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कनक तिवारी लिखते हैं- अर्जुन सिंह की यादें
08-Nov-2021 2:04 PM
कनक तिवारी लिखते हैं- अर्जुन सिंह की यादें

5 नवम्बर 1930 को जन्मे मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केंद्रीय मंत्री अर्जुन सिंह भारत की केंद्रीय राजनीति में बहुत महत्वपूर्ण हैसियत रखते थे। उनका बहुत लोगों से संबंध रहा होगा जिनकी संख्या गिनी नहीं जा सकती। मुझसे उनका सीमित संपर्क था लेकिन वह सीमित संपर्क एक खास समय में बहुत निजी और आत्मीय घनत्व का हो गया था। उसकी जानकारी बहुतों को नहीं होगी।

अर्जुन सिंह चाहते थे मैं उनके साथ रहकर राजनीति में काम करूं लेकिन छत्तीसगढ़ की क्षेत्रीय बनावट के कारण और फिर दुर्ग जिले की अलग बनावट के कारण यहां दो तरह के समूह चल रहे थे। एक विद्याचरण शुक्ल के नेतृत्व में जिसमें हम लोग थे। दूसरा चंदूलाल चंद्राकर के नेतृत्व में दुर्ग जिले की राजनीति में रहा है। उसमें भी हमें बीच-बीच में काम करना था ।                  

 एक ऐसा वक्त आया जब प्रदेश के एक शीर्ष नेता मेरे पिताजी से निजी रूप में नाराज हो गए । राजनांदगांव शहर से लगभग 5 किलोमीटर के बाद हमारे गांव पेंडरी के पास की सारी जमीन अचानक नोटिफाई हो गई कि वहां राजनांदगांव का इंडस्ट्रियल स्टेट आएगा। उस समय भू अर्जन अधिनियम के तहत इतना कम पैसा मिलता था कि वह तो बहुत घाटे का सौदा हो जाता । मेरे पिताजी परेशान हुए उन्होंने मुझसे कहा।

मैंने कुछ नहीं सोचा। अर्जुन सिंहजी को फोन किया। संयोग से फोन पर मिल गए। मैंने अपनी बातें बताईं। उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा आधे घंटे बाद क्या मुझे याद दिलाएंगे? आधे घंटे के अंदर ही उनके निजी सचिव यूनुस का फोन आ गया। कहा साहब ने मुख्यमंत्री से बात कर ली है और वह जो नोटिफिकेशन था डीनोटिफाई हो जाएगा। अगले दिन वह हो गया और हमारे गांव से बहुत आगे चलकर राजनांदगांव जिले का औद्योगिक केंद्र बनाया गया। उससे हमारी जमीन की कीमत बढ़ी। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद और भी बढ़ी। एक मध्यमवर्गीय परिवार की उन्होंने ऐसे मदद की जिसके एक प्रतिनिधि अर्थात मुझको चाहते थे कि मैं उनके साथ राजनीति करूं।

इसके अलावा एक बात और बीच के दौर में उन्होंने की। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अपने निजी कक्ष में एक दिन मुझे ले गए। वहां उत्तर प्रदेश के भाजपा नेता और विधायक वगैरह भी आए थे। उनके सामने मेरी बातें भी हुर्ईं और और उन्होंने उत्तर प्रदेश के भाजपा नेताओं से मेरे बारे में कहा कि ये बहुत विश्वासपात्र हैं। आप लोग निश्चिंत होकर बात करें।   उन्होंने नेहरू युवा केंद्र के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष के पद के लिए मुझसे प्रस्ताव किया कि मैं उसे स्वीकार कर लूं। शर्त रखी कि मुझे अपने खास आदिवासी सांसद मित्र अरविंद नेताम जो दूसरे ग्रुप के थे, उनसे राजनीतिक संबंध तोडऩे पड़ेंगे। मैंने अपने दिमाग से कह दिया कि मैं पद छोड़ दूंगा लेकिन दोस्ती नहीं छोडूंगा।              

