राजपथ - जनपथ
भाजपा में नए सदस्य बनाने का काम चल रहा है। बाकी राज्यों में तो यह अभियान जोर-शोर से चल रहा है, लेकिन छत्तीसगढ़ में पार्टी नेता रूचि नहीं ले रहे हैं। राजनांदगांव के सांसद संतोष पाण्डेय प्रदेश में सदस्यता अभियान के प्रभारी हैं। अभियान से जुड़े लोग दावा कर रहे हैं कि नए सदस्यों की संख्या बढ़ रही है। मगर, पार्टी के अंदरूनी सूत्र इसको नकार रहे हैं। पिछली बार मिस्डकॉल के जरिए 50 लाख सदस्य बनाने का दावा किया गया था, लेकिन विधानसभा चुनाव में कुल मिलाकर 47 लाख वोट ही मिले।
सुनते हैं कि चुनाव नतीजे आने के बाद अमित शाह ने संगठन के प्रमुख नेताओं को जमकर फटकार लगाई थी। उनका स्पष्ट मानना था कि सदस्यता अभियान के नाम पर फर्जीवाड़ा हुआ है। यदि वास्तव में 50 लाख सदस्य बनाए गए होते, तो पार्टी चौथी बार सरकार बनाने में कामयाब रहती। इस बार के सदस्यता अभियान पर पार्टी हाईकमान की निगाह टिकी हैं।
बी.सतीश और सौदान
भाजपा के शीर्ष स्तर पर संगठन में बड़ा फेरबदल हुआ है। पार्टी के महामंत्री (संगठन) की जिम्मेदारी रामलाल की जगह फिलहाल बी सतीश को दी गई है। भाजपा में महामंत्री (संगठन) की हैसियत काफी ऊंची होती है और वे राज्यों में संगठन के गुटीय समीकरण को प्रभावित करते हैं। बी सतीश और सौदान सिंह, दोनों बराबरी के पद थे। पर अब सतीश का कद एक कदम बढ़ा है।
बी सतीश, कभी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे के सचिव रह चुके हैं। उनकी संभावित नियुक्ति के बाद पार्टी के भीतर सवाल उठ रहे हैं कि सौदान सिंह का क्या होगा? सौदान सिंह के हिसाब से प्रदेश भाजपा संगठन की गतिविधियां चलती रही है। लखीराम अग्रवाल, बलीराम कश्यप, दिलीप सिंह जूदेव जैसे नेताओं के गुजरने के बाद सौदान सिंह की ताकत काफी बढ़ी। इन नेताओं के रहते सौदान सिंह कभी भी मनमानी नहीं कर पाए। सौदान के खिलाफ पार्टी के कई नेताओं ने मोर्चा खोल रखा था।
सुनते हैं कि इन नेताओं ने रामलाल से शिकायत भी की थी। रामलाल भी सौदान सिंह को ज्यादा पसंद नहीं करते थे। मगर, बी सतीश के आने के बाद सौदान सिंह की हैसियत में कोई कमी आएगी, ऐसा लगता नहीं है। कई नेता बताते हैं कि बी सतीश से सौदान के बहुत अच्छे रिश्ते हैं। ऐसे में सौदान की ताकत और बढ़ सकती है। मगर, कुछ लोग याद दिलाते हैं कि बी सतीश के पास लंबे समय तक गुजरात का प्रभार रहा है। उस वक्त नरेन्द्र मोदी गुजरात के सीएम थे। ऐसे में यह भी माना जा रहा है कि मोदी-शाह जो चाहेंगे, वही होगा। यानी कुछ लोग अभी भी सौदान का पॉवर घटने की उम्मीद से है।
भारत के विश्वकप क्रिकेट से बाहर हो जाने के बाद भी क्रिकेट के शौकीन लोगों की दिलचस्पी खत्म हुई नहीं है। किसे, कब बैटिंग के लिए क्यों बुलाया गया, अब लोग उस पर बहस कर रहे हैं। लेकिन इसके साथ-साथ क्रिकेट के रिकॉर्ड को लेकर हमेशा से लोग हिसाब करते रहते हैं कि कौन सा रिकॉर्ड टूटा। ऐसे में अभी वॉट्सऐप पर एक विश्लेषण घूम रहा है जिसके मुताबिक- भारत अपनी लीग में टॉप पर था, लेकिन सेमीफाइनल में हार गया। इसी तरह ऑस्ट्रेलिया भी अपनी लीग में टॉप पर था, और सेमीफाइनल हार गया। दोनों ही देशों के नाम के अंग्रेजी हिज्जे के आखिर में आईए आता है। और फाईनल में जो दो टीमें लैंड की हैं, उन दोनों के नाम में लैंड आता है, न्यूजीलैंड और इंग्लैंड। भारत ने आखिरी मैच में तीन विकेट शुरू में ही जल्दी खो दिए थे, और ऑस्ट्रेलिया ने भी तीन विकेट उसी तरह जल्दी खोए। भारत 49वें ओवर में ऑलआऊट हो गया था, और ऑस्ट्रेलिया भी 49वें ओवर में ऑलआऊट हुआ। भारत के धोनी रनआऊट हुए, और अगले ही दिन ऑस्ट्रेलिया के स्मिथ उसी तरह आऊट हुए। धोनी जब रनआऊट हुए भारत 216/8 था, और स्मिथ जब रनआऊट हुए ऑस्ट्रेलिया 217/8 था। भारत के सात बल्लेबाजों ने ईकाई तक स्कोर सीमित रखा था, और चार बल्लेबाज दहाई स्कोर तक पहुंचे थे। ऑस्ट्रेलिया के भी सात बल्लेबाजों ने ईकाई स्कोर किया, और चार ने दहाई स्कोर बनाया था।
अब इसकी सारी जानकारी सही है या नहीं यह तो क्रिकेट के स्कोर चार्ट बारीकी से देखने वाले बता सकेंगे, लेकिन क्रिकेट के रिकॉर्ड में दिलचस्पी लेने वाले कभी कम न होंगे।
और पाकिस्तान का रिकॉर्ड...
पाकिस्तान का रिकॉर्ड भी लोग लेकर बैठे हैं कि 1992 और 2019 के विश्वकप में कैसे उसका हाल एकदम एक सरीखा हुआ। इन दोनों ही टूर्नामेंटों में वे पहले मैच हारे थे, दूसरे मैच जीते थे, तीसरे मैच बेनतीजा रहे, चौथे मैच हारे, पांचवें मैच हारे, छठवें मैच जीते, सातवें मैच जीते, लेकिन इसके बाद पाकिस्तान 2019 में 1992 की तरह जीत नहीं पाया। मेलबोर्न में 1992 में पाकिस्तान चैंपियन बना था, लेकिन इस बार वह लीग मैच में ही बाहर हो गया।
बला से छूटकर जिले पहुंचीं
आखिरकार स्वास्थ्य बीमा योजना के झमेले में उलझी शिखा राजपूत तिवारी हेल्थ डायरेक्टर के पद से मुक्त हो गई। सरकार ने उनका मान रखा और बेमेतरा कलेक्टर बना दिया। शिखा ने स्वास्थ्य बीमा योजना के एडिशनल सीईओ डॉ. विजेन्द्र कटरे के खिलाफ शिकायतों की पड़ताल की थी। उन्होंने अपनी जांच में डॉ. कटरे के खिलाफ शिकायतों को सही पाया था। खैर, डॉ. कटरे भी पहुंच वाले निकले और अपना कार्यकाल खत्म होने तक पद पर बने रहने की अनुमति हासिल कर ली। इससे जुड़े एक आदेश को लेकर विभागीय मंत्री टीएस सिंहदेव, शिखा राजपूत तिवारी से नाराज चल रहे थे।
सिंहदेव की नाराजगी को देखकर शिखा को हेल्थ डायरेक्टर के प्रभार से मुक्त कर दिया गया। सुनते हंै कि शिखा के खिलाफ कई और शिकायतें भी हुई थी, लेकिन पहली नजर में सभी शिकायतें निराधार पाई गईं। चूंकि पिछली सरकार ने भी उन्हें लूप-लाइन में रखा था। इसलिए उन्हें अब जिले की जिम्मेदारी देकर बेहतर परफार्मेंस का मौका दिया है।
गलियारों तक में रईसी...
छत्तीसगढ़ की राजधानी नया रायपुर के मंत्रालय की इमारत में जाएं, तो समझ आता है कि इस राज्य में बिजली की न तो कोई कमी है, और न ही कोई इज्जत। जब देश के बहुत बड़े हिस्से में बच्चों को पढऩे के लिए एक बल्ब की बिजली नसीब नहीं होती, मंत्रालय की दानवाकार इमारत के गलियारे भी एयरकंडीशंड हैं, और उनमें चारों तरफ खुली जगहें हैं जहां से बीच के अहाते में आना-जाना होता है, चारों तरफ खिड़कियां खुली हैं ताकि कर्मचारी और आवाजाही वाले लोग थूकने की स्वतंत्रता का उपभोग कर सकें। यह देखकर हैरानी होती है कि कई किलोमीटर लंबे गलियारों में एयरकंडीशनिंग इतनी बेदर्दी से बर्बाद की जाती है। इसके लिए मशीन लगाने में भी करोड़ों रूपए अतिरिक्त लगे होंगे, और अब दसियों लाख रूपए की बिजली तो हर महीने महज गलियारों में बर्बाद हो रही है। सरकार के पास जब तक तनख्वाह देने के पैसे रहते हैं, तब तक किसी तरह की किफायत किसी को नहीं सूझती। इस प्रदेश के अस्पतालों में गंभीर मरीजों के लिए भी जब एयरकंडीशनिंग नहीं है, तब मंत्रालय के गलियारे भी चारों तरफ खुली हवा में एयरकंडीशनिंग बर्बाद करते रहते हैं।
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आईएफएस अफसर एसएस बजाज को बिना अनुमति के विदेश यात्रा करने पर नोटिस थमा दिया गया। बजाज खुद के खर्चे पर सिंगापुर गए थे। उन्होंने लौटने के बाद विभाग को इसकी सूचना दी। बिना अनुमति के विदेश यात्रा को सर्विस रूल का उल्लंघन माना गया। वैसे बजाज अकेले अफसर नहीं हैं, जिन्हें इस तरह का नोटिस मिला है। पिछली सरकार में तो बड़ी संख्या में अफसर विदेश गए, लेकिन कई ने अनुमति तक नहीं ली।
ऐसे अफसरों में आईएएस अफसर आर प्रसन्ना का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। प्रसन्ना भी अनुमति लिए बिना विदेश गए थे। लौटकर आने के बाद अनुमति के लिए आवेदन दिया। उन्हें तत्कालीन सीएस ने जमकर फटकार लगाई थी। नोटिस भी जारी किया गया था। लेकिन अफसरों की विदेश यात्राओं को लेकर पिछली सरकार काफी उदार रही है और इस तरह के प्रकरणों पर चेतावनी देकर छोड़ दिया जाता था। मगर, सरकार बदलने के बाद अफसरों की यात्राओं पर तिरछी निगाह है। संकेत साफ है कि इस तरह के प्रकरणों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
लोगों को आज के सूचना आयुक्त एम.के. राऊत का बरसों पहले का वह मामला याद है जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने उन्हें लंदन में घूमते हुए अचानक ही आमने-सामने देखा, तब पता लगा कि राऊत विदेश में हैं। इस घटना को लेकर एक किस्सा फैला था, जो सच था या नहीं वह पता नहीं। रमन सिंह अपने साथ गए अफसरों के साथ लंदन में मैडम त्रुसां की प्रतिमाओं की गैलरी देखने गए थे, और वहां उनके ओएसडी विक्रम सिसोदिया ने चौंकते हुए उन्हें कहा- देखिए सर यहां तो राऊत साहब की भी प्रतिमा लगाई गई है।
दरअसल राऊत किसी प्रतिमा को देखते हुए खड़े थे, और उसी वक्त छत्तीसगढ़ से पहुंची टीम भी वहीं थी। इसके बाद उन्हें यह जवाब देने में खासी मुश्किल हुई कि वे निजी प्रवास पर भी बिना इजाजत कैसे विदेश चले गए थे जिसके लिए इजाजत जरूरी है।
संपत्ति की तरह पासपोर्ट...
राज्य सरकार जिस तरह अपने सारे अफसरों-कर्मचारियों से हर बरस संपत्ति का ब्यौरा लेती है, उसी तरह हर बरस उनके परिवारों के इन्हीं लोगों के पासपोर्ट की कॉपी भी लेनी चाहिए कि घर का कौन-कौन आश्रित सदस्य या जीवनसाथी विदेश होकर आए हैं। अभी तो हालत यह है कि छोटे-छोटे से अफसर भी खरीदी के लिए चीन, और मस्ती के लिए बैंकाक इसी तरह जाते-आते हैं जैसे मुंबई-दिल्ली गए हों। पासपोर्ट की जांच हो जाए, तो सैकड़ों लोग सस्पेंड होंगे जिन्होंने विदेश यात्रा के बाद भी सरकार से कोई इजाजत नहीं ली है।
राज्य सरकार में यह चर्चा आम रहती है कि जिन अफसरों को विदेश यात्रा की इजाजत देनी होती है, वे इसी बात पर कुढ़ते रहते हैं कि वे यहीं बैठे हैं, और दूसरे लोग विदेश जा रहे हैं, इसलिए कई बार समय रहते इजाजत दी नहीं जाती है, हवाई टिकट आखिरी वक्त पर बहुत महंगी हो जाती है। जब विश्वरंजन डीजीपी थे, और अमरीका के बर्कले विश्वविद्यालय में उन्हें एक सेमिनार में नक्सल हालात पर बोलने के लिए आमंत्रित किया था, तो सरकार पर कोई आर्थिक बोझ नहीं आ रहा था क्योंकि अमरीकी विश्वविद्यालय पूरा खर्च उठा रहा था। लेकिन इसके बावजूद उनकी फाईल आखिरी वक्त पर मुख्य सचिव से बड़ी मुश्किल से मंजूर हुई थी, और महंगी टिकट लेकर उन्हें जाना पड़ा था।
सरकार बदली तो पार्किंग छिनी...
