेयर करते हुए ट्वीट किया- कोन चला झोला उठाकर के...? दरअसल, लोकसभा चुनाव निपटने के बाद पीएम की केदारनाथ यात्रा पर भूपेश ने कुछ इसी तरह मिलता-जुलता कटाक्ष किया था। जिसका मूणत ने जवाब दिया है।
पार्टी नेताओं का मानना है कि भूपेश ने चुनावी माहौल के बीच टीका-टिप्पणी की थी, यह स्वाभाविक है, चुनाव में नेता एक-दूसरे पर कटाक्ष करते रहते हैं, इसमें कोई गलत नहीं था। लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद भूपेश बघेल सीएम की हैसियत से नीति आयोग की बैठक में शिरकत करने गए थे, ऐसे में शिष्टाचार के नाते उन्हें पीएम से मुलाकात करनी ही थी। इसको लेकर राजनीतिक टीका-टिप्पणी उचित नहीं है।
कुछ इसी तरह की टिप्पणी मूणत कार्यसमिति की बैठक में कर बैठे। चर्चा के बीच उन्होंने कह दिया कि भूपेश सरकार के खिलाफ काफी मुद्दे हैं और ऐसे में जमकर पेलना चाहिए। बैठक में मौजूद महिला पदाधिकारी उनकी टिप्पणी पर हाथ से मुंह छिपाकर हँसने लगी। आखिरकार पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह उनका नाम लिए बिना नसीहत दी कि नेताओं को अपनी भाषा की मर्यादा ध्यान में रखना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अभी साढ़े 4 साल बाकी है। ऐसे में सरकार के खिलाफ लड़ाई के लिए अपनी ऊर्जा बचाकर रखें।
रेणुका सिंह नाम की नसीहत
केन्द्रीय मंत्री बनने के बाद रेणुका सिंह सरगुजा संभाग की सबसे ताकतवर नेता बनकर उभरी हैं। रेणुका सिंह ने सरगुजा में दिवंगत भाजपा नेता रविशंकर त्रिपाठी के सानिध्य में अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूआत की थी। त्रिपाठी ने उन्हें मंडल का अध्यक्ष बनवाया। इसके बाद रेणुका ने पीछे पलटकर नहीं देखा। तेज-तर्रार और जुझारू तेवर के चलते पार्टी हाईकमान का ध्यान खींचा। वे जनपद सदस्य और फिर विधायक भी बनी। वे रमन सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री भी रहीं, लेकिन संगठन में हावी नेताओं ने लता उसेंडी के लिए जगह बनाने उन्हें हटवा दिया।
दो बार की विधायक रेणुका सिंह को विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं दी गई। सरगुजा के सभी बड़े भाजपा नेता उन्हें नापसंद करते रहे हैं, लेकिन वे कार्यकर्ताओं की चहेती रही हंै। पार्टी हाईकमान ने विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद सभी सांसदों की टिकट काटी, तो सरगुजा में रेणुका की लॉटरी खुल गई। भारी जीत के बाद रेणुका को जब केन्द्रीय मंत्री बनाया गया, तो भाजपा के विरोधी नेता अब उनसे संबंध सुधारने की कोशिश में जुटे हैं। विरोधियों के लिए रेणुका सिंह का फर्श से अर्श तक पहुंचने का सबक काफी है कि राजनीति में बुरा वक्त किसी का भी आ सकता है, और कभी भी जा भी सकता है, आसमान तक पहुंचाकर। ऐसे में सबसे संबंध बनाकर रखना चाहिए।
सरफराज को यह जमाई हमेशा याद रहेगी। और हिंदी-हिंदुस्तान वालों को भी अपना जमाई शोएब मलिक हमेशा याद रहेगा...
शोएब मलिक के लिए भारत के खिलाफ अच्छा खेलना नामुमकिन था, सारी दुनिया एक तरफ, जोरू का भाई एक तरफ...
पाकिस्तान पर हिंदुस्तान की जीत पर एक दर्जन केंद्रीय मंत्रियों ने बधाई की ट्वीट की है। बिहार में सौ बच्चों की मौत पर इनमें से किसी ने एक आंसू ट्वीट नहीं किया...
सवाल- ऐसे बुक क्लब को क्या कहते हैं जो हजारों बरस से एक ही किताब पर चल रहा है?
जवाब- चर्च
इंग्लैंड में विजय माल्या मैच देखने स्टेडियम जाते दिखा।
हिंदुस्तान में किसान होता तो रस्सी खरीदते दिखता...
हमारे जमाने में पिताजी किसी फादर डे के मोहताज नहीं थे, जब भी उनका दिल करता था, जूता उठा के याद दिला देते थे कि मैं बाप हूं।
“Pakistan bowling kry to lagta ha batting pitch ha, Batting kry to lagta ha bowling pitch ha”
Na partition hoti na hum zaleel ho rahe hote
india tou humain aisi phainti laga raha hay jaise kohinoor hum nay churaya ho Good one . Let’s all pray and wish Ind and Pak become brothers and get our Past Glory Back from westerners who looted us and divided us. Amen.
Kohli ODI hundreds= 41
Entire Pak team= 41 hundreds
Whoever called it the india -pak match?
