विचार / लेख
- रविन्द्र पतवाल
हिमांशु कुमारजी को कुछ वर्षों से जानता हूँ।
एक गांधीवादी होकर भी वे किसी भी जेन्युइन मार्क्सवादी से कम नहीं हैं। उल्टा धरातल पर वे उनसे कहीं बेहतर रूप में देश के सबसे दबे कुचले लोगों के साथ खड़े दिखे।
आज भारत की सर्वोच्च अदालत ने भी देश के आदिवासियों की हत्याओं पर खमोशी की चादर ओढऩी ही बेहतर नहीं समझी, बल्कि उसने आदिवासियों को कोई मदद करने आगे न आये, इसे ध्यान में रखते हुए उल्टा हिमांशु कुमार को ही अपराधी करार दे दिया है। और अदालत का समय खराब करने का आरोप लगाते हुए 5 लाख रूपये का जुर्माना लगा दिया है।
यदि 4 हफ्ते तक यह रुपया अदालत में जमा नहीं किया गया, तो हिमांशु जी को जेल होगी।
वे इसके लिए तैयार हैं।
कई वर्षों बाद एक आदमी भारत में ऐसा मिला जो जेल जाने से अब भी नहीं डरता।
80 के दशक के बाद से इस देश में संघर्ष करने वाले लोगों ने धीरे-धीरे जेल भेजे जाने पर अपने लिए जमानत की व्यवस्था करनी शुरू कर दी थी। इस विचारधारात्मक कमजोरी की शुरुआत ठीक-ठीक किसके द्वारा की गई, पता नहीं। पर आज यह सभी दलों, संगठनों की सबसे पहली जरूरत बन गई है।
व्यवस्था भी इस बात को अच्छी तरह से समझ गई है।
इसीलिए वह नूपुर शर्मा को गिरफ्तार करने के बजाय जुबैर को झूठे आरोपों में गिरफ्तार करवाकर सारा नैरेटिव ही बदलकर रख देती है। अभी तक जो देश नुपुर शर्मा की गिरफ्तारी की मांग कर रहा था, वह अगले ही पल अपनी मांग की तख्ती को फेंक जुबैर के खिलाफ सरकारी तानाशाही के पीछे दौडऩे लगता है।
आपकी बुद्धि का अचार डालकर नाश्ता किया जा रहा है।
हिमांशु कुमार ने कल प्रेस क्लब में आर्टिकल 19 को दिए अपने इन्टरव्यू में साफ-साफ कहा कि वे संविधान, अदालत को बचाने का काम कर रहे हैं, और दो जज इसकी धज्जियां उड़ा रहे हैं। देश के पास अब सिर्फ अदालत पर ही भरोसा बचा था, उसे भी ये जज तहस नहस कर रहे हैं।
अगर यही हालात रहे तो जनता बिफर सकती है घोर निराशा में।
हिमांशु कुमार ने कहा कि मैं अदालत की अवमानना नहीं बल्कि गलत इरादे से देश को बर्बाद करने में अदालत का दुरूपयोग किये जाने के खिलाफ लड़ता रहूँगा, चाहे इसके लिए मुझे कितनी भी बड़ी कुर्बानी क्यों न देनी पड़े।