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के बीच बसे हुए महंत घासीदास संग्रहालय का चेहरा वक्त के साथ बदलते रहता है। पन्द्रह बरस भाजपा की सरकार रही, तो एक सबसे ताकतवर मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के छोटे भाई योगेश अग्रवाल छत्तीसगढ़ी फिल्मों को लेकर संग्रहालय के पूरे कैम्पस पर हावी रहे, और फिल्म से जुड़े लोगों की होली भी इस सरकारी संग्रहालय के कैम्पस में होती रही। फिर कुछ दूसरे लोगों की ताकत काम आई तो इस कैम्पस का बहुत बड़ा हिस्सा छत्तीसगढ़ी रेस्त्रां, गढ़कलेवा, के नाम पर दे दिया गया, और किसी को समझ नहीं आया कि शहर का यह सबसे बड़ा खुला रेस्त्रां सरकारी पार्किंग सहित कैसे किसी के कब्जे में आ गया। अब सरकार बदली तो वहां कुछ दूसरे लोगों की मर्जी काम आ रही है, और गढ़कलेवा को मिली हुई बहुत बड़ी पार्किंग बैरियर लगाकर बंद कर दी गई, और वहां तक जाने के लिए अब हाईवे का ही रास्ता बचा है। सत्ता की मेहरबानी से चलने वाले काम-धंधे इसी तरह कभी ऊपर उठते हैं, कभी नीचे आते हैं। वैसे इसी संग्रहालय से सरकार का संस्कृति विभाग काम करते आया है जिसमें मर्जी के कलाकारों को छांट-छांटकर उपकृत करने के आरोप लगते रहे हैं, और कमीशनखोरी के भी। कुल मिलाकर बात यह दिखती है कि सरकार का दखल न तो कारोबार में रहना चाहिए, और न ही कला में।
आखिरी वक्त निकल जाने के बाद
आखिरी वक्त पर मंजूरी की बात करें, तो राज्य सरकार के तबादले के मौसम का अटपटापन सामने आता है। अब जब जुलाई शुरू हो गई है, और पूरे प्रदेश में स्कूल-कॉलेज के दाखिले खत्म हो रहे हैं, स्कूलों में पढ़ाई शुरू हो चुकी है तब सरकारी अमले के तबादले शुरू हो रहे हैं, और ये तबादले अगस्त के महीने तक चलने वाले हैं। ऐसे में जाहिर है कि शहर बदलने की वजह से बच्चों के स्कूल-कॉलेज भी बदलेंगे, स्कूल यूनीफॉर्म भी बदलेगी, किताबें भी बदल जाएंगी, और बारिश के वक्त एक शहर से दूसरे शहर आते-जाते सामान भी भीगकर बर्बाद होने का खतरा रहेगा। लेकिन जो काम सरकार वित्त वर्ष समाप्त होने के बाद बिना किसी दिक्कत कर सकती थी, और गर्मियों में लोग शहर बदल सकते थे, उसे स्कूल-कॉलेज शुरू होने के बाद किया जा रहा है। सरकार को स्कूलों का वक्त तय करना हो, गर्मी या दीवाली की छुट्टी तय करनी हो, इन सबमें ऐसी ही बेरहमी दिखाई जाती है। पता नहीं क्यों कर्मचारियों और अधिकारियों के संगठन भी सरकार के सामने इस दिक्कत के खिलाफ क्यों नहीं बोलते हैं।
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प्रदेश में सत्ता हाथ से जाने के बाद भाजपा के नेता-विधायक काम धंधे मेें लग गए हैं। पिछले दिनों बड़े पैमाने पर पेट्रोल पंप का आबंटन हुआ, इसमें सबसे ज्यादा भाजपा या भाजपा से जुड़े लोगों की लॉटरी निकली। ऐसा नहीं है कि आबंटन में कोई गड़बड़ी हुई है। अभी तक प्रदेश में डेढ़ सौ से अधिक पंपों के लिए आबंटन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। पूरी प्रक्रिया पारदर्शी रही और आबंटन लॉटरी के जरिए हुआ।
सुनते हैं कि नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक की किस्मत थोड़ी खराब रही। वे भी अपने परिजनों के नाम से पेट्रोल पंप लेने के लिए प्रयासरत थे, लेकिन लॉटरी में परिजनों का नाम नहीं निकला। पूर्व मंत्री लता उसेंडी को बस्तर के बेहतर लोकेशन में पेट्रोल पंप आबंटित होने की खबर है। कुछ पूर्व मंत्रियों और एक-दो विधायकों को भी पेट्रोल पंप मिल गया है। चर्चा तो यह भी है कि कुछ नेताओं ने पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के जरिए जुगाड़ लगाने की कोशिश भी की, लेकिन उन्हें फटकार मिली।
वैसे पेट्रोल पंप में निवेश जोखिम बहुत कम रहता है और आय नियमित होती है। यही वजह है कि पेट्रोल पंप लेेने के लिए राजनेता ज्यादा उत्सुक रहते हैं। पूर्व सीएम अजीत जोगी, अमितेश शुक्ल, लाभचंद बाफना सहित कई नेताओं-परिजनों को पेट्रोल पंप आबंटित हुआ था। कई साल पहले दिग्गज राजनेता विद्याचरण शुक्ल ने अनौपचारिक चर्चा में माना था कि उन्होंने सौ से अधिक लोगों को पेट्रोल पंप दिलवाए हैं। खुद उनके परिवार के पास 5 पेट्रोल पंप रहे हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बनने से पहले कांग्रेस के लोगों का पेट्रोल पंप व्यवसाय में दबदबा रहा है, लेकिन अब भाजपा के लोगों ने कांग्रेसियों को काफी पीछे छोड़ दिया है। वैसे भी भाजपा के ज्यादातर बड़े नेता व्यवसाय से राजनीति में आए हैं और जोखिमों से बचने के लिए पेट्रोल पंप में निवेश को बेहतर मानते हैं।
ऐसे में कांग्रेस नेता सुभाष धुप्पड़ शायद अकेले ऐसे नेता रहे जिन्होंने बहुत मेहनत करके अपने चलते हुए दो पंपों को कंपनी को वापिस किया, कंपनी लेना नहीं चाहती थी, और उनके पीछे लगी रही कि वे इसे चलाएं, लेकिन वे अड़े रहे, और आखिर में पंप से छुटकारा पाए। वैसे कांग्रेस के कुछ दूसरे नेताओं के नाम यह तोहमत भी दर्ज है कि उन्होंने अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों को मिले हुए पेट्रोल पंपों को लेकर खुद चलाया।
...और पेट्रोल पंपों से पहले...
पेट्रोल पंप से पहले कांग्रेस के नेता राशन दुकानें चलाया करते थे, और उन्हें उस वक्त के पैमाने से कमाई का धंधा माना जाता था। फिर जब अजीत जोगी रायपुर के कलेक्टर थे, उन्होंने अधिकतर छात्र नेताओं को गिट्टी क्रशर का काम खुलवा दिया, और जीप-टैक्सी का परमिट दे दिया। ये दोनों ही काम सरकार जब चाहे दबोच सकती थी, और इस तरह छात्र नेताओं पर कलेक्टर का कब्जा बने रहा, धीरे-धीरे छात्र राजनीति बड़ी कमाई का जरिया बन गया, और छात्र आंदोलन खत्म हो गए।
कांग्रेस के नेताओं ने अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से एक और धंधे पर अपना एकाधिकार बना रखा था, सहकारी संस्थाओं का। मंडी से लेकर बैंक तक, और हाऊसिंग सोसाइटियों तक सत्यनारायण शर्मा, राधेश्याम शर्मा, गुरूमुख सिंह होरा, मोहम्मद अकबर जैसे कांग्रेस नेताओं का कब्जा रहा, और कांग्रेस की राजनीति इनके सहारे च
पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस को संसद भवन के सेंट्रल हॉल में अक्सर देखा जा सकता है। वे पूर्व सांसदों और पार्टी नेताओं के साथ गपियाते नजर आते हैं। भाजपा की गुटीय राजनीति में वे लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज के करीबी रहे हैं। आडवाणी-सुषमा खेमे का एक तरह से सफाया हो गया है। ऐसे में बैस का भी किनारे लगना स्वाभाविक था। अब वे भले ही सांसद नहीं रह गए हैं, लेकिन वे कोई अहम जिम्मेदारी संभालने के उत्सुक हैं। सात बार के इस सांसद के करीबी लोगों को उम्मीद है कि उन्हें किसी प्रदेश का राज्यपाल बनाया जाएगा। सेंट्रल हॉल में उनकी सक्रियता को इसी रूप में देखा जा रहा है।
हालांकि पैसे लेकर सवाल पूछने के आरोप में बर्खास्त सांसद प्रदीप गांधी भी अक्सर सेंट्रल हॉल में देखे जाते हैं। कुछ समय पहले प्रदीप गांधी, राहुल गांधी के साथ बतियाते दिखे थे। लोकसभा चुनाव के दौरान अटकलें लगाई जा रही थीं कि प्रदीप गांधी कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। मगर कांग्रेस उन्हें लेने के इच्छुक नजर नहीं आई। भाजपा ने भी उनकी कोई परवाह नहीं की। ऐसे में राहुल गांधी के संग फोटो खिंचाकर प्रदीप गांधी चर्चा में जरूर आ गए। जब प्रदीप गांधी संसद में सवाल पूछने के लिए रिश्वत मांगते वीडियो में कैद हुए थे, और उनकी सदस्यता बर्खास्त हुई थी, तो उन्होंने अपने गायत्री परिवार का साहित्य लेकर संसद के हर कार्यक्रम में जाना शुरू किया था और भूतपूर्व सदस्य होने के नाते कोई उन्हें मना भी नहीं कर सकते थे। इस तरह वे खबरों में बने रहे थे। ऐसे किसी विवाद में फंसे बिना भी रमेश बैस संसद भवन में बैठकर चर्चा में तो बने हुए हैं ही।
शत्रुओं पर विजय के लिए?
रायपुर उत्तर के पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी कामाख्या देवी के दर्शन के लिए असम गए हैं। कामाख्या पीठ तंत्र साधना के लिए मशहूर है। राजनेता शत्रुओं पर विजय के लिए यहां तंत्र साधना कराते हैं। सुंदरानी भी यहां परिवार के साथ पूजा-पाठ में लगे हैं। विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद पार्टी में उनकी स्थिति अच्छी नहीं रह गई है। उनकी पहचान सबसे बड़े व्यापारी नेता के रूप में रही है और एक तरह से चेम्बर ऑफ कॉमर्स की राजनीति उनके इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। मगर, अध्यक्ष जितेन्द्र बरलोटा के आगे वे कमजोर दिखने लगे हैं।
पार्टी के भीतर हाल यह है कि नगरीय निकाय चुनाव में उन्हें तगड़ी चुनौती मिलने वाली है। रायपुर उत्तर से टिकट के दावेदार रहे आरडीए के पूर्व अध्यक्ष संजय श्रीवास्तव, छगन मुंदड़ा और राजीव अग्रवाल जैसे नेता रायपुर उत्तर के ज्यादा से ज्यादा वार्डों में अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए अभी से व्यूह रचना तैयार कर रहे हैं ताकि विधानसभा चुनाव के लिए उनकी जमीन तैयार हो सके। यहां सांसद सुनील सोनी का दखल तो रहेगा ही, ऐसे में श्रीचंद के लिए आगे की राजनीति आसान नहीं रह गई है। पिछले दिनों उन्होंने बलपूर्वक ओवरब्रिज का उद्घाटन कर अपनी ताकत दिखाने की कोशिश भी की, लेकिन इसमें वे नाकाम रहे। इस प्रदर्शन में भाजपा कार्यकर्ताओं से ज्यादा मीडिया के लोग थे। ऐसे में पार्टी के भीतर और बाहर अपने विरोधियों पर जीत हासिल करने के लिए अदृश्य ताकतों की जरूरत होगी। ऐसे में कामाख्या देवी के दर्शन से उनकी इच्छापूर्ति होती है या नहीं, देखना है।
खाने की बर्बादी रोकने
सोशल मीडिया पर इन दिनों एक ऐसा वीडियो तैर रहा है जिसमें किसी दावत के बीच जूठी प्लेट रखने की जगह पर एक आदमी खड़ा है और वह लोगों को खाना जूठा छोडऩे से रोक रहा है, और जिद कर रहा है कि वे खाना खत्म करें। ऐसे में जाहिर है कि लोग अगली बार अधिक खाना लेकर जूठा छोडऩा भूल ही जाएंगे। इस बीच एक बर्तन निर्माता ने एक ऐसी थाली सामने रखी है जिसमें हिज्जे की एक मामूली गलती से परे बाकी बात एक अच्छी नसीहत है। अब इस थाली की फोटो सोशल मीडिया पर तैर रही है और अगर यह चलन में आती है, तो देखना है कि इसका असर लोगों पर होता है, या नहीं। लेकिन थाली से परे चीनी मिट्टी या प्लास्टिक जैसी प्लेटों पर भी अगर ऐसा ही लिखा हो, तो खाने की बर्बादी खासी रूक सकती है।
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पिछले दिनों संसद भवन के सांसद असदुद्दीन ओवैसी के साथ मेल मुलाकात पर पूर्व विधानसभा अध्यक्ष प्रेमप्रकाश पाण्डेय और पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर बुरी तरह ट्रोल हो गए। मुलाकात की तस्वीर सोशल मीडिया में वायरल होने के बाद भाजपा कार्यकर्ताओं ने दोनों को काफी सुनाया।
ओवैसी कट्टरपंथी मुस्लिम नेता माने जाते हैं और वे पीएम मोदी के घोर आलोचक हैं। भाजपाई उन्हें गोवध समर्थक और पाक परस्त तक करार देते हैं। ऐसे में प्रेमप्रकाश और अजय का उनके साथ हँस-हँसकर बात करने को समर्थक पचा नहीं पा रहे हैं। वैसे सेंट्रल हॉल में पक्ष-विपक्ष के लोग एक-दूसरे से मिलते हैं और आपस में बातचीत करते हैं। ऐसे में प्रदेश के नेताओं की ओवैसी से चर्चा कोई गलत भी नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि मुलाकात के दौरान पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल भी थे, लेकिन जैसे ही किसी को मोबाइल से तस्वीर लेते देखा, वे चुपचाप किनारे हो गए। तस्वीर में ओवैसी के साथ प्रेमप्रकाश-अजय के अलावा शिवरतन शर्मा भी कैद हो गए। भाजपाईयों ने उन्हें भी जमकर कोसा।
मुकेश गुप्ता की लुकाछिपी
