विचार / लेख

गौंटियाजी सयाने हुए
13-Jul-2022 7:20 PM
गौंटियाजी सयाने हुए

-डॉ. परिवेश मिश्रा
रामलाल पटेल जी (परिवर्तित नाम) का गांव सारंगढ़ के पास ही है। वे गांव के सम्पन्न किसान हैं। पूर्वज गांव के गौंटिया रहे सो यह उपाधि रामलालजी की विरासत बनी।

गांव में इनी-गिनी मोटर साइकिलें थीं जिनमें से एक के मालिक रामलाल जी थे। उस मोटरसाईकिल पर दिन में एक बार सारंगढ़ का चक्कर लगाना उनकी दिनचर्या का अनिवार्य हिस्सा था। गांव वाले इनकी समझदारी, जानकारी और सम्पर्कों का बड़ा सम्मान करते थे। बाहरी दुनिया के लिए बाकी ग्रामीण इन्हें अपने गांव का ब्रांड ऐम्बैसेडर मानते थे। भोले ग्रामीण बाहरी, विशेषकर सरकारी दुनिया से सरोकार रखने वाले किसी प्रपंच में फंसने पर सलाह मांगने इन्हीं के पास पहुंचते थे।

गांव के बहुतेरों के लिए रामलाल गौंटियाजी किसी ‘गुरू’ से कम नहीं थे। किन्तु स्वयं रामलाल जी से यह प्रश्न पूछा जाता तो वे बताते जीवन का कम से कम एक पाठ तो उन्हें पुलिस ने पढ़ाया है। हुआ यूं कि कुछ वर्ष पहले गौंटियाजी के गांव में एक महिला की हत्या हो गयी। मौके पर पुलिस पहुंची, जांच-पड़ताल की और मृतका के शरीर से कुछ स्वर्ण-आभूषण जब्त कर वापस आ गयी। अगले दिन आदत के अनुसार गौंटियाजी अपनी मोटर साइकिल पर थाने के सामने से गुजऱ रहे थे कि थानेदार ने आवाज देकर अंदर बुला लिया।
गौंटियाजी को एक मुस्कराहट के साथ बैठने के लिए कुर्सी ऑफऱ की। पास की दुकान के लडक़े को चिल्लाकर चाय का ऑर्डर दिया।

थानेदार ने बताया कि मृत महिला के शरीर से प्राप्त आभूषण कितने महत्वपूर्ण सबूत हैं। आभूषणों को लिफाफे में रखकर सीलबंद किया जा रहा था और थानेदार साहब चाहते थे कि इतने महत्वपूर्ण कार्य की तस्दीक भी किसी महत्वपूर्ण व्यक्ति के हाथों ही हो। तब तक चाय आ गई थी। थानेदार ने बात समेटते हुए कहा : गौंटियाजी आपसे अधिक प्रतिष्ठित और जिम्मेदार व्यक्ति तो कोई हो ही नहीं सकता सो आप स्वयं तसल्ली कर बतौर गवाह हस्ताक्षर कर दें।

अचानक मिले सम्मान और महत्व से कुछ क्षणों के लिए असहज हुए गौंटियाजी ने शर्ट का कॉलर ठीक किया, देखा सब कुछ ठीक ठाक है, हस्ताक्षर किए, चाय समाप्त की, और बाहर आ गये।

कुछ दिनों के बाद गौंटियाजी को रायगढ़ की जिला अदालत से समन प्राप्त हुआ। सुबह छह बजे घर से निकले। सारंगढ़ बस स्टैंड में नाश्ता किया, पान बंधवाये, मोटर साइकिल छोड़ी और बस में बैठकर रायगढ़ और वहां रिक्शे पर बैठकर ठीक ग्यारह बजे अदालत पहुंच गये। सुबह के नाश्ते और हाथ में पान के पैकेट ने समय व्यतीत करने में सहायता की। शाम पांच बजे पता चला पेशी टल गयी है। रात दस बजे गौंटियाजी वापस घर पहुंचे। और उसके बाद पेशियों और इस तरह की दिनचर्या का सिलसिला चल निकला। कभी वकील साहब नहीं पहुंचे तो कभी जज साहब छुट्टी पर रहे, तो कभी कोई और कारण।
सत्रह पेशियों के बाद एक दिन गौंटियाजी की बारी आयी। हस्ताक्षर दिखा कर पूछा गया ‘आपके हैं?’। इन्होंने कहा ‘हां’ और आ गये।

वो दिन और आज का दिन। मजाल है कि कोई पुलिस वाला चाय पिलाकर गौंटियाजी से कहीं हस्ताक्षर करवा ले। अब गौंटियाजी सयाने हो चुके हैं।

आज गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरुओं के प्रति आभार प्रदर्शन का सिलसिला चला हुआ है। मुझे विश्वास है गौंटियाजी ने एक धन्यवाद संदेश गुरू थानेदार साहब को भी भेजा होगा।
गिरिविलास पैलेस
सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)

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