विचार / लेख
-आलोक बाजपेयी
दादाभाई नौरोजी। नाम तो सुना होगा। न सुना हो जान लीजिये आधुनिक भारत के इन महात्मा के बारे में।
गांधी जब लंदन पढऩे गए तो खास इनके लिए एक चि_ी लिखवा के ले गए थे। जब मिलने गए तो नौरोजी की कुर्सी के पास जमीन पर बैठ गए। बोल कुछ नही सके और बस ये कहा कि आपके दर्शन को आया हूँ बस। दक्षिण अफ्रीका में गांधी के कमरे में जो एक तीन तस्वीरें थीं उनमे एक दादाभाई नौरोजी की थी। गांधी इन्हें अपने आंदोलन के बारे में बताया करते थे और मार्ग दर्शन लेते थे। हिन्द स्वराज में गांधी ने उन्हें The rise and growth of economic nationalism in india एक path breaking कहा है।
नौरोजी दुनिया के उन पहले बुद्धिजीवियों में थे जिन्होंने उपनिवेशवाद / साम्राज्यवाद की गंभीर विवेचना अपनी किताबों में की। लेनिन और दूसरे विद्वानों से पहले ।
नौरोजी का जीवन अद्भुत था। भारत मे 1840 के दशक में लड़कियों की शिक्षा की शुरुआत स्कूल खोलकर करने वालों में पहले थे। उन्होंने उपनिवेशवाद और भारत मे अंग्रेजी राज की पोल अपनी विश्व प्रसिद्ध ष्ठह्म्ड्डद्बठ्ठ शद्घ 2द्गड्डद्यह्लद्ध थ्योरी से खोल दी । अंग्रेजी राज कभी नौरोजी की थ्योरी से पार नही पा सका।उनकी आर्थिक विवेचना भारतीय राष्ट्रवाद और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की बुनियाद बना।
नौरोजी और उन पर आधारित आर्थिक राष्ट्रवाद के अध्ययन के लिए प्रोफेसर बिपिन चन्द्र की पीएचडी थीसिस किताब ञ्जद्धद्ग ह्म्द्बह्यद्ग ड्डठ्ठस्र द्दह्म्श2ह्लद्ध शद्घ द्गष्शठ्ठशद्वद्बष् ठ्ठड्डह्लद्बशठ्ठड्डद्यद्बह्यद्व द्बठ्ठ द्बठ्ठस्रद्बड्ड एक श्चड्डह्लद्ध ड्ढह्म्द्गड्डद्मद्बठ्ठद्द किताब है। इतिहास के शोधार्थियों को यह किताब जरूर देखनी चाहिए जिससे उन्हें अंदाजा हो सके कि वास्तविक रिसर्च क्या होती है।
बिपिन चन्द्र की नौरोजी को लेकर एक जिज्ञासा थी । वह खुद बहुत कोशिश के बावजूद उसका समाधान न कर सके। दरअसल नौरोजी जिस समय अंतराल में इंडिया ऑफिस लाइब्रेरी, लंदन में बैठकर उपनिवेशवाद और भारत में अंग्रेजी राज के आर्थिक प्रभावों पर शोध कर रहे थे ,उसी समय कार्ल माक्र्स भी वहीं थे। क्या दोनों लोग कभी मिले और बातचीत मुलाकात हुई?
लगभग 20 साल की अवधि रही तो ऐसा हो नहीं सकता कि न मिले हों। लेकिन कोई प्रमाण नहीं मिलता।
खैर आप नौरोजी पर जरूर पढिय़े। आप समझ सकेंगे कि हमारे पुरखे कैसे थे और भारत राष्ट्र का निर्माण कैसे हुआ।