नान-फोन टैपिंग प्रकरण में जांच का सामना कर रहे निलंबित डीजी मुकेश गुप्ता तीसरी बार भी ईओडब्ल्यू में पेश नहीं हुए। उन्होंने पारिवारिक कारणों का हवाला देकर गैरहाजिर रहने की सूचना भिजवा दी। ईओडब्ल्यू अब उन्हें और समय देने के लिए तैयार नहीं है। मुकेश गुप्ता पर विवेचना में सहयोग नहीं करने का आरोप लग रहा है और ईओडब्ल्यू इसको लेकर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सकती है।
सुनते हैं कि मुकेश गुप्ता का गैरहाजिर रहना बेवजह नहीं है। बेटी के एडमिशन के लिए भागदौड़ स्वाभाविक है। इसके चलते व्यस्तता भी समझ में आ रही है। लेकिन यहां आने के बाद मुकेश गुप्ता कुछ और समस्या में घिर सकते हैं। चर्चा है कि मिक्की मेहता प्रकरण की फाइल तैयार है। इस प्रकरण पर मुकेश गुप्ता के खिलाफ एक और एफआईआर हो सकती है। ऐसे में उनकी गिरफ्तारी भी हो सकती है। इन सबसे बचने के लिए मुकेश गुप्ता ईओडब्ल्यू में पेश नहीं हो रहे हैं। कुछ लोगों का कहना है कि वे जल्द ही एक बार फिर हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे और कोर्ट से राहत के लिए प्रयास करेंगे। खैर, अगले हफ्ते हाईकोर्ट में कई प्रभावशाली लोगों के प्रकरणों पर सुनवाई होगी। लोगों की निगाहें इन पर लगी हुई है।
बड़ी महंगी शांति
छत्तीसगढ़ में पिछले दिनों एक बहुत बड़ी और सनसनीखेज घटना हुई जिसमें सरकार की बड़ी फजीहत हो सकती थी। मामला चूंकि केंद्र सरकार से जुड़ा हुआ था, इसलिए दिल्ली में बैठे छत्तीसगढ़ के एक भूतपूर्व अफसर ने केंद्र में अपने संबंधों का इस्तेमाल करके इस मामले को शांत किया। लेकिन इस किस्म की शांति खासी महंगी पड़ती है, और पड़ी भी। इस मामले में सबसे अधिक हैरान यह बात करती है कि कैसे बुरे संबंधों के चलते हुए भी कैसी बड़ी मदद की गई। लेकिन पैसों में बड़ी ताकत होती है। ([email protected])
धनिक वर्ग से सरकारी सब्सिडी छोडऩे की अपेक्षा रहती है। पीएम की अपील पर लाखों लोगों ने रसोई गैस पर सब्सिडी छोड़ी भी है। लेकिन प्रदेश में कई नामी-गिरामी लोग सब्सिडी लेने में आगे रहे हैं। हार्टीकल्चर विभाग से तो बड़े पैमाने पर प्रभावशाली लोगों ने सब्सिडी हासिल की है।
विभाग से पॉली हाउस बनाने के लिए किसानों को सब्सिडी दी जाती रही है। वर्ष-2015-16 में एक सीनियर आईएएस ने अपने फॉर्म में पॉली हाउस बनाने के लिए लाखों रूपए की सब्सिडी हासिल की। खुद कृषि विभाग के मुखिया रहे हैं। खास बात यह है कि किसानों को मिलने वाली सब्सिडी अपनी पत्नी के नाम पर ली है। जबकि पत्नी भी सरकारी मुलाजिम हैं। विभाग के जानकार लोगों के बीच यह भी चर्चा है कि लाखों रुपये महीने तनख्वाह पाने वाले लोग अपने फॉर्म पर काम करने के लिए दर्जनों सरकारी कर्मचारियों को जिस तरह झोंककर रखते आए हैं वह भी सरकार में फेरबदल होने के बाद ही बंद हो पाया है।
न सिर्फ अफसर बल्कि प्रदेश के तीन बड़े उद्योगपतियों ने भी खुद को किसान बताकर पॉली हाउस बनाने के लिए सब्सिडी ली है। कुछ लोगों ने सूचना के अधिकार के जरिए प्रभावशाली- किसानों को मिलने वाली सब्सिडी की सूची हासिल कर ली है। देर-सवेर यह मामला गरमा सकता है। वैसे भी, निर्माण विभाग की तरह कृषि विभाग भी पिछले 15 सालों में भ्रष्टाचार को लेकर कुख्यात रहा है। सरकार बदलने के बाद कृषि विभाग में भ्रष्टाचार के कई प्रकरणों पर ईओडब्ल्यू-एसीबी ने जांच शुरू की है। ([email protected])
कांग्रेस विधायक मोहितराम की पार्टी-सरकार में पूछ परख बढ़ गई है। वजह यह है कि उन्होंने लोकसभा चुनाव में अपने विधानसभा क्षेत्र पाली तानाखार से कांग्रेस प्रत्याशी को करीब 61 हजार से अधिक मतों से बढ़त दिलाई, जिसके कारण पार्टी कोरबा सीट जीतने में कामयाब रही। वैसे प्रदेश में सबसे ज्यादा बढ़त वैशाली नगर सीट से भाजपा प्रत्याशी को मिली थी उन्हें करीब 63 हजार से अधिक वोटों की बढ़त मिली। ऐसे में जब मोदी फैक्टर के चलते जहां सीएम और ज्यादातर मंत्री अपने क्षेत्र से पार्टी प्रत्याशी को बढ़त नहीं दिला पाए, इन सबके बीच अकेले विधानसभा सीट पाली तानाखार से भारी बढ़त के सहारे कोरबा सीट जीतने पर मोहितराम को महत्व मिलना स्वाभाविक है।
हाल यह है कि सीएम और बाकी मंत्री उनकी अनुशंसाओं-सिफारिशों का विशेष ध्यान रख रहे हैं। सुनते हैं कि पंचायत मंत्री टीएस सिंहदेव ने तो एक कदम आगे जाकर यह तक कह दिया है कि सबसे ज्यादा मोहितराम के प्रस्ताव स्वीकृत किए जाएंगे। विधायकों में अपने यहां के पंचायतों में काम कराने की होड़ मची है। सभी विधायक अपने क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा काम स्वीकृत कराना चाहते हैं। ऐसे में लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन पर मोहितराम को तवज्जो दिया जाना गलत नहीं है।
उस दौर में भी गांधी-नेहरू!
राजधानी रायपुर में भाजपा सरकार के कार्यकाल में कलेक्टरी करने वाले ठाकुर राम सिंह ने अपने दफ्तर में कुर्सी के ठीक पीछे गांधी-नेहरू की बड़ी सी तस्वीर लगा रखी थी जो कि वे अपने पिछले हर दफ्तर में भी लगाते थे, और साथ लिए चलते थे। जिस भाजपा की नजर में नेहरू आजादी के बाद से अब तक की सभी सरकारी गलतियों के अकेले गुनहगार रहे, उनकी तस्वीर को इस तरह खुलकर लगाकर रखना कम हौसले की बात नहीं थी। दफ्तर में उनकी जितनी तस्वीरें खिंचती थीं, सबमें उनके पीछे गांधी-नेहरू दिखते थे। आज तो प्रदेश में कांगे्रस की सरकार है, और देखना है कि गांधी-नेहरू की इज्जत किस-किस दफ्तर में है। राज्य सरकार को कम से कम अपने सारे अमले को गांधी-नेहरू की दो-चार किताबें इस उम्मीद के साथ तोहफे में देनी चाहिए कि वे इस सरकार की सोच को कुछ तो समझ सकें।
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पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा का रिजल्ट जल्द घोषित करने के लिए पुलिस महकमे पर दबाव है। करीब दो हजार से अधिक आरक्षकों की भर्ती के लिए पिछली सरकार में प्रक्रिया शुरू हुई थी और रिजल्ट बनने तक चुनाव आचार संहिता लागू हो गई थी। हाईकोर्ट ने भी सारी प्रक्रिया पूरी कर दो महीने के भीतर रिजल्ट घोषित करने के आदेश दिए हैं। मगर सरकार से जुड़े लोग पूरी प्रक्रिया ही निरस्त कर नए सिरे से भर्ती चाहते हैं।
सुनते हैं कि आरक्षकों की भर्ती के एवज में भारी लेन-देन हुआ था। चर्चा है कि इसमें एक बड़े बंगले के कई लोगों ने जमकर माल भी बनाया। अब सरकार बदल गई, तो पूरी प्रक्रिया निरस्त करने के लिए भी दबाव बना है। जो लोग नियुक्ति के लिए काफी कुछ दे चुके हैं, उन्हें मालूम है कि उनका चयन हो चुका है, ऐसे लोग रकम डूबने की आशंका के चलते रिजल्ट जल्द जारी करने के लिए भागदौड़ कर रहे थे। इन सबने हाईकोर्ट के आदेश के बाद राहत की सांस ली है।
हम साथ-साथ नहीं हैं...
भाजपा विधायकों का एक खेमा पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल की अगुवाई में दिल्ली में डेरा डाले हुए हैं। उनके साथ अजय चंद्राकर, नारायण चंदेल, शिवरतन शर्मा और प्रेमप्रकाश पाण्डेय भी हैं। इन सबों ने अपने पुराने साथी केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर और प्रहलाद पटेल से मुलाकात की। वे पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष जगतप्रकाश नड्डा से भी मिलने वाले हैं। नड्डा यहां प्रदेश के प्रभारी रहे हैं और सभी से बेहतर संबंध भी हैं। खास बात यह है कि प्रदेश के सभी नेता अब साथ-साथ दिख रहे हैं।
हालांकि ये सभी एक खेमे के हैं, लेकिन सरकार में थे, तो इनमें से अजय चंद्राकर और शिवरतन शर्मा, सीएम रमन सिंह के ज्यादा नजदीक दिखते थे, लेकिन नेता प्रतिपक्ष के चयन के दौरान जब रमन खुलकर धरमलाल कौशिक के पक्ष में दिखे, तो ये दोनों उनसे छिटक गए। पिछले दिनों मप्र के पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान के यहां भोपाल जाने का कार्यक्रम बना, तो बृजमोहन खेमा एक साथ गया। इसके अगले दिन रमन सिंह, धरम कौशिक और एक-दो अन्य लोगों को लेकर गए। विधानसभा चुनाव में हार के बाद साफ नजर आने लगा है कि हम साथ-साथ नहीं हैं...।
मरीज मर रहे और प्रेम चल रहा
प्रदेश के एक बड़े सरकारी अस्पताल के कर्ता-धर्ता चिकित्सक को आनन-फानन में हटा दिया गया। सरकार अस्पताल की दशा सुधारने के लिए जोर दे रही थी, लेकिन चिकित्सक महोदय नर्स के साथ प्यार की पींगें बढ़ाने में व्यस्त थे। ड्यूटी के दौरान भी दोनों घंटों कमरे में बंद रहते थे। अस्पताल में चिकित्सकों की कमी के कारण मरीज तो परेशान थे ही, कर्मचारी भी हलाकान थे। घपले-घोटालों की वजह से अस्पताल पहले ही सुर्खियों में रहा है। अब चिकित्सक-नर्स के प्रेम के किस्से बाहर आने लगे। धीरे-धीरे मंत्री तक बात पहुंच गई, उन्होंने तुरंत चिकित्सक हटाने का फरमान जारी कर दिया। अब चिकित्सक की पोस्टिंग ऐसी जगह कर दी गई है जहां उन्हें खलल डालने वाला कोई नहीं है। ([email protected])
छत्तीसगढ़ राज्य के दवा निगम में भ्रष्टाचार की परतें खुल रही हैं। सरकार ने निगम में भ्रष्टाचार की जांच का जिम्मा ईओडब्ल्यू को सौंप दिया है। चर्चा है कि निगम के पूर्व एमडी का करीबी दुर्ग का एक ट्रांसपोर्टर भी भ्रष्टाचार के लपेटे में आ सकता है। सुनते हैं कि एमडी ने ट्रांसपोर्टर को दवा सप्लायर बना दिया था। और ट्रांसपोर्टर ने करोड़ों की दवा सप्लाई भी की। अब प्रकरण की जांच शुरू हो रही है, तो जांच-पड़ताल को प्रभावित करने की हर स्तर पर कोशिश हो रही है। इसके लिए कांकेर जिले के एक कांग्रेस विधायक की मदद भी ली जा रही है। ट्रांसपोर्टर का कांकेर जिले में बड़ा काम है और कांग्रेस विधायक को अक्सर उनके साथ देखा जा सकता है। अब विधायक महोदय, जांच-पड़ताल की रफ्तार को धीमा करने में कितनी मदद कर पाते हैं, यह देखना है, वैसे एमडी रहे हुए इस आईएफएस को अब बाकी जिंदगी, और कई पीढिय़ों के लिए कोई काम करने की जरूरत रह नहीं गई है, बस इतना सब कुछ बाहर रह जाए, और खुद भीतर चला जाए, ऐसा न हो इसी की कोशिश चल रही है।
राहुल पूछते हैं कल्लूरी के बारे में
सरकार में सबसे ऊपर के लोगों के बीच यह चर्चा होती है कि पूरे छत्तीसगढ़ के पुलिस अफसरों में राहुल गांधी अकेले कल्लूरी के बारे में ही पूछताछ करते हैं क्योंकि देश के अलग-अलग बहुत से तबकों के लोगों ने राहुल गांधी से कई बार बस्तर में कल्लूरी के काम के बारे में बताया है। अब जब तीनों एडीजी हो गए हैं, तो दुर्ग में आईजी की कुर्सी पर एडीजी हिमांशु गुप्ता हैं, और चुनाव के पहले के प्रभारी आईजी, डीआईजी डांगी भी वहीं पर उन्हीं के दफ्तर में हैं जिन्हें राजनांदगांव जिले का प्रभार दिया गया है। एक ही आईजी रेंज में अधिक काम न होने से हो यह रहा है कि डांगी बच्चों की पे्ररणा के लिए लेख लिखकर चारों तरफ भेज रहे हैं। यह एक अलग बात है कि राजधानी रायपुर में पुलिस ने जो एक नया स्कूल शुरू करने की तैयारी की थी, और जिसके लिए डीएवी नाम के शैक्षणिक संस्थान से समझौता हो रहा था, वह स्कूल अधर में लटका हुआ है। डीएवी की अपनी स्कूलों का खराब नतीजा देखते हुए मुख्यमंत्री की बैठक में इसका नाम खारिज कर दिया गया, और अब पुलिस महकमा अपने भीतर से एसपी के दर्जे का प्राचार्य और बाकी नीचे के कर्मचारी ढूंढ रहा है ताकि स्कूल शुरू हो सके। रतनलाल डांगी को बच्चों की जितनी फिक्र है उसे देखते हुए स्कूल का प्रिंसिपल बनाना भी अच्छा काम हो सकता है।
मीडिया की जुबान...
मीडिया की जुबान बड़ी तेजी से जनता की असल जिंदगी में भी इस्तेमाल होने लगती है। अभी रायपुर के एक मॉल में कपड़ों के एक बड़े ब्रांड की सेल लगी हुई है और एक परिवार में लड़की ने पिता से कहा कि उसे वहां से कुछ कपड़े दिलवा दें। पिता खुशी-खुशी तैयार हुए, तो बेटा खड़ा हो गया कि एक ब्रांड के जूतों पर भी डिस्काउंट चल रहा है, और वह भी मॉल चलेगा, जूते लेने के लिए। अब घर में अकेले बच गई महिला कहां पीछे रहती, उसने भी अपनी कई जरूरतों पर उसी मॉल में डिस्काउंट बताया, और कहा कि वह भी साथ जाएगी।
यह सब देखकर हड़बड़ाए हुए आदमी ने कहा-इसी को मॉब-लिंचिंग कहते हैं...