It actually is the India - pak MISMATCH
भाजपा के रायपुर जिलाध्यक्ष राजीव अग्रवाल तीर्थयात्रा को गए, तो वहां से उन्होंने छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए एक खुशखबरी अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट की है। उन्होंने लिखा- माँ यमुना के दर्शन आराधना करने के लिए आने वाले भक्तों के लिए उत्तराखंड के खरसली में छत्तीसगढ़ भाजपा के वरिष्ठ नेता व छत्तीसगढ़ शासन के पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल सर्वसुविधायुक्त विश्रामगृह बना रहे हैं। यह विश्रामगृह तो जब पूरा होना होगा तक होगा, लेकिन तब तक लोगों को यह जानकारी तो मिल ही गई है कि मोहन भैया का वहां पर एक इंतजाम है।
सप्लायरों के दिन लौटे
पिछले 15 सालों से सरकार के अलग-अलग विभागों में सप्लायरों का दबदबा रहा है। कुछ तो इतने ताकतवर थे कि मंत्री भी उनके आगे नतमस्तक रहे हैं। इन सप्लायरों ने स्कूल शिक्षा विभाग-आदिमजाति, महिला बाल विकास और उद्यानिकी विभाग में जमकर काम किया। इन विभागों में सप्लायरों की मिलीभगत से खूब भ्रष्टाचार हुआ। अब सरकार बदलते ही इन सप्लायरों के बुरे दिन शुरू हो गए।
सुनते हैं कि उद्यानिकी में ही तीन बड़े सप्लायरों का करीब 60 से 70 करोड़ रूपए बकाया है। अब चूंकि उद्यानिकी में बड़ा खेल हुआ है इसलिए कोई इन्हें बकाया भुगतान की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। यही हाल बाकी विभागों का भी है। चर्चा तो यह भी है कि स्कूल शिक्षा और अन्य विभाग के सप्लायरों ने मिलकर नई सरकार को साधने के इरादे से लोकसभा चुनाव के लिए काफी कुछ किया, लेकिन बात नहीं बन पाई। निर्देश साफ है कि बकाया भुगतान किसी भी दशा में नहीं किया जाए, लेकिन सप्लायरों ने हिम्मत नहीं हारी है। वे सरकार के प्रभावशाली लोगों के आगे-पीछे हो रहे हैं, ताकि नया काम भले न मिले पुराना भुगतान हो जाए। उद्यानिकी में भ्रष्टाचार का हाल यह था कि सरकार ने अब वहां से आईएफएस हटाकर कृषि से जुड़े एक अफसर को बिठाया है। और मजे की बात यह है कि उद्यानिकी विभाग पिछली सरकार में अपने सारे भ्रष्टाचार के लिए मंत्री को जिम्मेदार ठहराकर पाक-साफ बने बैठे रहता था।
सरकार के कई विभागों में चर्चा यह है कि सरकार ने लोकसभा चुनाव तक इमेज ठीक रखने की पर्याप्त कोशिश कर ली है, और अब तो आगे राजनीति भी चलानी है, म्युनिसिपल और पंचायतों के चुनाव भी लडऩे हैं, 15 बरस का विपक्षी सूखा भी खत्म करना है, इसलिए पुराने पेशेवर दलाल और सप्लायर अब जगह बनाते चल रहे हैं। लेकिन इसके साथ-साथ हैरान करने वाली कुछ बातें भी सामने आ रही हैं जिनमें मुख्यमंत्री के अपने गृह जिले में जाने-माने सट्टेबाजों और चोरी के माल के कबाडिय़ों का धंधा आसमान छू रहा है। अगर चर्चा सही है, तो सीएम ने इन कड़ी कार्रवाई करने को कहा है। और जिस तरह कोरबा में कोयले के धंधे पर कड़ी कार्रवाई हुई है, कई लोगों को उम्मीद है कि दूसरे जिलों में भी सरकार संगठित गड़बड़ी पर कड़ाई बरतेगी।
सरकार गई, रूतबा नहीं
सरकार बनने के बाद भी कई अफसरों का रूतबा कम नहीं हुआ है। पिछली सरकार में उन्हें महत्व इसलिए मिल रहा था कि इन अफसरों के आरएसएस और ताकतवर भाजपा नेताओं से करीबी रिश्ते थे। इन्हीं में से एक स्कूल शिक्षा अफसर का विभाग में काफी दबदबा रहा है। अफसर का भाई सीएम हाउस में पदस्थ था। सरकार बदली तो अफसर का भाई भी बदल गया, लेकिन अफसर की हैसियत बरकरार है।
सुनते हैं कि अफसर ने पहले मनमाफिक पोस्टिंग के लिए कोशिश की, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। बाद में अफसर खराब स्वास्थ के आधार पर अच्छी पोस्टिंग पाने में सफल रहा। पोस्टिंग के बाद अफसर सपरिवार मानसरोवर यात्रा के लिए निकल गया। विभाग ने यह ध्यान नहीं दिया कि मानसरोवर यात्रा के लिए फिटनेस जरूरी है, और छुट्टी भी मंजूर कर दी। अब अफसर ने यात्रा के दौरान एक ई-मेल विभाग प्रमुख को भेजा है जिसमें उन्होंने पांच लाख रूपए एडवांस देने की मांग की है। कुछ साल पहले एक आईएएस अफसर को इसी तरह एडवांस दिया गया था। स्कूल शिक्षा अफसर ने इसी नियम का हवाला दिया है। अब अफसर का रूतबा ऐसा है कि एडवांस देने के लिए नियम खंगाले जा रहे हैं।
रायपुर के नवनिर्वाचित सांसद सुनील सोनी के स्वागत-अभिनंदन का दौर चल रहा है। मगर, पार्टी का एक खेमा अभी भी इसको लेकर सहज नहीं है। पिछले दिनों एकात्म परिसर में उनकी बड़ी जीत पर शहर जिला भाजपा की तरफ से उनकी जीत पर स्वागत का कार्यक्रम रखा गया। कार्यक्रम से पूर्व मंत्री राजेश मूणत के करीबी लोग दूर रहे। इसी तरह रायपुर उत्तर में भी सुनील सोनी के स्वागत कार्यक्रम में पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी सहित उत्तर के ज्यादातर नेता नहीं आए।
सुनील सोनी को निर्विकार भाव का नेता माना जाता है। उन्हें इस बात से कोई बहुत ज्यादा फर्क पड़ता नहीं दिख रहा है कि कौन उनका सम्मान कर रहे हैं और कौन उनसे दूरी बना रहे हैं। लेकिन सांसद बनने के बाद बिना किसी प्रचार-प्रसार के जिस तरह स्थानीय समस्याओं को सुलझाने में जुटे हैं, उसकी तारीफ हो रही है। वे पिछले दिनों एम्स गए और वहां जाकर मरीजों की समस्याओं की सुध ली। उन्होंने मरीजों के आने-जाने के लिए एम्स के पिछवाड़े में नया गेट बनवाने के लिए प्रबंधन को राजी किया, साथ ही सरोना रेलवे स्टेशन से मरीजों को एम्स तक पहुंचने में दिक्कत न हो, इसके लिए नगर निगम की मदद से सड़क बनवाने के प्रस्ताव पर सहमति दिलाई।
