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मोदी सरकार अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए क्या ‘कर्ज लेकर घी पीने’ वाली योजना पर चल रही है
29-Jun-2021 6:32 PM
मोदी सरकार अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए क्या ‘कर्ज लेकर घी पीने’ वाली योजना पर चल रही है

-आलोक जोशी

ऋणम कृत्वा घृतं पीवेत् यानी कर्ज लो और घी पियो।

लगता है कि सरकार ऐसा ही कुछ कहना चाहती है। और एक बार नहीं बार-बार कह रही है। हालाँकि इसकी अगली लाइन आज की परिस्थिति में किसी भी तरह फिट नहीं हो सकती। वो है... यावत् जीवेत् सुखम् जीवेत् यानी जब तक जियो सुख से जियो। और यहाँ तो हाल ऐसा है कि दुख ही दूर होने का नाम नहीं ले रहा।

कोरोना से बुरी तरह मार खाई हुई अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को कुल मिलाकर 6, 28, 993 करोड़ रुपए का नया पैकेज लाने का ऐलान किया है।

इसके पहले भी मोदी सरकार करीब 24 लाख 35 हजार करोड़ रुपए के राहत और स्टिमुलस पैकेज देने का ऐलान कर चुकी है।

लेकिन इसमें से ज़्यादातर रकम कर्ज के नाम पर ही दी जानी है। अब वो कर्ज वापस आएगा या नहीं यह एक अलग सवाल है। लेकिन कोरोना राहत के पहले ऐलान के बाद से जितना कुछ सामने आया है, वो मोटे तौर पर उधार बाँटने की ही योजना है।

इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरत इस बात की है कि लोग पहले लिए हुए कर्ज चुकाने की हालत में आएँ और नए कर्ज लेने की हिम्मत दिखा सकें।

कोरोना की पहली लहर में सरकार ने क्या-क्या किया

पिछले साल कोरोना संकट शुरू होने के तुरंत बाद यानी 26 मार्च को वित्त मंत्री ने गरीबों को सीधे और तात्कालिक मदद पहुँचाने के लिए 1,70,000 करोड़ रुपए के राहत पैकेज का एलान किया था। इस राहत में शहरों और गाँवों में गरीब परिवारों को मुफ्त राशन देने का इंतजाम शामिल था।

सरकार ने दावा किया कि देश में 80 करोड़ लोगों को अगले तीन महीनों तक दाल, चावल और गेहूँ जैसी चीजें दी जाएँगी ताकि लॉकडाउन की वजह से बेरोजगार हो गए लोगों के खाने का तो इंतजाम हो जाए।

सफाई कर्मचारियों और स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोगों के लिए एक विशेष बीमा योजना लाई गई और काफी बड़ी संख्या में लोगों के खातों में सीधे रकम डालने का इंतजाम भी हुआ। इसमें गाँव और शहर दोनों के ही लोग शामिल थे। एक सीमा से छोटी इकाइयों में काम करने वाले और 15 हजार से कम तनख्वाह पाने वाले लोगों के लिए सरकार ने पीएफ की रकम भी तीन महीने तक अपने पास से भरने का ऐलान किया था।

डेबिट कार्ड से पैसा निकालने पर चार्ज खत्म किया गया और बैंकों में मिनिमम बैलेंस की शर्त भी। सरकार को उम्मीद थी कि दो-तीन महीनों में कोरोना का खतरा टल जाएगा और सब कुछ पटरी पर आने लगेगा। हम आप भी ऐसा ही सोच रहे थे।

स्टिमुलस पैकेज का ऐलान

यह ज़्यादातर इंतजाम भी तीन महीने के नजरिए से ही किए गए थे। और साथ में यह फिक्र भी थी कि इसके तुरंत बाद चीजों को सुधारने के लिए एक धक्का और लगाना ही होगा। सो दो महीने बाद यानी मई में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड़ रुपए के एक आर्थिक स्टिमुलस पैकेज का ऐलान किया।

स्टिमुलस यानी ऐसा इंतजाम, जिससे अर्थव्यवस्था को उछलने का दम मिल सके। प्रधानमंत्री ने तो आत्मनिर्भर भारत का ऐलान कर दिया और साथ में बता दिया कि पैकेज का ब्योरा वित्त मंत्रालय से आएगा।

क्या पीएम मोदी अपने सलाहकार की बात मानते हैं?