दुर्ग पुलिस में अटपटी बातें
पुलिस विभाग में लोगों की तैनाती में कई दिक्कतें चल रही हैं। अब दुर्ग में लोकसभा चुनाव के पहले डीआईजी रतन लाल डांगी को आईजी का काम दिया गया था। लेकिन चुनाव के दौरान यह नहीं चलता, इसलिए हिमांशु गुप्ता को आईजी बनाकर भेजा गया जिन्हें कि उस वक्त तक प्रमोशन पाकर एडीजी हो जाना था। खैर, प्रमोशन लेट होता गया और डीपीसी हो जाने के बाद भी महीनों तक वह फाईल रूकी रही क्योंकि जिन तीन आईजी को एडीजी होना था, उसमें से एक, एसआरपी कल्लूरी की शोहरत देश भर में ऐसी थी कि सरकार लोकसभा चुनाव के पहले उन्हें प्रमोशन देना नहीं चाहती थी। नतीजा यह हुआ कि हिमांशु गुप्ता और जीपी सिंह भी महीनों तक आईजी ही बने रहे, और फाईल पर उनका प्रमोशन प्रस्तावित होकर पड़े रहा।
आखिरकार मोहन मरकाम की प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर ताजपोशी हो गई। यह सब कुछ आसान नहीं था। बस्तर से जब प्रदेश अध्यक्ष बनाने की बात आई, तो सीएम भूपेश बघेल ने प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया को विश्वास में लेकर पार्टी हाईकमान को मरकाम का नाम सुझाया। मगर, हाईकमान इस मसले पर स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव को लेकर निश्चिंत होना चाहती थी। सुनते हैं कि सिंहदेव से पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के वेणुगोपाल ने चार बार फोन पर बात की। ऑर्डर निकलने से पहले उन्हें फिर फोन किया और पूछा कि क्या मरकाम के नाम पर आपत्ति तो नहीं है? सिंहदेव ने साफ शब्दों में कहा कि भूपेशजी की पसंद पर उनकी पूरी रजामंदी है। तब कहीं जाकर मरकाम का ऑर्डर निकल पाया। हाईकमान इस बात को लेकर ज्यादा खुश है कि विधानसभा चुनाव से पहले वाली भूपेश-सिंहदेव की जोड़ी अभी भी कायम है। दोनों के बीच अंडरस्टैडिंग बनी हुई है। जबकि मध्यप्रदेश में कांग्रेस के बड़े नेता आपस में टकरा रहे हैं। यह एक अलग बात है कि सिंहदेव कई मौकों पर मीडिया के साथ बातचीत में अपने दिल-दिमाग की बातों को इतने साफ-साफ खुलासे से कह देते हैं कि ऐसा लगता है कि उनके मन में भूपेश के खिलाफ कुछ है। अब जैसे लोकसभा नतीजों के पहले वे बार-बार यह बोलते रहे कि अगर 11 में से सात सीटें कांगे्रस को न मिलीं तो यह कांगे्रस की हार होगी। इसके अलावा उन्होंने सरगुजा में कांगे्रस की हार के बारे में भी यह साफ-साफ कहा कि वहां की जनता इस बात से निराश थी कि उन्हें (सिंहदेव को) मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया था। ऐसी छोटी-छोटी बातें उनके मिजाज का हिस्सा है, और भूपेश बघेल से बुनियादी मुद्दों पर उनका मतभेद नहीं है ऐसा लगता है।
दारू बचाने काम आया धर्म
भूपेश सरकार प्रदेश में पूर्ण शराबबंदी लागू करने की दिशा में कदम उठा रही है। और इस पर सुझाव देने के लिए पूर्व मंत्री सत्यनारायण शर्मा की अध्यक्षता में प्रमुख राजनीतिक दलों के विधायकों की समिति का गठन किया गया है। मगर, दिक्कत यह है कि प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा समिति के सदस्य के लिए कोई नाम नहीं दे रही है। पिछले दिनों अंतरराष्ट्रीय नशा मुक्ति दिवस के मौके पर आयोजित एक कार्यक्रम में सत्यनारायण शर्मा ने आरोप लगाया कि विपक्ष शराबबंदी के लिए गंभीर नहीं है। उनका मानना है कि सिर्फ सरकारी प्रयासों से शराबबंदी सफल नहीं हो सकती है। गुजरात और बिहार, जहां पूर्ण शराबबंदी है वहां पड़ोसी राज्यों से शराब की तस्करी बड़े पैमाने पर हो रही है।
सत्यनारायण शर्मा ने बताया कि इन राज्यों में शराब तस्करी के लिए नए-नए तरीके निकाले जा रहे हैं। उन्होंने किस्सा सुनाया कि राजस्थान में उनके कुछ परिचित युवा कार से गुजरात जाने के लिए निकले। रास्ते में उन्होंने एक कैरेट बीयर डिक्की में रखवा लिया। वे जब गुजरात सीमा पर पहुंचे, तो उन्हें एहसास हुआ कि वहां शराबबंदी है। दोनों राज्यों की सीमा पर जबदस्त चेकिंग हो रही थी। युवकों को अपनी बीयर बरामद होने का डर था। तभी उन्होंने एक रास्ता निकाला। उनमें से एक जो पतला-दुबला था उसके कपड़े निकलवा दिए और बिना कपड़ों के कार में बिठा दिया। बाकी लोग चेकिंग कर रहे पुलिस कर्मियों के पास पहुंचे और कहा कि एक धार्मिक व्यक्ति बैठे हैं, जल्दी चेकिंग कर ली जाए ताकि उन्हें दिक्कत न हो। पुलिस कर्मियों ने कार में समीप आए और बिना कपड़ों में बैठे युवक को देखा और नमस्कार कर बिना चेकिंग कर कार जाने दिया। इस तरह पुलिस की नजरों से अपनी बीयर बचा ली।
मुकेश गुप्ता के लोग तैनात
मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के जिले में मौजूद दुर्ग आईजी दफ्तर की एक दिलचस्प बात यह भी है कि यहां मौजूद एक डीएसपी, सरकार के निशाने पर चल रहे आईपीएस मुकेश गुप्ता का एकदम खास है, और मुकेश गुप्ता के खिलाफ चल रही जांच का एक बड़ा हिस्सा दुर्ग जिले में ही है। विभाग के एक पुराने लेकिन छोटे अफसर का कहना है कि मुकेश गुप्ता ने अपनी पूरी नौकरी में रायपुर के सिविल लाइन थाने, और दुर्ग के एक थाने में किसी भी समय अपनी मर्जी के खिलाफ तैनाती नहीं होने दी क्योंकि उनसे जुड़े मामले जब भी खुलते, इन्हीं दोनों थानों में खुलते। आज भी इन दोनों थानों में उन्हीं के भरोसे के लोग तैनात हैं, और आईजी ऑफिस में एक डीएसपी भी। उनके अलावा एसीबी के दफ्तर में भी मुकेश गुप्ता के बहुत भरोसे के कर्मचारी अभी भी हैं, और बातें लीक करते हुए पकड़ाने पर इसमें से एक की अभी वर्दी में ही उस दफ्तर में पिटाई हुई है, और वहां से हटा दिया गया है।
अब पुलिस विभाग में डीजी गिरिधारी नायक के रिटायर होने, और तीन एडीजी बनने के बाद नए सिरे से तैनाती का बड़ा काम खड़ा हुआ है, इसी वक्त शायद दीपांशु काबरा की बारी भी आए जो कि पुलिस मुख्यालय में फिलहाल बिना काम के बिठाए गए आईजी हैं।
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बिलासपुर के आबकारी विभाग के एक बाबू पर पिछली सरकार के वक्त एसीबी का छापा पड़ा था। बाबू वैसे तो आबकारी विभाग के मालिकों का चहेता था, और उसका बड़ा दबदबा था, वह खुलेआम चखना की दुकानें चलाने का हक बेचता था, और सबसे बड़ी बात यह कि एसीबी ने अपने छापे में उसके पास करोड़ों की संपत्ति पकड़ी थी। मामले के सुबूत पुख्ता थे, और उसे अदालत तक ले जाने की तैयारी चल रही थी। इस बीच अभी अचानक एसीबी के मुखिया ने उसकी फाईल बुलवाई, और उसके खिलाफ मामले को खारिज कर दिया। खुद विभाग के लोग यह जानकर हक्का-बक्का रह गए कि यह क्या हो गया? मीडिया के लोगों ने एसीबी के एडीजी से इस बारे में पूछा, तो उन्हें इसका सिर-पैर कुछ नहीं मालूम था। और उनकी जानकारी से परे ऊपर-ऊपर यह फाईल सीधे डीजी तक पहुंची, और वहां इस प्रकरण के खात्मे का निर्णय लिया गया, आनन-फानन आदेश जारी कर दिया गया। इसी आदेश में फाईल की बाकी जानकारी भी है कि अचल संपत्ति के 172 पन्ने, बैंक/डाकघर के 118 पन्ने, एफडी के 23 पन्ने, एलआईसी के 4 पन्ने वगैरह-वगैरह। हालत यह है कि जिन लोगों ने भाजपा सरकार के दौरान बरसों तक ऐसे भ्रष्ट और कमाऊ विभाग पर राज किया, वे लोग अपने खिलाफ बने-बनाए भ्रष्टाचार और अनुपातहीन संपत्ति के मामले से इस तरह छुटकारा पा रहे हैं, और आनन-फानन पा रहे हैं।
पिछले कुछ समय से एसीबी को लेकर प्रदेश के कमाऊ विभागों में खुली चर्चा है कि सरगुजा और बिलासपुर संभाग के लोगों को बचाने के लिए प्रदीप सिंह नाम का एक एजेंट नियुक्त किया गया है, और बस्तर के लोगों को बचाने के लिए नागेश नाम का। ऐसी चर्चा है कि जिस तरह वन-डे क्रिकेट के आखिरी पांच ओवर में सिर्फ चौके-छक्के मारे जाते हैं, इस दफ्तर में भी आखिरी के महीनों में उसी रफ्तार से रन बन रहे हैं। भाजपा सरकार के समय फंसे हुए सारे भ्रष्ट सरकारी लोग किसी मॉल की सेल की तरह के इस मौसम का फायदा उठा सकते हैं। वैसे जिस हड़बड़ी में डिस्काऊंट पर बेकसूरी के सर्टिफिकेट बेचे जा रहे हैं, वह हड़बड़ी अदालत में हो सकता है कि खड़ी न हो पाए, और कोई जज ऐसे खात्मे को मानने से इंकार कर दे।
रहस्यमय वीआईपी लिस्टें
राजधानी नया रायपुर में एक गोल्फ सिटी बनाने के लिए पिछली सरकार के मंत्रिमंडल ने एक ऐसा बड़ा जमीन आबंटन किया था जो चौंकाने वाला था, लेकिन उसकी फाईल पुख्ता बनाई गई थी, इसलिए नई सरकार भी उसमें कुछ कर नहीं पा रही है। लेकिन अगर सरकार इस गोल्फ सिटी में बनाए गए करोड़ों के बंगलों को पाने वाले लोगों की लिस्ट देखे, तो उसमें उस वक्त के अधिकतर ताकतवर अफसरों के नाम मिल जाएंगे, या ऐसे कोई दूसरे नाम मिल जाएंगे जिनके पीछे मालिकाना हक उन्हीं ताकतवर अफसरों का है। इनमें से एक बड़े ताकतवर अफसर को तो भूपेश सरकार ने किनारे कर दिया है, लेकिन लिस्ट खासी लंबी है। यह कुछ उसी किस्म की लिस्ट है जिस तरह चर्चित और विवादास्पद, अब गुजर चुके बिल्डर संजय बाजपेयी की कॉलोनी स्वागत विहार में प्लॉट पाने वाले अफसरों और उनके रिश्तेदारों के नाम थे। वही वजह थी कि वह लिस्ट हमेशा दबी रही, और कभी सामने नहीं आ पाई। सूचना का अधिकार भी इस अड़ंगे को पार करके लिस्ट तक नहीं पहुंच पाया। इसी तरह जहां-जहां सिर्फ अफसरों या जजों के लिए कॉलोनियां बनीं, मंत्रियों और विधायकों के लिए कॉलोनियां बनीं, वहां-वहां तमाम फाईलें, और तमाम लिस्टें जनता की पहुंच से बाहर ही रहीं।
तीर-कमान, और चेतावनी
बस्तर में हुई अवैध कटाई के पीछे एनएमडीसी है, या कोई और, इसकी जांच का जिम्मा वन विभाग को दिया गया है। जब जांच अफसर ऐसे नक्सल इलाके में पहुंचे, तो उनके पहले दो दिन से वहां वन विभाग के स्थानीय छोटे कर्मचारी जा रहे थे। बस्तर में तैनात एक अफसर ने बताया कि जब बड़े अफसर कटाई देखने पहुंचे, तो कुछ ही देर में तीर-कमान लिए हुए आदिवासियों की टोलियां वहां पहुंचने लगीं, और जांच दल के साथ-साथ कुछ दूरी से चलने लगीं। इसके बाद उन्होंने स्थानीय कर्मचारियों को बुलाकर कहा कि यहां आने से, और अफसरों को लाने से मना किया गया था, उसके बावजूद लेकर आना ठीक नहीं है। उनके तेवर देखते हुए स्थानीय कर्मचारियों ने आगे बढऩा खतरनाक बताया और कहा कि साहब लोग तो लौट जाएंगे, उन्हें तो इसी इलाके में जीना है। कटाई की जांच पूरी नहीं हो पाई, और पूरी टीम को लौटना पड़ा।
दंतेवाड़ा और बस्तर विधानसभा उपचुनाव संभवत: अक्टूबर में होंगे। विधायक भीमा मंडावी की हत्या के चलते दंतेवाड़ा सीट खाली हुई है, जबकि बस्तर सीट विधायक दीपक बैज के सांसद बनने की वजह से रिक्त हुई है। बस्तर से प्रत्याशी कौन होगा, यह दोनों प्रमुख दल भाजपा और कांग्रेस में अभी तय नहीं है, लेकिन दंतेवाड़ा से दोनों ही दल महिला प्रत्याशी उतार सकती हैं।
दंतेवाड़ा से भाजपा दिवंगत विधायक भीमा मंडावी की पत्नी ओजस्वी मंडावी को टिकट दे सकती है। पार्टी के बड़े नेताओं ने मंडावी के घर जाकर इस आशय के संकेत दे भी दिए हैं। जबकि कांग्रेस दिवंगत पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा की पत्नी पूर्व विधायक देवती कर्मा को फिर चुनाव मैदान में उतार सकती है। देवती कर्मा पिछली बार विधानसभा चुनाव में करीब साढ़े 7 सौ वोटों से चुनाव हार गई थी। इस हार के पीछे भी जिला प्रशासन की भूमिका अहम रही थी।
कर्मा परिवार हार के लिए तत्कालीन कलेक्टर सौरभ कुमार को अभी भी कोसता है। चर्चा है कि सौरभ कुमार ने कर्मा परिवार में फूट डलवाने की कोशिश की थी। देवती के बड़े बेटे छविन्द्र कर्मा बगावत कर चुनाव मैदान में उतर गए थे। बाद में उन्हें मैदान में हटने के लिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को हस्तक्षेप करना पड़ा। तब तक काफी माहौल खराब हो चुका था। खैर, इस बार कर्मा परिवार एकजुट दिख रहा है और सीट पर कब्जा करने के लिए अभी से मेहनत करना शुरू कर दिया है।
यह बदला तो नहीं...