यह काम छोटा भले दिख रहा हो लेकिन मरीजों को काफी राहत दिलाने वाला है। पहले एम्स अस्पताल आने के लिए टाटीबंध के मुख्य मार्ग से ही होकर आना पड़ता था। इसी तरह सुनील सोनी ने रेलवे अस्पताल में आम लोगों का इलाज सुनिश्चित करने के लिए रेलवे अफसरों से चर्चा की। इसके लिए सहमति भी बन गई है। सुबह से रात तक लोगों की समस्याओं के निराकरण के लिए जिस तरह भाग-दौड़ करते दिख रहे हैं, उनसे से काफी अपेक्षाएं भी हैं।
संन्यासभाव का सांसद-2
राजनांदगांव के सांसद संतोष पाण्डेय का कद पार्टी के भीतर तेजी से बढ़ा है। उन्हें भाजपा संसदीय दल का सचेतक बनाया गया है। यही नहीं, पार्टी ने उन्हें छत्तीसगढ़ में सदस्यता अभियान का प्रभारी बनाया है। संतोष पाण्डेय किसी गुट से नहीं जुड़े हैं। वे संघ के पसंदीदा माने जाते हैं। लोकसभा चुनाव में कई बड़े लोगों ने या तो उनके खिलाफ काम किया या फिर प्रचार से अलग रहे। मगर, संतोष पाण्डेय ने किसी की शिकायत नहीं की। लोकसभा चुनाव के दौरान जैसे ही राजनांदगांव में मतदान खत्म हुआ, वे रायपुर में चुनाव प्रचार के लिए आ गए। उनकी कार्य निष्ठा और समर्पण की पार्टी के कई लोग तारीफ करते नहीं थकते हैं। ऐसे में पार्टी के भीतर उनके बढ़ते कद से हैरानी नहीं हो रही है।
([email protected])
बहुत बड़ी-बड़ी शादियों में जहां हजारों मेहमान होते हैं, और बहुत से ऐसे लोग भी पहुंचते हैं जो कि वीआईपी कहलाते हैं, वहां स्टेज पर जाने की आपाधापी लगी रहती है। कई लोग घंटे भर तक कतार में लगे रहते हैं, और कातर निगाहों से स्टेज की तरफ देखते रहते हैं जहां दूसरी तरफ की उतरने के लिए रखी गई सीढिय़ों से वीआईपी चढ़ते रहते हैं, और आम लोगों की कतार खिसकने का नाम नहीं लेती। ऐसी आम कतारों में खास लोगों के लिए कैसी भावनाएं रहती हैं, उन्हें अगर खास लोग सुन लेंगे, तो अगली बार कतार में लगना उन्हें सस्ता लगने लगेगा। जिस तरह 25-30 बरस पहले आम सिनेमाघरों में आम दर्जे की टिकट पाने के लिए लोगों को मशक्कत करनी पड़ती थी, आज स्टेज पर जाकर दुल्हा-दुल्हन को लिफाफा या गुलदस्ता, या तोहफा देने में कुछ वैसी ही मशक्कत करनी पड़ती है। इसके अलावा बड़ी शादियों में पार्किंग का जो हाल रहता है, उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि शहर से विवाहस्थल के बीच किसी जगह पर बड़ी सी पार्किंग रखनी चाहिए और वहां से मेहमानों को दावत के शामियाने तक ले जाने के लिए आरामदेह बसें चलानी चाहिए। नया रायपुर की खाली जमीनों पर विवाहस्थल के लिए कुछ एकड़ के टुकड़े लंबी लीज पर देने की योजना थी, उसका फिर बाद में पता नहीं क्या हुआ। नया रायपुर प्राधिकरण ने एक बार टेंडर निकाला, लेकिन उसमें किसी ने दिलचस्पी ली नहीं थी। अब शर्तें बदलकर ऐसा फिर से करना चाहिए, और उसके लिए नया रायपुर में शहर के पास की जगह ही तय करनी चाहिए जिससे लोग सामने आ सकें।
पुण्य कमाने का मौका
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में भाजपा सरकार के वक्त बनाए गए एक विवादास्पद स्काईवॉक को लेकर आज की कांग्रेस सरकार हैरान-परेशान है कि इसे मार दिया जाए, या छोड़ दिया जाए, बोल तेरे साथ क्या सुलूक किया जाए? सरकार जो भी फैसला लेगी, उस पर उसकी आलोचना छोड़ कुछ नहीं होगा। ऐसे में किसी ने एक वॉट्सऐप मैसेज पर एक शानदार रास्ता सुझाया है। कोलकाता म्युनिसिपल ने अभी टेंडर निकाला है कि वहां के विख्यात मंदिर कालीघाट में दर्शनार्थियों के चलने के लिए एक स्काईवॉक बनाया जाना है। इसके लिए म्युनिसिपल ने कंपनियों से टेंडर बुलाए हैं। छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार चाहे तो यह स्काईवॉक काली मंदिर के दर्शनार्थियों के लिए भेंट में दे सकती है, और चूंकि मामला मंदिर का रहेगा इसलिए भाजपा के लोग भी विरोध कर नहीं पाएंगे, और छत्तीसगढ़ सरकार पुण्य भी कमा लेगी।
गाने वाले कलेक्टर
राजधानी रायपुर के नए कलेक्टर एस.भारती दासन फेसबुक पर सक्रिय रहते हैं, और हिन्दी और तमिल दोनों भाषाओं के गानों के अपने खुद के बनाए हुए वीडियो पोस्ट भी करते रहते हैं। उन्होंने एग्रीकल्चर की पढ़ाई की हुई है, और जिले के ग्रामीण हिस्सों में राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी योजना नरुवा-घुरुवा में भी उनकी अतिरिक्त दिलचस्पी हो सकती है। चुनाव के दौरान वे चुनाव आयोग में तैनात रहे, और ऐसा लगता है कि उनका काम ठीक रहा, इसलिए राज्य सरकार ने प्रदेश का सबसे महत्वपूर्ण माना जाने वाला जिला उन्हें दिया, और चुनाव आयोग ने भी तेजी से उन्हें इसके लिए कार्यमुक्त भी कर दिया। ([email protected])
प्रदेश पुलिस ने गांजा तस्करी के जितने भी मामले पकड़े हैं उनमें से अधिकांश गांजा ओडिशा के कालाहांडी और मलकानगिरी जिले से आता मिला है। नक्सल प्रभावित इन दोनों जिलों के जंगलों से गांजा निकलता है, जो ओडिशा सीमा से लगे रायगढ़, सरायपाली, बसना, सांकरा, पिथौरा, कोमाखान, मैनपुर, गरियाबंद, कांकेर, जगदलपुर से होकर छत्तीसगढ़ दाखिल होते हुए दीगर प्रदेशों के लिए निकलता है। इन जिलों में गांजे की खेती शायद इसलिए भी अधिक होती है कि वहां के जंगलों तक पहुंचकर गांजे की फसल को तबाह करने की हिम्मत नक्सलियों की वजह से किसी सरकारी अमले की पड़ती नहीं है।