अगले कई दिन तक वित्त मंत्री और उनके साथी राज्यमंत्री ने अंग्रेज़ी और हिंदी में कई किश्तों में इस पैकेज का ब्योरा पेश किया। सारा ब्योरा सामने आने के बाद अधिकतर विशेषज्ञों की राय यही थी कि दरअसल यह पैकेज कम और पैकेजिंग ज्यादा है।

अव्वल तो इसमें सरकार के तमाम पुराने ऐलान भी जोड़ लिए गए और रिजर्व बैंक के उठाए कदमों से बाजार में आने वाला करीब आठ लाख करोड़ रुपए का नकदी बढ़ाने का असर भी इसमें शामिल कर लिया गया था। बाल की खाल निकालने वाले जानकारों ने तो यहाँ तक कहा कि जितना कहा जा रहा है, यह पैकेज दरअसल उसका 10वाँ हिस्सा भी नहीं है। और यह पैकेज सामने आने के साथ ही यह बहस खड़ी हो गई थी कि आखिर तरह-तरह के कर्ज बांटकर सरकार अर्थव्यवस्था को क्या सहारा देने की सोच रही है जबकि जरूरत तो बाजार में डिमांड पैदा करने की है। कर्ज तो कोई तब लेगा न, जब उसे पैसे की जरूरत होगी।

जब लॉकडाउन, बेरोजगारी और अनिश्चितता की वजह से बाजार में मांग करीब-करीब खत्म हो चुकी हो, ऐसे में व्यापारियों या उद्योगपतियों को कर्ज देने से क्या फायदा होना था। और उससे बड़ी बात यह थी कि ऐसे में कर्ज लेने आएगा कौन?

इस बीच एक बात जरूर हुई, व्यापारिक कर्जों और घर के कर्ज या कार, स्कूटर या घर के सामान जैसी चीजों या किसी भी वजह से लिए गए पर्सनल लोन की भी ईएमआई भरने से कुछ महीनों की छूट जरूर मिल गई। हालाँकि इस बीच भी ब्याज चढ़ते रहना था। फिर भी बेहद मुसीबत में फँसे लोगों के लिए यह कुछ राहत का सबब तो बना।

तीसरे पैकेज की घोषणा

नवंबर के महीने में फिर दो लाख 65 हजार करोड़ रुपए का एक पैकेज आया। आत्मनिर्भर अभियान का तीसरा चरण। इस बार निर्मला सीतारमण ने रोजगार पैदा करने पर जोर दिया और कुछ ऐसे सेक्टरों को सहारा देने का इंतजाम किया गया, जिनसे रोजगार बढ़ाने की उम्मीद थी।

कोरोना के दौरान रोजगार खो चुके लोगों या नए लोगों को रोजगार पर रखने वाली इकाइयों को बढ़ावा देने के लिए आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना लाई गई।

छोटे उद्यमियों के लिए इमरजेंसी क्रेडिट लाइन गारंटी योजना की मियाद बढ़ाई गई और 10 चैंपियन सेक्टरों को पीएलआई स्कीम में करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए देने का इंतजाम भी किया गया। और भी कई एलान थे और उन पर काम भी हो रहा है।

लेकिन समस्या खत्म होने के बजाय विकराल होती ही दिख रही है। इसकी सबसे बड़ी वजह तो यही है कि कोरोना खत्म होने के बजाय दोगुने जोर से फिर हमलावर हो गया और अब तीसरी लहर की आशंका भी है। लेकिन सरकार ने अब जो ताजा ऐलान किए हैं, वो दूसरी लहर के असर को ही कम करने की कोशिश लगते हैं।