अकसर रमन सिंह, भूपेश बघेल सरकार पर बदलापुर की राजनीति का आरोप लगाते हैं, पर ऐसा नहीं है। यदि ऐसा होता तो रमन सिंह की सेवा में तैनात कर्मचारी हरि बहादुर को सरकार वापस बुला लेती। बहादुर पूर्व सीएम-परिवार के बेहद करीबी माने जाते हैं, और आवासीय आयुक्त कार्यालय के चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं। वे पिछले 15 साल से रमन सिंह का ख्याल रख रहे हैं। रमन सिंह, सीएम पद से हट गए, लेकिन बहादुर उनके यहां अभी भी सेवाएं दे रहा है। सरकार ने भी उदारतापूर्वक उनकी सेवाएं जीएडी को सौंपने के आदेश दिए हैं, ताकि प्रतिनियुक्ति पर रमन सिंह के साथ रहने में कोई दिक्कत नहीं आए।
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नए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की खोज चल रही है। चूंकि स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव ने बस्तर से अध्यक्ष बनाने की वकालत की थी। यह तकरीबन तय माना जा रहा है कि बस्तर के नेता को ही प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी जाएगी। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी इस सिलसिले में पूर्व मंत्री मनोज मंडावी और कोंडागांव के दूसरी बार के विधायक मोहन मरकाम का इंटरव्यू ले चुके हैं। दोनों में से अध्यक्ष कौन बनेगा, इसको लेकर पार्टी हल्कों में कई तरह की चर्चा है। सुनते हैं कि स्वास्थ्य मंत्री श्री सिंहदेव, पूर्व मंत्री मनोज मंडावी को अध्यक्ष बनाने के पक्ष में बताए जाते हैं। जबकि सीएम भूपेश बघेल, मोहन मरकाम का नाम आगे किया है। देखना है कि हाईकमान, दोनों में से किसकी राय को महत्व देता है। लेकिन इनमें से किसी के भी प्रदेश अध्यक्ष बनने से यह होगा कि कांगे्रस और भाजपा दोनों के प्रदेश अध्यक्ष बस्तर के रहेंगे, और राज्य सरकार और केंद्र सरकार, दोनों में सरगुजा से मंत्री रहेंगे। प्रदेश के दो आदिवासी इलाके बिल्कुल अलग-अलग किस्म के हैं, और इनकी राजनीति भी इनको अलग-अलग मानकर ही तय की जाती है। इसके पहले बस्तर से प्रदेश भाजपा के कोई अध्यक्ष नहीं बने थे, और वहां से मंत्री ही मंत्री रहते थे। दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ भाजपा के अध्यक्ष अमूमन सरगुजा से आते थे।
ताकतवरों की जांच...
प्रदेश के एक डीजी, गिरधारी नायक ने मुकेश गुप्ता के खिलाफ एक लंबी जांच रिपोर्ट तो बना ली है, लेकिन ऐसी चर्चा है कि उसके आधार पर अगर मुकेश गुप्ता पर कोई कार्रवाई करनी हो, तो उस पर सरकार को बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। जांच रिपोर्ट में बहुत सी बातें ऐसी भी जुड़ जाती हैं जिनको अदालत में साबित करना मुमकिन नहीं रहता है। इसीलिए जांच रिपोर्ट का वजन मुकदमे के मुकाबले बहुत कम रहता है। अब सरकार के सामने एक दिक्कत यह है कि मुकेश गुप्ता, अजीत-अमित जोगी, पुनीत गुप्ता के खिलाफ इतने सारे मामले खड़े हो गए हैं कि उन्हें पहले तो जांच में, और फिर अदालत में किसी तर्कसंगत-न्यायसंगत नतीजे तक कैसे पहुंचाया जाए? एक चर्चा यह भी सुनाई पड़ती है कि जांच में लगे हुए कई अफसर किसी और जगह जाने की फिराक में भी हैं। जिन लोगों के खिलाफ मामले हैं, उन्हें इतने बड़े-बड़े वकीलों की मदद हासिल है, या जोगी पिता-पुत्र हैं जो कि मुकदमेबाजी के बड़े लंबे तजुर्बेकार हैं, इसलिए वे बरसों तक किसी फैसले से दूर चल सकते हैं। जांच में लगे अफसरों को भी उम्मीद है कि इस बीच वे खिसक पाएंगे, और उनका खिसकना लोगों के बचने के लिए भी मददगार हो सकता है। कुल मिलाकर ये सारी जांच बहुत आसान नहीं रह गई हैं।
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विजेन्द्र कटरे की संविदा नियुक्ति पर स्वास्थ्य विभाग में मंत्री टीएस सिंहदेव और संचालक शिखा राजपूत तिवारी के बीच विवाद की स्थिति पैदा हो गई है। सिंहदेव के आदेश पर शिखा राजपूत तिवारी को नोटिस थमा दिया गया। यह कहा गया कि कटरे की नियुक्ति के प्रकरण में मंत्री आदेश की अवहेलना की गई।
नोटिस में कहा गया कि विभागीय मंत्री ने नई नियुक्ति तक कटरे को पद पर बनाए रखने के लिए कहा था, लेकिन उन्हें संविदा पर फिर नियुक्त कर दिया गया। खास बात यह है कि आईएएस अफसर को विभाग के अवर सचिव ने नोटिस जारी किया। पहली नजर में यह नोटिस ही त्रुटिपूर्ण दिख रहा है।
वजह यह है कि आईएएस अफसर को नोटिस देने के लिए सीएम-सीएस का अनुमोदन होना चाहिए, मगर विभागीय सचिव ने इस तथ्य को नजरअंदाज कर दिया। चूंकि कटरे को एक लाख से अधिक वेतन मिलता था, स्वास्थ्य संचालक ने मानदेय घटाकर 50 हजार कर दिया, जो कि उनके अधिकार क्षेत्र में था। इसमें में भी कोई गलती नहीं दिख रही है। और चर्चा है कि मंत्री-सचिव और संचालक के बीच तालमेल न होने के कारण ऐसी स्थिति निर्मित हुई है।
जहां तक विजेन्द्र कटरे का सवाल है। पिछली सरकार उन्हें गुजरात से लाई थी और उन्हें बीमा योजना का एडिशनल सीईओ बनाने के लिए तमाम नियम-कानून को दर किनार किया गया था। कटरे पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं, जो प्रमाणित भी हैं। ऐसे में उन्हें तुरंत पदमुक्त कर किसी अन्य अफसर को प्रभार न देना भी चर्चा का विषय है। कुछ इसी तरह का विवाद यूनिवर्सल हेल्थ स्कीम को लेकर खड़ा हुआ था। कैबिनेट में इसको लेकर मंत्रियों ने भी सवाल खड़े किए थे। कैबिनेट की मंजूरी के बिना इस स्कीम को करने आपत्ति जताई थी। पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अजय चंद्राकर ने भी सरकार को आड़े हाथों लिया था।
स्वास्थ्य विभाग पिछले 15-20 बरस में भ्रष्टाचार की कब्रिस्तान बनकर रह गया है, और आज टी.एस. सिंहदेव उसे सुधारने की हड़बड़ी में दिख रहे हैं। लेकिन सरकार में अच्छी नीयत से भी अगर बुरी तरह हड़बड़ी की जाती है, तो वह अदालत में खूब फटकार पाती है। सत्ता के हुक्म से कई अफसर गलत हुक्म जारी कर बैठते हैं, और शिखा राजपूत तिवारी के खिलाफ यह ऐसा ही आदेश जारी हुआ दिख रहा है जिससे एक शर्मिंदगी खड़ी होने के पूरे आसार हैं।
इस बीच प्रदेश के एक सबसे बड़े सरकारी अस्पताल को चलाने वाले के खिलाफ सार्वजनिक रूप से ऐसे मामले सामने आए हैं जिन्हें देखकर सत्ता से जुड़े हुए कुछ लोग बहुत बुरी तरह विचलित हैं, और उन्हें आशंका है कि इस डॉक्टर को शोषित महिलाओं के घर वाले किसी दिन अस्पताल से पीटते-पीटते बाहर लाएंगे, और उस दिन अस्पताल की इतनी महिला कर्मचारी पीटने में जुट जाएंगी कि उसे बचाना पुलिस के लिए भी मुमकिन नहीं होगा। यह बात स्वास्थ्य मंत्री तक अब तक पहुंची है या नहीं, और इसका कोई असर हुआ है या नहीं यह तो आने वाले दिन बताएंगे जब मंत्री अपनी खुद की मुनादी के मुताबिक अस्पतालों को चलाने का जिम्मा डॉक्टरों से हटाएंगे।
टकसालों पर कब्जा जारी
विजेन्द्र कटरे जैसे विवादास्पद और भ्रष्टाचार की तोहमतों से घिरे हुए अफसर को जारी रखने की सरकारी इच्छा हैरान करती है, लेकिन ऐसी मिसालें जगह-जगह बिखरी हुई हैं। बहुत से परले दर्जे के भ्रष्ट लोग, जिनके खिलाफ लंबी-चौड़ी नगद रिकवरी के हुक्म हो चुके थे, वे लगातार आगे बढ़ते-बढ़ते आसमान तक पहुंच गए हैं, और अब उनके पांव भी जमीन पर नहीं पड़ते। पिछले आरटीओ मंत्री राजेश मूणत के सबसे चहेते होने के नाते जो अफसर रायपुर का आरटीओ बनाया गया था, वह इस सरकार में भी न सिर्फ जारी है, बल्कि उसे स्टेट गैरेज का अतिरिक्त प्रभार भी दे दिया गया है जो कि अपने-आपमें एक टकसाल माना जाता है। यह कुछ वैसा ही हुआ कि नासिक टकसाल के मैनेजर को देवास टकसाल का भी मैनेजर बना दिया गया है। ऐसा ही कई और मोटी कमाई वाली कुर्सियों के साथ हुआ है, और इसीलिए वर्तमान सरकार के बहुत से शुभचिंतक, और पिछली सरकार के बहुत से आलोचक सोशल मीडिया पर लगातार इस सरकार को सचेत करने में लगे हुए हैं। जिन बदनाम लोगों की शोहरत दीवारों पर लिक्खी हुई थी, उनके नामों की तख्तियां अब तक टकसालों पर लगी हुई हैं! ([email protected])
नए-नवेलेे भाजपा सांसद भूपेश बघेल सरकार से नाखुश चल रहे हैं। सांसदों की शिकायत है कि सरकार प्रोटोकॉल का ध्यान नहीं रख रही है। मसलन, पिछले दिनों योग दिवस पर सभी जिलों में कार्यक्रम आयोजित किया गया। इन कार्यक्रमों में सांसदों को भी अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया था। कई जगहों पर सत्तारूढ़ विधायक मुख्य अतिथि थे जबकि अध्यक्षता सांसदों से करवाई गई। रायपुर में तो शंकर नगर ओवरब्रिज के उद्घाटन कार्यक्रम में विशेष अतिथि के रूप में सांसद सुनील सोनी का नाम आमंत्रण पत्र में छपा था, लेकिन उन्हें विधिवत इसकी कोई सूचना तक नहीं दी गई। और तो और आमंत्रण पत्र भी विभाग के चपरासी के हाथों भेजा गया। अभी तो सांसद चुप हैं, लेकिन आने वाले दिनों में इसी तरह का प्रोटोकॉल का फिर उल्लंघन होता है, तो वे सामूहिक रूप से विरोध दर्ज करा सकते हैं।
पुलिस का हाल खासा बेहाल...
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू के अपने जिले दुर्ग का पुलिसिया हाल खासा गड़बड़ है। अभी भिलाई में दिनदहाड़े खुली सड़क पर एक स्कूली छात्रा का एक लड़के ने शायद एकतरफा प्रेम के चलते कत्ल कर दिया। अब पुलिस की जांच का हाल यह है कि कत्ल करने वाले लड़के को, और कत्ल के गवाह लोगों को पुलिस एक ही गाड़ी में बिठाकर इधर से उधर ले गई है। वर्दी को तो ऐसे में कोई खतरा नहीं रहता, लेकिन ऐसा खुला कत्ल करने वाले कातिल के ठीक सामने बैठे गवाहों का हौसला इससे पस्त न होता हो, ऐसा तो हो नहीं सकता। कुछ दूसरी जगहों पर छत्तीसगढ़ की पुलिस बलात्कार की शिकार लड़की या महिला को बलात्कार के अभियुक्त के साथ एक ही गाड़ी में मेडिकल जांच के लिए ले जा चुकी है। पुलिस की बहुत सी बैठकों में अफसरों के मुंह से महिलाओं के खिलाफ जिस तरह पूर्वाग्रह से ग्रस्त बातें सुनाई पड़ती हैं, उनसे यह साफ हो जाता है कि इस पुलिस में महिला को इंसाफ मिलने की गुंजाइश बड़ी कम है क्योंकि अधिकतर अफसर बलात्कार के मामलों में महिला को जिम्मेदार ठहराने पर उतारू दिखते हैं। और तो और महिला पुलिस अफसर भी अक्सर इसी रूख की दिखती हैं कि बलात्कार की अधिकतर शिकायतें फर्जी होती हैं। भूपेश-सरकार के सामने लंबा कार्यकाल बाकी है, और उसे सरकारी मशीनरी को संवेदनशील बनाने पर भी मेहनत करनी चाहिए जो कि एक मुश्किल और धीमा काम है, और जो चुनाव पास रहने पर किसी प्राथमिकता में नहीं आ सकता।
खेल संघों का निशाना...