तस्करी के लिए कई तरीके निकाले जाते रहे हैं। खुफिया चेंबर बने ट्रक पकड़ाते रहे तो अब टमाटर, कटहल, कद्दू आदि सब्जियों के नीचे गांजा रखकर ले जाते तस्कर पकड़े जा चुके हैं। इन दिनों तस्करों ने मौसम के मुताबिक आम को गांजा तस्करी का जरिया बना लिया है। आमों के नीचे गांजे के पैकेट! आम की खुश्बू में गांजे की महक दब जाती है पर इसी ने तस्करों का राज खोल दिया। कोरबा जिले के एक कस्बे में ट्रक पर बंदरों ने धावा बोल दिया। आम की जमकर दावत ली और उधर नीचे रखे गांजे से भरे बोरे सामने आ गए। सत्तर लाख का गांजा पुलिस ने बरामद किया। पुलिस महकमे के लिए अब तक खोजी कुत्ते काम करते आए हैं, यहां अनजाने ही सही, जंगल के इन बजरंगबलियों ने पुलिस की राह आसान कर दी।
महुआ, आदिवासी और हाथी
महुआ आदिवासियों की जीवनरेखा है। फूल-फल से लेकर पत्ते तक इन्हें रोजगार देता है। महुआ का फूल हाथी को लुभाता है, इनका प्रिय आहार भी है। आदिवासियों की तरह हाथियों को भी महुए की शराब काफी पसंद है। इसकी गंध कई कोस दूर से सूंघ लेते हैं। गंध मिलते ही वे उस ओर चलने लगते हैं। प्राय: देखा गया कि गांव की उन झोपडिय़ों और घरों पर हमला करते हैं जहां कच्ची शराब बन रही हो या जहां से शराब की गंध आ रही हो। घर में घुसकर हाथी शराब पी जाते हैं और फिर नशे में अधिक उपद्रव मचाने लगते हैं। सरगुजा-कोरिया के कई आदिवासियों की तब मौत हुई जब वे घर में मदमस्त थे या फिर शराब पीकर हाथियों के सामने आ गए।
बस्तर पहले हाथियों की आमद से महफूज था पर इन दिनों ओडिशा से भटककर कांकेर के परलकोट इलाके, नांदगाव मानपुर के जंगलों में हाथी जोड़े पहुंचने की खबर है। यह इलाका आदिवासी बहुल है और घरों में शराब बनना आम है। यहां के आदिवासियों को इसकी जानकारी कम है कि शराब से हाथी खिंचतेे हैं, उग्र हो जाते हैं। कुछ जनप्रतिनिधियों का कहना है कि वन विभाग को चाहिए कि इसके लिए अभियान छेड़कर बस्तर के आदिवासियों को सचेत करे वरना हाथियों का ऊधम यहां भी शुरू हो जाएगा।
वीडियो ले जाकर योगी को दिखाएं
एक पत्रकार को पुलिस ने केवल इसलिए गिरफ्तार किया कि उसने किसी महिला के उस वीडियो को ट्वीट कर दिया था, जिसमें उसने दावा किया था कि उसने उप्र के मुख्यमंत्री योगी के साथ शादी करने का प्रस्ताव भेजा है। ब्रम्हचर्य का पालन करने वाले संन्यासी योगी को बुरा लगना स्वाभाविक है पर उन्होंने संन्यास व्रत पालन के साथ ही मुख्यमंत्री के रूप में राजकाज के दायित्व की भी शपथ ली है। यह उन्हें ध्यान रखना चाहिए। पौराणिक आख्यानों में संन्यासियों के व्रत तोडऩे तप भंग करने के लिए उर्वशी, मेनका, रंभा जैसी अप्सराओं का जिक्र करते कई कथाएं प्रचलित हैं। स्वामी विवेकानंद को भी विदेश में किसी कन्या ने आमंत्रण दिया था ताकि वह उनसे उनके जैसी ही संतान प्राप्त कर सके। तब विवेकानंद ने इस आमंत्रण का जवाब दिया था कि वह उन्हें ही अपनी संतान स्वीकार कर ले। संन्यास धर्म के साथ राजधर्म का पालन कर रहे योगी आदित्यनाथ को इस तरह की घटना ने उत्तेजित कर दिया, यानी एक तरह से उनकी तपस्या भंग हो गई। यह घटना याद दिलाती है कि एक वक्त देश के सबसे चर्चित संन्यासी-राजनेता, छत्तीसगढ़ के पवन दीवान से जब भी उनके ब्रम्हचारी रहने को लेकर कोई मजाक किया जाता था, तो वे एक आम इंसान की तरह मजाक का खूब मजा लेते हुए इतनी जोरों का ठहाका लगाते थे कि कोई मजाक उन पर चिपकता नहीं था। वे संन्यासी भी थे, मंत्री भी थे, और हास्यबोध से भरपूर भी थे। किसी को पवन दीवान के ठहाकों के वीडियो ले जाकर योगी को सिखाना चाहिए कि ब्रम्हचर्य के साथ हँसना भी मुमकिन है।
([email protected])
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में डिप्टी कलेक्टर रैंक के दो लोग एक पब्लिक सेक्टर गेस्ट हाऊस में मिले, और हंगामा हो गया। इनमें से पुरूष अफसर शादीशुदा है, और पत्नी न्यायपालिका में काम करती है। खबरों के मुताबिक उसे शक था कि पति का इस दूसरी महिला अफसर से चक्कर चल रहा है, और उसने छापामार अंदाज में दोनों को बंद कमरे में पकड़ा और पुलिस भी बुला ली। अखबारी खबरों में तो बिना सुबूत नाम और तस्वीरें छापना कुछ कानूनी दिक्कत की बात भी रहती है, लेकिन मैसेंजर की मेहरबानी से अब मोबाइल फोन पर कुछ मिनटों में ही इनके फेसबुक पेज की तस्वीरें तैरने लगीं, और लोग चेहरे देखकर हैरान भी होने लगे कि इतनी सुंदर महिला अफसर इस तरह एक शादीशुदा आदमी के साथ पकड़ाई। लेकिन दिल पर किसका बस चलता है, वह न उम्र देखता, न चेहरा। बड़े-बुजुर्ग पहले से कह गए हैं, दिल लगा गधी से, तो परी क्या चीज है?
चूंकि इस प्रेम त्रिकोण में तीनों लोग सरकारी नौकरी वाले हैं इसलिए राज्य सरकार की यह जिम्मेदारी भी बनती है कि कम से कम प्रेमी-प्रेमिका को तो दूर-दूर तैनात कर दे। छत्तीसगढ़ ऐसे मामले के लिए बड़ी अच्छी जगह इसलिए भी है कि एक को जशपुर और दूसरे को सुकमा में तैनात कर दिया जाए तो मोहब्बत का असली इम्तिहान भी हो जाएगा, और सरकार का कामकाज भी चलता रहेगा। हालांकि लोगों का कहना है कि जियो की मेहरबानी से लोग अब पूरे चौबीस घंटे मोहब्बत निभा भी सकते हैं, कुल चार सौ रूपए महीने में!