नई घोषणाओं में क्या है खास

सोमवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आठ नई योजनाओं का एलान किया। बच्चों के इलाज की सुविधाएँ बढ़ाने के लिए 23 हजार 220 करोड़ रुपए देने का ऐलान किया गया है और खासकर पिछड़े इलाकों में मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधारने यानी इलाज की बेहतर सुविधाएँ बनाने के लिए 50 हजार करोड़ रुपए की क्रेडिट गारंटी स्कीम लाई जा रही है।

दरअसल यह लोन गारंटी स्कीम एक लाख 10 हजार करोड़ रुपए की है, जिसमें से 50 हजार करोड़ हेल्थ सेक्टर के लिए और बाकी 60 हजार करोड़ के कर्ज दूसरे सेक्टरों के लिए होंगे।

इसके अलावा कोरोना की सबसे बुरी मार झेल रहे टूरिज्म सेक्टर को सहारा देने के लिए ट्रैवल एजेंटों को 10 लाख रुपए और टूरिस्ट गाइडों को एक लाख रुपए का कर्ज सरकार की गारंटी पर दिया जाएगा। यही नहीं इनका कारोबार बढ़ाने के लिए विदेशों से भारत आने वाले पहले पांच लाख टूरिस्टों की वीजा फीस माफ कर दी जाएगी।

एमएसएमई उद्योगों को सहारा देने के लिए सरकार ने पहले से चल रही इमरजेंसी क्रेडिट लाइन स्कीम का आकार तीन लाख करोड़ रुपए से बढ़ाकर साढ़े चार लाख करोड़ रुपए कर दिया है। (बाकी पेज 8 पर)

इस स्कीम में उद्यमियों को कुछ गिरवी रखे बिना कर्ज दिए जाते हैं।

साथ ही वित्त मंत्री ने एक नई स्कीम का ऐलान भी किया, जिसमें 25 लाख छोटे कारोबारियों को सवा लाख रुपए तक का कर्ज रियायती ब्याज दर पर दिया जाएगा। उन्होंने आत्मनिर्भर भारत रोजगार योजना और नए रोजगार पैदा करने पर मिलने वाली इंसेंटिव स्कीम यानी पीएलआई की मियाद भी एक एक साल बढ़ाने का एलान किया है।

किसे होगा इनसे फायदा?

लेकिन इस बात पर गंभीर सवाल हैं कि इन योजनाओं से कितना फायदा होगा और किसे होगा? सरकार पहले ही जो क्रेडिट गारंटी स्कीम लाई थी, उसमें तीन लाख करोड़ के सामने सिर्फ दो लाख 69 हजार करोड़ रुपए का ही कर्ज उठा है। फिर डेढ़ लाख करोड़ बढ़ाकर सरकार क्या हासिल करेगी।

सबसे बड़ा सवाल यह है कि जिस वक्त कंज्यूमर की जेब में पैसे डालकर मांग बढ़ाने की जरूरत है, उस वक्त सरकार व्यापारियों और उद्यमियों को कर्ज देने पर क्यों इतना जोर दे रही है? इसके लिए वो गारंटी भी देगी, ब्याज की दर भी कम करेगी और गिरवी रखने की शर्त भी हटा देगी।

लेकिन कर्ज लेकर कोई उद्योगपति या दुकानदार करेगा क्या? उसके लिए कर्ज की जरूरत या अहमियत तभी होती है, जब उसके सामने ग्राहक खड़े हों और उसे माल खरीदने, भरने या बनाने के लिए पैसे की जरूरत हो।

इस वक्त की सबसे बड़ी मुसीबत है बाजार में मांग की कमी। और उसकी वजह है लाखों की संख्या में बेरोजगार हुए लोग, बंद पड़े कारोबार और लोगों के मन में छाई हुई अनिश्चितता। सरकार को कुछ ऐसा करना होगा, जिससे इसका इलाज हो। और तब शायद उसे इस तरह कर्ज बाँटने की जरूरत नहीं रह जाएगी। (bbc.com)

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