विचार / लेख

देश की छह बड़ी क्रांतियां गैरनौकरशाहों से आईं
21-Jun-2021 3:02 PM
देश की छह बड़ी क्रांतियां गैरनौकरशाहों से आईं

-हितेश एस.वर्मा
बीते कई वर्षों से प्रशांत किशोर सरकारी तंत्र में प्रोफेशनल रिसर्चर्स को लेटरल एंट्री मिल सके इसकी व्यवस्था हेतु प्रयास कर रहे हैं। ऐसा संभव करने के लिए नियमों में बदलाव आवश्यक हैं, जिसकी वे ज़ोरदार वकालत करते आये हैं। मोदीजी से उनका अलगाव भी इसी कारण हुआ, पर उन्हें नीतीश कुमार का साथ मिला। 

बिहार में अपने इस रेवोलुशनरी आइडिया को वे इम्प्लीमेंट कर चुके हैं, भले ही सीमित स्तर पर किया है लेकिन उन्हें पता है उनका उद्देश्य इसे राष्ट्रीय स्तर पर करने का है। यह तभी संभव है जब कोई विजऩरी पीएम उन्हें अपना यह रिफॉर्म मोवमेंट का सपना पूरा करने में सहयोग करें। इस कांसेप्ट के लिमिटेशंस को मीट अप किया जाये तो आईडिया बुरा नहीं है।

लेटरल एंट्री से मेरा मतलब है कि भारत या भारत से बाहर रह रहे ऐसे भारतीय जिन्होंने अपना जीवन किसी रिसर्च को दिया हो उन्हें देश की सरकारी व्यवस्था में शामिल कर कार्य करने का मौका मिले और मौका इस तरह मिले कि उस विभाग को लीड करने का जिम्मा उनके हाथ रहे, न कि किसी सिविल सर्वेंट के।

भारत में लेटरल एंट्री की बहुत बड़ी जरूरत है। एक ऐसी व्यवस्था बनाई जाए जिसमें सरकारी तंत्र में बाहर से भी लोग आकर काम करना चाहे तो कर सकें। जो विभाग के हिसाब से बेस्ट टैलेंट होना चाहिए वो सरकारी व्यवस्था में है ही नहीं।

यदि आज कोई ट्रांसपोर्ट कमिश्नर है वो ट्रांसपोर्ट की विधा को समझता है। कल जब उसका ट्रांसफर वाटर रिसोर्सेज डिपार्टमेंट में हो गया तो उसको उस विभाग की भी समझ हो जाएगी क्या? आपने यदि एक रिसर्चर के तौर पर जीवन भर वाटर सप्लाई पर रिसर्च किया हो, लेकिन हमारे सरकारी तंत्र के हिसाब से आपका ज्ञान कुछ नहीं। मूलत: इसी सोच को और इस व्यवस्था को बदलना है।

यदि विदेशों में रह रहा भारतीय व्यक्ति, दुनिया के दिग्गज इंस्टीट्यूशंस में पढक़र वाटर रिसोर्सेज, हेल्थ, ट्रांसपोर्ट, सेनिटेशन, साइंस, स्पेस वगैरह पर काम कर रहा हो तो उसे देश में आकर काम करने का कोई मौका ही नहीं है।
 
यदि गलती से मौका मिल भी गया तो उसे किसी विभाग के सेक्रेटरी का असिस्टेंट बना दिया जाएगा, उसका जिसे पहले ही कुछ समझ नहीं है। इसलिए क्यूंकि वो एक सिविल सर्वेंट है।

जो व्यक्ति कल तक वाटर रिसोर्सेज डिपार्टमेंट का सेक्रेटरी था वो ट्रांसफर उपरांत यदि हेल्थ डिपार्टमेंट का सेक्रेटरी बन गया, तो दिक्कत ये है कि वो वाटर भी उतना ही समझता है जितना हेल्थ, और जिस बंदे ने जीवन भर इन पर रिसर्च किया वो कुछ नहीं जानता! बताइए भला!