उसेंडी-गागड़ा की चुप्पी का राज
आखिरकार भूपेश सरकार ने आदिवासियों के तगड़े विरोध के बाद बैलाडीला के डिपॉजिट-13 में खनन के लिए वृक्षों की कटाई पर रोक लगा दी है। साथ ही परियोजना से जुड़े सारे कार्य भी रोक दिए गए हैं। यहां खनन का ठेका अडानी समूह को मिला हुुआ है। दिलचस्प बात यह है कि आदिवासियों के विरोध प्रदर्शन में कांग्रेस के नेता तो बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे थे, लेकिन भाजपा के नेता इससे दूर रहे।
सुनते हैं कि भाजपा के रणनीतिकारों ने प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी और पूर्व मंत्री महेश गागड़ा को इस प्रकरण से जुड़े कुछ दस्तावेज देकर प्रेस कॉन्फ्रेंस लेने के लिए कहा था। दोनों नेताओं ने इसका अध्ययन किया और फिर बाद में प्रेस कॉन्फ्रेंस लेने से मना कर दिया। बैलाडीला के डिपॉजिट-13 के जिस नंदराज पर्वत पर खुदाई होनी थी वह आदिवासियों की आस्था से जुड़ा हुआ है। ये दोनों आदिवासी नेता भी यहां खनन के खिलाफ बताए जाते हैं। चूंकि खदान आबंटन से जुड़ी सारी प्रक्रिया रमन सरकार के समय हुई है और केंद्र में भी भाजपा की सरकार रही है। ऐसे में खदान को लेकर कुछ भी बोलने का मतलब अडानी के पक्ष में बोलने का होता, और अपने लिए परेशानी पैदा करने जैसा होता। यही वजह है कि कुछ बोलने से बेहतर चुप रहना उचित समझा।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चूंकि 15 बरस के विपक्षी किरदार में गैरसरकारी सामाजिक संगठनों और आंदोलनों के करीब रहे, इसलिए उन्हें आदिवासी मुद्दों की समझ भी बेहतर है। पिछली सरकार अफसरों के काबू की थी, और इस बार की सरकार में सरकार से बाहर की भी कुछ राय चलती है। नतीजा यह हुआ है कि अधिक टकराव के बिना सरकार पीछे हट गई है।
जलते में क्या पहचान?
जंगल में आग लगी। न जाने कितने जंगली जानवर जल-भुनकर मर गए। जंगली जानवरों के गोश्त के शौकीन ताक में थे कि कोई जंगली जानवर जंगल से भागते आए तो पकड़ें और गोश्त का मजा लें। बुरी तरह जला एक जानवर इनकी पकड़ में आ गया। रात का अंधेरा था, पहचान हुई कि यह तो सांभर (हिरण की एक प्रजाति) है। बस कुछ ही मिनट में इनके हाथों इस जानवर को जान गंवानी पड़ी। गोश्त बना, दोस्तों को भी दावत में शामिल किया। परिजनों तक को भिजवाया। छककर खाकर सो गए। सुबह हुई तो एक सिल-लोढ़ा पत्थर बेचने वाला गांव आकर पूछ रहा था मेरे गधे को देखा क्या? कल जंगल की ओर गया था। गोश्त उड़ाने वालों को अब समझ में आया कि खाया क्या? अब गोश्त किसी भी जानवर का हो वह तो पच ही चुका था।
इधर कुआं, उधर खाई
गर्मी बढ़ी, और जंगली जानवरों के शिकार की घटनाएं अक्सर जंगल से लगे गांवों में देखने-सुनने को आने लगती हंै। वन विभाग की पकड़ में आ गए तो जेल जाने का डर। वन विभाग की कार्रवाई से बचने जो न करें सो थोड़ा। झूठ बोलकर वन विभाग की कार्रवाई से बचकर निकले तो बिरादरी की पकड़ में आ गए और शुद्धिकरण की प्रक्रिया से गुजरना पड़ा। भोज देना पड़ गया। ऐसा ही एक मामला पिथौरा के सुखीपाली जंगल से लगे गांव का है। यहां के कुछ लोगों ने जंगली सुअर का शिकार कर गोश्त खाया। गोश्त बनाते समय जंगली सुअर के एक-दो पैर किसी कुत्ते ने झटक लिए और दूसरे दिन अधखाया यह पैर वन विभाग के किसी कर्मचारी के हाथ लग गया। बस विभाग ने तहकीकात शुरू कर दी। लिहाजा पता लगाया कि गांव में किसके घर क्या पका, और बच्चे मन के सच्चे निकले। गोश्तखोरों से पूछताछ शुरू हुई तो एकमत से बताया गया कि वह जंगली सुअर नहीं था, पाला गया सुअर था। सुअर पालने वाले को गवाह बनाकर पेश कर दिया। वन विभाग के कर्मी मनमसोसकर रह गए। हाथ कुछ नहीं आया।
अब बारी जात बिरादरी वालों की थी, इन गोश्तखोरों को पकड़ पंचायत बैठी कि तुमने पालतू सुअर का गोश्त खाया है , शुद्धिकरण होना होगा,जुर्माना भी भरना होगा, तब तक अछूत, जात-बिरादरी से बाहर। पौनी पसारी बंद। मरता क्या न करे..अगर कहें कि जंगली सुअर का मांस खाया तो जेल। लिहाजा शुद्धिकरण होना बचने की आसान राह थी। पूरे कुनबे के साथ शुद्धिकरण के बाद बिरादरी को बकरा-भात खिलाया। पंच-परमेश्वरों ने भी भोज खाकर मामला गांव में सुलटा लिया।
अच्छे दिन आने वाले हैं-1
एपीसीसीएफ अतुल शुक्ला और राजेश गोवर्धन की पदोन्नति में समय लग सकता है। वजह यह है कि सरकार ने अभी तक केन्द्र को प्रस्ताव नहीं भेजे हैं। वनमंत्री की दखल के बाद जल्द ही प्रस्ताव भेजे जाने की तैयारी चल रही है। पदोन्नति में देरी को देखते हुए सरकार दोनों अफसरों को पीसीसीएफ स्तर के रिक्त पदों पर बिठा सकती है। यानी एक को वाइल्ड लाइफ और दूसरे को लघुवनोपज संघ के एमडी का प्रभार दिया जा सकता है। अभी तक पीसीसीएफ (मुख्यालय) राकेश चतुर्वेदी के पास ही दोनों प्रभार हैं। सुनते हैं कि राकेश चतुर्वेदी ने खुद होकर दोनों अफसरों को एक-एक विभाग का प्रमुख बनाने का प्रस्ताव दिया है। अब प्रमुख पीसीसीएफ अपना बोझ हल्का करना चाहते हैं, तो सरकार को भला क्या दिक्कत हो सकती है।
अच्छे दिन आने वाले हैं-2
