विचार / लेख

हम भी अपने जमाने में गजब के विद्रोही थे
08-Jul-2022 12:51 PM
हम भी अपने जमाने में गजब के विद्रोही थे

-कविता कृष्णपल्लवी

ये जो हिन्दी के युवा कवियों-लेखकों की एक जमात इस फासिस्ट समय के आततायी अँधेरे में कलात्मक चकल्लसबाजी करते हुए कभी अज्ञेय की मानस संतति शेखर का नया संस्करण रचने लगती है, कभी भुवनेश्वर तो कभी राजकमल चौधरी का कुर्ता -पजामा फिर से धुलाकर और प्रेस कराकर पहनकर घूमने लगती है, कभी वात्स्यायन वर्णित संभोगासनों और कामकला का संधान करते हुए जड़ीभूत संस्कारों और सौन्दर्याभिरुचियों की दुनिया में तोडफ़ोड़ करने लगती है, कभी अकविता काल के अघोरियों के मंत्र पढ़ते हुए शवसाधना करने लगती है, कभी स्त्रियों के वस्तुकरण की नयी-नयी जादुई तकनीक ढूँढ़ते हुए रूढि़भंजन की आड़ में रीतिकालीन छलनाओं और कामदग्ध बंगाली जादूगरनी टाइप स्त्रियों की रहस्यमयी तांत्रिक छवियाँ उकेरने लगती है, कभी जब मानवतावाद का भूत सवार होता है तो निर्मल वर्मा, कुँवरनारायण से लेकर विनोद कुमार शुक्ल आदि के घर के पिछवाड़े जाकर चीथड़े बीनने लगती है, कभी किसी सूफ़ी की मजार पर जाकर हाथ में मोरपंखी लिए लोबान सुलगाने लगती है, कभी लकां, फूको और देरिदा से कुछ नुस्खे ऑनलाइन मँगवाने लगती है, कभी उत्तर-सत्य का संधान करने लगती है, कभी छद्म-प्रगतिशीलों, लिबरलों और सोशल डेमोक्रेटिक मदारियों के कुकर्मों और धंधों का हवाला देकर वामपंथ और मार्क्सवाद के प्रति ही विरक्ति और जुगुत्सा प्रदर्शित करने लगती है , ये दरअसल  जानती ही नहीं  कि ये क्या कर रही है!

ये पीले बीमार चेहरे वाले युवा अंधे कुत्तों की तरह सामाजिक-सांस्कृतिक-वैचारिक परिघटनाओं को सूँघते हुए आसमान में सिर उठाकर भूँकते और रोते रहते हैं और विचार और साहित्य के वृक्षों पर इधर-उधर शाखामृगों की तरह कूदते रहते हैं। ये रुग्ण देश-काल की रुग्ण मानस - संततियाँ हैं। इनमें से कुछ तो बेहिसाब दारूखोरी, गाँजा, नशे की गोलियों और व्यभिचार के अड्डों के भी शरणागत हो चुके हैं !

इनमें से कुछ डिप्रेशन के मरीज़ होकर मनश्चिकित्सकों और दवाओं के सहारे जीवन काटेंगे, कुछ को पागलखानों में भर्ती होना पड़ेगा, कुछ आत्महत्या कर लेंगे और कुछ कालान्तर में घुटे हुए मक्कार और धूर्त बुद्धिजीवी बनकर मीडिया, एकेडमिया या सत्ता और पूँजी घरानों के कला-साहित्य-संस्कृति प्रतिष्ठानों में व्यवस्थित हो जायेंगे और अपने बाल-बच्चे पालते हुए कभी-कभी नास्टैल्जिक होकर नये लोगों को बताया करेंगे कि बेट्टा, हम भी अपने ज़माने में गजब के विद्रोही हुआ करते थे!

 

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