प्रदेश के खेल संघ सीएम भूपेश बघेल को अपना मुखिया बनाने के लिए बेताब हैं। खेल संघों के कई पदाधिकारी तो इतने प्रभावशाली हैं कि विभाग भी उनके आगे नतमस्तक रहता है। सीएम ही ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बनते रहे हैं। पहले अजीत जोगी, फिर रमन सिंह और अब भूपेश बघेल भी अध्यक्ष बनने की राह में हैं। सीएम अध्यक्ष बनने से प्रभावशाली पदाधिकारियों की निकल पड़ती है। सीएम से नजदीकी बनाकर अनुदान पर निगाहें रहती है। सुनते हैं कि भिलाई के एक प्रभावशाली खेल पदाधिकारी अनुदान का बड़ा हिस्सा अपने संघ को आबंटित कराने की कोशिश में जुटा है। उन्हें कुछ खेल अफसरों का साथ मिल रहा है। अगर इसमें सीएम की नजरें इनायत हो जाती हैं, तो बड़ा 'खेल' हो सकता है। खैर, फिलहाल तो सीएम की ताजपोशी का इंतजार किया जा रहा है। ([email protected])
प्रदेश के खेल संगठनों ने एकमतेन सीएम भूपेश बघेल को छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ का अध्यक्ष बनने का आग्रह किया है। भूपेश बघेल ने अभी प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया है। वर्तमान में डॉ. रमन सिंह ओलंपिक संघ के अध्यक्ष हैं और उन्होंने अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया है। ऐसे में उन्हें हटाकर ही भूपेश बघेल को अध्यक्ष बनाया जा सकता है। सीएम अध्यक्ष बनने के लिए सहमत हो जाते हैं, तो खेल संगठन रमन सिंह को हटाने के लिए अविश्वास प्रस्ताव ला सकते हैं। यानी ओलंपिक संघ में एक बार फिर घमासान मचना तय है।
संघ में विवाद नया नहीं है। राज्य बनने के बाद से ही ओलंपिक संघ में विवाद चलता रहा है। इसकी शुरूआत उस वक्त हुई, जब जोगी सरकार में मंत्री रहे विधान मिश्रा ने अपने साथी खेल मंत्री शंकर सोढ़ी के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ ओलंपिक संघ का गठन किया और खुद पदाधिकारी बन गए। भिलाई के खेल संगठनों में पकड़ रखने वाले बशीर अहमद खान ने दोनों मंत्रियों को चुनौती दी और फिर विवाद खत्म करने की नीयत से तत्कालीन सीएम अजीत जोगी को अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव दिया। जोगी खुशी-खुशी तैयार हो गए, लेकिन यह सब आसान नहीं रहा। जोगी को उस वक्त के अपने सबसे बड़े राजनीतिक प्रतिद्वंदी विद्याचरण शुक्ल के विरोध का सामना करना पड़ा। विद्याचरण अखिल भारतीय ओलंपिक संघ के आजीवन अध्यक्ष रहे। ऐसे में जोगी को मान्यता मिलना ही कठिन था।
शुक्ल ने जोगी के समांतर अपने करीबी पूर्व महापौर बलवीर जुनेजा को ओलंपिक संघ का अध्यक्ष और सलाम रिजवी को सचिव बनवा दिया। चूंकि सारे खेल संघ जोगी के प्रभाव-दबाव के चलते उनके साथ थे। ऐसे में शुक्ल समर्थकों ने रातों-रात नए खेल संघों का गठन भी किया था। दिल्ली से पर्यवेक्षक भी आए और भिलाई के एक होटल में बैठक हुई, जिसमें जुनेजा को अध्यक्ष व सलाम को सचिव के रूप में मान्यता दे दी गई। ओलंपिक संघ में जोगी को हार बर्दाश्त नहीं थी और तब शुक्ल समर्थक कई पदाधिकारियों को धमकी भी मिली थी।
सुनते हैं कि उस वक्त जोगी के खेल सलाहकार रहे पूर्व आईपीएस रामलाल वर्मा, दिल्ली से आए पर्यवेक्षक से मिलने पहुंचे, तो उन्होंने शुक्ल से मिलने की सलाह दे दी। रामलाल वर्मा जब शुक्ल से मिलने उनके निवास राधेश्याम भवन पहुंचे, तो उन्हें तीन घंटे इंतजार करना पड़ा। शुक्ल बाहर आए, तो रामलाल वर्मा ने उनसे पूरी प्रक्रिया निरस्त करने के लिए हस्तक्षेप आग्रह किया। है। इस पर शुक्ल ने कहा कि चुनाव इसी तरह होते हैं। इसके बाद रामलाल वर्मा अपना मुंह लेकर लौट आए। बाद में विवाद दिल्ली हाईकोर्ट में भी गया। जोगी के पक्ष में फैसला भी आया, लेकिन फिर इसको सुप्रीम कोर्ट ने चुनौती दी गई। यानी सीएम रहते जोगी निर्विवाद अध्यक्ष नहीं रह पाए।
जोगी के सीएम पद से हटने के बाद परिस्थितियां पूरी तरह बदल गईं और शुक्ल के प्रभाव में उनके करीबी राजनांदगांव के पूर्व महापौर विजय पाण्डेय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष बन गए। बाद में शुक्ल के दामाद डॉ. अनिल वर्मा ने सीएम डॉ. रमन सिंह को अध्यक्ष बनवा दिया। रमन की ताजपोशी भी आसान नहीं रही। क्योंकि उस समय विद्याचरण शुक्ल को विश्वास में लिए बिना रमन सिंह अध्यक्ष बन गए थे। इससे उनके कुछ समर्थक नाराज थे। बाद में वे मान भी गए और सीएम पद से हटने के बाद रमन सिंह अध्यक्ष बने हुए हैं। चूंकि ओलंपिक संघ का गणित सत्ता के साथ जुड़ा रहता है। ऐसे में रमन सिंह का अध्यक्ष बने रहना आसान नहीं है। चूंकि अखिल भारतीय ओलंपिक संघ में दखल रखने वाले विद्याचरण शुक्ल अब इस दुनिया में नहीं है और अब इस संघ में भाजपा का दबदबा है। ऐसे में रमन सिंह को उनकी मर्जी के खिलाफ हटाने से मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।
गृहमंत्री के जिले का मोलभाव...
छत्तीसगढ़ सरकार के कई विभागों में भ्रष्टाचार पिछली सरकार का रिकॉर्ड भी तोड़ते दिख रहा है। अभी एक ऑडियो रिकॉर्डिंग सामने आई है जिसमें एक जिले के सीएसपी की टीम के दो सिपाही एक दारू स्मगलर से लाखों की वसूली कर रहे हैं। इस पूरी बातचीत की रिकॉर्डिंग में जिले का नाम, होटल का नाम, सिपाहियों का नाम सब कुछ है, लेकिन चूंकि अभी इस सुबूत को परखना बाकी है, इसलिए इन नामों को लिखना ठीक नहीं है। लेकिन हैरान करने वाली बात यह है कि गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू के अपने जिले का यह हाल है, और इससे परे भी वहां चारों तरफ संगठित रूप से सट्टा चल रहा है, जिस पर कार्रवाई करने से नीचे के पुलिस अफसरों को रोक दिया गया है।
अभी इस रिकॉर्डिंग में एक महंगी गाड़ी टाटा सफारी में 40 पेटी दारू भरकर स्मगलर भिलाई के एक होटल में रूके हुए थे, और दो सिपाहियों ने वहां पहुंचकर गाड़ी पकड़ी, और काफी मोलभाव के बाद रेट पांच लाख से घटकर दो लाख तक आया, और स्मगलरों ने डेढ़ लाख रूपए दिए, और बाकी बाद में देने का वायदा करके गाड़ी छुड़ाई। इन चार घंटों तक सिपाही वहीं बैठकर पैसों का इंतजाम देखते रहे।
मुख्यमंत्री और गृहमंत्री के अपने जिले में पुलिस के जितने किस्म के कारनामे सामने आ रहे हैं, वैसे तो कभी पिछली सरकार के वक्त भी देखने नहीं मिले। यह एक अलग बात है कि पिछली सरकार में एक भारी मलाईदार कुर्सी पर बरसों तक काबिज रहने वाले तबके मुख्यमंत्री के करीबी आज गृहमंत्री के ओएसडी बने हुए हैं, और उन्हें तमाम तरकीबें अच्छी तरह मालूम भी हैं। जब नेताओं की औलादें वसूली में ओवरटाईम करने लगती हैं, तो उनके अगले चुनाव का भविष्य भी तय हो जाता है।
भाजपा में अब जुबान खुल रही...
भाजपा में संगठन मंत्रियों से अपेक्षा रहती है कि वे निष्पक्ष रहेंगे। मगर, पिछले 15 सालों में सरकार के सानिध्य में रहकर संगठन मंत्रियों का रूख भी बदलता दिखा। वे भी सत्ता के प्रभाव में सरकारी तंत्र की तरफ ज्यादा झुकते नजर आए। विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद अब कार्यकर्ता सौदान सिंह और रामप्रताप सिंह को खुले तौर पर भला-बुरा कहने में नहीं चूकते हैं। हाल यह है कि नवनिर्वाचित सांसदों में कुछ तो इन दोनों को नापसंद करते हैं।
पार्टी हाईकमान को भी दोनों के खिलाफ नाराजगी का पूरा अंदाज है। तभी तो रामप्रताप सिंह को जगत प्रकाश नड्डा से मुलाकात के लिए 5 घंटे इंतजार करना पड़ा। जबकि उस दौरान प्रदेश के कई नेता नड्डा को बधाई देेकर निकल चुके थे। इसी तरह संसद भवन में अंदर जाने के लिए पास बनवाने के लिए भी रामप्रताप सिंह को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। ज्यादातर सांसदों ने कह दिया कि एक से अधिक की पात्रता नहीं है। और पहले से ही वे अपने लोगों के लिए पास बनवा चुके हैं। बिलासपुर संभाग के एक सांसद की नाराजगी इस बात को लेकर थी कि रामप्रताप सिंह ने उन्हें संगठन में 10 साल तक पदाधिकारी नहीं बनने दिया। खैर, किसी तरह एक को उन पर तरस आ गया और फिर वे संसद भवन में दाखिल हो पाए। ([email protected])
प्रदेश में मानसून दस्तक दे चुका है, किसान अब खेतों में फसल की तैयारी में जुट गए हैं। खेती शुरू होते ही कीड़े-मकोड़े, पशु-पक्षी सब अपना निवाला-हिस्सा वसूलना शुरू कर देते हैं। फसल मंडी तक पहुंचा तो महाजन के हिस्से किसान का हक चला जाता है। यहां से जो बचा तब अन्नदाता के हाथों। केंद्र सरकार ने किसानों के लिए फसल बीमा शुरू की है। कुछ दिनों में खाद-बीज वितरण के साथ ही फिर फसल बीमा भी शुरू हो जाएगी। इसमें भी जिस तरह से किसान लुट रहा है उसे देखने वाला कोई नहीं है।
प्रदेश के कई इलाकों में अब तक पिछले साल का फसल बीमा क्लेम नहीं मिल पाया है। हालत यह कि किसानों का पैसा बैंक में जमा है, पर उनके खातों तक नहीं पहुंचा है। जबकि भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा जारी गाइडलाइन के अनुसार प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बीमा कंपनियों द्वारा क्षतिपूर्ति राशि बैंकों को दिए जाने के पश्चात 1 सप्ताह में अनिवार्य रूप से बैंकों द्वारा किसानों के खाते में डालने का आदेश है।
कोरिया जिले में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत बीमा कंपनी एचडीएफसी एग्रो जनरल इंश्योरेंस कंपनी द्वारा 14 करोड़ 54 लाख 98 हजार 383 रुपए की फसल बीमा की क्षतिपूर्ति राशि जिला सहकारी बैंक को 7 मई को उपलब्ध कराई गई है। जो डेढ़ माह से अटकी पड़ी है। बैंक का कहना है कि हेड आफिस से सूची तैयार नहीं होने के कारण राशि डालने में देरी हो रही है।
अब उक्त राशि पर प्रति माह ब्याज 14 लाख 54 हजार 983 होता है। यानि कुछ दिनों में ब्याज की राशि 30 लाख के करीब हो जाएगी। एक दिन भी किश्त में देरी होने पर जुर्माना वसूलने वाले बैंक को मुफ्त में इतनी रकम मिल जाएगी। यानि किसानों के हक के पैसे पर बैंक ही डंडी मार रहा है। पूरे प्रदेश में इस तरह के हालातों की पड़ताल की जाए तो शायद ये आंकड़ा अरबों पार कर जाए।
किसानों के प्रतिनिधि के रूप में राज्य शासन फसल बीमा योजना स्वीकार करता है इसलिए इस योजना की निगरानी एवं क्षति पूर्ति दिलाने के लिए जवाबदेह भी वही है। किसानों का कर्जा माफ करने वाली, नरूआ, गरुआ, घुरुवा, बारी अभियान चलाने वाली भूपेश सरकार क्या विलंब की अवधि का ब्याज सहित भुगतान सुनिश्चित करा पाएगी। कर्ज न पटा पाने से फांसी लगा लेने वाले अन्नदाताओं को, कम से कम बैंक के हाथों इस तरह खुल्लमखुल्ला लुटने से बचा ले।
राहुल का संतुलन
राहुल गांधी सीएम भूपेश बघेल को तो पसंद करते हैं, लेकिन उनकी नजरों में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव की अहमियत कम नहीं है। कई मौकों पर तो वे टीएस को ज्यादा महत्व देते भी दिखे। हुआ यूं कि पिछले दिनों सीएम, प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया के साथ राहुल गांधी से मिलने पहुंचे। विषय प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष की नियुक्ति का था।
सुनते हैं कि दोनों ने एक राय होकर सीतापुर के विधायक अमरजीत भगत का नाम दिया। राहुल ने पूछ लिया कि क्या अमरजीत भगत के लिए सिंहदेव की भी सहमति है? यह कहे जाने पर कि सिंहदेव को ऐतराज नहीं है। राहुल संतुष्ट नहीं हुए और सिंहदेव को बुलावा भेजा। अगले दिन राहुल ने सिंहदेव के साथ प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के साथ-साथ अन्य विषयों पर भी चर्चा की।
अमरजीत को लेकर सिंहदेव का क्या रूख है, यह तो पता नहीं चल पाया है, लेकिन एक बात तो साफ है कि नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति में सिंहदेव की राय को महत्व दिया जा सकता है। शालीन और मृदुभाषी सिंहदेव की खासियत यह भी है कि वे किसी बात पर अड़ते नहीं है। लेकिन यह तय माना जा रहा है कि अमरजीत की मंत्री पद पर नियुक्ति हो या प्रदेश अध्यक्ष पद पर ताजपोशी, सिंहदेव की रजामंदी के बिना संभव नहीं हो पाएगा।
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मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के पिता नंदकुमार बघेल तब से सामाजिक राजनीति में सक्रिय हैं जब भूपेश कॉलेज में पढ़ते थे। वे पिछड़े वर्ग की राजनीति करते हैं, और खुलकर ब्राम्हण-बनिया समुदायों के खिलाफ बोलते हैं। भूपेश बघेल को कांग्रेस की राजनीति में आने के बाद से हर साल-दो साल में यह साफ करना पड़ता है कि उनके पिता, उनके पिता तो हैं, लेकिन घर में ही। उनकी राजनीति और उनकी सोच अलग है जिससे उनका कोई भी लेना-देना नहीं है। कम लोगों को यह बात याद होगी कि जब अजीत जोगी मुख्यमंत्री थे, और भूपेश बघेल मंत्री थे, तब नंदकुमार बघेल अपनी एक किताब को लेकर धार्मिक भावनाएं आहत करने के एक पुलिस केस में गिरफ्तार हुए थे, और कई दिन जेल भी रहे थे। वे बौद्ध धर्म अपना चुके हैं, और भूपेश बघेल को पारिवारिक संस्कारों से अलग भी कर चुके हैं क्योंकि भूपेश हिन्दू हैं।
अभी लगातार वे कई वीडियो में दिख रहे हैं जो कि चारों तरफ फैल रहे हैं, उसमें वे कांग्रेस के, और भूपेश सरकार के कई नेताओं और मंत्रियों के खिलाफ बोलते रहते हैं। उनकी राजनीति ब्राम्हण, बनिया, गैरछत्तिसगढिय़ा, इन सबको हटाने और हराने की है। पिछले बरस भूपेश बघेल के कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए पार्टी ने एक बयान जारी किया था जिसमें स्पष्ट किया गया था कि नंदकुमार बघेल का कांग्रेस पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है, और न ही भूपेश बघेल का अपने पिता की राजनीति से कोई लेना-देना है। बार-बार इस बात को साफ कर देने की वजह से कांग्रेस हाईकमान के सामने, और पार्टी के भीतर तो पिता-पुत्र के संबंध एकदम साफ हैं, लेकिन मीडिया को इसमें मजेदार वीडियो मिल जाते हैं। नंदकुमार बघेल खासे पढ़े हुए हैं, और हिन्दू धर्म, पुराण, की मिसालें देते हुए वे आक्रामक अंदाज में बयान देते हैं। लेकिन साथ-साथ यह भी खुलासा कर देते हैं कि भूपेश बघेल उनके बेटे तो हैं, लेकिन उन्होंने खुद ने ही भूपेश को सिखाया है कि न वे उनके आज्ञाकारी बेटे रहें, और न ही वे उनके आज्ञाकारी पिता रहेंगे। अलग-अलग राजनीतिक सोच वाली यह बड़ी अजीब सी राजनीतिक-पारिवारिक जोड़ी है, और जब भूपेश बघेल को पहले से यह खबर रहती है कि किसी कार्यक्रम में मंच पर उनके पिता को भी बुलाया गया है, तो वे उसमें जाना मंजूर भी नहीं करते। जिन मंत्रियों और कांग्रेस नेताओं के खिलाफ इन दिनों नंदकुमार बघेल का अभियान चल रहा है, उन्हें भी यह बात साफ है कि भूपेश अपने पिता के कंधे पर रखकर बंदूक नहीं चला रहे, क्योंकि बागी तेवरों वाले पिता किसी को अपने कंधे पर हाथ भी नहीं धरने देते।
पहले से कमाई अधिक...