फॉरेस्ट में एक बड़े फेरबदल की तैयारी है। चर्चा है कि बरसों से लूप लाइन में रहे छोटे-बड़े अफसरों को मुख्य धारा में आने का मौका मिल सकता है। रमन सरकार में ज्यादातर समय वन विभाग का प्रभार आदिवासी मंत्रियों के पास रहा है, लेकिन ट्रांसफर-पोस्टिंग में सीएम हाऊस की दखल रहती थी। मगर, अब परिस्थितियां बदल गई है। भूपेश सरकार की कई महत्वाकांक्षी योजनाएं वन विभाग से जुड़ी हंै। ऐसे में वनमंत्री मोहम्मद अकबर योजनाओं के क्रियान्वयन में किसी तरह की लापरवाही नहीं चाहते हैं। उन्होंने संकेत दे दिए हैं कि साफ-सुथरी छवि और मेहनती अफसरों को पूरा महत्व दिया जाएगा और काम की पूरी छूट रहेगी। यानी साफ है कि पिछले सालों में जुगाड़ न होने के कारण किनारे बैठे अफसरों को बिना किसी सिफारिश के उनकी साख देखकर काम करने का बेहतर अवसर मिल सकता है।
एक छत्तीसगढ़ी की यादें
अमरीका में बसे हुए एक प्रमुख कारोबारी, छत्तीसगढ़ी वेंकटेश शुक्ला ने गिरीश कर्नाड के गुजरने पर उनके साथ की अपनी एक मुलाकात ताजा की है। उन्होंने लिखा है कि पिछली दिसंबर में बेंगलुरु में एक दोस्त के घर उनसे मुलाकात हुई थी। सांस लेने में दिक्कत की वजह से उनका चलना-फिरना कम था, लेकिन उनका पैना दिमाग और हास्यबोध, दोनों बरकरार थे। वे इस बात को मजे से बता रहे थे कि सलमान खान की फिल्म, टाईगर जिंदा है, में अपने एक किरदार की वजह से वे देश भर में पहचाना हुआ चेहरा बन गए थे, जबकि आलोचकों द्वारा तारीफ पाने वाली कई फिल्मों ने मिलकर भी उन्हें यह दर्जा नहीं दिलाया था। उन्होंने यह भी बताया था कि एक वक्त, 1960-70 के दशक में किसी वक्त हेमा मालिनी की मां उनकी शादी गिरीश कर्नाड से करवाना चाहती थीं। वेंकटेश ने उनसे पूछा कि फिर यह शादी क्यों नहीं हुई? तो उन्होंने बताया कि वे किसी और से प्रेम करते थे, और हेमा मालिनी के दिमाग में भी गरम-धरम थे जिनसे कि आखिर में उन्होंने शादी की। वेंकटेश ने लिखा है कि इतनी शोहरत के बावजूद गिरीश कर्नाड एक बहुत आम इंसान की तरह थे, कला, संस्कृति, राजनीति, या साहित्य, किसी भी विषय पर बहस में शामिल होने के लिए एक पैर पर खड़े हुए। वे पार्टी से जाने वाले आखिरी लोगों में से थे, वह भी तब जब उनकी बेटी उन्हें आराम करने के लिए घसीट ले गई। उनके साथ गुजारे कुछ घंटे यादों की एक धरोहर हैं।
([email protected])
एक-दो प्रकरणों को छोड़ दें, तो भूपेश सरकार ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामलों में उदार रही है। उन अफसरों को महत्व दिया जा रहा है, जिनकी साख अच्छी है। इनमें से कुछ अफसर जो रमन सरकार के करीबी माने जाते रहे हैं, उनका भी महत्व कम नहीं हुआ है। मसलन, सीएम के ओएसडी अरूण मरकाम को ही लें, वे पुराने सीएम रमन सिंह के भी ओएसडी थे। सरकार बदलने के बाद सचिवालय के दागी-बागी टाइप के अफसरों को बदल दिया गया, लेकिन मरकाम और जनसंपर्क के उमेश मिश्रा का रूतबा बरकरार है।
अरूण मरकाम सरगुजा के पूर्व भाजपा सांसद कमलभान सिंह के दामाद हैं। मगर, इन रिश्तों को जानकर भी भूपेश बघेल ने उन्हें नहीं बदला। मरकाम मिलनसार और मेहनती अफसर माने जाते हैं। इसी तरह उमेश मिश्रा राज्य बनने के बाद से सीएम सचिवालय में हैं। वे अजीत जोगी, फिर रमन सिंह और अब भूपेश बघेल के साथ काम कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सबका साथ-सबका विकास, का नारा सबसे ज्यादा चर्चित रहा। मगर, बहुत कम लोग जानते हैं कि यह नारा छत्तीसगढ़ में तैयार हुआ था और इसे उमेश मिश्रा ने रमन सिंह के लिए गढ़ा था। उमेश मौजूदा सीएम भूपेश बघेल के संयुक्त सचिव के साथ-साथ संवाद के मुखिया भी हैं। रमन सरकार में संवाद भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर कुख्यात रहा और यहां की गड़बडिय़ों की पड़ताल ईओडब्ल्यू कर रही है। ऐसे में संस्था की छवि निखारने की जिम्मेदारी उमेश मिश्रा पर आ गई है। उनके आने के बाद से यहां काम में पारदर्शिता नजर आने लगी है।
राजभवन मेहमान भरोसे...
छत्तीसगढ़ के राज्यपाल की कुर्सी महीनों से अतिरिक्त प्रभार पर चल रही है। मध्यप्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को ही तब छत्तीसगढ़ का भी प्रभार दिया गया जब यहां के राज्यपाल बलरामजी दास टंडन गुजर गए। तब से अब तक यह राज्य अतिरिक्त प्रभार पर जारी है। लोगों का यह अंदाज था, और है, कि अगर केन्द्र में यूपीए सरकार बनती, तो छत्तीसगढ़ में कोई और राज्यपाल तैनात होते। लेकिन दिल्ली में मोदी सरकार, और राज्य में उसके सामने तनकर खड़ी हुई भूपेश सरकार का टकराव देखते हुए अब अंदाज है कि केन्द्र इस राज्य में पूर्णकालिक राज्यपाल तैनात करेगा, और वे राज्यपाल ऐसे होंगे जो कि राजनीति की समझ रखते भी होंगे।
दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में बरसों पहले ई.एस.एल नरसिम्हन छत्तीसगढ़ के राजभवन से जब हैदराबाद ले जाए गए, तो उस वक्त वहां तेलंगाना राज्य बनना था। और 2009 से वे अब तक आन्ध्र और तेलंगाना दोनों के राज्यपाल हैं। उन्हें यूपीए सरकार ने तैनात किया था, लेकिन आईबी में उनके कामकाज की वजह से और इन दोनों राज्यों पर उनकी खास पकड़ को देखते हुए मोदी सरकार ने अपने पिछले पूरे कार्यकाल में नरसिम्हन को नहीं छुआ और वे आज तक दोनों राज्यों को देख रहे हैं।
छत्तीसगढ़ में भाजपा के नेता राजभवन में कोई भूतपूर्व भाजपाई चाहते हैं ताकि वे वहां जाकर कांग्रेस सरकार के खिलाफ अपनी बात रख सकें। आनंदीबेन भी गुजरात की भाजपा-मुख्यमंत्री रही हुई हैं, लेकिन वे अतिरिक्त प्रभार की वजह से न तो छत्तीसगढ़ में अधिक समय रहतीं, और न ही यहां की भाजपा को उनसे कोई राहत मिलती है। आने वाले दिनों में जब नरेन्द्र मोदी-अमित शाह भाजपा के कुछ नेताओं का पुनर्वास सोचेंगे, तब छत्तीसगढ़ के राजभवन को कोई स्थायी निवासी मिलेंगे।