उन्होंने कहा कि ठीक है इसके बाद आप और हम साहित्य संस्कृति पर ही बात करेंगे। यह पद उन्होंने बाद में प्रसिद्ध पत्रकार उदयन शर्मा को दिया। हमारा यह रिश्ता बहुत ही सौहार्दपूर्ण ढंग से आगे चलता रहा। राजनीतिक नहीं था।                      

मैं जब मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी का महामंत्री हुआ उसके पहले अजीत जोगी के साले पार्टी छोडक़र चुनाव लड़ गए। रत्नेश सोलोमन को पार्टी से निकाला गया था। पता नहीं क्यों मैंने उन्हें कांग्रेस में शामिल करा दिया। अर्जुन सिंह बीमार थे और अस्पताल में थे। वहां उन्होंने बुलाया। उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सरोज सिंह ने मुझसे पूछा कि मैंने उनसे पूछे बिना ऐसा क्यों किया। तो मैंने अपने चेहरे को भोला बनाते यही कहा कि मुझे यह बात समझ नहीं आई। मैंने सोचा एक कांग्रेस के कार्यकर्ता को वापस पार्टी में ले लिया जाए।                      

श्रीमती सिंह ने मुस्कुराकर मुझसे कहा आप जितने भोले बनना चाहते हैं इतने भोले हैं नहीं। अर्जुन सिंहजी ने अपनी कमजोर आवाज में यही कहा कनकजी! आगे कोई भी फैसला करें तो इतना तो समझ लें कि मैं अभी भी कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर हूं। मुझसे पूछ लिया करें। उसके बाद मैंने ऐसा कुछ नहीं किया कि उनसे पूछने की ज़रूरत पड़ती। हमारा संबंध उसी तरह सौहार्दपूर्ण बना रहा।

मध्यप्रदेश लघु उद्योग निगम का अध्यक्ष मैं बना। पता नहीं किन कारणों से दुर्ग में बहुत भारी भरकम स्वागत के बाद जब मैं कांग्रेस भवन पहुंचा अपने भाषण में मैंने कह दिया कि अर्जुन सिंह मेरे बौद्धिक नेता हैं। हमारे गु्रप के छत्तीसगढ़ के नेता विद्याचरण शुक्ल जिन्हें हम अपना बड़ा भाई मानते थे बहुत नाराज हुए। उन्होंने फोन पर मुझे बहुत डांटा और कहा कि अर्जुन सिंह कब से तुम्हारे बौद्धिक नेता हो गए। मैं कोई जवाब नहीं दे पाया।

मेरे कांग्रेस महामंत्री बनने का अर्जुनसिंह के समर्थकों में बहुत गुस्सा था। पता नहीं क्यों अजीत जोगी के अशोक रोड स्थित मकान में उनके सारे साथी अर्जुन सिंहजी के सभी समर्थक बैठे। अरविंद नेताम कार्यवाहक अध्यक्ष थे। उन्हें मैंने सलाह दी कि चलो साथियों के बीच चलते हैं। जो होगा देखा जाएगा। हम सब वहां पहुंचे देखा। सब बहुत नाराज़ हैं। कुछ लोगों ने अपनी बात कही। वह हमें सुनने में अच्छी तो नहीं लगी लेकिन हम चुप रहे। फिर बाद में मैंने अजीत जोगी से अनुरोध किया कि मुझे भी कहने का मौका दिया जाए।                  

अपने छोटे से भाषण में मैंने केवल यही बताया कि आप सब जितने उनके समर्थक यहां बैठे हैं कृपया मुझे बताएं कि अर्जुन सिंहजी के समर्थन में आज तक कितने लेख अखबारों में लिखे हैं। जितने मैंने लिखे हैं। जाहिर था किसी ने नहीं लिखे थे। मैंने तो लगातार लिखे। चाहे किसी को कैसा भी अच्छा बुरा लगा हो।           

उसके बाद उनके पुत्र अजय सिंहजी ने कहा कि देखिए अब कनकजी ने दस्तावेजी सबूत एक वकील के रूप में पेश कर दिये हैं। अब आगे इस बैठक का, वाद विवाद का, झगड़े का कोई अर्थ नहीं है। शालीन मोड़ पर बैठक खत्म हो गई।

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