छत्तीसगढ़ में शराब के कारोबार को देखने वाले आबकारी विभाग मेें काम कर रहे एक अफसर का कहना है कि जब दुकानें दारू ठेकेदार चलाते थे, तब अमले की कमाई सीमित रहती थी। अब पूरा धंधा ही विभाग के हाथ में हैं, तो नीचे से ऊपर तक एकाधिकार ने सबको मालामाल कर दिया है। इस धंधे की जिस-जिस बात से कमाई होती थी, वे सबकी सब जारी हैं, और अब कमाई से ठेकेदार या दुकानदार अलग हो गए हैं, इसलिए सिर्फ विभाग बाकी है। चूंकि दारू के ग्राहक समाज में हिकारत से देखे जाते हैं, इसलिए अगर उन्हें लूटा भी जा रहा है, तो उनके साथ किसी की हमदर्दी नहीं है। ([email protected])
बस्तर के पखांजूर वाले इलाके में बैंकों और एटीएम में नोट की कमी की शिकायत को अब महीनों हो रहे हैं। कुछ बरस पहले जब नोटबंदी हुई थी, और मोदी सरकार ने देश में कैशलेस अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के दावे किए थे, वे बाकी देश में तो सही साबित नहीं हो सके, लेकिन बस्तर के इस इलाके में जरूर अर्थव्यवस्था कैशलेस चल रही है। यह इलाका सदियों तक बिना किसी नोट-सिक्कों के सामानों की अदला-बदली पर जीते रहा, और अब मानो हालत फिर वैसी ही हो रही है। इस इलाके में नक्सलियों की बड़ी मौजूदगी के चलते बैंकों की नगदी सुरक्षा बलों के हेलीकाप्टरों से ही होती थी, लेकिन चुनावों के चलते ये खाली नहीं रहे, और नोट पहुंच नहीं पाए।
अब हालत यह है कि दारू दुकानों में जो नगदी पहुंच रही है, वह जब बैंकों में जमा होती है, तो किसानों और दूसरे लोगों को बैंकों से भुगतान मिल पाता है। बस्तर के विधायक और मंत्री रहे भाजपा के महेश गागड़ा ने आज सुबह फेसबुक पर कांग्रेस पर तंज कसते हुए लिखा है- गंगाजल की कसम विशेषांक, बीजापुर में शराब दुकान में तय रेट से अधिक पर मिल रही है शराब। शराब का पैसा बैंकों में जमा होने के बाद वहां हो पा रहा है लेन-देन। बैंकों में नगद नहीं है, और किसान से लेकर तेंदूपत्ता संग्राहक तक परेशान हाल में रोज आ-जा रहे हैं।
अब अधिक लोगों को तो यह याद भी नहीं होगा कि यह गंगाजल का जिक्र कहां से और क्यों आ गया?
लेकिन कांग्रेस की राजनीति को याद रखने वालों को याद हो सकता है कि विधानसभा चुनावों के पहले जब छत्तीसगढ़ कांग्रेस घोषणापत्र जारी कर रही थी तब दिल्ली से आए कांग्रेस के एक बड़े नेता ने हाथ में गंगाजल लेकर कई किस्म की कसमें खाई थीं, और जिसे लेकर बाद में पार्टी के भीतर भी कुछ खलबली मची थी कि अचानक यह गंगाजल किसे सूझा और कैसे मीडिया के सामने ही उसे पेश कर दिया गया। पार्टी के लोगों को याद होगा कि प्रदेश के कांग्रेस मीडिया प्रभारी शैलेष नितिन त्रिवेदी को भी हाथ में गंगाजल पहुंच जाने के पहले तक इसकी खबर नहीं थी। लेकिन जब पार्टी की जीत हो गई तो बाकी सब बातें हाशिए पर चली जाती हैं। महेश गागड़ा ने शायद यही बात याद रखी है।
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आखिरकार सरकार ने काफी उठा-पटक के बाद दवा निगम में घोटाले की जांच ईओडब्ल्यू से कराने का फैसला ले लिया। यह सबकुछ आसान नहीं था। करीब 3 सौ करोड़ से अधिक की दवा खरीदी में भारी गड़बड़ी हुई और इसमें ताकतवर लोग शामिल थे। पहली नजर में निगम के पूर्व एमडी वी रामाराव को दोषी ठहराया जा रहा है, क्योंकि उनके ही कार्यकाल में यह सबकुछ हुआ है।
सुनते हैं कि धमतरी के एक बड़े सप्लायर को घोटाले का मुख्य सूत्रधार माना जा रहा है। यह खेल रमन सरकार के पहले कार्यकाल में शुरू हुआ था। तब तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री डॉ. कृष्णमूर्ति बांधी और सचिव बीएल अग्रवाल का इस घोटालेबाज सप्लायर को संरक्षण मिला। तब एक-दो प्रकरणों को सीबीआई ने जांच में भी लिया था, तो कई प्रकरण अभी भी ईओडब्ल्यू में जांच के लिए पेंडिंग है। इन सबके बाद भी इस सप्लायर का रूतबा कम नहीं हुआ। रमन सरकार के तीसरे और आखिरी कार्यकाल में इस सप्लायर को काम देने के लिए दो मंत्री और कई प्रभावशाली लोग लगे रहे। दामाद बाबू का भी साथ मिला। दिग्गजों की सरपरस्ती में धमतरी के इस सप्लायर से जुड़ी कई ऐसी कंपनियों को करोड़ों की दवा सप्लाई का ऑर्डर मिल गया, जो कि दूसरे राज्यों में ब्लैक लिस्टेड थीं।
बाद में सरकार बदलने के बाद रामाराव की जगह आए निगम के एमडी भुवनेश यादव ने इन सबको ब्लैक लिस्ट भी किया। करोड़ों की दवा सप्लाई में गड़बड़ी की जांच कराने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी। चर्चा है कि धमतरी के इस सप्लायर के एक नजदीकी रिश्तेदार कांग्रेस में हैं और बड़े ठेकेदार हैं। उन्होंने एक बड़े बंगले को साधकर जांच रूकवाने की कोशिश की, लेकिन इसमें सफलता नहीं मिल पाई। स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव भ्रष्टाचार के मामले में सख्त कार्रवाई के पक्षधर रहे। ऐसे में ईओडब्ल्यूू से जांच कराने की उनकी अनुशंसा को फौरन मान लिया गया। जांच आगे बढ़ती है, तो दवा निगम के अफसरों के साथ-साथ सप्लायर का भी घिरना तय है।
भ्रष्टाचार का हाल यह था...
लेकिन इस निगम के कामकाज में संगठित भ्रष्टाचार का हाल यह था कि रायपुर के सरकारी मेडिकल कॉलेज का एक विभाग पोस्ट गे्रजुएट कोर्स चालू करने के लिए मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया की शर्तों के मुताबिक एक माईक्रोस्कोप चाहता था जो 5-6 लाख रुपये का ही था। पिछले दस बरस से विभाग से इसकी जरूरत लिखकर भेजी जाती रही, और इस दवा निगम से उसकी जगह पौन करोड़ रुपये का एक दूसरा माईक्रोस्कोप ले लेने के लिए दबाव डाला जाता रहा। यह पूरी खतो-किताबत फाईलों को मोटा करती गई, लेकिन निगम ने किफायती माईक्रोस्कोप लेने ही नहीं दिया, और अड़े रहा कि उससे दस गुना से अधिक का माईक्रोस्कोप लेने पर सहमति विभाग लिखकर दे। इसके बिना दस बरस में वहां पोस्ट गे्रजुएट सीट मंजूर नहीं हुईं, और परले दर्जे के भ्रष्ट इस निगम ने जरूरत का मांगा गया माईक्रोस्कोप लेकर नहीं दिया। ([email protected])
दुनिया भर में सेल्फी को लेकर फिक्र चल रही है कि अपनी तस्वीर किसी भी मौके पर खींचने के लिए लोगों पर दीवानगी छा जाती है। कोई डूब रहे हों, या किसी सड़क हादसे में घायल हों, उस मौके पर अपनी तस्वीर खींचने में लोग टूट पड़ते हैं, और मौके की जरूरत धरी रह जाती है, लोग अस्पताल नहीं पहुंचाए जाते, आग नहीं बुझाई जाती, बल्कि उनके साथ तस्वीरें खिंचवाई जाती हैं।
अब अभी राज्यसभा सदस्य छाया वर्मा के पिता गुजरे, तो उनके दशगात्र पर इक_ा लोगों में से तीन लोगों की एक ऐसी सेल्फी सामने आई जिसे खींचने वाली तस्वीर में जाहिर है कि कौन है, लेकिन साथ में दूसरी दो महिलाएं भी इस मौके पर सेल्फी में शामिल हो गईं, यह देखकर लोग हक्का-बक्का हैं। छाया वर्मा खुद, और रायपुर की भूतपूर्व मेयर किरणमयी नायक की यह तस्वीर सोशल मीडिया पर फैल रही है, और लोग हैरान हैं। हैरान इस बात पर भी हैं कि जिसने फोटो खींची है, उसी के फोन से तो यह तस्वीर बाहर भी निकली होगी।
फर्क कदकाठी का...