([email protected])
भारतीय पुलिस सेवा के अफसर अमरेश मिश्रा एक बार फिर केन्द्रीय प्रतिनियुक्ति पर जा सकते हैं। सुनते हैं कि केन्द्रीय राज्यमंत्री रेणुका सिंह ने अपने सचिव के लिए मिश्रा के नाम की सिफारिश की है। चर्चा यह है कि अमरेश मिश्रा के लिए पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह ने भी पैरवी की है।
मिश्रा, रायपुर और दुर्ग जैसे बड़े जिलों के एसपी रह चुके हैं। वे आईबी में भी काम कर चुके हैं। दुर्ग एसपी रहते अमरेश मिश्रा की तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री एसएस अहलुवालिया के सचिव के रूप में पदस्थापना भी हो गई थी, लेकिन रमन सरकार ने उन्हें रिलीव नहीं किया। वे रमन सरकार के करीबियों में रहे हैं। सरकार बदलते ही उन्हें पुलिस मुख्यालय में भेज दिया गया। उनके पास कोई अहम जिम्मेदारी नहीं है। ऐसे में संभावना है कि वे रेणुका सिंह के साथ चले जाए। हालांकि, यह सब कुछ आसान नहीं है। पीएमओ की मंत्री-स्टॉफ में पदस्थापना में सीधी दखल रहती है। हाल यह है कि केन्द्रीय मंत्री भी अपनी मर्जी से किसी को अपने स्टॉफ में नहीं रख सकते। रमन सरकार के कई और अफसर केन्द्र सरकार में पद पाने के लिए काफी भाग-दौड़ कर रहे हैं, लेकिन अभी तक किसी की पोस्टिंग तय नहीं हो पाई है।
([email protected])
भाजपा के पूर्व सांसदों के पीए (निज सचिव) और अन्य कर्मचारी, नए नवेले सांसदों के यहां अपनी संभावनाएं तलाश रहे हैं। कुछ पूर्व सांसद इसके लिए सिफारिश भी कर रहे हैं। सुनते हैं कि इसी सिलसिले में छत्तीसगढ़ के एक पूर्व सांसद का एक कर्मचारी, पिछले दिनों एक नए सांसद से मिलने पहुंचा। सांसद के पास पहले ही उस कर्मचारी के लिए सिफारिश आ चुकी थी। कर्मचारी को लेकर समस्या यह थी कि उसे निजी तौर पर ही रखा जा सकता था। इसके लिए वेतन आदि की व्यवस्था खुद सांसद को करनी पड़ती। सांसद को दुविधा में देख कर्मचारी ने खुद ही कह दिया कि उन्हें (सांसद) वेतन आदि की चिंता करने की जरूरत नहीं है। पूर्व सांसद ने एक कंपनी से उनके लिए हर महीने वेतन की व्यवस्था कर दी है। उन्हें सिर्फ उनके दफ्तर में जगह चाहिए। अब सांसद, ऐसे प्रभावशाली कर्मचारी को लेकर असमंजस में हैं। कंपनी से पुराने सांसद के किस तरह रिश्ते हैं, कोई समस्या तो नहीं आ जाएगी, यह सोचकर परेशान है।
पहला विदेश दौरा
छत्तीसगढ़ के उद्योग मंत्री कवासी लखमा के साथ अफसरों का एक प्रतिनिधि मंडल निवेश की संभावना तलाशने कनाडा जा रहा है। पहले सीएम भी जाने वाले थे, लेकिन मां के अस्पताल में भर्ती होने की वजह से उनके जाने का कार्यक्रम टल गया। नई सरकार के लोगों का यह पहला विदेश दौरा है। जबकि रमन सरकार के लोग दर्जनों बार निवेश की संभावना तलाशने विदेश जा चुके हंै।
सुनते हैं कि पिछली सरकार के पावरफुल लोग जब विदेश यात्रा पर जाते थे, तो अपने साथ सीएसआईडीसी के एक इंजीनियर को ले जाते थे। इंजीनियर अपने नाम पर लाखों रुपये एडवांस ले लिया करता था। इस पैसे से पिछली सरकार के लोग जमकर खरीदारी करते थे। इंजीनियर को फ्री स्टाइल खेलने की छूट रहती थी। महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट उन्हीं के हाथों में होता था। इसलिए इंजीनियर भी खुशी-खुशी से खातिरदारी के लिए तैयार रहता था। अब सरकार बदल गई है, लेकिन विदेश यात्रा की प्रकृति भी पहले जैसी है। ये अलग बात है कि इस बार इंजीनियर साथ नहीं है। अलबत्ता, उससे ऊपर के एक अफसर जरूर साथ हंै। अब वहां इस अफसर का किस तरह उपयोग होता है, यह देखना है।
जांच भी चले और इलाज भी
आखिरकार डीकेएस सुपर स्पेश्यलिटी अस्पताल के अधीक्षक डॉ. केके सहारे को हटा दिया गया। वे अस्पताल निर्माण से जुड़ी अनियमितताओं को लेकर इतने व्यस्त हो गए थे कि मरीजों की तरफ ध्यान ही नहीं दे रहे थे। स्वास्थ्य मंत्री ने गरियाबंद के सुपेबेड़ा में किडनी बीमारी से पीडि़तों को डीकेएस में मुफ्त इलाज की घोषणा की थी, लेकिन मरीजों को इलाज के लिए भटकना पड़ रहा था। जबकि सरकार डीकेएस में ज्यादा से ज्यादा स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराने की दिशा में प्रयास कर रही है। डॉ. सहारे का हाल यह था कि वे पूर्व अधीक्षक डॉ. पुनीत गुप्ता के खिलाफ मामले खोजने में ही पूरा समय दे रहे थे। यह सब देखकर सरकार ने मरीजों के हितों को ध्यान में रखकर डॉ. सहारे को हटाने का फैसला लिया। डॉ. सहारे को डीकेएस घोटाले और जांच के संबंध में नोडल अधिकारी बने रहेंगे। यानी वे अपना पुलिस और जांच का काम पूर्ववत करते रहेंगे, और अस्पताल चलाने के लिए एक दूसरा अफसर तैनात कर दिया गया है।
