विचार / लेख

बालबुद्धि का प्रकोप
19-Jul-2022 1:28 PM
बालबुद्धि का प्रकोप

-प्रकाश दुबे
बुजुर्गों की लड़ाई में बच्चे कभी हथियार बनते हैं, कभी ढाल। यशवंत सिन्हा को गृहराज्य में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा का समर्थन नहीं मिला। लोकसभा सदस्य बेटे जयंत ने वोट देने का झूठा वादा तक नहीं किया। बालठाकरे के बेटे उद्धव और पौत्र आदित्य कुर्सी छिनने के बावजूद साथ हैं। सत्ता छीनने वाले एकनाथ शिंदे और उनका कल्याण से लोकसभा सदस्य बेटा श्रीकांत साथ होंगे ही। दिवंगत करुणानिधि का बेटा स्टालिन तमिलनाडु में मुख्यमंत्री है, बेटी कनिमोड़ी सांसद। पोता उदयगिरि विधायक। बड़े बेटे अलगिरी से बरसों पहले करुणानिधि और द्रमुक पार्टी का नाता टूट चुका। तमिलनाडु की  अण्णा द्रमुक सरकार जाने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री पलानीस्वामी ने अण्णा द्रमुक महासचिव के नाते पूर्व उपमुख्यमंत्री पनीरसेल्वम के बेटों को पार्टी से निष्कासित किया। पार्टी से निष्कासित रवीन्द्रनाथ लोकसभा में अण्णाद्रमुक का एकमात्र सदस्य है। मिनरल वाटर की बोतलें  पार्टी बैठक में मिसाइल बनीं। इस माहौल में दोनों झगड़ालुओं की आराध्या जयललिता को भारत रत्न देने की मांग वाला प्रस्ताव पारित नहीं हो सका। महाराष्ट्र और तमिलनाडु दोनों के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव और पलानीस्वामी दोनों की पार्टियों को संसद में विरोधी नेता-पुत्र कुतर रहे हैं।

नौटंकी नहीं, सचमुच!!!
सोलहवें राष्ट्रपति का चुनाव ऐसी नौटंकी बन गया जिसका नतीजा पहले से पता है। निर्वाचन आयोग अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है। आयोग की कवायद से विमान कंपनियों का घाटा कुछ कम जरूर हुआ होगा। ऐसे यात्री उड़ान में सीटों पर विराजमान थे जो न आपस में बात कर रहे थे और न किसी और से। लुटियन के टीले पर बने राष्ट्रपति भवन में महिला प्रवेश करने वाली है। अंगरेजी के मोह में निर्वाचन आयोग ने टिकट में लिंगभेद कर दिया। यात्री का नाम लिखा-मिस्टर बैलट बाक्स। आप मतपेटी नहीं कह सकते। मुख्य निर्वाचन आयुक्त राजीव कुमार का सम्मान रखते हुए मतसंदूक चल सकता है। निर्वाचन आयोग ने सुरक्षा बल की निगरानी में मिस्टर बैलट बाक्स को ढाई दर्जन मतदान केन्द्रों तक विमान से भेजने का निर्देश दिया था। सभी जगह नियमित उड़ान नहीं है। सप्ताह भर पहले सदल बल संदूक साहब गंतव्य के लिए रवाना हुए। लोकतंत्र में प्रचार के दौरान ही नाटक नौटंकी का मजा नहीं होता। चुनाव मशीनरी की क्षमता की परीक्षा होती है। अनुमान है कि 16 वें राष्ट्रपति का चुनाव अब तक का सबसे एकतरफा होगा। यूं भी योग्यता और अनुभव की हमेशा जीत नहीं होती। भैरोंसिंह शेखावत जैसे लोकप्रिय नेता हार गए थे।

निकम्मा, भ्रष्ट?
कुछ लोग धुन के पक्के होते हैं। इतिहास से प्रभावित नहीं होते। उन्हें इतिहास बदलने के दौरे पड़ते हैं। सिक्किम क्रांतिकारी मोर्चा सरकार ने चुनाव घोषणापत्र में वादा किया था कि सत्ता संभालने के सौ दिन के अंदर किसानों के पांच लाख तक कर्ज माफ करें। मूल दस्तावेज वापस देंगे। जय किसान आंदोलन ने सिक्किम के कृषि मंत्री लोकनाथ शर्मा को पत्र लिखकर पूछा है कि दो साल बीत जाने के बाद अधिसूचना जारी करने की कार्रवाई की गई? पूरा करने की क्या योजना है? सौ दिन की अवधि 4 सितम्बर 2019 को पूरी हो चुकी है। जय किसान आंदोलन के सिक्किम राज्य से लेकर राष्ट्रीय नेता तक मुख्यमंत्री के उज्ज्वल इतिहास से परिचित हैं। प्रेम सिंह तमांग ने मई 2019 में सिक्किम के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। भ्रष्टाचार साबित होने पर 20 दिसम्बर 2016 को उनकी विधानसभा सदस्यता छिन गई थी। हर किसी में नई पार्टी बनाकर उम्मीदवार जुटाने का माद्दा नहीं होता। तमांग ने मुख्यमंत्री की पार्टी को सत्ता से हटाकर सत्ता पाई। एक हजार से अधिक दिन बीत जाने के बाद अब मुख्यमंत्री तमांग सौ दिन वाले वादे पर गौर करने के मूड में नहीं हैं। उस पर धमकी दी-वादा पूरा नहीं किया तो किसान आंदोलन करेंगे।  

पाखंड मत कहना  
छह महीने तक भारतीय प्रेस परिषद अध्यक्ष विहीन रहा। धीरज का फल मीठा होता है। पहली मर्तबा न्यायमूर्ति रंजना देसाई के रूप में महिला को प्रतिनिधित्व मिला। परिषद में पूर्वोत्तर की झलक दिखेगी। संपादकों की संस्था एडिटर्स गिल्ड के प्रतिनिधि के रूप में मणिपुर के खाइदेम अथौबा मैते को सदस्य बनाकर साबित किया कि पूर्वोत्तर का मतलब सिर्फ असम नहीं है। परिषद के नए सचिव नंगसंग्लेम्बा आओ नगालैंड में जन्मे। आओ न्यायायिक सेवा से भले नहीं हैं। वे सूचना प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत प्रेस सूचना कार्यालय में अतिरिक्त महानिदेशक के पद पर हैं। परिषद की सचिव अनुपमा भटनागर डीएवीपी की महानिदेशक बनी। मतलब एक और महत्वपूर्ण दायित्व वाला पद महिला के सिपुर्द। संवाद माध्यम चमचा, गद्दार, चापलूस, पाखंड और घडिय़ाली आंसू जैसे शब्दों का बारंबार कीर्तन करते हैं। संसद ने इन शब्दों पर काली स्याही पोत दी। संवादमाध्यमों के हितों की हिफाजत करने वाली संस्था इस पर कोई राय बनाती है या नहीं?  जानना दिलचस्प होगा।
(लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)

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