जब आप देखेंगे कि पश्चिमी देशों की मैच्योर्ड डेमोक्रेसी में किसी भी डिपार्टमेंट में कोई भी इश्यू पर सलाह देनी होती है तो वो प्रोफेशनल रिसर्चर देता है, सिविल सर्वेंट का काम होता है उस आदेश पर सही तरीके से क्रियान्वयन हो रहा या नहीं उसका संरक्षण करना।

अमेरिका के प्रेसिडेंट रूज़वेल्ट पहले चाहते थे कि उनके ‘ब्रेन ट्रस्ट’ में 6 प्रोफेशनल्स हों। उस दौर में व्हाइट हाउस में फेडरल बजट में 6 लोगों को एम्प्लॉय कर सैलरी देने की कोई व्यवस्था नहीं थी। तब यह पहली व्यवस्था उन्होंने स्वयं की। इतने वर्षों के बाद जब ओबामा प्रेसिडेंट बने तो लगभग 3000 प्रोफेशनल्स उनके साथ व्हाइट हाउस में दाखिल हुए। 

अमेरिका इसलिए आगे है क्यूंकि उन्होंने इन बदलावों पर अमल किया और उसमें वक्त के साथ बढ़ोतरी भी की। 

भारत में जब पीएम बदलता है, तो लेे दे कर चार शीर्ष अफसर बदल दिए जाते हैं। प्रिंसिपल सेक्रेटरी और ज्वाइंट सेक्रेटरी आपने चलिए बदल भी दिए तो उससे कैसे फायदा होगा? मान लेता हूं कि पहला अधिकारी कम्पीटेंट नहीं था, तो जो नया वाला आएगा क्या वो एकाएक कम्पीटेंट हो जाएगा? 

इसलिए इन व्यवस्थाओं की अदला बदली से भी देश में कोई मूल चूल बदलाव नहीं देखने मिलता। जितना डिलीवर होना चाहिए उतना नहीं हो रहा। पर हम एक्सपोनेंशियल चेंज तभी देख सकते हैं, जब लेटरल एंट्री के जरिए हम इन सिविल सर्वेंट के ऊपर संबंधित विभाग के लिए प्रोफेशनल रिसर्चर को स्थान दें।
मेरी इस बात की पुष्टि करने हेतु मैं आपको तार्किक उदाहरण देता हूं, हमारे देश में जितने भी मेजर रिफॉर्म्स हुए हैं उनमें से 6 में लीड करने वाला व्यक्ति लेटरल एंट्रेंट था, सिविल सर्वेंट नहीं था। टेलीकम्यूनिकेशन में ‘सैम पित्रोदा’, व्हाइट/अमूल रेवोल्यूशन में ‘वर्गीस कुरियन’, स्पेस के लिए ‘विक्रम साराभाई’, एटॉमिक एंड मिसाइल टेक्नोलॉजी के लिए ‘अब्दुल कलाम’, हरित क्रांति के लिए ‘स्वामीनाथन’  और सबसे रीसेंट बात करें तो आधार कार्ड का काम करने के लिए जाने जा रहे , ‘नंदन नीलेकणि’ भी सिविल सर्वेंट नहीं हैं।

अब जरा सोचिए 6 की जगह आज ऐसे 600 रिसर्च प्रोफेशनल्स को मौका मिलता तो देश में अब तक कितने रिफॉम्र्स हो चुके होते और भारत का प्रत्येक नागरिक आज कहां होता। हम अब तक बेहद विकासशील होते। पेंडेमिक में कोरोना से बेहतर लड़ाई लड़ रहे होते। अब आतंकवादी नहीं आने, वो गया जमाना। सरहदों से वायरस के रूप में जैविक हमले ही होंगे।

तो क्या भारत को ऐसा कोई विजनरी नेता मिलेगा, जो बदलाव करने से डरेगा नहीं, तथा उसका क्रियान्वयन बेहतर हो इसके लिए जान लगा देगा। कौन हो सकता है वो?

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news