कलेक्टर-एसपी कॉफ्रेंस के बाद करीब डेढ़ दर्जन आईएएस अफसरों को इधर से उधर किया गया। जिन अफसरों के प्रभार चार माह में दूसरी-तीसरी बार बदले गए हैं, उनमें राजेश सिंह राणा, एलैक्स पॉल मेनन और रजत कुमार व चंद्रकांत उइके जैसे अफसर भी शामिल हैं। मेनन अंत्यवसायी वित्त विकास निगम के एमडी भी थे और उन्होंने निगम की कार्यप्रणाली के सुधार के लिए सलाहकार नियुक्त करने का प्रस्ताव तैयार किया था। इस पर लाखों खर्च होना था। इस प्रस्ताव पर काफी विवाद हुआ। आखिर में सलाहकार नियुक्ति का प्रस्ताव निरस्त करना पड़ा। मेनन जहां भी रहे, विवादों से परे नहीं रहे। ऐसे में फेरबदल की सूची में उनका नाम आने पर किसी को कोई आश्चर्य नहीं हुआ। उन्हें मंत्रालय में विशेष सचिव बनाया गया, लेकिन अभी उन्हें कोई विभाग नहीं दिया गया है। उनके कार्यकाल में चिप्स में जो काम हुए हैं उनकी जांच में ईओडब्ल्यू को पसीना आ रहा है।
इसी तरह राजेश सिंह राणा के खिलाफ भी कई तरह की शिकायतें रही है। बलौदाबाजार कलेक्टर रहते उनके खुद के प्रचार का वीडियो सार्वजनिक हुआ था, जिसको लेकर उनकी काफी किरकिरी हुई थी और बाद में उन्होंने वीडियो बनाने वाले खिलाफ पुलिस में शिकायत कर मामले को किसी तरह रफा-दफा किया। वे रमन सरकार के चहेते अफसरों में गिने जाते रहे हैं, वे फ्री स्टाइल कार्यप्रणाली के लिए जाने जाते हैं। सुनते हैं कि कुछ साल पहले एक शिकायत हुई थी, जिसमें बताया गया कि जिले के प्रशासनिक मुखिया अलग-अलग विभागों में किराए से गाड़ी चलवा रहे हैं। गाड़ी कागजों पर चल रही है और किराए की राशि खुद हजम कर जा रहे हैं। शिकायतों की कभी जांच नहीं हुई, लेकिन राजेश सिंह राणा चर्चा में जरूर रहे।
बलौदाबाजार कलेक्टर पद से हटने के बाद उन्हें महिला बाल विकास संचालक का दायित्व सौंपा गया था। बाद में उन्हें संयुक्त सचिव वाणिज्य एवं उद्योग का प्रभार दिया गया। अब यहां से भी उन्हें मुक्त कर धार्मिक न्यास एवं धर्मस्व विभाग का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है, जिसे महत्वहीन माना जाता है। इसी तरह रमन सिंह के संयुक्त सचिव रहे रजत कुमार संचालक आर्थिक एवं सांख्यिकी के पद पर पदस्थ किया गया है। हालांकि, उनके पास केंद्र सरकार के जनगणना निदेशालय का दायित्व भी है इसलिए उनका राज्य सरकार का बोझ हल्का किया गया है। जबकि रमन सरकार में वे बेहद पॉवरफुल रहे। उनकी हैसियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि वे अपने सीनियर अफसरों से भी बैठकों में जवाब-तलब कर देते थे। ऐसा माना जाता था कि उनसे बड़े जो अफसर अपने से भी बड़े जिन अफसरों से सीधे टकराना नहीं चाहते थे, उनके सामने रजत कुमार का खड़ा कर देते थे। सूची में जाना पहचाना नाम चंद्रकांत उइके का भी रहा। उइके को वाणिज्यकर (आबकारी) संयुक्त सचिव के पद से हटाकर संचालक समाज कल्याण और प्रबंध संचालक निशक्तजन वित्त विकास निगम का प्रभार सौंपा गया है। उनके नाम सबसे ज्यादा तबादले का रिकॉर्ड है। उनका पिछले छह महीने में ही चार बार तबादला हो चुका है।
दिलचस्प बात यह है कि उन्हें तबादले से कोई शिकायत नहीं रहती और वे रूकवाने की कोशिश नहीं करते। जहां भी सरकार पोस्टिंग करती है अगले दिन खुशी-खुशी ज्वाइन कर लेते हैं, और अपने तबादलों की लंबी लिस्ट को हँसते-हँसते बताते रहते हैं, और जहां भेजे जाते हैं वहां भी अपने सीनियर को जाते ही बता देते हैं कि वे अधिक दिनों के लिए नहीं आए हैं। एक बार तो उनकी पोस्टिंग एक संवैधानिक दफ्तर में हो गई थी, वे वहां काम संभालने गए तो रिटायर्ड हाईकोर्ट जज ने उन्हें बैठने भी नहीं कहा, और उन्हें खड़े रखकर ही बात की, और कहा कि वे अपना ट्रांसफर कहीं और करा लें। इस पर चंद्रकात उईके ने खुशी-खुशी कहा कि वे खुद भी वहां काम करना नहीं चाहते, और उस दफ्तर में शायद कुर्सी पर बैठे बिना ही वे अगले तबादले पर चले गए।
बैठे-ठाले आलोचना का मौका दिया
ऐसा आमतौर पर नहीं होता है कि कोई सांसद अपनी ही पार्टी की किसी दूसरे प्रदेश की सरकार को अफसर की आलोचना करे, लेकिन मध्यप्रदेश के विवेक तन्खा ने छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव सुनील कुजूर की आलोचना करते हुए ट्वीट किया है। दरअसल मुख्यमंत्री के एक दौरे में एक हैलीपैड पर तैनात पुलिस इंस्पेक्टर ने सुनील कुजूर को नहीं पहचाना, और उनका पहचान पत्र मांग लिया। इस पर सुनील कुजूर ने इलाके के आईजी से शिकायत की, और आईजी ने आनन-फानन इस बुजुर्ग इंस्पेक्टर को निलंबित करके लाईन अटैच कर दिया। इस पर मध्यप्रदेश के कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने ट्वीट किया है-मुख्य सचिव आप गलती पर हैं।
यह पुलिस की ड्यूटी है कि वे उच्च सुरक्षा के इलाके में आने वाले लोगों के पहचान पत्र की जांच करें। छत्तीसगढ़ एक बहुत ही संवेदनशील राज्य है, मुख्यमंत्री की जेड प्लस दर्जे की सुरक्षा है। ऐसे में आप किसी को उसकी ड्यूटी करने के लिए निलंबित नहीं कर सकते।
आमतौर पर विवादों से परे रहने वाले और सीधे-सरल सुनील कुजूर इस मामले में आलोचना से बच नहीं सकते। सुरक्षा व्यवस्था करने के लिए अगर किसी को निलंबित किया जाता है, तो कल के दिन बड़े लोग ही बड़े खतरे में पड़ेंगे। यह तो राज्य की बात है इसलिए यहां सुरक्षा व्यवस्था तोडऩा शान माना जाता है। केन्द्र सरकार में लोग काम करें, या प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था के भीतर पहुंचें, तो सबको सुरक्षा का सम्मान करना पड़ता है, या वहां से चले जाना पड़ता है। मुख्य सचिव बनने के बाद पहली बार सुनील कुजूर खबरों में आए, और गलत वजहों से आए। कायदे से तो उन्हें खुद ही पुलिस विभाग को मना करना था कि अपनी ड्यूटी करने वाली को कोई सजा न दे।([email protected])