अभी स्वास्थ्य विभाग के एक कार्यक्रम में स्वास्थ्य मंत्री टी.एस. सिंहदेव तो मेजबान थे ही, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। इस मौके पर जिन लोगों का सम्मान किया गया उनमें छत्तीसगढ़ के विख्यात शिशु रोग विशेषज्ञ, डॉ. अरूण दाबके भी थे जो कि पद्मश्री से सम्मानित भी हैं। सिंहदेव के आसमान छूते कद के सामने छोटे कद के डॉ. दाबके को देखकर लोगों को छत्तीसगढ़ के दो-तीन पुराने नजारे याद आए। राज्य के पहले मुख्य सचिव अरूण कुमार सवा छह फीट के थे, और उनके मातहत अधिकारी एस.के. मिश्रा खासे कम कद के थे। दोनों साथ खड़े रहें, तो नजारा कुछ वैसा ही रहता था, जैसा आज मेडिकल-प्रोग्राम में था। इसके बाद एक मुख्य सचिव जॉय ओमेन रहे, जो कि प्रदेश के आज तक के सबसे कम कद के आईएएस थे, और उनके वक्त मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह प्रदेश के तब तक के सबसे अधिक कद के मुख्यमंत्री थे। लेकिन इसी दौरान जॉय ओमेन के मातहत एक आईएफएस एस.एस. बजाज थे जो कि प्रदेश के किसी भी विभाग के सबसे ऊंचे अफसर थे। आपस में कई जगहों पर साथ खड़े बात करते हुए दोनों की गर्दन दुखती थीं, एक की झुकने से, और दूसरे की ऊपर उठने से। अब डॉ. दाबके सरकारी सेवा में नहीं हैं, वरना सिंहदेव और उनके बीच ऐसी ही दिक्कत होती। आज सिंहदेव प्रदेश मंत्रिमंडल में सबसे ऊंची कदकाठी के मंत्री हैं, और लगे हाथों यह बताना भी ज्यादती नहीं होगी कि वे प्रदेश के सबसे संपन्न अरबपति मंत्री भी हैं।
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पूर्व केन्द्रीय मंत्री जगतप्रकाश नड्डा के भाजपा कार्यकारी अध्यक्ष बनने से पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के खेमे में खुशी का माहौल है। नड्डा प्रदेश भाजपा के प्रभारी रहे हैं और उनकी रमन सिंह से नजदीकियां रही हैं। वैसे तो, नड्डा के पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल से यारी-दोस्ती के संबंध रहे हैं। दोनों युवा मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में साथ रहे हैं। दोनों के गहरे रिश्तों का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि वर्ष-2013 के विधानसभा चुनाव में बृजमोहन के कहने पर नड्डा ने आधा दर्जन तय प्रत्याशियों को बदलवा दिया था। मगर, बाद में दोनों के रिश्तों में खटास आ गई।
जलकी प्रकरण के चलते बृजमोहन अग्रवाल मुश्किल में घिरे तो नड्डा, रमन सिंह के साथ खड़े नजर आए। और तो और नड्डा ने पिछले लोकसभा चुनाव में तत्कालीन सांसद मधुसूदन यादव की जगह अभिषेक सिंह को प्रत्याशी बनवाने में अहम भूमिका निभाई थी। नड्डा के न सिर्फ रमन सिंह बल्कि उनके करीबी नौकरशाहों अमन सिंह और अन्य लोगों से भी गहरे रिश्ते रहे हैं। ऐसे में जब नड्डा को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने की खबर आई, तो रमन सिंह के करीबी लोग एक-दूसरे को बधाई देते नजर आए।
विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद रमन सिंह की हैसियत पार्टी के भीतर कमजोर दिख रही है। वे अपने पुत्र अभिषेक सिंह को भी टिकट नहीं दिलवा पाए। जबकि बृजमोहन अग्रवाल का खेमा मजबूत नजर आ रहा। ऐसे समय में नड्डा के कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद भाजपा की गुटीय राजनीति में बदलाव आने के संकेत दिख रहे हैं। रमन सिंह खेमे के फिर से ताकतवर बनने की उम्मीद जताई जा रही है। रमन सिंह के करीबियों को उम्मीद है कि न सिर्फ अभिषेक को संगठन में अहम दायित्व मिलेगा, बल्कि पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी जैसों को भी महत्व मिल सकता है। यह भी अंदाजा लगाया जा रहा है कि पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के खेमे की हालत पहले जैसे ही रहेगी। बहरहाल, नड्डा के रूख पर पार्टी के नेताओं की निगाहें टिकी हुई हंै।
नांदगांव की सियासी तासीर
राजनांदगांव की सियासी तासीर ऐसी है कि एक बार पैर जमाने के बाद राजनेताओं को अगल-बगल झांकना नागवार लगता है। मोतीलाल वोरा यहां से एक बार सांसद रहे। इसके बाद चुनाव हारने के बाद भी वोरा का राजनांदगांव से संबंध बरकरार रहा। सालों तक राजनांदगांव में उनके पास सरकारी बंगला था, जो उन्हें पूर्व सीएम की हैसियत से आबंटित किया गया था। वे अभी भी दुर्ग से ज्यादा राजनांदगांव की राजनीति में दिलचस्पी लेते हैं। इसी तरह डेढ़ दशक तक सीएम रहे डॉ. रमन सिंह और उनके पूर्व सांसद पुत्र अभिषेक सिंह अपने गृह जिले कवर्धा से ज्यादा राजनांदगांव में ज्यादा सक्रिय दिख रहे हैं। सुनते हैं कि शहर में रचने-बसने के लिए नए अशियाने की तलाश में भी हैंं। चर्चा है कि उनके करीबी नेताओं ने रमन और अभिषेक को राजनांदगांव में नया घरौंदा तैयार करने की सलाह दी है। पिता-पुत्र को नेताओं की राय जंच गई। इसके बाद उनके करीबियों ने मकान के लिए जमीन की खोजबीन शुरू कर दी। वैसे तो फिलहाल पिता-पुत्र के लिए पार्टी में अनुकूल स्थिति नहीं है। संतोष पाण्डेय के सांसद बनने के बाद राजनांदगांव जिले में भाजपा का एक और खेमे के उदय होने के संकेत दिख रहे हैं। संतोष का कद पार्टी में काफी बढ़ा है। ऐसे में रमन समर्थकों को उम्मीद है कि अपने बेटे और खुद का राजनीतिक कैरियर संवारने के लिए राजनांदगांव शुभ साबित होगा।
तेज और धीमे सांसद
जांजगीर-चांपा के सांसद गुहाराम अजगले को छोड़ दें तो भाजपा के बाकी 8 पहली बार सांसद बने हैं। गुहाराम बेहद सरल स्वभाव के हैं। वे ज्यादा सुख-सुविधाओं के लिए लालायित नहीं रहते। लेकिन महासमुंद के सांसद चुन्नीलाल साहू ने सुविधाएं जुटाने के मामले में अपने साथी भाजपा सांसदों को पीछे छोड़ दिया है। बाकी भाजपा सांसद, संसद सदस्य के रूप में मिलने वाली सुविधाओं के लिए नियमावली का अध्ययन कर रहे थे कि चुन्नीलाल ने अपने लिए दिल्ली के कनाट प्लेस के वेस्टर्न कोर्ट में अपने लिए कमरा अलॉट करवा लिया। जब तक उन्हें फ्लैट नहीं मिलता वे यहां रहेंगे। यहां सांसदों के लिए सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं। चुन्नीलाल की देखादेखी बाकी सांसद भी फ्लैट या फिर गेस्ट हाउस में रहने की व्यवस्था के जुगाड़ में लग गए हैं।
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सीएम भूपेश बघेल की पीएम से मुलाकात पर पूर्व मंत्री राजेश मूणत के ट्वीट से पार्टी संगठन खफा हैं। वैसे तो मूणत संगठन के पसंदीदा माने जाते हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर उनकी टिप्पणी को हाईकमान ने गंभीरता से लिया है। मूणत ने पीएम नरेन्द्र मोदी के साथ भूपेश बघेल की फोटो शेयर करते हुए ट्वीट किया- कोन चला झोला उठाकर के...? दरअसल, लोकसभा चुनाव निपटने के बाद पीएम की केदारनाथ यात्रा पर भूपेश ने कुछ इसी तरह मिलता-जुलता कटाक्ष किया था। जिसका मूणत ने जवाब दिया है।
पार्टी नेताओं का मानना है कि भूपेश ने चुनावी माहौल के बीच टीका-टिप्पणी की थी, यह स्वाभाविक है, चुनाव में नेता एक-दूसरे पर कटाक्ष करते रहते हैं, इसमें कोई गलत नहीं था। लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद भूपेश बघेल सीएम की हैसियत से नीति आयोग की बैठक में शिरकत करने गए थे, ऐसे में शिष्टाचार के नाते उन्हें पीएम से मुलाकात करनी ही थी। इसको लेकर राजनीतिक टीका-टिप्पणी उचित नहीं है।
कुछ इसी तरह की टिप्पणी मूणत कार्यसमिति की बैठक में कर बैठे। चर्चा के बीच उन्होंने कह दिया कि भूपेश सरकार के खिलाफ काफी मुद्दे हैं और ऐसे में जमकर पेलना चाहिए। बैठक में मौजूद महिला पदाधिकारी उनकी टिप्पणी पर हाथ से मुंह छिपाकर हँसने लगी। आखिरकार पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह उनका नाम लिए बिना नसीहत दी कि नेताओं को अपनी भाषा की मर्यादा ध्यान में रखना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अभी साढ़े 4 साल बाकी है। ऐसे में सरकार के खिलाफ लड़ाई के लिए अपनी ऊर्जा बचाकर रखें।
रेणुका सिंह नाम की नसीहत
केन्द्रीय मंत्री बनने के बाद रेणुका सिंह सरगुजा संभाग की सबसे ताकतवर नेता बनकर उभरी हैं। रेणुका सिंह ने सरगुजा में दिवंगत भाजपा नेता रविशंकर त्रिपाठी के सानिध्य में अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूआत की थी। त्रिपाठी ने उन्हें मंडल का अध्यक्ष बनवाया। इसके बाद रेणुका ने पीछे पलटकर नहीं देखा। तेज-तर्रार और जुझारू तेवर के चलते पार्टी हाईकमान का ध्यान खींचा। वे जनपद सदस्य और फिर विधायक भी बनी। वे रमन सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री भी रहीं, लेकिन संगठन में हावी नेताओं ने लता उसेंडी के लिए जगह बनाने उन्हें हटवा दिया।
दो बार की विधायक रेणुका सिंह को विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं दी गई। सरगुजा के सभी बड़े भाजपा नेता उन्हें नापसंद करते रहे हैं, लेकिन वे कार्यकर्ताओं की चहेती रही हंै। पार्टी हाईकमान ने विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद सभी सांसदों की टिकट काटी, तो सरगुजा में रेणुका की लॉटरी खुल गई। भारी जीत के बाद रेणुका को जब केन्द्रीय मंत्री बनाया गया, तो भाजपा के विरोधी नेता अब उनसे संबंध सुधारने की कोशिश में जुटे हैं। विरोधियों के लिए रेणुका सिंह का फर्श से अर्श तक पहुंचने का सबक काफी है कि राजनीति में बुरा वक्त किसी का भी आ सकता है, और कभी भी जा भी सकता है, आसमान तक पहुंचाकर। ऐसे में सबसे संबंध बनाकर रखना चाहिए।
सरफराज को यह जमाई हमेशा याद रहेगी। और हिंदी-हिंदुस्तान वालों को भी अपना जमाई शोएब मलिक हमेशा याद रहेगा...
शोएब मलिक के लिए भारत के खिलाफ अच्छा खेलना नामुमकिन था, सारी दुनिया एक तरफ, जोरू का भाई एक तरफ...
पाकिस्तान पर हिंदुस्तान की जीत पर एक दर्जन केंद्रीय मंत्रियों ने बधाई की ट्वीट की है। बिहार में सौ बच्चों की मौत पर इनमें से किसी ने एक आंसू ट्वीट नहीं किया...
सवाल- ऐसे बुक क्लब को क्या कहते हैं जो हजारों बरस से एक ही किताब पर चल रहा है?
जवाब- चर्च
इंग्लैंड में विजय माल्या मैच देखने स्टेडियम जाते दिखा।
हिंदुस्तान में किसान होता तो रस्सी खरीदते दिखता...
हमारे जमाने में पिताजी किसी फादर डे के मोहताज नहीं थे, जब भी उनका दिल करता था, जूता उठा के याद दिला देते थे कि मैं बाप हूं।
“Pakistan bowling kry to lagta ha batting pitch ha, Batting kry to lagta ha bowling pitch ha”
Na partition hoti na hum zaleel ho rahe hote
india tou humain aisi phainti laga raha hay jaise kohinoor hum nay churaya ho Good one . Let’s all pray and wish Ind and Pak become brothers and get our Past Glory Back from westerners who looted us and divided us. Amen.
Kohli ODI hundreds= 41
Entire Pak team= 41 hundreds
Whoever called it the india -pak match?
It actually is the India - pak MISMATCH
भाजपा के रायपुर जिलाध्यक्ष राजीव अग्रवाल तीर्थयात्रा को गए, तो वहां से उन्होंने छत्तीसगढ़ के लोगों के लिए एक खुशखबरी अपने फेसबुक पेज पर पोस्ट की है। उन्होंने लिखा- माँ यमुना के दर्शन आराधना करने के लिए आने वाले भक्तों के लिए उत्तराखंड के खरसली में छत्तीसगढ़ भाजपा के वरिष्ठ नेता व छत्तीसगढ़ शासन के पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल सर्वसुविधायुक्त विश्रामगृह बना रहे हैं। यह विश्रामगृह तो जब पूरा होना होगा तक होगा, लेकिन तब तक लोगों को यह जानकारी तो मिल ही गई है कि मोहन भैया का वहां पर एक इंतजाम है।
सप्लायरों के दिन लौटे
पिछले 15 सालों से सरकार के अलग-अलग विभागों में सप्लायरों का दबदबा रहा है। कुछ तो इतने ताकतवर थे कि मंत्री भी उनके आगे नतमस्तक रहे हैं। इन सप्लायरों ने स्कूल शिक्षा विभाग-आदिमजाति, महिला बाल विकास और उद्यानिकी विभाग में जमकर काम किया। इन विभागों में सप्लायरों की मिलीभगत से खूब भ्रष्टाचार हुआ। अब सरकार बदलते ही इन सप्लायरों के बुरे दिन शुरू हो गए।
सुनते हैं कि उद्यानिकी में ही तीन बड़े सप्लायरों का करीब 60 से 70 करोड़ रूपए बकाया है। अब चूंकि उद्यानिकी में बड़ा खेल हुआ है इसलिए कोई इन्हें बकाया भुगतान की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है। यही हाल बाकी विभागों का भी है। चर्चा तो यह भी है कि स्कूल शिक्षा और अन्य विभाग के सप्लायरों ने मिलकर नई सरकार को साधने के इरादे से लोकसभा चुनाव के लिए काफी कुछ किया, लेकिन बात नहीं बन पाई। निर्देश साफ है कि बकाया भुगतान किसी भी दशा में नहीं किया जाए, लेकिन सप्लायरों ने हिम्मत नहीं हारी है। वे सरकार के प्रभावशाली लोगों के आगे-पीछे हो रहे हैं, ताकि नया काम भले न मिले पुराना भुगतान हो जाए। उद्यानिकी में भ्रष्टाचार का हाल यह था कि सरकार ने अब वहां से आईएफएस हटाकर कृषि से जुड़े एक अफसर को बिठाया है। और मजे की बात यह है कि उद्यानिकी विभाग पिछली सरकार में अपने सारे भ्रष्टाचार के लिए मंत्री को जिम्मेदार ठहराकर पाक-साफ बने बैठे रहता था।
सरकार के कई विभागों में चर्चा यह है कि सरकार ने लोकसभा चुनाव तक इमेज ठीक रखने की पर्याप्त कोशिश कर ली है, और अब तो आगे राजनीति भी चलानी है, म्युनिसिपल और पंचायतों के चुनाव भी लडऩे हैं, 15 बरस का विपक्षी सूखा भी खत्म करना है, इसलिए पुराने पेशेवर दलाल और सप्लायर अब जगह बनाते चल रहे हैं। लेकिन इसके साथ-साथ हैरान करने वाली कुछ बातें भी सामने आ रही हैं जिनमें मुख्यमंत्री के अपने गृह जिले में जाने-माने सट्टेबाजों और चोरी के माल के कबाडिय़ों का धंधा आसमान छू रहा है। अगर चर्चा सही है, तो सीएम ने इन कड़ी कार्रवाई करने को कहा है। और जिस तरह कोरबा में कोयले के धंधे पर कड़ी कार्रवाई हुई है, कई लोगों को उम्मीद है कि दूसरे जिलों में भी सरकार संगठित गड़बड़ी पर कड़ाई बरतेगी।
सरकार गई, रूतबा नहीं
सरकार बनने के बाद भी कई अफसरों का रूतबा कम नहीं हुआ है। पिछली सरकार में उन्हें महत्व इसलिए मिल रहा था कि इन अफसरों के आरएसएस और ताकतवर भाजपा नेताओं से करीबी रिश्ते थे। इन्हीं में से एक स्कूल शिक्षा अफसर का विभाग में काफी दबदबा रहा है। अफसर का भाई सीएम हाउस में पदस्थ था। सरकार बदली तो अफसर का भाई भी बदल गया, लेकिन अफसर की हैसियत बरकरार है।
सुनते हैं कि अफसर ने पहले मनमाफिक पोस्टिंग के लिए कोशिश की, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। बाद में अफसर खराब स्वास्थ के आधार पर अच्छी पोस्टिंग पाने में सफल रहा। पोस्टिंग के बाद अफसर सपरिवार मानसरोवर यात्रा के लिए निकल गया। विभाग ने यह ध्यान नहीं दिया कि मानसरोवर यात्रा के लिए फिटनेस जरूरी है, और छुट्टी भी मंजूर कर दी। अब अफसर ने यात्रा के दौरान एक ई-मेल विभाग प्रमुख को भेजा है जिसमें उन्होंने पांच लाख रूपए एडवांस देने की मांग की है। कुछ साल पहले एक आईएएस अफसर को इसी तरह एडवांस दिया गया था। स्कूल शिक्षा अफसर ने इसी नियम का हवाला दिया है। अब अफसर का रूतबा ऐसा है कि एडवांस देने के लिए नियम खंगाले जा रहे हैं।